जन्, सन्, खन् धातुओं को ‘जनसनखनां सझलोः’ सूत्र से आकार अन्तादेश होगा। सन् + क्तिच् - सा + ति = सातिः । न क्तिचि दीर्घश्च - ‘अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपो झलि क्डिति’ सूत्र के द्वारा मन्, हन्, गम्, रम्, नम्, यम् धातु, भ्वादिगण का वन् धातु, तथा तनादिगण के तन्, सन्, क्षण, क्षिण, ऋण, तृण, घृण, वन्, मन् धातु, इन १६ धातुओं के अन्तिम अनुनासिक वर्गों का जो लोप कहा गया है, वह लोप क्तिच् प्रत्यय परे होने पर नहीं होता है तथा ‘अनुनासिकस्य क्विझलोः क्डिति’ सूत्र के द्वारा जो अनुनासिकान्त धातुओं को दीर्घ कहा गया है, वह कार्य वह भी इन १६ धातुओं को नहीं होता है। यथा - तन् + क्तिच् - तन् + ति = तन्तिः । मन् - मन्तिः । वन् - वन्तिः, आदि। इन १६ के अलावा जो सेट् अनुनासिकान्त धातु बचते हैं, उन्हें ‘अनुनासिकस्य क्विझलोः किङति’ सूत्र से दीर्घ होता है। यथा - शम् + तिः = शान्तिः । कम् + तिः = कान्तिः, आदि। अन्यत्र क्तिन् के समान ही गुणनिषेध होगा - भू + क्तिच् = भूतिः ।