०३३ पाप-नाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- To Agni: for release from evil.
VH anukramaṇī
पाप-नाशनम्
१-८ ब्रह्म। पाप्मनाशनोऽग्निः। गायत्री।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—aṣṭarcam. pāpmanyam; āgneyam, gāyatram.]
Whitney
Comment
Found in Pāipp. iv. Is RV. i. 97, without a variant except in the last verse; occurs also in TA. (vi. 11. 1). Reckoned by Kāuś. (9. 2) to the bṛhachānti gaṇa, and also (30. 17, note) to the pāpma gaṇa; used, under the name of apāgha, in a ceremony of expiation for seeing ill-omened sights (42. 22), in a women’s ceremony for preventing undesirable love and the like (36. 22), and in the after funeral ceremonies (82. 4).
Translations
Translated: by the RV. translators; and Griffith, i. 175; Weber, xviii. 134.—Cf. also Lanman, Skt. Reader, p. 363.
Griffith
A prayer to Agni for protection and prosperity
०१ अप नः
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अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घमग्ने॑ शुशु॒ग्ध्या र॒यिम्।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घमग्ने॑ शुशु॒ग्ध्या र॒यिम्।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०१ अप नः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Gleaming (śuc) away our evil (aghá), O Agni, gleam thou wealth
unto [us]: gleaming away our evil.
Notes
This first verse is found a second time in TA. (vi. 10. i). The refrain
is a mechanical repetition of 1 a, having no connection of meaning
with any of the verses. The comm. explains ápa śóśucat by naśyatu,
and ā́ śuśugdhi by samṛddhaṁ kuru. ⌊TA. reads śuśudhyā́ in both
places in both editions.⌋
Griffith
Chasing our pain with splendid light, O Agni, shine thou wealth on us. His lustre flash our pain away.
पदपाठः
अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। अग्ने॑। शु॒शु॒ग्धि। आ। र॒यिम्। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे। (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (रयिम्) धनको (आ) अच्छे प्रकार (शुशुग्धि) सींच। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की महिमा विचारते हुए दुष्कर्म के त्याग और सुकर्म के ग्रहण से विद्यारूप और सुवर्ण आदि रूप धन प्राप्त करें ॥१॥ यह सूक्त कुछ भेद से ऋग्वेद में है−म० १ सू० ९७ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(अप) दूरीभूय (नः) अस्माकम् (शोशुचत्) शुचिर् शौचे क्लेदे च, यङ्लुगन्ताल् लेटि अडागमः। अत्यन्तं शुच्यात् विनश्येदित्यर्थः (अघम्) पापम् (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् (शुशुग्धि) शुचिर् क्लेदे-लोट्। अन्तर्गतण्यर्थः। श्यनः श्लुः। हुझल्भ्यो हेर्धिः। पा० ६।४।१०१। इति धिः। चोः कुः। पा० ८।२।३०। इति कुत्वम्। क्लेदय। सिञ्च (आ) समन्तात् (रयिम्) धनम्। अन्यद् गतम्। आदरार्थं पुनः प्रयोगः ॥
०२ सुक्षेत्रिया सुगातुया
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सु॑क्षेत्रि॒या सु॑गातु॒या व॑सू॒या च॑ यजामहे।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सु॑क्षेत्रि॒या सु॑गातु॒या व॑सू॒या च॑ यजामहे।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०२ सुक्षेत्रिया सुगातुया ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With desire of pleasant fields, of welfare, of good things, we
sacrifice—gleaming away our evil—
Notes
Griffith
For goodly fields, for pleasant homes, for wealth we sacrifice to thee. His lustre flash our pain away!
पदपाठः
सु॒ऽक्षे॒त्रि॒या। सु॒ऽगा॒तु॒या। व॒सु॒ऽया। च॒। य॒जा॒म॒हे॒। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सुक्षेत्रिया) उत्तम खेत के लिये, (सुगातुया) उत्तम भूमि के लिये (च) और (वसुया) धनके लिये (यजामहे) हम [परमेश्वर को] पूजते हैं। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की महिमा जानकर अनिष्टों को मिटाकर पुरुषार्थ से अपनी प्रभुता बढ़ावें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(सुक्षेत्रिया) इयाडियाजीकाराणामुपसंख्यानम्। वा० पा० ७।१।३९। इति ङेर्डियाजादेशः। चित्त्वादन्तोदात्तः शोभनाय क्षेत्राय (सुगातुया)। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति ङेर्याच्। गातुः−पृथिवीनाम-निघ० १।१। शोभनभूमिप्राप्तये (वसुया) पूर्वसूत्रेण ङेर्याच्। वसुने धनाय (च) समुच्चये (यजामहे) परमेश्वरं पूजयामः। अन्यत्पूर्ववत् ॥
०३ प्र यद्भन्दिष्ठ
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प्र यद्भन्दि॑ष्ठ एषां॒ प्रास्माका॑सश्च सू॒रयः॑।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र यद्भन्दि॑ष्ठ एषां॒ प्रास्माका॑सश्च सू॒रयः॑।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०३ प्र यद्भन्दिष्ठ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In order that the most excellent of them, and in order that our
patrons (sūrí)—gleaming away our evil—
Notes
Griffith
Best praiser of all these be he, and foremost be our noble chiefs. His lustre flash our pain away!
पदपाठः
प्र। यत्। भन्दि॑ष्ठः। ए॒षा॒म्। प्र। अ॒स्माका॑सः। च॒। सू॒रयः॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जिस प्रकार से (एषाम्) इन प्राणियों के मध्य (भन्दिष्ठः) अत्यन्त सुखी होकर (प्र) प्रकृष्ट [होजाऊँ] (च) और (अस्माकासः) हमारे (सूरयः) विद्वान् लोग (प्र) प्रकृष्ट [होवें] [उसी प्रकार से] (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य शुभ कर्मों में प्रवृत्त होकर दरिद्रता आदि दुःखों को मिटावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(प्र) प्रकर्षेण भवानि (यत्) यथा (भन्दिष्ठः) भदि कल्याणे सुखे स्तुतौ च-तृच्, इष्ठन्। तुरिष्ठेमेयःसु। पा० ६।४।१५४। इति तृ लोपः। भन्दना भन्दतेः स्तुतिकर्मणः-निरु० ५।२। स्तोतृतमः सुखितमः (एषाम्) मनुष्यादिप्राणिनां मध्ये (प्र) प्रकर्षेण भवन्तु (अस्माकासः) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इति अस्मद्-अण्। तस्मिन्नणि च युष्माकास्माकौ। पा० ४।३।२। इति अस्माकादेशः। अणि वृद्ध्यभावश्छान्दसः। असुगागमश्च। आस्माकः। अस्मदीयाः (च) (सूरयः) अ० २।११।४। विद्वांसः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०४ प्र यत्ते
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प्र यत्ते॑ अग्ने सू॒रयो॒ जाये॑महि॒ प्र ते॑ व॒यम्।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र यत्ते॑ अग्ने सू॒रयो॒ जाये॑महि॒ प्र ते॑ व॒यम्।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०४ प्र यत्ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In order that thy patrons, O Agni; in order [namely] that we may be
propagated for thee with progeny—gleaming away our evil—
Notes
Griffith
So that thy worshipper and we, thine, Agni! in our sons may live. His lustre flash our pain away!
पदपाठः
प्र। यत्। ते॒। अ॒ग्ने॒। सू॒रयः॑। जाये॑महि। प्र। ते॒। व॒यम्। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे परमात्मन् (सूरयः) विद्वान् लोग (यत् ते) जिस तेरे (प्र=प्रजायन्ते) प्रजा हैं, (ते) उस तेरे ही (वयम्) हम लोग (प्र जायेमहि) प्रजा होवें। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य विद्वानों के समान परमेश्वर के गुण कर्म स्वभाव जानकर सदा सुखी रहें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(प्र) इत्यस्य, जायेमहि, इति क्रियया सह सम्बन्धः। प्रजायन्ते प्रजाः सन्ति (यत्) यस्य (ते) तव (अग्ने) परमात्मन् (सूरयः) विद्वांसः (प्र जायेमहि) प्रजा भवेम (ते) तस्य तव (वयम्) उपासकाः। अन्यद्गतम् ॥
०५ प्र यदग्नेः
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प्र यद॒ग्नेः सह॑स्वतो वि॒श्वतो॒ यन्ति॑ भा॒नवः॑।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र यद॒ग्नेः सह॑स्वतो वि॒श्वतो॒ यन्ति॑ भा॒नवः॑।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०५ प्र यदग्नेः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As of the powerful Agni the lusters (bhānú) go forth in every
direction—gleaming away our evil.
Notes
These four verses are (rejecting the intrusive refrain) one connected
sentence: the prá’s in vss. 3 and 4 repeat by anticipation the
jā́yemahi prá of vs. 4 b; “we” are, in fact, Agni’s sūri’s, since
we depute him to sacrifice for us, just as our sūri’s procure us, the
priests; and our progeny is to increase and spread like the brightness
of the fire. TA. spoils the connection by putting vs. 5 before vs. 4;
and the sense, by reading sūráyas for bhānávas in 5 b. Ppp. has
jāyemahe in 4 b. One of our pada-mss. (Op.) agrees with the RV.
pada-text in dividing sugātu॰yā́ in 2 a (the rest read
su॰gātuyā́).
Griffith
As ever conquering Agni’s beams of splendour go to every side, His lustre flash our pain away.
पदपाठः
प्र। यत्। अ॒ग्नेः। सह॑स्वतः। वि॒श्वतः॑। यन्ति॑। भा॒नवः॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जिस कारण से (सहस्वतः) बलवान् (अग्नेः) परमात्मा के (भानवः) अनेक प्रकाश (विश्वतः) सब ओर (प्र) भली भाँति (यन्ति) चलते रहते हैं। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की अनेक सूक्ष्म और स्थूल रचनाओं को देखकर अपने विघ्नों को मिटावें ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(प्र) प्रकर्षेण (यत्) यस्मात् (अग्नेः) परमात्मनः (सहस्वतः) बलवतः (विश्वतः) सर्वतः (यन्ति) गच्छन्ति (भानवः) प्रकाशाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०६ त्वं हि
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त्वं हि वि॑श्वतोमुख वि॒श्वतः॑ परि॒भूर॑सि।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्वं हि वि॑श्वतोमुख वि॒श्वतः॑ परि॒भूर॑सि।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०६ त्वं हि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- For, O thou that facest in every direction, thou art [our]
encompasser on all sides: gleaming away our evil.
Notes
Griffith
To every side thy face is turned, thou art triumphant everywhere. His lustre flash our pain away!
पदपाठः
त्वम्। हि। वि॒श्व॒तः॒ऽमु॒ख॒। वि॒श्वतः॑। प॒रि॒ऽभूः। असि॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (हि) जिस कारण से (विश्वतोमुख) हे सब ओर मुखवाले [मुख के समान सर्वोपदेशक, सर्वोत्तम] परमेश्वर ! (त्वम्) तू (विश्वतः) सब ओर से (परिभूः) व्यापक (असि) है। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर के समान (विश्वतोमुख) होकर सदा चैतन्य रहें और अनिष्टों को मिटा कर अपनी वृद्धि करें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(त्वम्) (हि) (विश्वतोमुख) हे मुखवत् सर्वोपदेशक, सर्वोत्तम, परमात्मन् (विश्वतः) सर्वतः (परिभूः) अ० ३।२१।४। ग्रहीता व्यापकः (असि) अन्यत् पूर्ववत् ॥
०७ द्विषो नो
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द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०७ द्विषो नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Our haters, O thou that facest in every direction, do thou make us
pass over as with a boat: gleaming away our evil.
Notes
Griffith
O thou whose face looks every way, bear off our foes as in a ship. His lustre flash our pain away!
पदपाठः
द्विषः॑। नः॒। वि॒श्व॒तः॒ऽमु॒ख॒। अति॑। ना॒वाऽइ॑व। पा॒र॒य॒। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वतोमुख) हे सब ओर मुखवाले [मुख के समान, सर्वोपदेशक सर्वोत्तम] परमेश्वर ! (द्विषः) द्वेषियों को (अति=अतीत्य) लाँघ कर (नः) हमें (पारय) पार लगा, (नावा इव) जैसे नाव से [समुद्र को पार करते हैं]। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे पोत द्वारा समुद्र पार करते हैं, वैसे ही मनुष्य परमेश्वर के आश्रय से सब दोषों को हटा कर सुखी रहें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(द्विषः) द्वेष्टॄन् शत्रून् (नः) अस्मान् (विश्वतोमुख) म० ६। (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (नावा इव) यथा नौकया (पारय) पारं गमय। अन्यत्पूर्ववत् ॥
०८ स नः
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स नः॒ सिन्धु॑मिव ना॒वाति॑ पर्षा स्व॒स्तये॑।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स नः॒ सिन्धु॑मिव ना॒वाति॑ पर्षा स्व॒स्तये॑।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
०८ स नः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Do thou pass us over unto well-being, as [over] a river with a
boat: gleaming away our evil.
Notes
Ppp. agrees with RV. ⌊and TA.⌋ in reading nāváyā (which implies
síndhum ’va) instead of nāvā́ at end of a; and our O. has the
same.
Griffith
As in a ship across the flood, transport us to felicity. His lustre flash our pain away
पदपाठः
सः। नः॒। सिन्धु॑म्ऽइव। ना॒वा। अति॑। प॒र्ष॒। स्व॒स्तये॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। ३३.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) सो तू (नः) हमें (स्वस्तये) आनन्द के लिये (पर्ष) पार लगा, (इव) जैसे (नावा) नाव से (सिन्धुम्) समुद्र को (अति=अतीत्य) लाँघ कर [पार करते] हैं। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर में निष्ठा करके पुरुषार्थपूर्वक दुःखसागर से पार होकर सुखी होवें, जैसे नाव के आश्रय से जलयात्री समुद्र पार करके प्रसन्न होते हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(सः) स त्वम् (नः) अस्मान् (सिन्धुम् इव) यथा समुद्रं तथा (नावा) नौकया (अति) अतीत्य (पर्ष) पॄ पालनपूर्णयोः, लेटि अडागमः। सिब् बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति−सिप्। पारं प्रापय। (स्वस्तये) आनन्दाय। अन्यत् पूर्ववत ॥