शकि णमुल्कमुलौ (३-४-१२) - शक् धातु उपपद में हो तो वेद के विषय में तुमर्थ में धातु से णमुल् और कमुल् प्रत्यय होते हैं। अग्निं वै देवा विभाजम् नाशक्नुवन् (विभाजन नहीं कर सके।)। अपलुपं नाशक्नुवन्, (अपलोप नहीं कर सके।) हलन्त्यम् से ल् की, ‘उपदेशेऽजनुनासिक इत्’ से उ की तथा लशक्वतद्धिते से क् की इत्संज्ञा होकर अम् शेष बचता है। अप + लुप् + कमुल् - अप + लुप् + अम्। ‘क्डिति च’ से गुण का निषेध होकर अपलुपम् । कृन्मेजन्तः (१.१.३९) से अव्यय संज्ञा होने से इनसे परे आने शेष कित् डित् प्रत्यय ३९५ वाली स्वादि विभक्तियों का ‘अव्ययादाप्सुपः’ सूत्र से लुक् करके - अपलुपम्।