००९ दुःखनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against viṣkandha and other evils.
VH anukramaṇī
दुःखनाशनम्।
१-६ वामदेवः। द्यावापृथिवी, देवाः। अनुष्टुप्, ४ चतुष्पदा निचृद्बृहती, ६भुरिक्।
Whitney anukramaṇī
[Vāmadeva.—dyāvāpṛthivīyam uta vāiśvadevam. ānuṣṭubham: 4. 4-p. nicṛd bṛhatī; 6. bhurij.]
Whitney
Comment
Found in Pāipp. iii. (with vs. 6 at the beginning). Used by Kāuś. (43. 1) in a charm against demons and the hindrances caused by them.
Translations
Translated: Weber, xvii. 215; Griffith, i. 91; Bloomfield, 67, 339.
Griffith
A charm against rheumatism (vishkondha)
०१ कर्शफस्य विशफस्य
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
क॒र्शफ॑स्य विश॒फस्य॒ द्यौः पि॒ता पृ॑थि॒वी मा॒ता।
यथा॑भिच॒क्र दे॒वास्तथाप॑ कृणुता॒ पुनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
क॒र्शफ॑स्य विश॒फस्य॒ द्यौः पि॒ता पृ॑थि॒वी मा॒ता।
यथा॑भिच॒क्र दे॒वास्तथाप॑ कृणुता॒ पुनः॑ ॥
०१ कर्शफस्य विशफस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Of the karśápha, of the viśaphá, heaven [is] father, earth
mother: as, O gods, ye have inflicted (abhi-kṛ), so do ye remove
(apa-kṛ) again.
Notes
The whole hymn contains much that is obscure and difficult, and the
comm. gives no real help anywhere, being as much reduced to guessing as
we are. Ppp. begins with karṣabhasya viṣabhyasya, which rather favors
Weber’s opinion, that the apha of the two names is a suffix, related
with abha; probably two varieties of viṣkandha are intended, though
none such are mentioned in the later medicine. The comm. finds śapha
‘hoof’ in both: one = kṛśaśaphasya (vyāghrādeḥ), the other either
vigataśaphasya or vispaṣṭaśaphasya. SPP. reads in b dyāúḥ p-,
which is doubtless preferable to our dyāúṣ p-; it is read by the
majority of his mss. and by part of ours (H.I.K.); Ppp. also has it.
Ppp. further omits abhi in c, and reads api for apa in d.
Griffith
Heaven is the sire, the mother Earth, of Karsapha and Visapha. As ye have brought them hither, Gods! so do ye move therm hence away.
पदपाठः
क॒र्शफ॑स्य। वि॒ऽश॒फस्य॑। द्यौः। पि॒ता। पृ॒थि॒वी। मा॒ता। यथा॑। अ॒भि॒ऽच॒क्र। दे॒वाः॒। तथा॑। अप॑। कृ॒णु॒त॒। पुनः॑। ९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
- वामदेवः
- अनुष्टुप्
- दुःखनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कर्शफस्य) निर्बल का और (विशफस्य) प्रबल का (द्यौः) प्रकाशमान परमेश्वर (पिता) पिता और (पृथिवी) विस्तीर्ण परमेश्वर (माता) निर्मात्री, माता है। (देवाः) हे विजयी पुरुषों ! (यथा) जैसे [शत्रुओं को] (अभिचक्र) तुमने हराया था, (तथा) वैसे ही (पुनः) फिर [उन्हें] (अपकृणुत) हटा दो ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जगत् के माता-पिता परमेश्वर ने वृष्टि द्वारा सूर्य और पृथिवी के संयोग से सब निर्बल और प्रबल जीवों को उत्पन्न किया है, इसलिये सब सबल और निर्बल मिलकर अविद्या, निर्धनता आदि शत्रुओं को मिटाकर आनन्द से रहें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(कर्शफस्य)। कॄशॄशलिकलिगर्दिभ्योऽभच्। उ० ३।१२२। इति कृश तनूकरणे, अल्पीभावे-अभच्, भस्य फः। कृशस्य। निर्बलस्य। विशफस्य। ऋषिवृषिभ्यां कित्। उ० ३।१२३। इति विश अन्तर्गमने-अभच् स च कित्, भस्य फः। विशः=मनुष्याः निघ० २।३। विशालस्य। प्रबलस्य। (द्यौः)। गमेर्डोः। उ० २।६२। इति द्युत दीप्तौ-डो। द्योतमानः। परमेश्वरः। (पिता)। पालकः। जनकः। (पृथिवी)। विस्तीर्णा। भूमिः। परमेश्वरः। (माता)। अ० १।२।१। मानङ्। पूजायाम्-माङ् माने वा तृच्। निपातितश्च। मातरः=निर्मात्र्यः-निरु० १२।७। मान्या। निर्मात्री। जननी। (यथा)। येन प्रकारेण। (अभिचक्र)। करोतेर्लिटि मध्यमबहुवचने रूपम्। यूयम् अभिभूतवन्तः। जितवन्तः। (देवाः)। दिवु विजिगीषायाम्-अच्। हे विजिगीषवः। विजयिनः। (तथा)। तेन प्रकारेण। (अप कृणुत)। कृवि हिंसाकरणयोः। अपकुरुत। निवारयत शत्रून्। (पुनः)। अवधारणे। द्वितीयवारे ॥
०२ अश्रेष्माणो अधारयन्तथा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑श्रे॒ष्माणो॑ अधारय॒न्तथा॒ तन्मनु॑ना कृ॒तम्।
कृ॒णोमि॒ वध्रि॒ विष्क॑न्धं मुष्काब॒र्हो गवा॑मिव ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑श्रे॒ष्माणो॑ अधारय॒न्तथा॒ तन्मनु॑ना कृ॒तम्।
कृ॒णोमि॒ वध्रि॒ विष्क॑न्धं मुष्काब॒र्हो गवा॑मिव ॥
०२ अश्रेष्माणो अधारयन्तथा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Without claspers they held fast (dhāraya); that was so done by
Manu; I make the víṣkandha impotent, like a castrater of bulls.
Notes
Ppp. begins with aśleṣamāṇo ‘dh-; some of the mss. (including our O.)
also give aśleṣmā́ṇas, and it is the reading of the comm.; he gives two
different and equally artificial explanations; and, what is surprising
even in him, three diverse ones of vádhri, without the least regard to
the connection; one of the three is the right one. Ppp. adds ca after
vadhri in c. Weber plausibly conjectures a method of tight tying
to be the subject of the verse; castration is sometimes effected in that
way.
Griffith
The bands hold fast without a knot: this is the way that Manu- used. I make Vishkandha impotent as one emasculateth bulls.
पदपाठः
अ॒श्रे॒ष्माणः॑। अ॒धा॒र॒य॒न्। तथा॑। तत्। मनु॑ना। कृ॒तम्। कृ॒णोमि॑। वध्रि॑। विऽस्क॑न्धम्। मु॒ष्क॒ऽआ॒ब॒र्हः। गवा॑म्ऽइव। ९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
- वामदेवः
- अनुष्टुप्
- दुःखनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्रेष्माणः) दाह [डाह] न करनेवाले पुरुषों ने [जगत् को] (अधारयन्) धारण किया है, (तथा) उसी प्रकार से ही (तत्) वह [जगत् का धारण] (मनुना) सर्वज्ञ परमेश्वर करके (कृतम्) किया गया है। (विष्कन्धम्) विघ्न को (वध्रि) निर्बल (कृणोमि) मैं करता हूँ, (गवाम् इव) जैसे बैलों के (मुष्काबर्हः) अण्डकोष तोड़नेवाला [बैलों को निर्बल कर देता है] ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - पक्षपातरहित परमेश्वर संसार का धारण-पोषण करता है, उसी प्रकार धर्मात्मा पुरुष किसी से वैर न करके उपकार करते आये हैं, वैसे ही प्रत्येक मनुष्य विघ्नों को हटाकर उन्नति करे, जैसे दुर्दमनीय बैल को असह्यबल से हीन करके कृषि आदि में चलाते हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अश्रेष्माणः)। सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। इति श्रिवु दाहे-मनिन्। दाहशून्याः। अमत्सराः। (अधारयन्)। धृतवन्तः। (तथा)। तद्वदेव। (तत्)। धारणरूपं कर्म। (मनुना)। शॄस्वृस्निहि०। उ० १।१०। इति मन बोधे-उ। सर्वज्ञेन परमेश्वरेण। (कृतम्)। अनुष्ठितम्। (कृणोमि)। करोमि। (वध्रि)। अदिशदिभूशुभिभ्यः क्रिन्। उ० ४।६५। इति बन्ध बन्धने क्रिन्। बन्ध्यम्। विफलम्। निर्वीर्यम्। (विष्कन्धम्)। अ० १।१६।३। वि+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः-अच्। विशेषेण शोषकम्। विघ्नजातम्। (मुष्काबर्हः)। सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। इति मुष लुण्ठने, वधे च, कक्। कर्मण्यण्। पा० ३।२।१। इति मुष्क+आङ्-बर्ह वधे दीप्तौ च-अण्। मुष्कम् अण्डकोषम्। आवृहति उन्मूलयतीति। अण्डकोषछेदकः। (गवाम्)। पुंगवानाम्। (इव)। यथा ॥
०३ पिशङ्गे सूत्रे
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पि॒शङ्गे॒ सूत्रे॒ खृग॑लं॒ तदा ब॑ध्नन्ति वे॒धसः॑।
श्र॑व॒स्युं शुष्मं॑ काब॒वं वध्रिं॑ कृण्वन्तु ब॒न्धुरः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पि॒शङ्गे॒ सूत्रे॒ खृग॑लं॒ तदा ब॑ध्नन्ति वे॒धसः॑।
श्र॑व॒स्युं शुष्मं॑ काब॒वं वध्रिं॑ कृण्वन्तु ब॒न्धुरः॑ ॥
०३ पिशङ्गे सूत्रे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- On a reddish string a khṛ́gala—that the pious (vedhás) bind on;
let the binders (?) make impotent the flowing (?), puffing (?) kābavá.
Notes
All obscure and questionable. Ppp’s version is: for a, sūtre
piśun̄khe khugilaṁ; in b, yad for tad; for c, śravasyaṁ
śuṣma kābabam (the nāgarī copyist writes kāvardham). The comm. also
has in c śravasyam, and three or four of SPP’s mss. follow him;
the translation assumes it to be for srav-. The comm. explains
khṛ́galam by tanutrāṇam ‘armor,’ quoting RV. ii. 39. 4 as authority;
śravasyam by bālarūpam annam arhati (since śravas is an
annanāman!); śúṣmam by śoṣakam ⌊see Bloomfield, ZDMG. xlviii.
574⌋; kābava as a hindrance related with a kabu, which is a speckled
(karburavarṇa) cruel animal; and bandhúras is either the amulet
bound upon us, or it is for -rās, “the amulet, staff, etc., held by
us.”
Griffith
Then to a tawny-coloured string the wise and skilful bind a brush. Let bandages make impotent the strong and active Kabava.
पदपाठः
पि॒शङ्गे॑। सूत्रे॑। खृग॑लम्। तत्। आ। ब॒ध्न॒न्ति॒। वे॒धसः॑। श्र॒व॒स्युम्। शुष्म॑म्। का॒ब॒वम्। वध्रि॑म्। कृ॒ण्व॒न्तु॒। ब॒न्धुरः॑। ९.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
- वामदेवः
- अनुष्टुप्
- दुःखनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वेधसः) बुद्धिमान् पुरुष (पिशङ्गे) व्यवस्था वा अवयवों से युक्त वा दृढ़ (सूत्रे) सूत में (तत्) विस्तीर्ण (खृगलम्) खनती वा छिद्र में गलानेवाले, विघ्न को (आ) सब ओर से (बध्नन्ति) बाँधते हैं। (बन्धुरः=०−राः) बन्धुजन (श्रवस्युम्) प्रसिद्ध, (शुष्मम्) सुखानेवाले (काबवम्) स्तुतिनाशक शत्रु को (बध्रिम्) निर्वीर्य (कृण्वन्तु) कर देवें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग वेद द्वारा छोटे-छोटों के मेल से बड़ी-२ विपत्तियों को हटा देते हैं, इससे सब बान्धव मिलकर बाहरी और भीतरी दोषों को मिटाकर सुख भोगें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(पिशङ्गे)। विडादिभ्यः कित्। उ० १।१२१। इति पिश व्यवस्थायाम्, अवयवे च-अङ्गच् व्यवस्थायुक्ते। अवयवयुक्ते। दृढे। (सूत्रे)। सिविमुच्योष्टेरू च। उ० ४।१६३। इति षिवु तन्तुसन्ताने-ष्ट्रन्। यद्वा। सूत्र ग्रन्थने वेष्टने च-अच्। तन्तौ। व्यवस्थायाम्। नियमे। (खृगलम्)। नयतेर्डिच्च। उ० २।१०। इति खनु विदारे-ऋ प्रत्ययः, टिलोपः। गल भक्षे स्रावे च-अच्। खृ खननं छिद्रम्, तत्र गलयतीति खृगलः। छिद्रे गलनशीलं विघ्नम्। (तत्)। त्यजितनियजिभ्यो डित्। १।१३२। इति तनु विस्तारे-अदि, स च डित्। विस्तृतम्। (आ)। समन्तात्। (बध्नन्ति)। नियमे कुर्वन्ति। (वेधसः)। अ० १।११।१। ब्राह्मणाः। मेधाविनः। (श्रवस्युम्)। क्याच्छन्दसि। पा० ३।२।१७०। इति श्रवस्-क्यच्-उ श्रवः श्रवणम् इच्छन्तम्। महान्तम्। प्रसिद्धम् (शुष्मम्)। अविसिविसिशुषिभ्यः कित्। उ० १।१४४। इति शुष शोषणे-मन्। शोषकम्। (काबवम्)। कबृ स्तुतौ-वर्णे च घञ्+वा गतिहिंसनयोः-क। स्तुतेर्वर्णस्य वा नाशकम्। शत्रुम्। (वध्रिम्)। म० २। निर्वीर्यम्। असमर्थम्। (कृण्वन्तु)। कुर्वन्तु। (बन्धुरः)। मद्गुरादयश्च। उ० १।४१। इति बन्ध बन्धने-उरच्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति जसः स्थाने सु। बन्धुराः। नियमबद्धाः। बान्धवः ॥
०४ येना श्रवस्यवश्चरथ
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येना॑ श्रवस्यव॒श्चर॑थ दे॒वा इ॑वासुरमा॒यया॑।
शुनां॑ क॒पिरि॑व॒ दूष॑णो॒ बन्धु॑रा काब॒वस्य॑ च ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
येना॑ श्रवस्यव॒श्चर॑थ दे॒वा इ॑वासुरमा॒यया॑।
शुनां॑ क॒पिरि॑व॒ दूष॑णो॒ बन्धु॑रा काब॒वस्य॑ च ॥
०४ येना श्रवस्यवश्चरथ ...{Loading}...
Whitney
येना॑ श्रवस्यव॒श्चर॑थ दे॒वा इ॑वासुरमा॒यया॑ ।
शुनां॑ क॒पिरि॑व॒ दूष॑णो॒ बन्धु॑रा काब॒वस्य॑ च ॥४॥
Griffith
Ye who move active in your strength like Gods with Asuras’ magic powers, Even as the monkey scorns the dogs, Bandages! scorn the Kabava.
पदपाठः
येन॑। श्र॒व॒स्य॒वः॒। चर॑थ। दे॒वाःऽइ॑व। अ॒सु॒र॒ऽमा॒यया॑। शुना॑म्। क॒पिःऽइ॑व। दूष॑णः। बन्धु॑रा। का॒ब॒वस्य॑। च॒। ९.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
- वामदेवः
- चतुष्पदा निचृद्बृहती
- दुःखनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (येन) जिस [बल] के साथ (श्रवस्यवः) हे प्रसिद्ध महापुरुषों ! (देवाः इव) विजयी लोगों के समान (असुरमायया) प्रकाशमान ईश्वर की बुद्धि से (चरथ) तुम आचरण करते हो, [उसी बल के साथ] (शुनाम्) कुत्तों के (दूषणः) तुच्छ जाननेवाले (कपिः इव) बन्दर के समान (बन्धुरा) बन्धनशक्ति [नीतिविद्या] (च) निश्चय करके (काबवस्य) स्तुतिनाशक शत्रु की [तुच्छ करनेवाली होती है] ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - शास्त्रबल से प्रसिद्ध पुरुष अन्य महात्माओं का अनुकरण करके तीव्र बुद्धि के साथ उदाहरण बनते हैं, इसी प्रकार सब पुरुष नीतिबल से शत्रुओं पर प्रबल रहें, जैसे बन्दर वृक्ष पर चढ़कर कुत्तों से निर्भय रहता है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४− (येन)। शास्त्रबलेन। (श्रवस्यवः)। म० ३। प्रसिद्धाः। महान्तः कीर्तिमन्तः। (चरथ)। आचरणं कुरुथ। (देवाः इव)। विजयिनो पथा। (असुरमायया)। असुर इति व्याख्यातम्-अ० १।१०।१। असेरुरन् उ० १।४२। इति असु क्षेपणे, यद्वा, अस गतिदीप्त्यादानेषु-उरन्। माछाशसिभ्यो यः। उ० ४।१०९। इति माङ् माने-य, टाप्। माया प्रज्ञानाम-निघ० ३।९। असुरस्य प्रकाशमानस्य परमेश्वरस्य मायया प्रज्ञया सह। (शुनाम्)। श्वन्नुक्षन्पूषन्। उ० १।१५९। इति श्वि गतौ वृद्धौ च-कनिन्। कुक्कुराणाम्। (कपिः)। कुण्ठिकम्पयोर्नलोपश्च। उ० ४।१४४। इति कपि चलने-इप्रत्ययः। वानरः। (इव)। यथा। (दूषणः)। नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः। पा० ३।१।१३४। इति दुष वैकृत्ये, णिच्-ल्यु। दूषयतीति यः। दूषकः। दोषोत्पादकः। (बन्धुरः)। म० ३। बन्ध-उरच्, टाप्। बध्यतेऽनया। बन्धनशीला। नीतिविद्या। (काबवस्य)। म० ३। स्तुतिनाशकस्य शत्रोः। दूषयित्री भवतीति शेषः। (च)। अवधारणे ॥
०५ दुष्ट्यै हि
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दुष्ट्यै॒ हि त्वा॑ भ॒र्त्स्यामि॑ दूषयि॒ष्यामि॑ काब॒वम्।
उदा॒शवो॒ रथा॑ इव श॒पथे॑भिः सरिष्यथ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दुष्ट्यै॒ हि त्वा॑ भ॒र्त्स्यामि॑ दूषयि॒ष्यामि॑ काब॒वम्।
उदा॒शवो॒ रथा॑ इव श॒पथे॑भिः सरिष्यथ ॥
०५ दुष्ट्यै हि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Since I shall bind thee [on] for spoiling, I shall spoil the
kābavá; ye shall go up with curses, like swift chariots.
Notes
The translation implies emendation of bhartsyā́mi (our edition) or
bhatsyā́mi (SPP’s and the comm.) to bhantsyā́mi, from root bandh,
which seems plainly indicated as called for; the comm. explains bhats-
first as badhnāmi, and then as dīpayāmi; the great majority of mss.
give bharts-. Ppp. is quite corrupt here: juṣṭī tvā kāṁcchā ’bhi
joṣayitvā bhavaṁ. The comm. has at the end cariṣyatha (two or three
of SPP’s mss. agreeing with him), and he combines in c udāśavas
into one word, “harnessed with speedy horses that have their mouths
raised for going.”
Griffith
Yea, I will chide thee to thy shame, I will disgrace the Kabava. Under our impracations ye, like rapid cars, shall pass away.
पदपाठः
दुष्ट्यै॑। हि। त्वा॒। भ॒त्स्यामि॑। दू॒ष॒यि॒ष्यामि॑। का॒ब॒वम्। उत्। आ॒शवः॑। रथाः॑ऽइव। श॒पथे॑भिः। स॒रि॒ष्य॒थ॒। ९.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
- वामदेवः
- चतुष्पदा निचृद्बृहती
- दुःखनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दुष्ट्यै) दुष्टता [हटाने] के लिए, (हि) ही (काबवम्) स्तुतिनाशक (त्वा) तुझको (भर्त्स्यामि) मैं बाँधूँगा और (दूषयिष्यामि) दोषी ठहराऊँगा। (आशवः) शीघ्रगामी (रथाः इव) रथों के समान (शपथेभिः=०−थैः) हमारे शाप अर्थात् दण्ड वचनों से (उत् सरिष्यथ) तुम सब बन्धन में चले जाओगे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा नाम में धब्बा लगानेवाले दुष्ट को कारागार में रखकर उसके दोष प्रसिद्ध कर दे और उसके सहायकों को भी उचित दण्ड देवे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(दुष्ट्यै)। दुष वैकृत्ये-क्तिन्। दोषनिवारणाय। (हि)। निश्चयेन। (त्वा)। शत्रुम्। (भर्त्स्यामि)। बन्धेर्लृटि। एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्। पा० ७।२।१०। इति इट्प्रतिषेधः। नलोपश्छान्दसः। यद्वा। भस भर्त्सनदीप्त्योः। लृट्। छान्दस इडभावः। सः स्यार्धधातुके। पा० ७।४।४९। इति सस्य तः। बन्धे करिष्यामि। भर्त्सयिष्यामि। तिरस्करिष्यामि। (काबवम्)। म० ३। स्तुतिनाशकम्। (आशवः)। अशू व्याप्तौ-उण्। शीघ्रगामिनः। (रथाः)। हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। इति रमु क्रीडे-क्थन्, अनुनासिकलोपः। स्यन्दनाः। (इव)। यथा। (शपथेभिः)। अ० २।७।१। शपथैः। शापैः। क्रोधवचनैः। (उत् सरिष्यथ)। सृ लृट्। उत् बन्धने चरिष्यथ गमिष्यथ ॥
०६ एकशतं विष्कन्धानि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
एक॑शतं॒ विष्क॑न्धानि॒ विष्ठि॑ता पृथि॒वीमनु॑।
तेषां॒ त्वामग्र॒ उज्ज॑हरुर्म॒णिं वि॑ष्कन्ध॒दूष॑णम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
एक॑शतं॒ विष्क॑न्धानि॒ विष्ठि॑ता पृथि॒वीमनु॑।
तेषां॒ त्वामग्र॒ उज्ज॑हरुर्म॒णिं वि॑ष्कन्ध॒दूष॑णम् ॥
०६ एकशतं विष्कन्धानि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- A hundred and one víṣkandhas [are] distributed over the earth;
thee have they first taken up, of them the *víṣkandha-*spoiling amulet.
Notes
That is, ‘an amulet that spoils those víṣkandhas’ (Weber otherwise).
In c, for the jaharus of all the mss. and of both editions, we
ought of course to have jahrus; this the comm. reads: such expansions
of r with preceding or following consonant to a syllable are not rare
in the manuscripts. Ppp. has a different second half-verse: teṣāṁ ca
sarveṣām idam asti viṣkandhadūṣaṇam. The second pāda is found, in a
different connection, as MB. ii. 8. 4 b. The comment on Prāt. ii.
104, in quoting this verse, appears to derive víṣkandha from root
skand. The verse is made bhurij only by the false form jaharus.
⌊For “101,” see note to iii. 11. 5.⌋
Griffith
One and one hundred over earth are the Vishkandhas spread abroad. Before these have they fetched thee forth. Vishkandha quelling Amulet.
पदपाठः
एक॑ऽशतम्। विऽस्क॑न्धानि। विऽस्थि॑ता। पृ॒थि॒वीम्। अनु॑। तेषा॑म्। त्वाम्। अग्रे॑। उत्। ज॒ह॒रुः॒। म॒णिम्। वि॒स्क॒न्ध॒ऽदूष॑णम्। ९.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
- वामदेवः
- भुरिगनुष्टुप्
- दुःखनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एकशतम्) एक सौ एक (विष्कन्धानि) विघ्न (पृथिवीम् अनु) पृथिवी पर (विष्ठिता=०−तानि) फैले हुए हैं [हे शूर !] (तेषाम् अग्रे) उनके सन्मुख (विष्कन्धदूषणम्) विघ्ननाशक (मणिम्) प्रशंसनीय मणिरूप (त्वाम्) तुझको उन्होंने [देवताओं ने] (उत् जहरुः) ऊँचा उठाया है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रतिष्ठित लोग राजा को एकशतम् अनेक विघ्नों से रक्षा के लिए अग्रगामी बनाते हैं, इसलिये राजा अपने धर्म का यथार्थ पालन करे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(एकशतम्)। एकं च शतं चैकशतम्। एकोत्तरशतसंख्यानि। अपरिमितानि। (विष्कन्धानि)। म० २। विघ्नाः। (विष्ठिता)। शेर्लोपः। विविधं स्थितानि। (पृथिवीम् अनु)। अनुर्लक्षणे। पा० १।४।८४। इत्यनोः कर्मप्रवचनीयत्वम्। कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया। पा० २।३।८। इति द्वितीया। भूमिं प्रति। (तेषाम्)। विघ्नानाम्। (अग्रे)। पूर्वम्। (उज्जहरुः)। हृञ् हरणे-लिट् उज्जह्रुः। उद्धृतवन्तः। उन्नीवन्तः। (मणिम्)। मण शब्दे-इन्। शब्दनीयम्। स्तुत्यम्। प्रशस्यम् मणिरूपं वा। (विष्कन्धदूषणम्)। विघ्ननाशकम् ॥