हम जानते हैं कि धातु से लगने वाले जिन प्रत्ययों की सार्वधातुक संज्ञा नहीं होती है, उन प्रत्ययों की ‘आर्धधातुकं शेषः’ सूत्र से आर्धधातुक संज्ञा होती है। कभी कभी इन आर्धधातुक प्रत्ययों के पहिले आकर एक इट् बैठ जाता है। इस इट के बैठने को ही इडागम होना कहते हैं। जैसे - पठ् + तव्य - पठ् + इ + तव्य = पठितव्य / पठ् + तुमुन् - पठ् + इ + तुम् = पठितुम् / पठ् + ता - पठ् + इ + ता = पठिता, आदि। जिन प्रत्ययों को यह इडागम होता है, वे प्रत्यय इट के सहित होने के कारण सेट् प्रत्यय कहलाते हैं । इडागम के लिये धातु तथा प्रत्यय दोनों का विचार करना चाहिये। प्रत्यय की दृष्टि से इडागम का विचार - आर्धधातुकस्येड् वलादेः (७.२.३५) - जो आर्धधातुक प्रत्यय वल् प्रत्याहार से प्रारम्भ होते हैं, ऐसे वलादि आर्धधातुक प्रत्ययों को इट् का आगम होता है। नेड् वशि कृति (७.२.८) - वलादि आर्धधातुक प्रत्ययों में से भी, जो वशादि कृत् आर्धधातुक प्रत्यय होते हैं, उन्हें इडागम नहीं होता है। तितुत्रतथसिसुसरकसेषु च (७.२.९)- वलादि होने के बाद भी ति, तु, त्र, त, थ, सि, सु, सर, क, स, इन दस आर्धधातुक प्रत्ययों को इडागम नहीं होता है। जिन प्रत्ययों को यह इडागम नहीं होता है, वे प्रत्यय इट् से रहित होने के कारण अनिट प्रत्यय कहलाते हैं। यथा - ‘पठनीय’ को देखिये। पठ + अनीय के बीच में इट नहीं बैठा है। पाठ्य को देखिये। पठ् + ण्यत् के बीच में भी इट् नहीं बैठा है। इसी प्रकार - ईश् + वरच् = ईश्वरः । दीप् + वरच् = दीप्रः, आदि। अतः ये ण्यत्, अनीयर्, वरच्, र, आदि अनिट् प्रत्यय हैं। । अब धातु की दृष्टि से इडागम का विचार कीजिये - ‘कर्तव्य’ को देखिये । यहाँ शङ्का होती है कि - कृ + तव्य = कर्तव्य में, तव्य प्रत्यय को इडागम नहीं हुआ है किन्तु पठ् + इ + तव्य = पठितव्य में, उसी तव्य प्रत्यय को इडागम हुआ है। ऐसा इसलिये कि ‘कृ’ धातु अनिट् है और पल् धातु सेट है। जिन धातुओं से लगने वाले सेट् प्रत्ययों को भी, यह इडागम नहीं होता है, वे धातु अनिट् धातु कहलाते हैं । जिन धातुओं से लगने वाले सेट् प्रत्ययों को इडागम इडागमा १६५ होता है, वे धातु सेट् धातु कहलाते हैं। इस प्रकार हमने जाना कि - १. पठ् + इट् + तव्य = पठितव्य में, इडागम इसलिये होता है कि पठ् धातु भी सेट है, तव्य प्रत्यय भी सेट है। २. कृ + तव्य = कर्तव्य में, इडागम इसलिये नहीं होता है कि तव्य प्रत्यय तो सेट् है, किन्तु कृ धातु अनिट् है। ३. पठ् + अनीय = पठनीय में, इडागम इसलिये नहीं होता है कि पठ् धातु तो सेट है, किन्तु अनीय प्रत्यय अनिट् है। ४. गम् + अनीय = गमनीय में, इडागम इसलिये नहीं होता है कि गम् धातु भी अनिट् है, अनीय प्रत्यय भी अनिट् है। अतः हमने अब जाना, कि कुछ धातु सेट होते हैं, कुछ धातु अनिट् होते हैं। इसी प्रकार कुछ प्रत्यय सेट होते हैं, कुछ प्रत्यय अनिट् होते हैं। जब सेट् धातु से सेट् आर्धधातुक प्रत्यय लगता है, तभी उस आर्धधातुक प्रत्यय को ‘आर्धधातुकस्येड् वलाः’ सूत्र से इडागम होता है। इस प्रकार आर्धधातुक प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं - सेट तथा अनिट् । धातु भी दो प्रकार के होते हैं - सेट तथा अनिट् । किसी भी आर्धधातुक प्रत्यय लगाने के लिये दोनों की अलग अलग पहिचान अत्यावश्यक है। भगवान् पाणिनि ने, सेट्-अनिट् धातु और सेट-अनिट् प्रत्यय पहिचानने का विज्ञान अष्टाध्यायी में ‘नेड्वशि कृति’ सूत्र ७.२.८ से ‘ईडजनोचे च’ ७.२.७८ तक के सूत्रों में बतलाया है। वस्तुतः लाघव (संक्षेप) ही अष्टाध्यायी का प्राण होने के कारण यह व्यवस्था इसमें एक साथ मिली सी लगती है। अतः हमने इस अध्याय में उन्हें पृथक् पृथक् कर दिया है, ताकि आप सेट, अनिट् धातुओं तथा सेट, अनिट् प्रत्ययों को अलग अलग पहिचान सकें।
सेट, अनिट् आर्धधातुक प्रत्यय
कुल ३० आर्धधातुक प्रत्यय ही सेट हैं। अतः केवल इन्हीं के परे होने पर इडागम का विचार करना चाहिये। ये इस प्रकार हैं - लिट् लकार के सात प्रत्यय - थल् (थ) व, म, से, ध्वे, वहे, महे = ७ । १६६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ चौदह तकारादि प्रत्यय - क्त, क्तवतु, क्त्वा, तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, तास्, तवै, तवेन्, तोसुन्, त्वन्, तवेङ् = १४ । आठ सकारादि प्रत्यय - सिच्, सीयुट, सन्, स्य, से, से, सेन्, सिप् = ८। एक वकारादि प्रत्यय - क्वसु = १। इस प्रकार कुल ३० प्रत्यय सेट हैं। इनके अलावा सारे आर्धधातुक प्रत्यय अनिट् हैं। इन सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों में से केवल क्त, क्तवतु, क्त्वा, तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच, तृन्, क्वसु, इन नौ प्रत्ययों का विचार ही इस ग्रन्थ में किया जायेगा, क्योंकि शेष का विचार ‘अष्टाध्यायी सहज बोध’ के द्वितीय खण्ड में किया जा चुका है। साथ ही ‘आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था’ नामक ग्रन्थ में तीसों आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था का विचार विस्तार से किया जा चुका है।
सेट् अनिट्
धातु विशेष - चुरादिगण के सारे धातु णिच् प्रत्यय लगने से अनेकाच् हो जाते हैं। यथा - चुर् + णिच् = चोरि । ध्यान रहे कि अनेकाच् धातु सेट् ही होते हैं। अतः चुरादिगण के सारे धातु सेट् ही हैं। इसलिये यह सेट, अनिट् का विचार केवल भ्वादि से क्र्यादिगण के धातुओं के लिये ही है। एकाच उपदेशेऽनुदात्तात् (७.२.१०) - उपदेशावस्था में जो धातु एकाच भी हों तथा अनुदात्त भी हों, वे अनिट होते हैं। ऐसे अनिट धातओं से परे आने वाले इन ३० सेट् प्रत्ययों को भी इडागम नहीं होता। स्पष्ट है कि एकाच् धातु, केवल एकाच होने से अनिट् नहीं हो जाते हैं अपितु एकाच होने के साथ साथ जब वे अनुदात्त भी होते हैं तभी वे अनिट् कहलाते हैं। जैसे - ‘पच्’ यह एकाच अनुदात्त धातु है, अतः अनिट् है। किन्तु पठ् धातु एकाच तो है, पर अनुदात्त न होकर उदात्त है, इसलिये यह सेट है। एकाच तो हम देखकर पहिचान लेंगे, किन्तु अनुदात्त धातुओं को हम कैसे पहिचानें ? इन अनुदात्त धातुओं को रटने के सिवा और कोई विधि नहीं है।
- उपदेशावस्था में जो धातु एकाच् तथा अनुदात्त हैं, उन्हें हम, उनके अन्तिम वर्ण को वर्णमाला के क्रम से रखकर, दे रहे हैं। इन्हें याद करके ही आप जान सकेंगे कि एकाच् धातुओं में से कौन से धातु सेट हैं और कौन से अनिट् । __ हम इन अनिट् धातुओं में तृच् = ता’ प्रत्यय को लगाकर, उदाहरण देते हुए इडागम १६७ धातुओं का सेट् अनिट् विभाग बतला रहे हैं - _एकाच अजन्त धातुओं में से, सेट् तथा अनिट् धातुओं को पहिचानने की विधि १. एकाच आकारान्त धातु - सारे एकाच आकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। जैसे - पा + ता = पाता। दा + ता = दाता। घ्रा + ता = घ्राता। २. एकाच ह्रस्व इकारान्त धातु - इनमें शिव, श्रि धातु सेट होते हैं। अतः इडागम करके इनके रूप बनेंगे - श्रि + इ + ता = श्रयिता / शिव + इ + ता = श्वयिता। श्वि, श्रि को छोड़कर, शेष सारे एकाच ह्रस्व इकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। जैसे - जि + ता = जेता। चि + ता = चेता। ३. एकाच दीर्घ ईकारान्त धातु - इनमें शीङ्, डीङ् धातु सेट होते हैं। अतः इडागम करके इनके रूप बनेंगे - शी + इ + ता = शयिता / डी + इ + ता = डयिता। इन दो को छोड़कर, शेष सारे एकाच् दीर्घ ईकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। जैसे - नी + ता = नेता। क्री + ता = क्रेता। ४. एकाच् ह्रस्व उकारान्त धातु - इनमें स्नु, नु, क्षु, यु, रु, क्ष्णु ये छह उकारान्त धातु सेट होते हैं। इन्हें इडागम होकर रूप बनेंगे - स्नु + इ + ता - स्नविता / नु + इ + ता - नविता / क्षु + इ + ता - क्षविता / यु + इ + ता - यविता / रु + इ + ता - रविता / क्ष्णु + इ + ता - क्ष्णविता। इन ६ धातुओं को छोड़कर, शेष सारे एकाच ह्रस्व उकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। जैसे - हु + ता = होता। द्रु + ता = द्रोता। ५. एकाच् दीर्घ ऊकारान्त धातु - इनमें सू, धू, वेट होते हैं। सोता, सविता / धोता, धविता। शेष सारे एकाच् ऊकारान्त धातु सेट ही होते हैं। जैसे - भू + इ + ता = भविता / पू + इ + ता = पविता।। ६. एकाच ह्रस्व ऋकारान्त धातु - इनमें वृङ्, वृञ् धातु सेट होते हैं - वृ + इ + ता - वरिता आदि। स्वृ धातु वेट होता है - स्वृ + इ + ता - स्वरिता / स्वृ + ता - स्वर्ता आदि। शेष सारे एकाच् ह्रस्व ऋकारान्त धातु अनिट् होते हैं। जैसे - कृ + ता = कर्ता। हृ + ता = हर्ता। ७. एकाच दीर्घ ऋकारान्त धातु - ये सभी सेट होते हैं। जैसे - तृ + इ + ता = तरिता। १६८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ ८. एजन्त धातु - जिनके अन्त में ए, ओ, ऐ, औ, हों, उन्हें एजन्त धातु कहते हैं। ये धातु आर्धधातुक प्रत्यय परे रहने पर आदेच उपदेशेऽशिति सूत्र से आकारान्त बन जाते हैं। आकारान्त धातुओं के समान ये सब भी अनिट् ही होते हैं। जैसे - गै + ता = गाता / धे + ता = धाता आदि। यह एकाच् अजन्त धातुओं में से सेट तथा अनिट् धातुओं को अलग अलग पहिचानने की विधि पूर्ण हुई। अब एकाच् हलन्त धातुओं में से सेट तथा अनिट् धातुओं को कैसे अलग - अलग पहिचाना जाये, यह विधि बतला रहे हैं। एकाच हलन्त धातुओं में से, सेट् तथा अनिट् धातुओं को पहिचानने की विधि अब नीचे अन्तिम वर्ण के वर्णमालाक्रम से १०२ हलन्त एकाच धातु दिये जा रहे हैं। ये सब एकाच तथा अनुदात्त होने के कारण अनिट् हैं। इनके अतिरिक्त जो भी एकाच हलन्त धातु आप पाएँगे, वे सब सेट ही होंगे, यह जानना चाहिए। १. एकाच् ककारान्त धातुओं में - शक्, यह १ धातु ही अनिट् होता है। शक् + ता = शक्ता। शेष सारे ककारान्त धातु सेट होते हैं। __२. एकाच् चकारान्त धातुओं में - पच्, मुच्, रिच, वच्, विच्, सिच्, ये ६ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - पच् + ता = पक्ता / मुच् + ता = मोक्ता / रिच् + ता = रेक्ता / वच् + ता = वक्ता / विच् + ता = वेक्ता / सिच् + ता = सेक्ता। शेष सारे चकारान्त धातु सेट होते हैं। __३. एकाच् छकारान्त धातुओं में - प्रच्छ, यह १ धातु अनिट् होता है। जैसे - प्रच्छ् + ता = प्रष्टा / शेष सारे छकारान्त धातु सेट होते हैं। ४. एकाच्जकारान्त धातुओं में - त्यज्, निजिर्, भज्, भ, भुज्, भ्रस्ज्, मस्ज्, यज्, युज्, रुज्, रज्, विजिर् (जुहोत्यादि), स्वफ़, सञ्, सृज् - ये १५ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - त्यज् + ता = त्यक्ता / निज् + ता = नेक्ता / भज् + ता = भक्ता / भज् + ता = भक्ता / भुज् + ता = भोक्ता / भ्रस्ज् + ता = भ्रष्टा / मस्ज् + ता = मङ्क्ता / यज् + ता = यष्टा / युज् + ता = योक्ता / रुज् + ता = रोक्ता / र + ता = रङ्क्ता / विज् + ता = वेक्ता / स्व + ता = स्वङ्क्ता / सञ् + ता = सङ्क्ता / सृज् + ता = स्रष्टा। शेष सभी जकारान्त धातु सेट होते हैं। ५. एकाच् दकारान्त धातुओं में - अद्, क्षुद्, खिद् (तीनों), छिद्, तुद्, नुद्, इडागम १६९ पद् (दिवादिगण), भिद्, विद् (दिवादिगण), विद् (रुधादिगण), शद्, सद्, स्विद्, स्कन्द, और हद् ये १५ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - अद् + ता = अत्ता / क्षुद् + ता = क्षोत्ता / खिद + ता = खेत्ता / छिद् + ता = छेत्ता / तुद् + ता = तोत्ता / नुद् + ता = नोत्ता / पद् + ता = पत्ता / भिद् + ता = भेत्ता / विद् + ता = वेत्ता / विद् + ता = वेत्ता / शद् + ता = शत्ता / सद् + ता = सत्ता / स्विद् + ता = स्वेत्ता / स्कन्द् + ता = स्कन्ता / हद् + ता = हत्ता। शेष सभी दकारान्त धातु सेट होते हैं। विशेष - विद् धातु चार हैं। इनमें से दिवादि तथा रुधादिगण के विद् धातु अनिट् होते हैं और अदादिगण तथा तुदादिगण के विद् धातु सेट होते हैं। ६. एकाच धकारान्त धातुओं में - क्रुध्, क्षुध्, बुध् (दिवादिगण), बन्ध्, युध [, रुध्, राध्, व्यध्, साध्, शुध्, सिध् ( दिवादिगण) ये ११ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - क्रुध् + ता = क्रोद्धा / क्षुध् + ता = क्षोद्धा / बुध् + ता = बोद्धा / बन्ध् + ता = बन्द्धा / युध् + ता = योद्धा / रुध् + ता = रोद्धा / राध् + ता = राधा / व्यध् + ता = व्यद्धा / साध् + ता = साद्धा / शुध् + ता = शोद्धा / सिध् + ता = सेद्धा। शेष सभी धकारान्त धातु सेट होते हैं। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि बुध् धातु दो हैं। इनमें से भ्वादिगण का बुध् धातु सेट है। इससे इडागम होकर बोधिता बनता है। दिवादिगण का बुध् धातु अनिट् है। इससे इडागम न होकर बोद्धा बनता है। ७. एकाच नकारान्त धातुओं में - मन् ( दिवादिगण) तथा हन्, ये २ धातु अनिट् होते हैं। मन् + ता = मन्ता / हन् + ता = हन्ता। शेष सारे नकारान्त धातु सेट होते हैं। ८. एकाच पकारान्त धातुओं में - आप्, छुप्, क्षिप्, तप, तिप, तृप् (दिवादिगण), दृप् (दिवादिगण), लिप्, लुप्, वप्, शप, स्वप्, सृप, ये १३ धातु अनिट् होते हैं, जैसे - आप् + ता = आप्ता / छुप् + ता = छोप्ता / क्षिप् + ता = क्षेप्ता / तप् + ता = तप्ता / तिप् + ता = तेप्ता / तृप् + ता = तप्त / दृप् + ता = दर्ता / लिप् + ता = लेप्ता / लुप् + ता = लोप्ता / वप् + ता = वप्ता / शप् + ता = शप्ता / स्वप् + ता = स्वप्ता / सृप् + ता = सप्र्ता। शेष सारे पकारान्त धातु सेट होते हैं। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि तृप् धातु तीन हैं। इनमें से स्वादिगण तथा तुदादिगण के तृप् धातु सेट होते हैं । इनसे इडागम होकर तर्पिता बनता है। दिवादिगण १७० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ का तृप् धातु वेट होता है। इससे इडागम होने पर तर्पिता बनता है तथा इडागम न होने पर त्रप्ता / तप्त रूप बनते हैं। ९. एकाच भकारान्त धातुओं में - यभ्, रभ, लभ, ये ३ धातु अनिट् होते हैं। यभ् + ता = यब्धा / रभ् + ता = रब्धा / लभ् + ता = लब्धा। शेष सारे भकारान्त धातु सेट होते हैं। १०. एकाच मकारान्त धातुओं में - गम्, नम्, यम्, रम्, ये ४ धातु अनिट होते हैं। गम् + ता = गन्ता / नम् + ता = नन्ता / यम् + ता = यन्ता / रम् + ता = रन्ता। शेष सारे मकारान्त धातु सेट होते हैं। ११. एकाच् शकारान्त धातुओं में - क्रुश्, दंश्, दिश्, दृश्, मृश्, रिश्, रुश्, लिश्, विश्, स्पृश्, ये १० धातु अनिट् होते हैं। जैसे - क्रुश् + ता = क्रोष्टा / दंश् + ता = दंष्टा / दिश् + ता = देष्टा / दृश् + ता = द्रष्टा / मृश् + ता = म्रष्टा / रिश् + ता = रेष्टा / रुश् + ता = रोष्टा / लिश् + ता = लेष्टा / विश् + ता = वेष्टा / स्पृश् + ता = स्प्रष्टा। शेष सारे शकारान्त धातु सेट होते हैं। १२. एकाच षकारान्त धातुओं में - कृष्, त्विष्, तुष्, द्विष्, दुष्, पुष् (दिवादि गण), पिष्, विष्, शिष्, शुष्, श्लिष् (दिवादिगण), ये ११ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - कृष् + ता = कष्र्टा / त्विष् + ता = त्वेष्टा / तुष् + ता = तोष्टा / द्विष् + ता = द्वेष्टा / दुष् + ता = दोष्टा / पुष् + ता = पोष्टा / पिष् + ता = पेष्टा / विष् + ता = वेष्टा / शिष् + ता = शेष्टा / शुष् + ता = शोष्टा / श्लिष् + ता = श्लेष्टा। शेष षकारान्त धातु सेट होते हैं। १३. एकाच सकारान्त धातुओं में - वस्, घस्, ये २ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - वस् + ता = वस्ता / घस् + ता = घस्ता। शेष सारे सकारान्त धातु सेट होते हैं। १४. एकाच हकारान्त धातुओं में - दह, दिह, दुह, नह, मिह, रुह्, लिह, वह, ये ८ धातु अनिट् होते हैं। दह् + ता = दग्धा / दिह् + ता = देग्धा / दुह् + ता = दोग्धा सेट, अनिट् के अलावा कुछ धातु वेट भी होते हैं, जिनसे परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को भी विकल्प से इट् का आगम होता है। ये इस प्रकार हैं - वेट हलन्त धातु स्वरतिसूतिसूयतिधूनूदितो वा (७.२.४४) - स्वृ धातु, अदादिगण का सू धातु, इडागम १७१ दिवादिगण का सू धातु, स्वादि तथा क्र्यादिगण का धूञ् धातु तथा सारे ऊदित् धातुओं से परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। ऊदित् धातु - ‘ऊदित्’ का अर्थ होता है, ऐसे धातु जिनमें ऊ’ की इत् संज्ञा हुई हो। धातुपाठ में पढ़े गये सारे ‘ऊदित् धातु’ इस प्रकार हैं - अक्षू तस् त्वक्षु गृहू मृजू अशू वृहू तृन्हू . क्षमू क्लिदू अजू क्लिशू षिधू । त्रपूष् क्षमूष् गाहू गुहू स्यन्दू कृपू गुपू ओव्रश्चू तृहू स्तुहू तञ्चू। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि स्वादि, क्र्यादि तथा चुरादिगण में धूञ् कम्पने धातु हैं। तुदादिगण में धू विधूनने धातु है। इनमें से स्वादिगण तथा क्र्यादिगण के धूञ् कम्पने धातु ही वेट होते हैं। इनसे परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है - धोता / धविता। तुदादिगण का धू विधूनने धातु तथा चुरादिगण का धूञ् कम्पने धातु सेट होता है। इनसे परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों को नित्य इडागम होता है - धविता। रधादिभ्यश्च (७.२.४५) - रध्, नश्, तृप, दृप्, द्रुह, मुह, स्निह, स्नुह, ये ८ धातु वेट होते हैं। ये आठों धातु दिवादिगण के हैं। इन आठों धातुओं से परे आने वाले सेट् प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। रध् + ता - रद्धा, रधिता नश् + ता - नंष्टा, नशिता तृप् + ता - ता, तर्पिता दृप् + ता - दर्ता, दर्पिता द्रुह् + ता - द्रोग्धा, द्रोढा, द्रोहिता मुह् + ता - मोग्धा, मोढा, मोहिता स्नुह् + ता - स्नोग्धा, स्नोढा, स्नोहिता स्निह् + ता - स्नेग्धा, स्नेढा, स्नेहिता निरः कुषः (७.२.४६) - निर् + कुष् धातु से परे आने वाले सेट् प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। निर् + कुष् निष्कोष्टा, निष्कोषिता . इस प्रकार ये ३६ धात वेट हैं। इन ३६ वेट धातुओं से परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। विशेष- जहाँ एक आकति के अनेक धातु हैं, वहाँ हमने स्पष्ट निर्देश करके कोष्ठक में उस गण का नाम लिख दिया है, जिस गण का धातु अनिट् होता है। इससे यह जानना चाहिये कि जिसका नाम नहीं लिखा है, वह सेट् ही है। सेट् हलन्त धातु इन अनिट् और वेट धातुओं के अलावा जितने भी हलन्त धातु बचे, वे सब
१७२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ के सब सेट ही हैं, यह जानना चाहिये। ये ३० सेट् आर्धधातुक प्रत्यय जब किसी सेट् धातु से लगेंगे तब इन प्रत्ययों को नित्य इडागम होगा। जब ये किसी वेट् धातु से लगेंगे तब इन्हें विकल्प से इडागम होगा और जब ये ३० प्रत्यय जब किसी अनिट् धातु से लगेंगे तब इन्हें इडागम नहीं होगा। यह सेट, अनिट् तथा वेट् धातुओं को पहिचानने की तथा सेट् अनिट् प्रत्ययों को पहिचानने की औत्सर्गिक अर्थात् सामान्य व्यवस्था है। इसे कण्ठस्थ कर लीजिये।
- विशेष - ध्यान रहे कि ये अनिट् धातु भी यदि किसी प्रत्यय के लग जाने से अनेकाच् बन जाते हैं, तब वे अनेकाच् होते ही सेट हो जाते हैं। जैसे - पा धातु अनिट है, किन्तु सन् प्रत्यय के लगने से यह ‘पिपास’ बन जाता है। देखिये कि अब इसमें तीन अच् हैं। अतः अब यह सेट है।
तृच्, तृन् प्रत्ययों के लिये विशेष इडागम व्यवस्था
ग्रसितस्कभितस्तभितोत्तभितचत्तविकस्ताविशस्तृशंस्तृशास्तृतरुतृतरूतृ वरुतृवरूतृवरूत्रीरुज्ज्वलितिक्षरितिवमित्यमितीति च - इन धातुओं से तृच् प्रत्यय परे होने पर लोक तथा वेद में अलग अलग प्रकार से इडागम व्यवस्था है। अतः इनके लोक तथा वेद में बनने वाले रूप अलग अलग बतलाये जा रहे हैं। लोक में इडागम होकर वेद में इडागम न होकर वि + शस् विशसिता विशस्ता शंस्
- शंसिता शंस्ता प्र + शास् प्रशासिता प्रशास्ता - तरिता / तरीता तरुता / तरूता
- वरिता / वरीता वरुता / वरूता, वरूत्री (स्त्रीलिङ्ग)
तुमुन्, तव्य, तव्यत् प्रत्ययों के लिये विशेष इडागम व्यवस्था
तीषसहलुभरुषरिषः (७.२.४८)- तुदादिगण के इष इच्छायाम् धातु, सह, लुभ्, धातु, चुरादिगण के रुष रोषे धातु, भ्वादि तथा दिवादि गण के रुष्, रिष् हिंसायाम् धातु, इन धातुओं से परे आने वाले सेट तकारादि आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है । अतः इष्, सह्, लुभ्, रुष्, रिष् धातुओं से परे आने वाले, तुमुन्, तव्य, तृच्, प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होगा। इष् - एष्टव्य, एषितव्य सह - सहितव्य, सोढव्य लुभ - लोब्धव्य, लोभितव्य रुष् - रोष्टव्य, रोषितव्य रिष् - रेष्टव्य, रेषितव्य।धात्वादेश तथा अतिदेश १७३ जब भी तृच् तृन्, तुमृन् तव्य, तव्यत् प्रत्यय लगाकर कोई भी शब्द आप बनायें तब औत्सर्गिक इडागम व्यवस्था के साथ इन अपवादों को देखकर ही कार्य प्रारम्भ करें।