५९ खिष्णुच् प्रत्यय

‘हलन्त्यम्’ सूत्र से च की तथा ‘लशक्वतद्धिते’ सूत्र से ख की इत्संज्ञा होकर इष्णु शेष बचता है। यह प्रत्यय भी कित्, डित्, जित्, णित् से भिन्न है। अनाढ्य आढ्यो भवति इति आढ्यंभविष्णुः - आढ्य + ङस् + भू + खिष्णुच् / उपपदमतिङ्’ सूत्र से समास करके, कृत्तद्धितसमासाश्च से प्रातिपदिक संज्ञा करके ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लुक् करके - आढ्य + भू + इष्णु / ख् की इत् संज्ञा होने के कारण अरुद्धिषदजन्तस्य मुम् से मुम् का आगम करके - आढ्य + मुम् + भू+ इष्णु / ऊ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके, अवादेश करके तथा शेष कार्य पूर्ववत् करके - आढ्यंभविष्णुः ।