०३१ यक्ष्मनाशनम्

०३१ यक्ष्मनाशनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For welfare and long life.
VH anukramaṇī

यक्ष्मनाशनम्
१-११ ब्रह्मा। पाप्महा, १ अग्निः, २ शक्रः, ३ पशवः, ४ द्यावापृथिवी, ५ त्वष्टा, ६ अग्निः, इन्द्रः, ७ देवाः, सूर्यः, ८-१० आयुः, ११ पर्जन्यः। अनुष्टुप्, ४ भुरिक् ५ विराट् प्रस्तारपङ्क्तिः।

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—ekādaśarcam. pāpmahādevatyam. ānuṣṭubham: 4. bhurij; 5. virāṭprastārapan̄kti.]

Whitney

Comment

Not found in Pāipp. Reckoned, with iv. 33 and vi. 26, to the pāpma (pāpmahā?) gaṇa (Kāuś. 30. 17, note), and used by Kāuś. (58. 3), with several others, in a ceremony for long life following initiation as a Vedic scholar; and vs. 10 (vss. 10 and 11, comm.) also in the āgrahāyaṇī sacrifice (24. 31). In Vāit. (13. 10), vs. 10 is uttered in the agniṣṭoma sacrifice by the sacrificer (the comm. says, by the brahman-priest) as he rises to mutter the apratiratha hymn. And the comm. (without quoting any authority) declares the hymn to be repeated by the brahman-priest near water in the pitṛmedha rite, after the cremation.

Translations

Translated: Weber, xvii. 310; Griffith, i. 127; Bloomfield, 51, 364.

Griffith

A charm for the recovery of one dangerously ill

०१ वि देवा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वि दे॒वा ज॒रसा॑वृत॒न्वि त्वम॑ग्ने॒ अरा॑त्या।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०१ वि देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The gods have turned away from old age; thou, O Agni; away from the
    niggard; I away from all evil [have turned], away from yákṣma, to
    union (sám) with life-time.
Notes

The acṛtan of our text is an error for avṛtan, which all the mss.
(and, of course, SPP.) read; vi-vṛt is common in the sense ‘part
from.’ The comm. gives instead avṛtam, which he takes as 2d dual,
rendering it by viyojayatam, and understanding devā́ (p. devā́ḥ) as
devāu, vocative, namely the two Aśvins! and he supplies a yojayāmi
also in the second half-verse, with an imam ⌊referring to the Vedic
scholar⌋ for it to govern.

Griffith

May Gods release from failing strength, thou Agni, from malignity! I free from every evil, from decline: I compass round with life.

पदपाठः

वि। दे॒वाः। ज॒रसा॑। अ॒वृ॒त॒न्। वि। त्वम्। अ॒ग्ने॒। अरा॑त्या। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पाप्महा, अग्निः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विजय चाहनेवाले पुरुष (जरसा) आयु के घटाव से (वि) अलग (अवृतन्) रहे हैं। (अग्ने) हे विद्वान् पुरुष (त्वम्) तू (अरात्या) कंजूसी वा शत्रुता से (वि=वि वर्तस्व) अलग रह। (अहम्) मैं (सर्वेण) सब (पाप्मना) पाप कर्म से (वि) अलग और (यक्ष्मेण) राजरोग, क्षयी आदि से (वि=विवर्त्तै) अलग रहूँ और (आयुषा) जीवन [उत्साह] से (सम्=सम् वर्तै) मिला रहूँ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पुरुषार्थी लोग ब्रह्मचर्य आदि के सेवन से सदा बलवान् रहते हैं, इसी प्रकार सब मनुष्य मानसिक पाप और शारीरिक रोग के त्याग और शुभ गुणों के सेवन से बल बढ़ाकर अपना जीवन सफल करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(देवाः) विजिगीषवः। (जरसा) षिद्भिदादिभ्योऽङ्। इति जॄष् वयोहानौ-अङ्। ऋदृशोऽङि गुणः। पा० ७।४।१६। इति गुणः। टाप्। जराया जरसन्यतरस्याम्। पा० ७।२।१०१। इति जरस्। वयोहन्या। (वि) पृथग्भूय (अवृतन्) वृतु वर्तने, भावे-लुङ्, अभूवन्, (वि) वि वर्तस्व। पृथग्भव। (अग्ने) हे विद्वन् पुरुष (अरात्या) अ० १।२।२। अदानेन। शत्रुतया (पाप्मना) नामन्सीमन्व्योमन्०। उ० ४।१५१। इति पा रक्षणे-अपादाने मनिन्, षुक् च। मानसेन पापेन। दुष्टकर्मणा। (वि) वि वर्त्तै। पृथग् भवानि। (यक्ष्मेण) अ० २।१०।५। शारीरेण राजरोगेण। क्षयादिना। (सम्) सं वर्त्तै। सम्भूय भवानि। (आयुषा) चिरकालजीवनेन ॥

०२ व्यार्त्या पवमानो

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व्यार्त्या॒ पव॑मानो॒ वि श॒क्रः पा॑पकृ॒त्यया॑।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०२ व्यार्त्या पवमानो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The cleansing one [has turned] away from mishap (ā́rti), the
    mighty one (śakrá) away from evil-doing; I away from etc. etc.
Notes

Pávamana in a might signify either soma or the wind; the comm
understands here the latter.

Griffith

May Pavamana free from harm, and Sakra from unrighteous deed. I free from every evil, from decline: I compass round with life.

पदपाठः

वि। आर्त्या॑। पव॑मानः। वि। श॒क्रः। पा॒प॒ऽकृ॒त्यया॑। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शक्रः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानः) शोधन करनेवाला पुरुष (आर्त्या) पीड़ा से (वि) अलग, और (शक्रः) शक्तिमान् पुरुष (पापकृत्यया) पाप क्रिया से (वि=वि वर्तताम्) अलग रहे। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य शुद्ध आचरण से सामाजिक आत्मिक और शारीरिक पीड़ा मिटावे और बलवान् होकर पाप को हटावे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(वि) विवर्तताम्। वियुक्तो भवतु। (आर्त्या) आङ्+ऋ हिंसने-क्तिन्। पीडया। रोगेन। (पवमानः) पूङ्यजोः शानन्। पा० ३।२।१८। इति पूञ् शोधने-शानन्। आने मुक्। पा० ७।२।८२। इति मुक्। संशोधकः (शक्रः) अ० २।५।४। शक्तः। इन्द्रः। (पापकृत्यया) पापम् इति व्याख्यातम्-अ० २।१२।५। कृञः श च। पा० ३।३।१०। इति डुकृञ् करणे, यद्वा, कृञ् हिंसायाम्-क्यप्, तुक्। पापक्रियया महाहिंसया। अन्यद् गतम्-म० १ ॥

०३ वि ग्राम्याः

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वि ग्रा॒म्याः प॒शव॑ आर॒ण्यैर्व्याप॒स्तृष्ण॑यासरन्।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०३ वि ग्राम्याः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The animals (paśú) of the village [have turned] away from those
    of the forest; the waters have gone (sṛ) away from thirst; I away
    from etc. etc.
Notes

All the mss. leave āpas in b unaccented, as if vocative; our text
makes the necessary correction to ā́pas, and so does SPP. in his
pada-text, while in saṁhitā he strangely (perhaps by an oversight?)
retains āpas. The comm. paraphrases ví…asaran with vigatā
bhavanti
, not venturing to turn it into a causative as he did vy
avṛtan
. The Anukr. takes no notice of the redundant syllable in a.

Griffith

Tame beasts have parted from wild beasts, water and thirst have gone apart I free, etc.

पदपाठः

वि। ग्रा॒म्याः। प॒शवः॑। आ॒र॒ण्यैः। वि। आपः॑। तृष्ण॑या। अ॒स॒र॒न्। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पशुसमूहः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ग्राम्याः) ग्रामवाले (पशवः) जीव (आरण्यैः) जङ्गली जीवों से (वि) अलग, और (आपः) जल (तृष्णया) पियास से (वि) अलग, (असरन्) चले हैं। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे ग्राम्य पशु जङ्गली जीवों से अलग रहकर प्रसन्न रहते हैं और जल की उपस्थिति में पियास से निवृत्ति होती है, इसी प्रकार मनुष्य पाप से निवृत्त होकर सबके सुख में प्रवृत्त हों ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(ग्राम्याः) अ० २।३४।४। ग्राम-य। ग्रामीणाः। (आरण्यैः) अरण्य-ष्यञ्। अरण्यजातैः। (आपः) जलानि। (तृष्णया) तृषिशुषिरसिभ्यः कित्। उ० ३।१२। इति तृषिर् आकाङ्क्षायाम्-न, स च कित्। टाप् पानेच्छया। पिपासया। (वि असरन्) सृ गतौ-लुङ्। विगता अभूवन्। अन्यद् गतम् ॥

०४ वी मे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वी॑३॒॑ मे द्यावा॑पृथि॒वी इ॒तो वि पन्था॑नो॒ दिशं॑दिशम्।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०४ वी मे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Apart [from one another] go heaven-and-earth here (imé), away the
    roads, to one and another quarter; I away from etc. etc.
Notes

Itás in a is here understood as 3d dual of i, with Weber and
with the comm. (= vigacchatas), since the meaning is thus decidedly
more acceptable; its accent is easily enough explained as that of the
verb in the former of two successive clauses involving it (though
avṛtan was not accented in vs. 1 a). The redundancy in a is
easily corrected by contracting to -pṛthvī; the Anukr., however, does
not sanction this.

Griffith

Parted are heaven and earth, and paths turned to each quarter of the sky. I free, etc.

पदपाठः

वि। इ॒मे इति॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। इ॒तः। वि। पन्था॑नः। दिश॑म्ऽदिशम्। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्यावापृथिव्यौ
  • ब्रह्मा
  • भुरिगनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इमे) ये दोनों (द्यावापृथिव्यौ) सूर्य और पृथिवी (वि) अलग-अलग (इतः) चलते हैं, (पन्थानः) सब मार्ग (दिशंदिशम्) दिशा दिशा को (वि=वियन्ति) अलग-अलग जाते हैं। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सूर्य पृथिवी और मार्ग अलग-अलग रहकर संसार का क्लेश हरते हैं, ऐसे ही सब मनुष्य दुःख का नाश करके सुख भोगें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(इमे) परिदृश्यमाने। (द्यावापृथिव्यौ) अ० २।१।४। सूर्यभूमी। (इतः) गच्छतः। (पन्थानः) मार्गाः। (वि) वियन्ति। अन्यद् गतम् ॥

०५ त्वष्टा दुहित्रे

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त्वष्टा॑ दुहि॒त्रे व॑ह॒तुं यु॑न॒क्तीती॒दं विश्वं॒ भुव॑नं॒ वि या॑ति।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०५ त्वष्टा दुहित्रे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Tvashṭar harnesses (yuj) for his daughter a wedding-car (vahatú);
    at the news, all this creation (bhúvana) goes away; I away from etc.
    etc.
Notes

⌊Discussed at length by Bloomfield, JAOS. xv. 181 ff.⌋ An odd alteration
of RV. X. 17. 1 a, b (our xviii. i. 53, which see), which reads
kṛṇoti for yunakti, and sám eti for ví yāti; and it is very
oddly thrust in here, where it seems wholly out of place; ví yāti must
be rendered as above (differently from its RV. value), to make any
connection with the refrain and with the preceding verses. Weber’s
suggestion that it is Tvashṭar’s intent to marry his own daughter that
makes such a stir is refuted by the circumstance that the verb used is
active. According to the comm., vahatú is the wedding outfit (duhitrā
saha prityā prasthāpanīyaṁ vastrālaṁkārādi dravyam
), and yunakti is
simply prasthāpayati. The pada-mss., in accordance with the later
use of íti, reckon it here to pāda a.

Griffith

Tvashtar prepares the bridal of his daughter; then all this world of life departs and leaves him. I free, etc.

पदपाठः

त्वष्टा॑। दु॒हि॒त्रे। व॒ह॒तुम्। यु॒न॒क्ति॒। इति॑। इ॒दम्। विश्व॑म्। भुव॑नम्। वि। या॒ति॒। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • त्वष्टा
  • ब्रह्मा
  • विराट्प्रस्तारपङ्क्तिः
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वष्टा) सूक्ष्मदर्शी पिता (दुहित्रे) बेटी को (वहतुम्) दायज [स्त्री धन] (युनक्ति=वि युनक्ति) अलग करके देता है। (इति) इसी प्रकार (इदम् विश्वम्) यह प्रत्येक (भुवनम्) लोक (वि याति) अलग-अलग चलता है। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे पिता पुत्री को दायज देकर सदा हित करता रहता है, सब लोक और पदार्थ अलग-अलग रहकर परस्पर उपकार करते हैं, इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य आत्मिक और शारीरिक दोष हटाकर परस्पर सुख बढ़ावें ॥५॥ इस मन्त्र का पूर्वार्ध ऋग्वेद १०।१७१।१। में इस प्रकार है−त्वष्टा॑ दुहि॒त्रे वह॒तुं कृ॑णो॒तीतीदं विश्वं॒ भुव॑नं॒ समे॑ति ॥ (त्वष्टा) सूक्ष्मदर्शी पिता (दुहित्रे) बेटी के लिये (वहतुम्) दायज (कृणोति) करता है, (इति) इस प्रकार (इदम् विश्वम् भुवनम्) यह सब जगत् (समेति) मिलकर चलता है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(त्वष्टा) अ० २।५।६। व्यवहाराणां तनूकर्ता, पिता। (दुहित्रे) अ० २।१४।२। दोग्धि प्रपूरयति कार्याणीति दुहिता तस्यै। पुत्र्यै। (वहतुम्) एधिवह्योश्चतुः। उ० १।७७। इति वह प्रापणे-चतु। विवाहकाले कन्यायै देयवस्तु (युनक्ति) वियुनक्ति पृथग् बध्नाति। (इति) अनेन प्रकारेण। (भुवनम्) अ० २।१।३। भूतजातम्। लोकः। (वि याति) पृथग् गच्छति। अन्यद् गतम् ॥

०६ अग्निः प्राणान्त्सम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒ग्निः प्रा॒णान्त्सं द॑धाति च॒न्द्रः प्रा॒णेन॒ संहि॑तः।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०६ अग्निः प्राणान्त्सम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Agni puts together the breaths; the moon is put together with breath:
    I away from etc. etc.
Notes

In this verse and those that follow, the refrain has hardly an
imaginable relation with what precedes it; though here one may
conjecture that analogies are sought for its last item, sám ā́yuṣā.
According to the comm., Agni in a is the fire of digestion, and the
breaths are the senses, which he fits for their work by supplying them
nourishment; and the moon is soma ⌊considered as food; for which he
quotes a passage quite like to śB. xi. 1. 6¹⁹⌋.

Griffith

Agni combines the vital airs. The moon is closely joined with breath. I free. etc.

पदपाठः

अ॒ग्निः। प्रा॒णान्। सम्। द॒धा॒ति॒। च॒न्द्रः। प्रा॒णेन॑। सम्ऽहि॑तः। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः, इन्द्रः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्नि) अग्नि (प्राणान्) प्राणों, जीवनशक्तियों को (सम्=सम्भूय) मिलकर (दधाति) पुष्ट करता है, और (चन्द्रः) चन्द्र (प्राणेन) प्राण के साथ (संहित) सन्धिवाला है। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सूर्य का ताप श्वास-प्रश्वास द्वारा शरीर में प्रविष्ट होकर नेत्र आदि इन्द्रियों को अन्न रस पहुँचाता है, और चन्द्रमा की शीतलता प्राण द्वारा रुधिर आदि में परिणत रस से इन्द्रियों को पुष्ट करती है। ऐसे ही मनुष्य अपने दोष मिटाकर शुभ गुणों से युक्त होवें ॥६॥ मन्त्र १-५ में दोषों से (वि) वियोग के और मन्त्र ६-१० में पुरुषार्थ से (सम्) संयोग के वर्णन से आयु बढ़ाने का उपदेश है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(अग्निः) अशितपीतपरिणामहेतुर्जाठररूपः सूर्यतापः (प्राणान्) अ० २।१२।७। जीवनहेतून् श्वासप्रश्वासादीन्। चक्षुरादीन्द्रियाणि वा। (सं दधाति) संभूय पोषयति, स्वस्वकार्यसमर्थान् करोति। (चन्द्रः) अ० १।३।४। चदि आह्लादने-रक्। आह्लादकः। सोमः। चन्द्रमाः (प्राणेन) जीवनहेतुना सह (संहितः) सम्+धा-क्त। सन्धियुक्तः। संश्लिष्टः। अन्यद्गतम् ॥

०७ प्राणेन विश्वतोवीर्यम्

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प्रा॒णेन॑ वि॒श्वतो॑वीर्यं दे॒वाः सूर्यं॒ समै॑रयन्।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

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Whitney
Translation
  1. By breath did the gods set in motion (sam-īray) the sun, of
    universal heroism: I away from etc. etc.
Notes

The comm. treats viśvatas and vīryam in a as independent words,
and renders samāirayan in b by sarvatra prāvartayan.

Griffith

The Gods have lifted up with breath the Sun whose might is everywhere. I free, etc.

पदपाठः

प्रा॒णेन॑। वि॒श्वतः॑ऽवीर्यम्। दे॒वाः। सूर्य॑म्। सम्। ऐ॒र॒य॒न्। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • देवगणः, सूर्यः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विजय चाहनेवाले महात्माओं ने (विश्वतोवीर्यम्) सब ओर से वीर्यवान् (सूर्यम्) सर्वप्रेरक वा सर्वत्रगति परमेश्वर वा सूर्य को (प्राणेन) प्राण से (सम्) मिलकर (ऐरयन्) पाया है। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जितेन्द्रिय वीरों ने आत्मा के सहारे, अर्थात् आत्मज्ञान और आत्मबल से, परमात्मा को पाकर और सूर्य आदि लोकों तक गति करके परम पद पाया है। मनुष्य आत्मिक और शारीरिक दोष मिटाकर जीवन सफल करें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(प्राणेन) जीवनहेतुना। (विश्वतीवीर्यम्) सर्वतःसामर्थ्यम्। सर्वशक्तिमन्तम्। (देवाः) विजिगीषवो जितेन्द्रिया योगिनः। (सूर्यम्) अ० १।३।५। सुवति प्रेरयति लोकान् सूर्यं वा सरति सर्वत्र स सूर्यः। लोकप्रेरकम्। सर्वत्रगतिं परमात्मानं (सम्) सम्भूय। (ऐरयन्) अ० १।११।२। ईर गतौ-लङ्। अगच्छन्। प्राप्नुवन्। अन्यद् गतम् ॥

०८ आयुष्मतामायुष्कृतां प्राणेन

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आयु॑ष्मतामायु॒ष्कृतां॑ प्रा॒णेन॑ जीव॒ मा मृ॑थाः।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०८ आयुष्मतामायुष्कृतां प्राणेन ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. By the breath of the long-lived, of the life-makers (āyuṣkṛ́t), do
    thou live; do not die: I away from etc. etc.
Notes

In this and the following verse, the comm. regards the young Vedic
scholar (māṇavaka) as addressed.

Griffith

Die not. Live with the breath of those who make and who enjoy long life. I free, etc.

पदपाठः

आयु॑ष्मताम्। आ॒युः॒ऽकृता॑म्। प्रा॒णेन॑। जी॒व॒। मा। मृ॒थाः॒। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आयुष्मताम्) बड़ी आयुवाले, और [दूसरों की] (आयुष्कृताम्) बड़ी आयु करनेवाले [देवताओं] के (प्राणेन) प्राण के साथ (जीव) जीता रह, (मा मृथाः) मरा मत जा। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने और दूसरों के सुधारनेवाले वीर योगियों [देवताओं-म०] के अनुकरणी होकर पुरुषार्थ करें और आलस्य आदि में व्यर्थ जन्म न खोवें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(आयुष्मताम्) प्रशस्तेन दीर्घेणायुषा तद्वताम्। (आयुष्कृताम्)। अन्येषां प्रशस्तदीर्घायुषः कर्तॄणां देवानाम्-म० ७। (प्राणेन) अ० २।१५।१। जीवनबलेन। (जीव) प्राणान् धारय। (मा मृथाः) मृङ् प्राणत्यागे-लुङ्, माङि अडभावः। प्राणान् मा त्याक्षीः। अन्यद् गतम् ॥

०९ प्राणेन प्राणताम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्रा॒णेन॑ प्राण॒तां प्राणे॒हैव भ॑व॒ मा मृ॑थाः।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

०९ प्राणेन प्राणताम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. With the breath of the breathing do thou breathe; be just here; do
    not die: I away from etc. etc.
Notes

Our Bp., with two of SPP’s pada-mss. ⌊s.m.!⌋, accents ána at end of
a. The comm. allows the first part of b to be addressed
alternatively to breath.

Griffith

Die not. Stay here. Breathe with the breath of those who draw the vital air. I free, etc.

पदपाठः

प्रा॒णेन॑। प्रा॒ण॒ताम्। प्र। अ॒न॒। इ॒ह। ए॒व। भ॒व॒। मा। मृ॒थाः॒। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणताम्) जीते हुओं के (प्राणेन) श्वास से (प्राण) श्वास ले, (इह) यहाँ पर (एव) ही (भव) रह, (मा मृथाः) मरा मत जा। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से… [म० १] ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पुरुषार्थियों के समान अपने श्वास-श्वास पर कर्तव्य करे और संसार में रहकर भूल, आलस्य आदि दोष छोड़कर कीर्ति पावे ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(प्राणेन) प्रकृष्टजीवनेन। श्वासप्रश्वासव्यापारेण। (प्राणताम्) प्र+अन जीवने-शतृ। श्वसताम्। आत्मवत्ताम्। (प्राण) प्राणान् धारय। (इह एव) अस्मिन्नेव जन्मनि लोके वा। (भव) वर्तस्व। अन्यद् गतम् ॥

१० उदायुषा समायुषोदोषधीनाम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

उदायु॑षा॒ समायु॒षोदोष॑धीनां॒ रसे॑न।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

१० उदायुषा समायुषोदोषधीनाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Up with life-time; together with life-time; up with the sap of the
    herbs: I away from etc. etc.
Notes

The first half-verse, with the first half of our vs. 11, makes a verse
occurring in several texts: TS. (i. 2. 8¹), TA. (iv. 42, vs. 31: agrees
precisely with TS.), VS. (Kāṇv. ii. VII. 5), AśS. (i. 3. 23), PGS. (iii.
2. 14). All these read svāyúṣā instead of sám ā́ytiṣā in a; and
VS. and PGS. lack the second pāda. The comm. points out that asthāma
is to be understood from vs. 11.

Griffith

Rise up with life, conjoined with life. Up, with the sap of growing plants! I free, etc.

पदपाठः

उत्। आयु॑षा। सम्। आयु॑षा। उत्। ओष॑धीनाम्। रसे॑न। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आयुषः) जीवन [उत्साह] के साथ (उत्=उद्भव) खड़ा हो (आयुषा) जीवन के साथ (सम्=सम् भव) पराक्रमी हो। (ओषधीनाम्) औषधियों अन्न आदि के (रसेन) रस [भोग] से (उत्=उद्भव) ऊँचा हो। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब कर्म से… [म० १] ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य जीवन भर उद्योगी तथा पराक्रमी रहे, और अन्न आदि पदार्थों के भोगों के अनुसार उपकार का प्रतिफल देकर जीवन सुफल करे ॥१०॥ इस मन्त्र में भव पद की अनुवृत्ति मन्त्र ९ से आती है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(उत्) अत्र पूर्वमन्त्राद् भव इति क्रियापदम् अनुवर्तते। उद्भव ऊर्ध्वो वर्तस्व। (आयुषा) जीवनेन। उत्साहेन। (सम्) सम्भव। पराक्रमी भव। (ओषधीनाम्) अ० ३।५।१। व्रीहियवादीनाम्। (रसेन) आयुष्करेण सारेण। अन्यत् स्पष्टम् ॥

११ आ पर्जन्यस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

आ प॒र्जन्य॑स्य वृ॒ष्ट्योद॑स्थामा॒मृता॑ व॒यम्।
व्य१॒॑हं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

११ आ पर्जन्यस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Hither with Parjanya’s rain have we stood up immortal: I away from
    etc. etc.
Notes

The other texts (see under the preceding verse) all begin with út
instead of ā́; for vṛṣṭyā́, TS.TA. have śúṣmeṇa, VS.AśS.
dhā́mabhis, PGS. dṛṣiyā; for b, PGS. gives pṛthivyāḥ
saptadhāmabhiḥ
, all the others úd asthām amṛ́tāṅ ánu. ⌊Here the comm.,
in citing the refrain, reads vyāham, which, as implying vy-ā-vṛt, is
equally good.⌋

As in several cases above, it is obvious that this hymn has been
expanded to a length considerably greater than properly belongs to it by
breaking up its verses into two each, pieced out with a refrain. It
would be easy to reduce the whole material to six verses, the norm of
this book, by adding the refrain in vs. 1 only (or possibly also in vs.
4, with ejection of the senseless and apparently intruded vs. 5), and
then combining the lines by pairs—as the parallel texts prove that vss.
10 and 11 are rightly to be combined. ⌊The critical status of ii. 10 is
analogous; see the note to ii. 10. 2.⌋

The sixth and last anuvāka has 6 hymns, with 44 verses; and the old
Anukr. reads: caturdaśā ’ntyaḥ (but further -ntyānuvākasaśśaś?⌋
ca saṁkhyā vidadhyād adhikānimittāt, which is obscure).

⌊☞ See p. cxl, top.⌋

Here ends also the sixth prapāṭhaka.

Not one of our mss. adds a summary of hymns and verses for the whole
book.

Griffith

We as immortal beings have arisen with Parjanya’s rain, I free from every evil, from decline: I compass round with life.

पदपाठः

आ। प॒र्जन्य॑स्य। वृ॒ष्ट्या। उत्। अ॒स्था॒म॒ ॒। अ॒मृताः॑। व॒यम्। वि। अ॒हम्। सर्वे॑ण। पा॒प्मना॑। वि। यक्ष्मे॑ण। सम्। आयु॑षा। ३१.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पर्जन्यः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वयम्) हम (अमृताः) अमर होकर (पर्जन्यस्य) सींचनेवाले मेघ की (वृष्ट्या) बरसा से [जैसे] (आ) सब ओर से (उत् अस्थाम) उठ खड़े हुए हैं, (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से (वि) अलग, और (यक्ष्मेण) राजरोग, क्षयी आदि से (वि=विवर्त्तै) अलग रहूँ, और (आयुषा) जीवन [उत्साह] से (सम्=सम् वर्तै) मिला रहूँ ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य इस सूक्त में वर्णित उपदेश के अनुसार ब्रह्मज्ञान के श्रवण मनन और निदिध्यासन [विचार] से ऐसे हर्ष में बढ़े हैं जैसे अन्न आदि औषधें जल की बरसा से नवीन जीवन पाकर उगती हैं, इसलिए प्रत्येक मनुष्य आत्मिक और शारीरिक दोष छोड़कर अपना जीवन का लाभ उठावें ॥११॥ इति षष्ठोऽनुवाकः ॥ इति षष्ठः प्रपाठकः ॥ इति तृतीयं काण्डम् ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(आ) समन्तात् (पर्जन्यस्य) अ० १।२।१। सेचकस्य। मेघस्य (वृष्ट्या) वर्षजलेन। (उत् अस्थाम) तिष्ठतेर्लुङ्। उत्थिता अभूम। (अमृताः) मरणरहिता अमृतत्वं जीवनत्वं प्राप्ताः सन्तः। (वयम्) उपासकाः। अन्यद् व्याख्यातम् ॥