तव्यत्तव्यानीयरः (३.१.९६) - धातुओं से भाव, कर्म अर्थ में तव्यत्, तव्य, अनीयर् प्रत्यय होते हैं। अर्हे कृत्यतचश्च (३.३.१६९)- अर्ह अर्थात् योग्य कर्ता वाच्य हो या गम्यमान हो तो धातु से कृत्यसंज्ञक प्रत्यय तथा तृच् प्रत्यय होते हैं तथा चकार से लिङ् भी होता है। भवता खलु पठितव्या विद्या, पाठ्या, पठनीया वा (आप विद्या पढने के योग्य हैं।) तृच् - पठिता विद्याया भवान् (आप विद्या पढने के योग्य हैं।) भवान् विद्यां पठेत्। च (३.३.१७१)- आवश्यक और आधमर्ण्य = ऋण विशिष्ट कर्ता वाच्य हो तो धातु से कृत्यसंज्ञक प्रत्यय होते है। आवश्यक अर्थ में - भवता खलु अवश्यं कटः कर्तव्यः, करणीयः, कार्यः, कृत्यः। आधमर्ण्य अर्थ में - भवता शतं दातव्यम्, सहस्रं देयम्। तव्य प्रत्यय के अर्थ का विचार - तयोरेव कृत्यक्तखलाः (३-४-७०) - कृत्यसंज्ञक प्रत्यय, क्त तथा खलर्थ प्रत्यय, भाव तथा कर्म अर्थ में ही होते हैं। कर्म अर्थ में तव्य प्रत्यय - कर्तव्यो घटः कुलालेन । कृतो घटः कुलालेन । भाव अर्थ में तव्य प्रत्यय - आसितव्यं भवता। आसितं भवता। अब हम तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन् और तुमुन् प्रत्ययों को म धातुओं में लगायें यह कार्य हम धातुओं के वर्ग बनाकर, इस प्रकार करें - वर्ग - १ - कुटादि धातु। वर्ग - २ - भ्वादिगण से लेकर क्र्यादिगण तक के अजन्त धातु। वर्ग - ३ - भ्वादिगण से लेकर क्र्यादिगण तक के हलन्त धातु । वर्ग - ४ - चुरादिगण के धातु तथा अन्य णिजन्त धातु। वर्ग - ५ - सन्, यङ्, क्यच्, क्यङ्, क्यष् प्रत्ययों से बने हुए प्रत्ययान्त धातु। 1 तुमुन् प्रत्यय में हलन्त्यम् सूत्र से न् की तथा उपदेशेऽजनुनासिक इत् सूत्र से उ की इत्संज्ञा करके तथा ‘तस्य लोपः’ सूत्र से दोनों का लोप करके ‘तुम्’ शेष बचता है। तव्यत् प्रत्यय में हलन्त्यम् सूत्र से त् की इत्संज्ञा करके तव्य शेष बचता है। तृच् तथा तृन् प्रत्यय में हलन्त्यम् सूत्र से च की इत्संज्ञा करके तृ शेष बचता है। १८० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ तुमुन्, तव्यत्, तव्य, तृन् और तृच की प्रक्रिया एक ही है। अतः जो रूप तुमुन् प्रत्यय लगाकर बनेगा, वही रूप शेष चार प्रत्ययों में भी बनेगा। अतः हम प्रक्रिया केवल तुमुन् की देंगे, शेष रूप आप स्वयं वैसे ही बना लीजिये। तव्य के समान ही तव्यत् बनाइये तथा तृच के समान ही तृन् बनाइये। तृच् प्रत्ययान्त शब्दों का प्रथमा एकवचन में रूप ‘ता’ बनता है। जैसे - कर्तृ + सु = कर्ता / हर्तृ + सु = हर्ता / भर्तृ + सु = भर्ता, आदि। अतः हम ‘ता’ लगाकर ही, तृच् प्रत्ययान्त शब्दों का प्रथमा एकवचन का रूप आगे देंगे। ये प्रत्यय सेट हैं। अतः इनके परे होने पर सबसे पहिले यह विचार अवश्य करना चाहिये कि धातु सेट है अथवा अनिट् ?
वर्ग - १ - कुटादि धातु
गु धातु / ध्रु धातु / कुङ् धातु - ये कुटादि धातु अनिट् हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् को इडागम मत कीजिये। कार का गाङ्कुटादिम्योऽञ्णिन्डित् (१.२.१)- ‘इङ्’ धातु के स्थान पर होने वाले गाङ्’ धातु से, तथा तुदादिगण के अन्तर्गत जो कुट से लेकर कुङ् तक ३६ धातुओं का कुटादिगण है, उस कुटादिगण में आने वाले धातुओं से परे आने वाले, जित् णित् से भिन्न, सारे प्रत्यय, डित्वत् मान लिये जाते हैं। हम अतः ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध होकर इनके रूप इस प्रकार बनेंगे - गु + तुम् = गुतुम् नः गुतव्यम् गुतप्यम् गुता। धु + तुम् = ध्रुतुम् म के ध्रुतव्यम् जक ध्रुता। कु + तुम् = कुतुम् कुतव्यम् कुता। नू, धू धातु - ये कुटादि धातु सेट है। गाङ्कुटादिभ्योऽञ्णिन्डित् सूत्र से प्रत्यय के डिद्वत् होने के कारण गुणनिषेध करके अचिश्नुधातुभ्रुवां य्वोरियडुवडौ सूत्र से उवङ् करके - नू + इट् + तुम् - नुव् + इ + तुम् = नुवितुम् नुवितव्यम् नुविता। धू + इट् + तुम् - ध्रुव् + इ + तुम् = धुवितुम् धुवितव्यम् धुविता । Tre शेष सेट् कुटादि धातु - ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध करके - JP कुच् =क कुचितुम् कि कुचितव्यम् । कुचिता कुट = ए कुटितुम् कुटितव्यम् 55 कुटिता तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १८१ जुट् घुट
- लुठितुम् युट् पुटितुम्छात पुटितव्यम् पुटिता स्फुट् = स्फुटितुम् पिब स्फुटितव्यम्। स्फुटिता . मुट् ग = मुटितुम् मुटितव्यम् मुटिता त्रुट = त्रुटितुम्क त्रुटितव्यम् त्रुटिता तुट् = तुटितुम् तुटितव्यम् न तुटिता ।। चुट = चुटितुम् । चुटितव्यम् नि चुटिता न = छुटितुम् । छुटितव्यम् । छुटिता जुटितुम् जुटितव्यम् जदितव्यम जटिता लुटितुम् । लुटितव्यम् लुटिता घुटितुम् घुटितव्यम् घुटिता लुट् = लुठितव्यम् लुठिता अगुड् ४९ = =T) गुडितुम् गुडितव्यम् मा गुडिता कुड् = = कुडितुम् कुडितव्यम् कुडिता पुड़ व = = कृ पुडितुम् । पुडितव्यम् पुडिता = तुडितुम् तुडितव्यम् का तुडिता थुडितुम् थुडितव्यम् । थुडिता स्थुड् स्थुडितुम् स्थुडितव्यम् स्थुडिता स्फुडितुम् स्फुडितव्यम् चुड् चुडितुम् चुडितव्यम् चुडिता छड् त्रुडितव्यम् त्रुडिता क्रुडितव्यम् । क्रुडिता कृड् कृडितुम् कृडितव्यम् कृडिता मृडितुम् मृडितव्यम् मृडिता गुज् गुजितुम् गुजितव्यम् डिप् डिपितव्यम् डिपिता छुरितुम् । छुरितव्यम् छुरिता गुरितुम् गुरितव्यम् गुरिता स्फुरितुम् स्फुरितव्य स्फुरिता तुड्का स्फुडिता त्रुडितुम् क्रुडितुम् क्रुड मृड् गुजिता डिपितुम् १८२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ स्फुल् = स्फुलितुम् स्फुलितव्यम् स्फुलिता कड् = कडितुम् कडितव्यम् कडिता जनका
वर्ग - २ भ्वादि से लेकर क्र्यादिगण के अजन्त धातु
ध्यान रहे कि इस ग्रन्थ में धातुओं के रूप उत्सर्गापवाद विधि से ही बनाये गये हैं। अतः इसमें हम सब धातुओं के रूप न बनाकर, केवल उन धातुओं के रूप बनायेंगे, जिनमें प्रत्यय लगने पर, धातु, प्रत्यय अथवा दोनों को कुछ न कुछ परिवर्तन होता है। क जिनके रूप इन वर्गों में न मिलें, उन्हें बनाने की विधि अन्त में दी है। उसे पढ़कर शेष रूप आप स्वयं बना लें। अब हम धातुओं के रूप, धातुओं के आद्यक्षर के क्रम से न बनाकर, धातुओं के अन्तिम अक्षर को वर्णमाला के क्रम से रखकर बनायें - म
आकारान्त तथा एजन्त धातु
दरिद्रा धातु - दरिद्रा धातु अनेकाच् होने से सेट है। दरिदातेरार्धधातुके विवक्षित आलोपो वाच्यः (वा. ६.४.११४)- दरिद्रा धातु के आ का लोप होता है, आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। अतः दरिद्रा + इट् + तुमुन् / आ का लोप करके - दरिद् + इ + तुम् = दरिदितुम् । दरिद्रितव्यम्। दरिद्रिता। शेष आकारान्त धातु - शेष सारे आकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। अतः आकारान्त धातुओं के बाद आने वाले ‘तुमुन्, तव्य, तृच्’ प्रत्ययों को इट का आगम मत कीजिये - पा + तुमुन् - पा + तुम् = पातुम् पातव्यम् पाता। । दा + तुमुन् - दा + तुम् = दातुम् दातव्यम् दाता। धा + तुमुन् - धा + तुम् = धातुम् धातव्यम् धाता। एजन्त धातु - सारे एजन्त धातु भी अनिट् ही होते हैं। अतः इनके रूप भी आकारान्त धातुओं के समान ही बनाइये। आदेच उपदेशेऽशिति (६.१.४५) - अशित् प्रत्यय परे होने पर सारे एजन्त धातुओं को ‘आ’ अन्तादेश होता है। यथा - धे - धा - धातुम् धातव्यम् ध्यै - ध्या - ध्यातुम् ध्यातव्यम् ध्याता शो - शा - शातुम् शातव्यम् शाता धाता तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १८३ ग्लै - ग्ला - ग्लातुम् ग्लातव्यम् ग्लाता गै - गा - गातुम् गातव्यम् हा गाता माजकाका
इकारान्त धातु
श्रि, शिव धातु - एकाच इकारान्त धातुओं में श्रि, शिव ये दो धातु ही सेट होते हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् को ‘आर्धधातुकस्येड् वलादेः’ सूत्र से इट का आगम कीजिये। यथा - श्रि + तुमुन् / श्रि + इट् + तुम् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - श्रे + इ + तुम् / ‘एचोऽयवायावः’ सूत्र से ‘ए’ को अयादेश करके - श्रय् + इ + तुम् = श्रयितुम्। / श्रयितव्यम् / श्रयिता। का इसी प्रकार - शिव से श्वयितुम् श्वयितव्यम् श्वयिता बनाइये। 11 शेष एकाच इकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं, अतः इनसे इट् मत लगाइये। धातु के अन्तिम इ, ई को सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके ए बनाइये - जि + तुमुन् - जे + तुम् = जेतुम् जेतव्यम् जेता। अधि + इ + तुमुन् - अध्ये + तुम् = अध्येतुम् अध्येतव्यम् अध्येता। कि आमा
ईकारान्त धातु
डीङ्, शीङ् धातु - एकाच ईकारान्त धातुओं में डीङ्, शीङ्, ये दो धातु ही सेट होते हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् को इट् का आगम कीजिये। यथा- शी+तुमुन् / शी+तुम् / सेट होने के कारण तुमुन् को आर्धधातुकस्येड् वलादेः से इट् का आगम करके - शी + इट् + तुम् / सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके - शे + इ + तुम् / एचोऽयवायावः सूत्र से ‘ए’ को अयादेश करके - शय् + इ + तुम् = शयितुम् शयितव्यम् शयिता।
- इसी प्रकार - डी से डयितुम् डयितव्यम् डयिता, बनाइये। दीधी, वेवी धातु - अनेकाच् होने से ये सेट हैं। दीधीवेवीटाम् (१.१.६) - दीधी और वेवी धातुओं के इक् के स्थान पर कोई भी गुण या वृद्धि कार्य नहीं होते। __यीवर्णयोर्दीधीवेव्योः (७.३.५३) - यकारादि और इकारादि प्रत्यय परे होने पर दीधी, वेवी धातुओं के ‘ई’ का लोप होता है। दीधी + इ + तुमुन् - दीध् + इ + तुम् = दीधितुम् दीधितव्यम् दीधिता। वेवी + इ + तुमुन् - वेव् + इ + तुम् = वेवितुम् वेवितव्यम् वेविता। १८४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ ली धातु - ली धातु अनिट् है। ली + तुम् / धातु के अन्तिम इ, ई को सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके - ले + तुम् - लेतुम् लेतव्यम् लेता। विभाषा लीयतेः (६.१.५१) - जब भी ‘ली’ धातु को गुण होकर ‘ए’ होता है, तब उस ‘ए’ को विकल्प से ‘आ’ आदेश होता है। लातुम् लातव्यम् लाता। का शेष एकाच ईकारान्त धातु - अनिट् ही होते हैं, अतः इनसे इट् मत लगाइये। धातु के अन्तिम इ, ई को सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके ए बनाइये - नी + तुमुन् - ने + तुम् = नेतुम् नेतव्यम् नेता। भी + तुमुन् - भे + तुम् = भेतुम् भेतव्यम् । भेता। की .
उकारान्त धातु
सेट् यु, कु, नु, स्नु, क्षु, क्ष्णु धातु - १. उकारान्त धातुओं में यु, रु, नु, स्नु, क्षु, क्ष्णु, ये ६ धातु ही सेट होते हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच को इट् का आगम कीजिये।
- यु + इट् + तुमुन् / यु + इ + तुम् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - यो + इ + तुम्। ‘एचोऽयवायावः’ सूत्र से इस ओ को अवादेश करके - यव् + इ + तुम् = यवितुम्। यु - यो - यत् = . यवितुम् यवितव्यम् यविता रु - रो - रव् = न रवितव्यम् - रविता नु - नो - नव् = नवितुम् नवितव्यम् नविता स्नु - स्नो - स्नव् = स्नवितुम् स्नवितव्यम् स्नविता क्षु - क्षो - क्षत् = क्षवितुम् का क्षवितव्यम् क्षविता क्ष्णु - नो - क्ष्णव् = क्ष्णवितुम् क्ष्णवितव्यम् क्ष्णविता ऊर्गु धातु - ध्यान रहे कि ऊर्गु धातु से परे आने वाले सेट् प्रत्यय विभाषोर्णोः’ सूत्र से विकल्प से डिद्वत् होते हैं। डिद्वत् न होने पर गुण करके - ऊर्गु+ इ + तुम् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - ऊर्णव् + इतुम् - ऊर्णवितुम् ऊर्णवितव्यम् ऊर्णविता। hd डिद्वत् होने पर गुणनिषेध करके - ऊर्गु + इ + तुम् / गुणनिषेध होने के कारण करके अचिश्नुधातुभ्रुवां य्वोरियडुवङौ सूत्र से उ को उवङ् आदेश करके - तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १८५ ऊर्गुत् + इतुम् - ऊर्गुवितुम् ऊर्गुवितुम् ऊर्गुविता। शेष उकारान्त धातु - अनिट् होते हैं। अतः इडागम न करके - हु + तुमुन् / हु + तुम् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - __ हु - होतुम् होतव्यम् होता। द्रु - द्रोतुम् द्रोतव्यम् द्रोता आदि बनाइये।
ऊकारान्त धातु
ध्यान रहे कि ऊकारान्त धातुओं में धूञ् धातु, सू धातु (अदादिगण) सू धातु (दिवादिगण), ये वेट होते हैं। ब्रू धातु अनिट् होता है, शेष ऊकारान्त धातु सेट होते हैं। वेट धू, सू धातु - __ इट् होने पर - धू + इट् + तुमुन् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके धू + इ + तुम् / ‘एचोऽयवायावः’ सूत्र से ओ को अवादेश करके - धव् + इ + तुम् = धवितुम्, धवितव्यम्, धविता। इसी प्रकार सू से सवितुम्, सवितव्यम्, सविता। इट् न होने पर - धू + तुम् - धो + तुम् = धोतुम्, धोतव्यम्, धोता। इसी प्रकार - सू - सोतुम्, सोतव्यम्, सोता। अनिट् ब्रू धातु - इसे ‘ब्रुवो वचिः’ सूत्र से वच्’ आदेश होता है। ब्रू + तुम् / वच् + तुम् / चोः कुः से च् को कुत्व करके - वक् + तुम् = वक्तुम् वक्तव्यम् वक्ता। शेष सारे ऊकारान्त धातु - सेट हैं, अतः इनके रूप इस प्रकार बनाइये - पू + इट् + तुमुन् / पू + इ + तुम् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - पो + इ + तुम्। एचोऽयवायावः सूत्र से इस ओ को अवादेश करके - पव् + इ + तुम् = पवितुम् पवितुम् पविता।
ऋकारान्त धातु
ध्यान रहे कि ऋकारान्त धातुओं में वृङ्, वृञ् धातु सेट होते हैं, स्वृ धातु वेट होता है। शेष ह्रस्व ऋकारान्त धातु अनिट् होते हैं। सेट् वृङ्, वृञ् धातु - इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्ययों को इट् का आगम कीजिये। ऋ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके अर् बनाइये - वृ + इट् + तुमुन् / वर् + इट् + तुम् - १८६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ वृतो वा (७.२.३८) - वृङ् धातु, वृञ् धातु, तथा सारे दीर्घ ऋकारान्त धातुओं से परे आने वाले, इट् को विकल्प से दीर्घ होता है। वृ + इ + तुम् - वर् + इतुम् = वरितुम् वरितव्यम् वरिता वरीतव्यम् वरीता वेट स्वृ धातु - इससे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्ययों को विकल्प से इट का आगम कीजिये। इडागम होने पर - स्वृ + इट् + तुमुन् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - स्वर् + इ + तुम् - स्वरितुम्, स्वरितव्यम्, स्वरिता । __ इडागम न होने पर - स्वृ + तुमुन् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - स्वर्तुम्, स्वर्तव्यम्, स्वर्ता।
- शेष ऋकारान्त धातु - अनिट् होते हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्ययों को इट् का आगम मत कीजिये । कृ+तुमुन् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - कर् + तुम् - कर्तुम्, कर्तव्यम्, कर्ता। इसी प्रकार - धृ + तुम् - धर् + तुम् = धर्तुम् धर्तव्यम् धर्ता भृ + तुम् - भर् + तुम् = भर्तुम् भर्तव्यम् भर्ता
ॠकारान्त धातु
दीर्घ ऋकारान्त सारे धातु सेट् ही होते हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्ययों को इट् का आगम कीजिये। पूर्ववत् ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके ऊपर कहे गये ‘वृतो वा’ सूत्र से ऋकारान्त धातुओं से परे आने वाले ‘इट’ को विकल्प से दीर्घ कर दीजिये। तृ + इ + तुम् - तर् + इता = तरितुम् तरितव्यम् तरिता तरीतुम् तरीतव्यम् तरीता शृ + इ + तुम् - शर् + इता = शरितुम् शरितव्यम् शरिता शरीतुम् शरीतव्यम् शरीता जृ + इ + तुम् - जर् + इता = जरितुम् जरितव्यम् जरिता जरीतव्यम् जरीता गृ + इ + तुम् - गर् + इता = गरितुम् । गरितव्यम् गरिता गरीतुम् गरीतव्यम् गरीता __+ EEEE जरीतुम् तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १८७
वर्ग - ३ __ भ्वादि से लेकर क्र्यादिगण के हलन्त धातु
ध्यान रहे कि १. यदि उपधा में लघु इक् हो तो उसे ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करने के बाद ही, सन्धिकार्य करें। २. अनिट् प्रत्यय परे होने पर, जिन धातुओं के बीच में वर्ग के पञ्चमाक्षर हों, उन्हें आप पहिले अनुस्वार बना लें। जैसे - भज् + तुम् - भंज् + तुम् / अज् + तुम् - अंज् + तुम् / सज् + तुम् - संज् + तुम्, आदि। ३. जिन हलन्त धातुओं के रूप बनाकर यहाँ नहीं दे रहे हैं, उनके रूप बनाने की विधि इस पाठ के अन्त में देखिये। __ ककारान्त धातु शक् धातु - यह अनिट् है। शक् + तुम् = शक्तुम् शक्तव्यम् शक्ता शेष ककारान्त धात - शेष ककारान्त धात सेट हैं। इनके रूप बनाने की विधि पाठ के अन्त में देखिये। चकारान्त धातु तञ्चू धातु - यह धातु वेट है। इडागम न होने पर - तंच् + तुमुन् / ‘च’ को चोः कुः’ सूत्र से कुत्व करके - तंक् + तुम् / अनुस्वार के स्थान पर ‘अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः’ सूत्र से परसवर्ण करके - तक् + तुम् = तङ्क्तुम् तक्तव्यम् तङ्क्ता इडागम होने पर - तञ्चितव्यम् तञ्चिता (ध्यान दें कि अनुस्वार जब क् को देखता है, तब उसका परसवर्ण ङ् हो जाता है और जब च् को देखता है, तब उसका परसवर्ण ञ् हो जाता है ) व्यच् धातु - यह धातु सेट है। व्यच् इट् + तुमुन् - ‘व्यचेः कुटादित्वमनसीति वक्तव्यम्’ इस वार्तिक से व्यच् धातु से परे आने वाले ‘अस्’ से भिन्न सारे प्रत्यय डिद्वत् होते हैं। अतः व्यच् धातु को ग्रहिज्यावयिव्यधि तञ्चितुम् १८८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ वष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च सूत्र से सम्प्रसारण करके - विच् + इ + तुम् = विचितुम् विचितव्यम् विचिता व्रश्च् धातु - यह धातु वेट है। इडागम न होने पर - व्रश्च् + तुम् - ‘स्कोः संयोगाद्योरन्ते च’ सूत्र से संयोग के आदि में स्थित ‘स्’ का लोप करके - वच् + तुम् / अब अन्त में आने वाले ‘च’ को ‘व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः सूत्र से ‘ए’ बनाकर - व्रष् + तुम् / प्रत्यय के त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाकर - व्रष् + टुम् = व्रष्टुम् व्रष्टव्यम् व्रष्टा। इडागम होने पर - व्रश्च् + इतुम् = व्रश्चितुम् वश्चितव्यम् वश्चिता। शेष अनिट् चकारान्त धातु - यदि उपधा में लघु इक् हो तो उसे पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण कीजिये। अनन्तर धातु के अन्त में आने वाले ‘च’ को चोः कुः’ सूत्र से कुत्व करके ‘क्’ बनाइये। पच् + तुम् = पक्तुम् पक्तव्यम् पक्ता : मुच् + तुम् = मोक्तुम् मोक्तव्यम् मोक्ता रिच् + तुम् = रेक्तुम् रेक्ता वक्तुम् वक्तव्यम् वक्ता विच + तुम् = वेक्तुम् वेक्तव्यम् वेक्ता सिच् + तुम् = सेक्तुम् सेक्तव्यम् सेक्ता छकारान्त धातु - अनिट् झलादि प्रत्यय परे होने पर छकारान्त धातु के अन्त में आने वाले ‘छ’ को व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः’ सूत्र से ‘ए’ बनाइये। उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। प्रच्छ् + तुम् = प्रष्टुम् प्रष्टव्यम् प्रष्टा जकारान्त धातु - मस्ज् धातु - मस्जिनशोझलि (७.१.६०) - मस्ज् तथा नश् धातु को अनिट् झलादि प्रत्यय परे होने पर नुम् का आगम होता है। मस्जेरन्त्यात् पूर्वो नुम् वक्तव्यः - मस्ज् धातु को होने वाला नुमागम अन्तिम रेक्तव्यम् वच् +
- . तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १८९ वर्ण के पूर्व में होता है। मस्ज् + तुम् - म स् न् ज् + तुम् / ‘स्कोः संयोगाद्योरन्ते च’ सूत्र से संयोग के आदि में स्थित ‘स्’ का लोप करके - मंज् + तुम् / ज् को चोः कुः से कुत्व करके - मंग् + तुम् / ग् को खरि च से चर्व करके - मंक् + तुम् / अनुस्वार को ‘अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः’ से परसवर्ण करके = मङ्क्तुम् मङ्क्तव्यम् मङ्क्ता। सृज् धातु - सृज् + तुमुन् - सृज् + तुम् - सृजिदृशोझल्यमकिति (६.१.५८) - सृज् तथा दृश्, इन दो अनिट् ऋदुपट धातुओं को झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर अम् का आगम होता है। सृ अम् ज् + तुम् / म् की इत् संज्ञा करके - सृ अ ज् + तुम् - " ‘इको यणचि’ सूत्र से ऋ के स्थान पर यण् आदेश करके - स्रज् + तुम् / धातु के अन्त में आने वाले ज्’ को वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः’ सूत्र से ‘ए’ बनाकर - स्रष् + तुम् / ‘त’ को ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाकर - स्रष् + टुम् = स्रष्टुम् स्रष्टव्यम् स्रष्टा। भ्रस्ज् धातु - भ्रस्जो रोपधयोः रमन्यतरस्याम् (६.४.४७) - आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर भ्रस्ज् धातु के ‘र’ तथा उपधा के स्थान पर, विकल्प से ‘रम्’ का आगम होता है। ’’ तथा उपधा के स्थान पर, ‘रम्’ का आगम होने पर - भ्रस्ज् + तुम् / भ्रस्जो रोपधयोः रमन्यतरस्याम् सूत्र से ‘रम्’ का आगम होकर - भर्ज + तुम् / धातु के अन्त में आने वाले ज्’ को वश्चभ्रस्जसृजमजयजराजभ्राजच्छशां षः’ सूत्र से ‘ष’ करके - भर्ष + तुम् / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ करके - भर्ष + टुम् = भष्टुम् भष्टव्यम् भा। भ्रस्ज् के स्थान पर भ्रस्ज् ही रहने पर - भ्रस्ज् + तुम् - ‘स्कोः संयोगाद्योरन्ते च सूत्र से संयोग के आदि में स्थित ‘स्’ का लोप करके - भ्रज् + तुम् / धातु के अन्त में आने वाले ‘ज्’ को ‘व्रश्चभ्रस्जसृजमजयज राजभ्राजच्छशां षः’ सूत्र से ‘ए’ बनाकर - भ्रष् + तुम् / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाकर - भ्रष्टम् भ्रष्टव्यम् भ्रष्टा। अज् धातु - अज् + तुम् / अजेळघञपोः से ‘वी’ आदेश करके - वी + तुम् - ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - वे + तुम् = वेतुम् वेतव्यम् वेता। १९० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग -३ वेट अजू धातु - इडागम न होने पर - ‘ज्’ को चोः कुः’ सूत्र से कुत्व करके ‘ग्’ बनाइये। अब ‘खरि च’ सूत्र से उस ‘ग्’ को कवर्ग का प्रथमाक्षर क् बनाइये। अङ्ग् + तुम् - अक्तुम् अङ्क्तव्यम् अङ्क्ता इडागम होने पर - अजितुम् अजितव्यम् अञ्जिता वेट् मृज् धातु - इडागम न होने पर - योम मृजेर्वृद्धिः (७.२.११४) - मृज् धातुरूप जो अङ्ग, उसके इक् के स्थान पर वृद्धि होती है। मृज् + तुम् - मा + तुम् / वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः’ सूत्र से ज्’ को ‘ए’ बनाकर - माष् + तुम् / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - मार्ष + टुम् = माष्टुम् माष्टव्यम् मार्टा। इडागम होने पर - मृज् + इ + तुम् - मा + इतुम् = मार्जितुम् मार्जितव्यम् मार्जिता। विज् धातु - यह धातु सेट है। इससे परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्यय ‘विज इट्’ सूत्र से ङिद्वत् होते हैं। अतः ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध करके - उद्विज् + इ + तुम् = उद्विजितुम् उद्विजितव्यम् उद्विजिता शेष अनिट् जकारान्त धातु - यदि उपधा में लघु इक् हो तो उसे ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण कीजिये। धातु के अन्त में आने वाले ज्’ को चोः कुः सूत्र से कुत्व करके ‘ग्’ बनाइये । अनन्तर उसे खरि च सूत्र से चर्व करके ‘क्’ बनाइये। निज् + तुम् = नेक्तुम् नेक्तव्यम् । नेक्ता भुज् + तुम् = भोक्तुम् भोक्तव्यम् भोक्ता रुज् + तुम् रोक्तम रोक्तव्यम् रोक्ता विज् + तुम् वेक्तुम् वेक्तव्यम् वेक्ता तुम् योक्तुम् योक्तव्यम् योक्ता तुम् त्यक्तुम् त्यक्तव्यम् त्यक्ता भज् + भक्तुम् । भक्तव्यम्हा भक्ता भज् + भक्तुम् भक्तव्यम् भक्ता युज्
__तुम् तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १९१ + + + + रज् + तुम् = रक्तुम् रक्तव्यम् रक्ता स्वञ् + स्वक्तुम् स्वङ्क्तव्यम् स्वक्ता .. सञ् + तुम् = सङ्क्तुम् सङ्क्तव्यम् । सङ्क्ता . युज् + तुम् = योक्तुम् योक्तव्यम् । योक्ता । दकारान्त धातु यदि उपधा में लघु इक् हो तो उसे ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण कीजिये। अनन्तर धातु के अन्त में आने वाले, त्, थ्, द्, ध् को ‘खरि च’ सूत्र से उसी वर्ग का प्रथमाक्षर त् बनाइये। वेट क्लिद् धातु - इडागम न होने पर - क्लेत्तुम् क्लेत्तव्यम् क्लेत्ता इडागम होने पर - क्लेदितुम् क्लेदितव्यम् क्लेदिता वेट् स्यन्द् धातु - इडागम न होने पर - स्यन्तुम् स्यन्त्तव्यम् स्यन्त्ता इडागम होने पर - स्यन्दितुम् स्यन्दितव्यम् स्यन्दिता शेष दकारान्त अनिट् धातु - अद् + तुम् = अत्तुम् अत्तव्यम् अत्ता क्षुद् + तुम् __ = क्षोत्तुम् । क्षोत्तव्यम् क्षोत्ता खिद् + तुम् खेत्तुम् खेत्ता तुम् छेत्तुम् छेत्तव्यम् छेत्ता तोत्तुम् तोत्तव्यम् नोत्तव्यम् नोत्ता पद पत्तुम् पत्तव्यम् भेत्तुम् भेत्तव्यम् + तुम् वेत्तुम् वेत्तव्यम् सद् + तुम् सत्तुम् सत्तव्यम् सत्ता शद् + तुम् शत्तुम् शत्तव्यम् शत्ता स्विद् + तुम् स्वेत्तुम् स्वेत्तव्यम् स्कन्द् + तुम् = स्कन्तुम् स्कन्त्तव्यम् स्कन्त्ता खेत्तव्यम् छिद् + तुम् + तोत्ता नुद् + तुम् नोत्तुम् तुम् + पत्ता भिद् + भेत्ता वेत्ता विद् +
- । स्वेत्ता १९२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ हद् + तुम् = हत्तुम् हत्तव्यम् हत्ता धकारान्त धातु झषस्तथो?ऽधः - जिनके अन्त में वर्ग के चतुर्थाक्षर हैं, ऐसे झषन्त धातुओं से परे आने वाले प्रत्यय के त, थ को ध होता है, धा धातु को छोड़कर। यथा - सिध् + तुमुन् / ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के इक् को गुण करके - सेध् + तुम् / ‘झषस्तथो?ऽधः’ सूत्र से प्रत्यय के ‘त’ को ‘ध’ बनाकर - सेध् + धुम् / झलां जश् झशि सूत्र से झल् के स्थान पर जश् आदेश करके - सेद् + धुम् = सेद्धम्। . हमने जाना कि धातु के अन्त में झष् = वर्ग का चतुर्थाक्षर हो, और उसके बाद त या थ हो, तो दो कार्य होते हैं - १. प्रत्यय के त, थ को ध होता है। २. धातु के अन्त में आने वाले वर्ग के चतुर्थाक्षर को तृतीयाक्षर होता है, धा धातु को छोड़कर। धकारान्त वेट षिधू - सिध् धातु - उपधा के इक् को गुण करके - सिध्
- तुम् = सेझुम्से द्धव्यम् सेद्धा सिध् + इट् + तुम् = सेधितुम् सेधितव्यम् सेधिता धकारान्त वेट रध् धातु - __ रधिजभोरचि (७.१.६१) - रध् और जभ् धातुओं को नुमागम होता है, अजादि प्रत्यय परे होने पर। इस सूत्र से नुमागम प्राप्त होने पर - नेट्यलिटि रधेः (७.१.६२) - रध् धातु को नुमागम नहीं होता है, लिट् भिन्न प्रत्यय परे होने पर। अतः नुमागम न करके - रध्
- तुम् = रद्धुम् रद्धव्यम् रद्धा ध् + इट् + तुम् = रधितुम् रधितव्यम् रधिता धकारान्त अनिट् धातु - उपधा के इक् को गुण करके - क्रुध् + तुम् = क्रोद्धुम् क्रोद्धव्यम् . क्रोद्धा क्षुध् + तुम् = क्षोद्धुम् क्षोद्धव्यम् । क्षोद्धा युध् + तुम् . = योद्धव्यम् योद्धा रुध् + तुम् = रोद्धम् रोद्धव्यम् रोद्धा राध् + तुम् राद्धम् राद्धव्यम् राद्धा तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १९३ व्यद्धा
व्यध् + तुम् व्यर्द्धम् व्यद्धव्यम् साध् + तुम् सार्धम् साद्धव्यम् साद्धा शुध् + तुम् = शोद्धम् शोद्धव्यम् शोद्धा सिध् + तुम् = सेद्धम् सेद्धव्यम् सेद्धा बुध + तुम् बोद्धम् बोद्धव्यम् बोद्धा बन्ध् + तुम् बन्द्धम् बन्द्धव्यम् बन्द्धा नकारान्त धातु न्, म्, को ‘नश्चापदान्तस्य झलि’ सूत्र से अनुस्वार बनाइये। उसके बाद ‘अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः’ सूत्र से परसवर्ण करके उस अनुस्वार को न् बनाइये - मन् + तुम् = मन्तुम् मन्तव्यम् मन्ता हन् + तुम् = हन्तुम् हन्तव्यम् हन्ता पकारान्त धातु सप् धातु - अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् (६.१.५९) - सृप, स्पृश्, मृश्, कृष् धातु, अनिट् ऋदुपध धातु हैं। तृप्, दृप् धातु विकल्प से अनिट् हैं। अनिट् ऋदुपध धातुओं को झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर विकल्प से अम् का आगम होता है। सृप् + तुम् / उक्त सूत्र से अम् का आगम करके - सृ अम् प् + तुम् / म् की इत् संज्ञा करके तथा इको यणचि सूत्र से ऋ के स्थान पर यण् आदेश करके - स्रप् + तुम् = स्रप्तुम् सप्तव्यम् सप्ता। अम् का आगम न होने पर इसकी उपधा के ऋ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके अर् बनाइये। सृप् + तुम् - सप् + तुम् = सप्र्तुम् सतव्यम् सर्ता । दिवादिगण के वेट तृप, दृप् धातु - ‘अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम्’ सूत्र से विकल्प से अम् का आगम होने से इनके तीन रूप बनेंगे. १. प्रत्यय को इट् का आगम न होने पर - तृप् + तुम् / धातु को अम् का आगम करके - तृ अम् प् + तुम् - त्रप् + तुम् - त्रप्तुम् त्रप्तव्यम् त्रप्ता। २. तृप् + तुम् - धातु को अम् का आगम करके तथा प्रत्यय को इट् का आगम न करके, पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के ऋ को गुण करके - तप् + तुम् = १९४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ दर्ता तप्र्तुम् ततव्यम् तर्ता ३. तृप् + इट् + तुम् - धातु को अम् का आगम न करके तथा प्रत्यय को इट का आगम करके, पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के ऋ को गण करके - तर्पितुम् तर्पितव्यम् तर्पिता ठीक इसी प्रकार दृप् धातु से - द्रप्तुम् द्रप्तव्यम् द्रप्ता दप्तुम् दतव्यम् दर्पितुम् दर्पितव्यम् दर्पिता वेट् त्रप् धातु - इससे इडागम न होने पर - त्रप्तुम् त्रप्तव्यम् जप्तव्यम् त्रप्ता त्रपितुम् त्रपितव्यम् पिता वेट् गुपू धातु - ऊदित् होने से यह धातु वेट है। आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर इसे ‘आयादय आर्धधातुके वा’ सूत्र से स्वार्थ में ‘आय’ प्रत्यय विकल्प से होता है - गुप् + आय - गोपाय। ‘आय’ लग जाने पर, यह धातु अनेकाच् हो जाने से सेट हो जाता है। __ आय प्रत्यय लगने पर - गोपाय + इट् + तुम् / ‘अतो लोपः’ सूत्र से ‘अ’ का लोप करके - गोपाय् + इ + तुम् = गोपायितुम् गोपायितव्यम् गोपायिता। ‘आय’ प्रत्यय न लगने पर इडागम करके - गुप् + इट् + तुम् = गोपितुम् गोपितव्यम् गोपिता ‘आय’ प्रत्यय न लगने पर इडागम न करके - गुप् + तुम् = गोप्तुम् गोप्तव्यम् गोप्ता वेट कृपू धातु - कृपो रो लः (८.२.१८) - कृप् के ‘ऋ’ के स्थान पर ‘लु’ आदेश होता है - कृप् - क्लृप् । पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के ऋ को गुण करके - कल्प् - कल्प्तुम् कल्प्तव्यम् कल्प्ता कल्पितव्यम् कल्पिता - शेष पकारान्त अनिट् धातु - आप् + तुम् = आप्तुम् आप्तव्यम् आप्ता कल्पितुम् तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय __ + छुप् छोप्ता क्षिप्’ क्षेप्ता + + तेप्तुम् तेप्ता + तेप्तव्यम् लेप्तव्यम् EEEEE + लुप् + शव + छोप्तुम् छोप्तव्यम् क्षेप्तुम् क्षेप्तव्यम् तप् तप्तुम् तप्तव्यम् तप्ता तिप् लिप् लेप्तुम् लेप्ता लोप्तुम् लोप्तव्यम् लोप्ता वप् __+ तुम् वस्तुम् वप्तव्यम् वप्ता तुम् शप्तुम् शप्तव्यम् शप्ता स्वप् + तुम् = स्वप्तुम् स्वप्तव्यम् स्वप्ता __ भकारान्त धातु धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर होने पर - १. प्रत्यय के त, थ को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ध बना दीजिये - २. और धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर को झलां जश् झशि सूत्र से जश्त्व करके उसी वर्ग का तृतीयाक्षर बनाइये। जैसे - यभ + तुम् = यब्धुम् यब्धव्यम् यब्धा + तुम् = रब्धुम् रब्धव्यम् रब्धा लब्धुम् लब्धव्यम् लब्धा वेट भकारान्त लुभ धातु - उपधा के लघु इक् को ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करके इडागम न होने पर - लोब्धुम् / इडागम होने पर - लोभितुम् । मकारान्त धातु तकारादि प्रत्यय परे होने पर धातु के अन्त में आने वाले न्, म्, को ‘नश्चापदान्तस्य झलि’ सूत्र से अनुस्वार बनाइये। उसके बाद अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः’ सूत्र से परसवर्ण करके उस अनुस्वार को न् बनाइये - नम् + तुम् - नं + तुम् - नन् + तुम् = नन्तुम् नन्तव्यम् नन्ता यम् + तुम् - यं + तुम् - यन् + तुम् = यन्तुम् यन्तव्यम् यन्ता रम् + तुम् - रं + तुम् - रन् + तुम् = रन्तुम् रन्तव्यम् रन्ता गम् + तुम् - गं + तुम् - गन् + तुम् = गन्तुम् गन्तव्यम् गन्ता वेट क्षमू धातु - रभ् + १९६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ इडागम न होने पर पूर्ववत् - क्षन्तुम् क्षन्तव्यम् क्षन्ता इडागम होने पर पूर्ववत् - क्षमितुम् क्षमितव्यम् क्षमिता . शकारान्त धातु दृश् धातु - सृजिदृशोझल्यमकिति (६.१.५८) - सृज् तथा दृश्, इन दो अनिट् ऋदुपट | धातुओं को झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर अम् का आगम होता है। दृश् + तुम् - दृ अम् श् + तुम् / इको यणचि ये ऋ के स्थान पर यण् आदेश करके - द्रश् + तुम् - धातु के अन्त में आने वाले ‘श्’ को ‘वश्चभ्रस्जसृजमृजयज- राजभ्राजच्छशां षः (८.२.३६) ’ सूत्र से ‘ए’ बनाकर - द्रष् + तुम् / उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - द्रष् + टुम् = द्रष्टुम् द्रष्टव्यम् द्रष्टा स्पृश्, मृश् धातु - अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् (६.१.५९) - अनिट् ऋदुपध धातुओं को, झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर, विकल्प से अम् का आगम होता है। अमागम होने पर - स्पृश् + तुम् / अम् का आगम करके तथा प्रत्यय को इट का आगम न करके, पूर्ववत् - स्प्रष्टुम् स्प्रष्टव्यम् स्प्रष्टा। इसी प्रकार मृश् धातु से - म्रष्टुम् भ्रष्टव्यम् म्रष्टा अमागम न होने पर - स्पृश् + तुम् / धातु को अम् का आगम न होने पर ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से ऋ को गुण करके - स्पर्श + तुम् / पूर्ववत् ‘वश्चभ्रस्ज’. सूत्र से श् को ष् करके तथा प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - स्पष्टुम् स्पष्टव्यम् स्पर्ला । इसी प्रकार मृश् धातु से - मष्टुम् मष्टव्यम् मा वेट् अशू, क्लिशू धातु - इडागम न होने पर पूर्ववत् - अष्टम् अष्टव्यम् अष्टा क्लेष्टव्यम् क्लेष्टा क्लेष्टुम् तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १९७ क्रोष्टा दंष्टा इडागम होने पर - अशितुम् अशितव्यम् अशिता . अशिता . क्लेशितुम् क्लेशितव्यम् क्लेशिता वेट नश् धातु - मस्जिनशोझलि (७.१.६०) - मस्ज् तथा नश् धातु से परे आने वाले झलादि प्रत्ययों को नुम् का आगम होता है। शेष कार्य पूर्ववत् करके - नश् + तुम् - नंश् + तुम् - नंष् + टुम् = नंष्टुम् नंष्टव्यम् नंष्टा इडागम होने पर नुमागम न करके - नशितुम् नशितव्यम् नशिता शेष अनिट् शकारान्त धातु - उपधा के लघु इक् को ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करके, ‘व्रश्चभ्रस्जसृजमजयजराजभ्राजच्छशांषः’ सूत्र से ‘श्’ को ‘ष्’ बनाइये। उसके बाद प्रत्यय के त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। क्रुश् + तुम् = क्रोष्टुम् क्रोष्टव्यम् दंश् + तुम् = दंष्टुम् दंष्टव्यम् दिश् + तुम् = देष्टुम् देष्टव्यम् देष्टा रिश् तुम् = रेष्टुम् रेष्टव्यम् रेष्टा तुम् = रोष्टम् रोष्टव्यम् रोष्टा लिश् + तुम् = लेष्टुम् लेष्टव्यम् लेष्टा विश् + तुम् = वेष्टुम् वेष्टव्यम् वेष्टा षकारान्त धातु कृष् धातु - अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् सूत्र से झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर विकल्प से अम् का आगम होने पर - कृष् - क्रष् - क्रष्टुम् । __ अम् का आगम न होने पर उपधा के लघु ऋ’ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके - कृष् - कर्ष - कष्टुम् कष्टव्यम् का क्रष्टुम् क्रष्टव्यम् क्रष्टा वेट असू, तक्षू, त्वक्षू, इष्, रुष रोषे (चुरादि) रुष्, रिष् हिंसायाम् (भ्वादि तथा दिवादिगण) तथा निर् + कुष् धातु - + रुश् +१९८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ तष्टुम् त्वष्टुम् इडागम न होने पर - अक्ष् + तुम् - ‘स्कोः संयोगाद्योरन्ते च’ सूत्र से संयोग के आदि में स्थित ‘क्’ का लोप करके - अष् + तुम् / ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से त को ष्टुत्व करके - अष् + टुम् = अष्टुम् । इडागम होने पर - अक्ष् + इट् + तुम् = अक्षितुम्। अष्टुम् अष्टव्यम् अष्टा अक्षितुम् अक्षितव्यम् अक्षिता तष्टव्यम् तष्टा तक्षितुम् तक्षितव्यम् तक्षिता त्वष्टव्यम् त्वष्टा त्वक्षितुम् त्वक्षितव्यम् त्वक्षिता एष्टुम् एष्टव्यम् एष्टा एषितुम् एषितव्यम् एषिता रेष्टुम् रेष्टव्यम् रेष्टा रेषितव्यम् रेषिता रोष्टव्यम् रोषितव्यम् रोषिता निर् + कुष् = निष्कोष्टुम् निष्कोष्टव्यम् निष्कोष्टा निष्कोषितुम् निष्कोषितव्यम् निष्कोषिता शेष षकारान्त अनिट् धातु – उपधा के ‘लघु इक्’ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण कीजिये। प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। त्वेष्टुम् त्वेष्टव्यम् त्वेष्टा तोष्टव्यम् तोष्टा द्वेष्टव्यम् द्वेष्टा दोष्टुम् दोष्टव्यम् दोष्टा पोष्टुम् पोष्टव्यम् पोष्टा पेष्टव्यम् पेष्टा विष वेष्टुम् वेष्टव्यम् रेषितुम् रोष्टुम् रोषितुम् रोष्टा त्विष् तुष् तोष्टम् द्वेष्टुम् द्विष् दुष् पूष् पिष पेष्टुम् वेष्टा तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १९९ शिलष् शिष् = शेष्टुम् शेष्टव्यम् शेष्टा शुष् = शोष्टम् शोष्टव्यम् शोष्टा = श्लेष्टुम् श्लेष्टव्यम् श्लेष्टा . चक्ष् धातु - चक्ष् + तुम् - . चक्षिङ् ख्याञ् (२.४.५४) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ‘चक्ष्’ । पातु को ‘ख्या’ आदेश होता है। ख्या + तुम् = ख्यातुम् ख्यातव्यम् ख्याता। सकारान्त धातु अस् (अदादिगण) धातु - अस् + इ + तुम् - अस्तेर्भूः (२.४.५२) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अस् धातु को भू आदेश होता है। इससे अस् को भू आदेश करके - भू + इ + तुम् = भवितुम् भवितव्यम् भविता। अनिट् वस् धातु (भ्वादिगण) - वस् + तुम् = वस्तुम्। अनिट् घस् धातु (भ्वादिगण) - घस् + तुम् = घस्तुम् । अन्य सेट वस् धातु से - वस् + इट् + तुम् = वसितुम् बनेगा। हकारान्त धातु १. नह् धातु - नह धातु के ह् को नहो धः’ सूत्र से ध् बनाइये। नह् + तुम् - नध् + तुम् / अब देखिये कि धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर ‘ध्’ आ गया है, अतः आप ऐसे धातुओं के बाद में आने वाले - १. प्रत्यय के त, थ को ‘झषस्तथो?ऽधः’ सूत्र से ध बना दीजिये - नध् + तुम् = नध् + धुम् - २. और धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर ध् को ‘झलां जश् झशि’ सूत्र से जश्त्व करके उसी वर्ग का तृतीयाक्षर द् बनाइये। नध् + धुम् - नद् + धुम् = नद्धम्। नद्धम् नद्धव्यम् नद्धा २. दकारादि हकारान्त धातु, जैसे - दह्, दुह्, दिह् - उपधा के ‘लघु इक्’ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण कीजिये। अब इनके ‘ह’ को ‘दादेर्धातोर्घः’ सूत्र से घ् बनाइये - दुह् - दोह् + तुम् - दोघ् + तुम् / प्रत्यय २०० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ के ‘त’ को ‘झषस्तथो?ऽधः’ सूत्र से ‘ध’ करके - दोघ + धुम् / अब धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर ‘घ्’ को ‘झलां जश् झशि’ सूत्र से जश्त्व करके, उसी वर्ग का तृतीयाक्षर ‘ग्’ बनाइये - दोघ् + धुम् = दोग्धुम्। इसी प्रकार - दिह + तुम् - देह + तुम् = देग्धुम् बनाइये। ३. द्रुह्, मुह्, स्नुह्, स्निह् धातु - ये चारों धातु वेट हैं। वा दुहमुहष्णुहष्णिहाम् (८.२.३३) - द्रुह, मुह ,स्नुह, स्निह् धातुओं के ह को विकल्प से ढ् तथा ‘घ्’ होते हैं, झल् परे होने पर। इडागम न होने पर ‘ह’ के स्थान पर ‘घ’ होने पर - द्रुह् + तुम् / उपधा के लघु इक्’ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके - द्रोह् + तुम् / वा द्रुहमुहष्णुहष्णिहाम् सूत्र से पक्ष में ह के स्थान पर घ् करके - द्रोच् + तुम् / प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ‘ध’ करके - द्रोच् + धुम् / ‘झलां जश् झशि’ सूत्र से ‘घ्’ को जश्त्व करके, उसी वर्ग का तृतीयाक्षर ‘ग्’ बनाकर - द्रोग् + धुम् = द्रोग्धुम् । इसी प्रकार - द्रुह् द्रोग्धुम् द्रोग्धव्यम् . द्रोग्धा मोग्धा स्नोग्धव्यम् स्नोग्धा स्निह स्नेग्धुम् स्नेग्धव्यम् इडागम न होने पर ‘ह’ के स्थान पर ‘द’ होने पर - द्रुह् + तुम् / उपधा के ‘लघु इक्’ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके - द्रोह् + तुम् / वा दुहमुहष्णुहष्णिहाम् सूत्र से पक्ष में ह के स्थान पर ढ् करके - द्रोढ् + तुम् / प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ‘ध’ करके - द्रोढ् + धुम् / ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ध् को ष्टुत्व करके द्रोद् + ढुम् - ढो ढे लोपः से पूर्व ढकार का लोप करके द्रो + ढुम् = द्रोढुम् । इसी प्रकार - द्रुह द्रोढुम् द्रोढव्यम् द्रोढा मोढव्यम् मोढा स्नु स्नोढुम् स्नोढव्यम् स्नोढा स्निह स्नेढुम् स्नेढव्यम् स्नेढा इडागम होने पर केवल उपधा को गुण करके - मह मोग्धव्यम् मोग्धुम् स्नग्धुम् स्नुह स्नेग्धा मुह मोढुम् तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय य २०१ + rue + + + सोढा द्रुह् + इ + तुम् = द्रोहितुम् द्रोहितव्यम् द्रोहिता मुह + इ + तुम् = मोहितम् मोहितव्यम् मोहिता स्नुह् + इ + तुम् = स्नोहितुम् स्नोहितव्यम् स्नोहिता स्निह् + इ + तुम् = स्नेहितुम् स्नेहितव्यम् स्नेहिता ४. वह् धातु - वह् + तुम् - हो ढः सूत्र से ह को ढ् बनाने पर - वढ् + तुम् - प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ‘ध्’ करके - वढ् + धुम् - ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ‘ध्’ को ष्टुत्व करके - वढ् + ढुम् - ‘ढो ढे लोपः’ से पूर्व ढकार का लोप करके - व + ढुम् - अब ‘सहिवहोरोदवर्णस्य’ सूत्र से लुप्त ढकार के पूर्ववर्ती ‘अ’ को ‘ओ’ बनाकर ‘वोढुम्’ बनाइये। वह धातु - वोढव्यम् वोढा ५. सह् धातु - ‘सह्’ धातु वेट है। इडागम न होने पर - सोढुम् सोढव्यम् इडागम होने पर - सहितुम् सहितव्यम् सहिता ६. गुहू धातु - ‘गुह्’ धातु वेट है। इडागम न होने पर - गोढुम् गोढव्यम् गोढा इडागम होने पर - ऊदुपधाया गोहः (६.४.८९) - गुह् धातु की उपधा के ‘उ’ को दीर्घ होता है, अजादि प्रत्यय परे होने पर। गुह् + इट् + तुमुन् / गूह + इ + तुम् - गुहितुम् गृहितव्यम् गृहिता ७. ग्रह् धातु - ग्रहोऽलिटि दीर्घः - ग्रह धातु, से परे आने वाले इट् को नित्य दीर्घ होता है - ग्रह् + इ + तुम् = ग्रहीतुम् ग्रहीतव्यम् ग्रहीता। ८. शेष हकारान्त धातु - इन धातुओं के अलावा जितने भी हकारान्त धातु बचे, उनके ‘ह’ को हो ढः’ सूत्र से ‘ढ्’ बनाइये - रुह् - रोह् + तुम् - रोढ् + तुम् / प्रत्यय के त को झषस्तथो?ऽधः सूत्र से ‘ध’ करके - रोढ् + धुम् / ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ध् को ष्टुत्व करके रोढ् + ढुम् / ढो ढे लोपः से पूर्व ढकार का लोप करके रो + ढुम् = रोढुम् । २०२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ लेढुम् तर्द्वम् बर्द्धम् बर्दा रुह् + तुम् = रोढव्यम् रोढा लिह् + तुम् लेढव्यम् लेढा मिह + तुम् मेढुम् मेढव्यम् इसी प्रकार - तृह + तढव्यम् ता स्तृह् + तुम् स्तर्द्वम् स्तढव्यम् स्ता बृह् + तुम् बढव्यम् तुंह् + तुम् = तृण्ढुम् तृण्ढव्यम् तण्ढा गुह् + तुम् = गोढुम् गोढव्यम् गोढा गृह् + तुम् = गर्दुम् गढव्यम् गर्दा गाह् + तुम् = गाढुम् गाढव्यम् गाढा ये धातु वेट हैं, अतः इडागम करके - तृह् + इतुम् - तर्हितुम् तर्हितव्यम् तर्हिता स्तृह् + इतुम् - स्तर्हितुम् स्तर्हितव्यम् स्तर्हिता बृह् + इतुम् - बर्हितव्यम् बर्हिता तुंह् + इतुम् - तूंहितुम् तूंहितव्यम् । तूंहिता गृह् + इतुम् - गर्हितुम् गर्हितव्यम् गर्हिता गाह् + इतुम् - गाहितुम् गाहितव्यम् गाहिता भ्वादिगण से ज़्यादिगण के शेष हलन्त धातु ध्यान रहे कि अब जो धातु बचे हैं, वे सब सेट हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्ययों को इट का आगम अवश्य कीजिये। इनके चार वर्ग बनाइये - १. शेष इदुपध धातु - पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के लघु ‘इ’ को गुण करके - लिख् + इ + तुम् - लेख् + इतुम् = लेखितुम् लेखितव्यम् लेखिता मिद् + इ + तुम् - मेद् + इतुम् = मेदितुम् मेदितव्यम् मेदिता चित् + इ + तुम् - चेत् + इतुम् = चेतितुम् चेतितव्यम् चेतिता आदि। २. शेष उदुपध धातु - बर्हितुम् तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय यया २०३ पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के लघु ‘उ’ को गुण करके - मुद् + इ + तुम् - मोद् + इतुम् = मोदितुम् मोदितव्यम् मोदिता रुद् + इ + तुम् - रोद् + इतुम् = रोदितुम् रोदितव्यम् रोदिता मुह् + इ + तुम् - मोह् + इतुम् = मोहितुम् मोहितव्यम् मोहिता आदि। ३. शेष ऋदुपध धातु - पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के लघु ‘ऋ’ को गुण करके - हृष् + इ + तुम् = हर्षितुम् हर्षितव्यम् हर्षिता वृष् + इ + तुम् = वर्षितुम् वर्षितव्यम् वर्षिता __ शेष हलन्त धातु - इन्हें कुछ मत कीजिये। यथा - वद् + इ + तुम् = वदितुम् वदितव्यम् वदिता मील् + इ + तुम् = मीलितुम् मीलितव्यम् मीलिता मूष् + इ + तुम् = मूषितुम् मूषितव्यम् मूषिता पठ् + इ + तुम् = पठितुम् पठितव्यम् पठिता आदि। यह भ्वाादि से ज़्यादिगण तक के सेट् धातुओं के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई । अब चुरादिगण के तथा अन्य प्रत्ययान्त धातुओं में तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्यय लगाने की विधि बतला रहे हैं -
वर्ग - ४ चुरादिगण के धातु तथा णिजन्त धातु
चुरादिगण के धातुओं के अन्त में णिच्’ प्रत्यय लगा होने से वे णिजन्त धातु हैं। जैसे - चुर् + णिच् = चोरि। इसी प्रकार प्रेरणा अर्थ अर्थात् प्रयोजक व्यापार वाच्य होने पर, किसी भी धातु से णिच् प्रत्यय लगता है। जैसे - पठ् + णिच् = पाठि। ये णिजन्त धातु सदा अनेकाच् होने के कारण सेट ही होते हैं। अतः इनसे परे आने वाले तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्ययों को इट् का आगम अवश्य कीजिये। चोरि + इट् + तुमुन् / चोरि + इ + तुम् / सार्वधातुकार्धधातुंकयोः सूत्र से गुण करके - चोरे + इ + तुम् / एचोऽयवायावः सूत्र से ए को अयादेश करके - चोरय + इ + तुम् = चोरयितुम्, चोरयितव्य, चोरयिता। इसी प्रकार - कथ् + णिच् - कथि से कथयितुम्, कथयितव्यम्, कथयिता। नट् + णिच् - नाटि से नाटयितुम्, नाटयितव्यम्, नाटयिता, आदि बनाइये। २०४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३
वर्ग - ५ प्रत्ययान्त धातु
सन्नन्त धातु - ध्यान रहे कि अनेकाच होने के कारण सारे सन्नन्त धातु सेट ही होते हैं। इनके अन्त में सदा ‘अ’ ही होता है। __ अतो लोपः (६.४.४८) - धातुओं के अन्त में आने वाले ‘अ’ का लोप होता है, कोई भी आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। यथा - जिगमिष + इ + तमन / ‘अ’ का लोप करके - जिगमिष + इ + तम् = जिगमिषितुम्, जिगमिषितव्यम्, जिगमिषिता । गारे सन्नन्त धातुओं में तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्यय इसी प्रकार लगाइये। यङन्त धातु - ध्यान रहे कि अनेकाच् होने के कारण सारे यङन्त धातु सेट ही होते हैं। इनके अन्त में सदा ‘य’ ही होता है। यदि यङन्त धातु के ‘य’ के ठीक पहिले अच् हो - तब आप ‘य’ के अन्त में रहने वाल ‘अ’ का ‘अतो लोपः’ सूत्र से लोप करके उसमें इडागम सहित तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्यय लगाइये। __ यथा - नेनीय + इ + तुम् / अतो लोपः से धातु के अन्तिम अ का लोप करके - नेनीय् + इ + तुम् - नेनीयितुम्, ने नीयितव्यम्, नेनीयिता / इसी प्रकार - लोलूय के अ का लोप करके - लोलूयितुम् लोलूयितव्यम् लोलूयिता बोभूय के अ का लोप करके - बोभूयितुम् बोभूयितव्यम् बोभूयिता चेक्रीय के अ का लोप करके - चेक्रीयितुम् चेक्रीयितव्यम् चेक्रीयिता यदि यङन्त धातु के ‘य’ के ठीक पहिले हल हो - तब आप अतो लोपः सूत्र से ‘अ’ का लोप करके ‘यस्य हलः’ सूत्र से ‘य’ का भी लोप करें। यथा - बाभ्रश्य + इ + तुम् - अतो लोपः सूत्र से ‘अ’ का लोप करके और ‘यस्य हलः’ सूत्र से ‘य’ का भी लोप करके - बाभ्रश् + इ + तुम् = बाभ्रशितुम्, बाभ्रशितव्य, बाभ्रशिता। इसी प्रकार - नेनिज्य से य का लोप करके - नेनिजितुम् नेनिजितव्यम् नेनिजिता २०५ तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, आर्धधातुक कृत् प्रत्यय वेविध्य से य का लोप करके - वेविधितुम् वेविधितव्यम् वेविधिता मोमुद्य से य का लोप करके - मोमुदितुम् मोमुदितव्यम् मोमुदिता यङ्लुगन्त धातु - यङ्लुगन्त धातुओं में प्रत्यय ठीक वैसे ही लगाइये, जैसे कि हमने प्रत्ययरहित धातुओं से लगाये हैं। क्यच, क्यङ्, क्यष् प्रत्ययान्त धातु क्यस्य विभाषा (६.४.५०) - हल् से उत्तर जो क्यच्, क्यङ्, क्यष् प्रत्यय, उनका विकल्प से लोप होता है, आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। समिध्य + तुमुन् = समिध् + इ + तुम् = समिधितुम् समिधितव्यम् समिधिता समिध्य + तुमुन् = समिध् + इ + तुम् = समिध्यितुम् समिध्यितव्यम् समिध्यिता इस प्रकार समस्त धातुओं में तुमुन्, तव्य, तृच् प्रत्यय लगाने की विधि पूर्ण हुई।