९९ क्वसु प्रत्यय

क्वसुश्च - (३.२.१०७) - वेदविषय में लिट् के स्थान में क्वसु आदेश विकल्प से होता है। क्वसु आदेश होने पर - जक्षिवान्, पपिवान्, आदि बनेंगे। क्वसु आदेश न होने पर लिट् ही होगा - अहं सूर्यमुभयतो ददर्श। भाषायां सदवसभुवः - (३.२.१०८) - लौकिक प्रयोग विषय में सद्, वस्, श्रु इन धातुओं से परे भूतकाल में विकल्प से लिट् प्रत्यय होता है और लिट् के स्थान में विकल्प से क्वसु आदेश भी होता है। सेदिवान्, ऊषिवान्, शुश्रुवान्। चूँकि क्वसु प्रत्यय लिट् लकार के स्थान पर होता है, और यह कित् प्रत्यय है। अतः लिट् लकार के कित् प्रत्यय परे होने पर जिन जिन धातुओं को जो जो कार्य होते हैं, उन उन धातुओं को वे ही कार्य ‘क्वसु प्रत्यय’ परे होने कीजिये। (लिट् लकार की पूरी द्वित्वादि प्रक्रिया हमने ‘अष्टाध्यायी सहज बोध के द्वितीय खण्ड में दी है, अतः यहाँ उसकी पुनरुक्ति नहीं करेंगे। उस प्रक्रिया के बिना क्वसु प्रत्यय लगाया ही नहीं जा सकता अतः उन द्वित्वादि विधियों को विस्तार से वहीं देखें । यहाँ केवल क्वसु सम्बन्धी इडागम ही बतलायेंगे।) क्वसु प्रत्यय में लशक्वतद्धिते सूत्र से क् की तथा उपदेशेऽजनुनासिक इत् सूत्र से उ की इत् संज्ञा होकर तस्य लोपः सूत्र से दोनों का लोप होकर वस्’ ही शेष बचता है। शित् न होने के कारण ‘आर्धधातुकं शेषः’ सूत्र से इसकी आर्धधातुक संज्ञा है। प्रथमा एकवचन में इसके रूप होते हैं - चकृवान् चकृवांसौ चकृवांसः। इसके लिये कुछ बातें ध्यातव्य हैं - क्वसु प्रत्यय के लिये कुछ बातें ध्यातव्य हैं - १. चूँकि यह प्रत्यय लिट् के स्थान पर होने के कारण लादेश है, अतः ‘लः परस्मैपदम्’ सूत्र से इसकी परस्मैपद संज्ञा होती है और यह केवल परस्मैपदी धातुओं से ही लगता है, आत्मनेपदी धातुओं से नहीं।

  • २. यद्यपि क्वसु प्रत्यय का विधान केवल वेद के लिये है, किन्तु कालिदासप्रभृति कवियों ने भी इसका प्रयोग किया है, अतः हम भी इसे सारे परस्मैपदी धातुओं में लगायें। ३. कुछ धातु ऐसे हैं, जिनसे लिट् अथवा क्वसु प्रत्यय परे होने पर आम् प्रत्यय क्वसु प्रत्यय . ३८७ होता है। ऐसे धातु इस प्रकार हैं - १. अ नेकाच् धातु - कास्यनेकाच आम्वक्तव्यः (वा. ३.१.३५) - कास् धातु तथा अनेकाच् धातुओं से आम् प्रत्यय होता है, लिट् परे होने पर। आमः (२.४.८१) - आमन्त से परे आने वाले लिट् का लुक हो जाता है। कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि (३.१.४०) - आमन्त से परे लिट्परक कृ, भू या अस् धातु का अनुप्रयोग होता है। इस प्रकार अनेकाच् धातुओं में आम् लगाइये, उसके बाद कृ, भू या अस् धातु लगाइये, उसके बाद लिट् लगाइये और लिट् के स्थान में क्वसु आदेश कर दीजिये। कृ, भू, अस् में क्वसु प्रत्यय लगाकर चकृवान्, बभूवान्, आसिवान् रूप बनते हैं। इन्हें बनाने की प्रक्रिया ‘अष्टाध्यायी सहज बोध भाग - दो में विस्तार से देखें। अनेकाच् धातुओं से आम् + क्वसु प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - चुलुम्प् + आम् - चुलुम्पाम् = चुलुम्पाञ्चकृवान्। चुलुम्प् + आम् - चुलुम्पाम् = चुलुम्पाम्बभूवान्। चुलुम्प् + आम् - चुलुम्पाम् = चुलुम्पामासिवान्। इसके अपवाद - ऊर्गु तथा दरिद्रा धातु ऊर्गु तथा दरिद्रा धातु भी अनेकाच् हैं, किन्तु इनसे आम् न लगाकर सीधे ही क्वसु प्रत्यय लगाया जाता है, और वह अनिट् होता है। जैसे - ऊर्गु + क्वसु - ऊर्गुनुवान् / दरिद्रा + क्वसु - ददरिद्रवान्।। प्रत्ययान्त धातु भी अनेकाच् होते हैं । इनसे भी पूर्ववत् कार्य कीजिये - सन्, क्यच्, काम्यच्, क्यष्, क्यङ्, क्विप्, णिङ्, ईयङ्, णिच्, यक्, आय, यङ्, इन बारह प्रत्ययों में से किसी भी प्रत्यय को लगाने से एकाच् धातु भी अनेकाच् हो जाते अनेकाच् होने के कारण इनसे भी ‘कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि’ सूत्र से कृ, भू या अस् धातु लगाये जाते हैं और इस बाद में लगे हुए कृ, भू, अस् धातु से ही लिडादेश क्वसु प्रत्यय लगाया जाता है, सीधे नहीं लगाया जाता। फल जैसे - चुर् + णिच् = चोरि, इसे देखिये। अब यह चोरि’ अनेकाच् धातु है। अतः क्वसु प्रत्यय लगाने के लिये इससे आम् लगाइये, उसके बाद कृ, भूया अस् धातु लगाइये, उसके बाद लिट् लगाइये और लिट के स्थान में क्वसु आदेश कर दीजिये। जैसे - ३८८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ चोरि चोरयाम्

चोरि + आम् - चोरयाम् = चोरयाञ्चकृवान् चोरि + आम् - चोरयाम् = चोरयाम्बभूवान् आम् = चोरयामासिवान् जिगमिष __ + आम् - जिगमिषाम् = जिगमिषाञ्चकुवान् जिगमिष आम् जिगमिषाम् __ = जिगमिषाम्बभूवान् जिगमिष + आम् - जिगमिषाम् = जिगमिषामासिवान् सारे प्रत्ययान्त धातुओं से क्वसु प्रत्यय लगने पर, इसी प्रकार कार्य कीजिये। इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छः (३.१.३६)- जिन धातुओं के आदि में ‘आ’ के अलावा कोई भी ‘गुरु स्वर’ हो, ऐसे धातु ‘इजादि गुरुमान्’ कहलाते हैं। इनसे भी आम् लगाइये, उसके बाद कृ, भू या अस् धातु लगाइये, उसके बाद लिट् लगाइये और लिट के स्थान में क्वसु आदेश कर दीजिये। सारे इजादि गुरुमान् धातु इस प्रकार हैं - एध् ओख् एज् ईज् एल् ईट् ऊम् ओण् ईर्दा ईर्घ्य इन्व् ईक्ष् ईष् उच्छ् उच्छ् ईष् ईह् ऊह् उक्ष् ऊष् एष् ऊर्व ऊम् इन्द् इन्ख् ईन्ख् इङ्ग् ऋज् उह् ईर् ईड् ईश् ईङ् ऋम्फ् उम्भ उब्ज् उन्द्।

  • ऐसे इजादि गुरुमान् धातुओं से पहिले आम् प्रत्यय लगाकर उसके बाद उनमें ‘कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि’ सूत्र से कृ, भू या अस् धातु लगाये जाते हैं और उसके बाद, इन बाद में लगे हुए कृ, भू अस् धातु से ही क्वसु प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे - उख् - ओखाञ्चकृवान् / ओखाम्बभूवान् / ओखामासिवान् आदि। इसके अपवाद - ऋच्छ् धातु - ऋच्छ् धातु भी इजादि गुरुमान् है, किन्तु इससे आम् न लगाकर सीधे ही क्वसु प्रत्यय लगाया जाता है, और वह अनिट् होता है। जैसे - ऋच्छ् + क्वसु उषविदजागृभ्योऽन्यतरस्याम् (३.१.३८) - उष्, विद्, जागृ, धातुओं से आम् प्रत्यय विकल्प से होता है। ओषाञ्चकृवान् - ऊषिवान्। विदाञ्चकृवान् - विविद्वान् । जागराञ्चकृवान् - जजागृवान्। भीहीभृहुवां श्लुवच्च (३.१.३९)- भी, ह्री, भृ, हु, धातुओं से आम् प्रत्यय विकल्प से होता है, और इन्हें श्लुवत् कार्य भी होता है। बिभयाञ्चकृवान् - बिभीवान् । जिह्रयाञ्चकृवान् - जिह्रीवान्। बिभराञ्चकृवान् - बभृवान्। क्वस प्रत्यय लगता ३८९ ऊपर कहे हुए धातुओं के अलावा शेष सारे धातुओं से क्वसु प्रत्यय सीधे लग जाता है। इनमें हम विचार करें कि किस धातु से परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को इडागम होता है, और किस धातु से परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को इडागम नहीं होता। __ वे धातु जिनसे परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को नित्य इडागम होता है वस्वेकाजाद्घसाम् (७.२.६७) - आकारान्त धातुओं से, घस् धातु से तथा जो धातु द्वित्व तथा अभ्यासादिकार्य करने पर एकाच दिखे, ऐसे धातुओं से, परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को इडागम होता है। उदाहरण - १. आकारान्त तथा एजन्त धातुओं से परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को नित्य इडागम होता है - आकारान्त तथा एजन्त धातु यद्यपि क्वस प्रत्यय परे होने पर, द्वित्व तथा अभ्यासकार्य करने के बाद अनेकाच् ही रहते हैं, तथापि इनसे परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को ‘वस्वेकाजाद्घसाम्’ सूत्र से इडागम होता है। यथा - यया + इट् + क्वसु / आतो लोप इटि च से आ का लोप करके - यय् + इ + वस् - ययिवस् / प्रथमा एकवचन में - ययिवान् / इसी प्रकार - पा - पपा - पपिवान् / ग्लै - जग्ला - जग्लिवान्। __ इसके अपवाद - दरिद्रा धातु - अनेकाच् धातुओं में दरिद्रा धातु से परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को इट् का आगम नहीं होता। दरिद्रा - ददरिद्रवान् । २. घस् धातु से परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को नित्य इडागम होता है - घस् - जक्षिवान्। ३. जो धातु द्वित्व तथा अभ्यासादिकार्य करने पर एकाच दिखें, उन्हें नित्य इडागम होता है। ऐसे धातु इस प्रकार हैं - अत् अज् अट अड् अष् अम् अव् अस् अद् इख् उख् उह् उष् अक् अग् ऋ उच् ऋध् इल् उभ् ऋष् ऋच् अन् अण् आप् अश् (क्र्यादि) अह ऋफ् ऋण ऋ ऋ इण् (इ) इक् (इ) इष् (दिवादि) इष् (तुदादि) इष् (क्र्यादि) अस् (भ्वादि) अस् (अदादि) अस् (दिवादि) = ३९ इनके अलावा ये धातु भी क्वसु प्रत्यय परे होने पर एकाच रहते हैं - ३९० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ जम् चत् । चद् दध् शच् मच् षट् पठ् तन् यत् नख् रख शट् जट चप् षप् तय नय नद् नद् __ चक् लज् जज् पट् मठ् रट् तक् रट् मख् लट् EFE मल सल् दल षम् लष् चल् जल् पल् बल् षल् षह् पत् पथ् मथ् षस् सस् जन् षघ् दध् चम् चल रद् सन् नभ् शप् पच् सद् शक् यभ् नम् यम् नश् दह नह यज् . वप् वह वस् वच् वद् वश् तृ भज् फल् राध् वे (वय्) = ११८ __ इनसे परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को नित्य इडागम कीजिये । यथा - अद् - आदिवान् । अश् - आशिवान् । अस् - आसिवान् । इष् - ईषिवान् । उखु - ऊखिवान् । ऋ - आरिवान्। तन् - तेनिवान् । यत् - येतिवान् । चल् - चेलिवान् । तप् - तेपिवान् । दम् - देमिवान् । यम् - येमिवान् । रट - रेटिवान् । लख् - लेखिवान् । शक् - शेकिवान्। सद् - सेदिवान् । वस् - ऊषिवान् । वच् - ऊचिवान् । वप् - ऊपिवान् । वह् - ऊहिवान् । तृ - तेरिवान् । राध् - रेधिवान् । फल – फेलिवान् । भज् - भेजिवान् । दम्भ - देभिवान्। ऐसे धातुओं को जानने के लिये पाणिनीय अष्टाध्यायी में ६.४.१२० से ६. ४.१२६ तक सूत्र देखें अथवा ‘अष्टाध्यायी सहज बोध - द्वितीय भाग में पृष्ठ ३५७ - ३६९ तक देखें । ये सूत्र इस प्रकार हैं - अत एकहल्मध्येऽनादेशादेर्लिटि ६.४.१२० थलि च सेटि ६.४.१२१ तृफलभजत्रपश्च ६.४.१२२ राधो हिंसायाम् ६.४.१२३ वा भ्रमुत्रसाम् ६.४.१२४ फणां च सप्तानाम् ६.४.१२५ न शसददवादिगुणानाम् ६.४.१२६ क्वसु प्रत्यय ३९१ श्रन्थग्रन्थोः एत्वाभ्यासलोपौ वक्तव्यौ (सिद्धान्तकौमुदी)। वे धातु जिनसे परे आने वाले क्वसु प्रत्यय __ को विकल्प से इडागम होता है १. विभाषा गमहनविदविशाम् (७.२.६८) - गम्, हन्, विद्, विश्, धातुओं से परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को विकल्प से इडागम होता है। गम् - जग्मिवान् जगन्वान् हन् - जनिवान् जघन्वान् विद् - विविदिवान् विविद्वान् विश् - विविशिवान् विविश्वान् २. इनके अलावा राँ, भ्रम्, त्रस्, फण, राज्, स्यम्, स्वन्, दृश्, श्रन्थ्, ग्रन्थ्, दम्भ, ध्वन् इनसे परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को भी विकल्प से इडागम होता है - जृ - जेरिवान् जजृवान् भ्रम् - भ्रमिवान् बभ्रन्वान् त्रस् - त्रेसिवान् तत्रस्वान् फण - फेणिवान् पफण्वान् राज् - रेजिवान् रराज्वान् स्यम् - स्येमिवान् सस्यन्वान् स्वन् - स्वेनिवान् सस्वन्वान् दृश् - ददृशिवान् ददृश्वान् श्रन्थ् - श्रेथिवान् शश्रन्थ्वान् ग्रन्थ् - ग्रेथिवान् जग्रन्थवान् दम्भ - देभिवान् ददम्भ्वान् ध्वन् - ध्वेनिवान् दध्वन्वान् वे धातु जिनसे परे आने वाले क्वसु प्रत्यय __ को इडागम नहीं होता है इनके अलावा क्वस प्रत्यय परे होने पर द्वित्व तथा अभ्यासकार्य करने के बाद जो भी धातु अनेकाच दिखें, उन धातुओं से परे आने वाले क्वसु प्रत्यय को इडागम नहीं होता है। जैसे - भू - बभू - बभूवान् श्रि - शिश्रि - शिश्रिवान् छिद् - चिच्छिद् - चिच्छिद्वान् __भिद् - बिभिद् - बिभिद्वान् कृ - चकृ - चकृवान् जागृ - जजागृ - जजागृवान् वस् - उवस् - ऊषिवान् _ श्रु - शुश्रु - शुश्रुवान् निपातन से बनने वाले क्वसु प्रत्ययान्त शब्द उपेयिवाननाश्वाननूचानश्च - (३.२.१०९) - उपेयिवान्, अनाश्वान्, अनूचान ये शब्द क्वसुप्रत्ययान्त निपातन किये जाते हैं। सनिससनिवासम् - वेद में सन् धातु से क्वसु प्रत्यय परे होने पर निपातन ३९२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ से सनिससनिवांसम् बनता है। लोक में सेनिवांसम् ही बनता है।