०२६ पशुसंवर्धनम्

०२६ पशुसंवर्धनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For safety and increase of kine.
VH anukramaṇī

पशुसंवर्धनम्।
१-५ सविता। पशवः। त्रिष्टुप्, ३ उपरिष्टाद्विराड् बृहती, ४ भुरिगनुष्टुप्, ५ अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Savitar.—paśavyam. trāiṣṭuhham. 3. upariṣṭādvirāḍbṛhatī; 4, 5. anuṣṭubh (4. bhurij).]

Whitney

Comment

Found in Pāipp. ii. Used by Kāuś. (19. 14), with iii. 14, iv. 21, and ix. 7 ⌊not vi. 11. 3—see comm. to ix. 7 = 12⌋, in a ceremony for the prosperity of cattle.

Translations

Translated: Weber, xiii. 188; Ludwig, p. 371; Griffith, i. 65; Bloomfield, 142, 303; vss. 1 and 2, also by Grill, 64, 92.—Cf. Bergaigne-Henry, Manuel, p. 138.

Griffith

A benediction on homeward coming cattle

०१ एह यन्तु

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ए॒ह य॑न्तु प॒शवो॒ ये प॑रे॒युर्वा॒युर्येषां॑ सहचा॒रं जु॒जोष॑।
त्वष्टा॒ येषां॑ रूपधेयानि॒ वेदा॒स्मिन्तान्गो॒ष्ठे स॑वि॒ता नि य॑च्छतु ॥

०१ एह यन्तु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Hither let the cattle come that went away, whose companionship
    (sahacārá) Vāyu (the wind) enjoyed, whose form-givings Tvashṭar knows;
    in this cow-stall let Savitar make them fast (ni-yam).
Notes

Or, ‘whose forms,’ rūpadheya being virtually equivalent to simple
rūpa. Ppp. reads in b sahatāram. The “cow-stall” does not
probably imply anything more than an enclosure. The Anukr. passes
without notice the jagatī pāda d.

Griffith

Let them come home, the cattle that have wandered, whom Vayu hath delighted to attend on, Whose forms and figures are well known to Tvashtar. These cows let Savitar drive within this stable.

पदपाठः

आ। इ॒ह। य॒न्तु॒। प॒शवः॑। ये। प॒रा॒ऽई॒युः। वा॒युः। येषा॑म्। स॒ह॒ऽचा॒रम्। जु॒जोष॑। त्वष्टा॑। येषा॑म्। रू॒प॒ऽधेया॑नि। वेद॑। अ॒स्मिन्। तान्। गो॒ऽस्थे। स॒वि॒ता। नि। य॒च्छ॒तु॒। २६.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पशुसमूहः
  • सविता
  • त्रिष्टुप्
  • पशुसंवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेल करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पशवः) वे पशु [गौ आदि वा मनुष्यादि प्राणी] (इह) यहाँ (आ यन्तु) आ जावें, (ये) जो (परेयुः) भटक गये हैं। (येषाम्) जिनके (सहचारम्) साथ-साथ चलना (वायुः) पवन ने (जुजोष) अङ्गीकार किया है। (त्वष्टा) सूक्ष्म क्रियाओं का रचनेवाला [सूक्ष्मदर्शी पुरुष] (येषाम्) जिनके (रूपधेयानि) रूपों [शारीरिक रूपों और मानसिक स्वभावों] को (वेद) पहिचानता है, (सविता) वह सबका चलानेवाला [गोपाल वा सभाप्रधान पुरुष] (तान्) उन [पशुओं] को (अस्मिन्) इस (गोष्ठे) [गोट, अर्थात् गोशाला वा सभा] में (नियच्छतु) बाँधकर रक्खे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस सूक्त में (पशु) शब्द का अर्थ गौ आदि और सब प्राणी मात्र है।पशु व्यक्त वाणीवाले और अव्यक्त वाणीवाले हैं– निरु० ११।२९। अर्थात् मनुष्य आदि और गौ आदि। जैसे विचारशील गोपाल, गोरक्षक वायु लगने से इधर-उधर भटकते हुए गौ आदि पशुओं को प्रेम के साथ बाड़े में लाकर बाँधता है, वैसे ही सूक्ष्मदर्शी प्रधान पुरुष अपने आश्रितों और सम्बन्धियों को, जो वायु लगने अर्थात् कुसंस्कार पाने से भटक गये हों, उपकार और प्रीति की दृष्टि से एकत्र करके सभा में नियमबद्ध करे ॥१॥ पशु शब्द प्राणी मात्र के अर्थ में प्रायः वेद में आया है, जैसे–त्वमी॑शिषे पशू॒नां पार्थि॑वानां॒ ये जा॒ता उ॒त वा॒ ये ज॒नित्राः॑ ॥ अथर्ववेद २।२८।३ ॥ तू पृथिवी के पशुओं [प्राणियों] का राजा है, जो उत्पन्न हुए हैं अथवा जो उत्पन्न होंगे। य ईशे॑ पशु॒पतिः॑ पशू॒नां चतु॑ष्पदामु॒त यो द्वि॒पदा॑म् ॥अथर्ववेद २।३४।१। जो पशुपति चौपाये और जो दोपाये पशुओं का स्वामी है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १–इह। अत्र गोष्ठे सभायां वा। आ+यन्तु। इण् गतौ। आगच्छन्तु। पशवः। अ० १।१५।२। दृशिर् प्रेक्षणे–कु, पश्यादेशः। पशवः=व्यक्तवाचश्चाव्यक्तवाचश्च–निरु० ११।२९। मनुष्यगवादिप्राणिनः। जीवाः। परा–ईयुः। इण् गतौ–लिट्। विमुखा जग्मुः। वायुः। अ० २।२०।१। पवनः। येषाम्। पशूनाम्। सहचारम्। सह+चर गतौ–घञ्। सङ्गमनम्। जुजोष। जुषी प्रीतिसेवनयोः–लिट्, छन्दसि परस्मैपदम्। जुजुषे। सेवते स्म। त्वष्टा। अ० २।५।६। त्वक्ष तनूकरणे–तृन्। व्यवहारतनूकर्ता। सूक्ष्मदर्शी पुरुषः। रूपधेयानि। भागरूपनामभ्यो धेयः। वार्त्तिकम्। पा० ५।४।२५। नानारूपाणि। विविधस्वभावान्। वेद। विद ज्ञाने–लट्। वेत्ति। जानाति। अस्मिन्। निकटस्थे। गोष्ठे। अ० २।१४।२। गोशालायां सभायाम्। सविता। अ० १।१८।२। पशुप्रेरकः। सभाप्रधानः। नि+यच्छतु। इषुगमियमां छः। पा० ७।३।७७। इति निपूर्वाद् यमेः शपि छत्वम्। नियमयतु नियमे स्थापयतु ॥

०२ इमं गोष्ठम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॒मं गो॒ष्ठं प॒शवः॒ सं स्र॑वन्तु॒ बृह॒स्पति॒रा न॑यतु प्रजा॒नन्।
सि॑नीवा॒ली न॑य॒त्वाग्र॑मेषामाज॒ग्मुषो॑ अनुमते॒ नि य॑च्छ ॥

०२ इमं गोष्ठम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. To this cow-stall let cattle flow-together ⌊stream together⌋
    (sam-sru); let Brihaspati, foreknowing, lead them hither; let Sinīvālī
    lead hither the van (ágra) of them; make them fast when they have
    come, O Anumati.
Notes

⌊In the prior draft of 3, Mr. Whitney has ‘stream.’⌋ Ppp. has at the end
yacchāt; one of SPP’s mss., yacchat. The comm. gives anugate (=
he anugamanakāriṇi) in d. The value of pra in the common epithet
prajānánt (rendered ‘foreknowing’) is obscure and probably minimal.
⌊As to the deities here named, see Zimmer, p. 352, and Hillebrandt,
Ved. Mythol. i. 422.⌋

Griffith

Let the beasts stream together to this cow-pen. Brihaspati who knoweth lead them hither! Let Sinivali guide the foremost homeward. When they have come, Anumati! enclose them.

पदपाठः

इ॒मम्। गो॒ऽस्थम्। प॒शवः॑। सम्। स्र॒व॒न्तु॒। बृह॒स्पतिः॑। आ। न॒य॒तु॒। प्र॒ऽजा॒नन्। सि॒नी॒वा॒ली। न॒य॒तु॒। आ। अग्र॑म्। ए॒षा॒म्। आ॒ऽज॒ग्मुषः॑। अ॒नु॒ऽम॒ते॒। नि। य॒च्छ॒। २६.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पशुसमूहः
  • सविता
  • त्रिष्टुप्
  • पशुसंवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेल करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पशवः) सब पशु [गौ आदि वा मनुष्यादि प्राणी] (इमम्) इस (गोष्ठम्) स्थिर वचनवाले पुरुष [गोपाल वा प्रधान] से (सम् स्रवन्तु) आ-आकर मिलें और वह (बृहस्पतिः) बड़े-बड़ों का स्वामी [गोपाल वा सभापति] (प्रजानन्) पहचान-पहचानकर [उनको] (आ नयतु) ले आवे। (सिनीवाली) अन्न देनेवाली देवी [गृहपत्नी वा नीतिविद्या, आप] (एषाम्) इनका (अग्रम्) आगमन (आ नयतु) स्वीकार करे। (अनुमते) हे अनुकूल बुद्धिवाली [गृहपत्नी वा नीतिविद्या] (आजग्मुषः) इन आये हुओं को (नियच्छ) निमय में बाँधकर रख ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सायंकाल में गौ आदि मिलकर अपने गोवाले के पास आते हैं और (बृहस्पति) बड़े उपकारी गौ आदि का रक्षक उनको ढूँढ़-ढूँढ़ कर लाता है और उसकी गृहपत्नी आगे आकर उनको अन्न तृण आदि देकर प्रसन्न करती और अपने-अपने स्थान पर बाँध देती है, इसी प्रकार उत्तम सभापति अपने संगठित सभासदों को यथायोग्य आसन दे और नीति अर्थात् सुशीलता और विनय के साथ उनका आदर-सत्कार करके नियम में रक्खे ॥२॥ (अनुमते) पद के स्थान में सायणभाष्य में [अनुगते] व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २–इमम्। शुभगुणैर्निर्दिष्टं गोपालं प्रधानपुरुषं वा। गोष्ठम्। गौर्वाङ्नाम–निघ० १।११। गवि वाचि तिष्ठतीति गोष्ठः। स्थिरवाचं दृढ–वचनं गोपालं प्रधानपुरुषं वा। पशवः। म० १। सम्+स्रवन्तु। स्रु गतौ। समेत्य गच्छन्तु। बृहस्पतिः। अ० २।१३।२। बृहतां महतां प्राणिनां पाता रक्षिता। गोपः सभापतिर्वा। आनयतु। आगमयतु। प्रजानन्। प्र+ज्ञा–शतृ। विद्वान्। सिनीवाली। इण्सिञ्जिदीङुष्यविभ्यो नक्। उ० ३।२। इति षिञ् बन्धने–नक्, स्त्रियां ङीप्। बल संवरणे, यद्वा, बल जीवने, दाने–अण्, ङीप्। सिनीवाली, सिनमन्नं भवति सिनाति भूतानि बालं पर्व वृणोतेस्तस्मिन्नन्नवती। निरु० ११।३१। सिनीं सिनमन्नं बलति धारयतीति। अन्नधर्त्री। अन्नवती गृहपत्नी नीतिविद्या वा। आ+नयतु। छन्दसि परेऽपि। पा० १।४।८१। इति उपसर्गस्य परत्वम्। आगमयतु। अग्रम्। ऋज्रेन्द्राग्रवज्र०। उ० २।२८। इति अगि गतौ–रन्। अग्रतः। पुरस्तात्। आजग्मुषः। आङ्+गमेः क्वसुः। वसोः संप्रसारणम्। पा०। ६।४।१३। इति शसि संप्रसारणम्। आगतान्। पशून्। अनुमते। अनु+मन बोधे–क्तिन्। अनुमतिरनुमननात्–निरु० ११।२९। अनुकूलबुद्धियुक्ते। नियच्छ। नियमय ॥

०३ सं सम्

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सं सं स्र॑वन्तु प॒शवः॒ समश्वाः॒ समु॒ पूरु॑षाः।
सं धा॒न्य॑स्य॒ या स्फा॒तिः सं॑स्रा॒व्ये॑ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥

०३ सं सम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Together, together let cattle flow ⌊stream⌋, together horses, and
    together men, together the fatness that is of grain; I offer with an
    oblation of confluence.
Notes

For the oblation called ‘of confluence,’ to effect the streaming
together of good things, compare i. 15 and xix. 1. The change of meter
in .this hymn need not damage its unity, in view of its occurrence as
one hymn in Ppp. Ppp. reads in b pāuruṣās, and in c
sphātibhis (for yā sph-). The metrical definition of the Anukr.
seems to reject the obvious resolution -vi-e-ṇa in d.

Griffith

Together stream the cattle! stream together horses and the men! Hitherward press all growth of grain! I offer sacrifice with mixt oblation.

पदपाठः

सम्। सम्। स्र॒व॒न्तु॒। प॒शवः॑। सम्। अश्वाः॑। सम्। ऊं॒ इति॑। पुरु॑षाः। सम्। धा॒न्य᳡स्य। या। स्‍फा॒तिः। स॒म्ऽस्रा॒व्ये᳡ण। ह॒विषा॑। जु॒हो॒मि॒। २६.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पशुसमूहः
  • सविता
  • उपरिष्टाद्विराड्बृहती
  • पशुसंवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेल करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पशवः) गौ आदि (सम्) मिलकर, (अश्वाः) घोड़े (सम्) मिलकर, (उ) और (पूरुषाः) सब पुरुष (सम् सम्) मिल-मिलकर (स्रवन्तु) चलें। और (या) जो (धान्यस्य) धान्य [अन्न] की (स्फातिः) बढ़ती है, [वह भी] (सम्=सम् स्रवतु) मिलकर चले। (संस्राव्येण) कोमलता से युक्त (हविषा) भक्ति वा अन्न के साथ [उन सबको] (जुहोमि) मैं ग्रहण करूँ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब उपकारी गौ, अश्व आदि पशु और मनुष्य नियम के साथ मिलकर रहें और प्रयत्नपूर्वक पुष्कल जीविका प्राप्त करें और प्रधान पुरुष उनके शिक्षादान और भरण-पोषण की यथोचित सुधि रक्खे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३–सम्। सम्यक्। यथाविधि। समेत्य। स्रवन्तु। गच्छन्तु पशवः। गवादयः। अश्वाः। अ० १।१६।४। घोटाः। पूरुषाः। अ० १।१६।४। मनुष्याः। धान्यस्य। दधातेर्यन्नुट् च। उ० ५।४८। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः–यत् नुट् च। अन्नस्य। स्फातिः। अ० २।२५।३। समृद्धिः। संस्राव्येण हविषा जुहोमि। अ० १।१५।१। आर्द्रीभावयुक्तेन भक्त्या अन्नेन वा स्वीकरोमि ॥

०४ सं सिञ्चामि

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सं सि॑ञ्चामि॒ गवां॑ क्षी॒रं समाज्ये॑न॒ बलं॒ रस॑म्।
संसि॑क्ता अ॒स्माकं॑ वी॒रा ध्रु॒वा गावो॒ मयि॒ गोप॑तौ ॥

०४ सं सिञ्चामि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I pour together the milk (kṣīrá) of kine, together strength, sap,
    with sacrificial butter; poured together are our heroes; fixed are the
    kine in me ⌊rather, with me⌋ [as] kine-lord.
Notes

Ppp. reads valam in b, combines -ktā ’smākam in c, and has
for d mayi gāvaś ca gopatāu. The redundant syllable in d
(noticed by the Anukr.) would be got rid of by changing máyi to the
old locative ⌊; but with better metrical result, by adopting the
Ppp. reading⌋. With the second half-verse is to be compared AśS. iii. 11
. 6: ariṣṭā asmākaṁ vīrā mayi gāvaḥ santu gopatāu. The comm. says that
gavām in a means gṛṣṭīnām ‘of heifers (having their first
calf).’

Griffith

I pour together milk of kine, with butter blending strength and juice. Well sprinkled be our men, as true to me as cows are to their herd!

पदपाठः

सम्। सि॒ञ्चा॒मि॒। गवा॑म्। क्षी॒रम्। सम्। आज्ये॑न। बल॑म्। रस॑म्। सम्ऽसि॑क्ताः। अ॒स्माक॑म्। वी॒राः। ध्रु॒वाः। गावः॑। मयि॑। गोऽप॑तौ। २६.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पशुसमूहः
  • सविता
  • भुरिगअनुष्टुप्
  • पशुसंवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेल करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (गवाम्) गौओं का (क्षीरम्) दूध [अपने मनुष्यों पर] (सम्) यथानियम (सिञ्चामि) मैं सींचता हूँ और [उन मनुष्यों के] (बलम्) बल और (रसम्) शरीरपोषक धातु को (आज्येन) घृत से (सम्) यथानियम [सींचता हूँ]। (अस्माकम्) हमारे (वीराः) वीर पुरुष [दूध, घी आदि से] (संसिक्ताः) अच्छे प्रकार सिंचे रहें, [इसलिये] (मयि) मुझ (गोपतौ) गोपति में (गावः) गौएँ (ध्रुवाः) स्थायी [रहें] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न से गौओं की रक्षा करके उनके दूध घी आदि के सेवन से अपने और अपने पुरुषों के शारीरिक धातुओं को पुष्ट करके और बल और बुद्धि बढ़ाकर शूरवीर बनावें। इसी प्रकार जो प्रधान पुरुष अपने उपकारी सभासदों को भरण-पोषण आदि उचित व्यवहार से पुष्ट करते रहते हैं, वही नीतिनिपुण संसार की वृद्धि करते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: टिप्पणी–इस मन्त्र के अर्थ से [दूधों नहाओं पूतों फलो] इस आशीर्वाद का मिलान कीजिये ॥ ४–सम्। यथाविधि। सिञ्चामि। षिच सेचने। आर्द्रीकरोमि। वर्धयामि। गवाम्। गमेर्डोः। उ० २।६७। धेनूनाम्। क्षीरम्। अ० १।१५।४। घस्लृ=अद भक्षणे–ईरन्। दुग्धम्। आज्येन। अ० १।७।२। घृतेन। बलम्। अ० १।१।१। सामर्थ्यम्। रसम्। अ० १।५।२। सारम्। वीर्य्यम्। देहस्थं भुक्तान्नादेः परिणामम्। संसिक्ताः। षिच–क्त। व्रतदुग्धादिना संसिक्तशरीराः, दृढगात्राः सन्तु। वीराः। अ० १।१९।६। शूरपुरुषाः। ध्रुवाः। स्रुवः कः। उ० २।६१। इति ध्रु स्थैर्ये–क। दृढाः। स्थिराः। गावः। धेनवः। मयि। उपासके। धार्मिके पुरुषे। गोपतौ। गोस्वामिनि ॥

०५ आ हरामि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

आ ह॑रामि॒ गवां॑ क्षी॒रमाहा॑र्षं धा॒न्यं१॒॑ रस॑म्।
आहृ॑ता अ॒स्माकं॑ वी॒रा आ पत्नी॑रि॒दमस्त॑कम् ॥

०५ आ हरामि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I bring (ā-hṛ) the milk of kine; I have brought the sap of grain;
    brought are our heroes, our wives, to this home (ástaka).
Notes

Ppp. has ahaṣram in b, in c āhariṣam (for āhṛtās) and
vīrān, and in d ā patnīm e ’dam. Our Bp. gives ahāriṣam (and
H. aharāriṣam) in b, and ā́hūtās in c.

The anuvāka ⌊4.⌋ has this time 9 hymns, with 48 verses; the old Anukr.
says dvyūnaṁ [śatārdhaṁ] turīyah.

Griffith

Hither I bring the milk of cows, hither have brought the juice of corn. Hitherward have our men been brought, hitherward to this house our wives.

पदपाठः

आ। ह॒रा॒मि॒। गवा॑म्। क्षी॒रम्। आ। अ॒हा॒र्ष॒म्। धा॒न्य᳡म्। रस॑म्। आऽहृ॑ताः। अ॒स्माक॑म्। वी॒राः। आ। पत्नीः॑। इ॒दम्। अस्त॑कम्। २६.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पशुसमूहः
  • सविता
  • अनुष्टुप्
  • पशुसंवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेल करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (गवाम्) गौओं के (क्षीरम्) दूध को (आ हरामि) मैं प्राप्त करूँ, [क्योंकि दूध से] (धान्यम्) पोषणवस्तु अन्न और (रसम्) शरीरिक धातु को (आ अहार्षम्) मैंने पाया है। (अस्माकम्) हमारे (वीराः) वीर पुरुष (आहृताः) लाये गये हैं और (पत्नीः=पत्न्यः) पत्नियाँ भी (इदम्) इस (अस्तकम्=अस्तम्) घर में (आ=आहृताः) लायी गयी हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को सदा गौओं की रक्षा करनी चाहिये, जिससे सब स्त्री-पुरुष दूध-घी का सेवन करके हृष्ट-पुष्ट होकर शूरवीर रहें और घरों में सब प्रकार की सम्पत्ति बढ़ती जावे ॥५॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५–आहरामि। आनयामि। गवां क्षीरम्। म० ४। धेनूनां दुग्धम्। आहार्षम्। हृञ् हरणे–लुङ्। आनीतवानस्मि। धान्यम्। म० ३। अन्नम् रसम्। म० ४। शारीरिकधातुम्। आहृताः। आनीताः। वीराः। अ० १।२९।६। पराक्रमिणः पुरुषाः। पत्नीः। अ० २।१२।१। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। पत्न्यः। अस्तकम्। हसिमृग्रिण्०। उ० ३।८६। इति अस भुवि, गतिदीप्त्यादानेषु–तन्, स्वार्थे कः। अस्तम्=गृहम्–निघ० ३।४ ॥