०३२ सेनासंयोजनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Praise and prayer to fury (manyú).
VH anukramaṇī
सेनासंयोजनम्।
१-७ ब्रह्म स्कन्दः। मन्युः। त्रिष्टुप्, १ जगती।
Whitney anukramaṇī
[Brahmāskanda.—manyudāivatam. trāiṣṭubham: 1. jagatī.]
Whitney
Comment
This hymn ⌊which is RV. x. 83⌋ goes in all respects with hymn 31, which see.
Translations
Translated: by the RV. translators; and Griffith, i. 174; Weber, xviii. 129.
Griffith
A hymn to Manyu
०१ यस्ते मन्योऽविधद्वज्र
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यस्ते॑ म॒न्योऽवि॑धद्वज्र सायक॒ सह॒ ओजः॑ पुष्यति॒ विश्व॑मानु॒षक्।
सा॒ह्याम॒ दास॒मार्यं॒ त्वया॑ यु॒जा व॒यं सह॑स्कृतेन॒ सह॑सा॒ सह॑स्वता ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्ते॑ म॒न्योऽवि॑धद्वज्र सायक॒ सह॒ ओजः॑ पुष्यति॒ विश्व॑मानु॒षक्।
सा॒ह्याम॒ दास॒मार्यं॒ त्वया॑ यु॒जा व॒यं सह॑स्कृतेन॒ सह॑सा॒ सह॑स्वता ॥
०१ यस्ते मन्योऽविधद्वज्र ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He who hath worshiped thee, O fury, missile thunderbolt, gains
(puṣ) power, force, everything, in succession; may we, with thee as
ally, that art made of power, overpower the barbarian, the Aryan, with
powerful power.
Notes
Ppp. has sadyo for manyo in a, and sahīyasā at the end. All
the mss. accent púṣyati in b, and SPP. very properly so reads; our
text was altered to conform with RV., which in general is distinctly
less apt to give accent to a verb in such a position ⌊Skt. Gram. §597
a⌋. RV. also omits the redundant and meter-disturbing (the Anukr. takes
no notice of this) vayám in c. Several of our mss. (P.M.W.E.) give
vidadhat instead of ‘vidhat in a. Sāhyā́ma (p. sahyā́ma) is
expressly prescribed by Prāt. iii. 15, iv. 88; the comm. appears to read
sahy-. The comm. renders ānuṣak by anuṣaktaṁ saṁtatam. ⌊For vajra
sāyaka, see note to iv. 31. 6; and for púṣyati, note to iv. 13. 2.⌋
Griffith
He who hath reverenced thee, Manyu, destructive bolt! breeds. for himself forthwith all conquering energy. Arya and Dasa will we conquer with thine aid, with thee the conqueror, with conquest conquest-sped.
पदपाठः
यः। ते॒। म॒न्यो॒ इति॑। अवि॑धत्। व॒ज्र॒। सा॒य॒क॒। सहः॑। ओजः॑। पु॒ष्य॒ति॒। विश्व॑म्। आ॒नु॒षक्। स॒ह्याम्॑। दास॑म्। आर्य॑म्। त्वया॑। यु॒जा। व॒यम्। सहः॑ऽकृतेन। सह॑सा। सह॑स्वता। ३२.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्युः
- ब्रह्मास्कन्दः
- जगती
- सेनासंयोजन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय पाने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वज्र) हे वज्ररूप (सायक) हे शत्रुनाशक (मन्यो) दीप्तिमान् क्रोध ! (यः) जिस पुरुष ने (ते) तेरी (अविधत्) सेवा की है, वह (विश्वम्) सब (सहः) शरीरबल और (ओजः) समाजबल (आनुषक्) लगातार (पुष्यति) पुष्ट करता है। (सहस्कृतेन) बल से उत्पन्न हुए, (सहस्वता) बलवान्, (त्वया युजा) तुझ सहायक के साथ (सहसा) बल से (वयम्) हम लोग (दासम्) दास, काम बिगाड़ देनेवाले मूर्ख और (आर्यम्) आर्य अर्थात् विद्वान् का (सह्याम) निर्णय करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य बुद्धिपूर्वक क्रोध का आराधन करते हैं, वे भीतरी और बाहिरी बल बढ़ा कर मूर्खों का निरादर और विद्वानों का आदर करके कीर्त्ति पाते हैं ॥१॥ यह सूक्त कुछ भेद से ऋग्वेद में है। म० १०। सू० ८३। वहाँ सूक्त के ऋषि मन्यु तापस और देवता मन्यु हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(यः) पुरुषः (ते) तव (मन्यो) अ० ४।३१।१। हे दीप्तिमन् क्रोध ! (अविधत्) विध विधाने-लङ्। विधेम परिचरणकर्मा-निघ० ३।५। परिचरणं शुश्रूषणं कृतवान् (वज्र) हे व्यापनशील वज्ररूप (सायक) हे शत्रुनाशक (सहः) शारीरिकं बलम् (ओजः) सामाजिकं बलम् (पुष्यति) वर्धयति (विश्वम्) सर्वम् (आनुषक्) अनुपूर्वात् षञ्ज सङ्गे-क्विप्। अनिदिताम्। पा० ६।४।२४। इति नलोपः। अनोरकारस्य दीर्घश्छान्दसः। अनुषगिति नामानुपूर्वस्यानुषक्तं भवति। निरु० ६।१४। अनुषक्तमुपर्युपरि लग्नम्। निरन्तरम् (सह्याम्) वेर्लोपः। वि+षह निर्णये। विषह्याम निर्णयाम (दासम्) उदसिरे उत्क्षेपे-घञ्। दासो दस्यतेः, उपदासयति कर्माणि-निरु० २।१७। उत्क्षपयितारम्। दस्युं चोरम् (आर्थम्) अ० ४।२०।४। श्रेष्ठम्। विद्वांसम्। (त्वया) मन्युना (युजा) सहायेन (वयम्) पुरुषार्थिनः पुरुषाः (सहस्कृतेन) सहसा बलेनोत्पादितेन (सहसा) बलेन (सहस्वता) बलवता ॥
०२ मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
म॒न्युरिन्द्रो॑ म॒न्युरे॒वास॑ दे॒वो म॒न्युर्होता॒ वरु॑णो जा॒तवे॑दाः।
म॒न्युर्विश॑ ईडते॒ मानु॑षी॒र्याः पा॒हि नो॑ मन्यो॒ तप॑सा स॒जोषाः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
म॒न्युरिन्द्रो॑ म॒न्युरे॒वास॑ दे॒वो म॒न्युर्होता॒ वरु॑णो जा॒तवे॑दाः।
म॒न्युर्विश॑ ईडते॒ मानु॑षी॒र्याः पा॒हि नो॑ मन्यो॒ तप॑सा स॒जोषाः॑ ॥
०२ मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Fury [was] Indra, fury indeed was a god; fury [was] priest
(hótar), Varuṇa, Jātavedas; the clans (víś) which are descended from
Manu (mā́nuṣa) praise fury; protect us, O fury, in accord with fervor
(tápas).
Notes
The translation assumes in c the reading manyúm (instead of
-yús), which is given by RV., the comm. (with one of SPP’s mss.), and
TB. (ii. 4. 1¹¹) and MS. (iv. 12. 3); the nomin. here appears to be a
plain corruption, though Ppp. also has it. TB. gives in a bhágas
for índras, and devayántīs for mā́nuṣīr yā́ḥ in c, and śrámeṇa
for sajóṣās at the end; MS. has ávā for pāhí at beginning of
d; both have viśvávedās at end of b. Ppp. reads yaṣ for
yāḥ before pāhi.
Griffith
Manyu was Indra, yea, the God was Manyu; Manyu was Hotar Varuna, Jatavedas. The tribes of human lineage worship Manyu. Accordant, with thy fervour, Manyu! guard us.
पदपाठः
म॒न्युः। इन्द्रः॑। म॒न्युः। ए॒व। आ॒स॒। दे॒वः। म॒न्युः। होता॑। वरु॑णः। जा॒तऽवे॑दाः। म॒न्युम्। विशः॑। ई॒ड॒ते॒। मानु॑षीः। याः। पा॒हि। नः॒। म॒न्यो॒ इति॑। तप॑सा। स॒ऽजोषाः॑। ३२.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्युः
- ब्रह्मास्कन्दः
- त्रिष्टुप्
- सेनासंयोजन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय पाने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मन्युः) प्रकाशमान क्रोध (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, (मन्युः) क्रोध (एव) ही (देवः) दिव्यगुणवाला, (मन्युः) क्रोध (होता) दाता वा ग्रहीता, (वरुणः) वरणीय अङ्गीकारयोग्य, और (जातवेदाः) धन प्राप्त करानेवाला (आस) हुआ है। (मन्युः=मन्युम्) क्रोध को (याः) उद्योग करनेवाली (मानुषीः=०-ष्यः) मनुष्यजातीय (विशः) प्रजाएँ (ईडते) सराहती हैं। (मन्यो) हे क्रोध (तपसा) ऐश्वर्य से (सजोषाः) प्रीति करता हुआ तू (नः) हमें (पाहि) बचा ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यथावत् प्रयुक्त क्रोध के गुण पहिले से विदित हैं, नीतिज्ञ पुरुष विधिपूर्वक क्रोध से ऐश्वर्य बढ़ा कर रक्षा करते हैं ॥२॥ (मन्युर्विशः) के स्थान में सायणभाष्य और ऋग्वेद में [मन्युं विशः] पद हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(मन्युः) दीप्यमानः क्रोधः (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (एव) निश्चयेन (आस) अस्तेर्लिटि छान्दसो भूभावाभावः। बभूव (देवः) दिव्यगुणयुक्तः। प्रकाशमानः (होता) दाता ग्रहीता वा (वरुणः) श्रेष्ठः। (जातवेदाः) अ० १।७।२। जातधनः (मन्युः) सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। इति द्वितीयार्थे प्रथमा। मन्युं क्रोधम् (विशः) प्रजाः (ईडते) स्तुवन्ति (मानुषीः) मनोर्जातावञ्यतौ षुक्च। पा० ४।१।१६१। इति मनु-अञ् षुक् च टिड्ढाण०। पा० ४।१।१५। इति-ङीप् यद्वा। जनेरुसिः। उ० २।११५। इति मनु अवबोधने-उसि ! मनुष्-अण्, ङीप्। मानुष्यः। मनुष्यजातीयाः (याः) या गतौ-ड, टाप्। उद्योगशीलाः (पाहि) रक्ष (नः) अस्मान् (मन्यो) हे क्रोध (तपसा) तप संतापैश्वर्ययोः-असुन्। प्रतापेन। ऐश्वर्येण (सजोषाः) जुषी-असुन्। समानप्रीतिः ॥
०३ अभीहि मन्यो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒भीहि॑ मन्यो त॒वस॒स्तवी॑या॒न्तप॑सा यु॒जा वि ज॑हि॒ शत्रू॑न्।
अ॑मित्र॒हा वृ॑त्र॒हा द॑स्यु॒हा च॒ विश्वा॒ वसू॒न्या भ॑रा॒ त्वं नः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒भीहि॑ मन्यो त॒वस॒स्तवी॑या॒न्तप॑सा यु॒जा वि ज॑हि॒ शत्रू॑न्।
अ॑मित्र॒हा वृ॑त्र॒हा द॑स्यु॒हा च॒ विश्वा॒ वसू॒न्या भ॑रा॒ त्वं नः॑ ॥
०३ अभीहि मन्यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Attack, O fury, being mightier than a mighty one; with fervor as ally
smite apart the foes; slayer of enemies, slayer of Vṛtra, and slayer of
barbarians, do thou bring to us all [their] good things.
Notes
Ppp. rectifies the meter of b (the Anukr. does not notice its
deficiency) by inserting iha before śátrūn.
⌊See above, p. lxxiv.⌋
Griffith
Come hither, Manyu, mightier than the mighty: smite, with thy fervour, for ally, our foemen. Slayer of foes, of Vritra, and of Dasyu, bring thou to us all kinds of wealth and treasure.
पदपाठः
अ॒भि। इ॒हि॒। म॒न्यो॒ इति॑। त॒वसः॑। तवी॑यान्। तप॑सा। यु॒जा। वि। ज॒हि॒। शत्रू॑न्। अ॒मि॒त्र॒ऽहा। वृ॒त्र॒ऽहा। द॒स्यु॒ऽहा। च॒। विश्वा॑। वसू॑नि। आ। भ॒र॒। त्वम्। नः॒। ३२.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्युः
- ब्रह्मास्कन्दः
- त्रिष्टुप्
- सेनासंयोजन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय पाने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मन्यो) हे प्रकाशमान क्रोध (तवसः) महान् से भी (तवीयान्) अति महान् तू (अभीहि) इधर आ, (तपसा युजा) अपने ऐश्वर्य, मित्र के साथ (शत्रून्) शत्रुओं को (विजहि) मिटा दे। (च) और (अमित्रहा) पीड़ा देनेवालों का मारनेवाला, (वृत्रहा) अन्धकार नाश करनेवाला, (दस्युहा) डाकुओं का मारनेवाला (त्वम्) तू (विश्वा) सब (वसूनि) धनों को (नः) हमारे लिये (आ) सब ओर से (भर) भर दे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - पुरुषार्थी मनुष्य नीतिपूर्वक क्रोध से धन प्राप्त करके आनन्द भोगते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अभीहि) अभिमुखं गच्छ (मन्यो) हे क्रोध (तवसः) तु सौत्रो धातुर्गतिवृद्धिहिंसासु-असुन्। तवसे इति महतोनामधेयम्-निरु० ५।९। तवः, इति बलनाम-निघ० २।९। महतः प्रवृद्धादपि (तवीयान्) तोतृ-ईयसुन् तृलोपः। प्रवृद्धतरः (तपसा) सामर्थ्येन (युजा) सहायेन (वि जहि) विनाशय (शत्रून्) अरीन् (अमित्रहा) अ० १।१९।२। पीडकनाशकः (वृत्रहा) शत्रुहन्ता (दस्युहा) चोरादीनां घातकः (च) (विश्वा) सर्वाणि (वसूनि) धनानि (आ) समन्तात् (भर) धारय (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् ॥
०४ त्वं हि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्वं हि म॑न्यो अ॒भिभू॑त्योजाः स्वयं॒भूर्भामो॑ अभिमातिषा॒हः।
वि॒श्वच॑र्षणिः॒ सहु॑रिः॒ सही॑यान॒स्मास्वोजः॒ पृत॑नासु धेहि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्वं हि म॑न्यो अ॒भिभू॑त्योजाः स्वयं॒भूर्भामो॑ अभिमातिषा॒हः।
वि॒श्वच॑र्षणिः॒ सहु॑रिः॒ सही॑यान॒स्मास्वोजः॒ पृत॑नासु धेहि ॥
०४ त्वं हि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Since thou, O fury, art of overcoming force, self-existent, terrible,
overpowering hostile plotters, belonging to all men (-carṣaṇí),
powerful, very powerful—do thou put in us force in fights.
Notes
RV. has sáhāvān for sáhīyān in c. MS. (iv. 12. 3) gives
svayaṁjás in b, and sáhāvān in c; and for d it has sá
hūyámāno amṛ́tāya gachat.
Griffith
For thou art, Manyu, of surpassing vigour, fierce, queller of the foe, and self-existent, Shared by all men, victorious, subduer: vouchsafe to us superior strength in battles.
पदपाठः
त्वम्। हि। म॒न्यो इति॑। अ॒भिभू॑तिऽओजाः। स्व॒य॒म्ऽभूः। भामः॑। अ॒भि॒मा॒ति॒ऽस॒हः। वि॒श्वऽच॑र्षणि। सहु॑रिः। सही॑यान्। अ॒स्मासु॑। ओजः॑। पृत॑नासु। धे॒हि॒। ३२.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्युः
- ब्रह्मास्कन्दः
- त्रिष्टुप्
- सेनासंयोजन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय पाने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मन्यो) हे क्रोध (त्वं हि) तू ही (अभिभूत्योजाः) शत्रु पराजय का सामर्थ्यवाला, (स्वयंभूः) अपने आप उत्पन्न होनेवाला, (भामः) प्रकाशमान और (अभिमातिषाहः) अभिमानियों का हरानेवाला है। (विश्वचर्षणिः) सब देखनेवाला, (सहुरिः) शक्तिमान्, (सहीयान्) अधिक बलवान् तू (पृतनासु) संग्रामों के बीच (अस्मासु) हम में (ओजः) पराक्रम (धेहि) धारण कर ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य नीतिकुशल और कर्मकुशल होकर दुष्टों पर क्रोध करते हैं, वे ही संग्रामों में विजयी होते हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(त्वम्) (हि) (मन्यो) हे दीप्यमान क्रोध (अभिभूत्योजाः) अभिभूतये शत्रुपराजयाय ओजो बलं यस्य स तथाभूतः (स्वयंभूः) स्वयमेव आत्मन्युत्पद्यमानः (भामः) अर्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। इति भा दीप्तौ-मन्। प्रदीप्यमानः (अभिमातिषाहः) षह शक्तौ अभिभवे च-पचाद्यच्। छान्दसो दीर्घः। अभिमातीनामभिमानिनां पराजेता (विश्वचर्षणिः) विश्वचर्षणिः-पश्यतिकर्मा-निघ० ३।११। विश्वस्य सर्वस्य द्रष्टा (सहुरिः) सू० ३१।१। शक्तिमान् (सहीयान्) सोढृतरः। बलवत्तरः (अस्मासु) (ओजः) पराक्रमम् (पृतनासु) संग्रामेषु (धेहि) धारय ॥
०५ अभागः सन्नप
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑भा॒गः सन्नप॒ परे॑तो अस्मि॒ तव॒ क्रत्वा॑ तवि॒षस्य॑ प्रचेतः।
तं त्वा॑ मन्यो अक्र॒तुर्जि॑हीडा॒हं स्वा त॒नूर्ब॑ल॒दावा॑ न॒ एहि॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑भा॒गः सन्नप॒ परे॑तो अस्मि॒ तव॒ क्रत्वा॑ तवि॒षस्य॑ प्रचेतः।
तं त्वा॑ मन्यो अक्र॒तुर्जि॑हीडा॒हं स्वा त॒नूर्ब॑ल॒दावा॑ न॒ एहि॑ ॥
०५ अभागः सन्नप ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Being portionless, I am gone far away, by the action (? krátu) of
thee that art mighty, O forethoughtful one; so at thee, O fury, I,
actionless, was wrathful; come to us, thine own self (tanū́), giving
strength.
Notes
RV. has at the end baladéyāya mé ’hi (p. mā: ā́: ihi). In c it
reads jihīḍā ’hám, and both the editions follow it (Ppp. and the comm.
have the same), although the AV. saṁhitā reading is unquestionably
jī́hīḍ-; the saṁhitā mss. have this almost without exception (all
ours save O.), the pada-mss. put after the word their sign which shows
a difference between pada and saṁhitā reading, and jīh- is twice
distinctly prescribed by the Prāt. (iii. 14; iv. 87). The comm.
understands the obscure first pāda of going away from battle; akratu
he paraphrases by tvattoṣakarakarmavarjita.
Griffith
I have departed still without a portion, wise God! according to thy will, the mighty. I, feeble man, was wroth with thee, O Manyu. Come in thy proper form and give us vigour.
पदपाठः
अ॒भा॒गः। सन्। अप॑। परा॑ऽइतः। अ॒स्मि॒। तव॑। क्रत्वा॑। त॒वि॒षस्य॑। प्र॒ऽचे॒तः॒। तम्। त्वा॒। म॒न्यो॒ इति॑। अ॒क्र॒तुः। जि॒ही॒ड॒। अ॒हम्। स्वा। त॒नूः। ब॒ल॒ऽदा॑वा। नः॒। आ। इ॒हि॒। ३२.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्युः
- ब्रह्मास्कन्दः
- त्रिष्टुप्
- सेनासंयोजन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय पाने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रचेतः) हे उत्तमज्ञानवाले ! मैं (अभागः सन्) अभागा होकर (तव तविषस्य) तुझ बलवान् के (क्रत्वा) कर्म वा बुद्धि से (अप=अपेत्य) हटकर (परेतः) दूर पड़ा हुआ (अस्मि) हूँ। (मन्यो) हे क्रोध (अक्रतुः) बुद्धिहीन वा कर्महीन (अहम्) मैंने (तम् त्वा) उस तुझको (जिहीड) क्रुद्ध कर दिया है, (बलदावा) बलदाता तू (स्वा तनूः) अपने स्वरूप से (नः) हमको (आ इहि) प्राप्त हो ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - अनीतिज्ञ पुरुष यथावत् क्रोध न करके दरिद्र और बुद्धिहीन हो जाते हैं, इससे मनुष्यों को यथावत् वर्तना चाहिये ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(अभागः) भगानामैश्वर्याणां समूहः-इति भग-अण्। ऐश्वर्यसमूहरहितः। सर्वथा निर्धनः (सन्) वर्तमानः सन् (अप) अपेत्य (परेतः) परागतः (अस्मि) वर्ते (तव) (क्रत्वा) अ० ४।३१।६। कर्मणा प्रज्ञया वा (तविषस्य) अ० ४।१५।२। महतः पूजनीयस्य (प्रचेतः) हे प्रकृष्टज्ञान (तम्) (त्वा) त्वाम् (अक्रतुः) अप्रज्ञः, बुद्धिहीनः कर्महीनो वा (जिहीड) हेडृ अनादरे क्रोधे च। लिटि छान्दसं रूपम्। हेडते, क्रुध्यतिकर्मा-निघ० २।१२। जिहीडे क्रुद्धं कृतवानस्मि (स्वा) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेः सुः। स्वया आत्मीयया (तनूः) उक्तसूत्रेण विभक्तेः सुः। तन्वा। स्वरूपेण (बलदावा) आतो मनिन्क्वनि०। पा० ३।२।७४। इति बल+डुदाञ् दाने-वनिप्। बलस्य दाता (नः) अस्मान् (आ इहि) आगच्छ ॥
०६ अयं ते
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒यं ते॑ अ॒स्म्युप॑ न॒ एह्य॒र्वाङ्प्र॑तीची॒नः स॑हुरे विश्वदावन्।
मन्यो॑ वज्रिन्न॒भि न॒ आ व॑वृत्स्व॒ हना॑व॒ दस्यूं॑रु॒त बो॑ध्या॒पेः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒यं ते॑ अ॒स्म्युप॑ न॒ एह्य॒र्वाङ्प्र॑तीची॒नः स॑हुरे विश्वदावन्।
मन्यो॑ वज्रिन्न॒भि न॒ आ व॑वृत्स्व॒ हना॑व॒ दस्यूं॑रु॒त बो॑ध्या॒पेः ॥
०६ अयं ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Here I am for thee; come hitherward unto us, meeting (pratīcīná)
[us], O powerful, all-giving one; O thunderbolt-bearing fury, turn
hither to us; let us (two) slay the barbarians; and do thou know thy
partner (āpí).
Notes
RV. keeps better consistency by reading mā for nas in a, and
mā́m for nas in c; at the end of b it has viśvadhāyas. In
a Ppp. has mā, like RV.; in c it reads upa nas, combining to
na ”vav-. The comm. supplies śatrūn as object of pratīcīnas, and
paraphrases the end of the verse with api ca bandhubhūtam mām
budhyasva.
Griffith
Come hither, I am all thine own: advancing, turn thou to me, victorious, all-bestowing. Come to me, Manyu, wielder of the thunder: bethink thee of thy friend, and slay the Dasyus.
पदपाठः
अ॒यम्। ते॒। अ॒स्मि॒। उप॑। नः॒। आ। इ॒हि॒। अ॒र्वाङ्। प्र॒ती॒ची॒नः। स॒हु॒रे॒। वि॒श्व॒ऽदा॒व॒न्। मन्यो॒ इति॑। व॒ज्रि॒न्। अ॒भि। नः॒। आ। व॒वृ॒त्स्व॒। हना॑व। दस्यू॑न्। उ॒त। बो॒धि॒। आ॒पेः। ३२.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्युः
- ब्रह्मास्कन्दः
- त्रिष्टुप्
- सेनासंयोजन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय पाने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह मैं (ते) तेरा (अस्मि) हूँ। (सहुरे) हे समर्थ ! (विश्वदावन्) हे सर्वदाता ! (प्रतीचीनः) प्रत्यक्ष चलता हुआ तू (नः) हमारे (अर्वाङ्) सन्मुख होकर (उप एहि) समीप आ (वज्रिन्) हे वज्रधारी (मन्यो) क्रोध ! (नः अभि) हमारी ओर (आ ववृत्स्व) वर्तमान होजा, (उत) और (आपेः) अपने बन्धु का (बोधि) बोधकर, [जिससे हम दोनों] (दस्यून्) दुष्टों को (हनाव) मारें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सब प्रकार विचार करके दुष्टों पर क्रोध करते हैं, वे विजयी होते हैं ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(अयम्) पुरुषार्थी (ते) तव (अस्मि) (उप) समीपे (नः) अस्माकम् (आ इहि) आगच्छ (अर्वाङ्) अभिमुखः (प्रतीचीनः) विभाषाञ्चेरदिक् स्त्रियाम्। पा० ५।४।८। इति प्रत्यच्-स्वार्थे ख। अल्लोपो दीर्घश्च। प्रत्यञ्चन्। प्रत्यक्षं गच्छन् (सहुरे) हे शक्तिमन् (विश्वदावन्) विश्व+डुदाञ्-वनिप्। हे सर्वस्य दातः। (मन्यो) हे क्रोध (वज्रिन्) हे वज्रोपेत (अभि) अभिलक्ष्य (नः) अस्मान् (आ) समन्तात् (ववृत्स्व) छान्दसः शपः श्लुः। वर्तस्व (हनाव) आवां हिनसाव (दस्यून्) उपक्षपयितॄन् दुष्टान् (उत) अपि च (बोधि) बुध अवगमने लोटि छान्दसं रूपम्। बुध्यस्व। बोधं कुरु (आपेः) इणजादिभ्यः। वा० पा० ३।३।१०८। इति आप्लृ व्याप्तौ-इण्। बन्धोः ॥
०७ अभि प्रेहि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒भि प्रेहि॑ दक्षिण॒तो भ॑वा॒ नोऽधा॑ वृ॒त्राणि॑ जङ्घनाव॒ भूरि॑।
जु॒होमि॑ ते ध॒रुणं॒ मध्वो॒ अग्र॑मु॒भावु॑पां॒शु प्र॑थ॒मा पि॑बाव ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒भि प्रेहि॑ दक्षिण॒तो भ॑वा॒ नोऽधा॑ वृ॒त्राणि॑ जङ्घनाव॒ भूरि॑।
जु॒होमि॑ ते ध॒रुणं॒ मध्वो॒ अग्र॑मु॒भावु॑पां॒शु प्र॑थ॒मा पि॑बाव ॥
०७ अभि प्रेहि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Go thou forth against [them]; be on our right hand; then will we
(two) smite and slay many Vṛtras; I offer to thee the sustaining top of
the sweet (mádhu); let us both drink first the initial draught (?
upāṅśú).
Notes
Ppp. has at the end pibeva. RV. has me instead of nas at end of
a, and combines ubhā́ up- in d. The comm. begins b with
atha. Compare also RV. viii. 100 (89). 2, of which the present verse
seems a variation; its a, dádhāmi te mádhuno bhakṣám ágre, is much
more intelligible than our corresponding c. ⌊In b, is not
vṛtrā́ṇi (neuter!) rather ‘adversaries,’ as in v. 6. 4?—In his prior
draft, W. renders, “let us both drink first in silence (?).” “Initial
draught” seems to overlook the gender of upāṅśú.⌋
Griffith
Approach, and on our right hand hold thy station, then let us slay a multitude of foemen. The best of meath I offer to support thee: may we be first to drink thereof in quiet.
पदपाठः
अ॒भि। प्र। इ॒हि॒। द॒क्षि॒ण॒तः। भ॒व॒। नः॒। अध॑। वृ॒त्राणि॑। ज॒ङ्घ॒ना॒व॒। भूरि॑। जु॒होमि॑। ते॒। ध॒रुण॑म्। मध्वः॑। अग्र॑म्। उ॒भौ। उ॒प॒ऽअं॒शु। प्र॒थ॒मा। पि॒बा॒व॒। ३२.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्युः
- ब्रह्मास्कन्दः
- त्रिष्टुप्
- सेनासंयोजन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय पाने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अभि प्र इहि) आगे आ, और (नः) हमारी (दक्षिणतः) दहिनी ओर (भव) वर्त्तमान हो, (अध) तव (भूरि) बहुत से (वृत्राणि) अन्धकारों को (जङ्घनाव) हम दोनों मिटा देवें। (मध्वः) मधुर रस का (अग्रम्) श्रेष्ठ (धरुणम्) धारण करने योग्य [स्तुतिरूप] रस (ते) तुझे (जुहोमि) भेंट करता हूँ। (प्रथमा=०-मौ) पहिले वर्तमान (उभौ) हम दोनों (उपांशु) एकान्त में (पिबाव) [रसपान] करें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - महात्मा पुरुष आत्मदोषों पर क्रोध करके अनेक अन्धकारों को मिटाते हैं और वे ही इस मन्युस्तुति को एकान्त में सूक्ष्मरूप से विचारकर अधिक आनन्द भोगते हैं ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(अभि) (प्र) (इहि) गच्छ (दक्षिणतः) दक्षिणोत्तराभ्यामतसुच्। पा० ५।३।२८। इति अतसुच्। दक्षिणभागे परमसहायकत्वेन (भव) (नः) अस्माकम् (अध) अथ। अनन्तरम् (वृत्राणि) तमांसि (जङ्घनाव) हन्तेर्यङ्लुगन्ताल् लोटि। आडुत्तमस्य पिच्च। पा० ३।४।५२। इति आडागामः। आवामतिशयेन हनाव (भूरि) भूरीणि बहूनि (जुहोमि) ददामि (ते) तुभ्यम् (धरुणम्) अ० ३।१२।३। धर्तव्यम्। स्तुतिरूपं रसम् (मध्वः) मधोः। मधुररसस्य (अग्रम्) श्रेष्ठं सारभूतम् (उभौ) अहं च मन्युश्च (उपांशु) निर्जने देशे (प्रथमा) प्रथमौ। शत्रुभ्यः पूर्वभाविनौ सन्तौ (पिबाव) आवां पानं करवाव ॥