कृञः शः च (३-३-१००) - कृञ् धातु से स्त्रीलिङ्ग में कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में श प्रत्यय होता है तथा चकार से क्यप् भी होता है। भाष्य में ‘वा वचनं क्तिन्नर्थम्’ कहकर क्तिन् का भी विधान होने से कृ धातु से तीन प्रत्यय हुए। क्तिन्, क्यप् और श। __+ क्तिन् + टाप् / ‘क्डिति च’ से गुणनिषेध करके - कृतिः । कृ + क्यप् + टाप् / ‘ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्’ सूत्र से ह्रस्व को तुक् का आगम करके - कृ + तुक + क्यप् + टाप् = कृत्या। भाव अर्थ में श प्रत्यय होने पर - क + श+ टाप / श प्रत्यय सार्वधातक है, अतः ‘सार्वधातुके यक्’ सूत्र से यक् करके - कृ+ यक् + श+ टाप् / रिङ्शयग्लिङ्घ’ सूत्र से ऋ को रिङ् आदेश करके – क्रि + य + अ + आ = क्रिया। __ श प्रत्यय भाव अर्थ में न होने पर - ‘अचि श्नु धातु.’ सूत्र से इयङ् आदेश करके - क्रिय् + अ + आ = क्रिया। इच्छा (३-३-१०१) - भाव स्त्रीलिङ्ग में तुदादिगण के ‘इष इच्छायाम्’ धातु से श प्रत्ययान्त इच्छा शब्द निपातन किया जाता है। भावार्थक प्रत्यय होने के कारण श परे होने पर ‘सार्वधातुके यक्’ सूत्र से यक् भी प्राप्त था। उसका अभाव भी निपातन से होता है। इष् + श = इच्छा। परिचर्यापरिसर्यामृगयाऽटाट्यानामुपसंख्यानम् (वार्तिक) - श प्रत्ययान्त परिचर्या, परिसर्या, मृगया, अटाट्या शब्दों को भी निपातन किया जाता है। श प्रत्यय लगाकर निपातन से बनने वाले शब्द - परि + सृ + श = परिसर्या मृग् + श = गया परि + चर् + श = परिचर्या अट् + श = अटाट्या। (अट् धातु से श, यक् परे होने पर, टकार को द्वित्व, पूर्वभाग में यकार की निवृत्ति, और दीर्घ, ये सारे कार्य निपातन से होते हैं।) ३४६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ जागर्तेरकारो वा - जाग धातु से विकल्प से अ प्रत्यय तथा श प्रत्यय होते हैं। जागृ + अ / ‘जाग्रोऽविचिण्णल्ङित्सु’ सूत्र से गुण करके - जागर् + अ + आ = जागरा। जागृ + श + टाप् / श प्रत्यय सार्वधातुक है, अतः ‘सार्वधातुके यक्’ सूत्र से यक् करके - जागृ + यक् + श + टाप् / रिङ् आदेश को बाधकर - ‘जाग्रोऽविचिण्णल्ङित्सु’ सूत्र से गुण करके - जागर् + य + अ + आ = जागर्या ।