३३ अनि प्रत्यय

इसे भी ठीक ‘अनीयर्’ के समान ही लगायें। यथा - नञ् + कृ + अनि / नञ् के ञ् की हलन्त्यम्’ से इत् संज्ञा होकर - न + कृ + अन् - नलोपो नञः (६.३.७३) - नञ् के न् का लोप होता है, उत्तरपद परे होने पर। इस सूत्र से न् का लोप करके, ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से ऋ को गुण करके - अकर् + अनि / न् को णत्व होकर - अकरणिः । अकरणिस्ते वृषल भूयात् (नीच ! कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १३५ عر لحد و مر + + तेरी करनी का नाश हो जाये।) इत्र प्रत्यय __ इसे भी ठीक ‘अनीयर’ के समान ही लगायें। धू + इत्र धो + इत्र - धवित्र धवित्रम् लू + इत्र - लो + इत्र - लवित्र लवित्रम् सू + इत्र - सो + इत्र - सवित्र सवित्रम् + इत्र - पो + इत्र - पवित्र पवित्रम् इत्र - अर् + इत्र - अरित्र अरित्रम् खन् + इत्र - खन् + इत्र - खनित्र = खनित्रम इसी प्रकार चर् से चरित्रम्, सह से सहित्रम् आदि बनाइये।