विट् प्रत्यय में हलन्त्यम्’ सूत्र से ट् की इत् संज्ञा करके, उपदेशेऽजनुनासिक इत्’ सूत्र से इ की इत् संज्ञा करके तस्य लोपः’ सूत्र से उनका लोप करके वरपृक्तस्य’ सूत्र से व् का लोप कीजिये। इस प्रकार विट् प्रत्यय में कुछ भी शेष न बचने से इसका सर्वापहारी लोप हो जाता है। . ध्यान रहे कि विट् प्रत्यय भी कित्, डित्, जित्, णित् से भिन्न है। क्रव्य + अद् + विट / विट का सर्वापहारी लोप करके - क्रव्य + अद् = क्रव्याद् / प्रथमा एकवचन में क्रव्याद् + सु / सु का लोप करके, द् को वाऽवसाने’ से विकल्प से चर्व करके - क्रव्याद्, क्रव्यात्।। अनुनासिकान्त धातुओं से विट् लगाने पर - अप् + जन् + विट् / विट का सर्वापहारी लोप करके - अप् + जन् - १४० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ विड्वनोरनुनासिकस्यात् (६.४.४१) - विट और वन् प्रत्यय परे होने पर अनुनासिकान्त धातुओं के अन्त को ‘आ’ आदेश होता है। अतः - अप् + डि + जन् में सुब्लुक् करके न् को ‘आ’ आदेश करके - अप् +जा / ‘झलां जशोऽन्ते’ से प् को जश्त्व करके = अब्जा / प्रथमा एकवचन में - अब्जाः । इसी प्रकार गो + जन् + विट् से गोजाः बनाइये।