००५ अपां भेषजम् ...{Loading}...
Whitney subject
- To the waters: for blessings.
VH anukramaṇī
अपां भेषजम्।
१-४ सिन्धुद्वीपः।(अपांनपात्, सोमः,) आपः। गायत्री, ४ वर्धमाना।
Whitney anukramaṇī
[Sindhudvīpa.—(etc., as 4).]
Whitney
Comment
The first three verses occur, without variants, in Pāipp. xix. The whole hymn, with the first three verses of the one next following, are, also without variants, RV. x. 9. 1-7 (vs. 5 is here put before 4; 6, 7 are also RV. i. 23. 20 a, b, c, 21); and they likewise occur in other texts: thus, 5. 1-3 in SV. (ii. 1187-1189), VS. (xi. 50-52 et al.), TS. (iv. c. 51 et al.), MS. (ii. 7. 5 et al.), and TA. (iv. 42 .4 et al.), everywhere with the same text ⌊for other references, see MGS., p. 147⌋; as to 5. 4 and the verses of 6, see under the verses. Hymns 5 and 6 together are called śambhumayobhū, Kāuś. 9. 1; for their uses in connection with the preceding hymn, see under that hymn. Both appear also in the house-building ceremony (43. 12), and this one alone in the darśapūrṇamāsa- or parvan-sacrifices (6. 17); while the schol. add it (42. 13, note) to the ceremony on the home-coming of the Vedic student. For the use in Vāit. with hymns 4 and 6, see under 4; with 6 (also under the name śambhumayobhū) it accompanies in the paśubandha (10. 19) the washing of articles employed; and with it alone, in the agnicayana (28. 11), is the lump of earth sprinkled. The comm., finally, quotes the hymn from Nakṣ. Kalpa 17, 18, as used in a mahāśānti called ādityā.
Translations
Translated: Weber, iv. 397; Griffith, i. 7.
Griffith
To the waters, for strength and power
०१ आपो हि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आपो॒ हि ष्ठा म॑यो॒भुव॒स्ता न॑ ऊ॒र्जे द॑धातन।
म॒हे रणा॑य॒ चक्ष॑से ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आपो॒ हि ष्ठा म॑यो॒भुव॒स्ता न॑ ऊ॒र्जे द॑धातन।
म॒हे रणा॑य॒ चक्ष॑से ॥
०१ आपो हि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Since ye are kindly waters, do ye set us unto refreshment (ū́rj),
unto sight of great joy.
Notes
Griffith
Ye, Waters, truly bring us bliss: so help ye us to strength and power That we may look on great delight.
पदपाठः
आपः॑। हि। स्थ। म॒यः॒ऽभुवः॑। ताः। नः॒। ऊ॒र्जे। द॒धा॒त॒न॒। म॒हे। रणा॑य। चक्ष॑से।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अपांनपात् सोम आपश्च देवताः
- सिन्धुद्वीपम्
- गायत्री
- जल चिकित्सा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
बल की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) हे जलो ! [जल के समान उपकारी पुरुषों] (हि) निश्चय करके (मयोभुवः) सुखकारक (स्थ) होते हो, (ताः) सो तुम (नः) हमको (ऊर्जे) पराक्रम वा अन्न के लिये, (महे) बड़े-बड़े (रणाय) संग्राम वा रमण के लिये और (चक्षसे) [ईश्वर के] दर्शन के लिये (दधातन) पुष्ट करो ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे जल खान, पान, खेती, बाड़ी, कला, यन्त्र आदि में उपकारी होता है, वैसे मनुष्यों को अन्न, बल और विद्या की वृद्धि से परस्पर वृद्धि करनी चाहिये ॥१॥ मन्त्र १-३ ऋग्वेद १०।९।१-३ ॥ यजुर्वेद ११।५०-५२, तथा ३६।१४-१६ सामवेद उत्तरार्चिक प्रपा० ९ अर्धप्र० २ सू० १० ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−आपः। १।४।३। हे व्यापयित्र्यः। जलधाराः। जलवत् उपकारिणः, पुरुषाः। हि निश्चयेन। स्थ। अस सत्तायां-लट्। भवथ। मयः−भुवः। मयः+भू सत्तायां−क्विप्। मिञ् हिंसायाम्-असुन्। मिनोति हिनस्ति दुःखम्। मयः सुखम् निघं० ३।६। सुखस्य भावित्र्यः कर्त्र्यः। ताः। आपो यूयम्। नः। अस्मान्। ऊर्जे। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति ऊर्ज बलप्राणनयोः−क्विप्। बलार्थम् अन्नार्थं वा। दधातन। तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४५। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः−लोट्, तकारस्य तनप् आदेशः। धत्त, पोषयत। महे। मह पूजायां−क्विप्। महते। विशालाय। रणाय। रण रवे−घञर्थे क। युद्धाय। यद्वा। रमतेर्भावे−ल्युट् मकारलोपश्छान्दसः। रमणाय। क्रीडनाय। रणाय रमणीयाय−निरु० ९।२७। यत्रायं मन्त्रो भगवता यास्केन व्याख्यातः। चक्षसे। चक्षेर्बहुलं शिच्च। उ० ४।२३३। इति चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि दर्शने च-भावे असुन्। दर्शनाय ॥
०२ यो वः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यो वः॑ शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह नः॑।
उ॑श॒तीरि॑व मा॒तरः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो वः॑ शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह नः॑।
उ॑श॒तीरि॑व मा॒तरः॑ ॥
०२ यो वः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What is your most propitious savor (rása), of that make us share
here, like zealous mothers.
Notes
Griffith
Here grant to us a share of dew, that most auspicious dew of yours, Like mothers in their longing love.
पदपाठः
यः। वः॒। शि॒वऽत॑मः। रसः॑। तस्य॑। भा॒ज॒य॒त॒। इ॒ह। नः॒। उ॒श॒तीःऽइ॑व। मा॒तरः॑।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अपांनपात् सोम आपश्च देवताः
- सिन्धुद्वीपम्
- गायत्री
- जल चिकित्सा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
बल की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (यः) जो (वः) तुम्हारा (शिवतमः) अत्यन्त सुखकारी (रसः) रस है, (इह) यहाँ [संसार में] (नः) हमको (तस्य) उसका (भाजयत) भागी करो, (इव) जैसे (उशतीः) प्रीति करती हुई (मातरः) माताएँ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे माताएँ प्रीति के साथ सन्तानों को सुख देती हैं और जैसे जल संसार में उपकारी पदार्थ है, वैसे ही सब मनुष्य परस्पर उपकारी बन कर लाभ उठावें और आनन्द भोगें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−शिव-तमः। अतिशायने तमबिष्ठनौ। पा० ५।३।५५। इति तमप्। अतिशयेन कल्याणकरः। रसः। रस आस्वादे−अच्। सारः। भाजयतम्। हेतुमति च। पा० ३।१।२६। इति भज सेवायां−णिच्-लोट्। भागिनः कुरुत। सेवयत। उशतीः। वश कान्तौ=अभिलाषे-शतृ। उगितश्च। पा० ४।१।६। इति ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति जसि पूर्वसवर्णदीर्घः। उशत्यः, कामयमानाः, प्रीतियुक्ताः। मातरः। १।२।१। जनन्यः ॥
०३ तस्मा अरम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तस्मा॒ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ।
आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तस्मा॒ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ।
आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥
०३ तस्मा अरम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We would satisfy you in order to that to the possession of which ye
quicken, O waters, and generate us.
Notes
⌊May not janáyathā, like English produce, here mean ‘bring,’ and so
signify about the same thing as jínvatha?⌋
Griffith
For you we fain would go to him to whose abode ye send us forth, And, Waters, give us procreant strength.
पदपाठः
तस्मै॑। अर॑म्। ग॒मा॒म॒। वः॒। यस्य॑। क्षया॑य। जिन्व॑थ। आपः॑। ज॒नय॑थ। च॒। नः॒।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अपांनपात् सोम आपश्च देवताः
- सिन्धुद्वीपम्
- गायत्री
- जल चिकित्सा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
बल की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे पुरुषार्थी मनुष्यो !] (तस्मै) उस पुरुष के लिये (वः) तुम को (अरम्) शीघ्र वा पूर्ण रीति से (गमाम) हम पहुचावें, (यस्य) जिस पुरुष के (क्षयाय) ऐश्वर्य के लिये (जिन्वथ) तुम अनुग्रह करते हो। (आपः) हे जलो [जल समान उपकारी लोगो] (नः) हमको (च) अवश्य (जनयथ) तुम उत्पन्न करते हो ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे जल, अन्न आदि को उत्पन्न करके शरीर के पुष्ट करने और नौका, विमान आदि के चलाने में उपयोगी होता है, इसी प्रकार जल के समान उपकारी पुरुष सब लोगों को लाभ और कीर्त्ति के साथ पुनर्जन्म देते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३-अरम्। ऋ गतौ-अच्। शीघ्रम्। यद्वा, अल भूषणे निवारणे-अमु। लस्य रत्वम्। अलम्, पर्य्याप्तं पूर्णतया। गमाम। गम्लृ गतौ णिच्-छान्दसो लोट्। वयं गमयाम, प्रापयाम। क्षयाय। एरच्। पा० ३।३।५६। इति क्षि निवासे ऐश्वर्ये च-अच्। निवासाय। ऐश्वर्यप्राप्तये। जिन्वथ। जिवि प्रीणने लट्। यूयं तर्पयथ। वर्धयथ। अनृगृहीध्वम्। आपः। १।४।३। हे जलधाराः। जनयथ। हेतुमति च। पा० ३।१।२६। इति जनी प्रादुर्भावे-णिच्-लट्, सांहितको दीर्घः। यूयं प्रादुर्भावयथ, उत्पादयथ, प्रजया यशसा वा वर्धयथ। च। अवधारणे, अवश्यम्। समुच्चये ॥
०४ ईशाना वार्याणाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ईशा॑ना॒ वार्या॑णां॒ क्षय॑न्तीश्चर्षणी॒नाम्।
अ॒पो या॑चामि भेष॒जम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ईशा॑ना॒ वार्या॑णां॒ क्षय॑न्तीश्चर्षणी॒नाम्।
अ॒पो या॑चामि भेष॒जम् ॥
०४ ईशाना वार्याणाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Of the waters, having mastery of desirable things, ruling over human
beings (carṣaṇí), I ask a remedy.
Notes
The verse follows in RV. our 6. 1. It is found, without variants, in TB.
(ii. 5. 8⁵) and TA. (iv. 42. 4); but MS. (iv. 9. 27) has a corrupt third
pāda, with much discordance among the mss., and adds a fourth.
Griffith
I pray the Floods to send us balm, those who bear rule o’er precious things, And have supreme control of men.
पदपाठः
ईशा॑नाः। वार्या॑णाम्। क्षय॑न्तीः। च॒र्ष॒णी॒नाम्। अ॒पः। या॒चा॒मि॒। भे॒ष॒जम्।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अपांनपात् सोम आपश्च देवताः
- सिन्धुद्वीपम्
- वर्धमान गायत्री
- जल चिकित्सा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
बल की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वार्याणाम्) चाहने योग्य धनों की (ईशानाः) ईश्वरी और (चर्षणीनाम्) मनुष्यों की (क्षयन्तीः) स्वामिनी (अपः) जलधाराओं [जल के समान उपकारी प्रजाओं] से मैं, (भेषजम्) भय जीतनेवाले ओषध को (याचामि) माँगता हूँ ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जल से अन्न आदि औषध उत्पन्न होकर मनुष्य के धन और बल का कारण हैं। सो जल के समान गुणी महात्माओं से सहाय लेकर मनुष्यों को आनन्दित रहना चाहिये ॥४॥ यह मन्त्र ऋग्वेद १०।९।५। है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−ईशानाः। ईश ऐश्वर्ये-शानच्। ईश्वरीः, नियन्त्रीः। वार्याणाम्। ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति वृङ् संभक्तौ-ण्यत्। अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति कर्मणि षष्ठी। वरणीयानां, धनानाम्। क्षयन्तीः। क्षि निवासे, ऐश्वर्ये च−लटः शतृ। उगितश्च। पा० ४।१।६। इति ङीप्। ईश्वरीः, स्वामिनीः। चर्षणीनाम्। कृषेरादेश्च चः। उ० २।१०४। इति कृप कर्षणे-अनि, चादेशः। आकर्षन्ति वशीकुर्व्वन्ति−इत्यर्थः। चर्षण्यः=मनुष्याः निघं० २।३। पूर्ववत् कर्मणि षष्ठी। मनुष्याणाम्। अपः। अकथितं च। पा० १।४।१०४। इति अपादाने द्वितीया। जलधाराः। जलधारासकाशात्। जलवत् उपकारिभ्यो मनुष्येभ्यः। याचामि। याचृ याच्ञायाम्-लट्। द्विकर्मकः। अहं याचे, प्रार्थये। भेषजम्। १।४।४। रोगनिवर्तकम्, औषधम् ॥