०१९ अपामार्गः

०१९ अपामार्गः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Against enemies: with a plant.
VH anukramaṇī

अपामार्गः।
१-८ शुक्रः। अपामार्गो वनस्पतिः। अनुष्टुप्, २ पथ्यापङ्क्तिः।

Whitney anukramaṇī

[śukra.—(etc.: see hymn 17). 2. pathyāpan̄kti.]

Whitney

Comment

Found also, in connection with the two next preceding hymns, in Pāipp. v. Used by Kāuś. only in company with hymns 17 and 18, as described under h. 17. ⌊But vs. 2 is reckoned to the abhaya gaṇa, employed as battle-charms; see Kāuś. 16. 8, note.⌋

Translations

Translated: Grill, 34, 132; Griffith, i. 157; Bloomfield, 71, 397; Weber, xviii. 81.

Griffith

A counter-charm and charm to secure general protection.

०१ उतो अस्यबन्धुकृदुतो

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उ॒तो अ॒स्यब॑न्धुकृदु॒तो अ॑सि॒ नु जा॑मि॒कृत्।
उ॒तो कृ॑त्या॒कृतः॑ प्र॒जां न॒डमि॒वा च्छि॑न्धि॒ वार्षि॑कम् ॥

०१ उतो अस्यबन्धुकृदुतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both art thou not relative-making, and now art thou kin-making; also
    do thou cut off (? ā-chid) the progeny of the witchcraft-maker, like a
    reed of the rainy season (vā́rṣika).
Notes

Or, perhaps, ‘a last year’s reed’ (but comm., varṣāsu bhavam). The
first half-verse is very obscure, and the translation follows the text
as closely as possible (Ppp. differs only by beginning ute ’vā ’sy),
understanding a-bandhukṛt, and not abandhukṛt (which would be
accented on -kṛ́t); possibly the sense is “thou makest common cause
with some and not with others.” The comm. takes -kṛt both times from
kṛt ‘cut’ (which is not impossible): = kartaka or chedaka; and he
cites RV. iv. 4. 5 “slaughter thou our foes, the related and the
unrelated.” Naḍám he explains as etatsaṁjñaṁ succhedaṁ tṛṇaviśeṣam.
The Anukr. seems to sanction abbreviation to ’va in d.

Griffith

Thou breakest ties of kith and kin, thou causest, too, relation- ship: So bruise the sorcerer’s offspring, like a reed that groweth in the Rains.

पदपाठः

उ॒तो इति॑। अ॒सि॒। अब॑न्धुऽकृत्। उ॒तो इति॑। अ॒सि॒। नु। जा॒मि॒ऽकृत्। उ॒तो इति॑। कृ॒त्या॒ऽकृतः॑। प्र॒ऽजाम्। न॒डम्ऽइ॑व। आ। छि॒न्धि॒। वार्षि॑कम्। १९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन्] तू (अबन्धुकृत्) अबन्धुओंका काटनेवाला (उतो) भी (असि) है, (नु) और (जामिकृत्) बन्धुओं का बनानेवाला (उतो) भी (असि) है। (उतो) इससे (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवालों और (प्रजाम्) उनके सेवकों को (आ छिन्धि) काट डाल, (इव) जैसे (वार्षिकम्) वर्षा में उत्पन्न (नडम्) नरकट घास को ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा अपने उत्तम शासन से हिंसक दुष्टों का नाश करके इष्ट मित्रों में मेल बढ़ावे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(उतो) अपि च (असि) (अबन्धुकृत्) कृती छेदने-क्विप्। अबन्धूनां शत्रूणां कर्तकश्छेदकः (नु) अनुनये (जामिकृत्) जामि इति व्याख्यातम्-अ० २।७।२। जामिः, बन्धुः-यथा सायणः-ऋ० १।७५।३। करोतेः क्विप्। बन्धूनां कर्ता सम्पादकः (कृत्याकृतः) हिंसाकर्तॄन् (प्रजाम्) तेषां जनान् भृत्यादीन् च (नडम्) नल बन्धे=पचाद्यच्। लस्य डत्वम्। सुच्छेद्यं तृणविशेषम् (इव) यथा (आ समन्तात् (छिन्धि) भिन्धि। विदारय (वार्षिकम्) छन्दसि ठञ्। पा० ४।३।१९। इति वर्षा-ठञ्। वर्षाकालोद्भवम् ॥

०२ ब्राह्मणेन पर्युक्तासि

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ब्रा॑ह्म॒णेन॒ पर्यु॑क्तासि॒ कण्वे॑न नार्ष॒देन॑।
सेने॑वैषि॒ त्विषी॑मती॒ न तत्र॑ भ॒यम॑स्ति॒ यत्र॑ प्रा॒प्नोष्यो॑षधे ॥

०२ ब्राह्मणेन पर्युक्तासि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou art bespoken (?) by a Brāhman, by Kaṇva son of Nṛshad; thou
    goest like a brilliant army (?); there is no fear (bhayá) there where
    thou arrivest (pra-āp), O herb.
Notes

Ppp. has in a pariyukto ‘si, and this is very probably the true
form of the word here used; the difficulty is that neither yuj nor
vac is anywhere else found used with pari; prayukta ⌊’employed’⌋
is what we should expect. We have “Kaṇva’s plant” mentioned at vi. 52.
3. The imperfect meter of b (which the Anukr. fails to notice, as it
does also the like deficiency in d) gives a degree of plausibility
to Grill’s suggestion that the pāda is intruded on an original
anuṣṭubh. The pada-mss. waver between nārsadéna and nārṣ- (our
Bp. emends to s; Op. is altered obscurely; D.K. have s), but s
is certainly the true reading, as required by Prāt. iv. 83; SPP. has
wrongly chosen for his pada-text. The comm., with a couple of
SPP’s authorities that follow him, reads tvíṣīmate in c (our
P.M.W.E. have tvíṣimatī.) The mss., without any statable reason,
accent ásti in d, and our edition follows them; SPP. strangely
gives ásti in saṁhitā-, but asti in pada-text. ⌊Are not
páryuktā and pariyuktā alike awkward phonetic renderings of
prá-yuktā? Cf. Ppp. śaśire (= śaśṛ-é), iv. 18. 6; and dadhire (=
dadhre, Roth, ZDMG. xlviii. 116).⌋

Griffith

Thou hast been blessed with blessing by the Brahman, Kanva Narshada. Thou fliest like a flashing dart: there is no fear or danger, Plant! within the limit of thy range.

पदपाठः

ब्रा॒ह्म॒णेन॑। परि॑ऽउक्ता। अ॒सि॒। कण्वे॑न। ना॒र्ष॒देन॑। सेना॑ऽइव। ए॒षि॒। त्विषि॑ऽमती। न। तत्र॑। भ॒यम्। अ॒स्ति॒। यत्र॑। प्र॒ऽआ॒प्नोषि॑। ओ॒ष॒धे॒। १९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] तू (ब्राह्मणेन) वेदज्ञानी ब्राह्मण, (कण्वेन) मेधावी, (नार्षदेन) नायकों की सभा के हितकारी पुरुष करके (पर्युक्ता) उपदिष्ट [ओषधसमान] (असि) है। (त्विषीमती) प्रकाशयुक्त (सेना) सेना, अर्थात् सूर्य की किरणपुञ्ज के (इव) समान (एषि) तू चलता है। (तत्र) वहाँ पर (भयम्) भय (न अस्ति) नहीं होता, (यत्र) जहाँ पर (ओषधे) हे ओषधितुल्य तापनाशक राजन् (व्याप्नोषि) तू व्यापक होता है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सद्वैद्य की बतलाई ओषधि बड़ी गुणकारी होती है और जैसे सूर्य अपनी किरणों से अन्धकार मिटाता है, वैसे ही राजा वेदज्ञानी, बुद्धिमान् नरशिरोमणि पुरुषों के उपदेशक और सत्सङ्ग से प्रतापी होकर शत्रुओंका नाश करके प्रजा को सुख देता है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(ब्राह्मणेन) वेदज्ञेन विदुषा (पर्युक्ता) उपदिष्टौषधिवत् (असि) (कण्वेन) अ० २।३२।३। उपदेशकेन। मेधाविना-निघ० ३।१५। (नार्षदेन) नरो नायकाः सीदन्ति यत्रेति नृषत्। तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति नृषद् अण्। नृणां नायकानां सभाया हितकारकेण (सेनाइव) यथा सेना सूर्यकिरण-समूहः (एषि) गच्छसि (त्विषीमती) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। इति त्विष दीप्तौ-इन् स च कित् ङीप्। दीप्तियुक्ता (न) (तत्र) (भयम्) भीतिः दरः (अस्ति) (यत्र) (प्राप्नोषि) व्याप्नोषि (ओषधे) हे ओषधिवत् तापनाशक राजन् ॥

०३ अग्रमेष्योषधीनां ज्योतिषेवाभिदीपयन्

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अग्र॑मे॒ष्योष॑धीनां॒ ज्योति॑षेवाभिदी॒पय॑न्।
उ॒त त्रा॒तासि॒ पाक॒स्याथो॑ ह॒न्तासि॑ र॒क्षसः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Thou goest to the head (ágra) of the herbs, causing to shine
    (dīp) upon [us] as it were with light; also rescuer art thou of the
    simple (pā́ka), likewise slayer art thou of the demoniac.
Notes

Ppp. puts pākasya before trātā in c; the comm. paraphrases it
with paktavyaprajñasya ⌊‘one whose wisdom (prajñā) is yet to be
matured’⌋ durbalasya.

Griffith

Illumining, as ’twere, with light, thou movest at the head of plants. The saviour of the simple man art thou, and slayer of the fiends.

पदपाठः

अग्र॑म्। ए॒षि॒। ओष॑धीनाम्। ज्योति॑षाऽइव। अ॒भि॒ऽदी॒पय॑न्। उ॒त। त्रा॒ता। अ॒सि॒। पाक॑स्य। अथो॒ इति॑। ह॒न्ता। अ॒सि॒। र॒क्षसः॑। १९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (ज्योतिषा इव) अपने तेज से जैसे (अभिदीपयन्) सब ओर प्रकाश फैलाता हुआ (ओषधीनाम्) ओषधितुल्य उपकारी पुरुषों में (अग्रम्) आगे-आगे (एषि) तू चलता है। (उत) और तू (पाकस्य) पक्का [दृढ़] करने योग्य अथवा रक्षायोग्य दुर्बल पुरुष का (त्राता) रक्षक (असि) है (अथो) और भी तू (रक्षसः) राक्षस का (हन्ता) हनन करनेवाला (असि) है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रतापी राजा सब उपकारी पुरुषों में अग्रगामी होकर यथावत् शासन करता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(अग्रम्) अग्रतः (एषि) गच्छसि (ओषधीनाम्) ओषधिसमानहितकारकाणां मध्ये (ज्योतिषा) तेजसा स्वप्रतापेन (अभि दीपयन्) अभितः सर्वतः प्रकाशयन् (उत) अपि च (त्राता) रक्षिता (असि) (पाकस्य) पच पाके-घञ्। व्यक्तव्यस्य दृढीकरणीयस्य। यद्वा, इण्भीकापा०। उ० ३।४३। इति पा रक्षणे-कन्। रक्षणीयस्य दुर्बलस्य पुरुषस्य (अथो) अपि च (हन्ता) नाशयिता (रक्षसः) राक्षस्य ॥

०४ यददो देवा

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यद॒दो दे॒वा असु॑रां॒स्त्वयाग्रे॑ नि॒रकु॑र्वत।
तत॒स्त्वमध्यो॑षधेऽपामा॒र्गो अ॑जायथाः ॥

०४ यददो देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When yonder, in the beginning, the gods by thee removed (nis-kṛ)
    the Asuras, from thence, O herb, wast thou born, an off-wiper.
Notes

Ppp. has in b the older form akṛṇvata, and for c reads tasmād
dhi tvam oṣadhe ap-
. The comm. takes adhi in c as meaning upari
vartamānaḥ
or śreṣṭhaḥ san.

Griffith

As once when time began the Gods with thee expelled the Asuras, Even thence, O Plant, wast thou produced as one who wipes and sweeps away.

पदपाठः

यत्। अ॒दः। दे॒वाः। असु॑रान्। त्वया॑। अग्रे॑। निः॒ऽअकु॑र्वत। ततः॑। त्वम्। अधि॑। ओ॒ष॒धे॒। अ॒पा॒मा॒र्गः। अ॒जा॒य॒थाः॒। १९.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अदः) वह (यत्) जो (अग्रे) पूर्वकाल में (त्वया) तेरे साथ होकर (देवाः) देवताओं [विद्वान् शूरों] ने (असुरान्) असुरों को (निरकुर्वत) निकाल दिया है, (ततः) उसीसे (ओषधे) हे ओषधिसमान तापनाशक राजन् ! (त्वम्) तू (अपामार्गः) संशोधक (अधि) अधिक करके (अजायथाः) प्रकट हुआ है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रशंसनीय काम करने से ही संसार में प्रशंसा पाते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यत्) यस्मात् (अदः) तत् (देवाः) विद्वांसः शूराः (असुरान्) सुरविरोधिनो दुष्टान् (त्वया) राज्ञा (अग्रे) पूर्वकाले (निरकुर्वत) निराकृतवन्तः। निवारितवन्तः (ततः) तस्मात् कारणात् (त्वम्) (अधि) उपरि वर्त्तमानः श्रेष्ठः सन् (ओषधे) हे ओषधिवत् तापनाशक राजन् ! (अपामार्गः) दोषाणाम् अपमार्जनशीलः संशोधकः (अजायथाः) उत्पन्नोऽभवः ॥

०५ विभिन्दती शतशाखा

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वि॑भिन्द॒ती श॒तशा॑खा विभि॒न्दन्नाम॑ ते पि॒ता।
प्र॒त्यग्वि भि॑न्धि॒ त्वं तं यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॑ति ॥

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Whitney
Translation
  1. Splitting apart (vi-bhid), hundred-branched—“splitting apart” by
    name is thy father; in return (pratyák), do thou split apart him who
    assails us.
Notes

Ppp. has sundry corruptions: vivindatī in a, vibinda in b,
taṁ tvā at end of c. The comm. omits vi in c. Pāda c
needs some such emendation as to táṁ tu-ám.

Griffith

Thy father’s name was Cleaver. Thou with thousand branches cleavest all. Do thou, turned backward, cleave and rend the man who treateth us as foes.

पदपाठः

वि॒ऽभि॒न्द॒ती। श॒तऽशा॑खा। वि॒ऽभि॒न्दन्। नाम॑। ते॒। पि॒ता। प्र॒त्यक्। वि। भि॒न्धि॒। त्वम्। तम्। यः। अ॒स्मान्। अ॒भि॒ऽदास॑ति। १९.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (विभिन्दती) रोगों को छिन्न-भिन्न करनेवाली (शतशाखा) सैकड़ों शाखावाली [ओषधि के समान] (विभिन्दन्) शत्रुओं को छिन्न-भिन्न करनेवाला (नाम) प्रसिद्ध (ते) तेरा (पिता) पिता है। (त्वम्) तू भी (प्रत्यक्) लौटाकर (तम्) उसको (वि भिन्धि) छिन्न-भिन्न करदे, (यः) जो (अस्मान्) हमको (अभिदासति) सताता रहता है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शूरवीर पिता का पुत्र भी अपने पिता के तुल्य शूरवीर होकर वैरियों का नाश करता है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(विभिन्दती) भिदिर् विदारणे-शतृ। रोदविदारणशीला (शतशाखा) बहुशाखायुक्ता यथौषधिः (विभिन्दन्) शत्रूणां विभेदकः। विदारणशक्तिः (नाम) प्रसिद्धः (ते) तव (पिता) पालकः। जनकः (प्रत्यक्) प्रतिगमनेन प्रतिनिवार्य (वि भिन्धि) विदारय (त्वम्) हे राजन् (तम्) अस्मदीयं शत्रुम् (यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (अभिदासति) दास वधे−वैदिकः। अभितो हिनस्ति ॥

०६ असद्भूम्याः समभवत्तद्यामेति

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अस॒द्भूम्याः॒ सम॑भव॒त्तद्यामे॑ति म॒हद्व्यचः॑।
तद्वै ततो॑ विधूपा॒यत्प्र॒त्यक्क॒र्तार॑मृच्छतु ॥

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Whitney
Translation
  1. The non-existent came into being (sam-bhū) from the earth; that
    goes to the sky, the great expanse (vyácas); let that, verily, fuming
    abroad, come back thence on the maker.
Notes

The translation implies the obvious emendation, made in our text, of
tád dyā́m for tád yā́m, which is read by all the mss. and by the
comm., and retained in SPP’s text, though in a note he approves our
alteration; it is only another example of mistaking an abbreviated for a
full reading (dy for its grammatical equivalent ddy: compare ⌊i. 22.
1, and Roth, ZDMG. xlviii. 104⌋). Ppp. reads in b bṛhat vacas; and
it has for c ud it vaco vyadhūmayat. The comm. gives bhūmyām for
-yās in a, and tvat for tat at beginning of b. He renders
asat by asatkalpaṁ kṛtyārūpam, or, alternatively, by aśobhanaṁ
kṛtyārūpam
. The accent -dhūpā́yat is contrary to all rule, and
doubtless false; MS. (i. 10. 20; p. 160. l) has -pāyát, which is
correct. The general sense of the verse is obscure; but it appears to
parallel the return of the charm upon its producer with the action of
water in exhaling from the earth and coming back as rain.

Griffith

The evil sprang from earth; it mounts to heaven and spreads to vast extent. Reverted, shaking him with might, thence on its maker let it fall.

पदपाठः

अस॑त्। भूम्याः॑। सम्। अ॒भ॒व॒त्। तत्। याम्। ए॒ति॒। म॒हत्। व्यचः॑। तत्। वै। ततः॑। वि॒ऽधू॒पा॒यत्। प्र॒त्यक्। क॒र्तार॑म्। ऋ॒च्छ॒तु॒। १९.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) यह (महत्) बड़ा (व्यचः) परस्पर मिला हुआ वा फैला हुआ (असत्) अनित्य जगत् (भूम्याः) भूमि से (समभवत्) उत्पन्न हुआ है, [जो जगत्] (याम्) जिस [भूमि] को (एति) चला जाता है। (ततः) उसी कारण से (तत्) वह [दुष्ट कर्म] (वै) अवश्य (प्रत्यक्) लौटकर (कर्तारम्) हिंसक को (विधूपायत्) संताप देता हुआ [उसको ही ऋच्छतु] पहुँचे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे ईश्वरनियम से कार्यरूप स्थूल पदार्थ भूमि आदि तत्त्वों से उत्पन्न होकर फिर छिन्न-भिन्न होकर भूमि आदि अपने कारणों में लौट जाते हैं, ऐसे ही राजा के दण्ड से दुष्ट की दुष्टता उसी को ही लौटती और सताती है ॥६॥ बम्बई गवर्नमेन्ट पुस्तक में टिप्पणी है कि जर्मनी के भट्ट रोथ और ह्विटनी महाशय के मत में (याम्) के स्थान पर [द्याम्] होना चाहिये और ग्रिफ़िथ महाशय ने भी [द्याम्] मान कर स्वर्ग [heaven] अनुवाद किया है, परन्तु पदपाठ और सायणभाष्य में (याम्) है, और हमारे मत में भी (याम्) ही शुद्ध है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(असत्) सत् नित्यम् असत् अनित्यं नश्वरं कार्यरूपं जगत् (भूम्याः) भूमिसकाशात् (समभवत्) उदपद्यत (तत्) असद् यत् (याम्) भूमिम् (एति) प्राप्नोति प्रति निवृत्य (महत्) विशालम् (व्यचः) व्यच छले। सम्बन्धे-असुन्। सम्बद्धं व्याप्तम् (तत्) शत्रुकृतं कर्म (वै) अवश्यम् (ततः) तस्मात् कारणात् (विधूपायत्) धूप संतापे। गुपूधूपविच्छि०। पा० ३।१।२८। इति आयप्रत्ययः स्वार्थे, ततः शतृ। संतापयत् शत्रुम् (प्रत्यक्) प्रति-निवृत्य (कर्तारम्) कृञ् हिंसायाम्-तृच्। हिंसकम् (ऋच्छतु) गच्छतु ॥

०७ प्रत्यङ्हि सम्बभूविथ

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प्र॒त्यङ्हि सं॑ब॒भूवि॑थ प्रती॒चीन॑फल॒स्त्वम्।
सर्वा॒न्मच्छ॒पथाँ अधि॒ वरी॑यो यावया व॒धम् ॥

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Whitney
Translation
  1. Since thou hast come into being reverted (pratyáñc), having
    reverted fruit, do thou repel (yu) from me all curses, [repel] very
    far the deadly weapon.
Notes

The verse is nearly repeated as vii. 65. i. Ppp. has for c, d.
pratīṣkṛtyā amuṁ kṛtyākṛtaṁ jahi. The comm. reads in b -phala,
vocative; regarding, of course, the apāmārga plant as addressed.

Griffith

For thou hast grown reverted, and turned backward also is thy fruit. Remove all curses far from me, keep most remote the stroke of death.

पदपाठः

प्र॒त्यङ्। हि। स॒म्ऽब॒भूवि॑थ। प्र॒ती॒चीन॑ऽफलः। त्वम्। सर्वा॑न्। मत्। श॒पथा॑न्। अधि॑। वरी॑यः। य॒व॒य॒। व॒धम्। १९.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (त्वम्) तू (हि) ही (प्रत्यङ्) प्रत्यक्ष होकर (प्रतिचीनफलः) प्रतिकूल गति में रहनेवालों का नाश करनेवाला (संबभूविथ) हुआ है, [इस कारण] (मत्) मुझ से [शत्रु के] (सर्वान्) सब (शपथान्) शापों को और (वरीयः) अधिक विस्तीर्ण (वधम्) हथियार को (अधि) अधिकारपूर्वक (यवय) पृथक् कर ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पराक्रमी विजयी राजा शत्रुओं का नाश करके प्रजा को सुख पहुँचावे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(प्रत्यङ्) प्रति+अञ्चु-क्विन्। प्रत्यञ्चनः। प्रतिगतः। अभिमुखः सन् (हि) एव (संबभूविथ) सम्यग् विद्यमानो बभूविथ (प्रतीचीनफलः) प्रत्यच्-ख प्रत्ययः, ञिफला विशरणे-अच्। प्रत्यक् प्रतिगमनं तत्र भवानां फलं विशरणं नाशनं यस्मात् स तथाभूतः। प्रतिगतिभवानां शत्रूणां विदारकः (त्वम्) राजन् (सर्वान्) (मत्) मत्तः (शपथान्) शापान्। शत्रुकृतानि दुर्वाक्याणि (अधि) अधिकृत्य (वरीयः) उरु-ईयसुन्। उरुतरं विस्तीर्णतरम् (यवय) पृथक् कुरु (वधम्) हननसाधनम्। आयुधम् ॥

०८ शतेन मा

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श॒तेन॑ मा॒ परि॑ पाहि स॒हस्रे॑णा॒भि र॑क्ष मा।
इन्द्र॑स्ते वीरुधां पत उ॒ग्र ओ॒ज्मान॒मा द॑धत् ॥

०८ शतेन मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Protect me around with a hundred; defend me with a thousand; may the
    forceful (ugrá) Indra, O lord of the plants, assign force (ojmán)
    unto thee.
Notes

Ppp. has for d bhadro ’jmānam ā dadhuḥ. It can hardly be that the
writer does not use here ugrá and ojmán as words felt to be related;
but the comm. gives for the former his standing and always repeated
udgūrṇabala, and paraphrases the other with ojasvitva.

Griffith

Preserve me with a hundred, yea, protect me with a thousand aids. May mighty Indra, Lord of Plants! give store of strength and. power to thee.

पदपाठः

श॒तेन॑। मा॒। परि॑। पा॒हि॒। स॒हस्रे॑ण। अ॒भि। र॒क्ष॒। मा॒। इन्द्रः॑। ते॒। वी॒रु॒धा॒म्। प॒ते॒। उ॒ग्रः। ओ॒ज्मान॑म्। आ। द॒ध॒त्। १९.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (शतेन) सौ [उपाय] से (मा) मेरा (परि पाहि) सब प्रकार पालन कर, (सहस्रेण) सहस्र साधन से (मा) मेरी (अभि) सब ओर से (रक्ष) रक्षा कर। (वीरुधां पते) हे विविध प्रकार बढ़नेवाली प्रजाओं के पालक ! (उग्रः) महाबली (इन्द्रः) परमेश्वर (ते) तुझको (ओज्मानम्) पराक्रम (आ) यथावत् (दधत्) देता हुआ वर्तमान है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा अपनी प्रजा की सदा रक्षा करे। वह पुरुषार्थी पुरुष परमेश्वर की न्यायव्यवस्था से सब बल पाता रहता है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(शतेन) शतसंख्याकेन रक्षणोपायेन (मा) माम् (परि) परितः (पाहि) रक्ष (सहस्रेण) सहस्रसंख्याकेन, साधनेन (अभिरक्ष) सर्वतः पालय (इन्द्रः) परमेश्वरः (ते) तुभ्यम् (वीरुधाम्) विरोहणशीलानां लतारूपाणां वा प्रजानाम् (पते) अधिपते (उग्रः) उद्गूर्णबलः। महाबली (ओज्मानम्) सर्वधातुभ्यो मनिन् उ० ४।१४५। इति ओज बले-मनिन्। बलम्। पराक्रमम् (आ) समन्तात् (दधत्) डुधाञ् दाने-शतृ। ददत् प्रयच्छन् वर्तते ॥