१३० अङ् प्रत्यय

आकारान्त धातु - प्र + दा + अङ् / ‘हलन्त्यम्’ सूत्र से ङ् की इत्संज्ञा करके ‘तस्य लोपः’ से इसका लोप करके - प्रदा + अ / ‘आतो लोप इटि च’ सूत्र से आ का लोप करके - प्रद् + अ - प्रद / स्त्रीत्व विवक्षा में टाप् करके - प्रदा। इसी प्रकार धा धातु से उपधा, प्रधा, अन्तर्द्धा आदि। __ इकारान्त धातु - क्षि + अ / क्डिति च’ से गुण निषेध होने के कारण अचि एनुधातुभ्रुवां य्वोरियडुवङौ’ सूत्र से इयङ् आदेश करके - क्षिय् + अ - क्षिय + टाप् = क्षिया ४१८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ Rhe two soto ऋकारान्त धातु - ऋदृशोऽडि गुणः (७.४.१६) - ऋकारान्त धातु और दृश् धातु को गुण होता है, अङ् परे होने पर। जृ + अङ् - जर् + अ / स्त्रीत्व विवक्षा में टाप् होकर - जरा। ऋ, हृ, कृ, तृ, धृ धातु - इन धातुओं को ऋदृशोऽडि गुणः’ से गुण करके, इनकी उपधा को निपातन से दीर्घ भी होता है। यथा - ऋ + अङ् = आरा Wik ‘K.व्यामिति वक्तव्यम् ।) हृ + अ = हारा तृ + अङ् = तारा धृ + अ = धारा (धारा प्रपात इति वक्तव्यम् ।) कृ + अ = कारा लिख धातु - इससे अङ् प्रत्यय होने पर निपातन से लिख को गुण होता है तथा लकार को रेफ आदेश भी होता है - लिख् + अ = लेखा / रेखा। चुद् धातु - चुद् + अङ् / निपातन से चूडा शब्द बनता है। क्रप् धातु - क्रप् + अङ् / ‘क्रपेः संप्रसारणं च’ इस वार्तिक से सम्प्रसारण होकर = कृपा। अनिदित् धातु - अनिदितां हल उपधायाः क्डिति (६.४.२४) - कित् या ङित् प्रत्यय परे होने पर, अनिदित् हलन्त धातुओं की उपधा के ‘न्’ का लोप होता है। मन्थ् + अङ् - मथ् + अ = मथा लुञ्च् + अङ् - लुच् + अ = लुचा शुन्ध् + अङ् - शुध् + अ = शुधा नाञ्चेः पूजायाम् (६.४.३०) - पूजा अर्थ में अञ्चु धातु के उपधा के नकार का लोप नहीं होता है। अञ्च् + अङ् = अञ्चा। शेष धातु - शेष धातुओं में क्डिति च सूत्र से गुण निषेघ कीजिये - भिद् + अङ् = भिदा . छिद् + अङ् = छिदा विद् + अङ् = विदा क्षिप् + अङ् = क्षिपा गुह् + अङ् = गुहा मृज् + अ = मृजा णिजन्त धातु - शेष कित् डित् प्रत्यय ४१९ णेरनिटि (६.४.५१) - णिच् का लोप होता है, अनिडादि आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। चिन्त् + णिच् - चिन्ति / चिन्ति + अङ् / ‘णेरनिटि’ सूत्र से णिच् का लोप करके - चिन्त् + अ / स्त्रीत्व विवक्षा में टाप् करके - चिन्ता। इसी प्रकार - पूजि से पूजा, कुम्बि से कुम्बा, चर्च से चर्चा, कथि से कथा बनाइये। शेष धातुओं से कुछ मत कीजिये - त्रप् + अड् - हलन्त्यम् सूत्र से ङ् की इत्संज्ञा होकर - त्रप् + अ - स्त्रीत्व विवक्षा में टाप् होकर - त्रपा / इसी प्रकार - भिद् से भिदा / छिद् से छिदा।