०१६ सत्यानृतसमीक्षकः ...{Loading}...
Whitney subject
- The power of the gods.
VH anukramaṇī
सत्यानृतसमीक्षकः।
१-९ ब्रह्म। वरुणः, सत्यानृतान्वीक्षणम्। त्रिष्टुप्, १ अनुष्टुप्, ५ भुरिक्, ७ जगति, ८ त्रिपान्महाबृहती, विराण्नाम त्रिपाद्गायत्री।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—navarcam. satyānṛtānvīkṣaṇasūktam. vāruṇam. trāiṣṭubham: 1. anuṣṭubh; 5. bhurij; 7. jagatī; 8. 3-p. mahābṛhatī; 9. virāṇnāmatripādgāyatr.]
Whitney
Comment
Five verses of this hymn (in the verse-order 3, 2, 5, 8, 7) are found together in Pāipp. v., and parts of vss. 4 and 6 elsewhere in the same book. It is used by Kāuś. (48. 7) in a rite of sorcery against an enemy who “comes cursing”; and vs. 3 also in the portent-ceremony of the seven seers (127. 3), with praise to Varuṇa.
By reason of the exceptional character of this hymn as expression of the unrestricted presence and influence of superhuman powers, it has been a favorite subject of translation and discussion. Translated: Roth, Ueber den AV., p. 29; Max Müller, Chips from a German Workshop, i. 41 (1867); Muir, OST. v. 63; Ludwig, p. 388; Muir, Metrical Translations, p. 163; Kaegi, Der Rigveda2, p 89 f. (or p. 65 f. of R. Arrowsmith’s translation of Kaegi), with abundant parallels from the Old Testament; Grill, 32, 126; Griffith, i. 153; Bloomfield, 88, 389; Weber, xviii. 66. Some of the above do not cover the entire hymn.—See also Hillebrandt, Veda-chrestomathie, p. 38; Bergaigne-Henry, Manuel, p. 146; further, Grohmann, Ind. Stud. ix. 406; Hermann Brunnhofer, Iran und Turan (1889), p. 188-196; Weber, Berliner Sb., 1894, p. 782 f.
⌊Weber entitles the hymn “Betheuerung der Unschuld, Eidesleistung”; see his instructive note, Ind. Stud. xviii. 66, note 2. “Comes cursing” hardly takes account of the voice of śapyamānam as used by Kāuś. 48. 7.⌋
Griffith
On the omnipresence and omniscience of Varuna
०१ बृहन्नेषामधिष्ठाता अन्तिकादिव
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
बृ॒हन्नेषामधिष्ठा॒ता अ॑न्ति॒कादि॑व पश्यति।
यस्ता॒यन्मन्य॑ते॒ चर॒न्त्सर्वं॑ दे॒वा इ॒दं वि॑दुः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
बृ॒हन्नेषामधिष्ठा॒ता अ॑न्ति॒कादि॑व पश्यति।
यस्ता॒यन्मन्य॑ते॒ चर॒न्त्सर्वं॑ दे॒वा इ॒दं वि॑दुः ॥
०१ बृहन्नेषामधिष्ठाता अन्तिकादिव ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The great superintendent of them sees, as it were, from close by;
whoever thinks to be going on in secret, all this the gods know.
Notes
The verse is altogether wanting in Ppp. All the mss. read in a-b
-tā́ ant- (p. -tā́: ant-), with irregular absence of combination
across the cesura; the case might be one of those contemplated by Prāt.
iii. 34, although not quoted in the comment on that rule; SPP. reads
with the mss., and our edition might perhaps better have done the same
(it is emended to -tā́ ’nt-). But SPP. also reads in c yás tāyát,
instead of yá (i.e. yáḥ) stāyát*, while nearly all his
pada-mss. (with all of ours) require the latter; his wholly
insufficient reason seems to be that the comm. adopts tāyat; the comm.
also has, as part of the same version, carat, and views the two words
as contrasted, “stable” (sāṁtatyena vartamānaṁ sthiravastu) and
“transient” (caraṇaśīlaṁ naśvaraṁ ca vastu), which is absurd: “he is
great, because he knows (manyate=jānāti!) all varieties of being.”
The comm. understands eṣām as meaning “of our evil-minded enemies,”
and keeps up the implication throughout, showing no manner of
comprehension of the meaning of the hymn. *⌊See Prāt. ii. 40, note, p.
426 near end.⌋
Griffith
The mighty Ruler of these worlds beholds as though from close at hand, The man who thinks he acts by stealth: all this the Gods perceive and know.
पदपाठः
बृ॒हन्। ए॒षा॒म्। अ॒धि॒ऽस्था॒ता। अ॒न्ति॒कात्ऽइ॑व। प॒श्य॒ति॒। यः। स्ता॒यत्। मन्य॑ते। चर॑न्। सर्व॑म्। दे॒वाः। इ॒दम्। वि॒दुः॒। १६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- अनुष्टुप्
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एषाम्) इन [लोकों] का (बृहन्) बड़ा (अधिष्ठाता) अधिष्ठाता [वह वरुण] (अन्तिकात् इव) समीप में वर्तमान सा (पश्यति) देखता है, (यः) जो [वरुण] (तायत्) विस्तार वा पालन (चरन्) करता हुआ (सर्वम्) सब जगत् को (मन्यते) जानता है। (देवाः) व्यवहार में कुशल देवता लोग (इदम्) यह बात (विदुः) जानते हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा सर्वनियन्ता, सर्वज्ञाता, सर्वस्रष्टा और सर्वरक्षिता है, इस बात को ऋषि महात्मा साक्षात् करते हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(बृहन्) महान् (एषाम्) दृश्यमानानां लोकानाम् (अधिष्ठाता) नियन्ता (अन्तिकात् इव) समीपदेशाद् यथा (पश्यति) अवलोकयति (यः) वरुणः (तायत्) वर्तमाने पृषद्बृहन्महज्जगच्छतृवच्च। उ० २।८४। इति तायृ सन्तानपालनयोः-अति। विस्तारम्। पालनम् (मन्यते) जानाति (चरन्) चर आचारे-शतृ। कुर्वन् सन् (सर्वम्) सरणशीलं जगत् (देवाः) व्यवहारकुशलाः। विद्वांसः (इदम्) निर्दिष्टं वृत्तम् (विदुः) विदन्ति। जानन्ति। साक्षात् कुर्वन्ति ॥
०२ यस्तिष्ठति चरति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यस्तिष्ठ॑ति॒ चर॑ति॒ यश्च॑ वञ्चति॒ यो नि॒लायं॒ चर॑ति॒ यः प्र॒तङ्क॑म्।
द्वौ सं॑नि॒षद्य॒ यन्म॒न्त्रये॑ते॒ राजा॒ तद्वे॑द॒ वरु॑णस्तृ॒तीयः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्तिष्ठ॑ति॒ चर॑ति॒ यश्च॑ वञ्चति॒ यो नि॒लायं॒ चर॑ति॒ यः प्र॒तङ्क॑म्।
द्वौ सं॑नि॒षद्य॒ यन्म॒न्त्रये॑ते॒ राजा॒ तद्वे॑द॒ वरु॑णस्तृ॒तीयः॑ ॥
०२ यस्तिष्ठति चरति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whoso stands, goes about, and whoso goes crookedly (vañc), whoso
goes about hiddenly, who defiantly (? pratán̄kam)—what two, sitting
down together, talk, king Varuṇa, as third, knows that.
Notes
Ppp. reads in a manasā instead of carati, and in b
pralāyam instead of pratan̄kam; and for c it has dvāu yad
avadatas saṁniṣadya. The pada-mss. give in b ni॰lā́yan, as if
the assimilated final nasal before c were n instead of m; and SPP.
unwisely leaves this uncorrected in his pada-text, although the comm.
correctly understands -yam. The comm. regards a and b as
specifying the “enemies” of vs. 1 a; vañcati he paraphrases by
kāuṭilyena pratārayati, and pratan̄kam by prakarṣeṇa kṛcchrajīvanam
prāpya; nilāyam* he derives either from nis + i or from ni + lī.
The true sense of pratan̄kam is very obscure; the translation seeks in
it a contrast to nilā́yam; the translators mostly prefer a parallel
“gliding, creeping,” or the like. The Anukr. apparently balances the
redundant a with the deficient c. *⌊Note that W’s version
connects it with ní-līna of vs. 3; cf. Gram. §995 a, and my
Reader, p. 394.⌋
Griffith
If a man stands or walks or moves in secret, goes to his lying- down or his uprising, What two men whisper as they sit together, King Varuna knows: he as the third is present.
पदपाठः
यः। तिष्ठ॑ति। चर॑ति। यः। च॒। वञ्च॑ति। यः। नि॒ऽलाय॑म्। चर॑ति। यः। प्र॒ऽङ्क॑म्। द्वौ। स॒म्ऽनि॒षद्य॑। यत्। म॒न्त्रय॑ते॒। इति॑। राजा॑। तत्। वे॒द॒। वरु॑णः। तृ॒तीयः॑। १६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो पुरुष (तिष्ठति) खड़ा होता है, वा (चरति) चलता है, (च) और (यः) जो पुरुष (वञ्चति) ठगी करता है, और (यः) जो (निलायन्) भीतर घुसकर, और (यः) जो (प्रतङ्कम्) बाहिर निकलकर (चरति) काम करता है और (द्वौ) दो जने (संनिषद्य) एक साथ बैठकर (यत्) जो कुछ (मन्त्रयेते) कानाफूसी करते हैं, (तृतीयः) तीसरा (राजा) राजा (वरुणः) वरणीय वा दुष्टनिवारण वरुण परमेश्वर (तत्) उसे (वेद) जानता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर प्राणियों के गुप्त से गुप्त कर्मों को सर्वथा जानता और उनका यथावत् फल देता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यः) पुरुषः (तिष्ठति) स्थितो भवति (चरति) गच्छति (वञ्चति) प्रतारयति। वञ्चनं करोति (निलायन्) नि+ली श्लेषे द्रावणे च-शतृ। निलीनः अदृश्यः सन् (चरति) आचरति (प्रतङ्कम्) प्र+तकि कृच्छ्रजीवने-णमुल्। प्रकृष्टगमनं बहिर्गमनं प्राप्य (द्वौ) यौ पुरुषौ (संनिषद्य) सहोपविश्य (यत्) यत्किञ्चित् कार्यम् (मन्त्रयेते) मत्रि गुप्तभाषणे। रहसि गुप्तं भाषेते (राजा) ईश्वरः (सर्वम्) (वेद) वेत्ति (वरुणः) वरणीयो दुष्टानां निवारको वा (तृतीयः) त्रेः संप्रसारणं च। पा० ५।२।५५। इति त्रि-तीय, संप्रसारणं च। त्रयाणां पूरकः ॥
०३ उतेयं भूमिर्वरुणस्य
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उ॒तेयं भूमि॒र्वरु॑णस्य॒ राज्ञ॑ उ॒तासौ द्यौर्बृ॑ह॒ती दूरेअन्ता।
उ॒तो स॑मु॒द्रौ वरु॑णस्य कु॒क्षी उ॒तास्मिन्नल्प॑ उद॒के निली॑नः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒तेयं भूमि॒र्वरु॑णस्य॒ राज्ञ॑ उ॒तासौ द्यौर्बृ॑ह॒ती दूरेअन्ता।
उ॒तो स॑मु॒द्रौ वरु॑णस्य कु॒क्षी उ॒तास्मिन्नल्प॑ उद॒के निली॑नः ॥
०३ उतेयं भूमिर्वरुणस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Both this earth is king Varuṇa’s, and yonder great sky with distant
margins (-ánta); also the two oceans are Varuṇa’s paunches; also in
this petty water is he hidden.
Notes
Ppp. has, for a, b, ute ’yam asya pṛthivī samīcī dyāur bṛhatīr
antarikṣam; and, at end of d, udakena maktāḥ. The comm. declares
that the epithets in b belong to “earth” as well as to “sky”;
kukṣī he paraphrases by dakṣiṇottarapārśvabhedenā ’vasthite dve
udare.
Griffith
This earth, too, is King Varuna’s possession, and the high heaven whose ends are far asunder. The loins of Varuna are both the oceans, and this small drop of water, too, contains him.
पदपाठः
उ॒त। इ॒यम्। भूमिः॑। वरु॑णस्य। राज्ञः॑। उ॒त। अ॒सौ। द्यौः। बृ॒ह॒ती। दू॒रेऽअ॑न्ता। उ॒तो इति॑। स॒मु॒द्रौ। वरु॑णस्य। कु॒क्षी इति॑। उ॒त। अ॒स्मिन्। अल्पे॑। उ॒द॒के। निऽली॑नः। १६.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इयम् भूमिः) यह भूमि (उत) भी, (उत) और (असौ) वह (बृहती) बड़ा, (दूरे अन्ता) [पृथिवी से] दूर गतिवाला (द्यौः) प्रकाशमान सूर्य (वरुणस्य राज्ञः) वरुण राजा का है, (उतो) और भी [पृथिवी और आकाश के] (समुद्रौ) दोनों समुद्र (वरुणस्य) वरुण की (कुक्षी) दो कोखें हैं, (उत) और वह (अस्मिन्) इस (अल्पे) थोड़े से (उदके) जल में भी (निलीनः) लीन हो रहा है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वरुण परमात्मा की ईश्वरता बड़ों से बड़े और छोटों से छोटे पदार्थों में है, अर्थात् यह स्थूल और सूक्ष्म जगत् उसी के आकर्षण, धारण, संयोग, वियोग सामर्थ्य में स्थित है। उसकी उपासना करके सब मनुष्य अपनी उन्नति करें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(उत) अपि (इयम्) दृश्यमाना (भूमिः) (वरुणस्य) सर्वश्रेष्ठस्य परमेश्वरस्य (राज्ञः) ईश्वरस्य। समर्थस्य (असौ) विप्रकृष्टा (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यलोकः (बृहती) महती (दूरेअन्ता) दुरीणो लोपश्च। उ० २।२०। इति दुर्+इण् गतौ-रक्। इति दूरम्। हसिमृग्रिण्वामि०। उ० ३।८६। इति अम गतौ-तन्। अन्तो अततेः-निरु० ४।२५। पृथिव्या दूरे अन्तं गमनं यस्याः सा। (उतो) अपि च (समुद्रौ) अतरिक्षभूमिस्थौ जलधी (कुक्षी) प्लुषिकुषिशुषिभ्यः क्सिः। उ० ३।१५५। इति कुष निष्कर्षे-क्सि। उदरस्य दक्षिणवामपार्श्वौ यथा (अस्मिन्) निकटस्थे (अल्पे) अल वारणपर्य्याप्तिभूषासु-प प्रत्ययः। लेशमात्रे (उदके) जले (निलीनः) अन्तर्हितः ॥
०४ उत यो
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उ॒त यो द्याम॑ति॒सर्पा॑त्प॒रस्ता॒न्न स मु॑च्यातै॒ वरु॑णस्य॒ राज्ञः॑।
दि॒व स्पशः॒ प्र च॑रन्ती॒दम॑स्य सहस्रा॒क्षा अति॑ पश्यन्ति॒ भूमि॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒त यो द्याम॑ति॒सर्पा॑त्प॒रस्ता॒न्न स मु॑च्यातै॒ वरु॑णस्य॒ राज्ञः॑।
दि॒व स्पशः॒ प्र च॑रन्ती॒दम॑स्य सहस्रा॒क्षा अति॑ पश्यन्ति॒ भूमि॑म् ॥
०४ उत यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Also whoso should creep far off beyond the sky, he should not be
released from king Varuṇa; from the sky his spies go forth hither;
thousand-eyed, they look over the earth.
Notes
Only the second and third pādas are found in Ppp. (and, as noted above,
not in company with the main part of the hymn), which gives iha for
divas and ime ‘sya for idam asya (both in c). The
saṁhitā-mss., as usual, vary between diváḥ and divá before sp-.
The comm. has purastāt in a.
Griffith
If one should flee afar beyond the heaven, King Varuna would still be round about him. Proceeding hither from the sky his envoys look, thousand-eyed, over the earth beneath them.
पदपाठः
उ॒त। यः। द्याम्। अ॒ति॒ऽसर्पा॑त्। प॒रस्ता॑त्। न। सः। मु॒च्या॒तै॒। वरु॑णस्य। राज्ञः॑। दि॒वः। स्पशः॑। प्र। च॒र॒न्ति॒। इ॒दम्। अ॒स्य॒। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षाः। अति॑। प॒श्य॒न्ति॒। भूमि॑म्। १६.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (यः) जो [दुष्ट] (परस्तात्) दूर देश में (द्याम्) सूर्य लोक को (अतिसर्पात्) पार करके चुपके से रेंग जावे, (सः) वह पुरुष (वरुणस्य राज्ञः) वरुण राजा की (न मुच्यातै) मुक्ति न पासके। (दिवः) प्रकाशमान (अस्य) इस [वरुण] के (स्पशः) बन्धनसामर्थ्य (इदम्) इस [जगत्] में (प्र चरन्ति) चलते रहते हैं, [उनको] (सहस्राक्षाः) सहस्र प्रकार की दृष्टि वा व्यवहारवाले पुरुष (भूमिम् अति) भूमि के पार (पश्यन्ति) देखते हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चाहे कोई दुष्कर्म करके कहीं छिप जावे, तो भी वह वरुण परमेश्वर के अखण्ड दण्ड से नहीं बच सकता। वह अपनी करनी का फल इस जन्म वा परजन्म में अवश्य पाता है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(उत) अपि च (यः) दुष्टः (द्याम्) सूर्यलोकम् (अतिसर्पात्) सृप−लेट्। अतिक्रम्य सर्पेत् गुप्तं गच्छेत् (परस्तात्) दिक्शब्देभ्यः सप्तमीपञ्चमी०। पा० ५।३।२७। इति पर-अस्ताति। परिस्मन् दूरे देशे (न) नहि (सः) पुरुषः (मुच्यातै) मुचेः कर्मणि लेटि आडागमः वैतोऽन्यत्र। पा० ३।४।९६। इति ऐकारः। मुक्तिं प्राप्नुयात् (वरुणस्य) वरणीयस्य परमेश्वरस्य (राज्ञः) ईश्वरस्य (दिवः) प्रकाशमानस्य (स्पशः) स्पश बाधनस्पर्शनयोः−(क्विप्) बाधमानाः। बन्धाः। पाशाः (प्र चरन्ति) प्रकर्षेण गच्छन्ति (इदम्) दृश्यमानं जगत् (अस्य) वरुणस्य (सहस्राक्षाः) अ० ३।११।३। सहस्र+अक्षि-षच्। यद्वा। सहस्र+अक्ष। सहस्राणि बहूनि अक्षीणि दर्शनसामर्थ्यानि, अथवा, अक्षा व्यवहारा येषां ते तथाभूताः। बहुदर्शकाः बहुव्यवहारशीलाः पुरुषाः (अति) अतीत्य (पश्यन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति तान् स्पशः (भूमिम्) भूलोकम् ॥
०५ सर्वं तद्राजा
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सर्वं॒ तद्राजा॒ वरु॑णो॒ वि च॑ष्टे॒ यद॑न्त॒रा रोद॑सी॒ यत्प॒रस्ता॑त्।
संख्या॑ता अस्य नि॒मिषो॒ जना॑नाम॒क्षानि॑व श्व॒घ्नी नि मि॑नोति॒ तानि॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सर्वं॒ तद्राजा॒ वरु॑णो॒ वि च॑ष्टे॒ यद॑न्त॒रा रोद॑सी॒ यत्प॒रस्ता॑त्।
संख्या॑ता अस्य नि॒मिषो॒ जना॑नाम॒क्षानि॑व श्व॒घ्नी नि मि॑नोति॒ तानि॑ ॥
०५ सर्वं तद्राजा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- All this king Varuna beholds (vi-cakṣ)—what is between the two
firmaments (ródasī), what beyond; numbered of him are the winkings of
people; as a gambler the dice, [so] does he fix (? ni-mi) these
things.
Notes
Ppp. reads for d akṣān na śvaghnī bhuvanā mamīte, which gives a
rather more manageable sense; our text is probably corrupt (ví
cinoti?); the comm. explains ni minoti by ni kṣipati; and to the
obscure tāni (not relating to anything specified in the verse) he
supplies pāpināṁ śikṣākarmāṇi. He has again (as in 4 a) purastāt
in b; and in c he understands saṁkhyātā (not -tāḥ), as
“enumerator,” and nimiṣas as gen. with asya. He also reads in d
svaghnī, and quotes and expands Yāska’s derivation of the word from
sva + han. The verse is bhurij if we insist on reading iva instead
of ’va in d. ⌊Read ’va, or akṣā́ñ śvaghnī́va, or with Ppp.?⌋
Griffith
All this the royal Varuna beholdeth, all between heaven and earth and all beyond them. The twinklings of men’s eyelids hath he counted. As one who plays throws dice he settles all things.
पदपाठः
सर्व॑म्। तत्। राजा॑। वरु॑णः। वि। च॒ष्टे॒। यत्। अ॒न्त॒रा। रोद॑सी इति॑। यत्। प॒रस्ता॑त्। सम्ऽख्या॑ताः। अ॒स्य॒। नि॒ऽमिषः॑। जना॑नाम्। अ॒क्षान्ऽइ॑व। श्व॒ऽघ्नी। नि। मि॒नो॒ति॒। तानि॑। १६.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- भुरिक्त्रिष्टुप्
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (राजा वरुणः) राजा वरुण (तत् सर्वम्) वह सब (वि चष्टे) देखता रहता है, (यत्) जो कुछ (रोदसी अन्तरा) सूर्य और भूमि के बीच में, और (यत्) जो कुछ (परस्तात्) परे है। (जनानाम्) मनुष्यों के (निमिषः) पलक मारने (अस्य) इस [वरुण] के (संख्याताः) गिने हुए हैं, वह (तानि) हिंसा कर्मों को (नि मिनोति) गिरा देता है (श्वघ्नी इव) जैसे धन हारनेवाला जुआरी (अक्षान्) पासों को [गिरा देता है] ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वरुण सर्वज्ञ सर्वनियन्ता है, वह दुष्टों को दण्ड देकर ऐसे गिरा देता है, जैसे हारा जुआरी निर्धन होकर क्रोध से पांसे आदि पटक देता है। यहाँ गिराने मात्र में दृष्टान्त है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(सर्वम् तत्) सकलं वृत्तम् (राजा वरुणः) समर्थः परमेश्वरः (विचष्टे) अ० ४।११।२। विशेषेण पश्यति (यत्) (रोदसी अन्तरा) द्यावापृथिव्योर्मध्ये (परस्तात्) म० ४। दूरदेशे (संख्याताः) परिगणिताः (अस्य) वरुणस्य (निमिषः) मिष स्पर्धायाम्-क्विप्। निमेषाः। चक्षुषः स्पन्दनकालाः। (जनानाम्) प्राणिनाम् (अक्षान्) अशेर्देवने। उ० ३।६५। इति अशू व्याप्तौ-स। द्यूतसाधनानि (इव) यथा (श्वघ्नी) कर्मणि हनः। पा० ३।२।७६ इति। स्व+हन-णिनि। सस्य शः। श्वघ्नी कितवो भवति, स्वं हन्ति स्वं पुनराश्रितं भवति-निरु० ५।२२। स्वहा, स्वघाती। धननाशकः। द्यूतकारकः (निमिनोति) डुमिञ् प्रक्षेपणे। नीचैः क्षिपति (तानि) तर्द हिंसे-ड। तर्दनानि। हिंसनानि ॥
०६ ये ते
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ये ते॒ पाशा॑ वरुण स॒प्तस॑प्त त्रे॒धा तिष्ठ॑न्ति॒ विषि॑ता॒ रुष॑न्तः।
छि॒नन्तु॒ सर्वे॒ अनृ॑तं॒ वद॑न्तं॒ यः स॑त्यवा॒द्यति॒ तं सृ॑जन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ये ते॒ पाशा॑ वरुण स॒प्तस॑प्त त्रे॒धा तिष्ठ॑न्ति॒ विषि॑ता॒ रुष॑न्तः।
छि॒नन्तु॒ सर्वे॒ अनृ॑तं॒ वद॑न्तं॒ यः स॑त्यवा॒द्यति॒ तं सृ॑जन्तु ॥
०६ ये ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What fetters (pā́śa) of thine, O Varuṇa, seven by seven, stand
triply relaxed (vi-si), shining—let them all bind him that speaks
untruth; whoso is truth-speaking, let them let him go.
Notes
Our sinántu, at beginning of c, is our emendation, obviously
necessary; a few mss. (including our Bp.E.H.) have śinántu, and the
rest chin- (our P.M. dhin-, doubtless meant for chin-), which
SPP. accordingly retains; the comm. has chinattu, explaining it as for
chindantu. Ppp’s version of the verse is found with that of the half
of vs. 4; it reads chinadya; it also has saptasaptatīs in a, and
ruṣatā ruṣantaḥ at end of b; and its d is yas sabhyavāg ati
taṁ sṛjāmi. The comm. also reads in b ruṣantas, which is, as at
iii. 28. 1, an acceptable substitute for the inept ruś-; in b he
apparently has visitās, and takes it as tatra tatra baddhās, while
the true sense obviously is “laid open ready for use”; the “triply” he
regards as alluding to the three kinds of fetter specified in vii. 83. 3
a, b.
Griffith
Those fatal snares of thine which stand extended, threefold, O Varuna, seven by seven, May they all catch the man who tells a falsehood, and pass un- harmed the man whose words are truthful.
पदपाठः
ये। ते॒। पाशाः॑। व॒रु॒ण॒। स॒प्तऽस॑प्त। त्रे॒धा। तिष्ठ॑न्ति। विऽसि॑ताः। रुश॑न्तः। छि॒नन्तु॑। सर्वे॑। अनृ॑तम्। वद॑न्तम्। यः। स॒त्य॒ऽवा॒दी। अति॑। तम्। सृ॒ज॒न्तु॒। १६.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वरुण) हे दुष्टनिवारक परमेश्वर ! (सप्तसप्त= सप्तसप्ताः) सात धाम [पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, विराट् अर्थात् स्थूल जगत्, परमाणु और प्रकृति] से सम्बन्धवाले, (त्रेधा) तीन प्रकार से [भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान काल में] (विषिताः) फैले हुए (रुशन्तः) [दुष्टों वा दोषों को] नाश करते हुए (ये) जो (ते) तेरे (पाशाः) फाँस वा जाल (तिष्ठन्ति) स्थित हैं। (सर्वे) वे सब [फाँस] (अनृतं वदन्तम्) मिथ्या बोलनेवाले को (छिनन्तु) छिन्न-भिन्न करें, और (यः) जो (सत्यवादी) सत्यवादी है (तम्) उसको (अति) सत्कार पूर्वक (सृजन्तु) छोड़ें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वह परमात्मा प्रत्येक वस्तु और काल में व्यापक होकर दुष्टों को यथावत् दण्ड और शिष्टों को यथावत् आनन्द देता है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(ये) ते तव (पाशाः) अ० १।३१।२। बन्धनानि (वरुण) परमेश्वर (सप्तसप्त) सप्यशूभ्यां तुट् च। उ० १।१५७। इति षप समवाये-कनिन् तुट् च। षप-क्त। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति विभक्तेर्लुक् मध्यपदलोपश्च। सप्तसप्ताः। सप्तधामभिः पृथिवीजलाग्निवायुविराट्परमाणुप्रकृतिभिः संवेताः संवृद्धाः-यथा [पृथिव्याः सप्त धामभिः] ऋ० १।२२।१६। इत्यत्र दयानन्दभाष्ये (त्रेधा) त्रिप्रकारं भूतभविष्यद्वर्तमानकालेषु (तिष्ठन्ति) वर्त्तन्ते (विषिताः) षिञ् बन्धने-क्त। विविधं बद्धाः। विस्तृताः (रुशन्तः) दुष्टान् दोषान् वा हिंसन्तः (छिनन्तु) छिन्दन्तु (सर्वे) पाशाः (अनृतम्) असत्यम् (वदन्तम्) कथयन्तम् (यः) (सत्यवादी) सत्यवक्ता (तम्) (अति) अत सातत्यगमने-इन्। पूजायाम्। उत्कर्षे। (सृजन्तु) त्यजन्तु मुञ्चन्तु ॥
०७ शतेन पाशैरभि
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श॒तेन॒ पाशै॑र॒भि धे॑हि वरुणैनं॒ मा ते॑ मोच्यनृत॒वाङ्नृ॑चक्षः।
आस्तां॑ जा॒ल्म उ॒दरं॑ श्रंसयि॒त्वा कोश॑ इवाब॒न्धः प॑रिकृ॒त्यमा॑नः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
श॒तेन॒ पाशै॑र॒भि धे॑हि वरुणैनं॒ मा ते॑ मोच्यनृत॒वाङ्नृ॑चक्षः।
आस्तां॑ जा॒ल्म उ॒दरं॑ श्रंसयि॒त्वा कोश॑ इवाब॒न्धः प॑रिकृ॒त्यमा॑नः ॥
०७ शतेन पाशैरभि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With a hundred fetters, O Varuṇa, do thou bridle (abhi-dhā) him;
let not the speaker of untruth escape thee, O men-watcher; let the
villain sit letting his belly fall [apart], like a hoopless vessel,
being cut round about.
Notes
The two editions read in c śraṅśayitvā́, with the majority of the
mss.; but nearly half (including our P.M.W.H.Op.) have śraṅsay-, and
two of ours (K.Kp.) sraṅśay all of them misreadings for sraṅsay-,
which the comm. gives (= jalodararogeṇa srastaṁ kṛtvā). ⌊The disease
called “water-belly,” to which c and d refer, is dropsy,
Varuṇa’s punishment for sin.⌋ In d, SPP. reads abandhás with the
comm., but against all his mss. and the majority of ours
(P.p.m.M.W.O.Op. have -dhas), which have -dhrás; bandhra (i.e.
banddhra, from bandh + tra) is so regular a formation that we have
no right to reject it, even if it does not occur elsewhere. Ppp. puts
varuṇa in a before abhi, omitting enam, thus rectifying the
meter (which might also be done by omitting the superfluous varuṇa)
and it omits the n̄ of -vān̄ in b. There is not a jagatī pāda in
the verse, and d becomes regularly triṣṭubh by combining kóśe
’vā-.
Griffith
Varuna, snare him with a hundred nooses! Man’s watcher! let not him who lies escape thee. There let the villain sit with hanging belly and bandaged like a cask whose hoops are broken.
पदपाठः
श॒तेन॑। पाशैः॑। अ॒भि। धे॒हि॒। व॒रु॒ण॒। ए॒न॒म्। मा। ते॒। मो॒चि॒। अ॒नृ॒त॒ऽवाक्। नृ॒ऽच॒क्षः॒। आस्ता॑म्। जा॒ल्मः। उ॒दर॑म्। श्रं॒श॒यि॒त्वा। कोशः॑ऽइव। अ॒ब॒न्धः। प॒रि॒ऽकृ॒त्यमा॑नः। १६.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वरुण) हे दुष्टनिवारक परमेश्वर ! (शतेन) सौ (पाशैः) फाँसों से (एनम्) इस [मिथ्यावादी] को (अभि धेहि) बाँध ले, (नृचक्षः) हे मनुष्यों के देखनेवाले ! (अनृतवाक्) मिथ्यावादी पुरुष (ते) तेरी (मा मोचि) मुक्ति न पावे। (जाल्मः) नीच अन्यायी (उदरम्) युद्ध कर्म को (श्रंसयित्वा= स्रंसयित्वा) नीचे गिराकर (परिकृत्यमानः) कटी हुई, (अबन्धः) अपने से छुटी (कोशः इव) फूल की कली के समान (आस्ताम्) बैठा रहे ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सर्वशक्तिमान् परमेश्वर के दण्ड से कोई मिथ्यावादी नहीं छूट सकता, और अधर्मी दुष्ट धर्मात्माओं के सन्मुख ऐसा गिर जाता है, जैसे फूल की अधखिली कली अधिक पवन आदि के कारण गिरकर कुम्हला जाती है ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(शतेन) बहुभिः (पाशैः) दण्डबन्धनैः (अभि धेहि) अभिपूर्वो दधातिर्बन्धने। बधान (वरुण) हे दुष्टनिवारक (एनम्) अनृतवादिनम् (ते) तव (मा मोचि) मुक्तिं न प्राप्नुयात् (अनृतवाक्) मिथ्यावादी (नृचक्षः) चक्षेर्बहुलं शिच्च। उ० ४।२३३। नृ+चक्षिङ्दर्शने-असुन्। हे नृणां मनुष्याणां साध्वसाधुचरित्राणां द्रष्टः (आस्ताम्) तिष्ठतु (जाल्मः) जल अपवारणे-म प्रत्ययः। जालयति दूरी करोति हितज्ञानमिति। पामरः। क्रूरः (उदरम्) उदि दृणातेरलचौ पूर्वपदान्त्यलोपश्च। उ० ५।१९। इति उद्+दॄ विदारे-अच्। उदो दस्य लोपः। उद्विदारणं युद्धम् (श्रंसयित्वा) स्रंसु अवस्रंसने=अधः पतने णिचि क्त्वा, सकारस्य शकारः। स्रंसयित्वा। अधः पातयित्वा (कोशः) कुश संश्लेषे-घञ्। कोशोऽस्त्री कुड्मले, इत्यमरः−२३।२१८। कुड्मलः। विकाशोन्मुखकलिका (इव) यथा (अबन्धः) बन्धेन शाखासंयोगतन्तुना विश्लिष्टः (परिकृत्यमानः) कृती छेदने-कर्मणि यक्, शानच्, मुक् च। परिच्छिद्यमानः ॥
०८ यः समाम्यो
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यः स॑मा॒म्यो॒३॒॑ वरु॑णो॒ यो व्या॒म्यो॒३॒॑ यः सं॑दे॒श्यो॒३॒॑ वरु॑णो॒ यो वि॑दे॒श्यः।
यो दै॒वो वरु॑णो॒ यश्च॒ मानु॑षः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यः स॑मा॒म्यो॒३॒॑ वरु॑णो॒ यो व्या॒म्यो॒३॒॑ यः सं॑दे॒श्यो॒३॒॑ वरु॑णो॒ यो वि॑दे॒श्यः।
यो दै॒वो वरु॑णो॒ यश्च॒ मानु॑षः ॥
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Whitney
Translation
- The Varuṇa that is lengthwise (samāmyà), that is crosswise
(vyāmyà); the Varuṇa that is of the same region (saṁdeśyà), that is
of a different region (videśyà); the Varuṇa that is of the gods, and
that is of men—
Notes
If the word váruṇas, thrice repeated, were left out, there would
remain a regular gāyatrī; and the meaning would be greatly improved
also; if we retain it, we must either emend to varuṇa, vocative, or to
vāruṇás ‘of Váruṇa,’ i.e. ‘his fetter,’ or else we must understand
váruṇas as here strangely used in the sense of vāruṇás: the comm.
makes no difficulty of doing the last. ⌊Ppp. reads in a, yas
sāmānyo; in b, yaś śyaṁdeśyo (or cyaṁ-); in c, yo dāivyo
varuṇo yaś ca mānuṣassa; and adds tvāṅs tv etāni prati muñcāmy atra.⌋
For the first two epithets compare xviii. 4. 70; the next two are
variously understood by the translators; they are rendered here in
accordance with the comm. Though so differently defined by the Anukr.
⌊cf. ii. 3. 6 n.⌋, the verse as it stands is the same with vs. 9, namely
11 × 3 = 33 syllables.
Griffith
Varuna sends, and drives away, diseases: Varuna is both native and a stranger, Varuna is celestial and is human.
पदपाठः
यः। स॒म्ऽआ॒भ्यः᳡। वरु॑णः। यः। वि॒ऽआ॒भ्यः᳡। यः। स॒म्ऽदे॒श्यः᳡। वरु॑णः। यः। वि॒ऽदे॒श्यः᳡। यः। दै॒वः। वरु॑णः। यः। च॒। मानु॑षः। १६.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- त्रिपान्महाबृहती
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वरुणः) वरुण परमेश्वर (यः) व्यापक, (समाम्यः) समान सेवनीय, (यः) सर्वनियन्ता और (व्याम्यः) पीड़ारहित है, (वरुणः) वरुण ही (यः) यत्नशील, (संदेश्यः) समानदेशीय, (यः) संयोग और वियोग करनेवाला, (विदेश्यः) विदेशीय है। (वरुणः) वरुण ही (यः) पूजनीय, (दैवः) दिव्य गुणवालों में वर्त्तमान, (च) और (यः) दाता, और (मानुषः) मननशील मनुष्यों में वर्त्तमान है ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वान्तर्यामी परमेश्वर की महिमा भले प्रकार जान कर अपने आत्मा की उन्नति करें ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(यः) या गतौ-ड। व्यापकः (समाम्यः) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति सम्+अम गतौ−भजने च-ण्यत्। सम्यग् आम्यो भजनीयः सेवनीयः (वरुणः) वरणीयः सर्वश्रेष्ठः (यः) यम-ड। नियन्ता (व्याम्यः) वि+अम पीडने-भावे ण्यत्। विगतम् आम्यं पीडनं यस्मात् सः। पीडारहितः। आनन्दस्वरूपः (यः) यती यत्ने-ड। यत्नशीलः (संदेश्यः) दिगादिभ्यो यत्। पा० ४।३।५४। इति देश-यत्। समानदेशे भवः (यः) यु मिश्रणामिश्रणयोः-ड। यविता संयोक्ता वियोक्ता च (विदेश्यः) पूर्ववद्-यत्। विदेशे भवः (यः) यज देवपूजने-ड। पूजनीयः (दैवः) देवाद् यञञौ। वा० पा० ४।१।८५। इति देव-अञ्। देवेषु दिव्यगुणवत्सु भवः (यः) यज दाने-ड। दाता (च) समुच्चये (मानुषः) अ० ४।१४।५। मनुष्येषु मननशीलेषु भवः ॥
०९ तैस्त्वा सर्वैरभि
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तैस्त्वा॒ सर्वै॑र॒भि ष्या॑मि॒ पाशै॑रसावामुष्यायणामुष्याः पुत्र।
तानु॑ ते॒ सर्वा॑ननु॒संदि॑शामि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तैस्त्वा॒ सर्वै॑र॒भि ष्या॑मि॒ पाशै॑रसावामुष्यायणामुष्याः पुत्र।
तानु॑ ते॒ सर्वा॑ननु॒संदि॑शामि ॥
०९ तैस्त्वा सर्वैरभि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With all those fetters I fasten (abhi-sā) thee, O so-and-so, of
such-and-such a family, son of such-and-such a mother; and all of them I
successively appoint for thee.
Notes
If the verse is regarded as metrical, with three pādas (and it scans
very fairly as such), we ought to accent ásāu ⌊voc. of asāú⌋ at
beginning of b. The comm. perhaps understands anu in c as
independent, ánu (SPP. so holds). The last two verses are, as it were,
the practical application of vss. 6 and 7, and probably added later. ⌊As
to the naming of the names, see Weber’s note, p. 73.⌋
Griffith
I bind and hold thee fast with all these nooses, thou son of such a man and such a mother. All these do I assign thee as thy portion.
पदपाठः
तैः। त्वा॒। सर्वैः॑। अ॒भि। स्या॒मि॒। पाशैः॑। अ॒सौ॒। आ॒मु॒ष्या॒य॒ण॒। अ॒मु॒ष्याः॒। पु॒त्र॒। तान्। ऊं॒ इति॑। ते॒। सर्वा॑न्। अ॒नु॒ऽसंदि॑शामि। १६.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वरुणः
- ब्रह्मा
- त्रिपान्महाबृहती
- सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (असौ= असौ त्वम्) वह तू (आमुष्यायण) हे अमुक पिता के पुत्र ! और (अमुष्याः पुत्र) हे अमुक माता के पुत्र ! (त्वा) तुझको (तैः सर्वैः) उन सब (पाशैः) नियम बन्धनों से (अभि ष्यामि) मैं [वरुण] बाँधता हूँ, और (तान् सर्वान्) उन सबों को (उ) अवश्य (ते) तेरे लिये (अनुसंदिशामि) समीप से समझाता हूँ ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने वेद द्वारा स्पष्ट दिखा दिया है कि सत्कर्म सुख के और दुष्कर्म दुःख के मूल हैं। इस लिये मनुष्य दुष्कर्मों को छोड़कर सत्कर्म करके आनन्द भोगें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(तैः) सुप्रसिद्धैः (त्वा) त्वां मनुष्यम् (सर्वैः) (अभि ष्यामि) अभिपूर्वः षो बन्धने। बध्नामि, अहं वरुणः (पाशैः) बन्धैः (असौ) स त्वम् (आमुष्यायण) अमुष्य, अदस् इत्यस्य षष्ठी, फक्, षष्ठ्या अलुक्। हे अमुष्य−पुरुषस्य पुत्र। हे प्रख्यातकुलोद्भव (अमुष्याः) स्त्रियाम् अदस्-षष्ठी। अमुकजनन्याः (पुत्र) (तान्) (सर्वान्) पाशान् (उ) अवश्यम् (ते) तुभ्यम् (अनुसंदिशामि) दिश दाने आज्ञापने। अनु सामीप्येन विज्ञापयामि निरूपयामि ॥