६६ घुरच् प्रत्यय

घुरच् प्रत्यय में ‘हलन्त्यम्’ सूत्र से च की तथा लशक्वतद्धिते’ सूत्र से घ् की इत्संज्ञा होकर उर शेष बचता है। ध्यान रहे कि यह प्रत्यय भी घित् है। भास् + घुरच् - भास् + उर = भासुरः । मिद् + घुरच् - मिद् + उर - ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा को गुण होकर = मेदुरः। प्रत्यय के घित् होने का फल - चजोः कु घिण्ण्यतोः - (७.३.५२) - चकारान्त और जकारान्त धातुओं को कुत्व होता है, घित् तथा ण्यत् प्रत्यय परे होने पर। (ध्यान रहे कि च चवर्ग का पहिला अक्षर है अतः उसके स्थान पर कवर्ग का पहिला अक्षर क् ही होगा। ज् चवर्ग का तीसरा अक्षर है अतः उसके स्थान पर कवर्ग का तीसरा अक्षर ज् ही होगा।) भञ्ज् + घुरच् / भञ्ज् + उर / भग् + उर = भगुरः । कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १५१