०३९ संनति ...{Loading}...
Whitney subject
- For various blessings.
VH anukramaṇī
संनति
१-१० अङ्गिराः, ९-१० ब्रह्म च। १-२ पृथिव्यग्नी, २-४ वाय्वन्तरिक्षे, ५-६ दिवादित्यौ, ७-८ दिक्-चन्द्रमसः, ९-१० जातवेदसोऽग्निः। संनतिः। पङ्क्तिः, १,२,५,७ त्रिपदा महाबृहती, २,४,६,८ संस्तारपङ्क्तिः, ९-१० त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[An̄giras.*—daśarcam. sāṁnatyam. nānādevatyam. pān̄ktam: 1, 3, 5, 7. 3-p. mahābṛhatī; 2, 4, 6, 8. saṁstārapan̄kti; 9, 10. triṣṭubh.]
Whitney
Comment
This prose-hymn (the two concluding verses metrical) is, as already noted, wanting in Pāipp. A similar passage is found in TS. (vii. 5. 23). The hymn is used by Kāuś. in the parvan sacrifices (5. 8) with the saṁnati offerings, and vss. 9 and 10 earlier in the same ceremonies with two so-called purastāddhomas (3. 16); also the hymn again in the rites (59. 16) for satisfaction of desires. Verse 9 appears in Vāit. (8. 11) in the cāturmāsya rites, with an offering by the adhvaryu. *⌊The Anukr. gives Brahman as the ṛṣi of 9 and 10.⌋
Translations
Translated: Griffith, i. 184; Weber, xviii. 150.
Griffith
A prayer to various deities for health, wealth, and prosperity
०१ पृथिव्यामग्नये समनमन्त्स
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
पृ॑थि॒व्याम॒ग्नये॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॑ पृथि॒व्याम॒ग्नये॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पृ॑थि॒व्याम॒ग्नये॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॑ पृथि॒व्याम॒ग्नये॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
०१ पृथिव्यामग्नये समनमन्त्स ...{Loading}...
Whitney
Translation
- On the earth they paid reverence (sam-nam) to Agni; he throve
(ṛdh); as on earth they paid reverence to Agni, so let the reverencers
pay reverence to me.
Notes
The TS. version reads thus: agnáye sám anamat pṛthivyāí sám anamad
yáthā ’gníḥ pṛthivyā́ (!) samánamad evám máhyam bhadrā́ḥ sáṁnatayaḥ sáṁ
namantu. The comm. explains sám anaman by sarvāṇi bhūtāni saṁnatāni
upasannāni bhavanti, and saṁnámas by abhilaṣitaphalasya saṁnatayaḥ
samprāptayaḥ. The metrical definitions of the Anukr. for vss. 1-8 are
of no value; the odd verses vary from 34 to 37 syllables, and the even
from 38 to 40. ⌊We might have expected the epithet tryavasāna
(3-av.) to be applied to the even.⌋
Griffith
Agni no earth kath had mine homage. May he bless me. As I have bowed me down to Agni on the earth, so let the Favouring Graces bow them down to me.
पदपाठः
पृ॒थि॒व्याम्। अ॒ग्नये॑। सम्। अ॒न॒म॒न्। सः। आ॒र्ध्नो॒त्। यथा॑। पृ॒थि॒व्याम्। अ॒ग्नये॑। स॒म्ऽअन॑मन्। ए॒व। मह्य॑म्। स॒म्ऽनमः॑। सम्। न॒म॒न्तु॒। ३९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- पृथिवी
- अङ्गिराः
- त्रिपदा महाबृहती
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (अग्नये) भौतिक अग्नि के लिये वे [ऋषि लोग] (सम्) यथाविधि (अनमन्) नमे हैं, (सः) उसने [उन्हें] (आर्ध्नोत्) बढ़ाया है। (यथा) जैसे (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (अग्नये) अग्नि के लिये वे (सम् अनमन्) यथावत् नमे हैं, (एव) वैसे ही (मह्यम्) मेरे लिये (संनमः) सब सम्पत्तियाँ (सम्) यथावत (नमन्तु) नमें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे पूर्व ऋषियों ने शिल्प आदि में भौतिक अग्नि के प्रयोग से यज्ञ सिद्ध करके अनेक सम्पत्तियाँ प्राप्त की हैं, वैसे ही हम भी प्राप्त करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(पृथिव्याम्) भूलोके (अग्नये) भौतिकाग्नये (सम्) सम्यक्। यथाविधि (अनमन्) णम प्रह्वत्वे शब्दे च-लङ्। नता अभवन् ते ऋषयः (सः) अग्निः (आर्ध्नोत्) ऋधु वृद्धौ-लङ्, अन्तर्गतण्यर्थः। अवर्धयत् (यथा) येन प्रकारेण (एव) एवम् (मह्यम्) पुरुषार्थिने पुरुषाय (संनमः) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते पा० ३।२।७५। इति सम्+णम-विच्। सर्वाः सन्नतयः सम्पत्तयः (नमन्तु) प्रह्वीभवन्तु। अन्यद् गतम् ॥
०२ पृथिवी धेनुस्तस्या
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पृ॑थि॒वी धे॒नुस्तस्या॑ अ॒ग्निर्व॒त्सः।
सा मे॒ऽग्निना॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहाम्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पृ॑थि॒वी धे॒नुस्तस्या॑ अ॒ग्निर्व॒त्सः।
सा मे॒ऽग्निना॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहाम्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
०२ पृथिवी धेनुस्तस्या ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Earth [is] milch-cow; of her Agni [is] calf; let her, with Agni
as calf, milk for me food (íṣ), refreshment, [my] desire, life-time
first, progeny, prosperity, wealth: hail!
Notes
There is in TS. nothing to correspond to our vss. 2, 4, 6, 8. Our
edition combines ā́yuṣ pr-, because required by Prāt. ii. 75; but the
mss., except one of SPP’s, have ā́yuḥ pr-, which SPP. retains.
Griffith
Earth is the Cow, her calf is Agni. May she with her calf Agni yield me food, strength, all my wish, life first of all, and off- spring, plenty, wealth. All Hail!
पदपाठः
पृ॒थि॒वी। धे॒नुः। तस्याः॑। अ॒ग्निः। व॒त्सः। सा। मे॒। अ॒ग्निना॑। व॒त्सेन॑। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। काम॑म्। दु॒हा॒म्। आयुः॑। प्र॒थ॒मम्। प्र॒ऽजाम्। पोष॑म्। र॒यिम्। स्वाहा॑। ३९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- पृथिवी
- अङ्गिराः
- त्रिपदा महाबृहती
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवी) पृथिवी (धेनुः) दुधैल गौ के समान है। (तस्याः) उस [धेनु] के (वत्सः) बच्चा सदृश (अग्निः) है। (सा) वह [धेनु] (मे) मुझे (वत्सेन) बच्चे रूप (अग्निना) अग्नि के साथ (इषम्) अन्न, (ऊर्जम्) पराक्रम, (कामम्) उत्तम मनोरथ, (प्रथमम्, आयुः) प्रधान जीवन, (प्रजाम्) प्रजा (पोषम्) पोषण और (रयिम्) धन (दुहाम्) परिपूर्ण करे। (स्वाहा) यह आशीर्वाद हो ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार बछड़े द्वारा गौ से दूध लेते हैं, इसी प्रकार अग्नि विद्या द्वारा पृथिवी के पदार्थों से अनेक कला कौशल सिद्ध करके मनुष्य समृद्ध होवें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(पृथिवी) भूमिः (धेनुः) अ० ३।१०।१। दोग्ध्री गौर्यथा (तस्याः) धेन्वाः (अग्निः) भौतिकाग्निः (वत्सः) अ० ३।१२।३। गोशिशुर्यथा (सा) धेनुः (मे) मह्यम् (अग्निना) (वत्सेन) शिशुना च (इषम्) अ० ३।१०।७। अन्नम् (ऊर्जम्) अ० ३।१०।७। पराक्रमम् (कामम्) सुमनोरथम् (दुहाम्) तलोपः। दुग्धाम्। प्रपूरयतु (आयुः) जीवनम् (प्रथमम्) प्रख्यातं प्रधानम् (प्रजाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपां संततिम् (पोषम्) पोषणम् (रयिम्) धनम् (स्वाहा) आशीर्वादोऽस्तु ॥
०३ अन्तरिक्षे वायवे
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अ॒न्तरि॑क्षे वा॒यवे॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॒न्तरि॑क्षे वा॒यवे॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒न्तरि॑क्षे वा॒यवे॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॒न्तरि॑क्षे वा॒यवे॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
०३ अन्तरिक्षे वायवे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In the atmosphere they paid reverence to Vāyu; he throve; as in the
atmosphere they paid reverence to Vāyu, so let the reverencers pay
reverence to me.
Notes
TS. has a corresponding passage, in the form as given above.
Griffith
Vayu in air hath had mine homage. May he bless me. As I have bowed me down to Vayu in the air, so let the Favour- ing Graces bow them down to me.
पदपाठः
अ॒न्तरि॑क्षे। वा॒यवे॑। सम्। अ॒न॒म॒न्। सः। आ॒र्ध्नो॒त्। यथा॑। अ॒न्तरि॑क्षे। वा॒यवे॑। स॒म्ऽअन॑मन्। ए॒व। मह्म॑म्। स॒म्ऽनमः॑। सम्। न॒म॒न्तु॒। ३९.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- अङ्गिराः
- त्रिपदा महाबृहती
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अन्तरिक्षे) मध्यलोक में (वायवे) वायु को वे [ऋषि लोग] (सम्) यथाविधि (अनमन्) नमे हैं, (सः) उसने [उन्हें] (आर्ध्नोत्) बढ़ाया है। (यथा) जैसे (अन्तरिक्षे) मध्यलोक में (वायवे) वायु को (सम् अनमन्) वे यथावत् नमे हैं, (एव) वैसे ही (मह्यम्) मुझको (सन्नमः) सब सम्पत्तियाँ (सम्) यथावत् (नमन्तु) नमें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज ऋषियों के समान सब में वर्तमान वायु से उपकार लेकर आनन्द भोगें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अन्तरिक्षे) मध्यलोके (वायवे) पवनाय। अन्यत् पूर्ववत्। म० १ ॥
०४ अन्तरिक्षं धेनुस्तस्या
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अ॒न्तरि॑क्षं धे॒नुस्तस्या॑ वायुर्व॒त्सः।
सा मे॑ वा॒युना॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहाम्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒न्तरि॑क्षं धे॒नुस्तस्या॑ वायुर्व॒त्सः।
सा मे॑ वा॒युना॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहाम्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
०४ अन्तरिक्षं धेनुस्तस्या ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The atmosphere is milch-cow; of her Vāyu is calf; let her, with Vāyu
as calf, milk for me etc. etc.
Notes
The comm. has tasya ‘of it (i.e. the atmosphere),’ instead of
tasyās.
Griffith
Air is the Cow, her calf is Vayu. May she with her calf Vayu yield me food, strength, all my wish, life first of all, and off- spring, plenty, wealth. All Hail!
पदपाठः
अ॒न्तरि॑क्षम्। धे॒नुः। तस्याः॑। वा॒युः। व॒त्सः। सा। मे॒। वा॒युना॑। व॒त्सेन॑। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। काम॑म्। दु॒हा॒म्। आयुः॑। प्र॒थ॒मम्। प्र॒ऽजाम्। पोष॑म्। र॒यिम्। स्वाहा॑। ३९.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अन्तरिक्षम्
- अङ्गिरा
- त्रिपदा महाबृहती
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक (धेनुः) दुधैल गौ के समान है। (तस्याः) उस [धेनु] का (वत्सः) बच्चा रूप (वायुः) वायु है। (सा) वह [धेनु] (मे) मुझे (वत्सेन) बच्चा रूप (वायुना) वायु के साथ (इषम्) अन्न, (ऊर्जम्) पराक्रम, (कामम्) उत्तम मनोरथ, (प्रथमम् आयुः) प्रधान जीवन, (प्रजाम्) प्रजा, (पोषम्) पोषण और (रयिम्) धन (दुहाम्) परिपूर्ण करे। (स्वाहा) यह आशीर्वाद हो ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वायु से अनेक प्रकार उपकार लेकर मनुष्य सुखी हों ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४-सर्वं पूर्ववत् म० २, ३ ॥
०५ दिव्यादित्याय समनमन्त्स
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दि॒व्या॑दि॒त्याय॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॑ दि॒व्या॑दि॒त्याय॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दि॒व्या॑दि॒त्याय॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॑ दि॒व्या॑दि॒त्याय॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
०५ दिव्यादित्याय समनमन्त्स ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In the sky they paid reverence to Āditya; he throve; as in the sky
they paid reverence to Āditya, so let the reverencers pay reverence to
me.
Notes
The corresponding TS. passage has sū́rya instead of ādityá.
Griffith
The Sun in heaven hath had my homage. May he bless me. As I have bowed me down unto the Sun in heaven, so let the Favouring Graces bow them down to me.
पदपाठः
दि॒वि। आ॒दि॒त्याय॑। सम्। अ॒न॒म॒न्। सः। आ॒र्ध्नो॒त्। यथा॑। दि॒वि। आ॒दि॒त्याय॑। स॒म्ऽअन॑मन्। ए॒व। मह्य॑म्। स॒म्ऽनमः॑। सम्। न॒म॒न्तु॒। ३९.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यौः
- अङ्गिराः
- त्रिपदा महाबृहती
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दिवि) आकाश में वर्तमान (आदित्याय) सूर्य को वे [ऋषि लोग] (सम्) यथाविधि (अनमन्) नमे हैं, (सः) उसने [उन्हें] (आर्ध्नोत्) बढ़ाया है। (यथा) जैसे (दिवि) आकाश में वर्तमान (आदित्याय) सूर्य को (सम्-अनमन्) वे यथावत् नमे हैं, (एव) वैसे ही (मह्यम्) मुझ को (सन्नमः) सब सम्पत्तियाँ (सम्) यथावत् (नमन्तु) नमें ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - पहिले ऋषि महात्माओं के समान सूर्य के प्रकाश आदि से उपकार लेकर आनन्द प्राप्त करें ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(दिवि) आकाशे वर्तमानाय (आदित्याय) अ० १।९।१। प्रकाशमानाय सूर्याय। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
०६ द्यौर्धेनुस्तस्या आदित्यो
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द्यौर्धे॒नुस्तस्या॑ आदि॒त्यो व॒त्सः।
सा म॑ आदि॒त्येन॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहाम्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द्यौर्धे॒नुस्तस्या॑ आदि॒त्यो व॒त्सः।
सा म॑ आदि॒त्येन॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहाम्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
०६ द्यौर्धेनुस्तस्या आदित्यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The sky is milch-cow; of her Āditya is calf; let her, with Āditya as
calf, milk for me etc. etc.
Notes
⌊in the edition, sá is misprinted for sā́.⌋
Griffith
Heaven is the Cow, her calf Aditya. May she yield with her calf the Sun food, strength, and all my wish, life first of all, and offspring, plenty, wealth. All Hail!
पदपाठः
द्यौः। धे॒नुः। तस्याः॑। आ॒दि॒त्यः। व॒त्सः। सा। मे॒। आ॒दि॒त्येन॑। व॒त्सेन॑। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। काम॑म्। दु॒हा॒म्। आयुः॑। प्र॒थ॒मम्। प्र॒ऽजाम्। पोष॑म्। र॒यिम्। स्वाहा॑। ३९.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आदित्यः
- अङ्गिराः
- त्रिपदा महाबृहती
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (द्यौः) सूर्यलोक (धेनुः) दुधैल गौ के समान है, (तस्याः) उस [धेनु] का (वत्सः) बच्चा रूप (आदित्यः) सूर्य है। (सा) वह [धेनु] (मे) मुझे (वत्सेन) बच्चा रूप (आदित्येन) सूर्य के साथ (इषम्) अन्न (ऊर्जम्) पराक्रम, (कामम्) उत्तम मनोरथ, (प्रथमम् आयुः) प्रधान जीवन, (प्रजाम्) प्रजा, (पोषम्) पोषण, और (रयिम्) धन (दुहाम्) परिपूर्ण करे, (स्वाहा) यह आशीर्वाद हो ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सूर्यलोक और सूर्य का पृथिवी से संबन्ध जानकर अनेक लाभ उठाकर सुखी होवें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६-सर्वं पूर्ववत्-म० २, ५ ॥
०७ दिक्षु चन्द्राय
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दि॒क्षु च॒न्द्राय॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॑ दि॒क्षु च॒न्द्राय॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दि॒क्षु च॒न्द्राय॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्।
यथा॑ दि॒क्षु च॒न्द्राय॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
०७ दिक्षु चन्द्राय ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In the quarters they paid reverence to the moon (candrá); it
throve; as in the quarters they paid reverence to the moon, so let the
reverencers pay reverence to me.
Notes
In TS., the asterisms (nákṣatra) are here connected with the moon; and
there follow similar passages respecting Varuṇa with the waters, and
several other divinities.
Griffith
To Chandra in the quarters have I bowed me. May he bless me. As unto Chandra in the quarters I have bent, so let the Favour- ing Graces bow them down to me.
पदपाठः
दि॒क्षु। च॒न्द्राय॑। सम्। अ॒न॒म॒न्। सः। आ॒र्ध्नो॒त्। यथा॑। दि॒क्षु। च॒न्द्राय॑। स॒म्ऽअन॑मन्। ए॒व। मह्य॑म्। स॒म्ऽनमः॑। सम्। न॒म॒न्तु॒। ३९.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- दिशः
- अङ्गिराः
- त्रिपदा महाबृहती
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दिक्षु) सब दिशाओं में (चन्द्राय) चन्द्रमा को वे [ऋषि लोग] (सम्) यथाविधि (अनमन्) नमे हैं। (सः) उसने [उन्हें] (आर्ध्नोत्) बढ़ाया है। (यथा) जैसे (दिक्षु) सब दिशाओं में (चन्द्राय) चन्द्रमा को (सम्-अनमन्) वे यथावत् नमे हैं, (एव) वैसे ही (मह्यम्) मुझ को (सन्नमः) सब सम्पत्तियाँ (सम्) यथावत् (नमन्तु) नमें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य चन्द्रमा के पुष्टिकारक गुणों से उपकार लेकर आनन्दित हों ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(दिक्षु) प्राच्यादिषु (चन्द्राय) आह्लादकाय चन्द्रमसे। अन्यत् पूर्ववत्। म० १ ॥
०८ दिशो धेनवस्तासाम्
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दिशो॑ धे॒नव॒स्तासां॑ च॒न्द्रो व॒त्सः।
ता मे॑ च॒न्द्रेण॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहा॒म्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
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मूलम् (VS)
दिशो॑ धे॒नव॒स्तासां॑ च॒न्द्रो व॒त्सः।
ता मे॑ च॒न्द्रेण॑ व॒त्सेनेष॒मूर्जं॒ कामं॑ दुहा॒म्।
आयुः॑ प्रथ॒मं प्र॒जां पोषं॑ र॒यिं स्वाहा॑ ॥
०८ दिशो धेनवस्तासाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The quarters are milch-cows; of them the moon is calf; let them, with
the moon as calf, milk for me etc. etc.
Notes
Both editions read duhām in this verse, as in vss. 2, 4, 6, following
the authority of nearly all the mss.; only our H.D. have the true
reading, duhrām, which ought to have been adopted in our text.
Griffith
The quarters are the Cows, their calf is Chandra. May they yield with their calf the Moon food, strength and all my wish, life first of all, and offspring, plenty, wealth. All Hail!
पदपाठः
दिशः॑। धे॒नवः॑। तासा॑म्। च॒न्द्रः। व॒त्सः। ताः। मे॒। च॒न्द्रेण॑। व॒त्सेन॑। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। काम॑म्। दु॒हा॒म्। आयुः॑। प्र॒थ॒मम्। प्र॒ऽजाम्। पोष॑म्। र॒यिम्। स्वाहा॑। ३९.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः
- अङ्गिराः
- संस्तारपङ्क्तिः
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दिशः) सब दिशाएँ (धेनवः) दुधैल गौओं के समान हैं। (तासाम्) उन [गौ रूपों] का (वत्सः) बच्चा रूप (चन्द्रः) चन्द्रमा है। (ताः) वे [गौ रूप] (मे) मुझे (वत्सेन) बच्चा रूप (चन्द्रेण) चन्द्रमा के साथ (इषम्) अन्न, (ऊर्जम्) पराक्रम, (कामम्) उत्तम मनोरथ (प्रथमम् आयुः) प्रधान जीवन, (प्रजाम्) प्रजा, (पोषम्) पोषण और (रयिम्) धन (दुहाम्=दुहताम्) परिपूर्ण करें। (स्वाहा) यह आशीर्वाद हो ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य चन्द्रमा के गुणों का पृथिवी के साथ सम्बन्ध जानकर अन्न आदि पदार्थों को पुष्ट करके आनन्द भोगें ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(दुहाम्) दुहताम् प्रपूरयन्तु। अन्यत् पूर्ववत्। म २, ७ ॥
०९ अग्नावग्निश्चरति प्रविष्ट
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अ॒ग्नाव॒ग्निश्च॑रति॒ प्रवि॑ष्ट॒ ऋषी॑णां पु॒त्रो अ॑भिशस्ति॒पा उ॑।
न॑मस्का॒रेण॒ नम॑सा ते जुहोमि॒ मा दे॒वानां॑ मिथु॒या क॑र्म भा॒गम् ॥
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मूलम् (VS)
अ॒ग्नाव॒ग्निश्च॑रति॒ प्रवि॑ष्ट॒ ऋषी॑णां पु॒त्रो अ॑भिशस्ति॒पा उ॑।
न॑मस्का॒रेण॒ नम॑सा ते जुहोमि॒ मा दे॒वानां॑ मिथु॒या क॑र्म भा॒गम् ॥
०९ अग्नावग्निश्चरति प्रविष्ट ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Agni moves (car), entered into the fire, son of the seers,
protector against imprecation; with homage-paying, with homage, I make
offering to thee; let us not make falsely the share of the gods.
Notes
That is (a), ‘Agni is continually to be found in the fire.’ Three of
SPP’s authorities read mánasā in c, thus ridding the verse of an
objectionable repetition; but both editions give námasā, which the
comm. also has. In d our edition has karmabhāgám, following the
*pada-*mss. (which read karma॰bhāgám); but SPP. has correctly, with
his mss. and the comm. (= mā kārṣma), karma bhāgám. More or less of
the verse is found in several other texts: thus, in VS. (v. 4) only a,
b, ending b with abhiśastipā́vā; in MS. (i. 2. 7), with adhirājá
eṣáḥ at end of b, a wholly different c, and, for d, mā́
devā́nāṁ yūyupāma bhāgadhéyam; in MB. (ii. 2. 12), only a, b, with
b ending as in MS.; in TS. (i. 3. 7²) the whole verse, b ending
like MS., c beginning with svāhākṛ́tya bráhmaṇā, and d ending
with mithuyā́ kar bhāgadhéyam; in TB. (ii. 7. 15¹), the whole,
beginning with vyāghrò ‘yám agnāú car-, and ending b with -pā́
ayám, its c and d agreeing throughout with ours; in AśS. (viii.
14. 4), the whole, but ending b* like MS. and TS., and having for
c, d tasmāi juhomi haviṣā ghṛtena mā devānām momuhad bhāgadheyam;
⌊in Ppp., the whole verse, just as in AśS., except that a ends with
praviṣṭā and that d has yūyavad for momuhad and (unless māṁ
is a slip of Roth’s pen) māṁ for mā⌋. ⌊See Bloomfield’s discussion
of mithuyā́ kṛ, ZDMG. xlviii. 556.⌋ The meter (10 + 11: 12 + 11 = 44)
is irregular, but the Anukr. takes no notice of it. *⌊The Calcutta ed.
has avirāja eṣaḥ, misprint for adhi-.⌋
Griffith
Agni moves having entered into Agni, the Rishis’ son, who guards from imprecations, I offer unto thee with reverent worship. Let me not mar the Gods’ appointed service.
पदपाठः
अ॒ग्नौ। अ॒ग्निः। च॒र॒ति॒। प्रऽवि॑ष्टः। ऋषी॑णाम्। पु॒त्रः। अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपाः। ऊं॒ इति॑। न॒मः॒ऽका॒रेण॑। नम॑सा। ते॒। जु॒हो॒मि॒। मा। दे॒वाना॑म्। मि॒थु॒या। क॒र्म॒। भा॒गम्। ३९.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मा
- अङ्गिराः
- त्रिष्टुप्
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋषीणाम्) धर्म साक्षात् करनेवाले मुनियों वा विषय देखनेवाली इन्द्रियों का (पुत्रः) शुद्ध करनेवाला, (अभिशस्तिपाः) हिंसा के भय से बचानेवाला (अग्निः) सर्वव्यापक परमेश्वर (उ) निश्चय करके (अग्नौ) सूर्य, अग्नि आदि तेज में (प्रविष्ट) प्रवेश किये हुए (चरति) चलता है। (ते) [उस] तुझको (नमस्कारेण) नमस्कार और (नमसा) आदर के साथ (जुहोमि) मैं आत्मदान करता हूँ। (देवानाम्) महात्माओं के (भागम्) ऐश्वर्य वा सेवनीय कर्म को (मिथुया=मिथुना) दुष्टता से (मा कर्म) हम नष्ट न करें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य परब्रह्म जगदीश्वर को पूर्ण भक्ति से सर्वत्र व्यापक जानकर महात्माओं के समान शुभ कर्म करके सदा ऐश्वर्यवान् होवें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(अग्नौ) सूर्यादितेजसि (अग्निः) सर्वव्यापकः परमेश्वरः (चरति) व्याप्नोति (प्रविष्टः) अन्तर्गतः (ऋषीणाम्) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्मणां मुनीनाम्, विषयद्रष्टॄणामिन्द्रियाणां वा (पुत्रः) अ० १।११।५। पुनातीति पुत्रः। पविता शोधकः (अभिशस्तिपाः) अ० २।१३।३। हिंसाभयाद्ररक्षकः (उ) निश्चयेन (नमस्कारेण) सत्कारेण (नमसा) नमनेन, आदरेण (ते) तथाविधाय तुभ्यम् (जुहोमि) आत्मदानं करोमि (देवानाम्) महात्मनां (मिथुया) अ० ४।२९।७। मिथुना हिंसनेन दुष्कर्मणा (मा कर्म) कृञ् हिंसायाम्-माङि लुङि। मन्त्रे घसह्वर०। पा० २।४।८०। इति च्लेर्लुक्। मा कार्ष्म मा हिंसिष्म (भागम्) भग-अण्। ऐश्वर्याणां समूहम्। यद्वा, भज-घञ्। भजनीयं कर्म ॥
१० हृदा पूतम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
हृ॒दा पू॒तं मन॑सा जातवेदो॒ विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्।
स॒प्तास्या॑नि॒ तव॑ जातवेद॒स्तेभ्यो॑ जुहोमि॒ स जु॑षस्व ह॒व्यम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
हृ॒दा पू॒तं मन॑सा जातवेदो॒ विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्।
स॒प्तास्या॑नि॒ तव॑ जातवेद॒स्तेभ्यो॑ जुहोमि॒ स जु॑षस्व ह॒व्यम् ॥
१० हृदा पूतम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Purified with the heart, with the mind, O Jātavedas—knowing all the
ways (vayúna), O god; seven mouths are thine, O Jātavedas; to them I
make offering—do thou enjoy the oblation.
Notes
Pūtám in a can only qualify havyám in d: compare RV. iv. 58.
6 b, antár hṛdā́ mánasā pūyámānāḥ. The pada-text makes one of its
frequent blunders by resolving in c saptā́syāni into saptá:
ā́syāni instead of into saptá: āsyàni, the designation of the accent
in saṁhitā being the same in both cases, according to its usual
method. SPP. accepts the blunder, reading ā́syāni.
It is impossible to see why these two concluding verses should have been
added to the hymn.
Griffith
Skilled in all ways, O God, O Jatavedas, I offer what is cleansed by heart and spirit. To all thy seven mouths, O Jatavedas. Do thou accept with pleasure my libation.
पदपाठः
हृ॒दा। पू॒तम्। मन॑सा। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। विश्वा॑नि। दे॒व॒। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। स॒प्त। आ॒स्या᳡नि। तव॑। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। तेभ्यः॑। जु॒हो॒मि॒। सः। जु॒ष॒स्व॒। ह॒व्यम्। ३९.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- जातवेदाः
- अङ्गिराः
- त्रिष्टुप्
- सन्नति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (जातवेदः) हे ज्ञानवान् ! (देव) हे प्रकाशवान् परमेश्वर ! तू (विश्वानि) सब (वयुनानि) ज्ञानों को (विद्वान्) जाननेवाला है। (जातवेदः) हे बड़े धनवाले ! [मेरी] (सप्त) सात (आस्यानि) [मस्तक की] गोलकें (तव) तेरी [तेरे तत्पर हों]। (तेभ्यः) उनके हित के लिये (हृदा) हृदय और (मनसा) मन से (पूतम्) शोधे हुए कर्म को (जुहोमि) समर्पण करता हूँ। (सः) सो तू [मेरे] (हव्यम्) आवाहन को (जुषस्व) स्वीकार कर ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य अपनी सब इन्द्रियों को उस सर्वशक्तिमान् की आज्ञा में लगा कर सदा आनन्द भोगें। मस्तक की सात इन्द्रियों के जीतने में ही सब प्राणी आनन्द पाते हैं, जैसा (कः सप्त खानि वि ततर्द शीर्षणि…..) अ० १०।२।६। में वर्णन है ॥ (सप्त आस्यानि) पद की व्याख्या में (सप्त ऋषयः) पद अ० ४।११।९। में देखो ॥१०॥ इस मन्त्र का दूसरा पाद (विश्वानि देव…. विद्वान्) य० ४०।१६। में है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(हृदा) हृदयेन (पूतम्) शोधितं कर्म (मनसा) अन्तःकरणेन (जातवेदः) अ० १।७।२। हे जातप्रज्ञान परमेश्वर (विश्वानि) सर्वाणि (देव) हे प्रकाशमान (वयुनानि) अ० २।२८।२। ज्ञानानि (विद्वान्) जानन् सन् वर्त्तसे (सप्त) सप्तसंख्याकानि (आस्यानि) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति असु क्षेपणे, यद्वा आस उपवेशने-ण्यत्। अस्यन्ते क्षिप्यन्ते, यद्वा, आसते तिष्ठन्ति विषया यत्र तानि। शीर्षण्यानि खानि इन्द्रियाणि मम प्राणिनः (तव) तव परमेश्वरस्य, तत्पराणि भवन्तु-इत्यर्थः (जातवेदः) हे जातधन (तेभ्यः) तादर्थ्ये चतुर्थी। तेषामास्यानां हिताय (जुहोमि) समर्पयामि (सः) स त्वम् (जुषस्व) सेवस्व। स्वीकुरु (हव्यम्) ह्वेञ्-यत्। आह्वानम् ॥