क्यप् प्रत्यय सब धातुओं से नहीं लगता। क्यप् प्रत्यय में हलन्त्यम् सूत्र से प् की तथा लशक्वतद्धिते सूत्र से क् की इत्संज्ञा होकर य शेष बचता है। यह प्रत्यय कित् है। इसके लगने पर कित् होने के कारण क्डिति च’ सूत्र से गुण का निषेध होगा। इसके लिये धातुओं के चार वर्ग बनाइये - १. क्यप् प्रत्यय लगाकर निपातन से बनने वाले शब्द - ये शब्द क्यप् प्रत्यय लगाकर निपातन से बनते हैं - राजसूय सूर्य मृषोद्य रुच्य कुप्य कृष्टपच्य अव्यथ्य भिद्य उद्ध्य पुष्य सिद्ध्य विपूय विनीय जित्य युग्यं __ अमावस्यद् अमावस्या चित्य अग्निचित्या। २. ह्रस्व अजन्त धातु - इनमें क्यप् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - इण् + क्यप्, क्डिति च सूत्र से गुणनिषेध करके - इ + य । ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्’ सूत्र से ह्रस्व इ को तुक का आगम करके - इ + तुक् + य / उ, क् की इत् संज्ञा करके - इ + त् + य - इत्य = इत्यः। इसी प्रकार स्तु + क्यप् से स्तुत्यः / वृ + क्यप् से वृत्यः / आ + दृ + क्यप् से आदत्यः / भृ + क्यप् से भृत्यः / कृ + क्यप् से कृत्यम् ।। __ जो क्यप् प्रत्यय स्त्रियाम्’ सूत्र के अधिकार में आता है, उससे बने हुए शब्दों से स्त्रीत्व की विवक्षा में क्यप् लगने के बाद स्त्रीलिङ्ग में ‘अजाद्यतष्टाप्’ से टाप् प्रत्यय करके - कृ + क्यप् / कृ + तुक् + क्यप् - कृत्य / कृत्य + टाप् = कृत्या। इसी प्रकार - सु + क्यप् से सुत्या। भृञ् + क्यप् से भृत्या । इ + क्यप् से इत्या, आदि बनाइये। ३. दीर्घ अजन्त धातु - शी धातु - शय्या - शीङ् + क्यप् - अयङ् यि क्डिति (७.४.२२) - शी धातु के ई के स्थान पर अयङ् आदेश ३९६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३. आदेश करके - श् + अयङ् + य / अयङ् में अ, ङ् अनुबन्धों की इत् संज्ञा करके - शय् + य - स्त्रीत्व की विवक्षा में ‘अजाद्यतष्टाप्’ से टाप् करके - शय्या। शेष दीर्घ अजन्त धातुओं को कुछ मत कीजिये - ब्रह्मभूयम् - ब्रह्म + ङस् + भू + क्यप् / ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लोप करके - ब्रह्म + भू + य / कित् होने के कारण क्ङिति च’ सूत्र से गुणनिषेध करके - ब्रह्मभूयम् । इसी प्रकार - देवभूयम् आदि। ४. हलन्त धातु - वद्, ग्रह्, यज् धातु - ये सम्प्रसारणी धातु हैं। ब्रह्मोद्यम् - ब्रह्म + ङस् + वद् + क्यप् / ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से डस् का लोप करके - ब्रह्म + वद् + य / कित् होने के कारण वचिस्वपियजादीनाम् किति’ सूत्र से सम्प्रसारण करके - ब्रह्म + उद् + य / ‘आद्गुणः’ से गुण सन्धि करके - ब्रह्मोद्यम् । इसी प्रकार सत्योद्यम्।
- गृह्यम् - ग्रह् + क्यप् / कित् होने के कारण ‘ग्रहिज्या’. सूत्र से सम्प्रसारण करके गृह् + य = गृह्यम् । इसी प्रकार - अपिगृह्यम्, प्रगृह्यम्, अवगृह्यम्, ग्रामगृह्या सेना, वासुदेवगृह्याः, अर्जुनगृह्याः आदि शब्द बनाइये। __इज्या - यज् + क्यप् / ‘वचिस्वपियजादीनां किति’ सूत्र से सम्प्रसारण करके इज् + य - इज्य / स्त्रीत्वविवक्षा में ‘अजाद्यतष्टाप्’ से टाप् करके = इज्या। हन् धातु - ब्रह्महत्या - ब्रह्म + ङस् + हन् + क्यप् / ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से ङस् का लोप करके - ब्रह्म + हन् + य - __हनस्त च - सुबन्त उपपद में होने पर हन् धातु से क्यप् प्रत्यय होता है तथा हन् को तकार अन्तादेश होता है। __इस सूत्र से हन् के न् को त् आदेश करके - ब्रह्म + हत् + य / स्त्रीत्व की विवक्षा में टाप् प्रत्यय करके - ब्रह्महत्या। शास् धातु - शिष्यः - शास् + क्यप् / शास् + य - शास इदङ्हलोः (६.४.३४)- शासु धातु की उपधा को इ आदेश होता है, अङ् परे होने पर तथा हलादि कित् ङित् प्रत्यय परे होने पर। शास् + य - शिस् + य - __शासिवसिघसीनां च (८.३.६०) - शास्, वस् और घस् धातुओं के स् को शेष कित् डित् प्रत्यय ३९७ मूर्धन्यादेश होता है। शिस् + य - शिष् + य = शिष्यः। खन् धातु - खेयम् - खन् + क्यप् - ई च खनः (३.१.११) - खन् धातु से क्यप् होता है तथा उसके अन्त्य अल् को ई आदेश होता है। खन् + क्यप् - ख + ई + य / ‘आद्गुणः’ से गुण करके - खेयम्। शेष हलन्त धातुओं को कुछ मत कीजिये - वृष् + क्यप् - वृष्यम् । वृत् + क्यप् - वृत्यम् वृध् + क्यप् - वृध्यम् । व्रज् + क्यप् - व्रज्या परि + वृज् + क्यप् - परिवृज्यः / निषद् + क्यप् - निषद्या सम् + अज् + क्यप् - समज्या / निपत् + क्यप् - निपत्या मन् + क्यप् - मन्या / विद् + क्यप् - विद्या जुष् + क्यप् - जुष्यः । दृश् + क्यप् = दृश्यम्