००४ कुष्ठतक्मनाशनम्

००४ कुष्ठतक्मनाशनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To the plant kúṣṭha: against takmán ⌊fever⌋.
VH anukramaṇī

कुष्ठतक्मनाशनम्।
१-१० भृग्वङ्गिराः। कुष्ठो, यक्ष्मनाशनम्। अनुष्टप्, ५ भुरिक्, ६ गायत्री, १० उष्णिग्गर्भा निचृत्।

Whitney anukramaṇī

[Bhṛgvan̄giras.—daśakam. yakṣmanāśanakuṣṭhadevatyam. ānuṣṭubham: 5. bhurij; 6. gāyatrī; 10. uṣṇiggarbhā nicṛt.]

Whitney

Comment

All the verses except 4 are found also in Pāipp., but in two books: vss. 1-3, 5-7 in xix. (and not all together); vss. 8-10 in ii. It is not expressly quoted by Kāuś., but the schol. (26. 1, note) regard it as included in the takmanāśana gaṇa, and (28. 13, note) also in the kuṣṭhalin̄gās, and so employed in a healing rite against rājayakṣma; vs. 10 is separately added (26. 1, note) at the end of the gaṇa.

Translations

Translated: Grohmann, Indische Studien, ix. 421 (vss. 1, 3-6); Zimmer, p. 64 (parts); Grill, 9, 141; Griffith, i. 193; Bloomfield, 4, 414; Weber, xviii. 178.

Griffith

A charm against fever and other ailments

०१ यो गिरिष्वजायथा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यो गि॒रिष्वजा॑यथा वी॒रुधां॒ बल॑वत्तमः।
कुष्ठेहि॑ तक्मनाशन त॒क्मानं॑ ना॒शय॑न्नि॒तः ॥

०१ यो गिरिष्वजायथा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou that wast born on the mountains, strongest of plants, come, O
    kúṣṭha, effacer (-nā́śana) of takmán, effacing the fever (takmán)
    from here.
Notes

The kuṣṭha is identified as Costus speciosus or arabicus. The
pada-text reads in c kúṣṭha: ā́: ihi; and the passage is quoted
as an example under Prāt. iii. 38, which teaches the combination.

Griffith

Thou who wast born on mountains, thou most mighty of all plants that grow. Thou Banisher of Fever, come, Kushtha! make Fever pass away.

पदपाठः

यः। गि॒रिषु॑। अजा॑यथाः। वी॒रुधा॑म्। बल॑वत्ऽतमः। कुष्ठ॑। आ। इ॒हि॒। त॒क्म॒ऽना॒श॒न॒। त॒क्मान॑म्। ना॒शय॑न्। इ॒तः। ४.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो तू (गिरिषु) स्तुतियोग्य पुरुषों में (वीरुधाम्) विविध उत्पन्न प्रजाओं के बीच (बलवत्तमः) अत्यन्त बलवान् (अजायथाः) उत्पन्न हुआ है। (तक्मनाशन) हे दुःखित जीवन नाश करनेवाले (कुष्ठ) गुणपरीक्षक पुरुष (इतः) यहाँ से (तक्मानम्) दुःखित जीवन को (नाशयन्) नाश करता हुआ (आ इहि) तू आ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रतापी राजा प्रजा के दुःखों का नाश करके उन्नति करे कुष्ठ वा कूट एक ओषधि का भी नाम है, जो राजयक्ष्म, कुष्ठ आदि रोगों को शान्त करती है] ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यः) यस्त्वम् (गिरिषु) कॄगॄशॄपॄ०। उ० ४।१४३। इति गृणातिः स्तुतिकर्मा−निरु० ३।५। इ प्रत्ययः। स्तूयमानेषु पूज्येषु पुरुषेषु (अजायथाः) त्वमुत्पन्नोऽभवः (वीरुधाम्) विरोहणशीलानां प्रजानां मध्ये (बलवत्तमः) अतिशयेन बलवान् (कुष्ठ) हनिकुषिनी०। उ० २।२। इति कुष निष्कर्षे−क्थन्। हे निष्कर्षक। गुणपरीक्षक पुरुष (आ इहि) आगच्छ (तक्मनाशन) हे कृच्छ्रजीवननाशक (तक्मानम्) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनम् (नाशयन्) निराकुर्वन् (इतः) अस्माद् देशात् ॥

०२ सुपर्णसुवने गिरौ

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सु॑पर्ण॒सुव॑ने गि॒रौ जा॒तं हि॒मव॑त॒स्परि॑।
धनै॑र॒भि श्रु॒त्वा य॑न्ति वि॒दुर्हि त॑क्म॒नाश॑नम् ॥

०२ सुपर्णसुवने गिरौ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On an eagle-bearing (-súvana) mountain, born from the snowy one
    (himávant); they go to [it] with riches, having heard [of it], for
    they know the effacer of fever.
Notes

‘From the snowy one,’ i.e. ‘from the Himalaya’; we had the pāda above as
iv. 9. 9 b. Ppp. begins with suvarṇasavane, and has for c, d
dhanāir abhiśrutaṁ hakti kuṣṭhed u takmanāśanaḥ.

Griffith

Brought from the Snowy Mountain, born on the high hill where eagles breed, Men seek to buy thee when they hear: for Fever’s Banisher they know.

पदपाठः

सु॒प॒र्ण॒ऽसुव॑ने। गि॒रौ। जा॒तम्। हि॒मऽव॑तः। परि॑। धनैः॑। अ॒भि। श्रु॒त्वा। य॒न्ति॒। वि॒दुः। हि। त॒क्म॒ऽनाश॑नम्। ४.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सुपर्णसुवने) उत्तम पालन सामर्थ्य उत्पन्न करने हारे (गिरौ) स्तुति योग्य कुल में (हिमवतः) उद्योगी पुरुष से (परि) अच्छे प्रकार (जातम्) उत्पन्न पुरुष को (धनैः) धनों के साथ वर्तमान (श्रुत्वा) सुनकर [विद्वान् लोग] (अभि यन्ति) सन्मुख पहुँचते हैं, [और उस को] (तक्मनाशनम्) दुःखित जीवन नाश करने हारा (हि) निश्चय करके (विदुः) जानते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग उत्तम कुल में उत्पन्न प्रतापी, धनी पुरुष को अपना राजा बनाते और उस पर प्रजा की रक्षा का भार रखते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(सुपर्णसुवने) धापॄवस्य०। उ० ३।६। इति पॄ पालनपूरणयोः−न। भूसूधू०। उ० २।८०। इति पू प्रेरणे, यद्वा षूङ् प्राणिप्रसवे−क्युन्। उत्तमपालनस्योत्पादके (गिरौ) म० १। पूज्ये कुले (जातम्) उत्पन्नम् (हिमवतः) हन्तेर्हि च। उ० १।१४७। इति हन हिंसागत्योः−मक्। गतिमतः। उद्योगिनः पुरुषात् (परि) पूजायाम्। सुष्ठु (धनैः) धनैः सह वर्त्तमानम् (अभि) आभिमुख्येन (श्रुत्वा) आकर्ण्य (यन्ति) गच्छन्ति विद्वांसः (विदुः) जानन्ति (हि) निश्चयेन (तक्मनाशनम्) कृच्छ्रजीवननाशकम् ॥

०३ अश्वत्थो देवसदनस्तृतीयस्यामितो

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अ॑श्व॒त्थो दे॑व॒सद॑नस्तृ॒तीय॑स्यामि॒तो दि॒वि।
तत्रा॒मृत॑स्य॒ चक्ष॑णं दे॒वाः कुष्ठ॑मवन्वत ॥

०३ अश्वत्थो देवसदनस्तृतीयस्यामितो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The aśvatthá, seat of the gods, in the third heaven from here;
    there the gods won the kúṣṭha, the sight (cákṣaṇa) of immortality
    (amṛ́ta).
Notes

Or, perhaps, an image or likeness of the amṛ́ta (drink). This verse and
the next are repeated below as vi. 95. 1, 2, and again, with slight
variations, as xix. 39. 6, 7. The second pāda occurs elsewhere in sundry
places, as ChU. viii. 5. 3, HGS. ii. 7. 2. With c compare RV. i. 13.
5; 170. 4.

Griffith

In the third heaven above us stands the Asvattha tree, the seat of Gods. There the Gods sought the Kushtha Plant, embodiment of end- less life.

पदपाठः

अ॒श्व॒त्थः। दे॒व॒ऽसद॑नः। तृ॒तीय॑स्याम्। इ॒तः। दि॒वि। तत्र॑। अ॒मृत॑स्य। चक्ष॑णम्। दे॒वाः। कुष्ठ॑म्। अ॒व॒न्व॒त। ४.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवसदनः) विद्वानों के बैठने योग्य (अश्वत्थः) वीरों के ठहरने का देश (तृतीयस्याम्) तीसरी [निकृष्ट और मध्यम अवस्था से परे, श्रेष्ठ] (दिवि) गति में (इतः) प्राप्त होता है, (तत्र) उसमें (अमृतस्य) अमृत के (चक्षणम्) दर्शन, (कुष्ठम्) गुणपरीक्षक पुरुष को (देवाः) महात्माओं ने (अवन्वत) माँगा है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वानों ने निश्चय किया है कि मनुष्य सर्वोत्तम पुरुषार्थ से सर्वजन हितैषी होता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(अश्वत्थः) अ० ३।६।१। अश्वानां कर्मसु व्यापनशीलानां वीराणां स्थितिदेशः (देवसदनः) महात्मनां स्थितियोग्यः (तृतीयस्याम्) निकृष्टमध्यमाभ्यां तृतीयस्यां श्रेष्ठायाम् (इतः) इण्−क्त। प्राप्तः (दिवि) गतौ। अवस्थायाम् (तत्र) तस्मिन् स्थाने (अमृतस्य) अमरणस्य। चिरजीवनस्य (चक्षणम्) दर्शनम्। रूपम् (देवाः) विद्वांसः (कुष्ठम्) म० १। निष्कर्षकं गुणपरीक्षकम् (अवन्वत) वनु याचने। याचितवन्तः ॥

०४ हिरण्ययी नौरचरद्धिरण्यबन्धना

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हि॑र॒ण्ययी॒ नौर॑चर॒द्धिर॑ण्यबन्धना दि॒वि।
तत्रा॒मृत॑स्य॒ पुष्पं॑ दे॒वाः कुष्ठ॑मवन्वत ॥

०४ हिरण्ययी नौरचरद्धिरण्यबन्धना ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. A golden ship, of golden tackle (-bándhana), moved about in the
    sky; there the gods won the kúṣṭha, the flower of immortality.
Notes

Most of the mss. appear to read avarat in a, but doubtless only
owing to the imperfect distinction of ca and va in most Sanskrit
writing. So also, for the same reason, in c, they could be read for
the most part as either púṣyam or púṣpam (M. has puṣyàm); the
former was adopted in our edition as being favored by the meter.

Griffith

There moved through heaven a golden ship, a ship with cordage wrought of Gold. There the Gods won the Kushtha Plant, the blossom of eternal life.

पदपाठः

हि॒र॒ण्ययी॑। नौः। अ॒च॒र॒त्। हिर॑ण्यऽबन्धना। दि॒वि। तत्र॑। अ॒मृत॑स्य। पुष्प॑म्। दे॒वाः। कुष्ठ॑म्। अ॒व॒न्व॒त॒। ४.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्ययी) तेजोमयी, (हिरण्यबन्धना) तेजोमय बन्धनवाली (नौः) नाव (दिवि) प्रकाशलोक में (अचरत्) चलती थी। (तत्र) वहाँ पर (अमृतस्य) अमृत के (पुष्पम्) विकाश, (कुष्ठम्) गुणपरीक्षक पुरुष को (देवाः) विद्वान् लोगों ने (अवन्वत) माँगा है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग तीक्ष्णबुद्धि मनुष्य द्वारा उत्तम विद्या का प्रकाश करके आनन्द पाते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(हिरण्ययी) हिरण्ययी तेजोमयी (नौः) अ० ३।६।७। तरणिः (अचरत्) अगमत् (हिरण्यबन्धना) तेजोमयबन्धनयुक्ता (दिवि) प्रकाशलोके (पुष्पम्) पुष्प विकसने−पचाद्यच्। विकाशम्। अन्यद् गतम्। म० ३ ॥

०५ हिरण्ययाः पन्थान

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हि॑र॒ण्ययाः॒ पन्था॑न आस॒न्नरि॑त्राणि हिर॒ण्यया॑।
नावो॑ हिर॒ण्ययी॑रास॒न्याभिः॒ कुष्ठं॑ नि॒राव॑हन् ॥

०५ हिरण्ययाः पन्थान ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Golden were the roads, the oars golden, the ships were golden by
    which they brought out the kúṣṭha.
Notes

Ppp. reads hiraṇmay-, and omits c (doubtless by an oversight). All
the mss. agree in accenting áritrāṇi; but this should doubtless be
emended to arít-. In a we may emend to pánthās or combine
pánthānā ”san.

Griffith

They sailed on pathways paved with gold, the oars they piled were wrought of gold: All golden were the ships wherein they carried Kushtha down to earth.

पदपाठः

हि॒र॒ण्ययाः॑। पन्था॑नः। आ॒स॒न्। अरि॑त्राणि। हि॒र॒ण्यया॑। नावः॑। हि॒र॒ण्ययीः॑। आ॒स॒न्। याभिः॑। कुष्ठ॑म्। निः॒ऽआव॑हन्। ४.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • भुरिगनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्ययाः) तेजोमय (पन्थानः) मार्ग और (हिरण्यया) तेजोमय (अरित्राणी) बल्लियाँ वा डाँड़ (आसन्) थे। (हिरण्ययीः) तेजोमय (नावः) नावें (आसन्) थीं, (याभिः) जिनसे (कुष्ठम्) गुणपरीक्षक पुरुष को (निरावहन्) वे निश्चय करके लाये हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - महात्मा लोग विद्वान् का आदर करके आनन्दित होते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(हिरण्ययाः) हिरण्यमयाः। तेजोयुक्ताः (पन्थानः) मार्गाः (आसन्) अभवन् (अरित्राणि) अशित्रादिभ्य इत्रोत्रौ। उ० ४।१७३। इति ऋ गतौ−इत्र। नौकाचालनकाष्ठानि (हिरण्यया) हिरण्यमयानि (नावः) नौकाः (हिरण्ययीः) हिरण्यमय्यः तेजोयुक्ताः (आसन्) (याभिः) नौभिः (कुष्ठम्) म० १। गुणपरीक्षकं पुरुषम् (निरावहन्) निर्+आङ्+अवहन्। निश्चयेन आनीतवन्तः ॥

०६ इमं मे

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इ॒मं मे॑ कुष्ठ॒ पूरु॑षं॒ तमा व॑ह॒ तं निष्कु॑रु।
तमु॑ मे अग॒दं कृ॑धि ॥

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Whitney
Translation
  1. This man of mine, O kúṣṭha—him bring, him relieve (nis-kṛ), him
    also make free from disease for me.
Notes

With c compare the nearly identical vi. 95. 3 d. E.H. read níḥ
kuru
.

Griffith

O Kushtha, bring thou hitherward this man of mine, restore his health, Yes, free him from disease for me.

पदपाठः

इ॒मम्। मे॒। कु॒ष्ठ॒। पुरु॑षम्। तम्। आ। व॒ह॒। तम्। निः। कु॒रु॒। तम्। ऊं॒ इति॑। मे॒। अ॒ग॒दम्। कृ॒धि॒। ४.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • गायत्री
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (कुष्ठ) हे गुणपरीक्षक पुरुष ! (मे) मेरे (इमम्) इस (तम्) पीड़ित (पुरुषम्) पुरुष को (आ वह) ले, और (तम्) उसको [दुःख से] (निष्कुरु) बाहिर कर। (तम् उ) उसको ही (मे) मेरे लिये (अगदम्) नीरोग (कृधि) कर ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा प्रयत्नपूर्वक प्रजा के मानसिक और शारीरिक रोगों को हटावे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(इमम्) दृश्यमानम् (मे) मम (कुष्ठ) म० १। हे गुणपरीक्षक पुरुष (पुरुषम्) अ० १।१६।४। पुरुषम्। जनम् (तम्) तर्द। हिंसायाम्−ड हिंसितम् (आ वह) आनय (तम्) पूर्वोक्तम् (निष्कुरु) बहिष्कुरु। उद्धर (तम्) (उ) एव (अगदम्) गद कथने रोगे च−अच्। अरोगम् (कृधि) कुरु ॥

०७ देवेभ्यो अधि

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दे॒वेभ्यो॒ अधि॑ जा॒तोऽसि॒ सोम॑स्यासि॒ सखा॑ हि॒तः।
स प्रा॒णाय॑ व्या॒नाय॒ चक्षु॑षे मे अ॒स्मै मृ॑ड ॥

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Whitney
Translation
  1. From the gods art thou born; of Soma art thou set as companion; do
    thou be gracious to my breath, out-breathing, sight here.
Notes

E.H. accent jātó ‘si in a (p. jātáḥ: asi). Ppp. reads apānāya
for vyān- in c, and at the end ‘sya mṛḍa, which is easier. ⌊Cf.
Hillebrandt, Mythologie, i. 65.⌋

Griffith

Thou art descended from thee Gods, Soma’s benignant friend art thou, Befriend my breath and vital air be gracious unto this mine eye.

पदपाठः

दे॒वेभ्यः॑। अधि॑। जा॒तः। अ॒सि॒। सोम॑स्य। अ॒सि॒। सखा॑। हि॒तः। सः। प्रा॒णाय॑। वि॒ऽआ॒नाय॑। चक्षु॑षे। मे॒। अ॒स्मै। मृ॒ड॒। ४.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवेभ्यः) विद्वान् पुरुषों से (अधि) ऐश्वर्य के साथ (जातः असि) तू उत्पन्न है, और (सोमस्य) ऐश्वर्यवान् पुरुष का (हितः) हितकारी (सखा) (असि) तू है। (सः) सो तू (मे) मेरे (प्राणाय) प्राण के लिये, (व्यानाय) व्यान के लिये और (चक्षुषे) नेत्र के लिये (अस्मै) इस पुरुष पर (मृड) सुखी हो ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - कुलीन ऐश्वर्यवान् राजा कुलीन ऐश्वर्यवान् पुरुषों का सत्कार करता हुआ उनकी सर्वथा रक्षा करता रहे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः सकाशात्। (अधि) ऐश्वर्येण (जातः) उत्पन्नः (असि) (सोमस्य) ऐश्वर्ययुक्तस्य (सखा) सृहृद् (हितः) शुभकारकः (सः) स त्वम् (प्राणाय) प्राणहिताय (व्यानाय) व्यानहिताय (चक्षुषे) चक्षुर्हिताय (मे) मम (अस्मै) उपस्थिताय पुरुषाय (मृड) सुखी भव ॥

०८ उदङ्जातो हिमवतः

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उद॑ङ्जा॒तो हि॒मव॑तः॒ स प्रा॒च्यां नी॑यसे॒ जन॑म्।
तत्र॒ कुष्ठ॑स्य॒ नामा॑न्युत्त॒मानि॒ वि भे॑जिरे ॥

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Whitney
Translation
  1. Born in the north from the snowy [mountain], thou art conducted to
    people (jána) in the eastern [quarter]; there have they shared out
    the highest names of the kúṣṭha.
Notes

“The highest names”: i.e. the chief sorts or kinds ⌊brands, as we
moderns say⌋. The reading údān in a is assured by quotation under
Prāt. iii. 27. Ppp. reads prācyaṁ in b.

Griffith

Sprung, northward, from the Snowy Hill thou art conveyed to eastern men. There they deal out among themselves Kushtha’s most noble qualities.

पदपाठः

उद॑ङ्। जा॒तः। हि॒मऽव॑तः। सः। प्रा॒च्याम्। नी॒य॒से॒। जन॑म्। तत्र॑। कुष्ठ॑स्य। नामा॑नि। उ॒त्ऽत॒मानि॑। वि। भे॒जि॒रे॒। ४.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) सो तू (हिमवतः) उद्योगी पुरुष से (जातः) उत्पन्न होकर और (उदङ्) ऊँचा पद पाकर (प्राच्याम्) प्रकृष्ट गति के बीच (जनम्) मनुष्यों में (नीयसे) लाया जाता है। (तत्र) वहाँ पर (कुष्ठस्य) गुणपरीक्षक राजा के (उत्तमानि) उत्तम-उत्तम (नामानि) यशों का (वि) विविध प्रकार से (भेजिरे) उन्होंने सेवन किया है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रजागण उत्तम राजा को पाकर सदा उसका नाम गाते रहते हैं ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(उदङ्) ऊर्ध्वं पदं गतः (जातः) प्रादुर्भूतः (हिमवतः) म० २ उद्योगिनः पुरुषात् (सः) स त्वम् (प्राच्याम्) प्रकृष्टायां गत्याम् (नीयसे) प्राप्यसे (जनम्) लोकं प्रति (तत्र) जनसमूहे (कुष्ठस्य) म० १। गुणपरीक्षकस्य पुरुषस्य (नामानि) यशांसि (उत्तमानि) श्रेष्ठानि (वि) विविधम् (भेजिरे) भज सेवायाम्−लिट्। सेवितवन्तः ॥

०९ उत्तमो नाम

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उ॑त्त॒मो नाम॑ कुष्ठास्युत्त॒मो नाम॑ ते पि॒ता।
यक्ष्मं॑ च॒ सर्वं॑ ना॒शय॑ त॒क्मानं॑ चार॒सं कृ॑धि ॥

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Whitney
Translation
  1. Highest by name, O kúṣṭha, art thou; highest by name thy father;
    both do thou efface all yákṣma, and do thou make the fever sapless.
Notes

Ppp. has a wholly different second half: yataṣ kuṣṭha prajāyase tad ehy
ariṣṭatātaye
.

Griffith

Most excellent, indeed, art thou, Kushtha! most noble is thy sire. Make all Consumption pass away and render Fever powerless.

पदपाठः

उ॒त्ऽत॒मः। नाम॑। कु॒ष्ठ॒। अ॒सि॒। उ॒त्ऽत॒मः। नाम॑। ते॒। पि॒ता। यक्ष्म॑म्। च॒। सर्व॑म्। ना॒शय॑। त॒क्मान॑म्। च॒। अ॒र॒सम्। कृ॒धि॒। ४.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (कुष्ठ) हे गुणपरीक्षक राजन् ! तू (नाम) अवश्य (उत्तमः) अतिश्रेष्ठ (असि) है, (ते) तेरा (पिता) पिता (नाम) प्रसिद्ध (उत्तमः) अति उत्तम है। (सर्वम्) सब (यक्ष्मम्) राजरोग को (च) अवश्य (नाशय) नाश कर (च) और (तक्मानम्) दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर को (अरसम्) असमर्थ (कृधि) बना ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उत्तम गुणी राजा अपने उत्तम कुलका स्मरण करके प्रजा की दुःखों से सदा रक्षा करे ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(उत्तमः) श्रेष्ठः (नाम) स्वीकारे। अवश्यम् (कुष्ठ) म० १ हे गुणपरीक्षक राजन् (असि) (उत्तमः) श्रेष्ठः (नाम) प्रसिद्धौ (ते) तव (पिता) पालकः। जनकः (यक्ष्मम्) अ० २।१०।५। राजरोगं क्षयम् (च) (सर्वम्) (नाशय) निवारय (तक्मानम्) म० १ कृच्छ्रजीवनकरं ज्वरम् (च) (अरसम्) असमर्थम् (कृधि) कुरु ॥९॥

१० शीर्षामयमुपहत्यामक्ष्योस्तन्वोरपः कुष्ठस्तत्सर्वम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शी॑र्षाम॒यमु॑पह॒त्याम॒क्ष्योस्त॒न्वो॒३॒॑रपः॑।
कुष्ठ॒स्तत्सर्वं॒ निष्क॑र॒द्दैवं॑ समह॒ वृष्ण्य॑म् ॥

१० शीर्षामयमुपहत्यामक्ष्योस्तन्वोरपः कुष्ठस्तत्सर्वम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Head-disease, attack (? upahatyā́), evil of the eyes, of the
    body—all that may kúṣṭha relieve, verily a divine virility (vṛ́ṣṇya).
Notes

The reading níṣ karat in c falls under Prāt. ii. 63. All the mss.
give akṣós, but the proper reading is plainly akṣyós, as the meter
shows; the same error is found also in other passages. The Anukr.
implies akṣós, as akṣyós (-ṣi-ós) would make the verse a regular
anuṣṭubh. The Pet. Lexx. take upahatyā́m as governing akṣyós, and so
render it ‘blinding.’ ⌊Ppp. has for a śīrṣahatyām upahatya, and for
c kuṣṭho no viśvatas pād.

Griffith

Malady that affects the head, eye-weakness, bodily defect– All this let Kushtha heal and cure: aye, godlike is the vigorous power.

पदपाठः

शी॒र्ष॒ऽआ॒म॒यम्। उ॒प॒ऽह॒त्याम्। अ॒क्ष्योः। त॒न्वः᳡। रपः॑। कुष्ठः॑। तत्। सर्व॑म्। निः। क॒र॒त्। दैव॑म्। स॒म॒ह॒। वृष्ण्य॑म्। ४.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कुष्ठस्तक्मनाशनः
  • भृग्वङ्गिराः
  • उष्णिग्गर्भा निचृदनुष्टुप्
  • कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शीर्षामयम्) शिर के रोग, (अक्ष्योः) दोनों नेत्र के (उपहत्याम्) उपद्रव और (तन्वः) शरीर के (रपः) दोष, (तत् सर्वम्) इस सबको (कुष्ठः) गुणपरीक्षक पुरुष (निष्करत्) बाहिर करे। (समह) हे सत्कार के साथ वर्तमान राजन् ! तेरा (वृष्ण्यम्) जीव का हितकारक बल (दैवम्) दिव्यगुणवाला है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा प्रजा के स्वास्थ्यरक्षा का सदा उपाय करता रहे ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १–०−(शीर्षामयम्) बलिमलितनिभ्यः कयन्। उ० ४।९९। इति आङ्+अम रोगे−कयन्, यद्वा मीञ् हिंसायाम्−पचाद्यच्। शिरोरोगम् (उपहत्याम्) हनस्त च। पा० ३।१।१०८। इति उप+हन−क्यप्, नस्य तः। उपहानिमुपद्रवम् (अक्ष्योः) अक्ष्णोः। नेत्रयोः (तन्वः) तन्वाः। शरीरस्य (रपः) दोषम् (कुष्ठः) गुणपरीक्षकः पुरुषः (तत्) (सर्वम्) (निष्करत्) बहिष्कुर्यात् (दैवम्) दिव्यगुणविशिष्टम् (समह) मह पूजायाम्−पचाद्यच्। हे महेन सत्कारेण सह वर्तमान ! (वृष्ण्यम्) अ० ४।४।४। वृष्णे इन्द्राय जीवाय हितम्। बलम्। तव सामर्थ्यमस्ति ॥