०१६ सुरक्षा

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Whitney subject
  1. For protection.
VH anukramaṇī

सुरक्षा १-५ ब्रह्मा। प्राणः, अपानः, आयुः। (एकावसानम्) १, ३ एकपदासुरी त्रिष्टुप्,

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—prāṇāpānāyurdevatyam. ekāvasānam: 1. 1-p. āsurī triṣṭubh; 2. i-p. āsury uṣṇih; 3. 1-p. āsurī triṣṭubh; 4. 5. 2-p. āsurī gāyatrī.]

Whitney

Comment

⌊Not metrical.⌋ Found (except vs. 5) in Pāipp. ii. (in the verse-order 2, 1, 3, 4). The hymn, with the one next following, is used by Kāuś. (54. 12) immediately after hymn 15; and the comm. adds, quoting for it the authority of Pāiṭhīnasi, to accompany the offering of thirteen different substances, which he details. Both appear also in Vāit. (4. 20), in the parvan sacrifices, on approaching the āhavanīya fire; and vss. 2 and 4 further (8. 7, 9) in the āgrayaṇa and cāturmāsya sacrifices.

Translations

Translated: Weber, xiii. 179; Griffith, i. 60.

Griffith

A prayer for general protection

०१ प्राणापानौ मृत्योर्मा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्राणा॑पानौ मृ॒त्योर्मा॑ पातं॒ स्वाहा॑ ॥

०१ प्राणापानौ मृत्योर्मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O breath-and-expiration, protect me from death: hail (svā́hā)!
Notes

The first extension of the notion of prāṇa ‘breath,’ lit.
‘forth-breathing,’ is by addition of apāna, which also is lit.
‘breathing away,’ and so, when distinguished from the generalized
prāṇa, seems to mean ’expiration.’ The comm. here defines the two
thus: prāg ūrdhvamukho ‘niti ceṣṭata iti prāṇaḥ; apā ’nity avān̄mukhaś
ceṣṭata ity apānaḥ.
For svāhā he gives alternative explanations,
following Yāska. The verse (without svāhā) is found also in Āp. xiv.
19.3. “Triṣṭubh” in the Anukr. is doubtless a misreading for pan̄kti,
as the verse has 1 1 syllables, and 1 and 3 would have been defined
together if viewed as of the same meter.

Griffith

Guard me from death, Inhaling and Exhaling! All bliss to you!

पदपाठः

प्राणा॑पानौ। मृ॒त्योः। मा॒। पा॒त॒म्। स्वाहा॑। १६.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः, अपानः, आयुः
  • ब्रह्मा
  • एदपदासुरीत्रिष्टुप्
  • सुरक्षा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणापानौ) हे प्राण और अपान ! तुम दोनों (मृत्योः) मृत्यु से (मा) मुझे (पातम्) बचाओ, (स्वाहा) यह सुन्दर वाणी [आशीर्वाद] हो ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, प्राणायाम, पथ्य भोजन आदि से प्राण अर्थात् भीतर जानेवाली श्वास और अपान, अर्थात् बाहिर आनेवाली श्वास की स्वस्थता स्थापित करें और बलवान् रहकर चिरंजीव होवें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १–प्राणापानौ। अन जीवने–अच् वा घञ्। प्राणश्च अपानश्च तौ। हे उच्छ्वासनिश्वासौ। हे अन्तर्मुखश्वासबहिर्मुखश्वासौ। मृत्योः। अ० १।३०।३। मृङ्–त्युक्। प्राणत्यागात्। मरणात्। मा। माम्। पातम्। युवां रक्षतम्। स्वाहा। सु+आङ्+ह्वेञ् आह्वाने–डा। वाङ्नाम–निघ० १।११। स्वाहेत्येतत् सु आहेति वा स्वा वागाहेति वा स्वं प्राहेति वा स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा–निरु० ८।२०। सुवाणी। आशीर्वादः। सुदानम् ॥

०२ द्यावापृथिवी उपश्रुत्या

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द्यावा॑पृथिवी॒ उप॑श्रुत्या मा पातं॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. O heaven-and-earth, protect me by listening (úpaśruti): hail!
Notes

The pada-mss. read úpa॰śrutyā (not -yāḥ), and, in the obscurity of
the prayer, it is perhaps best to follow them ⌊‘by overhearing’ the
plans of my enemies?⌋; otherwise, ‘from being overheard’ ⌊by my
enemies?⌋ would seem as suitable; and this is rather suggested by the
Ppp. reading, upaśrute (for -teḥ?).

Ppp. has after this another verse: dhanāyā ”yuṣe prajāyāi mā pātaṁ
svāhā.

Griffith

Guard me from overhearing, Earth and Heaven! All hail to you!

पदपाठः

द्यावा॑पृथिवी॒ इति॑। उप॑ऽश्रुत्या। मा॒। पा॒त॒म्। स्वाहा॑। १६.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः, अपानः, आयुः
  • ब्रह्मा
  • एदपदासुरी उष्णिक्
  • सुरक्षा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (द्यावापृथिवी=०–व्यौ) हे आकाश और [पृथिवी !] दोनों (उपश्रुत्या) पूर्ण श्रवणशक्ति के साथ (मा) मेरी (पातम्) रक्षा करो, (स्वाहा) यह सुवाणी [सुन्दर आशीर्वाद] हो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब दिशाओं में मनुष्य को अपनी श्रवणशक्ति बढ़ानी चाहिये ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २–द्यावापृथिवी। अ० २।१।४। हे आकाशभूमी ! तदन्तरालवर्तिन्यो दिशो विवक्षिताः। उपश्रुत्या। उप+श्रु–क्तिन्, उपश्रूयते। समीपश्रवणेन पूर्णश्रवणशक्तिप्रदानेन। अन्यद् गतम् ॥

०३ सूर्य चक्षुषा

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सूर्य॒ चक्षु॑षा मा पाहि॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. O sun, protect me by sight: hail!
Notes

Ppp. has cakṣuṣī ‘(protect my) two eyes.’ Our O.Op., with some of
SPP’s mss., read sūryas for -ya.

Griffith

Do thou, O Sūrya, with thine eye protect me! All hail to thee!

पदपाठः

सूर्य॑। चक्षु॑षा। मा॒। पा॒हि॒। स्वाहा॑। १६.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः, अपानः, आयुः
  • ब्रह्मा
  • एदपदासुरीत्रिष्टुप्
  • सुरक्षा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सूर्य) हे सूर्य, तू (चक्षुषा) दृष्टि के साथ (मा) मेरी (पाहि) रक्षा कर, (स्वाहा) यह सुवाणी हो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सूर्य प्रकाश का आधार है और उसी से नेत्र में ज्योति आती है। मनुष्य को सूर्य के समान अपनी दर्शनशक्ति संसार में स्थिर रखनी चाहिये ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३–सूर्य। अ० १।३।५। हे सर्वप्रेरक ! हे आदित्य ! चक्षुषा। अ० १।३३।४। चक्षिङ् कथने दर्शने च–उसि। नेत्रेण। रूपदर्शनशक्त्या ॥

०४ अग्ने वैश्वानर

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अग्ने॑ वैश्वानर॒ विश्वै॑र्मा दे॒वैः पा॑हि॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. O Agni Vāiśvānara, protect me with all the gods: hail!
Notes

Ppp. makes, as it were, one verse out of our 4 and 5, by reading agne
viśvambhara viśvato mā pāhi svāhā.
The comm. gives several different
explanations of vāiśvānara ‘belonging to all men,’ one of them as
viśvān-ara = jantūn praviṣṭaḥ!

Griffith

Agni Vaisvānara, with all Gods preserve me! All hail to thee!

पदपाठः

अग्ने॑। वै॒श्वा॒न॒र॒। विश्वैः॑। मा॒। दे॒वैः। पा॒हि॒। स्वाहा॑। १६.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः, अपानः, आयुः
  • ब्रह्मा
  • द्विपदासुरी गायत्री
  • सुरक्षा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वैश्वानर) हे सबको चलानेवाले (अग्ने) अग्नि ! (विश्वैः) सब (देवैः) इन्द्रियों [वा विद्वानों] के साथ (मा) मेरी (पाहि) रक्षा कर, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शरीर में अग्नि अर्थात् उष्णता का होना बल, तेज और प्रताप का लक्षण है और इन्द्रिय आदि का चलानेवाला है। सब मनुष्य अन्न की पाचनशक्ति से शरीर में अग्नि स्थिर रखकर सब इन्द्रियों को पुष्ट करें और उत्तम पुरुषों के सत्सङ्ग से स्वस्थ और सुखी रहें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४–अग्ने। अ० १।६।२। अग्निः कस्मादग्रणीर्भवत्यग्रं यज्ञेषु प्रणीयतेऽङ्गन्नयति सन्नममानोऽक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः–निरु० ७।१४। हे शरीरस्थतेजोविशेष ! वैश्वानर। अ० १।१०।४। वैश्वानरः कस्माद् विश्वान् नरान् नयति विश्व एनं नरा नयन्तीति वा–निरु० ७।२१। हे सर्वेषामिन्द्रियादीनां नायक ! विश्वैः। सर्वैः। देवैः। दिवु–अच्। इन्द्रियैः विद्वद्भिः ॥

०५ विश्वम्भर विश्वेन

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विश्व॑म्भर॒ विश्वे॑न मा॒ भर॑सा पाहि॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. O all-bearing one, protect me with all bearing (bháras): hail!
Notes

The sense is obscure; at xii. 1. 6 the epithet ‘all-bearing’ is, very
properly, applied to the earth; but here the word is masculine. The
comm. understands Agni to be meant (and this the Ppp. reading favors);
but he relies for this solely on BAU. i. 4. 7 (which he quotes); and
that is certainly not its meaning there. Weber conjectures Prajāpati.
⌊The BAU. passage is i. 4. 16 in Böhtlingk’s ed. See Whitney’s criticism
upon it at AJP. xi. 432. I think nevertheless that fire may be meant—see
Deussen’s Sechzig Upanishad’s, p. 394.⌋ It does not appear why the
last two verses should be called of two pādas.

Griffith

Preserve me with all care. O All-Sustainer! All hail to thee!

पदपाठः

विश्व॑म् ऽभर। विश्वे॑न। मा॒। भर॑सा। पा॒हि॒। स्वाहा॑। १६.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः, अपानः, आयुः
  • ब्रह्मा
  • द्विपदासुरी गायत्री
  • सुरक्षा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वम्भर) हे सर्वपोषक परमेश्वर ! (विश्वेन) सब (भरसा) पोषणशक्ति से (मा) मेरी (पाहि) रक्षा कर, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब शरीर को स्वस्थ रखकर मनुष्य उस (विश्वम्भर) परमेश्वर के अनन्त पथ्य, पोषक द्रव्यों और शक्तियों का उपयोग करें और अपनी शारीरिक और आत्मिक शक्ति बढ़ाकर सदा बलवान् रहकर (विश्वम्भर) सर्वपोषक बनें और आनन्द भोगें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५–विश्वम्भर। संज्ञायां भृतॄवृजि०। पा० ३।२।४६। इति विश्व+डुभृञ् धारणपोषणयोः–खच्। अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम्। पा० ६।३।६७। इति मुम्। हे सर्वधारक ! जगत्पोषक ! विष्णो ! परमात्मन् ! विश्वेन। समस्तेन। भरसा। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति डुभृञ्–असुन्। पोषणशक्त्या। अन्यद् व्याख्यातम् ॥