समानकर्तृकयोः पूर्वकाले (३.४.२१) - समान कर्ता है जिन दो क्रियाओं का, उनमें जो पूर्वकाल में वर्तमान धातु, उससे क्त्वा प्रत्यय होता है। __ तात्पर्य यह कि जब कोई एक ही कर्ता, एक क्रिया करके दूसरी क्रिया करता है, तब पहिली क्रिया को बतलाने वाला जो धातु होता है, उससे क्त्वा प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे - देवदत्त जाकर पढ़ता है। __ यहाँ एक ही कर्ता देवदत्त, जाने की क्रिया करके पढ़ने की क्रिया कर रहा है, अतः पहिली क्रिया को बतलाने वाला जो धातु गम्, उससे क्त्वा प्रत्यय लगाया जाता है। गम् + क्त्वा = गत्वा । वाक्य बना - देवदत्तः गत्वा पठति। इसी प्रकार - पठित्वा खादति - पढ़कर खाता है। खादित्वा पिबति - खाकर पीता है। पीत्वा स्वपिति - पीकर सोता है। स्मृत्वा रोदिति - स्मरण करके रोता है। दृष्ट्वा हसति - देखकर हँसता है, आदि वाक्यों में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग करना चाहिये। अष्टाध्यायी में क्त्वा प्रत्यय लगाने वाले सूत्र आगे ‘सूत्रों की यथाक्रम व्याख्या’ में व्याख्यात हैं। ये इस प्रकार हैं - - अलंखल्वोः प्रतिषेधयोः प्राचां क्त्वा - ३.४.१८ उदीचां माङो व्यतीहारे - ३.४.१९ परावरयोगे च - ३.४.२० समानकर्तृकयोः पूर्वकाले - ३.४.२१ आभीक्ष्ण्ये णमुल् च - ३.४.२२ न यद्यनाकाक्षे - ३.४.२३ विभाषाग्रेप्रथमपूर्वेषु - ३.४.२४ अव्ययेऽयथाभिप्रेताख्याने कृञः क्त्वाणमुलौ - ३.४.५९ तिर्यच्यपवर्गे - ३.४.६० स्वागे तत्प्रत्यये कृभ्वोः - ३.४.६१ नाधार्थप्रत्यये च्यर्थे - ३.४.६२ तूष्णीमि भुवः - ३.४.६३ अन्वच्यानुलोम्ये - ३.४.६४ २८४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ क्त्वा प्रत्यय में लशक्वतद्धिते सूत्र से क् की इत्संज्ञा होकर तस्य लोपः सूत्र से उसका लोप होकर त्वा’ शेष बचता है। अतः क्त प्रत्यय कित् आर्धधातुक प्रत्यय है। क्त्वातोसुन्कसुनः (१.१.४०) - क्त्वा, तोसुन् और कसुन् प्रत्यय से अन्त होने वाले शब्दों की अव्यय संज्ञा होती है। __ अतः क्त्वा प्रत्यय से बने हुए सारे शब्द अव्यय ही होंगे। इसलिये इनसे परे आने वाली स्वादि विभक्तियों का ‘अव्ययादाप्सुपः’ सूत्र से लोप हो जायेगा। धातुओं में प्रत्यय प्रत्यय लगाने के पहिले हमें बहुत सारी बातें ज्ञात होना अनिवार्य है। इन सबको भगवान् पाणिनि ने अष्टाध्यायी में एक एक प्रकरण में अलग अलग स्पष्ट करके रखा है। उसी का आश्रय लेकर इन्हें हम भी अलग अलग करके आपके लिये रख रहे हैं। इन सिद्धान्तों को अलग अलग बुद्धि में स्थिर करके सारे धातुओं में क्त्वा प्रत्यय को लगाया जा सकता है। ये प्रकरण इस प्रकार हैं -
१. धात्वादेश
सबसे पहिले हमें यह जानना चाहिये कि क्त्वा प्रत्यय के लगने पर किस धातु में क्या क्या परिवर्तन होंगे। ये इस प्रकार हैं - १. अदो जग्धिय॑प्ति किति (२.४.३६) - अद् धातु को जग्ध् आदेश होता है ल्यप् तथा तकारादि कित् प्रत्यय परे होने पर। २. अस्तेर्भूः (२.४.५२) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अस् धातु को भू आदेश होता है। अस् + क्त्वा = भूत्वा। ३. ब्रुवो वचिः (२.४.५३) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ब्रू धातु को वच आदेश होता है। ब्र + क्त्वा = उक्त्वा । ४. चक्षिङः ख्याञ् (२.४.५४) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर चक्ष् धातु को ख्या आदेश होता है। चक्ष् + क्त्वा = ख्यात्वा। __५. अजेय॑घञपोः (२.४.५६) - घञ्, अप् को छोड़कर शेष सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अज् धातु को वी आदेश होता है। अज् + क्त्वा = वीत्वा। ६. आदेच उपदेशेऽशिति (६.१.४५)- अशित् प्रत्यय परे होने पर सारे एजन्त धातुओं को ‘आ’ अन्तादेश होता है। जैसे - ग्लै + क्त्वा - ग्ला + त्वा = ग्लात्वा। म्लै + क्त्वा - म्ला + त्वा = म्लात्वा। ध्यै + क्त्वा - ध्या + त्वा = ध्यात्वा। क्त्वा प्रत्यय २८५
२. क्त्वा प्रत्यय के लिये विशेष इडागम व्यवस्था
आर्धधातुक प्रत्ययों के लिये सामान्य इडागम व्यवस्था पृष्ठ १६४ - १७२ पर देखिये । उसे बुद्धिस्थ करने के बाद ही क्त्वा प्रत्यय के लिये इस विशेष इडागम व्यवस्था को देखिये। __ भ्युकः किति (७.२.११) - श्रि धातु तथा सारे उगन्त अर्थात् उकारान्त, ऊकारान्त, ऋकारान्त और ऋकारान्त धातुओं से परे आने कित् प्रत्ययों को इडागम नहीं होता। जृव्रश्च्यो : क्त्वि (७.२.५५) - जृ धातु तथा वश्च् धातु से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय को इट् का आगम होता है। पूङश्च (७.२.५१) - पूङ् धातु से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय तथा निष्ठा प्रत्यय को विकल्प से इट् का आगम होता है। इनके अनुसार अजन्त धातुओं से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय की इडागम
- व्यवस्था इस प्रकार बनती है अजन्त धातुओं में शिव, डीङ्, शीङ् तथा जृ इन चार धातुओं से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय को नित्य इडागम होता है। श्वि - श्वयित्वा / डीङ् - डयित्वा / शीङ् - शयित्वा / जृ - जरित्वा। अजन्त धातुओं में से केवल पूङ धातु से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय को विकल्प इन पाँच अजन्त धातुओं को छोड़कर शेष अजन्त धातुओं से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय को इट् का आगम नहीं होता है। जैसे - घ्रा - घ्रात्वा / श्रि - श्रित्वा / नी – नीत्वा / हु - हुत्वा / भू - भूत्वा / कृ - कृत्वा / तृ - तीर्खा, इत्यादि। हलन्त धातुओं से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय की __विशेष इडागम व्यवस्था क्लिशः क्त्वानिष्ठयोः (७.२.५०) - क्लिशू धातु से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय तथा निष्ठा प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। ध्यान रहे कि क्लिश् धातु दो हैं। उनमें से ज़्यादिगण का ‘क्लिश उपतापे’ धातु सेट है। इसे क्त्वा तथा निष्ठा दोनों में ही नित्य इडागम प्राप्त था। इस सूत्र से यह धातु क्त्वा तथा निष्ठा, दोनों में ही वेट हो गया। क्लिष्टः, क्लिष्टवान् । क्लिशितः, क्लिशितवान् । क्लिष्ट्वा, क्लिशित्वा। २८६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ __दिवादिगण का ‘क्लिशू विबाधने’ धातु ऊदित् होने से सर्वत्र वेट है। अतः इसे ‘यस्य विभाषा’ सूत्र से निष्ठा में अनिट्त्व प्राप्त था। इस सूत्र से यह धातु निष्ठा में भी वेट हो गया - क्लिष्टः, क्लिष्टवान्। क्लिशितः, क्लिशितवान्। क्त्वा में तो यह वेट था ही। अतः क्त्वा में तो दो रूप बन ही रहे थे - क्लिष्ट्वा / क्लिशित्वा। वसतिक्षुधोरिट् (७.२.५२) - वस् तथा क्षुध् धातु अनिट् हैं किन्तु इससे परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय तथा निष्ठा प्रत्यय को नित्य इडागम होता है। वस् - उषित्वा / क्षुध् - क्षुधित्वा।। अञ्चेः पूजायाम् (७.२.५३) - अञ्चु धातु से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय तथा निष्ठा प्रत्यय को नित्य इडागम होता है, यदि धातु का अर्थ पूजा हो तो। यथा - अञ्चित्वा जानु जुहोति।। लुभो विमोहने (७.२.५४) - लुभ् धातु से परे आने वाले, क्त्वा प्रत्यय तथा निष्ठा प्रत्यय को नित्य इडागम होता है, यदि धातु का अर्थ विमोहन हो तो। यथा - लुभित्वा / लोभित्वा। विमोहन अर्थ न होने पर इडागम नहीं होगा - लुब्ध्वा। जृव्रश्च्योः क्त्वि (७.२.५५) - व्रश्चू धातु से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय को नित्य इडागम होता है। यथा - वश्चू - व्रश्चित्वा। उदितो वा (७.२.५६) - जिन धातुओं में ‘उ’ की इत् संज्ञा होती है वे धातु ‘उदित्’ कहलाते हैं। इनसे परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय को विकल्प से इट् का आगम होता है। जैसे - शमु - शान्त्वा, शमित्वा / तमु - तान्त्वा, तमित्वा आदि। पाणिनीय धातुपाठ में पठित सारे उदित् धातु इस प्रकार हैं - श्रम्भु ष्टुभु घृभु पृम्भु षिभु षिम्भु छमु कमु जमु जिमु झमु क्षिवु क्षेवु ग्रसु ग्लसु जिषु विषु मिषु श्रिषु प्लुषु पृषु वृषु मृषु __ शसु शंसु स्यमु अञ्चु खनु हषु घृषु शासु चमु दम्भु यसु शमु तमु दमु श्रमु __ भ्रमु क्लमु षिधु ष्णसु ष्णुसु असु जसु दसु __ वसु भृशु ऋधु गृधु तनु षणु क्षणु क्षिणु ऋणु _तृणु घृणु वनु मनु मुञ्चु मुचु म्युचु म्लुञ्चु ग्रुचु ग्लुचु ग्लुञ्चु कुजु खुजु वृतु वृधु शृधु मृधु धावु स्रंसु श्लिषु সুস্থ तसु क्त्वा प्रत्यय २८७ शक ध्वंसु भ्रंसु _शु संभु रमु क्रम दिवु वञ्चु चञ्चु तञ्चु त्वञ्चु षिवु त्रिवु ष्ठिवु आङः शासु। इनके अलावा क्त्वा प्रत्यय परे होने पर, शेष धातुओं की इडागम व्यवस्था उनकी औत्सर्गिक व्यवस्था के अनुरूप ही होगी यह जानें। इन सबको मिलाकर संक्षेप में क्त्वा प्रत्यय की इडागम व्यवस्था इस प्रकार बनी क्त्वा प्रत्यय में अजन्त धातुओं की इडागम व्यवस्था क्त्वा प्रत्यय परे होने पर - शिव, शीङ, डीङ् (भ्वादिगण) तथा जृ धातु सेट होते हैं / पूङ् धातु वेट होता है तथा शेष अजन्त धातु अनिट् होते हैं। क्त्वा प्रत्यय में हलन्त धातुओं की इडागम व्यवस्था अनिट् ककारान्त धातु ग्लुचु विजिर् (रुधादि) ग्लुञ्चु स्व अनिट् चकारान्त धातु वञ्चु सज् पच् तञ्चु सृज् । त्वञ्चु वेट जकारान्त धातु रिच तञ्चू । अनिट् छकारान्त धातु वच खुजु विच प्रच्छ मृजू सिच। अनिट् जकारान्त धातु त्यज् वेट चकारान्त धातु टुओस्फूर्जा। वेट् णकारान्त धातु भज् चञ्चु भञ्ज् क्षणु भुज् (पूजा अर्थ में सेट, अन्यत्र वेट) क्षिणु भ्रस्ज् ऋणु मुञ्चु मस्ज् मुच् कुजु अजू निजिर् तञ्चु षणु अञ्चु मुचु यज् म्लुचु म्लुञ्चु घृणु। वेट तकारान्त धातु वृतु (भ्वादिगण) चु २८८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ साध दृप् (दिवादि) वृतु (दिवादिगण) अनिट् दकारान्त धातु अद् लिप शुध सिध्। वेट धकारान्त धातु लुप् वप क्षुद् शप् खिद् छिद् विधु ऋधु तद स्वप् सृप। वेट पकारान्त धातु त्रपूष् नुद् पद् (दिवादिगण) भिद्, कृपू षिधू र गुपू। अनिट् भकारान्त धातु यभ विद् (दिवादिगण) विद् (रुधादिगण) शद् सद् स्विद् स्कन्द् हद् । वेट दकारान्त धातु रभ ऋध् । अनिट् नकारान्त धातु मन् हन्। वेट नकारान्त धातु खनु तनु क्लिदू स्यन्दू वनु अनिट् धकारान्त धातु लभ् । वेट भकारान्त धातु श्रम्भु ष्टुभु भु पृम्भु षिभु षिम्भु दम्भु स्रभु। लुभ धातु विमोहन अर्थ में सेट अन्यत्र अनिट् । अनिट् मकारान्त धातु गम् क्रुध मनु। अनिट् पकारान्त धातु आप् छुप् क्षिप् तप् बुध् (दिवादिगण) बन्ध युध् रुध् तिप् तृप् (दिवादि) क्त्वा प्रत्यय २८९ अनिट् शकारान्त धातु नम् यम् रम्। वेट मकारान्त धातु क्रुश् पिष् विष् शिष् दंश् शुष् दिश् दृश् छम् झमु श्लिष् (दिवादि)। वेट षकारान्त धातु कमु मृश् रिश् जमु रुश् विषु लिश् स्यम मिषु भ्रिषु श्लिषु चमु शमु तम विश् स्पृश् । - वेट शकारान्त धातु भ्रंशु भृशु भ्रंशु भ्रमु अशू क्लमु नश् रमु क्रम क्षमू क्षमूष्। वेट वकारान्त धातु क्षिवु विश् क्लिशू धातु क्त्वा प्रत्यय परे होने पर वेट हो जाता है। अनिट् षकारान्त धातु कृष् त्विष् तथू त्वल रुष् বিজু त इष् (तुदादिगण) निरः कुष्। अनिट् सकारान्त धातु घस्। वेट सकारान्त धातु पुष् (दिवादिगण) २९० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ गृह ग्रसु ग्लसु स्रंसु ध्वंसु वृह शसु भ्रंसु शस आङशासु अनिट् हकारान्त धातु दह दिह शासु यसु ष्णसु क्नसु ष्णुसु असु दह नह मुह मिह रुह स्नुह स्निह् । सह लिह वह। वेट हकारान्त धातु विशेष - इनसे बचे हुए सारे हलन्त धातु सेट होते हैं। क्त्वा प्रत्यय में लशक्वतद्धिते (१.३.८) सूत्र से क् की इत्संज्ञा होकर तस्य लोपः सूत्र से उसका लोप होकर त्वा’ बचता है। अतः क्त प्रत्यय कित् आर्धधातुक प्रत्यय है।
३. अतिदेश
गाङ्कुटादिम्योऽञ्णिन्डित् (१.२.१) - ‘इङ्’ धातु के स्थान पर होने वाले ‘गाङ्’ धातु से, तथा तुदादिगण के अन्तर्गत जो कुट से लेकर कुङ् तक ३६ धातुओं का कुटादिगण है, उस कुटादिगण में आने वाले धातुओं से परे आने वाले, जित् णित् से भिन्न, सारे प्रत्यय, डित्वत् मान लिये जाते हैं। कुटादि धातु इस प्रकार हैं - कुट पुट कुच् गुज् गुड् छुर् स्फुट मुट् त्रुट तुट चुट छुट् जुट लुट् कुड् पुड् घुट तुड् थुड् स्थुड् स्फुर् स्फुल् स्फुड् चुड् वुड् क्रुड् गुर् कृड् मृड् कड् डिप् नू धू गु ध्रु कु = ३६ क्त्वा’ प्रत्यय भी जित् णित् से भिन्न प्रत्यय है, अतः यह जब गाङ् या कुटादि धातुओं के बाद आता है, तब इसे ङित् प्रत्यय जैसा मान लिया जाता है। क्त्वा प्रत्यय २९१ विज इट - तुदादि गण के विज् धातु से परे आने वाले सारे सेट् प्रत्यय डित्वत् माने जाते हैं। व्यचेः कुटादित्वमनसीति वक्तव्यम् (वार्तिक १.२.१) - व्यच् धातु से परे आने वाले ‘अस्’ से भिन्न सारे प्रत्यय डिद्वत् होते हैं। विभाषोर्णोः (१.२.३) - ऊर्गु धातु से परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्यय विकल्प से डित्वत् माने जाते हैं। न क्त्वा सेट् (१.२.१८) - सेट् क्त्वा प्रत्यय कित् नहीं होता है। मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः क्त्वा (१.२.७) - ‘न क्त्वा सेट’ से अकित् कहा गया सेट क्त्वा प्रत्यय इन मडादि धातओं से परे होने पर कित ही होता है। रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः संश्च (१.२.८) - रुद्, विद्, मुष्, ग्रह, स्वप्, प्रच्छ, इन ५ धातुओं से परे आने वाले सन् और क्त्वा प्रत्यय कित् होते हैं। पूङः क्त्वा च (१.२.२२) - पूङ् धातु से परे आने वाले सेट निष्ठा प्रत्यय तथा सेट् क्त्वा प्रत्यय कित् नहीं होते। नोपधाद् थफान्ताद् वा (१.२.२३) - नकारोपध, थकारान्त तथा फकारान्त धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। वञ्चिलुञ्च्युतश्च (१.२.२४) - वञ्च्, लुञ्च् और ऋत् धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। __ तृषिमृषिकृशेः काश्यपस्य (१.२.२५) - तृष्, मृष्, कृश् धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। रलो व्युधाद् हलादेः संश्च (१.२.२६) - ऐसे हलादि धातु, जिनकी उपधा में इ या उ हो, अन्त में रल् हो अर्थात् अन्त में य, व् को छोड़कर कोई भी व्ययञ्जन हो, तो उनसे परे आने वाला सेट् क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। इन सूत्रों में कहे हुए धातुओं के रूप बनाते समय हमें सावधानी रखना चाहिये कि इनसे परे आने पर कब क्त्वा प्रत्यय कित् होता है और कब अकित् होता है। __ इन अतिदेश सूत्रों को पढ़कर ही अङ्गकार्य करना प्रारम्भ करें। क्योंकि अङ्गकार्य, प्रत्यय के कित्त्व अथवा अकित्त्व पर ही निर्भर करते हैं।
४. अङ्गकार्य
जब क्त्वा प्रत्यय कित् या डित् हो, तब इस प्रकार अङ्गकार्य कीजिये - २९२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ प्रत्यय के कित् डित् होने पर, मुख्यतः जो भी कार्य होते हैं, वे संक्षिप्त अङ्गकार्य के प्रकरण में तथा निष्ठा प्रत्यय में बतलाये जा चुके हैं, अतः इन्हें वहीं देखें। ये कार्य मुख्यतः इस प्रकार हैं - १. गुणनिषेध। २. इ उ के स्थान पर इयङ् अथवा यण। उ के स्थान पर उवङ् । ३. ऋ के स्थान पर यण्। ४. ऋकारान्त धातुओं को इर्, ईर, उर्, ऊर् आदेश। ५. अनिदित् धातुओं की उपधा के न् का लोप। ६. सम्प्रसारणी धातुओं को सम्प्रसारण। __ जब क्त्वा प्रत्यय ‘अकित्’ हो, तब इस प्रकार अङ्गकार्य कीजिये १. धातु के अन्तिम इक् को गुण - सार्वधातुकार्धधातुकयोः (७.३.८४)- धातु के अन्त में आने वाले इक् को गुण होता है, कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न सार्वधातुक अथवा आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। गुण का अर्थ है इ, ई के स्थान पर ए / उ, ऊ के स्थान पर ओ / ऋ, ऋ के स्थान पर अर् हो जाना। शी + इ + क्त्वा = शयित्वा। जृ + इ + क्त्वा = जरित्वा। २. उपधा के लघु इक् को गुण - पुगन्तलघूपधस्य च (७.३.८६) - धातु की उपधा में स्थित लघु इक् के स्थान पर गुण होता है, कित्, डित् से भिन्न सार्वधातुक तथा आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। यथा - लिख + इ + क्त्वा = लेखित्वा। द्युत् + इ + क्त्वा = द्योतित्वा । विशेष अङ्गकार्यों को तत् तत् स्थलों पर बतलाते चलेंगे। धातु में कोई भी प्रत्यय जोड़ते समय हमारी दृष्टि में तीन बातें एकदम स्पष्ट होना चाहिये। १. इडागम विधि को पढ़कर यह निर्णय कीजिये कि जिस धातु में हम प्रत्यय जोड़ रहे हैं, वह धातु सेट है या अनिट् या वेट? कहीं ऐसा तो नहीं है कि क्त्वा प्रत्यय को देखकर कोई अनिट् धातु सेट हो गया हो, या कोई सेट् धातु वेट हो गया हो। २. यह ज्ञान भी होना चाहिये कि क्त्वा प्रत्यय को देखकर कहीं किसी धातु को धात्वादेश होकर धातु की आकृति तो नहीं बदल रही है ? ३. यह ज्ञान भी होना चाहिये कि कहीं किसी अतिदेश प्रभाव से यह क्त्वा प्रत्यय २९३ क्त्वा प्रत्यय कित् जैसा अथवा कहीं ङित् जैसा तो नहीं मान लिया गया है? इन तीन निर्णयों पर ही हमारे सारे अङ्गकार्य आधारित होंगे। ये तीनों कार्य ऊपर बतलाये जा चुके हैं। __यह सब जानकर ही अब हम धातुओं में क्त्वा प्रत्यय लगायें ध्यान रहे कि इस ग्रन्थ में धातुओं के रूप उत्सर्गापवाद विधि से ही बनाये गये हैं। अतः इसमें हम सब धातुओं के रूप न बनाकर, केवल उन्हीं धातुओं के रूप बनायेंगे, जिनमें प्रत्यय लगने पर, धातु को, प्रत्यय को, अथवा दोनों को कुछ न कुछ परिवर्तन होता ही है। दूसरे यह कि इसमें हम धातुओं के रूप, धातुओं के आद्यक्षर के क्रम से न बनाकर, धातुओं के अन्तिम अक्षर को वर्णमाला के क्रम से रखकर बनायेंगे। यह कार्य हम धातुओं के वर्ग बनाकर, इस प्रकार करेंगे - वर्ग - १ - कुटादि धातु। वर्ग - २ - भ्वादिगण से लेकर क्र्यादिगण तक के अजन्त धातु। वर्ग - ३ - भ्वादिगण से लेकर क्र्यादिगण तक के हलन्त धातु। वर्ग - ४ - चुरादिगण के धातु तथा अन्य णिजन्त धातु। वर्ग - ५ - सन्, यङ्, क्यच्, क्यङ्, क्यष् प्रत्ययों से बने हुए प्रत्ययान्त धातु । अत्यावश्यक - धातुओं में क्त्वा प्रत्यय लगाते समय यह ध्यान रखें कि जब क्त्वा प्रत्यय को इडागम होता है, तब ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से सेट क्त्वा प्रत्यय अकित् हो जाता है। प्रत्यय के अकित् होने पर आप वे अङ्गकार्य कीजिये जो कि अकित् प्रत्ययों के लिये बतलाये गये हैं। जब क्त्वा प्रत्यय को इडागम नहीं होता तब क्त्वा प्रत्यय कित होता है। प्रत्यय के कित् होने पर आप वे अङ्गकार्य कीजिये जो कि कित् प्रत्ययों के लिये बतलाये गये हैं। अब हम धातुओं में क्त्वा प्रत्यय लगायें - वर्ग - १ - कुटादि धातु गाङ्कुटादिम्योऽञ्णिन्डित् (१.२.१) - ‘इङ्’ धातु के स्थान पर होने वाले ‘गाङ्’ धातु से, तथा तुदादिगण के अन्तर्गत जो कुट से लेकर कुङ तक ३६ धातुओं का कुटादिगण है, उस कुटादिगण में आने वाले धातुओं से परे आने वाले, जित् णित् से भिन्न, सारे प्रत्यय, डित्वत् मान लिये जाते हैं। २९४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ अतः कुटादि धातुओं में क्त्वा प्रत्यय इस प्रकार लगायें - गु धातु / ध्रु धातु / कुङ् धातु - ये कटादि धात अनिट हैं। अतः इनसे परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय को इडागम मत कीजिये। क्डिति च से गुणनिषेध कीजिये - गु + क्त्वा = गुत्वा / धु + क्त्वा = ध्रुत्वा / कु + क्त्वा = कुत्वा । नू, धू धातु - ये कुटादि धातु सेट हैं। न क्त्वा सेट् (१.२.१८) - सेट क्त्वा प्रत्यय कित् नहीं होता है। __ अब ध्यान दें कि सेट् क्त्वा अकित् होता है। अतः इन धातुओं से सेट् क्त्वा परे होने पर धातु को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण होना चाहिये, किन्तु ‘गाकुटादिम्योऽञ्णिन्डित्’ सूत्र से कुटादि धातुओं से परे आने वाले जित् णित् से भिन्न, प्रत्ययों को, डित्वत् माना जाता है। अतः सेट क्त्वा परे होने पर भी, ‘क्ङिति च’ सूत्र से गुणनिषेध ही होगा - गुणनिषेध होने पर, अचिश्नुधातुभ्रुवां य्वोरियङ्वङौ सूत्र से उवङ् करके - नू + इट् + क्त्वा - नुव् + इ + त्वा = नुवित्वा धू + इट् + क्त्वा - धुव् + इ + त्वा = धुवित्वा शेष कुटादि धातु - ये कुटादि धातु सेट हैं। न क्त्वा सेट् - सेट् क्त्वा प्रत्यय कित् नहीं होता है। यद्यपि सेट क्त्वा अकित होता है। अतः धात की उपधा को ‘पगन्तलघपधस्य च’ सत्र से गुण होना चाहिये, किन्तु ‘गाकुटादिम्योऽञ्णिन्डित्’ सूत्र से कुटादि धातुओं से परे आने वाले जित् णित् से भिन्न, प्रत्ययों को, डित्वत् माना जाता है। अतः सेट् क्त्वा परे होने पर भी, क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध ही होगा - कुच् - कुच् + इ + क्त्वा = कुचित्वा गुज् - गुज् + इ + क्त्वा = गुजित्वा कुट + इ + क्त्वा = कुटित्वा घुट + __ क्त्वा = घुटित्वा - क्त्वा = चुटित्वा = छुटित्वा क्त्वा = जुटित्वा क्त्वा = तुटित्वा for + + too + + too + क्त्वा + for + + too + क्त्वा प्रत्यय २९५ + + कृड गुड + + + jurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror + त्रुट - त्रुट् + इ + क्त्वा = त्रुटित्वा पुट - पुट् + इ + क्त्वा = पुटित्वा मुट - मुट् + इ + क्त्वा = मुटित्वा लुट - लुट + इ + क्त्वा = लुटित्वा (लुट - लुत् + इ + क्त्वा = लुठित्वा) इत्येके। स्फुट - स्फुट + इ + क्त्वा = स्फुटित्वा मृड् - मृड् + इ + क्त्वा = मृडित्वा कुड् - कुड् + इ + क्त्वा = कड़ित्वा क्रूड् - क्रूड् + इ + क्त्वा = क्रुडित्वा कृड् + इ + क्त्वा = कृडित्वा गड़ + इ + क्त्वा = गडित्वा क्त्वा = चुडित्वा तुड् + इ क्त्वा = तुडित्वा थुड् + इ क्त्वा थुडित्वा पुड् क्त्वा = पुडित्वा - वड + इ + क्त्वा = त्रुडित्वा क्त्वा = स्फुड् क्त्वा = स्फुडित्वा डिप् क्त्वा = डिपित्वा गुर् क्त्वा = गुरित्वा छुर् इ + क्त्वा = छुरित्वा स्फुर् - स्फुर् + इ + क्त्वा = स्फुरित्वा स्फुल् - स्फुल् + इ + क्त्वा = स्फूलित्वा __ - कड् + इ + क्त्वा = कडित्वा वर्ग - २ भ्वादिगण से लेकर क्र्यादिगण के अजन्त धातुओं में क्त्वा प्रत्यय लगाना अजन्त धातुओं का सेट्, अनिट् विज्ञान - ध्यान रहे कि क्त्वा प्रत्यय परे होने पर एकाच् अजन्त धातुओं में श्वि, शीङ्, डीङ् (भ्वादिगण) तथा जृ धातु सेट होते हैं / + + + + छड् स्थुड् स्थुड् + + स्थुडित्वा + + + + + + + कड्
२९६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ पूङ् धातु वेट होता है तथा शेष अजन्त धातु अनिट् होते हैं। __ आकारान्त तथा एजन्त धातु जिनके अन्त में आ है, वे धातु आकारान्त हैं - जैसे - दा, धा, ला, आदि। जिनके अन्त में एच् अर्थात् ए, ओ, ऐ, औ हैं उन एजन्त धातुओं के अन्तिम एच् के स्थान पर ‘आदेच उपदेशेऽशिति’ सूत्र से ‘आ’ आदेश होता हैं। अतः आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर एजन्त धातु भी आकारान्त बन जाते हैं। जैसे - दे - दा / धे - धा / ग्लै - ग्ला / म्लै - म्ला / शो - शा / सो - सा आदि। क्त्वा प्रत्यय परे होने पर सारे आकारान्त धातु तथा सारे एजन्त धातु अनिट् होते हैं। घुसंज्ञक धातु - दाधाघ्वदाप् (१.१.२०) - ध्यान दें कि दारूप छह धातु हैं - दो - दा / दे - दा / डुदाञ् - दा / दाण् - दा / दैप् - दा / दाप् - दा। दारूप छह धातुओं में से - दो - दा / देङ् - दा / डुदाञ् - दा / दाण् - दा, इन चार धातुओं की तथा धारूप धातुओं में से धेट - धा / डुधाञ् - धा / इस प्रकार कुल ६ धातुओं की घु संज्ञा होती है। अब हम इनमें क्त्वा प्रत्यय लगायें - दो अवखण्डने धातु - __द्यतिस्यतिमास्थामित्ति किति (७.४.४०) - दा, षो-सा, मा, स्था धातुओं को तकारादि कित् प्रत्यय परे होने पर इकारादेश होता है। दो + क्त्वा - दि + त्वा = दित्वा। देङ् - दा / डुदाञ् - दा / दाण् - दा, धातु - दो दद् घोः - घु संज्ञक दा धातु के स्थान में दथ् आदेश होता है, तकारादि कित् प्रत्यय परे होने पर । दा + क्त्वा / दथ् + त्वा / खरि च सूत्र से थ् को त् करके - दत् + त्वा = दत्त्वा । दाप, दैप् धातु - दा + क्त्वा / दा + त्वा = दात्वा। इसी प्रकार - दै + क्त्वा / आदेच उपदेशऽशिति से आत्व होकर - दा + त्वा = दात्वा। षो - सा धातु - __षो - सा + क्त्वा / द्यतिस्यतिमास्था. से इकारादेश करके - सि + त = सित्वा । मा, मेङ्, माङ् धातु - मा + क्त्वा / द्यतिस्यतिमास्था. से इकारादेश करके - मि + त्वा = मित्वा। क्त्वा प्रत्यय २९७ स्था धातु - स्था + क्त्वा / द्यतिस्यतिमास्था. से इकारादेश करके - स्थि + त्वा = स्थित्वा । डुधाञ् धातु - दधातेहिः (७.४.४२) - डुधाञ् अङ्ग को हि आदेश होता है, तकारादि कित् प्रत्यय परे होने पर। धा + क्त्वा / हि + त्वा = हित्वा। धेट् धातु - धे + क्त्वा / ‘आदेच उपदेशेऽशिति’ सूत्र से ए के स्थान पर ‘आ’ आदेश करके - धा + त्वा - घुमास्थागापाजहातिसां हलि (६.४.६६) - घुसंज्ञक, मा, स्था, गा, पा, ओहाक् तथा सा, इन अगों को हलादि कित् ङित् आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ईकारादेश होता है। __धा + क्त्वा - धी + त्वा = धीत्वा । ओहाक् - हा धातु - जहातेश्च क्त्वि (७.४.४३) - ओहाक त्यागे धातुरूप अङ्ग को क्त्वा प्रत्यय परे होने पर हि आदेश होता है। हा + क्त्वा / हि + त्वा = हित्वा। विभाषा छन्दसि (७.४.४४) - ओहाक् त्यागे धातु को वेद में क्त्वा प्रत्यय परे होने पर विकल्प से हि आदेश होता है। हा + क्त्वा = हित्वा शरीरं यातव्यम् । हात्वा । गै - गा / गाङ् / गा धातु - गै - गा + क्त्वा / घुमास्थागापा. से ईकारादेश होकर - गी + त्वा = गीत्वा । पा पाने तथा पै - पा धातु - पूर्ववत् पा + क्त्वा / घुमास्थागापा. से ईकारादेश होकर - पी + त्वा = पीत्वा। शो - शा, छो - छा धातु - शाच्छोरन्यतरस्याम् (७.४.४१) - शो तथा छो अङ्ग को विकल्प से इकारादेश होता है, तकारादि कित् प्रत्यय परे होने पर। शो + क्त्वा / शि + त्वा = शित्वा । इकारादेश न होने पर = शात्वा । इसी प्रकार छो से - छित्वा, छात्वा, बनाइये। ज्या धातु - ज्या + क्त्वा / ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचति. सूत्र से सम्प्रसारण होकर जि + त्वा / हलः सूत्र से सम्प्रसारण को दीर्घ होकर - जी + त्वा = जीत्वा ।२९८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ वेञ् धातु - वे + क्त्वा / वचिस्वपियजादीनाम् किति से सम्प्रसारण करके - उ ए + त्वा / सम्प्रसारणाच्च से ए को पूर्वरूप करके - उ + त्वा = उत्वा। हेञ् धातु -
- क्त्वा / हे + त्वा / वचिस्वपियजादीनाम् किति से सम्प्रसारण करके - ह उ ए + त्वा / सम्प्रसारणाच्च से ए को पूर्वरूप करके - हु + त्वा / हलि च से उ को दीर्घ करके - हू + त्वा = हूत्वा। व्यञ् धातु - व्यञ् + क्त्वा / व्ये + त्वा / वचिस्वपियजादीनाम् किति से य् को सम्प्रसारण करके - व् इ ए + त्वा / सम्प्रसारणाच्च से ए को पूर्वरूप करके - वि + त्वा / हलि च से इ को दीर्घ करके - वी + त्वा = वीत्वा। शेष आकारान्त धातु - इनके अलावा अब जो भी आकारान्त धातु बचे, उन्हें कुछ मत कीजिये। धातु और प्रत्यय को सीधे जोड़ दीजिये। जैसे - पा रक्षणे - पा + क्त्वा = पात्वा ओहाङ्
- हा + क्त्वा = हात्वा घ्रा
- घ्रा + क्त्वा = घ्रात्वा क्त्वा मात्वा क्त्वा म्नात्वा क्त्वा यात्वा क्त्वा क्षात्वा क्त्वा वात्वा __+ क्त्वा = त्रात्वा क्त्वा = श्यात्वा _ + क्त्वा = खात्वा, आदि। इकारान्त धातु ध्मा
शिव धातु - __श्वि, शीङ्, डीङ् (भ्वादिगण) धातु क्त्वा प्रत्यय में सेट होते हैं। अतः - श्वि + इट् + क्त्वा / शिव + इ + त्वा / क्त्वा प्रत्यय २९९
जि + + + क्षि + ध्यान दें कि क्त्वा प्रत्यय कित् है। अतः इसके परे होने पर क्डिति च सूत्र से इगन्त अङ्ग को गुण नहीं होना चाहिये। किन्तु - न क्त्वा सेट् (१.२.१८) - सेट् क्त्वा प्रत्यय कित् नहीं होता है। इस अतिदेश सूत्र के बल से इडागम होने पर क्त्वा प्रत्यय को अकित् मान लेने से सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से इगन्त अङ्ग को गुण करके - श्वे + इ + त्वा / एचोऽयवायावः से ए को अयादेश करके - श्वय् + इ + त्वा = श्वयित्वा। शेष इकारान्त धातु - इनके अलावा अब जो भी इकारान्त धातु बचे. उन्हें कुछ मत कीजिये। धातू और प्रत्यय को सीधे जोड़ दीजिये। जैसे - जि
- क्त्वा = जित्वा क्त्वा जित्वा क्त्वा जित्वा श्रिञ् क्त्वा श्रित्वा क्त्वा = क्षित्वा ष्मिङ् क्त्वा स्मित्वा - इ + क्त्वा - इत्वा क्षि क्षये - क्षि + क्त्वा = क्षित्वा क्षि निवासगत्योः क्त्वा क्षित्वा क्षि हिंसायाम्
- क्षि + क्त्वा = क्षित्वा षिञ् क्त्वा सित्वा, आदि। ईकारान्त धातु शीङ्, डीङ् (भ्वादिगण) धातु - हम जानते हैं कि शिव, शीङ, डीङ् (भ्वादिगण) धातु क्त्वा प्रत्यय में सेट होते हैं। अतः इडागम करके - शी + इट् + क्त्वा / न क्त्वा सेट् सूत्र से सेट क्त्वा प्रत्यय को अकित् मान लेने से सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से इगन्त अङ्ग को गुण करके - शे + इ + त्वा / एचोऽयवायावः से ए को अयादेश करके - शय् + इ + त्वा = शयित्वा । इसी प्रकार - डी + इट् + क्त्वा = डयित्वा। शेष ईकारान्त धातु - इनके अलावा अब जो भी ईकारान्त धातु बचे, उन्हें कुछ मत कीजिये। धातु
इण् + + + ३०० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ + णी + 4 + + 4 + + धीङ् मीङ् ली 4 मीत्वा + + 4 4 और प्रत्यय को सीधे जोड़ दीजिये। जैसे - क्त्वा नीत्वा क्त्वा वीत्वा जिभी क्त्वा भीत्वा क्त्वा हीत्वा क्त्वा धीत्वा क्त्वा क्त्वा लीत्वा व्री __ + क्त्वा = व्रीत्वा डुक्रीञ् __+ क्त्वा = क्रीत्वा, आदि। उकारान्त धातु ऊर्गु धातु (क्त्वा प्रत्यय में सेट) - विभाषोर्णोः (१.२.३) - ऊर्गु धातु से परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्यय विकल्प से डित्वत् माने जाते हैं। प्रत्यय के ङित्वत् होने पर- ऊर्गु+ इट् + क्त्वा / क्डिति च सूत्र से गुणनिषेध करके - ऊर्गु + इ + त्वा / अचि श्नु. सूत्र से उ को उवङ् आदेश करके - ऊर्गुत् + इ + त्वा = ऊर्गुवित्वा। प्रत्यय के डित्वत् न होने पर - ऊर्गु + इट् + क्त्वा / सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से उ को गुण करके - ऊर्णो + इ + त्वा / एचोऽयवायावः से ओ को अवादेश करके - ऊर्णव् + इ + त्वा = ऊर्णवित्वा। शेष उकारान्त धातु ये अनिट् हैं। गुणनिषेध होने से धातु और प्रत्यय को सीधे जोड़ दीजिये -
- यु + क्त्वा = युत्वा क्त्वा = रुत्वा
क्त्वा क्त्वा क्षुत्वा क्त्वा क्ष्णुत्वा क्त्वा स्नुत्वा + + नुत्वा 680 GS GRA + + + क्त्वा प्रत्यय ३०१
- क्त्वा = श्रुत्वा, आदि। ऊकारान्त धातु ब्रू धातु - ब्रुवो वचिः (१.४.५३) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ब्रू धातु को वच् आदेश होता है। ब्रून + क्त्वा / वच् + त्वा - वच् को वचिस्वपियजादीनां किति सूत्र से सम्प्रसारण करके उ बनाइये - उच् + त्वा - उच् + त्वा / चोः कुः से च् को क् करके - उक् + त्वा = उक्त्वा । पूङ् धातु - पूङश्च (७.२.५१) - पूङ् धातु से परे जब आने वाले क्त्वा तथा निष्ठा प्रत्यय को विकल्प से इट् का आगम होता है। इडागम होने पर - पू + इट् + क्त्वा / सेट् क्त्वा प्रत्यय के अकित् होने के कारण सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण होकर पो + इ + त्वा / एचोऽयवायावः सूत्र से अवादेश होकर - पव् + इ + त = पवित्वा। इडागम नहीं होने पर - क्त्वा प्रत्यय कित् ही रहेगा और प्रत्यय के कित् रहने के कारण क्ङिति च से गुण निषेध होकर - पू + क्त्वा = पूत्वा। शेष ऊकारान्त धातु - ये अनिट् हैं। गुणनिषेध होने से धातु और प्रत्यय को सीधे जोड़ दीजिये -
- भू + क्त्वा = भूत्वा मूङ् . - मू + क्त्वा = मूत्वा
- सू + क्त्वा = सूत्वा - पू + क्त्वा = पूत्वा, आदि। __ ऋकारान्त धातु जागृ धातु (क्त्वा प्रत्यय में सेट) - जागृ + इट् + क्त्वा / किडिति च से गुणनिषेध प्राप्त होने पर - जाग्रोऽविचिण्णल्डित्सु (७.३.८५) - जहाँ वृद्धि प्राप्त हो, अथवा जहाँ गुण, वृद्धि का निषेध प्राप्त हो, वहाँ जागृ धातु को गुण ही होता है, वि, चिण, णल्, तथा ङित् से भिन्न प्रत्यय परे होने पर। जागृ + इ + त्वा - जागर् + क्त्वा = जागरित्वा । ३०२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ वृञ् CIT Hot /co/ ट
शेष ऋकारान्त धातु (क्त्वा प्रत्यय में अनिट) - गुणनिषेध होने से धातु और प्रत्यय को सीधे जोड़ दीजिये -
- वृ + क्त्वा = वृत्वा __ - वृ + क्त्वा = वत्ता
- क्त्वा = सृत्वा - स्म + क्त्वा = स्मृत्वा
- क्त्वा = हृत्वा
- कृ _+ क्त्वा = कृत्वा, आदि। ऋकारान्त धातु क्त्वा प्रत्यय परे होने पर जृ धातु जृवृश्च्यो : क्त्वि सूत्र से सेट है तथा शेष ऋकारान्त धातु अनिट् हैं। जृ धातु (सेट) - जृ + इट् + क्त्वा - न क्त्वा सेट् सूत्र से सेट क्त्वा प्रत्यय को अकित् मान लेने से सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से इगन्त अङ्ग को गुण करके - जर् + इ + त्वा = जरित्वा। पृ, भृ, वृ, मृ, धातु (अनिट्) - पृ + क्त्वा - ‘उरण रपरः’ सूत्र से उ को रपर करके - पुर् + त्वा - हलि च सूत्र से उपधा के इक् को दीर्घ करके - पूर् + त्वा = पूर्वा। उदोष्ठ्यपूर्वस्य (७.१.१०२) - कित्, ङित् प्रत्यय परे होने पर, ऋ को ‘उ’ होता है, यदि उस दीर्घ ऋ के पूर्व में आने वाला वर्ण ओष्ठ्य हो तो। पृ + क्त्वा - ‘उरण रपरः’ सूत्र से उ को रपर करके - पुर् + त्वा - हलि च सूत्र से उपधा के इक् को दीर्घ करके - पूर् + त्वा = पूर्खा। इसी प्रकार -
- भृ + क्त्वा = भूर्वा __- मृ + क्त्वा = मूर्वा
- वृ + क्त्वा = दूर्वा, आदि। ध्यान दें कि इनमें ऋ के पूर्व में प्, व्. भ् हैं, जो कि ओष्ठ्य वर्ण हैं। शेष ऋकारान्त धातु - क्त्वा प्रत्यय परे होने पर अनिट् होते हैं। ऋत इद् धातोः (७.१.१००) - धातु के अन्त में आने वाले दीर्घ ऋ को इ आदेश क्त्वा प्रत्यय ३०३
ग + होता है कित् या ङित् प्रत्यय परे होने पर। तृ + क्त्वा - ‘उरण रपरः’ सूत्र से इ को रपर करके - तिर् + क्त्वा - हलि च सूत्र से उपधा के इक् को दीर्घ करके - तीर् + त्वा - तीर्खा। इसी प्रकार - जृष्
- जृ + क्त्वा = जीर्वा क्त्वा = कीर्वा - गृ + क्त्वा = गीर्वा . वर्ग - ३ भ्वादिगण से ज़्यादिगण तक के हलन्त धातुओं में _क्त्वा प्रत्यय लगाना यदि धातु सेट होगा तो हम उसके रूप इट लगाकर बनायेंगे। यदि अनिट् होगा, तो इट् लगाये बिना बनायेंगे। ध्यान रहे कि इट् लगने पर क्त्वा प्रत्यय न क्त्वा सेट्’ सूत्र से अकित् होगा। इट् न लगने पर वह कित् ही रहेगा। तदनुसार ही अङ्गकार्य होंगे। ककारान्त धातु शक् + क्त्वा - शक् + त्वा = शक्त्वा । चकारान्त धातु ओव्रश्चू - व्रश्च् धातु (सेट) - ‘जृवृश्च्योः क्त्वि’ सूत्र से क्त्वा प्रत्यय में यह धातु सेट है। अतः क्त्वा को इडागम करके - व्रश्च् + इ + क्त्वा - न क्त्वा सेट् (१.२.१८) - सेट् क्त्वा कित् नहीं होता है। अतः ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च सूत्र से प्राप्त होने वाला सम्प्रसारण यहाँ नहीं होगा - व्रश्च् + इ + क्त्वा - व्रश्चित्वा। अञ्चु धातु - अञ्चेः पूजायाम् (७.२.५३) - अञ्चु धातु से परे आने वाले क्त्वा प्रत्यय तथा निष्ठा प्रत्यय को नित्य इडागम होता है, यदि धातु का अर्थ पूजा हो तो। पूजा अर्थ होने पर इडागम होगा - नाञ्चेः पूजायाम् (६.४.३०) - पूजा अर्थ में अञ्चु धातु के उपधा के नकार का लोप नहीं होता है। अञ्च् + इट् + क्त्वा = अञ्चित्वा। ३०४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ पूजा अर्थ न होने पर विकल्प से इडागम होगा - अञ्च + क्त्वा / अनिदितां हल उपधायाः क्ङिति सत्र से उपधा के न का लोप करके - अच् + त्वा / चोः कुः’ से कुत्व करके - अक् + त्वा = अक्त्वा । अञ्चित्वा। वच् धातु - __ वच् + क्त / वचिस्वपियजादीनाम् किति सूत्र से सम्प्रसारण करके - उच् + क्त्वा / च् को कुत्व करके - उक्त्वा । व्यच् धातु (सेट) - यह धातु सेट है। अतः क्त्वा को इडागम करके - व्यच् + इ + क्त्वा - व्यचेः कुटादित्वमनसीति वक्तव्यम् - व्यच् धातु को कुटादिवत् मान लेना चाहिये, अस् से भिन्न प्रत्यय परे होने पर। __ कुटादि होने के कारण ङित्वत् होने से ग्रहिज्या. सूत्र से सम्प्रसारण करके - विच् + इ + त्वा = विचित्वा। लुञ्च् धातु (सेट) - वञ्चिलुञ्च्युतश्च (१.२.२४) - वञ्च्, लुञ्च् और ऋत् धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। ये धातु सेट हैं। लुञ्च् + इट् + क्त्वा / क्त्वा प्रत्यय के कित् होने पर - ‘अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ सूत्र से उपधा के न् का लोप करके - लुञ्च् + इट् + क्त्वा - लुच् + इ + क्त्वा = लुचित्वा। क्त्वा प्रत्यय के कित् न होने पर न् का लोप न करके - लुञ्च् + इट + क्त्वा = लुञ्चित्वा। वञ्चु धातु (वट्) - वञ्चिलुञ्च्यतश्च (१.२.२४) - वञ्च्, लुञ्च् और ऋत् धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। वञ्च् + इट् + क्त्वा / क्त्वा प्रत्यय के कित् होने पर पूर्ववत् = वचित्वा। क्त्वा प्रत्यय के कित् न होने पर न् का लोप न करके - वञ्च् + इट् + क्त्वा = वञ्चित्वा। इडागम न होने पर अनिदितां हल उपधायाः क्ङिति’ सूत्र से उपधा के न् का लोप करके - वञ्च् + क्त्वा = वक्त्वा। चञ्चु, तञ्चु, तञ्चू, त्वञ्चु, मुञ्चु, म्लुञ्चु, ग्लुञ्चु - क्त्वा प्रत्यय ३०५ म्लुञ्चु तञ्चू चञ्चु तञ्चु उदितो वा सूत्र से उदित् धातु’ तथा स्वरतिसूतिसूयतिधूदितो वा सूत्र से ‘ऊदित् धातु’ वेट होते हैं। अतः इन्हें विकल्प से इडागम कीजिये। ध्यान रहे कि अनिट् होने पर क्त्वा प्रत्यय कित् होगा और कित् होने पर ‘अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ से उपधा के न् का लोप होगा। सेट होने पर क्त्वा प्रत्यय अकित् होगा और अकित् होने पर न् का लोप नहीं होगा। तो दो दो रूप बनेंगे - मुञ्चु __ - मुञ्च् + क्त्वा = मुक्त्वा । मुञ्चित्वा
- म्लुञ्च् + क्त्वा = म्लुक्त्वा । म्लुञ्चित्वा
- तञ्च् + क्त्वा = तक्त्वा । तञ्चित्वा ग्लुञ्चु - ग्लुञ्च् + क्त्वा = ग्लुक्त्वा / ग्लुञ्चित्वा
- चञ्च् + क्त्वा = चक्त्वा / चञ्चित्वा
- तञ्च् + क्त्वा = । तक्त्वा । तञ्चित्वा त्वञ्चु - त्वञ्च् + क्त्वा = त्वक्त्वा / त्वञ्चित्वा शेष चकारान्त वेट धातु - “उदितो वा’ सूत्र से ये उदित् धातु वेट होते हैं। __ इडागम न होने पर गुण इन्हें नहीं होगा। इडागम होने पर ‘रलो व्युपधाद् हलादेः संश्च’ सूत्र से प्रत्यय के विकल्प से कित् होने के कारण विकल्प से गुण होगा - ग्रुचु - ग्रुच् + क्त्वा = ग्रुक्त्वा / ग्रुचित्वा / ग्रोचित्वा ग्लुचु - ग्लुच् + क्त्वा = ग्लुक्त्वा / ग्लुचित्वा / ग्लोचित्वा मुचु - मुच् + क्त्वा = मुक्त्वा / मुचित्वा / मोचित्वा म्लुचु - म्लुच् + क्त्वा = म्युक्त्वा / म्लुचित्वा / म्लोचित्वा शेष चकारान्त अनिट् धातु - चोः कुः (८.२.३०) - चवर्ग के स्थान पर कवर्ग आदेश होता है झल् परे रहते तथा पदान्त में। अतः धातु के अन्त में आने वाले च् को क् और ज् को ग् बनाइये।
- पच् + क्त्वा = पक्त्वा मुच - मुच् + क्त्वा = मुक्त्वा रिच - रिच् + क्त्वा = रिक्त्वा विच् - विच् + क्त्वा = विक्त्वा सिच __ - सिच् + क्त्वा = सिक्त्वा पच् ३०६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ छकारान्त धातु प्रच्छ् धातु - प्रच्छ् + क्त्वा / ‘अहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च’ सूत्र से सम्प्रसारण करके - पृच्छ् + त्वा - व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः (८.२.३६) - व्रश्च्, भ्रस्ज्, सृज्, मृज्, यज्, राज्, भ्राज्, धातु तथा छकारान्त और शकारान्त धातुओं के अन्त्य वर्ण के स्थान पर ‘ष’ होता है, झल् परे होने पर तथा पदान्त में। पृच्छ् + त्वा - पृष् + त्वा / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ष्टुत्व’ करके - पृष्ट्वा । जकारान्त धातु ओविजी भयचलनयोः - विज् धातु - विज इट् (१.१.२) - तुदादिगण तथा रुधादिगण के ओविजी भयचलनयोः’ धातु से परे आने वाले सारे सेट् प्रत्यय ङित्वत् माने जाते हैं । अतः ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध करके - विज् + इ + क्त्वा = विजित्वा। विजिर् पृथग्भावे - विज् धातु - जुहोत्यादिगण का यह धातु अनिट् है। विज् + क्त्वा - विक्त्वा । अज् धातु - अजेळघञपोः (२.४.५६) - घञ्, अप् को छोड़कर शेष सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अज धात को वी आदेश होता है। अज + क्त्वा - वी + क्त्वा = वीत्वा। यज् धातु - यज् + क्त / वचिस्वपि. सूत्र से सम्प्रसारण करके - इज् + त्वा - ‘व्रश्चभ्रस्ज सृजमजयजराजभ्राजच्छशां षः’ सूत्र से ज् के स्थान पर ‘ए’ करके - इष् + त्वा / ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से त् को ष्टुत्व करके - इष्ट्वा । भ्रस्ज् धातु - भ्रस्ज् + क्त्वा / ‘ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपच्छतिभृज्जतीनां डिति च’ सूत्र से सम्प्रसारण करके - भृज्ज् + त्वा / व्रश्चभ्रस्ज. सूत्र से ज् के स्थान पर ‘ए’ करके - भृष् + त्वा / ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से त् को ष्टुत्व करके - भृष् + ट्वा = भृष्ट्वा । क्त्वा प्रत्यय ३०७ सृज् धातु - सृज् + क्त्वा / व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः सूत्र से ज् के स्थान पर ‘ए’ करके - सृष् + त्वा / ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से त् को ष्टुत्व करके - सृष्ट्वा । मस्ज् धातु - मस्जिनशोझलि (७.१.६०) - मस्ज् और नश् धातुओं को नुम् का आगम होता है, झल् परे होने पर। __ मस्जेरन्त्यात् पूर्व नुम् वाच्यः (वार्तिक ७.१.६०) - मस्ज् धातु को होने वाला नुमागम अन्त्य वर्ण के ठीक पूर्व में होता है। जान्तनशां विभाषा (६.४.३२) - जकारान्त धातुओं तथा नश् धातु के न् का विकल्प से लोप होता है, क्त्वा प्रत्यय परे होने पर। स्कोः संयोगाद्योरन्ते च (८.२.२९) - पद के अन्त में तथा झल् परे रहते जो संयोग उसके आदि के सकार तथा ककार का लोप हो जाता है। मस्ज् + क्त्वा - मस्जेरन्त्यात् पूर्व नुम् वाच्यः से अन्तिम वर्ण के पूर्व में नुमागम करके - मस्न्ज् + त्वा स्कोसंयोगाद्योरन्ते च सूत्र से संयोग के आदि के सकार का लोप करके - मन्ज् + त्वा / चोः कुः से कुत्व करके - मन्ग् + त्वा / नश्चापदान्तस्य झलि से न् को अनुस्वार करके - मंग् + त्वा / खरि च से ग् को चर्व करके - मंक् + त्वा / अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः से परसवर्ण करके - मङ् + त्वा = मङ्क्त्वा । जान्तनशां विभाषा (६.४.३२) सूत्र से न् का विकल्प से लोप करके - मक्त्वा । जकारान्त अनिदित् अनिट् धातु - ‘जान्तनशां विभाषा’ सूत्र से इनके न् का विकल्प से लोप करके दो दो रूप बनाइये - भञ्ज् + क्त्वा = भक्त्वा / भक्त्वा रञ्ज् + क्त्वा = रक्त्वा / रक्त्वा सङ्ग् + क्त्वा = सक्त्वा / सङ्क्त्वा ष्वज् स्वऽ + क्त्वा = स्वक्त्वा / स्वक्त्वा अङ्ग् + क्त्वा = अक्त्वा / अङ्क्त्वा / अजित्वा । मृजू - मृज् धातु - भऽ रञ्ज ष अञ्ज वि ३०८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ इडागम न होने पर व्रश्चभ्रस्ज. सूत्र से ज् के स्थान पर ष्’ करके - मृष् + त्वा / ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके मृष्ट्वा । इडागम होने पर मृजेवृद्धिः से वृद्धि करके - मार्जित्वा कुजु, खुजु धातु - ये धातु उदितो वा’ से वेट हैं। रलो व्युधाद् हलादेः संश्च (१.२.२६) - ऐसे हलादि धातु, जिनकी उपधा में इ या उ हो, अन्त में रल् हो अर्थात् अन्त में य, व् को छोड़कर कोई भी व्ययञ्जन हो, और उनसे परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय सेट हो, तो ऐसा क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। क्त्वा प्रत्यय के कित् होने पर - ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ से उपधा के ‘इ’ ‘उ’ को गुण नहीं होगा। क्त्वा प्रत्यय के कित् न होने पर - ‘इ’ ‘उ’ को गुण होकर क्रमशः ‘इ’ को ‘ए’ और ‘उ’ को ‘ओ’ हो जायेंगे। इट न होने पर यह कित् ही होगा। कित् होने पर क्ङिति च’ सूत्र से गुण का निषेध होगा। इस प्रकार तीन रूप बनेंगे - कुजु - कुज् + क्त्वा = कुक्त्वा / कुजित्वा / कोजित्वा खुजु - खुज् + क्त्वा = खुक्त्वा / खुजित्वा / खोजित्वा शेष जकारान्त धातु - चोः कुः’ सूत्र से ज् को कुत्व करके ‘ग्’ बनाइये। उसके बाद उस ‘ग्’ को ‘खरि च’ सूत्र से उसी कवर्ग का प्रथमाक्षर ‘क्’ बनाइये। त्यज्
- त्यज् + क्त्वा = त्यक्त्वा - निज् + क्त्वा = निक्त्वा
- भज् + क्त्वा = भक्त्वा भुज् - भुज् . + क्त्वा = भुक्त्वा
- युज् + क्त्वा = युक्त्वा रुज्
- रुज् + क्त्वा = रुक्त्वा विजिर् - विज् + क्त्वा = विक्त्वा णकारान्त धातु शेष णकारान्त धातु - अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपो झलि क्डिति (६.४.३७) निजिर् भज युज क्त्वा प्रत्यय ३०९ क्षणु क्षिणु घण अनुदात्तोपदेश, वनति तथा तनोति इत्यादि धातुओं के अनुनासिक का लोप होता है झलादि कित् डित् प्रत्यय परे होने पर। इससे अनुनासिक ण् का लोप करके - ऋणु . - ऋण + क्त्वा = ऋत्वा
- क्षण् + क्त्वा = क्षत्वा - क्षिण् + क्त्वा = क्षित्वा - घृण् + क्त्वा = घृत्वा - तृण् + क्त्वा = तृत्वा तकारान्त धातु ऋत् धातु (सेट) - वञ्चिलुञ्च्युतश्च (१.२.२४) - वञ्च्, लुञ्च् और ऋत् धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। ऋत् धातु सौत्र है। ऋत् + इ + क्त्वा / क्त्वा प्रत्यय के कित् होने पर कारण क्ङिति च सूत्र से गुण न होकर- ऋत् + इ + क्त्वा = ऋतित्वा। क्त्वा प्रत्यय के अकित् होने पर ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के लघु इक् को गुण होकर - ऋत् + इ + क्त्वा - अ + इ + क्त्वा = अर्तित्वा। वृतु धातु (भ्वादि तथा तुदादिगण) - उदितो वा सूत्र से उदित् धातु’ तथा वेट होते हैं । अतः इन्हें विकल्प से इडागम कीजिये । सेट होने पर क्त्वा प्रत्यय अकित् होगा और अकित् होने से उपधा को गुण होगा, तो दो दो रूप बनेंगे - वृतु - वृत् + क्त्वा = वृत्वा / वर्तित्वा थकारान्त धातु अनिदित् थकारान्त धातु (सारे सेट) - नोपधाद् थफान्ताद् वा (१.२.२३) - नकारोपध थकारान्त तथा नकारोपध फकारान्त धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। प्रत्यय के कित् होने पर ‘अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ सूत्र से उपधा के न का लोप होगा। कित् न होने पर ‘अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ सत्र से उपधा के न् का लोप नहीं होगा - ग्रन्थ् - ग्रथ् + क्त्वा = ग्रथित्वा / ग्रन्थित्वा श्रन्थ् - श्रथ् + क्त्वा = श्रथित्वा / श्रन्थित्वा ३१० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ कुन्थ् मन्थ् - मथ् + क्त्वा = मथित्वा / मन्थित्वा - कुथ् + क्त्वा = कुथित्वा / कुन्थित्वा दकारान्त धातु वद् धातु (सेट) - __ मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः क्त्वा (१.२.७) - सेट क्त्वा प्रत्यय भी इन मृडादि धातुओं से परे होने पर कित् ही होता है। अतः - __ वद् + इट् + क्त्वा / प्रत्यय के कित् होने के कारण - वचिस्वपियजादीनां किति सूत्र से सम्प्रसारण करके - उद् + इ + त = उदित्वा। रुद् धातु / अदादि, तुदादि गण के विद् धात् (सेट) - ये धातु सेट हैं। अतः ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से इनसे परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय अकित् होना चाहिये। किन्तु - __ रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः संश्च (१.२.८) - रुद्, विद्, मुष्, ग्रह, स्वप्, प्रच्छ, इन ५ धातुओं से परे आने वाले सन् और क्त्वा प्रत्यय कित् होते हैं। इसलिये क्डिति च सत्र से गणनिषेध करके - रुद + इट + क्त्वा = रुदित्वा। विद + इट + क्त्वा = विदित्वा। विद + इट + क्त्वा = विदित्वा। विशेष - ध्यान रहे कि रुधादि तथा दिवादिगण के विद् धातु अनिट् हैं। अतः उनसे वित्त्वा ही बनेगा। अद् धातु - अदो जग्धिय॑प्ति किति (२.४.३६)- अद् धातु को जग्ध् आदेश होता है ल्यप् तथा तकारादि कित् प्रत्यय परे होने पर। अद् + क्त्वा - जग्ध् + त्वा = जग्ध्वा। स्कन्द् धातु (अनिट) - ‘अनिदितां हल उपधायाः क्ङिति’ सूत्र से उपधा के नकार का लोप प्राप्त होने पर -
- क्त्वि स्कन्दिस्यन्दोः (६.४.३१) - क्त्वा प्रत्यय परे होने पर, स्कन्द और स्यन्द् धातुओं की उपधा के ‘न्’ का लोप नहीं होता। स्कन्द् - स्कन्द् + क्त्वा = स्कन्त्वा स्यन्द् धातु विट्) - क्त्वि स्कन्दिस्यन्दोः (६.४.३१) सूत्र से इसकी उपधा के ‘न्’ का लोप न होने से इसके दो रूप बनाइये - क्त्वा प्रत्यय ३११ भिद्
करवा + क्त्वा सद् + स्यन्दू
- स्यन्द् + क्त्वा = स्यन्त्वा / स्यन्दित्वा मृद् धातु - मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः क्त्वा सूत्र से क्त्वा के कित् होने के कारण क्डिति च से गुणनिषेध करके - मृद् + इट् + क्त्वा = मृदित्वा। क्लिदू - क्लिद् धातु विट्) - इडागम न होने पर - क्लित्त्वा। इडागम होने पर क्लेदित्वा। शेष अनिट् दकारान्त धातु - ‘खरि च’ सूत्र से द् को त्’ करके - पद्
- पद् + क्त्वा = पत्त्वा
- भिद् + क्त्वा = भित्त्वा विद् (दिवादि) - विद् + क्त्वा = वित्त्वा विद् (रुधादि) - क्त्वा = वित्त्वा शद् शत्त्वा ष्विदा (दिवादि) __ + स्वित्त्वा क्त्वा = सत्त्वा हद्
- क्त्वा = हत्त्वा - क्षुद् + क्त्वा
- खिद् + क्त्वा = खित्त्वा छिद् - छिद् + क्त्वा = छित्त्वा
- तुद् + क्त्वा = तुत्त्वा - नुद् + क्त्वा = नुत्त्वा, आदि। __धकारान्त अनिट् धातु व्यध् धातु - व्यध् + क्त्वा - ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च सूत्र से सम्प्रसारण करके - विध् + त्वा - धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर होने पर - १. झषस्तथो?ऽधः (८.२.४०) - झष् अर्थात् वर्ग के चतुर्थाक्षरों के बाद आने वाले प्रत्यय के त, थ को ध होता है। देखिये कि ध्, झष् है, अर्थात् वर्ग का चतुर्थाक्षर है। अतः उससे परे आने वाले प्रत्यय के ‘त’ को ‘ध’ बनाकर - विध् + त्वा - विध् + ध्वा - हद क्षुत्त्वा खिद् तुद् ३१२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ २. झलां जश् झशि (८.४.५३) - झल् के स्थान पर जश् अर्थात् वर्ग का तृतीयाक्षर होता है, झश् परे होने पर। विध् + त्वा - विद् + ध्वा = विद्ध्वा । बन्ध् धातु - _ये धातु अनिट् हैं । बन्ध् + क्त्वा / प्रत्यय के कित् होने के कारण ‘अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ सूत्र से उपधा के न् का लोप करके - बध् + त्वा / झषस्तथो?ऽधः सूत्र से झए अर्थात् वर्ग के चतुर्थाक्षर के बाद आने वाले प्रत्यय के ‘त’ को ‘ध’ करके और उसके परे होने पर, धातु के अन्तिम ध् को ‘झलां जश् झशि’ सूत्र से जश्त्व करके अर्थात् वर्ग का तृतीयाक्षर द् बनाकर - बध् + ध्वा - बद् + ध्वा = बद्ध्वा । गुध् धातु - मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः क्त्वा सूत्र से क्त्वा के कित् होने के कारण क्डिति च से गुणनिषेध करके - गुध् + इट् + क्त्वा = गुधित्वा । शेष धकारान्त वेट् धातु - _ ‘क्ङिति च’ से गुण निषेध करके, तथा पूर्ववत् ‘झषस्तथो?ऽधः’ सूत्र से झष् के बाद आने वाले प्रत्यय के ‘त’ को ‘ध’ करके और ‘झलां जश् झशि’ सूत्र से धातु के अन्तिम ध् को जश्त्व करके वर्ग का तृतीयाक्षर द् बनाइये। __ जो वेट धातु हैं, उन्हें विकल्प से इट् कीजिये। इट् होने पर प्रत्यय के अकित् होने के कारण गुण पुगन्तलघूपधस्य च से गुण कीजिये। शेष धकारान्त वेट धातु - षिधु __ - सिध् + क्त्वा = सिद्ध्वा / सेधित्वा / सिधित्वा षिधू सिध . + क्त्वा = सिद्ध्वा / सेधित्वा / सिधित्वा ऋधु ऋध् + क्त्वा = ऋद्ध्वा / अर्धित्वा गृध् + क्त्वा = गृद्ध्वा / गर्धित्वा मृधु - मृध् + क्त्वा = मृद्ध्वा / मर्धित्वा क्त्वा = रद्ध्वा / रधित्वा वृधु - वृध् + क्त्वा = वृद्ध्वा / वर्धित्वा
- क्त्वा = शवा / शर्धित्वा शेष धकारान्त अनिट् धातु - क्रुध
- क्रुध् + क्त्वा = क्रुद्ध्वा गृधु
शृधु क्त्वा प्रत्यय ३१३ + + व्यध सिध् बुध् (दिवादि) - बुध् + क्त्वा बुद्ध्वा माता युध् युध् + क्त्वा युद्ध्वा रुध रुध् क्त्वा = रुवा शुध् क्त्वा शुभवा राध्
- क्त्वा राभवा साध् __ + क्त्वा = सावा - व्यध् + क्त्वा = विश्वा
- सिध् + क्त्वा = सिद्धवा क्षुध
- क्षुध् + क्त्वा = क्षुद्ध्वा ध्यातव्य - भ्वादिगण के बध अवगमने और बुधिर बोधने धातु सेट ही हैं। नकारान्त धातु षणु-सन्, खनु-खन् धातु - ये धातु उदितो वा’ सूत्र से वेट हैं। जनसनखनां सञ्झलोः (६.४.४२) - जन्, सन्, खन् धातुओं को आकार अन्तादेश होता है, झलादि सन् तथा झलादि कित्, ङित् प्रत्यय परे होने पर। षणु - सन् + क्त्वा = सात्वा / सनित्वा खनु - खन् + क्त्वा = खात्वा / खनित्वा (जन् धातु केवल सेट है, अतः जनित्वा ही बनेगा।) मन्, हन् धातु - अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपोझलि क्डिति (६.४.३७) __ अनुदातोपदेश वनति तथा तनोति इत्यादि धातुओं के अनुनासिक का लोप होता है झलादि कित् ङित् प्रत्यय परे होने पर। मन् - मन् + क्त्वा - मन् + त्वा = मत्वा हन् - हन् + क्त्वा - हन् + त्वा = हत्वा शेष नकारान्त वेट् धातु - ये धातु उदितो वा’ सूत्र से वेट हैं। इडागम न होने पर अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपो झलि क्डिति’ सूत्र से अनुनासिक का लोप कीजिये। इडागम होने पर कुछ मत कीजिये।
- तन् + क्त्वा = तत्वा / तनित्वा - मन् + क्त्वा = मत्वा / मनित्वा तनु मनु ३१४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ वनु (भ्वादि, तनादि) - वन् + क्त्वा = वत्वा / वनित्वा (वन शब्दे, वन सम्भक्तौ, वन हिंसायाम् धातु उदित् नहीं हैं, अतः सेट हैं, यह जानना चाहिये।) पकारान्त धातु स्वप्, वप् धातु - स्वप् + क्त्वा / वचिस्वपियजादीनाम् किति सूत्र से सम्प्रसारण करके - सुप् + त्वा = सुप्त्वा । वप् - वप् + क्त्वा = उप्त्वा स्वप् - स्वप् + क्त्वा = सुप्त्वा कृपू धातु विट्) - इडागम न होने पर - कृपू + क्त्वा / कृपो रो लः सूत्र से र् को ल् करके - क्लुप् + त्वा - क्लुप्त्वा। इडागम होने पर - कृपू + इट् + क्त्वा / कृपो रो लः सूत्र से र् को ल् करके - क्लुप् + इ + त्वा - सार्वधातुका. सूत्र से उपधा को गुण करके - कल्पित्वा। गुपू धातु विट्) - __ इडागम होने पर तथा आय प्रत्यय होने पर - गुपू + क्त्वा / आयादय आर्धधातुके वा सूत्र से विकल्प से आय प्रत्यय करके - गुप् + आय + इट् + त्वा - पुगन्त. सूत्र से उपधा को गुण करके - गोपायित्वा। इडागम होने पर तथा आय प्रत्यय न होने पर - गुपू + इट् + क्त्वा / पुगन्त. सूत्र से उपधा को गुण करके - गोपित्वा। दोनों न होने पर - गुपू + क्त्वा = गुप्त्वा। दिवादिगण के तृप्, दृप् धातु, भ्वादिगण का त्रप् धातु विट) - तृप्
- तृप् + क्त्वा = तृप्त्वा / तर्पित्वा
- दृप् + क्त्वा = दृप्त्वा / दर्पित्वा त्रपूष् - त्रप् + क्त्वा = त्रप्त्वा / त्रपित्वा शेष पकारान्त अनिट् धातु - इन्हें कुछ मत कीजिये - आप् + क्त्वा = आप्त्वा लिप् + क्त्वा = लिप्त्वा लुप् + क्त्वा = लुप्त्वा शप् + क्त्वा = शप्त्वा सृप् + क्त्वा = सृप्त्वा छुप् + क्त्वा = छुप्त्वा दृप् क्त्वा प्रत्यय ३१५ क्षिप् + क्त्वा = क्षिप्त्वा तप् + क्त्वा = तप्त्वा तिप् + क्त्वा = तिप्त्वा फकारान्त धातु अनिदित् फकारान्त वेट् धातु - ये धातु सेट हैं। प्रत्यय के कित् होने पर अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ सूत्र से उपधा के न् का लोप होगा। कित् न होने पर अनिदितां हल उपधायाः क्ङिति’ सूत्र से उपधा के न् का लोप नहीं होगा - गुम्फ
- गुम्फ् + क्त्वा = गुफित्वा / गुम्फित्वा तुम्फ
- तुम्फ् + क्त्वा = तुफित्वा / तुम्फित्वा त्रुम्फ - त्रुम्फ् + क्त्वा = त्रुफित्वा / त्रुम्फित्वा दृम्फ - दृम्फ् + क्त्वा = दृफित्वा / दृम्फित्वा तृम्फ - तृम्फ् + क्त्वा = तृफित्वा / तृम्फित्वा ऋम्फ
- ऋम्फ् + क्त्वा =. ऋफित्वा / ऋम्फित्वा भकारान्त धातु धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर होने पर दो कार्य होते हैं - १. झषस्तथो?ऽधः (८.२.४०) - झए अर्थात् वर्ग के चतुर्थाक्षरों के बाद आने वाले प्रत्यय के त, थ को ध होता है। देखिये कि भ्, झष् है, अर्थात् वर्ग का चतुर्थाक्षर है। अतः उससे परे आने वाले प्रत्यय के ‘त’ को ‘ध’ बनाकर - क्षुभ् + क्त्वा - क्षुभ् + ध्वा - २. झलां जश् झशि (८.४.४३) - झल् के स्थान पर जश् अर्थात् वर्ग का तृतीयाक्षर होता है, झश् परे होने पर। इस सूत्र से धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर को इस सूत्र से जश्त्व करके उसी वर्ग का तृतीयाक्षर बनाइये । क्षुभ् + ध्वा - क्षुब् + ध्वा = क्षुब्ध्वा। सम्भ, सृम्भ, दम्भ, स्कम्भ, स्तम्भ, (नलोपी वेट) धातु - इडागम न होने पर ‘अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ सूत्र से इनकी उपधा के न् का लोप कीजिये। इडागम होने पर उपधा के न् का लोप मत कीजिये - संभ् + क्त्वा - सभ् + त्वा = स्रब्ध्वा / स्रम्भित्वा घृम्भु + क्त्वा - सृभ् + त्वा = सृब्ध्वा / सृम्भित्वा दम्भु + क्त्वा - दभ् + त्वा = दब्ध्वा / दम्भित्वा ३१६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ स्कम्भु + क्त्वा - स्कभ् + त्वा = स्कब्ध्वा / स्कम्भित्वा स्तम्भु + क्त्वा - स्तभ् + त्वा = स्तब्ध्वा / स्तम्भित्वा लुभ गायें वेट् धातु - तीषसहलुभरुषरिषः’ सूत्र से लुभ धातु तकारादि प्रत्यय परे होने पर वेट है। इडागम होने पर ‘रलो व्युपधाद् हलादेः संश्च’ सूत्र से प्रत्यय के विकल्प से कित् होने के कारण विकल्प से गुण होगा - लुभ् + इट् + क्त्वा = लोभित्वा / लुभित्वा । अनिट् होने पर गुण नहीं होगा। लुभ् + क्त्वा = लुब्ध्वा। लुभ विमोहने सेट् धातु - तीषसहलुभरुषरिषः’ सूत्र से दोनों लुभ धातु तकारादि प्रत्यय परे होने पर वेट कहे गये हैं, किन्तु इनमें से ‘लुभो विमोहने’ सूत्र से ‘विमोहन = आकुल करना’ अर्थ में तुदादिगण’ का ‘लुभ’ धातु सेट् कहा गया है। इडागम होने पर ‘रलो व्युपधाद् हलादेः संश्च’ सूत्र से प्रत्यय के विकल्प से कित् होने के कारण विकल्प से गुण होगा - लुभ् + इट् + क्त्वा = लोभित्वा । लुभित्वा। अनिट् होने पर गुण नहीं होगा। लुभ् + क्त्वा = लुब्ध्वा। शेष भकारान्त वेट् धातु - डिति च’ से गुण निषेध करके, तथा पूर्ववत् ‘झषस्तथोर्थोऽधः’ सूत्र से झष् अर्थात् वर्ग के चतुर्थाक्षर के बाद आने वाले प्रत्यय के ‘त’ को ‘ध’ करके और उसके परे होने पर, धातु के अन्तिम भ् को ‘झलां जश् झशि’ सूत्र से जश्त्व करके अर्थात् ब् बनाकर - षिभु - सिभ् + क्त्वा = सिब्ध्वा / सिभित्वा / सेभित्वा
- सृभ् + क्त्वा = सृब्ध्वा / सर्भित्वा ष्टभु
- स्तुभ् + क्त्वा = स्तुब्ध्वा / स्तोभित्वा शेष भकारान्त अनिट् धातु - __ - यभ् + क्त्वा = यब्ध्वा
- रभ् + क्त्वा = रब्ध्वा लभ
- लभ् + क्त्वा = लब्ध्वा मकारान्त धातु गम्, नम्, यम्, अनिट् धातु - अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपो झलि क्डिति (६.४.३७) भु य रभ क्त्वा प्रत्यय ३१७ नम् गम् अनुदात्तोपदेश वनति तथा तनोति इत्यादि धातुओं के अनुनासिक का लोप होता है झलादि कित् डित् प्रत्यय परे होने पर। यम् - यम् + क्त्वा = यत्वा ।
- नम् + क्त्वा = । नत्वा
- गम् + क्त्वा = गत्वा रमु वेट् धातु - रम् + इट् + क्त्वा = रमित्वा / रम् + क्त्वा = रन्त्वा क्रमु धातु विट्) - क्रमश्च क्त्वि (६.४.१८) - क्रम् धातु की उपधा को विकल्प से दीर्घ होता है, . अनिट् क्त्वा प्रत्यय परे होने पर। क्रम् + क्त्वा = क्रन्त्वा, क्रान्त्वा, क्रमित्वा। कमु धातु विट्) - कम् धातु को ‘कमेर्णिङ्’ सूत्र से विकल्प से णिङ् प्रत्यय करके - कम् + णिङ् - ‘अत उपधायाः’ सूत्र से उपधा को वृद्धि करके - काम् + इ = कामि। कामि + इट् + क्त्वा / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - कामे + इ + त्वा / ‘एचोऽयवायावः’ सत्र से अयादेश करके - कामयित्वा णिङ् प्रत्यय न होकर इडागम होने पर - कम् + इट् + क्त्वा = कमित्वा। णिङ् प्रत्यय न होकर इडागम न होने पर - ‘अनुनासिकस्य क्विझलोः क्डिति’ सूत्र से उपधा को दीर्घ करके - कम् + क्त्वा = कान्त्वा। शेष मकारान्त धातु - अनुनासिकस्य क्विझलोः क्डिति से उपधा को दीर्घ करके - __ - क्षम् + क्त्वा = क्षान्त्वा / क्षमित्वा क्षमूष् क्षम् + क्त्वा __= क्षान्त्वा / क्षमित्वा __क्लम् + क्त्वा = क्लान्त्वा / क्लमित्वा चम् चम् + क्त्वा = चान्त्वा / चमित्वा
- क्त्वा = छान्त्वा / छमित्वा + क्त्वा = जान्त्वा / जमित्वा
- क्त्वा = झन्त्वा / झमित्वा जिम् + क्त्वा = जीन्त्वा / जेमित्वा, आदि। क्षमू क्लमु छमु छम
झम् जिमु ३१८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ वकारान्त धातु दिवु, सिवु, ष्ठिवु, क्षिवु, क्षेवु, धावु धातु - __ ये धातु ‘उदितो वा’ सूत्र से वेट हैं। च्छवोः शूडनुनासिके च (६.४.१९) - क्वि प्रत्यय, झलादि कित् डित् प्रत्यय, तथा अनुनासिक प्रत्यय परे होने पर, च्छ को श् तथा व् को ऊठ आदेश होते हैं। इडागम न होने पर ऊठ कीजिये । इडागम होने पर गुण कीजिये । यथा दिव + क्त्वा - दि ऊठ + त्वा - दि ऊ त्वा = ग्रुत्वा / देवित्वा सिव् + क्त्वा - सि ऊठ् + त्वा - सि ऊ त्वा = स्यूत्वा / सेवित्वा ष्ठिव् + क्त्वा - ष्ठि ऊठ् + त्वा - ष्ठि ऊ त्वा = षड्यूत्वा / ष्ठेवित्वा क्षिवु + क्त्वा - क्षि ऊठ् + त्वा - क्षि ऊ त्वा = क्ष्यूत्वा / क्षेवित्वा क्षेत् + क्त्वा - क्षे ऊठ् + त्वा - क्षे ऊ त्वा = क्षयूत्वा / क्षेवित्वा धावु + क्त्वा - धा ऊठ् + त्वा - धा ऊ त्वा = धौत्वा / धावित्वा धा + ऊ + त्वा = धौत्वा, में एत्येधत्यूठसु से वृद्धि हुई है। स्रिवु धातु विट) - ‘यह धातु उदितो वा’ से वेट है। इडागम न होने पर - स्रिव् + क्त्वा - ज्वरत्वरस्रिव्यविमवामुपधायाश्च (६.४.२०) - ज्वर, त्वर, त्रिवि, अव, मव इन अङगों के वकार तथा उपधा के स्थान में ऊठ आदेश होता है. क्वि तथा झलादि अनुनासिक प्रत्यय परे होने पर। इस सूत्र से वकार तथा उपधा के स्थान में ऊ = ऊ आदेश करके - त्रिव् + क्त्वा - स्त्र ऊल् + त्वा - स्त्र ऊ + त्वा = सूत्वा इडागम होने पर - इडागम होने पर ‘रलो व्युपधाद् हलादेः संश्च’ सूत्र से प्रत्यय के विकल्प से कित् होने के कारण विकल्प से गुण होगा। गुण होने पर - स्रिव् + इट् + क्त्वा = स्रिवित्वा। गुण होने पर - रेवित्वा। अव्, मव् धातु (सेट) - . मव् + इट् + क्त्वा / ज्वरत्वरस्रिव्यविमवामुपधायाश्च’ सूत्र से वकार तथा उपधा के स्थान में ऊळ आदेश करके - म् + ऊल् + इ + त्वा / सम्प्रसारणाच्च से इ को पूर्वरूप करके - म् + ऊ + त्वा = मूत्वा। इसी प्रकार - __अव् + इट् + क्त्वा / ऊठ् + इ + त्वा / ऊ + त्वा = ऊत्वा। क्त्वा प्रत्यय ३१९ शकारान्त धातु दंश् (अनिट) धातु - दंश् + क्त्वा - ‘अनिदितां हल उपधायाः क्ङिति’ सूत्र से इसकी उपधा के न् का लोप कीजिये - दश् + त्वा / व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयज. सूत्र से ‘श्’ को ’’ बनाइये। उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये - दष् + ट्वा = दष्ट्वा । भ्रंशु विट) धातु - यह नलोपी वेट् धातु है। इडागम न होने पर पूर्ववत् - भ्रंश् + क्त्वा / भ्रश् + त्वा / भ्रष् + त्वा = भ्रष्ट्वा बनाइये। इडागम होने पर - भ्रंशु + इट् + क्त्वा / भ्रश् + इ + त्वा / भ्रंशित्वा। क्लिशू विबाधने धातु - यह धातु ऊदित् होने से ‘स्वरतिसूति.’ सूत्र से वेट है। इडागम न होने पर - क्लिश् + क्त्वा - पूर्ववत् - क्लिष्ट्वा । इडागम होने पर - क्लिश् + इट् + क्त्वा / ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से प्रत्यय के अकित् होने से गुण प्राप्त होने पर - __ मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः क्त्वा (१.२.७) - ‘न क्त्वा सेट्’ से अकित् कहा गया सेट् क्त्वा प्रत्यय, इन मृडादि धातुओं से परे होने पर कित् ही होता है। अतः क्ङिति च सूत्र से गुणनिषेध होकर - क्लिश् + इट् + क्त्वा = क्लिशित्वा। क्लिश उपतापे धातु - यह धातु नित्य सेट है। अतः इसको क्त्वा तथा निष्ठा दोनों में ही नित्य इडागम प्राप्त था। अब क्लिशः क्त्वानिष्ठयोः’ सूत्र से यह धातु क्त्वा तथा निष्ठा, दोनों में ही वेट हो गया। इडागम न होने पर - क्लिष्टवा। इडागम न होने पर - क्लिशित्वा। कृश् धातु (सेट) - यह सेट है। अतः इससे परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से अकित् होना चाहिये। किन्तु - तृषिमृषिकृशेः काश्यपस्य (१.२.२५) - तृष्, मृष्, कृश् धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। कित् होने पर ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध कीजिये - कृशित्वा। अकित् होने पर पुगन्तलघूपधस्य च से गुण कीजिये - कर्शित्वा । नश् धातु (विट्) - ‘रधादिभ्यश्च’ सूत्र से यह धातु वेट है। इट होने पर - नश् + इ + क्त्वा = नशित्वा। इट न होने पर - नश् + त्वा - ३२० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ भ्रश मस्जिनशोझलि (७.१.६०) - मस्ज् और नश् धातुओं को नुम् का आगम होता है, झल् परे होने पर। मिदचोऽन्त्यात्परः से अन्त्य अच् के बाद नुमागम करके -
- न नुम् श् + क्त्वा / न न् श् + त्वा / नश्चापदान्तस्य झलि सूत्र से न् को अनुस्वार करके - नंश् + त्वा / वश्चभ्रस्ज. सूत्र से श् के स्थान पर ‘ए’ करके - नंष् + त्वा / ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - नंष् + ट्वा = नंष्ट्वा । __जान्तनशां विभाषा (६.४.३२) - जकारान्त धातुओं को तथा नश् धातु के न का विकल्प से लोप होता है, क्त्वा परे होने पर। इस प्रकार तीन रूप बने - नष्ट्वा , नंष्ट्वा , नशित्वा। शेष शकारान्त वेट धातु - __ इडागम न होने पर केवल सन्धि कीजिये। इडागम होने पर ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से क्त्वा प्रत्यय के अकित् होने के कारण ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ से गुण कीजिये - अशू - अश् + क्त्वा = अष्ट्वा / अशित्वा
- भृश् + क्त्वा = भृष्ट्वा / भर्शित्वा शेष शंकारान्त अनिट् धातु - ‘श्’ को व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः’ सूत्र से ‘ए’ बनाइये । उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। क्रुश् - क्रुश् + क्त्वा = क्रुष्ट्वा
- दिश् + क्त्वा = दिष्ट्वा दृश्
- दृश् + क्त्वा = दृष्ट्वा मृश्
- मृश् + क्त्वा = मृष्ट्वा रिश् क्त्वा = रिष्ट्वा - रुश् + क्त्वा = · रुष्ट्वा - लिश् + क्त्वा = लिष्टवा
- विश् + क्त्वा = विष्टवा स्पृश् - स्पृश् + क्त्वा = स्पृष्ट्वा षकारान्त धातु कुष् धातु - मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः क्त्वा (१.२.७) - न क्त्वा सेट् सूत्र से सेट क्त्वा अकित् है। किन्तु वह सेट् क्त्वा भी इन धातुओं से परे आने पर कित् ही होता है। दिश्
रुश् लिश् विश् क्त्वा प्रत्यय ३२१ अतः क्डिति च से गुणनिषेध करके - कुष् + इट् + क्त्वा = कुषित्वा । चक्ष् धातु - __चक्षिङः ख्याञ् (२.४.५४) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर चक्ष धातु को ख्या आदेश होता है। चक्ष् + क्त्वा / ख्या + त्वा = ख्यात्वा । त्वल, तर् धातु - ऊदित् होने से ये वेट हैं। स्कोः संयोगाद्योरन्ते च (८.२.२९) - पद के अन्त में तथा झल् परे रहते जो संयोग उसके आदि के सकार तथा ककार का लोप होता है। त्वक्ष् + क्त्वा - त्वष् + त्वा - ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुत्व’ करके - त्वष् + त्वा = त्वष्ट्वा । इडागम होने पर - त्वक्षित्वा। इसी प्रकार - तर् + क्त्वा / तक्ष् + त्वा / तष् + त्वा = तष्ट्वा , तक्षित्वा । मुष् धातु (सेट) - यद्यपि ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से सेट् क्त्वा प्रत्यय अकित् होता है, किन्तु - रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः संश्च (१.२.८) - रुद्, विद्, मुष्, ग्रह, स्वप्, प्रच्छ, इन धातुओं से परे आने वाले सन् और क्त्वा प्रत्यय कित् होते हैं। इसलिये क्डिति च सूत्र से गुणनिषेध करके - मुष् + इट् + क्त्वा = मुषित्वा। इष इच्छायाम् धातु विट) - तीषसह.’ सूत्र से यह धातु क्त्वा प्रत्यय में वेट है। इडागम न होने पर पूर्ववत् - इष्ट्वा । इडागम होने पर ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से सेट क्त्वा प्रत्यय के अकित् होने के कारण गुण होकर - एषित्वा। मष तितिक्षायाम् धातु (सेट) - तृषिमृषिकृशेः काश्यपस्य (१.२.२५) - जितृषा पिपासायाम्, मृष तितिक्षायाम् तथा कृश् तनूकरणे धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। कित् होने पर क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध कीजिये - मृषित्वा । अकित् होने पर ‘पुगन्तलघू-’ से गुण कीजिये - मर्षित्वा। तृष् धातु (सेट) - यद्यपि न क्त्वा सेट्’ सूत्र से सेट् क्त्वा प्रत्यय अकित् होता है, किन्तु - पूर्वोक्त तृषिमृषिकृशेः काश्यपस्य’ सूत्र से तृष्, मृष्, कृश् धातुओं से परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। कित् होने पर क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध कीजिये - तृषित्वा । अकित् होने पर ‘पुगन्तलघू.’ से गुण कीजिये - तर्षित्वा । ३२२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ विषु प्लुषु मिषु रिष षकारान्त इदुपध, उदुपध वेट् धातु - __ इडागम न होने पर क्ङिति च से गुणनिषेध कीजिये, ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये । इडागम होने पर ‘रलो व्युपधाद् हलादेः संश्च’ सूत्र से क्त्वा के विकल्प से अकित् होने के कारण यथाप्राप्त गुण कीजिये। पक्ष में गुणनिषेध कीजिये। श्लिषु-भ्वादि - श्लिष् + क्त्वा = श्लिष्ट्वा / श्लेषित्वा / श्लिषित्वा श्रिषु - श्रिष् + क्त्वा = श्रिष्ट्वा / श्रेषित्वा / श्रिषित्वा
- विष् + क्त्वा = विष्ट्वा / वेषित्वा / विषित्वा पुषु - पुष् + क्त्वा = पुष्ट्वा / प्रोषित्वा / पुषित्वा
- प्लुष् + क्त्वा = प्लुष्ट्वा / प्लोषित्वा / प्लुषित्वा
- मिष् + क्त्वा = मिष्ट्वा / मेषित्वा / प्लुषित्वा जिषु - जिष् + क्त्वा = जिष्ट्वा / जेषित्वा / मिषित्वा
- रिष् + क्त्वा = रिष्ट्वा / रेषित्वा / रिषित्वा रुष् - रुष् + क्त्वा = रुष्ट्वा / रोषित्वा / रुषित्वा शेष षकारान्त वेट् धातु -
- हृष् + क्त्वा = हृष्ट्वा / हर्षित्वा मृषु - मृष् + क्त्वा = मृष्ट्वा / मर्षित्वा
- पृष् + क्त्वा = पृष्ट्वा / पर्षित्वा - वृष् + क्त्वा = वृष्ट्वा / वर्षित्वा घृष् + क्त्वा = घृष्ट्वा / घर्षित्वा इष इच्छायाम् - इष् + क्त्वा = इष्टवा / एषित्वा शेष षकारान्त अनिट् धातु - क्डिति च से गुणनिषेध कीजिये, ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। श्लिष-दिवादि - श्लिष् + क्त्वा = श्लिष्ट्वा कृष् कृष् + क्त्वा = कृष्ट्वा त्विष् त्विष् + क्त्वा = त्विष्ट्वा तुष्
- तुष् + क्त्वा = तुष्टवा द्विष् द्विष् + क्त्वा = द्विष्ट्वा - दुष् + क्त्वा = दुष्ट्वा
+क्त्वा प्रत्यय कानाडा ३ पुष् पिष् विष् विष् + शिष् शुष्
- पुष् + क्त्वा = पुष्टवा - पिष् + क्त्वा = पिष्टवा क्त्वा __ = विष्टवा शिष् + क्त्वा = शिष्ट्वा शुष् + क्त्वा = शुष्ट्वा सकारान्त धातु वस् धातु (भ्वादि) - __वसतिक्षुधोरिट’ सूत्र से वस् धातु क्त्वा प्रत्यय में सेट है। वस् + इ + क्त्वा यद्यपि ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से सेट क्त्वा प्रत्यय अकित् होता है, किन्तु ‘मृडमृदगुध कुषक्लिशवदवसः क्त्वा’ सूत्र से वस् धातु से परे आने पर वह कित् ही होता है। अतः ‘वचिस्वपियजादीनाम् किति’ सूत्र से सम्प्रसारण करके - उस् + इ + त्वा - शासिवसिघसीनाञ्च (८.३.६०) - इण् और कवर्ग से परे आने वाले शास्, वस्, घस् धातुओं के स् को ष् होता है। उष् + इ + त्वा = उषित्वा। विशेष - अदादिगण का वस आच्छादने धातु सेट है। वस् - वसित्वा । शासु धातु (वट्) - शास इदङ्हलोः (६.४.३४) - शास् अङ्ग की उपधा को इकारादेश होता है, अङ् तथा हलादि कित् ङित् प्रत्यय परे होने पर। शास् + क्त्वा - शिस् + त्वा - शासिवसिघसीनाञ्च से स् के स्थान पर ष् आदेश करके - शिष् + त्वा / ष्टुना ष्टुः से त को ष्टुत्व करके - शिष्ट्वा । इडागम होने पर - शासित्वा। अस् (अदादिगण) धातु, अदादिगण - अस्तेर्भूः (२.४.५२) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अस् धातु को भू आदेश होता है। अस् + क्त्वा / भू + त्वा = भूत्वा। घस् धातु - यह अनिट है। घस + क्त्वा - घस + त्वा = घस्त्वा । ध्वंसु, स्रंसु, भंसु, शंसु, विट) धातु - ये नलोपी वेट् धातु हैं। अतः इडागम न होने पर अनिदितां हल उपधायाः क्ङिति’ सूत्र से इनकी उपधा के न् का लोप कीजिये। इडागम होने पर ‘न क्त्वा सेट’ ३२४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३
स्रंसु ग्रसु + जसु + वस +
- क्त्वा
यसु + सूत्र से क्त्वा के अकित् होने के कारण यथाप्राप्त उपधागुण कीजिये - ध्वंसु - ध्वस् + क्त्वा = ध्वस्त्वा / ध्वंसित्वा भ्रंसु . - भंस् + क्त्वा = भ्रस्त्वा / भ्रंसित्वा शंसु क्त्वा शस्त्वा / शंसित्वा - स्रंस + क्त्वा = स्रस्त्वा / स्रंसित्वा शेष सकारान्त वेट् धातु - क्नसु
- क्नस् + क्त्वा = क्नस्त्वा / क्नसित्वा ग्रस् + क्त्वा ग्रस्त्वा / ग्रसित्वा ग्लसु - ग्लस् + क्त्वा ग्लस्त्वा / ग्लसित्वा जस्
- क्त्वा जस्त्वा / जसित्वा वसु (दिवादि)
- क्त्वा वस्त्वा / वसित्वा - तस् तस्त्वा / तसित्वा - दस् क्त्वा = दस्त्वा / दसित्वा __+ क्त्वा यस्त्वा । यसित्वा __ + क्त्वा शस्त्वा / शसित्वा स्नस् क्त्वा स्नस्त्वा / स्नसित्वा ष्णुसु - स्नुस् + क्त्वा = स्नुस्त्वा / स्नोसित्वा असु (दिवादि) - अस् + क्त्वा = अस्त्वा / असित्वा ध्यातव्य - भ्वादिगण का अस् धातु सेट है। अतः इससे नित्य इडागम होकर - अस् + इ + क्त्वा = असित्वा। हकारान्त धातु ग्रह् धातु - __ ग्रह धातु सेट है। सेट होने के कारण इससे परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से अकित् है। अतः धातु को सम्प्रसारण प्राप्त नहीं है। किन्तु - __ रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः संश्च - रुद्, विद्, मुष्, ग्रह, स्वप्, प्रच्छ्, इन ५ धातुओं से परे आने वाले सन् और क्त्वा प्रत्यय कित् होते हैं। इसलिये - ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां ङिति च सूत्र से सम्प्रसारण करके - ग्रह् + इ + क्त्वा / गृह् + इ + क्त्वा / ग्रहोऽलिटि दीर्घः से इ को दीर्घ करके - गृहीत्वा। यस् शस् शस ष्णसु क्त्वा प्रत्यय ३२५ नह् धातु - नहो धः (८.२.३४) - नह धातु के हकार के स्थान पर धकार आदेश से होता है झल परे रहते या पदान्त में। नह + क्त्वा - नध + त्वा / अब देखिये कि धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर ‘ध्’ आ गया है। धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर आने पर - प्रत्यय के त को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ध बनाइये - नध् + त्वा = नध् + ध्वा - अब धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर ध् को झलां जश् झशि सूत्र से जश्त्व करके उसी वर्ग का तृतीयाक्षर द् बनाइये - नध् + ध्वा - नद् + ध्वा = नवा । दुह, दह, दिह धातु - दादेर्धातोः घः (८.२.३२) - दकार आदि में है जिस धातु के उसके हकार के स्थान पर घकार आदेश होता है झल् परे रहते या पदान्त में। इस सूत्र से इनके ‘ह’ को घ् बनाइये - दुह् + क्त्वा / दुघ् + त्वा - प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ‘ध’ करके - दुघ् + ध्वा / अब धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर घ्’ को झलां जश् झशि सूत्र से जश्त्व करके, उसी वर्ग का तृतीयाक्षर ‘ग्’ बनाइये - दुग् + ध्वा = दुग्ध्वा। इसी प्रकार - दिह + त्वा - दिग्ध्वा / दह + त्वा - दग्ध्वा। द्रुह्, मुह ,स्नुह्, स्निह् धातु (वट) - __ वा द्रुहमुहष्णुहष्णिहाम् (८.२.३३) - द्रु, मुह ,स्नु, स्निह् धातुओं के ह को विकल्प से ढ् तथा ‘घ्’ होते हैं, झल् परे होने पर। ‘ह’ के स्थान पर ‘घ’ होने पर - द्रुह् + क्त्वा - ‘वा द्रुहमुहष्णुहष्णिहाम्’ सूत्र से ह को घ् करके - द्रुघ् + त्वा प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो|ऽधः सूत्र से ‘ध’ करके - द्रुघ् + ध्वा / झलां जश् झशि सूत्र से ‘घ्’ को जश्त्व करके, उसी वर्ग का तृतीयाक्षर ‘ग्’ बनाकर - द्रुग् + ध्वा = द्रुग्ध्वा । इसी प्रकार मुह से मुग्ध्वा / स्नुह से स्नुग्ध्वा / स्निह से स्निग्ध्वा। ‘ह’ के स्थान पर ’’ होने पर - द्रुह् + क्त्वा / द्रुढ् + त्वा / प्रत्यय के त को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ‘ध’ ३२६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ करके - द्रुढ् + ध्वा / ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ध् को ष्टुत्व करके द्रुढ् + ढ्वा / ढो ढे लोपः से पूर्व ढकार का लोप करके द्रु + वा / ठूलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः से उ को दीर्घ करके = द्रुढ्वा। इसी प्रकार - मुह से मूढ्वा / स्नुह से स्नूढ्वा / स्निह से स्नीढ्वा बनाइये। इडागम होने पर - न क्त्वा सेट से सेट् क्त्वा के अकित् होने से पुगन्त सूत्र से उपधा को गुण करके - द्रुह् + क्त्वा = द्रोहित्वा / मुह् + क्त्वा = मोहित्वा / स्निह् + क्त्वा = स्नेहित्वा / स्नुह् + क्त्वा = स्नोहित्वा, बनाइये। वह धातु (अनिट्) - . वह + क्त्वा - वह् + त्वा / वचिस्वपियजादीनाम् किति सूत्र से सम्प्रसारण करके - उह् + त्वा / हो ढः सूत्र से ह को ढत्व करके - उढ् + त्वा / झषस्तथो?ऽधः सूत्र से प्रत्यय के त को धत्व करके - उढ् + ध्वा / ष्टुना ष्टुः से ध् को ष्टुत्व करके - उठ् + ढ्वा / पूर्व ‘ढ्’ का ‘ढो ढे लोपः’ सूत्र से लोप करके - उ + ढ्वा / ठूलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः सूत्र से ‘उ’ को दीर्घ करके = ऊढ्वा। सह् धातु भ्वादिगण (वट) - इडागम न होने पर - सह् + क्त्वा / सह + त्वा / हो ढः सूत्र से ढत्व करके - सद् + त्वा / झषस्तथो?ऽधः सूत्र से प्रत्यय के त को धत्व करके - सद् + ध्वा / ष्टुना ष्टुः से ष्टुत्व करके - सढ् + ढ्वा / पूर्व ‘ढ्’ का ‘ढो ढे लोपः’ सूत्र से लोप करके - स + ढ्वा / ‘सहिवहोरोदवर्णस्य’ सूत्र से ‘अ’ के स्थान पर ‘ओ’ आदेश करके - सोढ्वा। इडागम होने पर - सह् + इ + क्त्वा = सहित्वा रुह्, लिह, मिह्, गुह् धातु - इनमें रुह्, मुह, मिह, अनिट् हैं तथा गुह् वेट है। रुह् + क्त्वा / हो ढः सूत्र से ढत्व करके - रुढ् + त्वा / झषस्तथो?ऽधः सूत्र से प्रत्यय के त को धत्व करके - रुढ् + ध्वा / ष्टुना ष्टुः से ष्टुत्व करके - रुढ् + ढ्वा / पूर्व ‘द’ का ‘ढो ढे लोपः’ सूत्र से लोप करके - रु + ढ्वा / ठूलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः सूत्र से ‘उ’ को दीर्घ करके - रूढ्वा। रुह __ - रुह् + क्त्वा = रूढ्वा __ - मिह + क्त्वा = मीढ्वा
- क्त्वा = लीदवा मिह लिह
- लिह क्त्वा प्रत्यय ३२७ गुहू (वेट) - गुह् + क्त्वा = गूढ्वा / गहित्वा तूंहू धातु विट्) - इडागम न होने पर - ‘अनिदितां हल उपधायाः क्डिति’ सूत्र से उपधा के न् का लोप करके - तृह् + क्त्वा / हो ढः सूत्र से ढत्व करके - तृढ़ + त्वा / झषस्तथो?ऽधः सूत्र से प्रत्यय के त को धत्व करके - तृढ् + ध्वा / ष्टुना ष्टुः से ष्टुत्व करके - तृढ़ + ढ्वा / पूर्व ‘ढ्’ का ‘ढो ढे लोपः’ सूत्र से लोप करके - तृ + ढ्वा = तृढ्वा। इडागम होने पर - तुंह् + इट् + क्त्वा = तॄहित्वा। शेष हकारान्त वेट धातु - इडागम न होने पर - इन धातुओं के अलावा जितने भी हकारान्त धातु बचे, उनके ‘ह’ को हो ढः’ सूत्र से ‘ढ्’ बनाइये / प्रत्यय के त को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ‘ध’ करके ष्टना ष्टः से ष्टत्व करके ढ बनाइये। अब ढो ढे लोपः से पूर्व ढकार का लोप कर दीजिये। __ इडागम होने पर - ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से क्त्वा प्रत्यय के अकित् होने के कारण धातु की उपधा में स्थित लघु इक् को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ से गुण कीजिये। गृहू - गृह् + क्त्वा = गृढ्वा / गर्हित्वा तृहू - तृह् + क्त्वा = तृढ्वा / तर्हित्वा स्तृहू स्तृह क्त्वा स्तृढ्वा / स्तर्हित्वा वृहू वृह् + क्त्वा = वृढ्वा / वर्हित्वा गाह् + क्त्वा = गाढ्वा / गाहित्वा इदुपध, उदुपध हलादि रलन्त सेट् धातुओं में __ क्त्वा प्रत्यय लगाने की विधि रलो व्युधाद् हलादेः संश्च (१.२.२६). ऐसे हलादि धातु, जिनकी उपधा में इ या उ हो, अन्त में रल् हो अर्थात् अन्त में य, व को छोड़कर कोई भी व्ययञ्जन हो, और उनसे परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय सेट हो, तो ऐसा क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् होता है। क्त्वा प्रत्यय के कित् होने पर - ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ से उपधा के ‘इ’ ‘उ’ को गुण नहीं होगा। यथा - लिख - लिखित्वा, द्युत् - द्युतित्वा आदि। क्त्वा प्रत्यय के कित् न होने पर - ‘इ’ उ’ को गुण होकर क्रमशः ‘इ’ को गाह ३२८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ ‘ए’ और ‘उ’ को ‘ओ’ हो जायेंगे। यथा - लेखित्वा, द्योतित्वा। . भ्वादिगण से लेकर क्र्यादिगण तक के बचे हुए हलन्त __ धातुओं में क्त्वा प्रत्यय लगाने की विधि अब जो धातु बच गये हैं, वे सेट ही हैं। इनसे परे आने वाला क्त्वा प्रत्यय ‘न क्त्वा सेट’ सूत्र से अकित् ही होगा। अतः उनकी उपधा में यदि लघु इ, लघु उ, लघु ऋ हों, तो उन्हें पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके उपधा के लघु इ को ए, लघु उ को ओ और लघु ऋ को अर् बनाइये और उनमें सेट क्त्वा प्रत्यय अर्थात् ‘इत्वा’ जोड़िये। यथा - दिव् - देव् - देवित्वो। वृष - वर्ष - वर्षित्वा / हृष - हर्षित्वा, आदि। यदि लघु इ, लघु उ, लघु ऋ न हों, तो बिना कुछ किये सेट् क्त्वा प्रत्यय अर्थात् ‘इत्वा’ जोड़ दीजिये, बस। यथा - पठ् - पठित्वा / राज् - राजित्वा / भ्राज् - भ्राजित्वा / आदि। यह भ्वाादि से ज़्यादिगण तक के सेट् धातुओं के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई। वर्ग - ४ चुरादिगण के धातु तथा अन्य णिजन्त धातु अब चुरादिगण के तथा अन्य प्रत्ययान्त धातुओं में क्त्वा प्रत्यय लगाने की विधि बतला रहे हैं - चुरादिगण के तथा प्रेरणार्थक धातुओं के अन्त में णिच्’ प्रत्यय लगा होने से वे णिजन्त धातु हैं। जैसे - चुर् + णिच् = चोरि। पठ् + णिच् = पाठि। लिख् + णिच् = लेखि आदि । इस अन्तिम ‘इ’ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके ‘ए’ बनाइये और उस ‘ए’ को ‘एचोऽयवायावः’ सूत्र से ‘अय्’ बनाइये और उनमें सेट् क्त्वा अर्थात् ‘इत्वा’ जोड़ दीजिये। जैसे - चोरि - चोरे - चोरय् में इत्वा लगाकर - चोरयित्वा । इसी प्रकार - कथि - कथयित्वा। नाटि - नाटयित्वा आदि बनाइये। अथवा णिजन्त धातुओं से क्त्वा प्रत्यय इस प्रकार लगा लीजिये - चुरादिगण के धातु का लट् लकार प्रथमपुरुष एकवचन का रूप लीजिये। जैसे - कथयति, चोरयति, मन्त्रयति, गणयति, चेतयते आदि। इस बने हुए रूप में जो अति या अते है, उसे हटा दीजिये और ‘इत्वा’ जोड़ दीजिये। जैसे - कथयति में से अति हटाया तो बचा कथय । इसमें इत्वा जोड़कर बना कथयित्वा। इसी प्रकार - चोरयति से चोरयित्वा, मन्त्रयति से मन्त्रयित्वा, गणयति से क्त्वा प्रत्यय ३२९ गणयित्वा, चेतयते से चेतयित्वा आदि बना लीजिये। वर्ग - ५ शेष प्रत्ययान्त धातु सन्नन्त धातु सन्नन्त धातुओं के अन्त में सदा ह्रस्व ‘अ’ होता है। इस ‘अ’ का ‘अतो लोपः’ सूत्र से लोप करके जो बचे उसमें ‘इत्वा’ लगाइये। जैसे - जिगमिष + इत्वा / अतो लोपः से अ का लोप करके - जिगमिष् + इत्वा = जिगमिषित्वा। पिपठिष + इत्वा / अतो लोपः से अ का लोप करके - पिपठिष् + इत्वा = पिपठिषित्वा । यङन्त धातु यङन्त धातुओं के अन्त में सदा ‘य’ ही होता है। यदि इस ‘य’ के पहिले अच् हो तब इस ‘य के अ का’ अतो लोपः सूत्र से लोप कर दीजिये। जैसे - लोलूय + इतः = लोलूयितः। यदि इस ‘य’ के पहिले हल हो तब इस पूरे य का’ यस्य हलः सूत्र से लोप कर दीजिये। जैसे - बेभिद्य + इत्वा = बेभिदित्वा। __ क्यच्, क्यङ्, क्यष् प्रत्यय से बने हुए धातु क्यच्, क्यङ्, क्यष् प्रत्यय से बने हुए धातुओं के अन्त में भी सदा ‘य’ ही होता है। इस ‘य’ के पहिले चाहे ‘अच्’ हो चाहे हल् हो, इस ‘य’ का ‘यस्य हलः’ सूत्र से विकल्प से ही लोप कीजिये। जैसे - समिध्य + इत्वा = समिधित्वा, समिध्यित्वा ।