०१३ रोगनिवारणम् ...{Loading}...
Whitney subject
- For healing.
VH anukramaṇī
रोगनिवारणम्
१-७ शंतातिः। चन्द्रमाः, विश्वे देवाः, १ देवाः, २-३ वातः, ४ मरुतः, ६-७ हस्तः। अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[śaṁtāti.—cāndramasam uta vāiśvadevam. ānuṣṭubham.]
Whitney
Comment
Found in Pāipp. v. (in the verse-order 1, 5, 2-4, 6, 7). Vss. 1-5, 7 are in RV. x. 137, and vs. 6 occurs elsewhere in RV. x. Only vss. 1-3 have representatives in Yajur-Veda texts. The hymn is called śaṁtātīya in Kāuś. (9. 4), in the list of the laghuśānti gaṇa hymns; and our comm. to i. 4 counts it also to the bṛhachānti gaṇa (reading in Kāuś. 9. 1 uta devās for the tad eva of the edited text), but he makes no mention of it here; he further declares it to belong among the aṅholin̄gās (for which see Kāuś. 32. 27, note); the schol., on the other hand, put it in the āyuṣyagaṇa (54. 11, note). It is used (58. 3, 11) in the ceremonies for long life that follow the initiation of a Vedic student. In Vāit. (38. 1) it appears, with ii. 33 and iii. 11 etc., in a healing ceremony for a sacrificer ⌊see comm.⌋ who falls ill.
Translations
Translated: by the RV. translators; and Aufrecht, ZDMG. xxiv. 203; Griffith, i. 147; Weber, xviii. 48.—See Lanman’s Reader, p. 390.
Griffith
A charm to restore a sick man to health
०१ उत देवा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उ॒त दे॑वा॒ अव॑हितं॒ देवा॒ उन्न॑यथा॒ पुनः॑।
उ॒ताग॑श्च॒क्रुषं॑ देवा॒ देवा॑ जी॒वय॑था॒ पुनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒त दे॑वा॒ अव॑हितं॒ देवा॒ उन्न॑यथा॒ पुनः॑।
उ॒ताग॑श्च॒क्रुषं॑ देवा॒ देवा॑ जी॒वय॑था॒ पुनः॑ ॥
०१ उत देवा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Both, O ye gods, him that is put down, O ye gods, ye lead up again,
and him that hath done evil (ā́gas), O ye gods, O ye gods, ye make to
live again.
Notes
Found without variant as RV. x. 137. 1, and also in MS. (iv. 14. 2.) But
Ppp. reads uddharatā for ún nayathā in b, and its second
half-verse is tato manuṣyaṁ taṁ devā devăṣ kṛṇuta jīvase. The comm.
explains avahitam as dharmaviṣaye sāvadhānam, apramattam, or
alternatively, avasthāpitam; supplying to it kuruta, and making of
b an independent sentence, with double interpretation; and he says
something in excuse of the four-fold repetition of the vocative.
Griffith
Gods, raise again the man whom ye, O Gods, have humbled and brought low. Ye Gods, restore to life again, him, Gods! who hath committed sin.
पदपाठः
उ॒त। दे॒वाः॒। अव॑ऽहितम्। देवाः॑। उत्। न॒य॒थ॒। पुनः॑। उ॒त। आगः॑। च॒क्रुष॑म्। दे॒वाः॒। देवाः॑। जी॒वय॑था। पुनः॑। १३.1।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः, विश्वे देवाः
- शन्तातिः
- अनुष्टुप्
- रोग निवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे व्यवहारकुशल (देवाः) विद्वान् लोगो ! (अवहितम्) अधोगत पुरुष को (उत) अवश्य (पुनः) फिर (उन्नयथ) तुम उठाते हो। (उत) और भी, (देवाः) हे दानशील (देवाः) महात्माओ ! (आगः) अपराध (चक्रुषम्) करनेवाले प्राणी को (पुनः) फिर (जीवयथ) तुम जिलाते हो ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - महात्मा लोग स्वभाव से ही अधोगत पुरुषों को ऊँचा करते और मृतकसमान अपराधियों को पाप से छुड़ा कर उनका जीवन सुफल कराते हैं। मनुष्य सत्पुरुषों के सत्सङ्ग से अपने आत्मिक और शारीरिक दोषों को त्याग कर जीवन सुधारें ॥१॥ इस सूक्त के मन्त्र १-५, ७ ऋग्वेद १०।१३७ के म० १-५, ७ कुछ भेद से हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(उत) निश्चयेन (देवाः) हे व्यवहारकुशलाः (अव हितम्) अव परिभवे+धाञ्-क्त। अधोधृतम्। अवनीतं पुरुषम् (देवाः) दिव्यगुणवन्तो विद्वांसः (उन्नयथ) उन्नतं कुरुथ (पुनः) (उत) अपि च (आगः) इण आगोऽपराधे च। उ० ४।२१२। इति इण् गतौ-असुन्, आगादेशः। अपराधम् (चक्रुषम्) करोतेर्लिटः क्वसुः। अमि भत्वाभावेऽपि छान्दसं वसोः संप्रसारणम्। चकृवांसम्। कृतवन्तं पुरुषम् (देवाः) हे दानशीलाः (देवाः) महात्मानः (जीवयथ) जीवनवन्तं कुरुथ ॥
०२ द्वाविमौ वातौ
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द्वावि॒मौ वातौ॑ वात॒ आ सिन्धो॒रा प॑रा॒वतः॑।
दक्षं॑ ते अ॒न्य आ॒वातु॒ व्य॒न्यो वा॑तु॒ यद्रपः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द्वावि॒मौ वातौ॑ वात॒ आ सिन्धो॒रा प॑रा॒वतः॑।
दक्षं॑ ते अ॒न्य आ॒वातु॒ व्य॒न्यो वा॑तु॒ यद्रपः॑ ॥
०२ द्वाविमौ वातौ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- These two winds blow from the river as far as the distance; let the
one blow hither dexterity for thee; let the other blow away what
complaint (rápas) [thou hast].
Notes
Besides RV. (vs. 2), TB. (ii. 4. 1⁷) and TA. (iv. 42. 1, vs. 6) have
this verse. Both accent in c āvā́tu, as does SPP’s text, and as
ours ought to do, since all the mss. so read, and the accent is fully
justified as an antithetical one; our text was altered to agree with the
ā́ vātu of RV., which is less observant of the antithetical accent than
AV., as both alike are far less observant of it than the Brāhmaṇas. All
the three other texts have párā for ví at beginning of d; and TB.TA.
give me instead of te in c. The second pāda is translated in
attempted adaptation to the third and fourth; of course, the two
ablatives with a might properly be rendered coordinately, and either
‘hither from’ or ‘hence as far as’; the comm. takes both in the latter
sense.
Griffith
Here these two winds are blowing far as Sindhu from a distant land. May one breathe energy to thee, the other blow thy fault away.
पदपाठः
द्वौ। इ॒मौ। वातौ॑। वा॒तः॒। आ। सिन्धोः॑। आ। प॒रा॒ऽवतः॑। दक्ष॑म्। ते॒। अ॒न्यः। आ॒ऽवातु॑। वि। अ॒न्यः। वा॒तु॒। यत्। रपः॑। १३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः, विश्वे देवाः
- शन्तातिः
- अनुष्टुप्
- रोग निवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इमौ) यह (द्वौ) दोनों (वातौ) पवन, अर्थात् प्राण और अपान वायु (आसिन्धोः) बहनेवाले इन्द्रियदेश तक और (आ परावतः) बाहिर दूर स्थान तक (वातः) चलते रहते हैं। (अन्यः) एक [प्राण वायु] (ते) तेरा (दक्षम्) वृद्धि करनेवाले बल को (आवातु) बह कर लावे और (अन्यः) दूसरा [अपना वायु] (यत् रपः) जो दोष है उसे (विवातु) बहकर निकाल देवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य शुद्ध स्थान में शुद्ध वायु के सेवन से प्राण वायु के सञ्चार द्वारा शरीर का बल बढ़ाकर और अपान से पसीना आदि मल दोष नाश करके स्वस्थ रहें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(द्वौ) दृश्यमानौ (वातौ) पवनौ। प्राणापानौ (वातः) वां गतिगन्धनयोः। गच्छतः संचरतः (आसिन्धोः) मर्यादायामाकारः। स्यन्दनशीलनाडीदेशपर्यन्तम् (आ परावतः) शरीराद् बाह्यदेशपर्यन्तम् (दक्षम्) दक्ष वृद्धौ-अव वृद्धिकरं बलम् (ते) तव (अन्यः) एकः प्राणवायुः (आवातु) आगमयतु, (अन्यः) द्वितीयोऽपानवायुः (विवातु) विगमयतु। निवारयतु (यत्) (रपः) रप कथने-असुन्। रपो रिप्रमिति पापनामनी भवतः-निरु० ४।२१। पापं दोषम् ॥
०३ आ वात
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आ वा॑त वाहि भेष॒जं वि वा॑त वाहि॒ यद्रपः॑।
त्वं हि वि॑श्वभेषज दे॒वानां॑ दू॒त ईय॑से ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ वा॑त वाहि भेष॒जं वि वा॑त वाहि॒ यद्रपः॑।
त्वं हि वि॑श्वभेषज दे॒वानां॑ दू॒त ईय॑से ॥
०३ आ वात ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Hither, O wind, blow healing; away, O wind, blow what complaint
[there is]; for thou, all-healing one, goest [as] messenger of the
gods.
Notes
TB.TA. (as above) put this verse before the one that precedes it here
and in RV. All the three read in c viśvábheṣajas, and Ppp. intends
to agree with them (-bhejajo de-). The comm. offers an alternative
explanation of devānām in which it is understood as = indriyāṇām
’the senses.’ ⌊Von Schroeder gives a, b, Tübinger Kaṭha-hss., p.
115.⌋
Griffith
Hither, O Wind, blow healing balm, blow every fault away, thou Wind! For thou who hast all medicine comest as envoy of the Gods.
पदपाठः
आ। वा॒त॒। वा॒हि॒। भे॒ष॒जम्। वि। वा॒त॒। वा॒हि॒। यत्। रपः॑। त्वम्। हि। वि॒श्व॒ऽभे॒ष॒ज॒। दे॒वाना॑म्। दू॒तः। ईय॑से। १३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः, विश्वे देवाः
- शन्तातिः
- अनुष्टुप्
- रोग निवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वात) हे वायु ! (भेषजम्) स्वास्थ्य को (आ वाहि) वह कर ला और, (वात) हे वायु (यत् रपः= यत् रपः तत्) जो दोष है उसे (विवाहि) बह कर निकाल दे (हि) क्योंकि (विश्वभेषज) हे सर्वरोगनाशक वायु ! (त्वम्) तू (देवानाम्) इन्द्रियों, विद्वानों और सूर्यादि लोकों के बीच (दूतः) चलनेवाला वा दूत [समान सन्देश पहुँचानेवाला] होकर (ईयसे) फिरता रहता है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वायु के संचार से शरीर का मल निकल कर स्वास्थ्य मिलता है और तार, विमान, ताप, वृष्टि आदि का संचार होता है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(वात) हे वायो ! (आ वाहि) आवह। आगमय (भेषजम्) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इथि भिषज्-अण्। निपातनाद् गुणः। भिषजो वैद्यस्येदम्। स्वास्थ्यम्। (वि वाहि) विगमय। विनाशय (यत्) यत्किञ्चित् (रपः) पापम्। दोषः (हि) यस्मात् कारणात् (विश्वभेषज) भेषं भयं जयतीति। जि-ड। सर्वव्याधिनिवर्तक वायो ! (देवानाम्) इन्द्रियाणां विदुषां सूर्यादीनां च मध्ये (दूतः) दुतनिभ्यां दीर्घश्च। उ० ३।९०। इति दु गतौ उपतापे वा-कर्त्तरि क्त। गन्ता। यद्वा दूतवत्सन्देशहरः (ईयसे) ईङ् गतौ−श्यन्। संचरसि ॥
०४ त्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्ताम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्राय॑न्तामि॒मं दे॒वास्त्राय॑न्तां म॒रुतां॑ ग॒णाः।
त्राय॑न्तां॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ यथा॒यम॑र॒पा अस॑त् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्राय॑न्तामि॒मं दे॒वास्त्राय॑न्तां म॒रुतां॑ ग॒णाः।
त्राय॑न्तां॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ यथा॒यम॑र॒पा अस॑त् ॥
०४ त्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्ताम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let the gods rescue this man, let the troops of Maruts rescue, let
all beings rescue, that this man may be free from complaints.
Notes
In RV., this verse and the following one change places. In a, RV.
reads ihá for imám, and in b the sing. trā́yatām…gaṇáḥ. Ppp.
ends b with maruto gaṇāiḥ, and d with agado ‘sati. The first
pāda is defective unless we make a harsh resolution of a long ā. We
had d above as i. 22. 2 c.
Griffith
May the Gods keep and save this man, the Maruts’ host deliver him. All things that be deliver him that he be freed from his offence.
पदपाठः
त्राय॑न्ताम्। इ॒मम्। दे॒वाः। त्राय॑न्ताम्। म॒रुता॑म्। ग॒णाः। त्राय॑न्ताम्। विश्वा॑। भू॒तानि॑। यथा॑। अ॒यम्। अ॒र॒पाः। अस॑त्। १३.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः, विश्वे देवाः
- शन्तातिः
- अनुष्टुप्
- रोग निवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) इन्द्रियाँ (इमम्) इस [जीव] की (त्रायन्ताम्) रक्षा करें, और (मरुताम्) पवनों [श्वासप्रश्वासों] के (गणाः) प्रवाह (त्रायन्ताम्) रक्षा करें। और (विश्वा=०-नि) सब (भूतानि) पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश, पाँच तत्त्व (त्रायन्ताम्) रक्षा करें, (यथा) जिससे (अयम्) यह [प्राणी] (अरपाः) दोषरहित (असत्) रहे ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य इन्द्रियों के शोधन और श्वास प्रश्वास के यथावत् प्राणायाम से पञ्च भूतों को सम रख कर सदा हृष्ट पुष्ट रहें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(त्रायन्ताम्) रक्षन्तु (इमम्) प्राणिनम् (देवाः) इन्द्रियाणि (मरुताम्) वायूनां श्वासप्रश्वासानाम् (गणाः) समूहाः। प्रवाहाः (विश्वा) विश्वानि सर्वाणि (भूतानि) पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशानि (यथा) येन प्रकारेण (अयम्) देहस्थो जीवः (अरपाः) न विद्यन्ते रपांसि पापानि यस्मिन्निति बहुव्रीहौ। नञ्सुभ्याम्। पा० ६।२।१७२। इति उत्तरपदान्तोदात्तः। अपापः। निर्दोषः (असत्) लोट्। भवेत् ॥
०५ आ त्वागमम्
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आ त्वा॑गमं॒ शंता॑तिभि॒रथो॑ अरि॒ष्टता॑तिभिः।
दक्षं॑ त उ॒ग्रमाभा॑रिषं॒ परा॒ यक्ष्मं॑ सुवामि ते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ त्वा॑गमं॒ शंता॑तिभि॒रथो॑ अरि॒ष्टता॑तिभिः।
दक्षं॑ त उ॒ग्रमाभा॑रिषं॒ परा॒ यक्ष्मं॑ सुवामि ते ॥
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Whitney
Translation
- I have come unto thee with wealfulnesses, likewise with
uninjurednesses; I have brought for thee formidable dexterity; I drive
(sū) away for thee the yákṣma.
Notes
The RV. text has in c te bhadrám ā́ ’bhārṣam; both editions give
the false form ā́ ’bhāriṣam, because this time all the mss. (except our
E.p.m.) chance to read it; in such cases they are usually divided
between the two forms, and we need not have scrupled to emend here; the
comm. has -rṣam. Ppp. reads in c te bhadram āriṣaṁ, and, for
d, parā suvāmy ānuyat.
Griffith
I am come nigh to thee with balms to give thee rest and keep thee safe. I bring thee mighty strength, I drive thy wasting malady away.
पदपाठः
आ। त्वा॒। अ॒ग॒म॒म्। शंता॑तिऽभिः। अथो॒ इति॑। अ॒रि॒ष्टता॑तिऽभिः। दक्ष॑म्। ते॒। उ॒ग्रम्। आ। अ॒भा॒रि॒ष॒म्। परा॑। यक्ष्म॑म्। सु॒वा॒मि॒। ते॒। १३.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः, विश्वे देवाः
- शन्तातिः
- अनुष्टुप्
- रोग निवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे प्राणी !] (त्वा) तुझको (शन्तातिभिः) शान्तिदायक कर्मों से (अथो) और भी (अरिष्टतातिभिः) अहिंसाकारक कर्मों से (आगमम्) मैं प्राप्त हुआ हूँ। (ते) तेरे लिये (उग्रम्) उग्र (दक्षम्) वृद्धिकारक बल (आ अभारिषम्) मैं लाया हूँ, [उससे] (ते) तेरे (यक्ष्मम्) महारोग को (परा सुवामि) दूर हटाता हूँ ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य श्वास-प्रश्वास और पञ्च भूतों की यथावत् समता और ब्रह्मचर्य आदि शुभ कर्मों द्वारा दुष्कर्मों से बच कर बलवान् धनवान् और नीरोग होवे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(त्वा) त्वां प्राणिनम् (आगमम्) गमेर्लुङि रूपम्। आगतवान् प्राप्तवानस्मि (शंतातिभिः) शिवशमरिष्टस्य करे। पा० ४।४।१४३। इति करणेऽर्थे तातिल् प्रत्ययः। लिति। पा० ६।१।१९३। इति प्रत्ययपूर्व उदात्तः। शंकरैः सुखकरैः कर्मभिः (अथो) अपि च (अरिष्टतातिभिः) पूर्ववत् तातिल्, उदात्तत्वं च। अरिष्टम् अहिंसा। तत्करैः श्रेयोहेतुभिः कर्मभिः (दक्षम्) वृद्धिकरं बलम् (ते) तुभ्यम् (उग्रम्) उद्गूर्णम्। तीव्रम् (आ अभारिषम्) हस्य भकारः। आहार्षम्। आहृतवानस्मि। आनैषम् (यक्ष्मम्) महारोगम् (परा सुवामि) षू प्रेरणे, तौदादिकः। पराङ्मुखं प्रेरयामि (ते) तव ॥
०६ अयं मे
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अ॒यं मे॒ हस्तो॒ भग॑वान॒यं मे॒ भग॑वत्तरः।
अ॒यं मे॑ वि॒श्वभे॑षजो॒ऽयं शि॒वाभि॑मर्शनः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒यं मे॒ हस्तो॒ भग॑वान॒यं मे॒ भग॑वत्तरः।
अ॒यं मे॑ वि॒श्वभे॑षजो॒ऽयं शि॒वाभि॑मर्शनः ॥
०६ अयं मे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This is my fortunate hand, this my more fortunate one, this my
all-healing one; this is of propitious touch.
Notes
This is, without variant, RV. x. 60. 12; it takes in our hymn the place
of RV. x. 137. 6.
Griffith
Felicitous is this my hand, yet more felicitous is this. This hand contains all healing balms, and this makes whole with gentle touch.
पदपाठः
अ॒यम्। मे॒। हस्तः॑। भग॑ऽवान्। अ॒यम्। मे॒। भग॑वत्ऽतरः। अ॒यम्। मे॒। वि॒श्वऽभे॑षजः। अ॒यम्। शि॒वऽअ॑भिमदर्शनः। १३.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः, विश्वे देवाः
- शन्तातिः
- अनुष्टुप्
- रोग निवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (मे) मेरा (हस्तः) [बायाँ] हाथ (भगवान्) भाग्यवान् है, और (अयम्) यह (मे) मेरा [दायाँ हाथ] (भगवत्तरः) अधिक भाग्यवान् है। (अयम्) यह (मे) मेरा [हाथ] (विश्वभेषजः) सर्वरोगनाशक, और (अयम्) यह (शिवाभिमर्शनः) छूने में मङ्गलदायक है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य श्वास-प्रश्वास और पञ्च भूतों के परिज्ञान से स्पर्श द्वारा रोगों का निदान करके शरीर को रोगरहित और पुष्ट करे ॥६॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-म० १०। सू० ६। म० १२।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(अयम्) दृश्यमानो वामहस्तः (मे) मदीयः (हस्तः) करः (भगवान्) भाग्यवान्। समर्थः (अयम्) दक्षिणहस्तः (भगवत्तरः) वामहस्ताद् अधिकभाग्यवान् (विश्वभेषजः) सर्वरोगनिवर्तकः (शिवाभिमर्शनः) मङ्गलस्पर्शयुक्तः। सुखस्पर्शः ॥
०७ हस्ताभ्यां दशशाखाभ्याम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
हस्ता॑भ्यां॒ दश॑शाखाभ्यां जि॒ह्वा वा॒चः पु॑रोग॒वी।
अ॑नामयि॒त्नुभ्यां॒ हस्ता॑भ्यां॒ ताभ्यां॑ त्वा॒भि मृ॑शामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
हस्ता॑भ्यां॒ दश॑शाखाभ्यां जि॒ह्वा वा॒चः पु॑रोग॒वी।
अ॑नामयि॒त्नुभ्यां॒ हस्ता॑भ्यां॒ ताभ्यां॑ त्वा॒भि मृ॑शामसि ॥
०७ हस्ताभ्यां दशशाखाभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With (two) ten-branched hands—the tongue [is] forerunner of
voice—with (two) disease-removing hands: with them do we touch thee.
Notes
RV. (vs. 7) has for c, d anāmayitnúbhyāṁ tvā tā́bhyāṁ tvó ’pa
spṛśāmasi. The Anukr. takes no notice of the redundancy in our c.
Griffith
The tongue that leads the voice precedes. Then with our tenfold- branching hands. With these two healers of disease, we stroke thee with a soft caress.
पदपाठः
हस्ता॑भ्याम्। दश॑ऽशाखाभ्याम्। जि॒ह्वा। वा॒चः। पु॒रः॒ऽग॒वी। अ॒ना॒म॒यि॒त्नुऽभ्या॑म्। हस्ता॑भ्याम्। ताभ्या॑म्। त्वा॒। अ॒भि। मृ॒शा॒म॒सि॒। १३.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः, विश्वे देवाः
- शन्तातिः
- अनुष्टुप्
- रोग निवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वास्थ्यरक्षा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दशशाखाभ्याम्) दश शाखावाले (हस्ताभ्याम्) दोनों हाथों के द्वारा (जिह्वा) जिह्वा (वाचः) वाणी की (पुरोगवी) आगे ले चलनेवाली है। (ताभ्याम्) उन (अनामयित्नुभ्याम्) आरोग्य देनेवाले (हस्ताभ्याम्) दोनों हाथों से (त्वा) तुझको (अभि मृशामसि) हम छूते हैं ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्राण अपान और पञ्च भूत परीक्षा द्वारा दस अंगुलियों से दस इन्द्रियों और दस दिशाओं का ज्ञान प्राप्त करके दुःख की निवृत्ति और सुख की प्रवृत्ति करें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(हस्ताभ्याम्) कराभ्याम् (दशशाखाभ्याम्) दश अङ्गुलयः शाखाभूता ययोस्तादृशाभ्याम् (जिह्वा) रसना (वाचः) वाण्याः (पुरोगवी) गोरतद्धितलुकि। पा० ५।४।९२। इति पुरस्+गो समासे टच्, स्त्रियां ङीप्, अन्तर्गतण्यर्थः। पुरो अग्रे गौर्गमयित्री (अनामयित्नुभ्याम्) अनामय-इत्नुच्। अनामयशीलाभ्याम्। आरोग्यहेतुभ्याम् (त्वा) त्वां प्राणिनम् (अभि मृशामसि) इदन्तो मसिः। पा० ७।१।४६। इति मसः स्थाने मसि। अभितः स्पृशामः ॥