०२४ शत्रुनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against kimīdíns, male and female.
VH anukramaṇī
शत्रुनाशनम्।
१-८ ब्रह्मा। आयुष्यम्। पङ्क्तिः, १-२ पुरउष्णिक्, ३-४ पुरोदेवत्या पङ्क्तिः(१-४ विराट्), ५-८ पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः (५ भुरिक्, ६-७ निचृत्, ५ चतुष्पदा बृहती, ७-८ भुरिक्)।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—aṣṭarcam. āyuṣyam. pān̄ktam….]
Whitney
Comment
Ppp. reads: śarabhaka ṣeraśabha punar bho yānti yādavaṣ punar hatiṣ kimīdinaḥ yasya stha dam atta yo va prāhī tam uttam māsāṅsa manyatā. The comm. in the last phrase gives sā instead of svā and has much trouble to fabricate an explanation for it (as = tasya, or else for sā hetiḥ). śerabhaka he takes as either sukhasya prāpaka or śarabhavat sarveṣām hiṅsaka, but is confident that it designates a “chief of yātudhānas.” Of the refrain, the first part seems metrical, and the second prose, in three phrases; and it may be counted as 8 + 8: 6 + 7 + 5 (or 7) = 34 (or 36): the prefixed names add 7 syllables (vss. 1, 2), or 5 (vss. 3, 4), or 3 (vss. 6-8), or 2 (vs. 5). ⌊Bloomfield comments on áhāit and the like, ZDMG. xlviii. 577.⌋
Griffith
A charm against the magic arts of fiends
०१ शेरभक शेरभ
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शेर॑भक॒ शेर॑भ॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शेर॑भक॒ शेर॑भ॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०१ शेरभक शेरभ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O śerabhaka, śerabha! back again let your familiar demons go; back
again your missile, ye kimīdíns! whose ye are, him eat ye; who hath
sent you forth, him eat ye; eat your own flesh.
Notes
Ppp. reads: śarabhaka ṣeraśabha punar bho yānti yādavaṣ punar hatiṣ
kimīdinaḥ yasya stha dam atta yo va prāhī tam uttam māsāṅsa manyatā.
The comm. in the last phrase gives sā instead of svā and has much
trouble to fabricate an explanation for it (as = tasya, or else for
sā hetiḥ). śerabhaka he takes as either sukhasya prāpaka or
śarabhavat sarveṣām hiṅsaka, but is confident that it designates a
“chief of yātudhānas.” Of the refrain, the first part seems metrical,
and the second prose, in three phrases; and it may be counted as 8 + 8:
6 + 7 + 5 (or 7) = 34 (or 36): the prefixed names add 7 syllables (vss.
1, 2), or 5 (vss. 3, 4), or 3 (vss. 6-8), or 2 (vs. 5). ⌊Bloomfield
comments on áhāit and the like, ZDMG. xlviii. 577.⌋
Griffith
O Serabhaka, Serabha, back fall your arts of witchery! Back, Kimidins! let your weapon fall. Eat your possessor; eat ye him who sent you forth;
पदपाठः
शेर॑भक। शेर॑भ। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नः॒। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽअहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- वैराजपरा पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः, भुरिक्पुरउष्णिक्
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (शेरभक) अरे वधकपन में मन लगानेवाले ! (शेरभ) अरे रङ्ग में भङ्ग डालनेवाले ! [दुष्ट !] और (किमीदिनः) अरे लुतरे लोगों ! (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ और (हेतिः) चोट (पुनः-पुनः) लौट-लौट कर (यन्तु) चली जावें। तुम (यस्य) जिसके [साथी] (स्थ) हो, (तम्) उस [पुरुष] को (अत्त) खाओ, (यः) जिस [पुरुष] ने (वः) तुमको (प्राहैत्=प्राहैषीत्) भेजा है, (तम्) उसको (अत्त) खाओ, (स्वा=स्वानि) अपने ही (मांसानि) माँस की बोटियाँ (अत्त) खाओ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे नीतिनिपुण राजा अपने बुद्धिबल से ऐसा प्रबन्ध करता है कि शत्रु जो कुछ छल-बल करे, वह उसी को ही उलटा दुःखदायी हो और उसके मनुष्य उसकी कुनीतियों को जानकर उसका ही नाश कर दें और वे लोग आपस में विरोध करके परस्पर मार डालें। इसी प्रकार आत्मजिज्ञासु पुरुष अपने शरीर और आत्मा की निर्बलता और दोषों और उनसे उत्पन्न दुष्ट फलों को समझकर बुद्धिपूर्वक उन्हें एक-एक करके नाश कर दे और जितेन्द्रिय होकर आनन्द भोगे ॥१॥ सायणभाष्य में (स्वा) पद के स्थान में (सा) पद है और उसका अर्थ [तस्य शत्रोः यद्वा सा हेतिः] ऐसा किया है, हमारी समझ में बहुवचनान्त (स्वा) पद ही ठीक है ॥ इस सूक्त के पहिले चार मन्त्रों में पुंल्लिङ्ग शब्दों का और पिछले पाँच मन्त्रों में स्त्रीलिङ्गों का संबोधन है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १–शेरभक। शसु वधे–ड। कृञादिभ्यः संज्ञायां वुन्। उ० ५।३५। इति रभङ् उत्सुकीभावे=अविचारप्रवृत्तौ–वुन्। शसति हन्ति येनेति शः। शस्त्रं हननं वधो वा। शे वधे। रभते उत्सुकीभवतीति शेरभकः, तत्सम्बुद्धौ। अलुक्समासः। हे हिंसायामुत्सुक। शेरभ। वृधिवपिभ्यां रन्। उ० २।२७। इति शीङ् स्वप्ने–रन्। ओभञ्जो मोटने–ड। शेवं सुखनाम–निघ० ३।६। शेरं शेवं सुखं भनक्तीति शेरभः सुखभञ्जकः। तत्सम्बुद्धौ। पुनः। पन स्तुतौ–अर्, अकारस्य उत्वम्। द्वितीयं–वारे। भेदे। निवृत्य। वः। युष्माकम्। यन्तु। इण् गतौ। गच्छन्तु। यातवः। अ० १।७।१। यत ताडने–उण्। ताडनाः। पीडाः। हेतिः। अ० १।१३।३। हन वधे–क्तिन्। हननम्। वज्रः। किमीदिनः। अ० १।७।१। किम्+इदम्–इनि। पिशुनाः। यस्य। अस्मद्विरोधिनः। स्थ। सहायका भवथ। तम्। विरोधिनम्। अत्त। भक्षयत। वः। युष्मान्। प्र–अहैत्। हि गतौ–अन्तर्भावितण्यर्थः। लुङि सिचि वृद्धौ। बहुलं छन्दसि। पा० ७।३।९७। इति अपृक्तप्रत्ययस्य ईडभावे। स्कोः संयोगाद्योरन्ते०। पा० ८।२।२९। इति सलोपः। प्राहैषीत्। प्रेषितवान्। स्वा। स्वानि। मांसानि। अ० १।११।४। मन ज्ञाने धृतौ च–स प्रत्ययः। पिशितानि ॥
०२ शेवृधक शेवृध
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शेवृ॑धक॒ शेवृ॑ध॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शेवृ॑धक॒ शेवृ॑ध॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०२ शेवृधक शेवृध ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O śevṛdhaka, śévṛdha! back again let your familiar etc. etc.
Notes
Griffith
Srvridhaka, O Sevridha, back fall your arts of witchery! Back, Kimidins! let your weapon fall, etc.
पदपाठः
शेवृ॑धक। शेवृ॑ध। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नः॒। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽअहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- वैराजपरा पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः, भुरिक्पुरउष्णिक्
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (शेवृधक) अरे वधकपन में बढ़नेवाले ! (शेवृध) अरे सुख के नाश करनेवाले [दुष्ट] ! और (किमीदिनः) अरे लुतरे लोगों ! (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ और (हेतिः) (चोट)…. मन्त्र १ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २–शेवृधक। शसु वधे–ड। बहुलमन्यत्रापि। उ० २।३७। इति वृधु वृद्धौ वृध दीप्तौ–क्वुन्। शे शस्त्रे हनने वधे वा वर्धते दीप्यते वा स शेवृधकः। तत्सम्बुद्धौ। शेवृध। सावसेर्ऋन्। उ० २।९६। इति शेवृ सेवने–ऋन्। धक्क नाशने–ड प्रत्ययः। शेवं सुखनाम–निघं० ३।६। शेवृ शेवं सुखं धक्कयतीति शेवृधः। हे सुखनाशक। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०३ म्रोकानुम्रोक पुनर्वो
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म्रोकानु॑म्रोक॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
म्रोकानु॑म्रोक॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०३ म्रोकानुम्रोक पुनर्वो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O mroká, anumroka! back again let your familiar etc. etc.
Notes
Griffith
O Mroka, Anumroka, back return your arts of witchery! Back, Kimidins! let your weapon fall, etc.
पदपाठः
म्रोक॑। अनु॑ऽम्रोक। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नः॒। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- निचृत्पुरोदेवत्यापङ्क्तिः
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (म्रोक) अरे चोर ! (अनुम्रोक) अरे चोरों के साथी ! (किमीदिनः) अरे तुम लुतरे लोगों ! (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ और (हेतिः) चोट (पुनः-पुनः) लौट-लौट कर (यन्तु) चली जावें….. मन्त्र १ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३–म्रोक। पुंसि संज्ञायां घः प्रायेण। पा० ३।३।११८। इति म्रुच गतौ–कर्तरि घ प्रत्ययः। चजोः कु घिण्ण्यतोः। पा० ७।३।५२। इति कुत्वम्। म्रोचति धनादिकम् अपहृत्य छन्नः सन् गच्छतीति म्रोकः–इति सायणः। हे चौर, म्लेच्छ। अनुम्रोक। म्रोकान् अनु गच्छतीति अनुम्रोकः। चौरसहायक ! ॥
०४ सर्पानुसर्प पुनर्वो
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सर्पानु॑सर्प॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सर्पानु॑सर्प॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०४ सर्पानुसर्प पुनर्वो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O sarpá, anusarpa! back again let your familiar etc. etc.
Notes
Griffith
O Sarpa, Anusarpa, back return your arts of witchery! Back, ‘i Kimidins! let your weapon fall, etc.
पदपाठः
सर्प॑। अनु॑ऽसर्प। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नः। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽअहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- वैराजपरा पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः, निचृत्पुरोदेवत्यापङ्क्तिः
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सर्प) अरे साँप [क्रूरस्वभाव !] (अनुसर्प) अरे साँपों के साथी ! (किमीदिनः) अरे तुम लुतरे लोगों ! (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ और (हेतिः) चोट (पुनः-पुनः) लौट-लौट कर (यन्तु) चली जावें….. मन्त्र १ ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४–सर्प–सृप्लृ गतौ पचाद्यच्। सर्पति इतस्ततो गच्छतीति सर्पः। हे हिंस्रजन्तुविशेष ! तद्वत् क्रूरस्वभाव पुरुष ! अनुसर्प। सर्पान् अनुसृत्य सह व्याप्य गच्छतीति अनुसर्पः। हे सर्पानुसारिन्। हिंस्रसहायक ॥
०५ जूर्णि पुनर्वो
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जूर्णि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
जूर्णि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०५ जूर्णि पुनर्वो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O júrṇī! back again let your familiar demons go; back again your
missile, ye she-kimīdíns; whose ye are etc. etc.
Notes
Griffith
Back fall your witcheries, Jurni! back your weapon, ye Kimidinis, etc.
पदपाठः
जूर्णि॑। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नीः॒। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽअहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- चतुष्पदा बृहती
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (जूर्णि) अरी जूड़ी [जाड़े के ज्वर] ! (किमीदिनीः=०–न्यः) अरी तुम लुतरियों ! [कुवासनाओं !] (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ और (हेतिः) चोट (पुनः-पुनः) लौट-लौट कर (यन्तु) चली जावें….. मन्त्र १ ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो नीतिज्ञ पुरुष अपने मन की कुवासनाओं और उनके कारण को जानकर उनको सर्वथा मिटाता है, वह वशिष्ठ महा उपकारी जितेन्द्रिय होकर संसार का उपकार करके आनन्दित होता है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५–जूर्णि। वीज्याज्वरिभ्यो निः। उ० ४।४८। इति ज्वर रोगे–नि। ज्वरत्वरस्रिव्यवि०। पा० ६।४।२०। इति वकारोपधयोरूठ्। शीतज्वरवद् दुःखप्रदकुवासने। किमीदिनीः। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा० ४।१।५। इति ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति जसि पूर्वसवर्णदीर्घः। किमीदिन्यः। पिशुन्यः ॥
०६ उपब्दे पुनर्वो
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उप॑ब्दे॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उप॑ब्दे॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०६ उपब्दे पुनर्वो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O upabdi! back again let your familiar etc. etc.
Notes
Griffith
Back fall your spells, Upabdi! back your weapon, ye Kimidinis, etc.
पदपाठः
उप॑ब्दे। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नीः॒। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽअहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- चतुष्पदा भुरिग्बृहती
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उपब्दे) अरी चिंघारनेवाली ! और (किमीदिनीः=०–न्यः) अरी तुम लुतरियों ! [कुवासनाओं !] (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ और (हेतिः) चोट (पुनः-पुनः) लौट-लौट कर (यन्तु) चली जावें….. मन्त्र ५ ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - कुवासनाओं और कुचिन्ताओं से मनुष्य कठोरवादी हो जाता है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६–उपब्दे। सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति उपपूर्वात् पद गतौ, वा वद वाचि–इन्। यद्वा, कृत्यल्युटो बहुलम्। पा० ३।३।१३३। इति बहुलवचनात्। उपसर्गे घोः किः। पा० ३।३।९२। इति अवखण्डने–कि। पृषोदरादित्वाद् रूपसिद्धिः। उपब्दिः, वाङ्नाम–निघ० १।११। उपेत्य द्यति खण्डयतीति। हे क्रूरशब्दकारिणि ॥
०७ अर्जुनि पुनर्वो
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अर्जु॑नि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अर्जु॑नि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०७ अर्जुनि पुनर्वो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O árjunī! back again let your familiar etc. etc.
Notes
Griffith
Back fall your witchcrafts, Arjuni! your weapon, ye Kimidinis, etc,
पदपाठः
अर्जु॑नि। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नीः॒। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽअहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- चतुष्पदा भुरिग्बृहती
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अर्जुनि) अरे कुटिनी [दूती !] (किमीदिनीः=०–न्यः) अरी तुम लुतरियों ! [कुवासनाओं !] (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ….. मन्त्र ५ ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में कुवासनाओं को कुटिनी वा दूती इत्यादि माना है–शेष मन्त्र ५ के समान ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७–अर्जुनि। अर्जेर्णिलुक् च। उ० ३।५८। इति अर्ज लाभे, संस्कारे च–उनन्। षिद्गौरादिभ्यश्च। पा० ४।१।४१। ङीप्। हे कुट्टिनि ॥
०८ भरूजि पुनर्वो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
भरू॑जि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
भरू॑जि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः।
यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
०८ भरूजि पुनर्वो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O bharūjī! back again. let your familiar etc. etc.
Notes
To represent all these verses, we find in Ppp. śevṛka śevṛdha sarpān
sarpa mrokān mro jyarṇyatro jarjūnvapaprado punar vo yanti yādavaḥ:
punar jūtiṣ kimīdinaḥ yasya stha dam atta yo na prāhi tam utvas sā
māṅsāṇy attā. It has not seemed worth while to try to translate the
names, though most of them contain intelligible elements ⌊see Weber, p.
184, 186⌋, and the comm. forces through worthless explanations for them
all. In vs. 8 he reads bharūci, and makes an absurd derivation from
roots bhṛ and añc (“going to take away the body”). ⌊In the first
draft, W. notes that the four feminine names of vss. 5-8 might be
combined to one triṣṭubh pāda, which with the common refrain would
give us the normal five “verses."⌋
Griffith
Back, O, Bharuji! fall your charms, your weapon, ye Kimidinis. Eat your possessor; eat ye him who sent you forth; eat your own flesh.
पदपाठः
भरू॑जि। पुनः॑। वः॒। य॒न्तु॒। या॒तवः॑। पुनः॑। हे॒तिः। कि॒मी॒दि॒नीः॒। यस्य॑। स्थ। तम्। अ॒त्त॒। यः। वः॒। प्र॒ऽअहै॑त्। तम्। अ॒त्त॒। स्वा। मां॒सानि॑। अ॒त्त॒। २४.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- चतुष्पदा भुरिग्बृहती
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (भरूजि=भरुजि) अरी नीच शृगाली [गीदड़नी, लोमड़ी] ! (किमीदिनीः=०–न्यः) अरी तुम लुतरी [कुवासनाओं !] (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ और (हेतिः) चोट (पुनः-पुनः) लौट-लौट कर (यन्तु) चली जावें। तुम (यस्य) जिसकी [साथिनि] (स्थ) हो, (तम्) उस [पुरुष] को (अत्त) खाओ, (यः) जिस [पुरुष] ने (वः) तुमको (प्राहैत्) भेजा है, (तम्) उसको (अत्त) खाओ, (स्वा=स्वानि) अपने ही (मांसानि) माँस की बोटियाँ (अत्त) खाओ ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - (भरूजी वा भरुजी) गीदड़नी को कहते हैं। जैसे गीदड़नी छल-कपट करके पीड़ा देती है, ऐसे ही मनुष्य कुवासनाओं के कारण कपटी-छली होकर सताने लगता है। कुवासनाओं के नाश करने का उपाय पुरुष को प्रयत्नपूर्वक करना चाहिये–म० ५ देखो ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: टिप्पणी–(भरूजि) पद के स्थान में सायणभाष्य में [भरूचि] पद व्याख्यात है ॥ ८–भरूजि। भ+रुजो भङ्गे, वा रुज हिंसायाम्–क। भ–इति शब्देन रुजतीति भरुजः क्षुद्रशृगालः–इति शब्दकल्पद्रुमकोषे। जातेरस्त्रीविषयादयोपधात्। पा० ४।१।६३। इति ङीप्, उकारस्य छान्दसो दीर्घः। हे क्षुद्रशृगालि। तद्वत् कपटिनि ॥