५६ यत् प्रत्यय

यत् प्रत्यय भी समस्त धातुओं से नहीं लगाया जाता है। यत् प्रत्यय में हलन्त्यम्’ सूत्र से त् की इत् संज्ञा करके ‘तस्य लोपः’ सूत्र से उसका लोप करके ‘य’ शेष बचाइये। यत् प्रत्यय भी कित्, डित्, जित्, णित् से भिन्न है। आकारान्त धातुओं से यत् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - ईद्यति - यत् प्रत्यय परे होने पर धातु के ‘आ’ को ‘ई’ आदेश होता है। पा + यत् - पी + य / ई को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - पे + य = पेय / पेय + स = पेयम् (पीने योग्य)। एजन्त धातुओं से यत् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - आदेच उपदेशेऽशिति (६.१.४५) - शित् भिन्न प्रत्यय परे होने पर एजन्त धातु के अन्तिम ‘एच्’ के स्थान पर ‘आ’ आदेश होता है। गै + यत् - गा + य / ‘ईद्यति’ सूत्र से ‘आ’ को ‘ई’ आदेश करके - गी + य / ई को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - गे + य = गेय, गेयम् (गाने योग्य)। इकारान्त, ईकारान्त धातुओं से यत् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - जि + यत् - इ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - जे + य = जेय, जेयम् (जीतने योग्य)। नी + यत् - इ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - ने + य = नेय, नेयम् (ले जाने योग्य)। उकारान्त, ऊकारान्त धातुओं से यत् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - हु + यत् - अन्तिम उ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ से गुण करके - हो + य धातोस्तन्निमित्तस्यैव (६.१.८०) - धातु को निमित्त मानकर बने हुए जो ओ, औ, उन्हें क्रमशः अव्, आव् आदेश होते है, यकारादि प्रत्यय परे होने पर। हो + य - हव् + य = हव्यम् (हवि देने योग्य)। लू + यत् - अन्तिम उ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके – लो + य / धातोस्तन्निमित्तस्यैव सूत्र से ओ को अव् आदेश करके - लव् + य = लव्यम् (काट ने योग्य)। कित्, ङित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १४३ ऋकारान्त, ऋकारान्त धातुओं से यत् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - ऋकारान्त, ऋकारान्त धातुओं से यद्यपि ‘ऋहलोर्ण्यत्’ सूत्र से ण्यत् का विधान है, तथापि अपवाद बनकर कुछ धातुओं से यत् प्रत्यय भी हो जाता है। ये इस प्रकार हैं __वृ + यत् - अन्तिम ऋ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - वर् + य = वर्य / स्त्रीलिङ्ग में ‘अजाद्यतष्टाप्’ से टाप् करके - शतेन वर्या कन्या (सौ लोगों से वरण करने योग्य कन्या), सहस्रेण वर्या कन्या (सहस्र लोगों से वरण करने योग्य कन्या)। ऋ + यत् - अन्तिम ऋ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण करके - अर् + य = अर्य - अर्यः (स्वामी अथवा वैश्य) __ उपसृ + यत् से इसी प्रकार उपसर्य, बनाकर स्त्रीलिङ्ग में उपसर्या बनाइये। जृ+ यत् से इसी प्रकार जर्य, बनाकर, नञ् समास करके - न जयं अजयं बनाइये। हलन्त धातु - शप् - शप्यम् / जप् - जप्यम् / लभ् - लभ्यम् / रभ् - रभ्यम् / गम् - गम्यम् / तक्यम् / शस्यम् / चत्यम् / जन्यम् । शक् - शक्यम् / सह - सह्यम् / गद् - गद्यम् / मद् - मद्यम् / चर् - चर्यम् / यम् - यम्यम् / आ + चर् + यत् - आचर्यम्।