०२६ शर्मप्राप्तिः ...{Loading}...
Whitney subject
- For protection from the wrath of the gods.
VH anukramaṇī
शर्मप्राप्तिः।
१-४ ब्रह्मा। १ देवाः, २ इन्द्रः, भगः, सविता, ३-४ मरुतः। गायत्री, २ त्रिपदा एकावसाना साम्नी त्रिष्टुप्, ४ एकावसाना पादनिचृत्।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—indrādibahudevatyam, gāyatram: 2. 3-p. sāmnĩ triṣṭubh; 4. pādanicṛt (2, 4. ekāvasāna)].
Whitney
Comment
Found in Pāipp. xix., but vss. 3-4 elsewhere than 1-2. The hymn appears to be called (so schol. and the comm.) apanodanāni ’thrusters away’ in Kāuś. (14. 14), and quoted and used as such in 25. 22 and (with iv. 33) in 42. 22; it is further applied (with 27 and vi. 3, 76) at the beginning of the svastyayana rites, on going to bed and getting up again (50. 4), and (with i. 13 and other hymns) in the rite of entrance on Vedic study (139. 8).
Translations
Translated: Weber, iv. 420; Griffith, i. 31.
Griffith
A prayer for protection, guidance, and prosperity
०१ आरे३ ऽसावस्मदस्तु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आ॒रे॑३ ऽसा॑व॒स्मद॑स्तु हे॒तिर्दे॑वासो असत्।
आ॒रे अश्मा॒ यमस्य॑थ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ॒रे॑३ ऽसा॑व॒स्मद॑स्तु हे॒तिर्दे॑वासो असत्।
आ॒रे अश्मा॒ यमस्य॑थ ॥
०१ आरे३ ऽसावस्मदस्तु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Far be that from us—may [your] missile (hetí) be, O gods; far the
bolt (áśman) which ye hurl.
Notes
The last pāda is identical with RV. i. 172. 2 c; the other two pādas
(for which Ppp. has no variants) sound in part like a misunderstood echo
of the RV. text: āré sā́ vaḥ sudānavo máruta ṛñjatī́ śáruḥ. For c
Ppp. has āre mantām (or martām; for marutām?) aśastiḥ. The comm.
foolishly supplies an “O our enemies” in c; aśmā he explains as
yantrādivinirmuktaḥ pāṣāṇaḥ. The Anukr. ignores the defectiveness of
b.
Griffith
Let that Destructive Weapon be far distant from us, O ye Gods; far be the Stone ye wont to hurl.
पदपाठः
आ॒रे। अ॒सौ। अ॒स्मत्। अ॒स्तु। हे॒तिः। दे॒वा॒सः॒। अ॒स॒त्। आ॒रे। अश्मा॑। यम्। अस्य॑थ।
अधिमन्त्रम् (VC)
- देवा
- ब्रह्मा
- गायत्री
- सुख प्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
युद्ध का प्रकरण।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवासः) हे विजयी शूरवीरो ! (असौ) वह (हेतिः) साँग वा बरछी (अस्मत्) हमसे (आरे) दूर (अस्तु) रहे और (अश्मा) वह पत्थर (आरे) दूर (असत्) रहे (यम्) जिसे (अस्यथ) तुम फैंकते हो ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - युद्धकुशल सेनापति लोग चक्रव्यूह, पद्मव्यूह, मकरव्यूह, क्रौञ्चव्यूह, सूचीव्यूह आदि से अपनी सेना का विन्यास इस प्रकार करें कि शत्रु के अस्त्र-शस्त्र का प्रहार अपने प्रजा और सेना को न लगैं और न अपने अस्त्र-शस्त्र उलट कर अपने ही लगैं, किन्तु शत्रुओं का विध्वंस करैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−आरे। दूरे। असौ। सा शत्रुप्रयुक्ता। हेतिः। १।१३।३। खङ्गाद्यायुधं शक्तिनामास्त्रम्। देवासः। १।७।१। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति असुक्। हे विजयिनो महात्मानः सेनापतयः। असत्। १।२२।२। भवेत्। अश्मा। १।२।२। मेघः, आयुधवृष्टिः। पाषाणः। यम्। अश्मानम्। अस्यथ। असु क्षेपणे-लट्, दिवादित्वात् श्यन्। यूयं क्षिपथ ॥
०२ सखासावस्मभ्यमस्तु रातिः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सखा॒साव॒स्मभ्य॑मस्तु रा॒तिः सखेन्द्रो॒ भगः॑।
स॑वि॒ता चि॒त्ररा॑धाः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सखा॒साव॒स्मभ्य॑मस्तु रा॒तिः सखेन्द्रो॒ भगः॑।
स॑वि॒ता चि॒त्ररा॑धाः ॥
०२ सखासावस्मभ्यमस्तु रातिः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Be yon Rāti (’liberality’) a companion (sákhi) for us; a companion
[be] Indra, Bhaga, Savitar of wondrous favors.
Notes
Rātí stems to be made a personification here, as in iii. 8. 2 and vii.
17. 4 below; the comm. makes it equal to Mitra or Sūrya. Ppp. has a very
different text: sakhe ‘va no rātir astu sakhe ’ndras sakhā savitā:
sakhā bhagas satyadharmā no ‘stu; which is better as regards both sense
and meter. The tripadā of the Anukr. is probably a misreading for
dvipadā; the mss. agree with it in using no avasāna-sign in the
verse, and SPP. very properly follows them; the pada-mss. mark a
cesura after rātiḥ. The comm. makes citrarādhās = bahuvidhaṁ dhanaṁ
yasya.
Griffith
Our friend be that Celestial Grace, Indra and Bhaga be our friends, and Savitar with splendid Wealth.
पदपाठः
सखा॑। अ॒सौ। अ॒स्मभ्य॑म्। अ॒स्तु॒। रा॒तिः। सखा॑। इन्द्रः॑। भगः॑। स॒वि॒ता। चि॒त्रऽरा॑धाः।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सविता, भग इन्द्रः
- ब्रह्मा
- एकावसाना त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्
- सुख प्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
युद्ध का प्रकरण।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (असौ) वह (रातिः) दानशील राजा (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (सखा) मित्र (अस्तु) होवे, (भगः) सबका सेवनीय, (सविता) लोकों को चलानेवाले सूर्य के समान प्रतापी, (चित्रराधाः) अद्भुत धनयुक्त (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाला (सखा) मित्र (अस्तु) होवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा अपनी प्रजा, सेना और कर्मचारियों पर सदा उदारचित्त रहे और सूर्य के समान महाप्रतापी और ऐश्वर्यशाली और महाधनी होकर सबका हितकारी बने और सबकी उन्नति से अपनी उन्नति करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−सखा। १।२०।४। सुहृत्, मित्रम्। रातिः। क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्। पा० ३।३।१७४। इति रा दाने-क्तिच्। चितः। पा० ६।१।१६३। इति अन्तोदात्तः। उदारः, दाता राजा। इन्द्रः। १।२।३। परमैश्वर्यवान्। भगः। १।१४।१। भज सेवायाम्-घ। घत्वम्। सर्वैर्भजनीयः, सर्वैः सेवनीयः। सविता। १।१८।२। सर्वप्रेरकः। सर्ववशी, सूर्यवत् प्रतापी। त्रिचराधाः। चित्र+राध संसिद्धौ-असुन्। राध इति धननाम राध्नुवन्त्यनेनेति यास्कः−निरु० ४।४। विचित्रधनयुक्तः, अद्भुतधनः ॥
०३ यूयं नः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यू॒यं नः॑ प्रवतो नपा॒न्मरु॑तः॒ सूर्य॑त्वचसः।
शर्म॑ यच्छाथ स॒प्रथः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यू॒यं नः॑ प्रवतो नपा॒न्मरु॑तः॒ सूर्य॑त्वचसः।
शर्म॑ यच्छाथ स॒प्रथः॑ ॥
०३ यूयं नः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- May ye, issue (nápāt) of the height, sun-skinned Maruts, yield us
breadthful protection.
Notes
The mss. all read at the end sapráthās, and SPP. retains it in his
text; the comm. has saprathas, in accordance with our emendation. ⌊Cf.
Lanman, Noun-Inflection, p. 560.⌋ The comm. further has yacchāta in
c.
Griffith
Thou, Offspring of the waterflood, ye Maruts, with your sun- bright skins, give us protection reaching far.
पदपाठः
यू॒यम्। नः॒। प्र॒ऽव॒तः॒। न॒पा॒त्। मरु॑तः। सूर्य॑ऽत्वचसः। शर्म॑। य॒च्छा॒थ॒। स॒ऽमथाः॑।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मरुद्गणः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- सुख प्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
युद्ध का प्रकरण।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रवतः) हे [अपने] भक्त के (नपात्) न गिरानेहारे राजन् ! और (सूर्यत्वचसः) हे सूर्यसमान प्रतापवाले (मरुतः) शत्रुओं के मारनेहारे शूरवीर महात्माओ ! (यूयम्) तुम सब (नः) हमारे लिये (सप्रथः) बहुत विस्तीर्ण (शर्म) सुख वा शरण (यच्छाथ) दान करो ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - अपने भक्तों की रक्षा करनेहारा राजा और महाप्रतापी धर्म-धुरंधर शूरवीर मन्त्री आदि मिल कर प्रजा की सर्वथा रक्षा करके अपने शरण में रक्खें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: टिप्पणी−अजमेर वैदिक यन्त्रालय और बंबई गवर्नमेन्ट के पुस्तक के संहितापाठ में (सप्रथाः) पाठ अशुद्ध दीखता है, सायणभाष्य और बंबई के सेवकलाल कृष्णदास-शोधित पुस्तक का (सप्रथः) पाठ शुद्ध जान कर हमने यहाँ पर लिया है ॥ ३−यूयम्। प्रवतो नपात् मरुतश्च। प्र-वतः। १।१३।२। भक्तस्य, सेवकस्य। भक्तान्। द्वितीयायां बहुवचनं वा। नपात्। १।१३।२। न पातयतीति। हे अपातनशील राजन् ! मरुतः। १।२०।१। मारयन्ति शत्रून् ते। हे शूरवीराः पुरुषाः। सूर्य-त्वचसः। त्वच संवरणे−असुन्। सूर्यस्य त्वक् संवरणमिव संवरणं येषां ते। सूर्यसमानतेजस्काः। शर्म। १।२०।३। सुखम्, शरणम्। यच्छाथ। दाण् दाने−लेट्। प्रयच्छत, दत्त। स-प्रथः। सह+प्रथ ख्यातौ असुन्। प्रथसा सहितं, सविस्तारम् ॥
०४ सुषूदत मृडत
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सु॑षू॒दत॑ मृ॒डत॑ मृ॒डया॑ नस्त॒नूभ्यो॑ मय॑स्तो॒केभ्य॑स्कृ॒धि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सु॑षू॒दत॑ मृ॒डत॑ मृ॒डया॑ नस्त॒नूभ्यो॑ मय॑स्तो॒केभ्य॑स्कृ॒धि ॥
०४ सुषूदत मृडत ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Do ye advance [us], be gracious; be thou gracious to our selves
(tanū́), show kindness (máyas) to our offspring (toká).
Notes
Ppp. fills up the deficiency of a, reading su mṛḍatā suṣúdatā mṛḍā
no aghābhyaḥ stokāya tanve dā (perhaps defective at the end). The mss.,
supported by the Anukr., make no division of the verse before máyas,
and SPP. follows them; the meter, however, is plainly gāyatrī. The
name given by the Anukr. is not used by it elsewhere; it doubtless
signifies, as in the VS. Anukr., 7 + 7 + 7 = 21 syllables, the
resolution -bhi-as being refused in b and c.
Griffith
Further us rightly, favour ye our bodies with your gracious love. Give thou our children happiness.
पदपाठः
सु॒सू॒दत॑। मृ॒डत॑। मृ॒डय॑। नः॒। त॒नूभ्यः॑। मयः॑। तो॒केभ्यः॑। कृ॒धि॒।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मरुद्गणः
- ब्रह्मा
- एकावसाना पादनिचृद्गायत्री
- सुख प्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
युद्ध का प्रकरण।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सुषूदत) तुम सब [हमें] अङ्गीकार करो और (मृडत) सुखी करो, [हे राजन् !] तू (नः) हमारे (तनूभ्यः) शरीरों को (मृडय) सुख दे और (तोकेभ्यः) बालकों को (मयः) आनन्द (कृधि) कर ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - महाप्रतापी राजा और सुयोग्य कर्मचारी मिल कर सब प्रजा और उनकी सन्तानों की उत्तम शिक्षा आदि से उन्नति करें और सुख पहुँचाते रहें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−सुषूदत। षूद आश्रुतिहत्योः। निरासे च। आश्रुतिरङ्गीकारः। इति शब्दकल्पद्रुमः। अङ्गीकुरुत। मृडत। मृड सुखने। सुखयत। मृडय। सुखय। तनूभ्यः। १।१।१। शरीरेभ्यः। मयः। १।१३।२। सुखम्। १। तोकेभ्यः। १।१३।२। अपत्येभ्यः ॥