पर्यायार्हणोत्पत्तिषु ण्वुच् (३-३-१११)- पर्याय, अर्ह, ऋण, उत्पत्ति, इन अर्थों में धातु से स्त्रीलिङ्ग में, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा में, तथा भाव अर्थ में विकल्प से ण्वुच् प्रत्यय होता है। यथा - पर्याये - भवतः शायिका (आपके सोने की बारी)। भवतः अग्रग्रासिका (आपके प्रथम भोजन की बारी)। भवतः जागरिका (आपके जागने की बारी)। __ अर्हे - भवान् इक्षुभक्षिकाम् अर्हति (आप गन्ना खाने के योग्य हैं।)। भवान् पयःपायिकाम् अर्हति (आप दूध पीने के योग्य हैं।)। ऋणे - भवान् इक्षुभक्षिकां मे धारयति (मुझे गन्ना खिलाने का ऋण आपके ऊपर है।) भवान् ओदनभोजिकां मे धारयति (मुझे भात खिलाने का ऋण आपके ऊपर है।)। क्तिन् प्रत्यय ३५७ उत्पत्तौ - इक्षुभक्षिका मे उदपादि। ओदनभोजिका मे उदपादि। पयःपायिका मे उदपादि। पक्षे - तव चिकीर्षा । मम चिकीर्षा।