०२३ वीर-प्रसूतिः

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Whitney subject
  1. For fecundity.
VH anukramaṇī

वीर-प्रसूतिः।
१-६ ब्रह्मा। चन्द्रमा, योनिः, द्यावापृथिवी। अनुष्टुप्, ५ उपरिष्टाद् भुरिग्बृहती, ६ स्कंधोग्रीवी बृहती।

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—cāndramasam uta yonidevatyam. ānuṣṭubham: 5. upariṣṭābhurigbṛhatī; 6. skandhogrīvībṛhatī.]

Whitney

Comment

Found in Pāipp. iii. Used by Kāuś. in the chapters of women’s rites, in a charm (35. 3) to procure the conception of male offspring, with breaking an arrow over the mother’s head etc.

Translations

Translated: Weber, v. 223; Ludwig, p. 477; Zimmer, p. 319; Weber, xvii. 285; Griffith, i. 116; Bloomfield, 97, 356.

Griffith

A charm to remove a woman’s sterility, and to assure the birth of boys

०१ येन वेहद्बभूविथ

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

येन॑ वे॒हद्ब॒भूवि॑थ ना॒शया॑मसि॒ तत्त्वत्।
इ॒दं तद॒न्यत्र॒ त्वदप॑ दू॒रे नि द॑ध्मसि ॥

०१ येन वेहद्बभूविथ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. By what thou hast become barren (vehát), that we make disappear
    from thee; that now we set down elsewhere, far away from (ápa) thee.
Notes

Vehát is perhaps more strictly ’liable to abort’; the comm. gives the
word here either sense. Ppp. is defective, giving only the initial words
of vss. 1 and 2.

Griffith

From thee we banish and expel the cause of thy sterility. This in another place we lay apart from thee and far removed.

पदपाठः

येन॑। वे॒हत्। ब॒भूवि॑थ। ना॒शया॑मसि। तत्। त्वत्। इ॒दम्। तत्। अ॒न्यत्र॑। त्वत्। अप॑। दू॒रे। नि। द॒ध्म॒सि॒। २३.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, योनिः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • वीरप्रसूति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे स्त्री] (येन) जिस कारण से तू (वेहत्) बन्घ्या [बाँझ] (बभूविथ) हुई है, (तत्) उस कारण को (त्वत्) तुझसे (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं। (इदम्=इदानीम्) अभी (तत्) उसको (त्वत्) तुझसे (अन्यत्र) और कहीं (दूरे) दूर (अप=अपहृत्य) हटाकर (निदध्मसि=०-ध्मः) हम रखते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सद्वैद्य पुत्रेष्टि यज्ञ करके ओषधि द्वारा बाँझपन मिटाकर वीर सन्तान उत्पन्न करते हैं, देखो−श्रीमद् दयानन्दकृत संस्कारविधि-गर्भाधानप्रकरण ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(येन) येन पापजन्यरोगादिना (वेहत्) संश्चत्तृपद्वेहत्। उ० २।८५। इति वि+हन वधे-अति। इकारस्य एकारो नलोपश्च निपात्येते। विशेषेण हन्ति गर्भं या, गर्भघातिनी। बन्ध्या। (नाशयामसि) नाशयामः। चिकित्सया अपहन्मः। (त्वत्) त्वत्तः सकाशात्। (इदम्) इदानीम्। (दूरे) दूरदेशे। (अप नि दध्मसि) अपहृत्य निक्षिपामः ॥

०२ आ ते

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आ ते॒ योनिं॒ गर्भ॑ एतु॒ पुमा॒न्बाण॑ इवेषु॒धिम्।
आ वी॒रोऽत्र॑ जायतां पु॒त्रस्ते॒ दश॑मास्यः ॥

०२ आ ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Unto thy womb let a fœtus come, a male one, as an arrow to a quiver;
    let a hero be born unto thee here, a ten-months’ son.
Notes

This verse and the two following occur in śGS. (i. 19. 6), and this one
without variant. Also this one in MP. ⌊i. 12. 9⌋ (Winternitz, p. 94),
and in an appendix to AGS. i. 13. 6 (Stenzler, p. 48), with yonim
after garbhas in a (and AGS. reads āitu), and omitting atra in
c; and further in HGS. (i. 25. 1), like MP. in a, but retaining
atra.

Griffith

As arrow to the quiver, so let a male embryo enter thee. Then from thy side be born a babe, a ten-month child, thy hero son.

पदपाठः

आ। ते॒। योनि॑म्। गर्भः॑। ए॒तु॒। पुमा॑न्। बाणः॑ऽइव। इ॒षु॒ऽधिम्। आ। वी॒रः। अत्र॑। जा॒य॒ता॒म्। पु॒त्रः। ते॒। दश॑ऽमास्यः। २३.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, योनिः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • वीरप्रसूति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे सुभगे] (पुमान्) रक्षा करनेवाला, पराक्रमी (गर्भः) गर्भ (ते) तेरे (योनिम्) गर्भाशय में (आ एतु) आवे, (बाणः इव) जैसे बाण (इषुधिम्) तूणीर [तीरों के थैले] में। (अत्र) इस घर में (दशमास्यः) दश महीने तक पुष्ट हुआ, (ते) तेरा (वीरः) वीर, (पुत्र) कुलशोधक बालक (आ जायताम्) अच्छे प्रकार उत्पन्न हो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वधू और वर यथाविधि ब्रह्मचारी रहकर युक्त आहार विहार करके सन्तान उत्पन्न करें, जिससे गर्भ अवश्य स्थिर रहे और पूर्ण रीति से पुष्ट होकर वीर सन्तान उत्पन्न हो ॥२॥ यहाँ पर अथर्ववेद का० १ सू० ११ मन्त्र ६ का मिलान करो। ऋग्वेद में ऐसा वर्णन है−द॒श मासा॑ञ्छशया॒नः कु॑मा॒रो अधि मा॒तरि॑। नि॒रैतु॑ जी॒वो अक्ष॑तो जी॒वो जीव॑न्त्या॒ अधि॑ ॥ ऋ० ५।७८।९ ॥ (मातरि अधि) माता के गर्भ में जो (कुमारः) बालक (दश मासान्) दश महीनों तक (शशयानः) सोता रहा है, वह (जीवः) जीता हुआ (अक्षतः) घाव से रहित (जीवः) जीव (जीवन्त्याः अधि) जीवती हुई माता से (निरैतु) बाहिर आवे। श्री सायणाचार्य ने यह मन्त्र इस प्रकार श्लोक में लिखा है−दश मासानुषित्वासौ जननीजठरे सुखम्। निर्गच्छतु सुखं जीवो जननी चापि जीवतु ॥ ऋ० सा० भा० ५।७८।९। (जननीजठरे) माता के पेट में (सुखम्) सुख से (दश मासान्) दस महीनों तक (उषित्वा) सोकर (असौ जीवः) वह जीव (निर्गच्छतु) बाहिर आवे, (च) और (जननी अपि) माता भी (जीवतु) जीवित रहे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(योनिम्) अ० १।११।३। गर्भाशयम्। (गर्भः) अ० १।११।२। भ्रूणः। उदरस्थबालकः। (आ, एतु) आगच्छतु। (पुमान्) अ० १।८।१। पा रक्षणे-डुमसुन्। रक्षणसमर्थः सन्तानः। (बाणः) बण शब्दे गतौ वा-घञ्। शरः। नाराचः। (इषुधिम्) कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। इति इषु+धा-कि। निषङ्गम्। (वीरः) शूरः। (अत्र) अस्मिन् कुले। (जायताम्) उत्पद्यताम्। (पुत्रः) अ० १।११।५। कुलशोधकः पुरुत्राता। पुतो नरकात् त्राता सन्तानः। यथा, तनयः, सूनुः, इति अपत्यनामसु पठितम्-निघ० २।२। (दशमास्यः) अ० १।११।६। दशमासान् भूतः ॥

०३ पुमांसं पुत्रम्

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पुमां॑सं पु॒त्रं ज॑नय॒ तं पुमा॒ननु॑ जायताम्।
भवा॑सि पु॒त्राणां॑ मा॒ता जा॒तानां॑ ज॒नया॑श्च॒ यान् ॥

०३ पुमांसं पुत्रम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Give birth to a male, a son; after him let a male be born; mayest
    thou be mother of sons, of those born and whom thou shalt bear.
Notes

All the mss. save one or two (including our E.) read at the end yā́m;
both editions make the necessary emendation to yā́n, which the comm.
also gives. At beginning of b, Ppp. reads tvam, as do also the
comm. and a couple of SPP’s mss.; and Ppp. ends with janayāmi ca. MB.
(i. 4. 9 c, d) has the first half-verse, reading vindasva for
janaya; and MP. (as above) ⌊i. 13. 2⌋ also, with púmāṅs te putró
nāri
for a. And śGS. (as above) has our a, b, with, for c,
d
, teṣām mātā, bhaviṣyasi jātānāṁ janayāṅsi ca ⌊the end corrupt, as
in Ppp.⌋.

Griffith

Bring forth a male, bring forth a son. Another male shall follow him. The mother shalt thou be of sons born and hereafter to be born.

पदपाठः

पुमां॑सम्। पु॒त्रम्। ज॒न॒य॒। तम्। पुमा॑न्। अनु॑। जा॒य॒ता॒म्। भवा॑सि। पु॒त्राणा॑म्। मा॒ता। जा॒ताना॑म्। ज॒नयाः॑। च॒। यान्। २३.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, योनिः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • वीरप्रसूति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे वधू] (पुमांसम्) रक्षा करनेवाला (पुत्रम्) बहुरक्षक, वीर सन्तान (जनय) उत्पन्न कर, (तम् अनु) उसके पीछे (पुमान्) रक्षा करनेवाला वीर बालक (जायताम्) उत्पन्न होवे। (जातानाम्) उत्पन्न हुए (पुत्राणाम्) नरक से बचानेवाले सन्तानों की (माता) माननीय माता (भवासि) हो, (च) और [उनकी भी] (यान्) जिनको (जनयाः) तू उत्पन्न करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - माता पिता ब्रह्मचर्य और इष्ट भोजन, छादन, व्यायाम आदि से प्रयत्न करें कि उनके सब पुत्र पुत्री सदैव पराक्रमी उत्पन्न होवे और माता पिता तथा संसार की सेवा करके पुमान् रक्षक बने रहें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(पुमांसम्) म० २। रक्षणसमर्थम्। (पुत्रम्) म० २। पुरुत्रातारम्। नरकात् त्रातारम्। सन्तानम्। (जनय) उत्पादय। (तम् अनु) तमनुसृत्य। तत्पश्चात्। (भवासि) लेटि आडागमः। त्वं भूयाः। (माता) अ० १।२।१। माननीया। जननी (जातानाम्) उत्पन्नानाम्। (जनयाः) जनेर्ण्यन्तात् लेटि आडागमः। त्वं जनयेः। (यान्) पुत्रान्, तेषामपि-इति शेषः। अन्यद् गतम् ॥

०४ यानि भद्राणि

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यानि॑ भ॒द्राणि॒ बीजा॑न्यृष॒भा ज॒नय॑न्ति च।
तैस्त्वं पु॒त्रं वि॑न्दस्व॒ सा प्र॒सूर्धेनु॑का भव ॥

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Whitney
Translation
  1. And what excellent seeds the bulls generate, with them do thou
    acquire (vid) a son; become thou a productive milch-cow.
Notes

śGS. (as above) has for b puruṣā janayanti naḥ; it rectifies the
meter of c by reading tebhiṣ ṭ- for tāts t- (and it has janaya
for vindasva); in d, it gives suprasūs, which is better than our
sā́ pr-. MP. (as above) ⌊i. 13. 3⌋ repeats our verse very closely, only
with nas for ca in b, and putrān in c; and it has, just
before, the line tāni bhadrṇi bījāny ṛṣabhā janayantu nāu. A verse in
HGS. (as above) is quite similar: yāni prabhūṇi vīryāṇy ṛṣabhā
janayantu naḥ: tāis tvaṁ garbhiṇī bhava sa jāyatāṁ vīratamaḥ svānām;

and it offers a little later sā prasūr dhenugā bhava. Our reading
tāis tvám in c is assured by Prāt. ii. 84; the resolution tu-ám
makes the meter correct.

Griffith

With that auspicious general flow wherewith steers propagate their kind, Do thou obtain thyself a son: be thou a fruitfu! mother-cow.

पदपाठः

यानि॑। भ॒द्राणि॑। बीजा॑नि। ऋ॒ष॒भाः। ज॒नय॑न्ति। च॒। तैः। त्वम्। पु॒त्रम्। वि॒न्द॒स्व॒। सा। प्र॒ऽसूः। धेनु॑का। भ॒व॒। २३.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, योनिः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • वीरप्रसूति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (च) और (यानि) जैसे (भद्राणि) मङ्गलदायक (बीजानि) बालकों को (ऋषभाः) सूक्ष्मदर्शी ऋषि लोग, अथवा, ऋषभ ओषधि के रस (जनयन्ति) उत्पन्न करते हैं, (तैः) वैसे ही [सन्तानों] के साथ (त्वम्) तू (पुत्रम्) कुलशोधक वा बहुरक्षक बालक को (विन्दस्व) प्राप्त कर, (सा=सा त्वम्) सो तू (प्रसूः) जननेवाली (धेनुका) दूध पिलानेवाली माता [अथवा दुधैल गौ के समान] (भव) हो ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य बड़े लोगों से ब्रह्मचर्य विद्या और ओषधि विद्या प्राप्त करके बली धर्मात्मा सन्तान उत्पन्न करें। और बलवती माता अपने बच्चों को अपना दूध पिलाकर बलवान् करे, जैसे गौ दूध पिलाकर बच्चे को पुष्ट बनाती है ॥४॥ शब्दकल्पद्रुमकोष में ऋषभ औषध को मधुर, शीतल, रक्तपित्तविकारनाशी वीर्य श्लेष्मकारी, और दाहज्वरहारी लिखा है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यानि) यादृशानि। (भद्राणि) मङ्गलप्रदानि। अमोघवीर्याणि। (बीजानि) अ० ३।१७।२। अपत्यानि-निघ० २।२। (ऋषभाः) अ० ३।६।४। सूक्ष्मदर्शिनः। ऋषयः। ऋषभौषधविशेषस्य रसाः। तस्य गुणाः। मधुरत्वम्। शीतत्वम्। रक्तपित्तविरेकनाशित्वम्। शुक्रश्लेष्मकारित्वम्। दाहक्षयज्वरहरत्वं च। इति शब्दकल्पद्रुमे। (जनयन्ति) उत्पादयन्ति। (तैः) तथाविधैः। (विन्दस्व) विद्लृ लाभे। लभस्व। (सा) सा त्वम्। (प्रसूः) सत्सूद्विष०। पा० ३।२।६१। इति प्र+षूङ् प्राणिप्रसवे-क्विप्। सन्तानोत्पादिका। (धेनुका) अ० ३।१०।१। धेनुरेव धेनुका। स्वार्थिकः कः। दुग्धदात्री। तर्पयित्री। धेनुवत् पोषयित्री ॥

०५ कृणोमि ते

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कृ॒णोमि॑ ते प्राजाप॒त्यमा योनिं॒ गर्भ॑ एतु ते।
वि॒न्दस्व॒ त्वं पु॒त्रं ना॑रि॒ यस्तुभ्यं॒ शमस॒च्छमु॒ तस्मै॒ त्वं भव॑ ॥

०५ कृणोमि ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I perform for thee the [ceremony] of Prajāpati; let a fœtus come to
    thy womb; acquire thou a son, O woman, who shall be weal for thee; weal
    also for him do thou become.
Notes

The accent of bháva at the end is anomalous. HGS. (as above) has the
first half-verse ⌊and MP., at i. 13. i, concordantly⌋; it reads karomi
at the beginning, and in b puts yonim after garbhas; this latter
Ppp. does also. The comm. understands prājāpatyam as above translated;
other renderings are possible (“das Zeugungswerk,” Weber;
“Zeugungsfähigkeit,” Zimmer). The metrical definition of the verse (8 +
8: 8 + 5 + 8 = 37) is not good save mechanically.

Griffith

I give thee power to bear a child: within, thee pass the germ of life! Obtain a son, O woman, who shall be a blessing unto thee. Be thou a blessing unto him.

पदपाठः

कृ॒णोमि॑। ते॒। प्रा॒जा॒ऽप॒त्यम्। आ। योनि॑म्। गर्भः॑। ए॒तु॒। ते॒। वि॒न्दस्व॑। त्वम्। पु॒त्रम्। ना॒रि॒। यः। तुभ्य॑म्। शम्। अस॑त्। शम्। ऊं॒ इति॑। तस्मै॑। त्वम्। भव॑। २३.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, योनिः
  • ब्रह्मा
  • उपरिष्टाद्भुरिग्बृहती
  • वीरप्रसूति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) तेरे लिये (प्राजापत्यम्) सन्तानरक्षक कर्म [गर्भाधान, पुंसवनादि संस्कार] (कृणोमि) मैं करता हूँ, (ते) तेरा (गर्भः) गर्भ (योनिम्) गर्भाशय में (आ एतु) आवे। (नारि) हे नर की हितकारिणी ! (त्वम्) तू (पुत्रम्) कुलशोधक सन्तान (विन्दस्व) प्राप्त कर (यः) जो (तुभ्यम्) तुझको (शम्) सुखदायक (असत्) होवे, (उ) और (त्वम्) तू (तस्मै) उसको (शम्) सुखदायक (भव) हो ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य वैद्यक शास्त्र के अनुसार उचित काल में उचित रीति से अमोघ गर्भाधानादि संस्कार करके सन्तान उत्पन्न करें, जिससे उस सन्तान का जन्म, आप उसको और माता पिता सबको सुखदायक हों ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(कृणोमि) करोमि। (ते) तुभ्यम्। (प्राजापत्यम्) दित्यदित्यादित्यपत्युत्तरपदाण्ण्यः। पा० ४।१।८५। इति प्रजाप्रति-ण्य। प्रजापतेर्गृहस्थस्य कर्म धर्म वा। गर्भाधानपुंसवनादिसंस्कारम्। (नारि) अ० १।११।१। हे नरस्य धर्म्ये। (शम्) सुखहेतुः। (उ) अपि च। अन्यद् गतम्-म० २, ४ ॥

०६ यासां द्यौष्पिता

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यासां॒ द्यौष्पि॒ता पृ॑थि॒वी मा॒ता स॑मु॒द्रो मूलं॑ वी॒रुधां॑ ब॒भूव॑।
तास्त्वा॑ पुत्र॒विद्या॑य॒ दैवीः॒ प्राव॒न्त्वोष॑धयः ॥

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Whitney
Translation
  1. The plants of which heaven has been the father, earth the mother,
    ocean the root—let those herbs of the gods (dāíva) favor thee, in
    order to acquisition of a son.
Notes

The first half-verse is found again later, as viii. 7. 2 c, d; in
both places, part of the mss. read dyāúṣ p- (here only our O., with
half of SPP’s); and that appears to be required by Prāt. ii. 74,
although the looser relation of the two words favors in a case like this
the reading dyāúḥ, which both editions present. Ppp- has an
independent version: yāsāṁ pitā parjanyo bhūmir mātā babhūva: with
devīs in c (this the comm. also reads) and oṣadhīs in d. The
verse is irregular, and capable of being variously read; and what the
Anukr. means by its definition is obscure.

Griffith

May those celestial herbs whose sire was Heaven, the Earth their mother, and their root the ocean. May those celestial healing Plants assist thee to obtain a son.

पदपाठः

यासा॑म्। द्यौः। पि॒ता। पृ॒थि॒वी। मा॒ता। स॒मु॒द्रः। मूल॑म्। वी॒रुधा॑म्। ब॒भूव॑। ताः। त्वा॒। पु॒त्र॒ऽविद्या॑य। दैवीः॑। प्र। अ॒व॒न्तु॒। ओष॑धयः। २३.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः, योनिः
  • ब्रह्मा
  • स्कन्धोग्रीवी बृहती
  • वीरप्रसूति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यासाम् वीरुधाम्) जिन उगनेवाली अन्नादि ओषधियों का (द्यौः) सूर्य (पिता) पालनेवाला, (पृथिवी) पृथिवी (माता) उत्पन्न करनेवाली, और (समुद्रः) समुद्र [जल] (मूलम्) जड़ (बभूव) हुआ है, (ताः) वे (देवीः) दिव्य गुणवाली (ओषधयः) औषधें (पुत्रविद्याय) सन्तान पाने के लिये (त्वा) तेरी (प्र) अच्छे प्रकार (अवन्तु) रक्षा करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अन्न आदि अनेक औषधियाँ सूर्य द्वारा वृष्टि और प्रकाश पाकर पृथिवी और जल के संयोग से उत्पन्न होती हैं, उनमें से उत्तम-२ बलवर्धक औषधों के उचित खान पान से माता पिता उत्तम सन्तान उत्पन्न करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(द्यौः) अ० २।१२।६। द्योतमानः सूर्यः। (पिता) अ० १।२।१। वृष्टिदानेन रक्षको जनयिता। (पृथिवी) अ० १।२।१। विस्तृता भूमिः। (माता) अ० ३।९।१। निर्मात्री। जननी। (समुद्रः) अ० १।१३।३। समुन्दनशीलः सागरः। (मूलम्) अ० २।७।३। मुख्यकारणम्। (वीरुधाम्) अ० १।३२।१। विरोहणस्वभावानाम्। ओषधीनाम्। (पुत्रविद्याय) संज्ञायां समजनिषदनिपत०। पा० ३।३।९९। इति विद्लृ लाभे, छन्दसि भावे क्यप्। सन्तानलाभाय। (दैवीः) अ० १।१९।२। दैव्यः। दिव्याः। अन्यद् गतम् ॥