ध्यान रहे कि ल्युट् प्रत्यय सभी धातुओं से लगाया जा सकता है। इससे बने हुए शब्द नपुंसकलिङ्ग ही होते हैं। ल्युट प्रत्यय में हलन्त्यम् सूत्र से ट् की तथा लशक्वतद्धिते सूत्र से क् की इत्संज्ञा होकर यु शेष बचता है, जिसे युवोरनाको सूत्र से ‘अन’ आदेश होता है। इसकी प्रक्रिया पूर्णतः ‘अनीयर’ प्रत्यय के समान ही होगी। अतः जैसे - गम् + अनीयर् से ‘गमनीयम्’ बनता है, ठीक उसी प्रकार - गम् + अन से गमनम् बनाइये। कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १२७ जैसे - लिख + अनीयर् से लेखनीयम्’ बनता है, ठीक उसी प्रकार - लिख + अन से लेखनम् बनाइये। जैसे - पुष् + अनीयर् से पोषणीयम्’ बनता है, ठीक उसी प्रकार - पुष् + अन से पोषणम् बनाइये। इसके अपवाद - दंश् + ल्युट / दंश् + अन / इससे दंशनम् बनना था, किन्त दाम्नीशसय- यूजस्तृतदसिसिचमिहपतदशनहः करणे ३.२.१८१’ सूत्र में दंश् धातु के अनुनासिक लोप करके जो निर्देश किया है, वह यह ज्ञापित करता है, कि कभी कभी कित्, डित् से भिन्न प्रत्यय परे होने पर भी नकार का लोप होता है। अतः - दंश् + ल्युट / दश् + अन = दशनम्।
अज् धातु
वा यौ (२.४.५७) - ल्युट प्रत्यय परे होने पर अज् धातु के स्थान विकल्प से वी आदेश होता है। प्र + अज् + ल्युट - प्र + वी + अन - सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से इगन्त अङ्ग को गुण करके - प्र + वे + अन - एचोऽयवायावः सूत्र से ए को अय् आदेश करके - प्र + वय् + अन - प्रवयन - कृत्यचः (८.४.२९)- उपसर्गस्थ निमित्त से परे जो अच्, उससे उत्तर जो कृत्स्थ नकार, उसे णकार आदेश होता है। इस सूत्र से न के स्थान पर णत्व करके - प्रवयणो दण्डः । वी आदेश न होने पर - प्राजनो दण्डः ।
शेष धातु
शेष धातुओं में हमने अनीयर् प्रत्यय लगाकर जो भी रूप, जिस प्रकार बनाया है, ठीक उसी प्रक्रिया से उस धातु में ल्युट = अन प्रत्यय लगाकर रूप बनाइये। अर्थात् उस रूप से अनीय को हटाकर उसमें ‘अन’ लगा लीजिये, बस। यथा - हमने न + अनीयर् - नुव + अनीय = नुवनीयम् बनाया है, तो ल्यूट लगाकर ठीक उसी प्रक्रिया से आप न + ल्युट - न + अन = नवनम बना लीजिये। चि + अनीयर् से हमने चयनीयम् बनाया है, तो अनीय को हटाकर अन को लगाकर आप उसी प्रकार चयनम् बना लीजिये। पठ् + अनीयर् से हमने पठनीयम् बनाया है, तो अनीय को हटाकर अन को लगाकर आप उसी प्रकार पठनम् बना लीजिये।