०१२ रोहिणी- वनस्पतिः

०१२ रोहिणी- वनस्पतिः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To heal serious wounds: with an herb.
VH anukramaṇī

रोहिणी- वनस्पतिः।
१-७ ऋभुः। रोहिणी- वनस्पतिः। अनुष्टुप्, १ त्रिपदा गायत्री, ६ त्रिपदा यवमध्या भुरिग्गायत्री, ७ बृहती।

Whitney anukramaṇī

[Ṛbhu.—vānaspatyatn. ānuṣṭubham: 1. 3-p. gāyatrī; 6. 3-p. yavamadhyā bhuriggāyatrī; 7. bṛhatī.]

Whitney

Comment

Found in Pāipp. iv. (in the verse-order 3-5, 1, 2, 7, 6). Used by Kāuś. (28. 5) in a healing rite: Keśava and the comm. agree in saying, for the prevention of flow of blood caused by a blow from a sword or the like; boiled lākṣā—water is to be poured on the wound etc. The schol. to Kāuś. 28. 14 also regard the hymn as included among the lākṣālin̄gās prescribed to be used in that rule.

Translations

Translated: Kuhn, KZ. xiii. 58, with Germanic parallels; Ludwig, p. 508; Grill, 18, 125; Griffith, i. 146; Bloomfield, 19, 384; Weber, xviii. 46.—Cf. Hillebrandt, Veda-chrestomathie, p. 48.

Griffith

A charm to mend a broken bone

०१ रोहण्यसि रोहण्यस्थ्नश्छिन्नस्य

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रोह॑ण्यसि॒ रोह॑ण्य॒स्थ्नश्छि॒न्नस्य॒ रोह॑णी।
रो॒हये॒दम॑रुन्धति ॥

०१ रोहण्यसि रोहण्यस्थ्नश्छिन्नस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Grower art thou, grower; grower of severed bone; make this grow, O
    arundhatī́.
Notes

Arundhatī́, lit. ’non-obstructing,’ appears to be the name of a
climbing plant having healing properties; it is mentioned more than once
elsewhere, and in v. 5 (vss. 5 and 9) along with lākṣā (vs. 7) ’lac’;
and the comm. to the present hymn repeatedly declares lākṣā to be the
healing substance referred to in it; probably it is a product of the
arundhatī. Ppp. has every time rohiṇī instead of rohaṇī, and so
the comm. also reads; the manuscripts of Kāuś., too, give rohiṇī in
the pratīka, as does the schol. under 28. 14. There is evident punning
upon the name and the causative rohaya- ‘make grow’; perhaps the true
reading of a is róhaṇy asi rohiṇī ’thou art a grower, O red one,’
bringing in the color of the lac as part of the word-play; the comm.
assumes rohiṇi, voc., at end of a (he lohitavarṇe lākṣe). Ppp.
further reads śīrṇasya instead of chinnásya; and has, in place of
our c, rohiṇyām arha ātā ’si rohiṇyā ’sy oṣadhe, making the verse
an anuṣṭubh. The comm. gives asnas for asthnas in b.

Griffith

Thou art the healer, making whole, the healer of the broken bone: Make thou this whole, Arundhati!

पदपाठः

रोह॑णी। अ॒सि॒। रोह॑णी। अ॒स्थ्नः। छि॒न्नस्य॑। रोह॑णी। रो॒हय॑। इ॒दम्। अ॒रु॒न्ध॒ती॒। १२.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • ऋभु
  • त्रिपदा गायत्री
  • रोहिणी वनस्पति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अपने दोष मिटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मानुषी प्रजा तू] (छिन्नस्य) टूटी (अस्थ्नः) हड्डी की (रोहणी) पूरनेवाली (रोहणी) रोहिणी वा लाक्षा [के समान] (रोहणी) पूरनेवाली शक्ति (असि) है। (अरुन्धति) हे रोक न डालनेवाली शक्ति तू ! (इदम्) ऐश्वर्य (रोहय) सम्पूर्ण कर ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बुद्धिमान् पुरुष विज्ञानपूर्वक अपने आत्मिक और शारीरिक दोषों को मिटावे, जैसे सद्वैद्य रोहिणी वा लाक्षा [लाख वा लाह] आदि ओषधि से रोगों को निवृत्त करता है ॥१॥ सायणभाष्य में (रोहणी) पद के स्थान में [रोहिणी] मानकरलाक्षा अर्थ किया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(रोहणी) रुह प्रादुर्भावे-णिच्-ल्युट्, ङीप्। रोहयित्री पूरयित्री शक्तिः। नित्यवीप्सयोः। पा–० ८।१।४। इति द्विर्वचनम् (असि) भवसि (अस्थ्नः) अ० १।२३।४। मांसाभ्यन्तरस्थस्य धातुविशेषस्य (छिन्नस्य) भिन्नस्य (रोहणी) व्युत्पत्तिः पूर्ववत्। रोहणी एव रोहिणी, ओषधिविशेषः। तत्पर्यायाः शब्दकल्पद्रुमे। कटुम्भरा। सोमवल्कः। सोमवृक्षः। सायणमते तु रोहिणी लाक्षा नामौषधविशेषः (रोहय) प्ररोहय। पूरय (इदम्) इन्देः कमिन्नलोपश्च। उ० ४।१५७। इति इदि परमैश्वर्ये-कमिन्। परमैश्वर्यम् (अरुन्धति) नञ्+रुधिर् आवरणे-शतृ, ङीप्। हे अरोधनशीले ! हे अवारयित्रि शक्ते ॥

०२ यत्ते रिष्टम्

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यत्ते॑ रि॒ष्टं यत्ते॑ द्यु॒त्तमस्ति॒ पेष्ट्रं॑ त आ॒त्मनि॑।
धा॒ता तद्भ॒द्रया॒ पुनः॒ सं द॑ध॒त्परु॑षा॒ परुः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. What of thee is torn (riś), what of thee is inflamed (? dyut), is
    crushed (? péṣṭra) in thyself—may Dhātar excellently put that together
    again, joint with joint.
Notes

Ppp. reads in a śīrṇaṁ for riṣṭam; it reads tā ”tmanaḥ in
b; and in c, d it has tat sarvaṁ kalpayāt saṁ dadat. The comm.
(with one of SPP’s mss.) reads preṣṭham (= priyatamam) for the
obscure péṣṭram in b (found elsewhere only in vi. 37. 3 below,
where the comm. has peṣṭam); the conjecture “bone” of the Pet. Lex.
seems altogether unsatisfactory; it is rendered above as if from piṣ.
The comm. paraphrases dyuttám by dyotitam, vedanayā prajvalitam iva,
which seems acceptable.

Griffith

Whatever bone of thine within thy body hath been wrenched or cracked, May Dhatar set it properly and join together limb by limb.

पदपाठः

यत्। ते॒। रि॒ष्टम्। यत्। ते॒। द्यु॒त्तम्। अस्ति॑। पेष्ट्र॑म्। ते॒। आ॒त्मनि॑। धा॒ता। तत्। भ॒द्रया॑। पुनः॑। सम्। द॒ध॒त्। परु॑षा। परुः॑। १२.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • ऋभुः
  • अनुष्टुप्
  • रोहिणी वनस्पति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अपने दोष मिटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (यत्) जो कुछ (ते) तेरा (रिष्टम्) टूटा हुआ और (यत्) जो (ते) तेरा (द्युत्तम्) जलता हुआ, और जो (ते) तेरे (आत्मनि) शरीर में (पेष्ट्रम्) पिसा हुआ (अस्ति) है। (धाता) पोषण करनेवाला वैद्य (भद्रया) कल्याण करनेवाली क्रिया से (तत् परुः) उस जोड़ को (परुषा) दूसरे जोड़ से (पुनः) फिर (सं दधत्) सन्धि कर देवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विचारवान् पुरुष आप ही अपने दोषों का वैद्य होता है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(यत्) अङ्गम् (ते) तव (द्युत्तम्) द्योतते, ज्वलतिकर्मा-निघ० १।१६। द्योतितम्। प्रज्वलितम् (अस्ति) (पेष्ट्रम्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। इति पिष्लृ चूर्णे-ष्ट्रन्। पिष्टम्। चूर्णितम् (आत्मनि) शरीरे (धाता) पोषयिता पुरुषः (तत्) सर्वमङ्गम् (भद्रया) कल्याण्या क्रियया (पुनः) अवधारणे। द्वितीयवारे (संदधत्) संदधातु संयुनक्तु (परुषा) पर्वणा (परुः) पर्व। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०३ सं ते

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सं ते॑ म॒ज्जा म॒ज्ज्ञा भ॑वतु॒ समु॑ ते॒ परु॑षा॒ परुः॑।
सं ते॑ मां॒सस्य॒ विस्र॑स्तं॒ समस्थ्यपि॑ रोहतु ॥

०३ सं ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let thy marrow come together with marrow, and thy joint together with
    joint; together let what of thy flesh has fallen apart, together let thy
    bone grow over.
Notes

Ppp. rectifies the meter of a by omitting te, and has for d ⌊?
b?⌋ saṁstrāvam asu parva te. A few of the mss. (including our
H.O.Op.) give viśrastam in c. The comm. reads śam instead of
sam in every pāda. A couple of SPP’s mss., by a substitution found
also elsewhere ⌊see ii. 12. 7, note⌋, have manyā́ for majjñā́ in
a. The Anukr. ignores the redundant syllable in the first pāda.

Griffith

With marrow be the marrow joined, thy limb united with the limb. Let what hath fallen of thy flesh, and the bone also grow again.

पदपाठः

सम्। ते॒। म॒ज्जा। म॒ज्ज्ञा। भ॒व॒तु॒। सम्। ऊं॒ इति॑। ते॒। परु॑षा। परुः॑। सम्। ते॒। मां॒सस्य॑। विऽस्र॑स्तम्। सम्। अस्थि॑। अपि॑। रो॒ह॒तु॒। १२.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • ऋभुः
  • अनुष्टुप्
  • रोहिणी वनस्पति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अपने दोष मिटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वान्] (ते) तेरे (मज्जा) हाड़ की मींग (मज्ज्ञा) हाड़ की मींग से (संभवतु) मिल जावे (उ) और (ते परुः) तेरा जोड़ (परुषा) जोड़ से (सम्=संभवतु) मिल जावे। (ते) तेरे (मांसस्य) मांस का (विस्रस्तम्) हटा हुआ अंश (सम्=सं रोहतु) जुड़ जावे, और (अस्थि) हाड़ (अपि) भी (सं रोहतु) जुड़ कर ठीक हो जावे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने चंचल मन को ज्ञानप्राप्ति में ऐसा जोड़ दे, जैसे वैद्य विचलित अवयवों को जोड़ देता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(ते) तव (मज्जा) अ० १।११।४। अस्थिमध्यस्थस्नेहः (मज्जा) अस्थिस्नेहेन (सं भवतु) संयुक्तो भवतु (उ) अपि (परुषा) पर्वणा (परुः) पर्व (मांसस्य) मन ज्ञाने धृतौ च-स प्रत्ययः। रक्तजधातुविशेषस्य (विस्रस्तम्) वि+स्रन्सु पतने-क्त। विचलितो भागः (अस्थि) शरीरस्थधातुविशेषः (अपि) (सं रोहतु) संहितं भवतु ॥

०४ मज्जा मज्ज्ञा

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म॒ज्जा म॒ज्ज्ञा सं धी॑यतां॒ चर्म॑णा॒ चर्म॑ रोहतु।
असृ॑क्ते॒ अस्थि॑ रोहतु मां॒सं मां॒सेन॑ रोहतु ॥

०४ मज्जा मज्ज्ञा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let marrow be put together with marrow; let skin (cárman) grow
    (ruh) with skin; let thy blood, bone grow; let flesh grow with flesh.
Notes

The third pāda is translated as it stands ⌊cf. vs. 5 c⌋, but we can
hardly avoid emending ásṛk to asthnā́, or else ásthi to asnā́, to
agree with the others; the comm. ⌊as an alternative⌋ fills it out to two
parallel expressions, for both blood and bone. Ppp. has, for b-d:
asthnā ’sthi vi rohatu snāva te saṁ dadhmas snāvnā carmaṇā carma
rohatu
.

Griffith

Let marrow close with marrow, let skin grow united with the skin. Let blood and bone grow strong in thee, flesh grow together with the flesh.

पदपाठः

म॒ज्जा। म॒ज्ज्ञा। सम्। धी॒य॒ता॒म्। चर्म॑णा। चर्म॑। रो॒ह॒तु॒। असृ॑क्। ते॒। अस्थि॑। रो॒ह॒तु॒। मां॒सम्। मां॒सेन॑। रो॒ह॒तु॒। १२.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • ऋभुः
  • अनुष्टुप्
  • रोहिणी वनस्पति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अपने दोष मिटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मज्जा) हाड़ की मींग (मज्ज्ञा) हाड़ की मींग से (सं धीयताम्) मिल जावे, (चर्म) चाम (चर्मणा) चाम के साथ (रोहतु) जम जावे। (ते) तेरा (असृक्) रुधिर और (अस्थि) हाड़ (रोहतु) जमे, और (मांसम्) मांस (मांसेन) मांस के साथ (रोहतु) जमे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र ३ के समान ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(मज्जा) अस्थिस्नेहः (मज्ज्ञा) अस्थिस्नेहेन (सं धीयताम्) संहितः संयुक्तो भवतु (चर्मणा) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। इति चर गतौ-मनिन्। शरीरावरणम् (चर्म) त्वचा (रोहतु) प्ररूढं भवतु संयुज्यताम् (असृक्) असु क्षेपे-ऋजि प्रत्ययः। अस्यते। क्षिप्यते इतस्ततो नाडीभिः। रुधिरः। अन्यत् सुगमम् ॥

०५ लोम लोम्ना

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लोम॒ लोम्ना॒ सं क॑ल्पया त्व॒चा सं क॑ल्पया॒ त्वच॑म्।
असृ॑क्ते॒ अस्थि॑ रोहतु छि॒न्नं सं धे॑ह्योषधे ॥

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Whitney
Translation
  1. Fit thou together hair with hair; fit together skin (tvác) with
    skin; let thy blood, bone grow; put together what is severed, O herb.
Notes

The prolongation of the final vowel of a pāda is so anomalous that we
can hardly help regarding kalpayā in a as wrong, perhaps imitated
from b; Ppp. avoids the difficulty by reading in a saṁ
dhīyatām
. ⌊For c, compare vs. 4.⌋ Ppp. also has for d our 4
d.

Griffith

Join thou together hair with hair, join thou together skin with skin. Let blood and bone grow strong in thee. Unite the broken part,. O Plant.

पदपाठः

लोम॑। लोम्ना॑। सम्। क॒ल्प॒य॒। त्व॒चा। सम्। क॒ल्प॒य॒। त्वच॑म्। असृ॑क्। ते॒। अस्थि॑। रो॒ह॒तु॒। छि॒न्नम्। सम्। धे॒हि॒। ओ॒ष॒धे॒। १२.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • ऋभुः
  • अनुष्टुप्
  • रोहिणी वनस्पति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अपने दोष मिटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधे) हे तापनाशक ओषधि [के समान मनुष्य !] (लोम) रोम को (लोम्ना) रोम के साथ (संकल्पय) जमा दे, (त्वचम्) त्वचा को (त्वचा) त्वचा के साथ (संकल्पय) जोड़ दे, (ते) तेरा (असृक्) रुधिर और (अस्थि) हाड (रोहतु) उगे, (छिन्नम्) टूटा अङ्ग भी (संधेहि) अच्छे प्रकार मिलादे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ईश्वरविचार से अपने दोषों की चिकत्सा करे जैसे वैद्य ओषधि से करते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(लोम) अ० ३।३३।७। देहजातं केशाकारं द्रव्यम्। रोम। (लोम्ना) रोम्णा (संकल्पय) संक्लृप्तं पुनः स्वस्थानगतं कुरु। संयोजय (त्वचा) चर्मणा (त्वचम्) चर्म (छिन्नम्) भिन्नमङ्गम् (सं धेहि) संहितं संश्लिष्टं व्यापारक्षमं कुरु। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०६ स उत्तिष्ठ

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स उत्ति॑ष्ठ॒ प्रेहि॒ प्र द्र॑व॒ रथः॑ सुच॒क्रः सु॑प॒विः सु॒नाभिः॒।
प्रति॑ तिष्ठो॒र्ध्वः ॥

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Whitney
Translation
  1. Do thou here stand up, go forth, run forth, a chariot well-wheeled,
    well-tired, well-naved; stand firm upright.
Notes

Ppp. is very different: ut tiṣṭha pre ’hi samudhā hi te paruḥ: saṁ te
dhātā dadhātu tan no viriṣṭaṁ rathasya cakra py upavaryathāir yathāi ’ti
sukhasya nābhiṣ prati tiṣṭha evaṁ
. The Anukr. scans the verse as 9 +
11: 5 = 25 syllables.

Griffith

Arise, advance, speed forth; the car hath goodly fellies, naves, and wheels!! Stand up erect upon thy feet.

पदपाठः

सः। उत्। ति॒ष्ठ॒। प्र। इ॒हि॒। प्र। द्र॒व॒। रथः॑। सु॒ऽच॒क्रः। सु॒ऽप॒विः। सु॒ऽनाभिः॑। प्रति॑। ति॒ष्ठ॒। ऊ॒र्ध्वः। १२.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • ऋभुः
  • त्रिपदा यवमध्या भुरिग्गायत्री
  • रोहिणी वनस्पति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अपने दोष मिटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः=स त्वम्) सो तू (उत्तिष्ठ) उठ, (प्रेहि) आगे बढ़, (सुचक्रः) सुन्दर पहियेवाले, (सुपविः) दृढ़ नेमि वा पुट्ठीवाले, (सुनाभिः) सुन्दर मध्य छिद्रवाले (रथः) रथ [के समान] (प्र द्रव) वेग से चल और (ऊर्ध्वः) ऊँचा होकर (प्रति तिष्ठ) प्रतिष्ठित हो ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्नपूर्वक आगे बढ़कर प्रतिष्ठा प्राप्त करे, जैसे उत्तम शिल्पी का बनाया हुआ सुदृढ़ रथ अन्य रथों से आगे निकल जाता है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(सः) तादृशो विचारवान् त्वम् (उत्तिष्ठ) उद्गच्छ। सावधानो भव (प्रेहि) प्रकर्षेण गच्छ (प्रद्रव) प्रधाव (रथः) हनिकुषिनीरमि०। उ० २।२। इति रमु क्रीडायाम्, वा रंहतेर्गतिकर्मणः क्थन्। रथो रंहतेर्गतिकर्मणः स्थिरतेर्वा स्याद् विपरीतस्य रममाणोऽस्मिंस्तिष्ठतीति वा रपतेर्वा रसतेर्वा-निरु–० ९।११। वेगवान्। स्यन्दनो यथा (सुचक्रः) सुदृढैश्चक्रैर्युक्तः (सुपविः) सुदृढः पविर्नेमिश्चक्रधारा यस्य स तथोक्तः (सुनाभिः) दृढया नाभ्या, अच्छिद्रेण युक्तः (प्रति तिष्ठ) प्रतिष्ठितो भव (ऊर्ध्वः) उत्थितः सन् ॥

०७ यदि कर्तम्

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यदि॑ क॒र्तं प॑ति॒त्वा सं॑श॒श्रे यदि॒ वाश्मा॒ प्रहृ॑तो ज॒घान॑।
ऋ॒भू रथ॑स्ये॒वाङ्गा॑नि॒ सं द॑ध॒त्परु॑षा॒ परुः॑ ॥

०७ यदि कर्तम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If, falling into a pit, he hath been crushed (sam-śṛ), or if a
    stone hurled (pra-kṛ) hath smitten [him]—as a Ṛbhu the parts of a
    chariot, may it put together joint with joint.
Notes

A number of the mss. (including our P.M.O.Op.) read kártum for
kartám in a; the comm. explains kartam as meaning kartakaṁ
chedakam āyudham
, and makes it subject of saṁśaśré = saṁhinasti; he
takes ṛbhus as one of the three Ṛbhus (quoting RV. i. 111. 1), not
giving the word any general sense. Ppp. again has an independent text:
yadi vajro visṛṣṭā sthārakā jātu patitrā yadi vā ca riṣṭam: vṛkṣād vā
yadi vā vibhyasi śīrṣa rbhūr iti sa evaṁ saṁ dhāmi te paruḥ
. The verse
is a bṛhatī only by number of syllables (10 + 10: 8 + 8 = 36). ⌊The
comm. makes the “Atharvanic spell” the subject in d.⌋

Griffith

If he be torn and shattered, having fallen into a pit, or a cast stone have struck him, Let the skilled leech join limb with limb, as ’twere the portions of a car.

पदपाठः

यदि॑। क॒र्तम्। प॒ति॒त्वा। स॒म्ऽश॒श्रे। यदि॑। वा॒। अश्मा॑। प्रऽहृ॑तः। ज॒घान॑। ऋ॒भुः। र॑थस्यऽइव। अङ्गा॑नि। सम्। द॒ध॒त्। परु॑षा। परुः॑। १२.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • ऋभुः
  • बृहती
  • रोहिणी वनस्पति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अपने दोष मिटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) यदि (कर्तम्) कटारी आदि हथियार ने (पतित्वा) गिर कर (संशश्रे) काट दिया है, (यदि वा) अथवा (प्रहृतः) फेंके हुए (अश्मा) पत्थर ने (जघान) चोट लगाई है। (ऋभुः) बुद्धिमान् पुरुष (रथस्य अङ्गानि इव) रथ के अङ्गों के समान (परुः) एक जोड़े को (परुषा) दूसरे जोड़ से ( सं दधत्) मिला देवे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बुद्धिमान् पुरुष अपने विचलित मन को इस प्रकार ठीक करे, जैसे चिकित्सक चोट को और शिल्पी टूटे रथ को फिर जोड़कर सुधार लेते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(यदि) पक्षान्तरे। सम्भावनायाम् (कर्तम्) कृती छेदने-घञ्। कर्तकं छेदकमायुधम्। कर्त्तरी। कृपाणी (पतित्वा) अधः प्राप्य (संशश्रे) शॄ हिंसायाम्-लिट्। संशृणाति स्म। संहिनस्ति स्म (यदि वा) अपि वा (अश्मा) प्रस्तरः (प्रहृतः) प्रक्षिप्तः (जघान) हन-लिट्। हतवान् (ऋभुः) अ० १।२।३। मेधावी-निघ० ३।५। (रथस्य) (इव) यथा (अङ्गानि) अक्षचक्रेषायुगादीनि (सं दधत्) संदधातु। संयोजयतु (परुषा) पर्वान्तरेण (परुः) पर्व ॥