खल् प्रत्यय में हलन्त्यम्’ सूत्र से ल् की तथा ‘लशक्वतद्धिते’ सूत्र से ख की इत्संज्ञा होकर अ शेष बचता है। यह प्रत्यय भी कित्, डित्, जित्, णित् से भिन्न है। कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १४७ ईषद् उपपद में होने पर धातुओं से खल लगाकर - ईषद् + कृ + खल् / पूर्ववत् समासादि करके, ऋ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से अर् गुण करके, ईषत्करः । इसी प्रकार - ईषद् + भुज् + खल् / ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के लघु उ को गुण करके - ईषद्भोजः। दुस् उपपद में होने पर धातुओं से खल् लगाकर - दुः + कृ + खल् / ऋ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से अर् गुण करके - दुः + कर् + अ - __ इदुदुपधस्य चाप्रत्ययस्य (८.३.४१) - इकारोपध, उकारोपध प्रत्ययभिन्न जो विसर्ग, उसे षकारादेश होता है, कवर्ग पवर्ग परे होने पर। इस सूत्र से विसर्ग को षत्व करके - दुष् + कर - दुष्करः। दुस् + भुज् + खल् / ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के लघु उ को गुण करके - दुस् + भोज् + अ / स् को ‘ससजुषो रुः’ से रुत्व करके - दुर्भोजः। सु उपपद में होने पर धातुओं से खल् लगाकर - सु + कृ + खल् / ऋ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से अर् गुण करके, सुकरः । इसी प्रकार - सु + भुज् + खल् / ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के लघु उ को गुण करके - सुभोजः। ध्यान दें कि ईषद् शब्द अजन्त नहीं है और दुस्, सु अव्यय हैं, अतः इन्हें अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम् सूत्र से मुम् का आगम नहीं हुआ है। किन्तु आढ्य शब्द अजन्त अनव्यय है अतः इसके बाद खिदन्त आने पर मुम् का आगम होगा - ईषद् + आढ्य + ङस् + भू + खल् / उपपदमतिङ्’ सूत्र से समास करके, ‘कृत्तद्धितसमासाश्च’ से प्रातिपदिक संज्ञा करके ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लुक् करके - ईषद् + आढ्य + भू + अ / ख की इत् संज्ञा होने के कारण ‘अरुर्विषदजन्तस्य मुम्’ से मुम् का आगम करके - ईषद् + आढ्य + मुम् + भू + अ / ऊ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके, अवादेश करके तथा शेष कार्य पूर्ववत् करके - ईषदाढ्यंभवम्। इसी प्रकार दुर् से दुराढ्यंभवम् और सु से स्वाढ्यंभवम् बनाइये। ईषद् + आढ्य + ङस् + कृ + खल् / ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से अम् का लुक् करके - ईषद् + आढ्य + कृ + अ - ख् की इत् संज्ञा होने के कारण ‘अरुर्दिषदजन्तस्य मुम्’ से मुम् का आगम करके१४८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३
- ईषद् + आढ्य + मुम् + कृ + अ / ऋ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके, तथा शेष कार्य पूर्ववत् करके - ईषदाढ्यंकरः। इसी प्रकार दुर् से दुराढ्यंकरः और सु से स्वाढ्यंकरः बनाइये।