०१७ अपामार्गः

०१७ अपामार्गः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Against various evils: with a plant.
VH anukramaṇī

अपामार्गः।
१-८ शुक्रः। अपामार्गो वनस्पतिः। अनुषटुप्।

Whitney anukramaṇī

[śukra.—caturviṅśarcaṁ trayaṁ sūktānām. apāmārgavanaspatidevatyam. ānuṣṭubham.]

Whitney

Comment

Verses 1-6 are found as a hymn in Pāipp. v., and hymns 18 and 19 follow it there, with some mixture of the verses. Vs. 8 is found separately in ii. Hymns 17-19 are called by the comm. āvapanīya ‘of strewing.’ They are used together by Kāuś. (39. 7), with ii. 11 and iv. 40 and others, in the preparation of consecrated water to counteract hostile sorcery; and vs. 17. 5 is reckoned by the schol. (46. 9, note) to the duḥsvapnanāśana gaṇa.

Translations

Translated: Zimmer, p. 66; Grill, 37, 130; Griffith, i. 155; Bloomfield, 69, 393; Weber, xviii. 73.

Griffith

A charm to secure freedom from various evils

०१ ईशाणां त्वा

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ईशा॑णां त्वा भेष॒जाना॒मुज्जे॑ष॒ आ र॑भामहे।
च॒क्रे स॒हस्र॑वीर्यं॒ सर्व॑स्मा ओषधे त्वा ॥

०१ ईशाणां त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thee, the mistress of remedies, O conquering one (ujjeṣá), we take
    hold of; I have made thee a thing of thousand-fold energy (-vīryà) for
    every one, O herb.
Notes

Ppp. reads for b nijeṣā ”gṛṇīmahe. We should expect in c
-vīryām, and three of SPP’s mss. (none of ours) so read; but he has
not ventured to admit it into his text; the comm. gives -yam, but
explains as if -yām (aparimitasāmarthyayuktām). The comm. regards
the plant sahadevī (name of various plants, including Sida
cordifolia
and rhombifolia, OB.) as addressed. He takes ujjeṣe in
b as dative, = ujjetum.

Griffith

We seize and hold thee, Conquering One! the queen of medi- cines that heal. O Plant, I have endowed thee with a hundred powers for every man,

पदपाठः

ईशा॑नाम्। त्वा॒। भे॒ष॒जाना॑म्। उत्ऽजे॑षे। आ। र॒भा॒म॒हे॒। च॒क्रे। स॒हस्र॑ऽवीर्यम्। सर्व॑स्मै। ओ॒ष॒धे॒। त्वा॒। १७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (ईशानाम्) समर्थ (भेषजानाम्) भयनिवारक पुरुषों में (त्वा) तेरा (उज्जेषे) [शत्रुओं को] जीतने के लिये (आरभामहे) हम आश्रय लेते हैं। (ओषधे) हे तापनाशक [वा अन्न आदि ओषधि के समान उपकारक !] (सर्वस्मै) सब जनों के लिये (त्वा) तुझे (सहस्रवीर्यम्) सहस्रों सामर्थ्यवाला (चक्रे) उस [परमात्मा] ने बनाया है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पुरुषार्थियों में महा पुरुषार्थी पुरुष को अपना प्रधान बनावें और उससे अपनी रक्षा का सहारा लें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(ईशानाम्) ईश ऐश्वर्ये-क। ईश्वराणां समर्थानाम् (त्वा) त्वां राजानम् (भेषजानाम्) भेष+जि जये-ड। भेषस्य भयस्य जेतॄणां मध्ये (उज्जेषे) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति जि−से प्रत्ययः। उज्जेतुम्। निवारयितुं शत्रून् (आ रभामहे) आङ् पूर्वको रभ स्पर्शे। संस्पृशामः। आश्रयामः (चक्रे) स परमेश्वरः कृतवान् (सहस्रवीर्यम्) अपरिमितसामर्थ्ययुक्तम् (सर्वस्मै) सर्वजनहिताय (ओषधे) हे दाहनाशक ! अन्नाद्योषधिवद् उपकारक (त्वा) त्वाम् ॥

०२ सत्यजितं शपथयावनीम्

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स॑त्य॒जितं॑ शपथ॒याव॑नीं॒ सह॑मानां पुनःस॒राम्।
सर्वाः॒ सम॒ह्व्योष॑धीरि॒तो नः॑ पारया॒दिति॑ ॥

०२ सत्यजितं शपथयावनीम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The truly-conquering, the curse-repelling, the overcoming, the
    reverted one (punaḥsará)—all the herbs have I called together, saying
    “may they (?) save us from this.”
Notes

The last pāda is translated in accordance with the better reading of
Ppp.: ato mā pārayān iti. In b, Ppp. gives punaścarā; SPP.
presents punaḥs-, in closer accordance with the mss. than our
punass-. The comm. does not recognize the meaning ‘reverted’ (i.e.
‘having reverted leaves or fruit’) as belonging to punaḥsará, but
renders it as “repeatedly applied” (ābhīkṣṇyena bahutaravyādhinivṛttaye
sarati
). He reads in a śapathayopanīm, and in c abhi (for
ahvi): and one or two of SPP’s mss. support him each time; our O.Op.
give addhi, by a recent copyist’s blunder; the comm. supplies
gacchanti for his sam-abhi to belong to. The Anukr. takes no notice
of the excess of two syllables in a.

Griffith

Still conquering, banishing the curse, mighty, with thy reverted. bloom. Thee and all Plants have I invoked: Hence let it save us! was my prayer.

पदपाठः

स॒त्य॒ऽजित॑म्। श॒प॒थ॒ऽयाव॑नीम्। सह॑मानम्। पु॒नः॒ऽस॒राम्। सर्वाः॑। सम्। अ॒ह्वि॒। ओष॑धीः। इ॒तः। नः॒। पा॒र॒या॒त्। इति॑। १७.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्यजितम्) सत्य से जीनेवाली, (शपथयावनीम्) शाप वा क्रोध वचन हटानेवाली, (सहमानाम्) शत्रुओं को हरानेवाली, और (पुनःसराम्) बारंबार आगे बढ़ानेवाली सेना को, और (सर्वाः) सब (ओषधीः) ताप नाश करनेवाली प्रजाओं को (सम् अह्वि) यथावत् मैंने आवाहन किया है, (इतः) इस [कठिन कर्म] से (नः) हमें (पारयात्) वह [पुरुषार्थी] पार लगावे, (इति) इस अभिप्राय से ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रजा प्रतिनिधि सब हितकारी सेना और प्रजागणों को बुला कर शत्रुओं से बचने के लिये राजा बनाने का प्रयोजन प्रकाशित करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(सत्यजितम्) जि-क्विप्, तुक्। सत्येन जयशीलम् (शपथयावनीम्) यु अभिश्रणे-णिच्, ल्युट्-ङीप्। शपथस्य आक्रोशस्य क्रोधवचनस्य पृथक्कर्त्री-नाशयित्रीम् (सहमानाम्) अभिभवशीलाम् (पुनःसराम्) पुनः पुनः सरति प्रवर्तते सा तां सेनां प्रजां वा (सर्वाः) (सम्) सम्यक्। (अह्वि) अह्वे। आहूतवानस्मि (ओषधीः) तापनिवारिकाः प्रजाः (इतः) अस्मात् कठिनकर्मणः (नः) अस्मान् (पारयात्) पार कर्मसमाप्तौ। अस्मत्कर्तव्यं समापयेत्। पारं गमयेत् स राजा (इति) अनेन हेतुना ॥

०३ या शशाप

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या श॒शाप॒ शप॑नेन॒ याघं मूर॑माद॒धे।
या रस॑स्य॒ हर॑णाय जा॒तमा॑रे॒भे तो॒कम॑त्तु॒ सा ॥

०३ या शशाप ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. She that hath cursed with cursing, that hath taken malignity as her
    root, that hath seized on [our] young to take [its] sap—let her eat
    [her own] offspring.
Notes

The verse is a repetition of i. 28. 3, and the comm. again, as there,
reads ādade at end of b. He notes that a full explanation has been
already given, but yet allows himself to repeat it in brief; this time
he gives only mūrchāpradam as the sense of mūram. Ppp. (which has no
version of i. 28) gives here, for c, d, yā vā rathasya prāsāre hy
ato ‘gham u tvasaḥ
. As i. 28. 3, the verse was properly called
virāṭpathyābṛhatī. ⌊Correct the verse-number from 6 to 3 in the
edition.⌋

Griffith

She who hath cursed us with a curse, or hath conceived a murderous sin, Or seized our son to take his blood, may she devour the child she bare.

पदपाठः

या। श॒शाप॑। शप॑नेन। या। अ॒घम्। मूर॑म्। आ॒ऽद॒धे। या। रस॑स्य। हर॑णाय। जा॒तम्। आ॒ऽरे॒भे। तो॒कम्। अ॒त्तु॒। सा। १७.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जिस [शत्रुसेना] ने (शपनेन) शाप [कुवचन] से (शशाप) कोसा है और (या) जिसने (अवम्) दुःख देनेवाली (मूरम्) मूल को (आदधे) जमा लिया है। और (या) जिसने (रसस्य) रस के (हरणाय) हरण के लिये [हमारे] समूह को (आरेभे) छूआ है, (सा) यह [शत्रुसेना] (तोकम्) अपनी बढ़ती वा संतान को (अत्तु) खा लेवे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जल शत्रु सेना दुर्वचन बोलती और उपद्रव मचाती बढ़ती आवे, युद्धकुशल सेनापति उनमें भेद डाल दे कि वह लोग अपने संतान अर्थात् इष्ट मित्रों को ही नाश करदें ॥३॥ यह मन्त्र पहले आ चुका है-अ० १।२८।३ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० १।२८।३। इह शब्दार्थो दीयते। (या) शत्रुसेना (शशाप) अनिष्टकथनं कृतवती। (शपनेन) शापेन कुवचनेन (अघम्) दुःखकरम् (मूरम्) लस्य रः। मूलं प्रतिष्ठाम् (आदधे) परिजग्राह (रसस्य) सारस्य। आनन्दस्य (हरणाय) नाशनाय (आरेभे) आलेभे। स्पृष्टवती (तोकम्) वर्धनम्। सन्तानम् (अत्त) भक्षयतु (सा) शत्रुसेना ॥

०४ यां ते

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यां ते॑ च॒क्रुरा॒मे पात्रे॒ यां च॒क्रुर्नी॑ललोहि॒ते।
आ॒मे मां॒से कृ॒त्यां यां च॒क्रुस्तया॑ कृत्या॒कृतो॑ जहि ॥

०४ यां ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [witchcraft] they have made for thee in the raw vessel
    (pā́tra), what they have made in the blue-red one, in raw flesh what
    witchcraft they have made—with that do thou smite the witchcraft-makers.
Notes

The verse is nearly accordant with v. 31. 1 below. Ppp. reads in b
yā sūtre nīl-. A raw vessel is one of unburnt clay (apakve mṛtpātre,
comm.). The comm. defines “the blue-red one” as fire, blue with smoke,
red with flame*; and the “raw flesh” as that of a cock or other animal
used for the purposes of the charm. The kṛtyā appears to be a concrete
object into which an evil influence is conveyed by sorcery, and which
then, by depositing or burying, becomes a source of harm to those
against whom the sorcery is directed (mantrāuṣadhādibhiḥ śatroḥ
pīḍākarīm
, comm. to iv. 18. 2). The comm. reads tvayā in d, and
first pronounces it used by substitution for tvam, then retains it in
its proper sense and makes jahi mean hantavyās: both are examples of
his ordinary grammatical principles. The Anukr. ignores the metrical
irregularity of c ⌊reject yā́ṁ.⌋ *⌊Bloomfield, on the basis of
Kāuś., interprets it as a thread of blue and red; and this is confirmed
by the Ppp. sūtre.

Griffith

What magic they have wrought for thee in dish unbaked or burnt dark-red, What they have wrought in flesh undressed,–conquer the sorcerers therewith.

पदपाठः

याम्। ते॒। च॒क्रुः। आ॒मे। पात्रे॑। याम्। च॒क्रुः। नी॒ल॒ऽलो॒हि॒ते। आ॒मे। मां॒से। कृ॒त्याम्। याम्। च॒क्रुः। तया॑। कृ॒त्या॒ऽकृतः॑। ज॒हि॒। १७.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (याम्) जिस [हिंसा] को (ते) तेरे (आमे) भोजन में, वा (पात्रे) पानी में (चक्रुः) उन्होंने [हंसाकारियों ने] किया है, (याम्) जिसको [तेरे] (नीललोहिते=नीलरोहिते) नीलों अर्थात् निधियों की उत्पत्ति में (चक्रुः) उन्होंने किया है। (याम्) जिस (कृत्याम्) हिंसा को [तेरे] (यामे) चलने में वा (मांसे) ज्ञान वा काल वा मांस में (चक्रुः) उन्होंने किया है, (तया) उस [हिंसा] के कारण (कृत्याकृतः) हिंसाकारियों को (जहि) नाश करदे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो दुष्कर्मी राजा के खान, पान, धनसंचय, मार्ग, वा सत्य-सत्य जानने, वा काल के सुप्रयोग वा शरीर में विपत्ति डालें, राजा उनको यथावत् दण्ड देकर नाश कर दे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(याम्) कृत्याम् (ते) तव (चक्रुः) कृतवन्तः ते कृत्याकृतः (आमे) अम गतिभोजनादिषु-घञ्। भोजने (पात्रे) दादिभ्यश्छन्दसि। उ० ४।१७०। इति पा पाने−त्रन्। पाने जलभाजने वा (नीललोहिते) नि नितराम् इलन्ति प्राप्नुवन्ति यं स नीलो निधिः कोशः। नि+इल गतौ-क। रुहेश्च लो वा। उ० ३।९४। इति रुह बीजजन्मनि, प्रादुर्भावे च-इतन्, रस्य लः। निधीनां प्रादुर्भावे, उत्पत्तौ (आमे) अम गतौ-घञ्। गमने (मांसे) मनेर्दीघश्च। उ० ३।६४। इति मन ज्ञाने, अर्च्चे, गर्वे, धृतौ-स प्रत्ययः, दीर्घश्च। मन्यते ज्ञायते ध्रियते वानेन तन्मांसम्। ज्ञाने। मांसः कालः, कीटः-इति शब्दकल्पद्रुमः। काले। यद्वा रक्तजधातुविशेषः (कृत्याम्) अ० ४।९।४। हिंसाक्रियाम्। विपत्तिम् (तथा) कृत्यया (कृत्याकृतः) कृत्या+डुकृञ्, करणे-क्विप्, तुक्। हिंसाकारिणः पुरुषान् हन्-लोट्। नाशय ॥

०५ दौष्वप्न्यं दौर्जीवित्यम्

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दौष्व॑प्न्यं॒ दौर्जी॑वित्यं॒ रक्षो॑ अ॒भ्व॑मरा॒य्यः॑।
दु॒र्णाम्नीः॒ सर्वा॑ दु॒र्वाच॒स्ता अ॒स्मन्ना॑शयामसि ॥

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Whitney
Translation
  1. Evil-dreaming, evil-living, demon, monster (abhvà), hags, all the
    ill-named (f.), ill-voiced—them we make disappear from us.
Notes

Ppp. has in a dussvapnaṁ durjīvataṁ, and, for c, d, durvācas
sarvaṁ durbhūtaṁ tam ito nāś-
. A couple of our mss. (I.H.p.m.) read
abhū́m in b. The comm. gives -jīvatyam in a (with two of
SPP’s mss.), and (with our P.M.W.E.) asmín instead of asmán in
d. He first defines abhvam simply as “great,” and then as a
special kind of demon or demoniac (quoting RV. i. 185. 2); and the
durṇāmnīs as piśācīs having various bad appellations, such as
chedikā and bhedikā. The verse is repeated as vii. 23. 1.

Griffith

Ill dream and wretchedness of life, Rakshasa, monster, stingy hags, All the she-fiends of evil name and voice, we drive away from us.

पदपाठः

दौःऽस्व॑प्न्यम्। दौःऽजी॑वित्यम्। रक्षः॑। अ॒भ्व᳡म्। अ॒रा॒य्यः᳡। दुः॒ऽनाम्नीः॑। सर्वाः॑। दुः॒ऽवाचः॑। ताः। अ॒स्मत्। ना॒श॒या॒म॒सि॒। १७.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दौष्वप्न्यम्) नींद में बेचैनी, (दौर्जीवित्यम्) जीवन का कष्ट, (अभ्वम्) बड़े (रक्षः) राक्षस, (अराय्यः) अनेक अलक्ष्मियों और (दुर्णाम्नीः) दुष्ट नामवाली (दुर्वाचः) कुवाणियों, (ताः सर्वाः) इन सबको (अस्मत्) अपने से (नाशयामसि) हम नाश करें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा ऐसी नीति चलावे कि प्रजागण बाहिर भीतर से निश्चिन्त होकर सुख की नींद सोवें, उद्यमी होकर आनन्द भोगें, चोर डाकू आदिकों से निर्भय रहें, धन की वृद्धि करें और विद्याबल से कलह छोड़कर परस्पर उन्नति करने में लगे रहें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(दौष्वप्न्यम्) दुर्+स्वप्न−ष्यञ्। बाह्याभ्यन्तरकारणैः स्वप्नावसादं निद्राभङ्गम् (दौर्जीवित्यम्) दुर्+जीवित−ष्यञ्। दुर्जीवनत्वम् (रक्षः) राक्षसम् (अभ्वम्) अशूप्रुषि०। उ० १।१५१। इति अभि शब्दे-क्वन्, नलोपः। अभ्वो महन्नाम-निघ० ३।३। महद्। अतिभयकरम्। (अराय्यः) अ० २।१४।३। शसि जस्। अरायीः। अलक्ष्मीः। विपत्तीः (दुर्णाम्नीः) दुर्+नामन्-ङीप् दुष्टनामोपेताः (सर्वाः) दुर्वाचः। दुष्टवाणीः (ताः) (अस्मत्) अस्मत्सकाशात् (नाशयामसि) नाशयामः ॥

०६ क्षुधामारं तृष्णामारमगोतामनपत्यताम्

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क्षु॑धामा॒रं तृ॑ष्णामा॒रम॒गोता॑मनप॒त्यता॑म्।
अपा॑मार्ग॒ त्वया॑ व॒यं सर्वं॒ तदप॑ मृज्महे ॥

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Whitney
Translation
  1. Death by hunger, death by thirst, kinelessness, childlessness—through
    thee, O off-wiper (apāmārgá), we wipe off all that.
Notes

The translation implies the obvious emendation of anapadyátām (p.
anapa॰dyátam) in b to -apatyá-, which is read by the comm. and
by three of SPP’s mss. which follow him; SPP. very properly admits
-apatyá- into his text (but forgets to emend his *pada-*text
thoroughly, and leaves in it the absurd division anapaa॰tyátām.)
⌊Weber, however, discussing avadya, Berliner Sb., 1896, p. 272,
defends the reading apadya-.⌋ The comm. says nothing of the sudden
change here from sahadevī to apāmārga, which ought to be another
plant (Achyranthes aspera: a weed found all over India, having very
long spikes of retroflected flowers), but may possibly be used here as a
synonym or appellation of the other. In his introduction, he speaks of
darbha, apāmārga, and sahadevī as infused in the consecrated water.

Griffith

Death caused by famine, caused by thirst, failure of children,. loss of kine, With thee, O Apamarga, all this ill we cleanse and wipe away.

पदपाठः

क्षु॒धा॒ऽमा॒रम्। तृ॒ष्णा॒ऽमा॒रम्। अ॒गोता॑म्। अ॒न॒प॒ऽत्यता॑म्। अपा॑मार्गः। त्वया॑। व॒यम्। सर्व॑म्। तत्। अप॑। मृ॒ज्म॒हे॒। १७.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (क्षुधामारम्) भूख से मरना, (तृष्णामारम्) पियास से मरना, (अगोताम्) गौओं की हानि, और (अनपत्यताम्) बच्चों का अभाव, (तत् सर्वम्) इस सबको, (अपामार्ग) हे सर्वसंशोधक ! [वा अपामार्ग औषध के समान उपकारी राजन् !] (त्वया) तेरे साथ (वयम्) हम (अप मृज्महे) शोधते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा के सुप्रबन्ध से सूखा के समय भी अन्न, जल, गौ, बैल आदि की बहुतायत से मनुष्य यथावत् बढ़ते रहते हैं ॥६॥ (अपामार्ग) का अर्थ सर्वथा संशोधक है, और एक औषध भी है, जिससे कफ, बवासीर, खुजली, उदररोग और विषरोग का नाश होता है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(क्षुधामारम्) मृञ्-घञ्। क्षुत्पीडया मरणम् (तृष्णामारम्) पिपासया मरणम् (अगोताम्) गवाम् अभावम् (अनपत्यताम्) अपत्यानां राहित्यम् (अपामार्ग) अप+आङ्+मृजू शौचालंकारयोः-घञ्। हे सर्वथा संशोधक। हे अपामार्गौषधवद् उपकारिन् ! अपामार्गपर्य्यायः-अपामार्गः शैखरिको धामार्गावमयूरकौ-इत्यमरः, १४।८८। अस्य गणाः। कफार्शः कण्डूदरामयविसषरोगनाशित्वम्-इति शब्दकल्पद्रुमः (त्वया) राज्ञा (वयम्) प्रजागणाः (सर्वम्) (तत्) एतत् [अपमृज्महे] अपमार्जयामः शोधयामः विनाशयामः-इत्यर्थः ॥

०७ तृष्णामारं क्षुधामारम्

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तृ॑ष्णामा॒रं क्षु॑धामा॒रं अथो॑ अक्षपराज॒यम्।
अपा॑मार्ग॒ त्वया॑ व॒यं सर्वं॒ तदप॑ मृज्महे ॥

०७ तृष्णामारं क्षुधामारम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Death by thirst, death by hunger, likewise defeat at dice—through
    thee, O off-wiper, we wipe off all that.
Notes

Ppp. omits this variation on vs. 6.

Griffith

Death caused by thirst, death caused by stress of hunger, loss at play with dice, All this, O Apamarga with thine aid we cleanse and wipe away.

पदपाठः

तृ॒ष्णा॒ऽमा॒रम्। क्षु॒धा॒ऽमा॒रम्। अथो॒ इति॑। अ॒क्ष॒ऽप॒रा॒ज॒यम्। अपा॑मार्ग। त्वया॑। व॒यम्। सर्व॑म्। तत्। अप॑। मृ॒ज्म॒हे॒। १७.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तृष्णामारम्) पियास से मरना, (क्षुधामारम्) भूख से मरना, (अथो) और भी (अक्षपराजयम्) व्यवहारों वा इन्द्रियों की हार, (तत् सर्वम्) इस सबको, (अपामार्ग) हे सर्वसंशोधक राजन् ! (त्वया) तेरे साथ (वयम् अपमृज्महे) हम शोधते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा के उत्तम प्रबन्ध से न तो जल, अन्न और दैनिक काम काज की हानि, और न शरीर और आत्मा की दुर्बलता होती है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(अथो) अपि च (अक्षपराजयम्) अक्षू व्याप्तौ-पचाद्यच् घञ् वा। यद्वा। अशेर्देवने। उ० ३।६५। इति अशू व्याप्तौ स प्रत्ययः। अक्षाणां व्यवहाराणाम् इन्द्रियाणां वा पराजयं पराभवम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०८ अपामार्ग ओषधीनाम्

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अ॑पामा॒र्ग ओष॑धीनां॒ सर्वा॑सा॒मेक॒ इद्व॒शी।
तेन॑ ते मृज्म॒ आस्थि॑त॒मथ॒ त्वम॑ग॒दश्च॑र ॥

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Whitney
Translation
  1. The off-wiper is indeed of all herbs the sole controller (vaśín);
    with it we wipe [off] what has befallen (ā́sthita) thee; then do thou
    go about free from disease.
Notes

Ppp. (in book ii.) has for b viśvāsām eka it patiḥ, combines in
c mṛjmā ”sthitam, and reads at the end caraḥ. Āsthitam (also
vi. 14. 1 and VS. vi. 15) has perhaps a more special sense than we are
able to assign to it; the comm. paraphrases by kṛtyādibhir āpatitaṁ
rogādikam
.

Griffith

The Apamarga is alone the sovran of all Plants that grow. With this we wipe away whate’er hath fallen on thee: go in health!

पदपाठः

अ॒पा॒मा॒र्गः। ओष॑धीनाम्। सर्वा॑साम्। एकः॑। इत्। व॒शी। तेन॑। ते॒। मृ॒ज्मः॒। आऽस्थि॑तम्। अथ॑। त्वम्। अ॒ग॒दः। च॒र॒। १७.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अपामार्गो वनस्पतिः
  • शुक्रः
  • अनुष्टुप्
  • अपामार्ग सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के लक्षणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अपामार्गः) सब दोषों का शोधनेवाला परमेश्वर (सर्वासाम्) सब (ओषधीनाम्) तापनाशक अन्न आदि पदार्थों का (एकः इत्) एक ही (वशी) वश में रखनेवाला है। (तेन) उस [के आश्रय] से [हे राजन् !] (ते) तेरे (आस्थितम्) उपस्थित [भय] को (मृज्मः) हम शोधते हैं, (अथ) इसलिये (त्वम्) तू (अगदः) नीरोग होकर (चर) विचर ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रजागण कहते हैंपरमात्मा सब संसार का स्वामी है, उसी सहारे से हम आप पर यह राज्य भार रखते हैं, आप भी उसी के सहारे से निश्चिन्त होकर अपना कर्तव्य करें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(अपामार्गः) म० ६। सर्वदोषशोधकः परमेश्वरः (ओषधीनाम्) तापनाशयित्रीणाम् अन्नादिपदार्थानाम् (सर्वासाम्) अशेषाणाम् (एकः) अद्वितीयः (इत्) एव (वशी) वशयिता (तेन) अपामार्गेण परमेश्वरेण (ते) तव (मृज्मः) मार्जयामः शोधयामः (आस्थितम्) आपतितं राज्यभाररूपं भयम् (अथ) अनन्तरम् (त्वम्) राजन् (अगदः) गद व्यक्तायां वाचि रोगे च-अच्। रोगशून्यः स्वस्थः (चर) चिरकालं वर्तस्व ॥