खच् प्रत्यय में हलन्त्यम्’ सूत्र से च की तथा लशक्वतद्धिते’ सूत्र से ख की इत् संज्ञा करके तस्य लोपः सूत्र से उनका लोप करके अ शेष बचता है। ख की इत् संज्ञा होने के कारण यह प्रत्यय खित् है। प्रियंवदः - प्रियं वदति इति प्रियंवदः / प्रिय + डस् + वद् + खच् / उपपदमतिङ्’ सूत्र से समास करके, ‘कृत्तद्धितसमासाश्च’ से प्रातिपदिक संज्ञा करके ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लुक् करके - प्रिय + वद् + अ / प्रत्यय के खित् होने का फल - अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम् (६.३.६७) - अरुष्, द्विषत् और अजन्त अनव्यय शब्दों को मुम् (म्) का आगम होता है, खिदन्त परे होने पर। इस सूत्र से मुम् का आगम करके - प्रिय + मुम् + वद् + अ / मुम् में उ और म् की इत् संज्ञा करके - प्रिय + म् + वद् + अ / ‘मोऽनुस्वारः’ से म् को अनुस्वार करके तथा प्रियंवद / प्रियंवद + सु = प्रियंवदः । इसी प्रकार वशंवदः, सर्वंसहः । सर्वंकषः, अभ्रंकषः, कूलंकषा, करीषंकषा, आदि में ‘वा पदान्तस्य’ से विकल्प १४४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ से अनुस्वार को परसवर्ण करके - सर्वकषः, अभ्रकषः, कूलकषा, करीषकषा भी बनाइये।
- विश्वंभरः - विश्वं भरति इति विश्वंभरः, इसमें - विश्व + ङस् + भृ + खच् / उपपदमतिङ्’ सूत्र से समास करके, ‘कृत्तद्धितसमासाश्च’ से प्रातिपदिक संज्ञा करके ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लुक् करके - ऋको सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके तथा शेष मुमागमादि कार्य पूर्ववत् करके - विश्वंभरः। इसी प्रकार - कृ धातु से प्रियंकरः, क्षेमंकरः, भयंकरः, अभयंकरः, मेघंकरः, ऋतिंकरः, मद्रंकरः, आदि / वृ धातु से पतिंवरा कन्या, तृ से रथन्तरं साम आदि बनाइये। __इसी प्रकार भू धातु से - आशित + ङस् + भू+ खच् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके तथा शेष कार्य पूर्ववत् करके - आशितंभवम्, आशितंभवः आदि। ‘शत्रु + ङस् + जि + खच् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके तथा शेष कार्य पूर्ववत् करके - शत्रुजयः। दम् से अरिन्दमः, तप् से शत्रुतपः, गम् से मितंगमः आदि बनाइये। पुरन्दरः - पुरं दारयति इति पुरन्दरः - पुर् + ङस् + दृ + णिच् + खच् / उपपदमतिङ’ सत्र से समास करके कत्तद्धितसमासाश्च’ से प्रातिपदिक संज्ञा करके ‘सपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लुक् करके - पुर् + दृ + णिच् + खच् / ख्, च् की इत् संज्ञा करके तथा ‘अचो णिति’ सूत्र से ऋ को वृद्धि करके - पुर् + अम् + दार् + णिच् + अ - ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से डस् का लुक् करके - पुर् + दार् + णिच् + अ / अब देखिये कि पुर् शब्द अजन्त नहीं है, अतः इसे ‘अरुषिदजन्तस्य मुम्’ सूत्र से मुमागम नहीं हो सकता। इसलिये यहाँ वाचंयमपुरन्दरौ सूत्र से पुर् को अमन्त निपातन करके - पुरम् + दार + णिच् + अ - __खचि ह्रस्वः (६.४.९४) - खच्परक णिच् परे होने पर अङ्ग की उपधा को ह्रस्व होता है। पुरम् + दर् + णिच् + अ / णेरनिटि से णिच् का लोप करके - पुरं + दर् + अ = पुरन्दरः। द्विषन्तपः - द्विषत् + ङस् + तप् + णिच् + खच् / अनुबन्धकार्य करके, उपपदमतिङ्’ सूत्र से समास करके, कृत्तद्धितसमासाश्च’ सूत्र से प्रातिपदिक संज्ञा करके ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लुक् करके, अत उपधायाः’ सूत्र से उपधा कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १४५ के अ को वृद्धि करके - द्विषत् + ताप् + इ + अ / ‘खचि ह्रस्वः’ सूत्र से ताप् की उपधा को ह्रस्व करके - __द्विषत् + तप् + इ + अ / ‘अरुर्दिषदजन्तस्य मुम्’ से मुम् का आगम करके - (ध्यान दें कि मुम् मित् है अतः यह ‘मिदचोऽन्त्यात्परः’ सूत्र से द्विषत् के अन्तिम अच् के बाद होगा।) द्विष + म् + त् + तप् + अ / अब ‘संयोगान्तस्य लोपः’ से त् का लोप करके पूर्ववत् - द्विषम् + तप् + अ = द्विषन्तपः। __ युगन्धरः - युग + ङस् + धृ + णिच् + खच् / पूर्ववत् समासत्वात् ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से ङस् का लोप करके - युग + धृ + णिच् + खच् / ‘अचो ज्णिति’ सूत्र से ऋ को वृद्धि करके - युग + धार् + णिच् + अ / ‘खचि ह्रस्वः’ सूत्र से धार् की उपधा को ह्रस्व करके - युग + धर् + णिच् + अ / ‘अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम्’ से मुम् का आगम करके - युग + म् + धर् + अ = युगन्धरः। वाचंयमः - वाचं यच्छति इति वाचंयमः - वाच् + ङस् + यम् + खच् / वाच् + खच् / अब देखिये कि वाच् शब्द अजन्त नहीं है, अतः इसे ‘अरुद्धिषदजन्तस्य मुम्’ सूत्र से मुमागम नहीं हो सकता। इसलिये यहाँ ‘वाचंयमपुरन्दरौ’ सूत्र से वाच् को अमन्त निपातन करके - वाचंयमः। विहंगमः - विहायस् + टा + गम् + खच् / ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से टा का लोप करके - विहायस् + गम् + अ - ‘विहायसो विहादेशो वक्तव्यः’ इस वार्तिक से विहायस् को विह आदेश करके और उसे मुम् आगम करके - विहंगमः। विहंगः - विहायस् + टा + गम् + खच् / ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से टा का लोप करके - विहायस् + गम् + अ / ‘विहायसो विहादेशो वक्तव्यः’ (वा) से विहायस् को विह आदेश करके - विह + गम् + अ / मुम् आगम करके - विह + मुम् + गम् + अ / ‘खच्च डिद् वा वक्तव्यः’ (वा) - खच् प्रत्यय विकल्प से डित्वत् होता है। प्रत्यय के डित् होने का फल - टेः (६.४.१४३) - डित् प्रत्यय परे होने पर अङ्ग की टि का लोप होता है। (यद्यपि इस सूत्र से होने वाला टिलोप, भसंज्ञक अङ्ग को ही होता है किन्तु ‘डित्यभस्याप्यनुबन्धकरणसामर्थ्यात्’ इस भाष्य वार्तिक से भसंज्ञा न होने पर भी डित्चकरण १४६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ के सामर्थ्य से डित् प्रत्यय परे होने पर टि का लोप हो जाता है।) अतः विह + मुम् + गम् + अ / ‘टि’ का लोप करके - विह + मुम् + ग् + अ / मोऽनुस्वारः से म् को अनुस्वार करके = विहंगः । ‘वा पदान्तस्य’ से विकल्प से अनुस्वार को परसवर्ण करके - विहङ्गः।