०३० कामिनीमनोऽभिमुखीकरणम्

०३० कामिनीमनोऽभिमुखीकरणम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To secure a woman’s love.
VH anukramaṇī

कामिनीमनोऽभिमुखीकरणम्।
१-५ प्रजापतिः। १ मनः, २ अश्विनौ, ३-४ औषधिः, ५ दम्पती। अनुष्टुप्, १ पथ्यापङ्क्तिः, ३ भुरिक्।

Whitney anukramaṇī

[Prajāpati (kāminīmano‘ bhimukhīkaraṇakāmaḥ).—āśvinam. ānuṣṭubham: 1. pathyāpan̄kti; 3. bhurij.]

Whitney

Comment

Found in Pāipp. ii. (in the verse-order 1, 5, 2, 4, 3). Used by Kāuś. (35. 21 ff.), with vi. 8 and other hymns, in a rite concerning women, to gain control over a certain person: a mess of various substances is prepared, and her body smeared with it—which is much like the proverbial catching of a bird by putting salt on its tail.

Translations

Translated: Weber, v. 218 and xiii. 197; Ludwig, p. 517; Grill, 52, 97; Griffith, i. 70; Bloomfield, 100, 311.

Griffith

A man’s love-charm

०१ यथेदं भूम्या

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यथे॒दं भूम्या॒ अधि॒ तृणं॒ वातो॑ मथा॒यति॑।
ए॒वा म॑थ्नामि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥

०१ यथेदं भूम्या ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As the wind here shakes the grass off the earth, so do I shake thy
    mind, that thou mayest be one loving me, that thou mayest be one not
    going away from me.
Notes

The last half-verse is the same with the concluding pādas of i. 34. 5
and vi. 8. 1-3; SPP. again alters the pada-text to ápa॰gāḥ (see
under i. 34. 5); Ppp. has here for e evā mama tvāyasī. Ppp. reads
in a, b bhūmyā ’dhi vatas (!) tṛ-. We should expect in a
rather bhū́myām, and this the comm. reads, both in his exposition and
in his quotation of the pratīka from Kāuś.; but Bloomfield gives no such
variant in his edition.

Griffith

As the wind shake this Tuft of Grass hither and thither on the ground. So do I stir and shake thy mind, that thou mayst be in love with me, my darling, never to depart.

पदपाठः

यथा॑। इ॒दम्। भूम्याः॑। अधि॑। तृण॑म्। वातः॑। म॒था॒यति॑। ए॒व। म॒थ्ना॒मि॒। ते॒। मनः॑। यथा॑। माम्। का॒मिनी॑। असः॑। यथा॑। मत्। न। अप॑ऽगाः। असः॑। ३०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मनः
  • प्रजापतिः
  • अनुष्टुप्
  • कामिनीमनोऽभिमुखीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जिस प्रकार (वातः) वायु (भूम्याः) भूमि के (अधि) ऊपर (इदम्) इस (तृणम्) तृण को (मथायति) चलाता है। (एव) वैसे ही (ते) तेरे (मनः) मन को (मथ्नामि) मैं चलाता हूँ, (यथा) जिससे तू (माम् कामिनी) मेरी कामनावाली (असः) होवे और (यथा) जिससे तू (मत्) मुझसे (अपगाः) वियोग करनेवाली (न) न (असः) होवे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्यासमाप्ति पर ब्रह्मचारी अपने अनुरूप गुणवती कन्या को ढूँढ़े और कन्या भी अपने सदृश वर ढूँढ़े। इस प्रकार विवाह होने से वियोग न होकर आपस में प्रेम बढ़ता और आनन्द मिलता है ॥१॥ (भूम्याः) पद के स्थान पर सायणभाष्य में (भूम्याम्) है। इस मन्त्र का अन्तिम भाग (यथामां–मन्नापगा असः) अ० १।३४।५ और ६।८।१–३। में भी है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १–यथा। येन प्रकारेण। इदम्। परिदृश्यमानम्। भूम्याः। अ० १।११।२। पृथिव्याः। अधि। उपरि। तृणम्। तृहेः क्नो हलोपश्च। उ० ५।८। इति तृह हिंसायाम्–क्त, हलोपः। तृह्यते हन्यते भक्ष्यते। गवादिभिः। गवादिभक्ष्यम्। वातः। अ० १।११।६। वायुः। मथायति। छन्दसि शायजपि। पा० ३।१।८४। इति बाहुलकात् मथ विलोडने–शायच्। विलोडयति। भ्रामयति। एव। एवम्। तथा। मथ्नामि। मन्थ विलोडने। विलोडयामि। ते। तव। मनः। मन–असुन्। चित्तम्। यथा। यस्मात् कारणात्। माम्। कामयमानं वरम्। कामिनी। कमेर्णिजन्ताद् औणादिक इनि प्रत्ययः। ङीप्। भविष्यति गम्यादयः। पा० ३।३।३। इति भविष्यदर्थत्वम्। अकेनोर्भविष्यदाधमर्ण्ययोः। पा० २।३।७०। इति कर्मणि षष्ठी प्रतिषेधत्वात् (माम्) इति द्वितीया। काङ्क्षिष्यन्ती। असः। भवेः। मत्। मत्तः सकाशात्। न। निषेधे। अपगाः। जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। इति गमेर्विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। इति आत्त्वम्। अपसृत्य गन्त्री। वियोगं प्राप्ता ॥

०२ सं चेन्नयाथो

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सं चेन्नया॑थो अश्विना का॒मिना॒ सं च॒ वक्ष॑थः।
सं वां॒ भगा॑सो अग्मत॒ सं चि॒त्तानि॒ समु॑ व्र॒ता ॥

०२ सं चेन्नयाथो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. May ye, O Aśvins, both lead together and bring [her] together with
    him who loves her. The fortunes (bhága) of you (two) have come
    together, together [your] intents, together [your] courses
    (vratá).
Notes

Notwithstanding the accent of vákṣathas, it does not seem possible to
understand céd in a as ‘if’ (Grill, however, so takes it; Weber as
above), since the second halfverse has no application to the Aśvins (we
should like to alter vām in c to nāu). ⌊But see Bloomfield.⌋ The
translators take kāmínā in a as for kāmínāu ’the (two) lovers,’
which it might also well be; the comm. says kāminā mayā. He also calls
vrata simply a karmanāman, which is very near the truth, as the word
certainly comes from root vṛt (see JAOS. xi., p. ccxxix = PAOS. Oct.
1884). Ppp. reads neṣitas in b for vakṣathas; and, in c, d,
sarvā ’n̄ganāsy agmata saṁ cakṣūṅṣi sam etc. Both here and in vs. 5
bhága might possibly have its other sense of genitalia, or imply that
by double meaning; but the comm., who would be likely to spy out any
such hidden sense, says simply bhāgyāni. ⌊In a, aśvinā is
misprinted.—W’s implications are that if vakṣathas were toneless it
might be taken as a case of antithetical construction and that there
would be no need to join it with céd.

Griffith

Ye, Asvins, lead together, ye unite and bring the loving pair. Now have the fortunes of you twain, now have your vows and spirits met.

पदपाठः

सम्। च॒। इत्। नया॑थः। अ॒श्वि॒ना॒। का॒मिना॑। सम्। च॒। वक्ष॑थः। सम्। वा॒म्। भगा॑सः। अ॒ग्म॒त॒। सम्। चि॒त्तानि॑। सम्। ऊं॒ इति॑। व्र॒ता। ३०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनीकुमारौ
  • प्रजापतिः
  • अनुष्टुप्
  • कामिनीमनोऽभिमुखीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (च) और (अश्विना=०–नौ) हे कार्य में व्याप्तिवाले माता और पिता, तुम दोनों, (इत्) ही (कामिना=०–नौ) कामनावाले दोनों [वर-कन्या] को (सम्) मिलकर (नयाथः) ले चलो, (च) और (सम्) मिलकर (वक्षथः) आगे बढ़ाओ। (वाम्) तुम दोनों के (भगासः=भगाः) सब ऐश्वर्य (सम् अग्मत) [हमको] मिल गये हैं, (चित्तानि) [हमारे] चित्त (सम्=सम्+अग्मत) मिल गये हैं, (उ) और भी (व्रता=व्रतानि) नियम और कर्म (सम्+अग्मत) मिल गये हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वर और कन्या माता-पिता आदि बड़ों की भी सम्मति प्राप्त करें। उनके अनुग्रह से दोनों ने विद्या, धन और सुवर्ण आदि धन और परस्पर एक चित्त होने और नियमपालन की शक्ति को पाया है। यह मूल मन्त्र गृहस्थाश्रम में आनन्दवर्धक है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २–सम्। मिलित्वा। संगत्य। च। समुच्चये। इत्। अवश्यम्। नयाथः। नयतेलेर्टि आडागमः। प्रापयतम्। अश्विना। अ० २।२९।६। हे कार्येषु व्यापनशीलौ मातापितरौ। कामिना। म० १। कम–णिच्–इनि। कामयमानौ। कन्यावरौ। वक्षथः। वहेर्लेटि अडागमः, सिप् च। युवां वहतम्। संयोजयतम्। वाम्। युवयोः। भगासः। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति जसि असुक्। भगाः। भजनीयानि, ऐश्वर्याणि। सम्+अग्मत। समोगम्यृच्छि०। पा० १।३।२९। आत्मनेपदम्। लुङि च्लेर्लुक् सम्यग् अगमन्। चित्तानि। चिती ज्ञाने–क्त। मनांसि। व्रतानि। पृषिरञ्जिभ्यां कित्। उ० ३।१११। इति वृञ्–अतच्। कित्त्वाद् गुणाभावः, यणादेशः। व्रतमिति कर्मनाम वृणोतीति सत इदमपीतरद् व्रतमेतस्मादेव निवृत्तिकर्म वारयतीति सतोऽन्नमपि व्रतमुच्यते यदावृणोति शरीरम्–निरुक्ते–२।१३। कर्माणि। नियमान् ॥

०३ यत्सुपर्णा विवक्षवो

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यत्सु॑प॒र्णा वि॑व॒क्षवो॑ अनमी॒वा वि॑व॒क्षवः॑।
तत्र॑ मे गछता॒द्धवं॑ श॒ल्य इ॑व॒ कुल्म॑लं॒ यथा॑ ॥

०३ यत्सुपर्णा विवक्षवो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What the eagles [are] wanting to say, the free from disease [are]
    wanting to say—there let her come to my call, as the tip to the neck of
    the arrow (kúlmala).
Notes

The first half-verse is very obscure, and very differently understood by
the translators; the rendering above is strictly literal, avoiding the
violences which they allow themselves; the comm. gives no aid; he
supplies strīviṣayaṁ vākyam to yat, and explains anamīvās by
arogiņo ’dṛptāḥ (? SPP. understands dṛptāḥ) kāmijanāḥ. Ppp. has an
independent text: yas suparṇā rakṣāṇa vā na vakṣaṇa vā trātānpitaṁ
manaḥ: śalye ’va gulmalūṁ yathā
—too corrupt to make much of. The Anukr.
declines to sanction the contraction śalyé ’va in d.

Griffith

When eagles, calling out aloud, are screaming in the joy of health, Then to my calling let her come, as to the arrow’s neck the shaft.

पदपाठः

यत्। सु॒ऽप॒र्णाः। वि॒व॒क्षवः॑। अ॒न॒मी॒वाः। वि॒व॒क्षवः॑। तत्र॑। मे॒। ग॒च्छ॒ता॒त्। हव॑म्। श॒ल्यःऽइ॑व। कुल्म॑लम्। यथा॑। ३०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ओषधिः
  • प्रजापतिः
  • भुरिगनुष्टुप्
  • कामिनीमनोऽभिमुखीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्=यत्र) जहाँ (सुपर्णाः) बड़ी पूर्त्तिवाले [अथवा गरुड़, गिद्ध, मोर आदि के समान दूरदर्शी पुरुष] (विवक्षवः) विविध प्रकार से राशि वा समूह करनेवाले और (अनमीवाः) रोगरहित स्वस्थ पुरुष (विवक्षवः) बोलनेवाले हों, (तत्र) उस स्थान में [वह वर वा कन्या] (मे) मेरी [वर व कन्या को] (हवम्) पुकार [विज्ञापन] को (गच्छतात्) पावे, (शल्यः इव) जैसे वाण की कील (यथा) जिस प्रकार (कुल्मलम्) अपने दण्डे में [पहुँचती है] ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जहाँ विद्वान् पुरुषों में रहकर वर ने और विदुषी स्त्रियों में रहकर कन्या ने विद्या और सुवर्णादि धन प्राप्त किये हों और नीरोग रहने और धर्म उपदेश करने की शिक्षा पायी हो, वहाँ पर उन दोनों के विवाह की बातचीत पहुँचे और ऐसी दृढ़ हो जावे जैसे वाण की कील, वाण की दण्डी में पक्की जम जाती है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३–यत्। यत्र स्थाने। सुपर्णाः। अ० १।२४।१। सुपालनाः, सुपूरणाः। सुपतनशीला गरुडादयः पक्षिणो यथा। विवक्षवः। भृमृशीङ्०। उ० १।७। इति वि+वक्ष रोषसंहत्योः–उ। विविधं राशीकरणशीलाः, विद्यासुवर्णादीनाम्। अनमीवाः। अ० २।२९।६। रोगरहितः। स्वस्थाः। विवक्षवः। ब्रुवः सनि वच्यादेशे। सनाशंसभिक्ष उः। पा० ३।२।१६८। उ प्रत्ययः। वक्तुमिच्छवः। तत्र। तस्मिन् स्थाने। मे। मम। गच्छतात्। प्राप्नुयात् वरः कन्या वा। हवम्। अ० १।१५।२। ह्वेञ्–अप्। आवाहनम्। विज्ञापनम्। शल्यः। सानसिवर्णसिपर्णसि….. शल्याः। उ० ४।१०७। इति शल गतौ–य। वाणाग्रभागः। शस्त्रविशेषः। कुल्मलम्। कुषेर्लश्च। उ० ४।१८८। इति कुष निष्कर्षे, दीप्तौ क्मलन्। षस्य लः। कुष्मलम्। छेदनम्। वाणदण्डछिद्रम् ॥

०४ यदन्तरं तद्बाह्यम्

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यदन्त॑रं॒ तद्बाह्यं॒ यद्बाह्यं॒ तदन्त॑रम्।
क॒न्या॑नां वि॒श्वरू॑पाणां॒ मनो॑ गृभायौषधे ॥

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Whitney
Translation
  1. What [was] within, [be] that without; what [was] without,
    [be] that within; of the maidens of many forms seize thou the mind, O
    herb.
Notes

In the obscure formalism of a, b the comm. thinks mind and speech to
be intended. ⌊Why not rétas and śépas?⌋ ‘Of all forms,’ i.e., as
often elsewhere, ‘of every sort and kind.’ ⌊Ppp. reads abāhyaṁ for
bāhyaṁ yad bāhyaṁ.

Griffith

Let what is inward turn outside, let what is outward be within: Seize and possess, O Plant, the mind of maidens rich in every charm.

पदपाठः

यत्। अन्त॑रम्। तत्। बाह्य॑म्। यत्। बाह्य॑म्। तत्। अन्त॑रम्। क॒न्या᳡नाम्। वि॒श्वऽरू॑पाणाम्। मनः॑। गृ॒भा॒य॒। ओ॒ष॒धे॒। ३०.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ओषधिः
  • प्रजापतिः
  • अनुष्टुप्
  • कामिनीमनोऽभिमुखीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे वर ! (यत्) जो कुछ प्रीतिभाव आदि] (अन्तरम्) भीतर [तेरे हृदय में] है, (तत्) वह (बाह्यम्) बाहिर [कन्या को प्रकट] हो और (यत्) जो कुछ [प्रीतिभाव] (बाह्यम्) बाहिर [प्रकट किया जाय,] (तत्) वह (अन्तरम्) भीतर [कन्या के हृदय में स्थिर हो] (ओषधे) हे तापनाशक [ओषधिरूप वर] (विश्वरूपाणाम्) सर्वसुन्दरी (कन्यानाम्) कन्याओं [कन्या] के (मनः) मन को (गृभाय) ग्रहण कर ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वर हार्दिक प्रीति से कन्या के साथ व्यवहार करे और पत्नी भी पति से हार्दिक प्रीति रक्खे। इस प्रकार परस्पर प्रसन्नता से गृहलक्ष्मी बढ़ेगी और नित्यप्रति आनन्द रहेगा। (कन्यानाम्) बहुवचन एक के लिये आदरार्थ है और मन्त्र में जो वर को उपदेश है, वही कन्या के लिये भी समझना चाहिये ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४–यत्। किञ्चित्, प्रीतिभावः। शुभविचारः। अन्तरम्। अन्त+रा–क। अन्तं राति ददाति। मध्यम्। अन्तर्धानम्। आत्मीयम्। बाह्यम्। दित्यदित्यादित्य०। पा० ४।१।८५। अत्र वार्त्तिकम्। बहिषष्टिलोपो यञ् च। इति बहिस्–यञ्, टिलोपश्च। बहिष्ठम्। प्रकटम्। कन्यानाम्। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। इति कनी दीप्तिकान्तिगतिषु–यच्, टाप् च। आदरार्थं बहुवचनम्। दीप्यमानायाः। कमनीयायाः। कुमार्याः। विश्वरूपाणाम्। सर्वाङ्गसुन्दरीणाम्। मनः। चित्तम्। गृभाय। छन्दसि शायजपि। पा० ३।१।८४। इति ग्रहे लोटि श्नः शायजादेशः। हस्य भः। गृहाण। ओषधे। अ० १।२३।१। हे तापनाशक। ओषधिरूपवर ॥

०५ एयमगन्पतिकामा जनिकामोऽहमागमम्

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एयम॑ग॒न्पति॑कामा॒ जनि॑कामो॒ऽहमाग॑मम्।
अश्वः॒ कनि॑क्रद॒द्यथा॒ भगे॑ना॒हं स॒हाग॑मम् ॥

०५ एयमगन्पतिकामा जनिकामोऽहमागमम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Hither hath this woman come, desiring a husband; desiring a wife have
    I come; like a loud-neighing (krand) horse, together with fortune have
    I come.
Notes

That is, perhaps, ‘I have enjoyed her favors.’ None of the mss. fail to
accent yáthā in c.

Griffith

Seeking a husband she hath come! and I came longing for a wife: Even as a loudly-neighing steed may fate and fortune have I met.

पदपाठः

आ। इ॒यम्। अ॒ग॒न्। पति॑ऽकामा। जनि॑ऽकामः। अ॒हम्। आ। अ॒ग॒म॒म्। अश्वः॑। कनि॑क्रदत्। यथा॑। भगे॑न। अ॒हम्। स॒ह। आ। अ॒ग॒म॒म्। ३०.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • दम्पती
  • प्रजापतिः
  • अनुष्टुप्
  • कामिनीमनोऽभिमुखीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इयम्) यह (पतिकामा) पति की कामना करती हुई कन्या (आ+अगन्=आगमत्) आयी है और (जनिकामः) पत्नी की कामनावाला (अहम्) मैं (आ+अगमम्) आया हूँ। (अहम्) मैं (भगेन) ऐश्वर्य के (सह) साथ (आ+अगमम्) आया हूँ। (यथा) जैसे (कनिक्रदत्) हींसता हुआ (अश्वः) घोड़ा ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे बलवान् घोड़ा मार्गगमन, अन्न, घास आदि भोजन के समय हिनहिनाकर प्रसन्नता प्रकट करता है, इसी प्रकार विद्या समाप्ति पर पूर्ण विद्वान् और समर्थ कन्या और वर गृहाश्रम में प्रवेश करके आनन्द भोगते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५–इयम्। कमनीया कन्या। आ+अगन्। गमेर्लुङि तिपि च्लेर्लुकि। मो नो धातोः। पा० ८।२।६४। इति नत्वम्। आगमत्। पतिकामा। भर्त्तारमिच्छन्ती। जनिकामः। जनिघसिभ्यामिण्। उ० ४।१३०। इति जन जनने वा जनी प्रादुर्भावे–इण्। जनिवध्योश्च। पा० ७।३।३५। इति वृद्धिनिषेधः। जनयति वीरपुत्रान् जायते सुखमनया सा जनिर्जाया। तां कामयमानः। अहम्। वरः। आ+अगमम्। आगतवानस्मि। अश्वः। अ० १।१६।४। तुरङ्गः। कनिक्रदत्। दाधर्त्तिदर्द्धर्त्ति०। पा० ७।४।६५। इति क्रन्द आह्वाने यङि शत्रन्तो निपातितः। भृशं हेषां कुर्वन्। भगेन। भजनीयेन पत्नीरूपैश्वर्येण। सह। सङ्गतः ॥