०३० सांमनस्यम्

०३० सांमनस्यम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For concord.
VH anukramaṇī

सांमनस्यम्।
१-७ अथर्वा। चन्द्रमाः, सांमनस्यम्। अनुष्टुप्, ५ विराड् जगती, ६ प्रस्तारपङ्क्तिः, ७ त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—saptarcam. cāndramasam, sāmmanasyam. ānuṣṭubham: 5. virāḍjagatī; 6. prastārapan̄kti; 7. triṣṭubh.]

Whitney

Comment

Found in Pāipp. v. Reckoned in Kāuś. (12. 5), with various other passages, to the sāmmanasyāni, and used in a rite for concord; and the comm. regards it as included under the designation gaṇakarmāṇi in the upākarman (139. 7).

Griffith

On the means to obtain immunity from taxation in the next world

०१ सहृदयं साम्मनस्यमविद्वेषम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सहृ॑दयं सांमन॒स्यमवि॑द्वेषं कृणोमि वः।
अ॒न्यो अ॒न्यम॒भि ह॑र्यत व॒त्सं जा॒तमि॑वा॒घ्न्या ॥

०१ सहृदयं साम्मनस्यमविद्वेषम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Like-heartedness, like-mindedness, non-hostility do I make for you;
    do ye show affection (hary) the one toward the other, as the
    inviolable [cow] toward her calf when born.
Notes

Ppp. has sāmnasyam in a, and in c anyo ‘nyam, as demanded by
the meter. The comm. also reads the latter, and for the former
sāmmanuṣyam; and he ends the verse with aghnyās.

Griffith

Freedom from hate I bring to you, concord and unanimity. Love one another as the cow loveth the calf that she hath borne.

पदपाठः

सऽहृ॑दयम्। सा॒म्ऽम॒न॒स्यम्। अवि॑ऽद्वेषम्। कृ॒णो॒मि॒। वः॒। अ॒न्यः। अ॒न्यम्। अ॒भि। ह॒र्य॒त॒। व॒त्सम्। जा॒तम्ऽइ॑व। अ॒घ्न्या। ३०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, सांमनस्यम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परस्पर मेल का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सहृदयम्) एकहृदयता, (सांमनस्यम्) एकमनता और (अविद्वेषम्) निर्वैरता (वः) तुम्हारे लिये (कृणोमि) मैं करता हूँ। (अन्यो अन्यम्) एक दूसरे को (अभि) सब ओर से (हर्यत) तुम प्रीति से चाहो (अघ्न्या इव) जैसे न मारने योग्य, गौ (जातम्) उत्पन्न हुए (वत्सम्) बछड़े को [प्यार करती है] ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वर उपदेश करता है, सब मनुष्य वेदानुगामी होकर सत्य ग्रहण करके एकमतता करें और आपा छोड़कर सच्चे प्रेम से एक दूसरे को सुधारें, जैसे गौ आपा छोड़कर तद्रूप होकर पूर्ण प्रीति से उत्पन्न हुए बच्चे को जीभ से चाटकर शुद्ध करती और खड़ा करके दूध पिलाती और पुष्ट करती है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−तैत्तिरीयारण्यक में पाठ है−ओ३म्। सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै। तैत्ति० आ० १०।१ ॥ ओ३म्। (सह) वही (नौ) हम दोनों को (अवतु) बचावे। (सह) वही (नौ) हम दोनों को (भुनक्तु) पाले। हम दोनों (सह) मिलकर (वीर्यम्) उत्साह (करवावहै) करें। (नौ) हम दोनों का (अधीतम्) पढ़ा हुआ (तेजस्वि) तेजस्वी (अस्तु) होवे। (मा विद्विषावहै) हम दोनों झगड़ा न करें ॥ भगवान् यास्क मुनि कहते हैं। (अघ्न्या) गौ का नाम है−निघ० २।११। वह अहन्तव्या, [अवध्या न मारने योग्य] अथवा, अघघ्नी [पाप अर्थात् शारीरिक दुःख अथवा दुर्भिक्षादि पीड़ा नाश करनेवाली] होती है−निरुक्त ११।४३ ॥ श्रीमान् महीधर यजुर्वेदभाष्य अ० १ म० १ में लिखते हैं−अघ्न्या गौएँ हैं। गोवध उपपातक भारी पाप है, इसलिये वे न मारने योग्य अघ्न्या कही जाती हैं ॥ १−(सहृदयम्) वृह्रोः षुग्दुकौ च। उ० ४।१०। इति हृञ् हरणे=स्वीकारे कयन्, दुक् च। सहस्य सभावः। सहग्रहणम्। सहवीर्यम्। (सांमनस्यम्) सम्+मनस्-भावे ष्यञ्। समानमननत्वम्। ऐकमत्यम् (अविद्वेषम्)। द्विष वैरे-घञ्। अशत्रुताम्। सख्यम् (कृणोमि) उत्पादयामि। (वः) युष्मभ्यम्। (अन्यो अन्यम्) छान्दसं द्विपदत्वम्। परस्परम्। (अभि) सर्वतः। (हर्यत) हर्य गतिकान्त्योः। कामयध्वम्। (वत्सम्) अ० ३।१२।३। गोशिशुम्। (जातम्) नवोत्पन्नम्। (इव) यथा। (अघ्न्या) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। नञि अघे वोपपदे हन्तेर्यगन्तो निपातः। गौः-निघ० २।११। अघ्न्याहन्तव्या भवत्यघघ्नीति वा-निरु० ११।४३। अघ्न्याः। गावः। गोवधस्योपपानकरूपत्वाद्धन्तुमयोग्या अघ्न्या उच्यन्ते-इति श्रीमन्महीधरे यजुर्वेदभाष्ये १।१ ॥

०२ अनुव्रतः पितुः

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अनु॑व्रतः पि॒तुः पु॒त्रो मा॒त्रा भ॑वतु॒ संम॑नाः।
जा॒या पत्ये॒ मधु॑मतीं॒ वाचं॑ वदतु शन्ति॒वाम् ॥

०२ अनुव्रतः पितुः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Be the son submissive to the father, like-minded with the mother; let
    the wife to the husband speak words (vā́c) full of honey, wealful.
Notes

The translation implies at the end śaṁtivā́m ⌊BR. vii. 60⌋, which SPP.
admits as emendation into his text, it being plainly called for by the
sense, and read by the comm. (and by SPP’s oral reciter K, who follows
the coram.); this ⌊not śaṁtivā́m⌋ is given also by Ppp. (cf. xii. 1.
59, where the word occurs again). The comm. further has in b mātā́
(two of SPP’s reciters agreeing with him).

Griffith

One-minded with his mother let the son be loyal to his sire. Let the wife, calm and gentle, speak words sweet as honey to her lord.

पदपाठः

अनु॑ऽव्रतः। पि॒तुः। पु॒त्र। मा॒त्रा। भ॒व॒तु॒। सम्ऽम॑नाः। जा॒या। पत्ये॑। मधु॑ऽमतीम्। वाच॑म्। व॒द॒तु॒। श॒न्ति॒ऽवाम्। ३०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा, सांमनस्यम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परस्पर मेल का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पुत्रः) कुलशोधक पवित्र, बहुरक्षक वा नरक से बचानेवाला पुत्र [सन्तान] (पितुः) पिता के (अनुव्रतः) अनुकूल व्रती होकर (मात्रा) माता के साथ (संमनाः) एक मनवाला (भवतु) होवे। (जाया) पत्नी (पत्ये) पति से (मधुमतीम्) जैसे मधु में सनी और (शन्तिवाम्) शान्ति से भरी (वाचम्) वाणी (वदतु) बोले ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सन्तान माता पिता के आज्ञाकारी, और माता पिता सन्तानों के हितकारी, पत्नी और पति आपस में मधुरभाषी तथा सुखदायी हों। यही वैदिक कर्म आनन्दमूल है। मन्त्र १ देखो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अनुव्रतः) पृषिरञ्जिभ्यां कित्। उ० ३।१११। इति वृञ् वरणे अतच्-कित्त्वाद् गुणाभावे यणादेशः। व्रतमिति कर्मनाम वृणोतीति सतः-निरु० २।१३। अनुकूलकर्मा। (पितुः) रक्षकस्य। जनकस्य (पुत्रः) अ० १।११।५ पुनातीति पुत्रः कुलशोधकः। पवित्रः। पुरुत्रात् पुतो नरकात् त्राता वा। सन्तानः। (मात्रा) अ० १।२।१। माननीयया जनन्या सह। (संमनाः) समानमनस्कः (जाया) अ० ३।४।३। जनयति वीरान्। भार्या। पत्नी। (पत्ये) भर्त्रे। (मधुमतीम्) क्षौद्रयुक्तां यथा। माधुर्यवतीम्। (शन्तिवाम्) शमु उपशमे-क्तिन्। छान्दसो ह्रस्वः। वप्रकरणेऽन्येभ्योऽपि दृश्यते। वा० पा० ५।२।१०९। इति मत्वर्थे व प्रत्ययः। टाप्। शान्तियुक्ताम्। सुखोपेताम् ॥

०३ मा भ्राता

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मा भ्राता॒ भ्रात॑रं द्विक्ष॒न्मा स्वसा॑रमु॒त स्वसा॑।
स॒म्यञ्चः॒ सव्र॑ता भू॒त्वा वाचं॑ वदत भ॒द्रया॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Let not brother hate brother, nor sister sister; becoming accordant
    (samyáñc), of like courses, speak ye words auspiciously (bhadráyā).
Notes

The comm. reads dviṣyāt in a. The majority of SPP’s pada-mss.
give sá॰vratā (instead of -tāḥ) in c. The comm. further reads
vadatu in d, explaining it to mean vadantu.

Griffith

No brother hate his brother, no sister to sister be unkind. Unanimous, with one intent, speak ye your speech in friend- liness.

पदपाठः

मा। भ्राता॑। भ्रात॑रम्। द्वि॒क्ष॒त्। मा। स्वसा॑रम्। उ॒त। स्वसा॑। स॒म्यञ्चः॑। सऽव्र॑ताः। भू॒त्वा। वाच॑म्। व॒द॒त॒। भ॒द्रया॑। ३०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, सांमनस्यम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परस्पर मेल का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भ्राता) भ्राता (भ्रातरम्) भ्राता से (मा द्विक्षत्) द्वेष न करे (उत) और (स्वसा) बहिन (स्वसारम्) बहिन से भी (मा) नहीं। (सम्यञ्चः) एक मत वाले और (सव्रताः) एकव्रती (भूत्वा) होकर (भद्रया) कल्याणी रीति से (वाचम्) वाणी (वदत) बोलो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - भाई-भाई, बहिन-बहिन और सब कुटुम्बी नियमपूर्वक मेल से वैदिक रीति पर चलकर सुख भोगें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(भ्राता) अ० १।१४।२। भ्राजते यः। सहोदरः। (मा द्विक्षत्) मा द्विष्यात्। (स्वसारम्) अ० १।२८।४। भगिनीम्। (सम्यञ्चः)। ऋत्विग्दधृक्०। पा० ३।२।५९। इति सम्+अञ्चू गतिपूजनयोः-क्विन्। समः समि। पा० ६।३।९३। इति समि इत्यादेशः। समञ्चनाः सङ्गताः। समानज्ञानाः। सम्यक् पूजनशीलाः। (सव्रताः) सहकर्माणः। (वाचम्) वाणीम्। (वदत) कथयत। (भद्रया) कल्याण्या रीत्या। अन्यत् स्पष्टम् ॥

०४ येन देवा

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येन॑ दे॒वा न वि॒यन्ति॒ नो च॑ विद्वि॒षते॑ मि॒थः।
तत्कृ॑ण्मो॒ ब्रह्म॑ वो गृ॒हे सं॒ज्ञानं॒ पुरु॑षेभ्यः ॥

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Whitney
Translation
  1. That incantation in virtue of which the gods do not go apart, nor
    hate one another mutually, we perform in your house, concord for
    [your] men (púruṣa).
Notes

Weber suggests that “gods” here perhaps means “Brāhmans,” but there is
no authority nor occasion for such an understanding; the comm. also says
“Indra etc.”

Griffith

That spell through which Gods sever not, nor ever bear each other hate, That spell we lay upon your home, a bond of union for the men.

पदपाठः

येन॑। दे॒वाः। न। वि॒ऽयन्ति॑। नो इति॑। च॒। वि॒ऽद्वि॒षते॑। मि॒थः। तत्। कृ॒ण्मः॒। ब्रह्म॑। वः॒। गृ॒हे। स॒म्ऽज्ञान॑म्। पुरु॑षेभ्यः। ३०.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, सांमनस्यम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परस्पर मेल का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (येन) जिस [वेद पथ] से (देवाः) विजय चाहनेवाले पुरुष (न) नहीं (वियन्ति) विरुद्ध चलते हैं (च) और (नो) न कभी (मिथः) आपस में (विद्विषते) विद्वेष करते हैं। (तत्) उस (ब्रह्म) वेद पथ को (वः) तुम्हारे (गृहे) घर में (पुरुषेभ्यः) सब पुरुषों के लिये (संज्ञानम्) ठीक-ठीक ज्ञान का कारण (कृण्मः) हम करते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सार्वभौम हितकारी वेदमार्ग पर चलकर घर के सब लोग आनन्द भोगें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(देवाः) विजिगीषवः (वियन्ति) इण् गतौ। विरुद्धं गच्छन्ति (विद्विषते) द्विष अप्रीतौ-अदादिः। विद्वेषं कुर्वते (मिथः) परस्परम् (कृण्मः) कृवि हिंसाकरणयोः। कुर्मः (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (संज्ञानम्) सम्यग् ज्ञानम्। अन्यत् सुगमम् ॥

०५ ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा

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ज्याय॑स्वन्तश्चि॒त्तिनो॒ मा वि यौ॑ष्ट संरा॒धय॑न्तः॒ सधु॑रा॒श्चर॑न्तः।
अ॒न्यो अ॒न्यस्मै॑ व॒ल्गु वद॑न्त॒ एत॑ सध्री॒चीना॑न्वः॒ संम॑नसस्कृणोमि ॥

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Whitney
Translation
  1. Having superiors (jyā́yasvant), intentful, be ye not divided,
    accomplishing together, moving on with joint labor (sádhura); come
    hither speaking what is agreeable one to another; I make you united
    (sadhrīcī́na), like-minded.
Notes

Ppp. reads sudhirās in b, combines anyo ‘nyasmāi (as does the
comm., and as the meter requires) in c, and inserts samagrāstha
before sadhrīcīnān in d; the comm. further has āita for eta in
c (as have our P.E.). Jyāyasvant was acutely conjectured by the
Pet. Lex. to signify virtually “duly subordinate,” and this is supported
by the comm.: jyeṣṭhakaniṣṭhabhāvena parasparam anusarantaḥ; Ludwig
renders “überlegen.” Sádhura, lit. ‘having the same wagon-pole,’ would
be well represented by our colloquial “pulling together.” Cittínas in
a is perhaps rather an adjunct of ví yāuṣṭa = ‘with, i.e. in your
intents or plans.’ The verse (11 + 11: 12 + 12 = 46) is ill defined by
the Anukr., as even the redundant syllable in d gives no proper
jagatī character to the pāda. ⌊Reject vaḥ or else read sadhrī́co?
thus we get an orderly triṣṭubh.⌋

Griffith

Intelligent, submissive, rest united, friendly and kind, bearing the yoke together. Come, speaking sweetly each one to the other. I make you one- intentioned and one-minded.

पदपाठः

ज्याय॑स्वन्तः। चि॒त्तिनः॑। मा। वि। यौ॒ष्ट॒। स॒म्ऽरा॒धय॑न्तः। स॑ऽधु॑राः। चर॑न्तः। अ॒न्यः। अ॒न्यस्मै॑। व॒ल्गु। वद॑न्तः। आ। इ॒त॒। स॒ध्री॒चीना॑न्। वः॒। सम्ऽम॑नसः। कृ॒णो॒मि॒। ३०.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, सांमनस्यम्
  • अथर्वा
  • विराड्जगती
  • सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परस्पर मेल का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ज्यायस्वन्तः) बड़ों का मान रखनेवाले (चित्तिनः) उत्तम चित्तवाले, (संराधयन्तः) समृद्धि [धन धान्य की वृद्धि] करते हुए और (सधुराः) एक धुरा होकर (चरन्तः) चलते हुए तुम लोग (मा वि यौष्ट) अलग-अलग न होओ, और (अन्यो अन्यस्मै) एक दूसरे से (वल्गु) मनोहर (वदन्तः) बोलते हुए (एत) आओ। (वः) तुमको (सध्रीचीनान्) साथ-साथ गति [उद्योग वा विज्ञान] वाले और (संमनसः) एक मनवाले (कृणोमि) मैं करता हूँ ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वेदानुयायी मनुष्य विद्यावृद्ध, धनवृद्ध, आयुवृद्धों का आदर करके उत्तम गुणों की प्राप्ति, और मिलकर उद्योग से, धन धान्य राज आदि बढ़ाते और आनन्द भोगते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(ज्यायस्वन्तः) ज्यायस्-वन्तः। ज्य च। वृद्धस्य च। पा० ५।३।६१, ६२। इति प्रशस्यस्य वृद्धस्य वा ज्य इत्यादेशः, ईयसुनि प्रत्यये। ज्यादादीयसः। पा० ६।४।१६०। इति ईकारस्य आकारः। ततो मतुप् प्रशंसायाम्। ज्यायांसो प्रशस्या वृद्धा वा प्रशंसनीया येषां ते तथोक्ताः। (चित्तिनः) उत्तमचित्तवन्तः। (मा वि यौष्ट) यु मिश्रणामिश्रणयोः, माङि लुङि रूपम्। इडभावश्छान्दसः। मा पृथग् भूत। वियुक्ता मा भवत। (संराधयन्तः) राध संसिद्धौ, णिच्-शतृ। सम्यक् संसिद्धिकाः। समानकार्याः। (सधुराः) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५।४।७४। इति सह+धुर-अकारः। समासान्तः। सहकार्योद्वहनाः। (चरन्तः) गच्छन्तः। (वल्गु) अ० २।३६।१। मनोहरम्। प्रियवाक्यम्। (वदन्तः) भाषमाणाः (एत) आ+इत। आगच्छत (सध्रीचीनान्) ऋत्विग्दधृक्। पा० ३।२।५९। इति सह+अञ्चू गतिपूजनयोः-क्विन्। सहस्य सध्रिः। पा० ६।३।९५। इति सध्रि। विभाषाञ्चेरदिक् स्त्रियाम्। पा० ५।४।८। इति स्वार्थिकः खः। अकारलोपे दीर्घत्वम्। सहाञ्चतः कार्येषु सहप्रवृत्तान् (समनसः) समानमनस्कान्। (कृणोमि) करोमि ॥

०६ समानी प्रपा

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स॑मा॒नी प्र॒पा स॒ह वो॑ऽन्नभा॒गः स॑मा॒ने योक्त्रे॑ स॒ह वो॑ युनज्मि।
स॒म्यञ्चो॒ऽग्निं स॑पर्यता॒रा नाभि॑मिवा॒भितः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Your drinking (prapā́) [be] the same, in common your share of
    food; in the same harness (yóktra) do I join ⌊yuj⌋ you together;
    worship ye Agni united, like spokes about a nave.
Notes

The comm. explains prapā as “drinking saloon” (pānīyaśālā). Two of
our mss. (P.M.) read at the beginning samānī́ṁ. ⌊To reproduce (as W.
usually does) the radical connection (here between yóktra and yuj),
we may render ‘do I harness you.’ The Anukr. seems to scan 12 + 11: 9 +
8 = 40; the vs. is of course 11 + 11: 8 + 8.⌋

Griffith

Let what you drink, your share of food be common together, with one common bond I bid you. Serve Agni, gathered round him like the spokes about the chariot nave.

पदपाठः

स॒मा॒नी। प्र॒ऽपा। स॒ह। वः॒। अ॒न्न॒ऽभा॒गः। स॒मा॒ने। योक्त्रे॑। स॒ह। वः॒। यु॒न॒ज्मि॒। स॒म्यञ्चः॑। अ॒ग्निम्। स॒प॒र्य॒त॒। अ॒राः। नाभि॑म्ऽइव। अ॒भितः॑। ३०.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, सांमनस्यम्
  • अथर्वा
  • प्रस्तारपङ्क्तिः
  • सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परस्पर मेल का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वः) तुम्हारी (प्रपा) जलशाला (समानी) एक हो, और (अन्नभागः) अन्न का भाग (सह) साथ-साथ हो, (समाने) एक ही [योक्त्रे] जोते में (वः) तुमको (सह) साथ-साथ (युनज्मि) मैं जोड़ता हूँ। (सम्यञ्चः) मिलकर गति [उद्योग वा ज्ञान] रखनेवाले तुम (अग्निम्) अग्नि [ईश्वर वा भौतिक अग्नि] को (सपर्यत) पूजो (इव) जैसे (अराः) अरा [पहिये के दंडे] (नाभिम्) नाभि [पहिये के बीचवाले काठ] में (अभितः) चारों ओर से [सटे होते हैं] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे अरे एक नाभि में सटकर पहिये को रथ का बोझ सुगमता से ले चलने योग्य करते हैं, ऐसे ही मनुष्य एक वेदानुकूल धार्मिक रीति पर चलकर अपना खान-पान मिलकर करें, मिलकर रहें और मिलकर ही (अग्नि) को पूजें अर्थात् १-परमेश्वर की उपासना करें, २-शारीरिक अग्नि को, जो जीवन और वीरपन का चिह्न है, स्थिर रक्खें, ३-हवन करके जलवायु शुद्ध रक्खें और ४-शिल्पव्यवहार में प्रयोग करके उपकार करें और सुख से रहें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(समानी) अ० २।१।५। साधारणा। एका। (प्रपा) प्रपीयतेऽस्याम्। पा पाने-ड, टाप्। पानीयशाला। (सह) मिलित्वा। (वः) युष्माकम्। युष्मान्। (अन्नभागः) भोजनस्य अंशः। (समाने) एकस्मिन् (योक्त्रे) दाम्नीशसयुयुज०। पा० ३।२।१८२। इति युज योगे-ष्ट्रन्। युगेन सह युज्यते आबध्यतेऽनेन तस्मिन्। योक्त्रे। बन्धने। स्नेहपाशे। (युनज्मि) युजिर् युतौ। बध्नामि। (सम्यञ्चः) म० ३। सङ्गताः। (अग्निम्) परमेश्वरं भौतिकं वा। (सपर्यत) सपर पूजायाम्। कण्ड्वादित्वाद् यक्। पूजयत। (अराः) ऋ गतौ-अच्। चक्रकीलकाः। (नाभिम्) अ० १।३। रथचक्रस्य मध्यभागम्। (अभितः) सर्वतः। अभितः परितः समया०। वा० पा० २।३।२। इति नाभिम् इति द्वितीया ॥

०७ सध्रीचीनान्वः सम्मनसस्कृणोम्येकश्नुष्टीन्त्संवननेन

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स॑ध्री॒चीना॑न्वः॒ संम॑नसस्कृणो॒म्येक॑श्नुष्टीन्त्सं॒वन॑नेन॒ सर्वा॑न्।
दे॒वा इ॑वा॒मृतं॒ रक्ष॑माणाः सा॒यंप्रा॑तः सौमन॒सो वो॑ अस्तु ॥

०७ सध्रीचीनान्वः सम्मनसस्कृणोम्येकश्नुष्टीन्त्संवननेन ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. United, like-minded I make you, of one bunch, all of you, by [my]
    conciliation; [be] like the gods defending immortality (amṛ́ta); late
    and early be well-willing yours.
Notes

We had the first pāda above as vs. 5 d; emendation to sadhrī́cas
would rectify the meter; the Anukr. takes no note of the metrical
irregularity; it is only by bad scanning that he makes out any
difference between vss. 5 and 7. The translation implies in b
-śnuṣṭīn, which is read by SPP., with the majority of his mss., and
supported by the comm’s ekaśnuṣṭim (explained by him as ekavidhaṁ
vyāpanam ekavidhasyā ’nnasya bhuktiṁ vā
); part of our mss. also
(Bp.E.H.Op.) read clearly -śn-, while others are corrupt, and some
have plainly -śr-: cf. the note to 17. 2 above. Ppp. has at the end
susamitir vo ’stu.

Griffith

With binding charm I make you all united, obeying one sole leader and one-minded. Even as the Gods who watch and guard the Amrit, at morn and eve may ye be kindly-hearted.

पदपाठः

स॒ध्री॒चीना॑न्। वः॒। सम्ऽम॑नसः। कृ॒णो॒मि॒। एक॑ऽश्नुष्टीन्। स॒म्ऽवन॑नेन। सर्वा॑न्। दे॒वाःऽइ॑व। अ॒मृत॑म्। रक्ष॑माणाः। सा॒यम्ऽप्रा॑तः। सौ॒म॒न॒सः। वः॒। अ॒स्तु॒। ३०.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, सांमनस्यम्
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परस्पर मेल का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (संवननेन) यथावत् सेवन वा व्यापार से (वः सर्वान्) तुम सबको (सध्रीचीनान्) साथ-साथ गति [उद्योग वा ज्ञान] वाले, (संमनसः) एक मन वाले और (एकश्नुष्टीन्) एक भोजनवाले (कृणोमि) मैं करता हूँ। (देवाः इव) विजय चाहनेवाले पुरुषों के समान (अमृतम्) अमरपन [जीवन की सफलता] को (रक्षमाणाः) रखते हुए तुम [बने रहो] (सायं प्रातः) सायंकाल और प्रातःकाल में (सौमनसः) चित्त की प्रसन्नता (वः) तुम्हारे लिये (अस्तु) होवे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - देव पुरुषार्थी विजयी पुरुष मिलकर मृत्यु के कारण आलस्य आदि छोड़ने से अमर अर्थात् यशस्वी होते हैं। इसी प्रकार सब मनुष्य आपस में मिलकर उद्योग करके सुखी रहें और सायं प्रातः दो काल परमेश्वर की आराधना करके चित्त प्रसन्न करें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(एकश्नुष्टीन्) ष्णसु अदने, आदाने, च-क्तिन्। एकभुक्तीन्। समानभोजनान्। (संवननेन) वन संभक्तौ-ल्युट्। सम्यक् सेवनेन व्यापारेण। (देवाः) विजिगीषवः। पुरुषार्थिनः। (अमृतम्) अमरत्वम्। जीवनसाफल्यम्। (रक्षमाणाः) पालयन्तो भवत-इति शेषः (सायंप्रातः) उभयसंध्याकाले। (सौमनसः) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इति सुमनस्-भावे अण्। सुमनसो भावः। सुहृद्भावः। चित्तप्रसादः। अन्यद्गतम् ॥