अच् प्रत्यय सारे धातुओं से लग सकता है। इसमें हलन्त्यम् सूत्र से च की इत्संज्ञा होकर अ शेष बचता है। यद्यपि ‘अज्विधिः सर्वधातुभ्यः’ कहकर अच् प्रत्यय सारे धातुओं से कहा गया है, तथापि प्रयुक्त शब्द ही बनाना चाहिये। अच् प्रत्यय लगाकर निपातन से बने हुए शब्द - न्य वादीनां च - (७.३.५३) - न्यङ्क्वादिगण पठित शब्दों में कुत्व निपातन होता है। वि + अति + सङ्ग् + अच् / वि + अति + सङ्ग् + अ / आदेशप्रत्यययोः से षत्व होकर व्यतिषङ्गः। दूरे + पच् + अच् = दूरेपाकः । इसमें भी निपातन से कुत्व तथा उपधादीर्घ हुए हैं। इसी प्रकार - फलेपाकः, अक्षेपाकः आदि बनाइये। न्यक + रुह + अच / ‘पगन्त.’ से उ को गण करके. क को जश्त्व करके तथा न्यङक्वादीनां च’ सत्र से ह को ध निपातन करके = न्यग्रोधः ।
- सृज् + अच् = अवसर्गः / उप + सृज् + अच् = उपसर्गः / मिह् + अच् = मेघः । इन शब्दों में इसी सूत्र से निपातन से कुत्व होता है। उपपद होने पर - ख + डि + शी+ अच् / उपपदमतिङ्’ सूत्र से समास करके, कृत्तद्धितसमासाश्च’ से प्रातिपदिक संज्ञा करके सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से विभक्ति का लुक करके - ख + शी + अ - ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ से गुण करके ख + शय् + अ = खशय / प्रातिपदिक संज्ञा होने के कारण सु विभक्ति लगाकर - खशय + सु = खशयः । इसी प्रकार गर्तशयः / उत्तानशयः / उदरशयः आदि बनाइये। अंश + ङस् + हृ + अच् - ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ से गुण करके अंश + डस् + हर् + अ = अंशहरः । इसी प्रकार रिक्थहरः / अस्थिहरः श्वा / कवचहरः क्षत्रियः। __ शक्ति + ङस् + ग्रह + अच् = शक्तिग्रहः । इसी प्रकार - यष्टिग्रहः, घटग्रहः, धनुर्ग्रहः अंकुशग्रहः लाङ्गलग्रहः, घटीग्रहः आदि बनाइये। कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १२९ निपातन के अलावा शेष सारे कार्य अनीयर् प्रत्यय के समान ही कीजिये । यथा आकारान्त तथा एजन्त धात दा + अच् - दा + अ = दाः धा + अच् - धा + अ = धाः गै + अच् - गा + अ = गाः म्लै + अच् - म्ला + अ = म्लाः धे + अच् - धा + अ = धाः छो + अच् - छा + अ = छाः _इकारान्त तथा ईकारान्त धातु __इ, ई को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से ‘ए’ गुण करके एचोऽयवायावः सूत्र से ऐ के स्थान पर ‘अय्’ आदेश कीजिये - चि + अच् - चे + अ - चय् + अ = चयः जि + अच् - जे + अ - जय् + अ = जयः शी + अच् - शे + अ - शय् + अ = शयः नी + अच् - ने + अ - नय् + अ = नयः क्री + अच् _ - + अ __- क्रय + अ __= क्रयः भी + अच् - भे + अ - भय् + अ = भयम् (‘भयादीनामुपसंख्यानम्’ वार्तिक से भय शब्द नपुंसकलिङ्ग होता है।) उकारान्त तथा ऊकारान्त धातु विशेष उकारान्त धातु - ब्रू + अच् - वच् + अ = वचः __ शेष उकारान्त धातु - उ, ऊ को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से ‘ओ’ गुण करके एचोऽयवायावः सूत्र से ऐ के स्थान पर ‘आव्’ आदेश कीजिये - यु + अच् - यो + अ - यव् + अ = यवः रु + अच् - रो + अ - रव् + अ = रवः भू + अच् - भो + अ - भव् + अ = भवः लू + अच् - लो + अ - लव् + अ = लवः ऋकारान्त तथा ऋकारान्त धातु ऋ, ऋ को को ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से ‘अर्’ गुण कीजिये - per १३० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ कृ + अच् - कर् + अ = करः भृ + अच् - भर् + अ = भरः
अदुपध धातु
विशेष अदुपध धातु - अस् धातु - अस् + अच् / ‘अस्तेर्भूः’ सूत्र से भू आदेश करके - अस् + अच् - भू + अ = भवः। व्यच धातु - व्यच् + अच् / व्यचेः कटादित्व’. सूत्र से डिदवदभाव होने ग्रहिज्या. सूत्र से सम्प्रसारण करके - विच् + अ = विचः। अज धात - अज + अच / ‘अजेळघञपोः’ सत्र से वी आदेश करके - वी + अं/ सार्वधातकार्ध.’ से गण करके - वे + अ / अयादेश करके - वय + अ = वयः । शेष अदुपध धातु - पठ् + अच् - पठ् + अ = पठः पच् + अच् - पच् + अ = पचः शेष सारे धातु अनीयर् के समान ही बनाइये।
यङ्लुगन्त धातुओ से अच् प्रत्यय लगाना
यङन्त धातुओं के यङ् का ‘यङोऽचि च’ सूत्र से लोप करके जो धातु बनते हैं, वे यङ्लुगन्त धातु होते हैं। यथा - नेनीय - नेनी। बोभूय - बोभू, आदि। ध्यान दें कि ‘यडोऽचि च’ में जो अच् है, वह प्रत्यय है, प्रत्याहार नहीं। अतः ‘यडोऽचि च’ सूत्र से होने वाले यङ्लुक का निमित्त ‘अच् प्रत्यय’ बनता है। न धातुलोप आर्धधातुके (१.१.४) - धातुलोपनिमित्तक आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर इक् के स्थान पर होने वाले गुण वृद्धि कार्य नहीं होते। __अतः यङ्लुगन्त धातुओं से परे ‘अच् प्रत्यय आने पर अङ्ग को गुण वृद्धि कार्य नहीं होंगे। यथा - नेनी + अच् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से प्राप्त होने वाले गुण का निषेध करके - नेनी + अ - __एरनेकाचोऽसंयोगपूर्वस्य (६.४.८२) - असंयोगपूर्वक जो इवर्णान्त अङ्ग, उसे यण होता है, अच् परे होने पर। नेनी + अ / इस सूत्र से यण् करके - नेन्यः। बोभू + अच् / ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से प्राप्त गुण का निषेध करके - बोभू + अ - अचि अनुधातुभ्रुवां य्वोरियडुवङौ (६.४.७७) - श्नु प्रत्ययान्त, इवर्णान्त, कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १३१ उवर्णान्त जो धातु और भ्रू रूप जो अङ्ग, उन्हें इयङ्, उवङ् आदेश होते हैं, अच् परे होने पर। . बोभू + अ / इस सूत्र से उवङ् आदेश करके - बोभुव् + अ = बोभुवः । इसी प्रकार - लोलू + अच् = लोलुवः । पोपू + अच् = पोपुवः। वरीवृष् + अच् / ‘पुगन्तलघूपधस्य’ च सूत्र से उपधा के लघु इ के स्थान पर प्राप्त होने वाले गुण का न धातुलोप आर्धधातुके’ सूत्र से निषेध करके - वरीवृषः इसी प्रकार - मरीमृज् + अच् = मरीमृजः। __अत्यावश्यक - ध्यान रहे कि यङ्लुगन्त धातुओं से अच् प्रत्यय परे होने पर, उसे निमित्त मानकर होने वाले गुण, वृद्धि कार्य, अङ्ग को नहीं होते हैं। किन्तु अच् के अलावा अन्य कोई भी प्रत्यय परे होने पर यथाप्राप्त गुण, वृद्धि आदि होंगे ही। शेष धातु - शेष धातुओं में ‘अच्’ प्रत्यय को ठीक ‘अनीयर्’ प्रत्यय के समान ही लगाइये। अर्थात् धातुओं में हमने अनीयर् प्रत्यय लगाकर जो भी रूप, जिस प्रकार बनाया है, ठीक उसी प्रक्रिया से उस धातु में अच् = अ प्रत्यय लगाकर रूप बनाइये। अर्थात् उस रूप से अनीय को हटाकर उसमें ‘अ’ लगा लीजिये, बस। यथा - हमने चि + अनीयर् से चयनीयम् बनाया है, तो अनीय को हटाकर ‘अ’ को लगाकर आप उसी प्रकार चयः बना लीजिये। इसी प्रकार जि + अच् = जयः / इ + अच् = अयः / भी + अच् = भयम्, आदि।