२४ अनीयर् प्रत्यय

अनीयर् प्रत्यय भावकर्म अर्थ में सभी धातुओं से लगाया जा सकता है। इसमें हलन्त्यम्’ सूत्र से र् की इत्संज्ञा होकर अनीय शेष बचता है। यह प्रत्यय कित्, डित्, जित्, णित् से भिन्न है। धातुओं का वर्गीकरण करके इसे इस प्रकार लगाइये -

विशेष धातु

कुटादि धातु - हम जानते हैं कि ‘गाकुटादिम्योऽञ्णिन्डित्’ सूत्र से कुटादि धातुओं से परे आने वाला अनीयर् प्रत्यय डिद्वत् होता है। कुटादि धातु इस प्रकार हैं - कुट पुट कुच् गुज् गुड् छुर् स्फुट मुट् त्रुट तुट चुट छुट् जुट लुट् कुड् पुड् घुट तुड् थुड् स्थुड् स्फुर् स्फुल् स्फुड् चुड् वुड् क्रुड् गुर् कृड् मृड् कड् डिप् नू धू गु ध्रु कु = ३६ विशेष - कड् धातु के कुटादिगण में पाठ करने का कोई भी फल नहीं है। इनसे अनीयर् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - नू, धू, गु, ध्रु, कु धातुओं से अनीयर् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - अचि अनुधातुभ्रुवां य्वोरियडुवङौ (६.४.७७)- इनु प्रत्ययान्त, इवर्णान्त, उवर्णान्त जो धातु और भ्रू रूप जो अङ्ग, उन्हें इयङ्, उवङ् आदेश होते हैं, अच् परे होने पर। यथा - कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १२१ नू + अनीयर् - नुव् + अनीय = नुवनीयम् धू + अनीयर् - धुव् + अनीय = धुवनीयम् गु + अनीयर् - गुव् + अनीय = गुवनीयम् धु + अनीयर् - ध्रुव् + अनीय = ध्रुवणीयम् कु + अनीयर् - कुव् + अनीय = कुवनीयम् शेष कुटादि धातुओं से अनीयर् प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - ‘क्ङिति च’ सूत्र से गुण निषेध होने के कारण इनमें अनीयर् प्रत्यय को सीधे जोड़ दीजिये, गुण मत कीजिये। यथा - कुट - कुटनीयम् पुट - पुटनीयम् कुच् - कुचनीयम् गुज् - गुजनीयम् गुड् - गुडनीयम् छुर् - छुरणीयम् स्फुट - स्फुटनीयम् मुट् - मुटनीयम् त्रुट - त्रुटनीयम् तुट - तुटनीयम् चुट - चुटनीयम् छुट् - छुटनीयम् जुट - जुटनीयम् लुट् - लुटनीयम् कुड् - कुडनीयम् पुड् - पुडनीयम् घुट - घुटनीयम् तुड् - तुडनीयम् थुड् - थुडनीयम् स्थुड् - स्थुडनीयम् स्फुर् - स्फुणनीयम् स्फुल् - स्फुलनीयम् स्फुड - स्फुडनीयम् चुड् - चुडनीयम् छड् - वुडनीयम् क्रुड् - क्रुडनीयम् गुर् – गुरणीयम् डिप् - डिपनीयम् कृड् - कृडनीयम् मृड् - मृडनीयम् कड् - कडनीयम्। अब जो धातु बचे, उनमें अनीयर् प्रत्यय को इस प्रकार लगाइये - भ्वादि से ज़्यादिगण तक के आकारान्त तथा एजन्त धातु इन्हें कुछ मत कीजिये - दा + अनीयर् - दा + अनीय = दानीयम् धा + अनीयर् - धा + अनीय = धानीयम् पा + अनीयर् - पा + अनीय = पानीयम् घ्रा + अनीयर् - घ्रा + अनीय = घ्राणीयम् एजन्त धातुओं के ए, ऐ, ओ, औ को आदेच उपदेशेऽशिति सूत्र से आ बनाइये गै + अनीयर् - गा + अनीय = गानीयम् म्लै + अनीयर् - म्ला + अनीय = म्लानीयम् १२२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ ध्यै + अनीयर् - ध्या + = ध्यानीयम् धे + अनीयर् - धा + अनीय = धानीयम् षो + अनीयर् - सा + अनीय = सानीयम् छो + अनीयर् - छा + अनीय = छानीयम् इसी प्रकार सारे आकारान्त और एजन्त धातुओं में अनीयर् प्रत्यय लगाइये। भ्वादि से ज्यादिगण तक के इकारान्त तथा ईकारान्त धातु इ, ई को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से ‘ए’ गुण करके एचोऽयवायावः सूत्र से ऐ के स्थान पर ‘अय्’ आदेश कीजिये - चि + अनीयर् - चे + अनीय - चय् + अनीय = चयनीयम् शी + अनीयर् - शे + अनीय - शय् + अनीय = शयनीयम् डी + अनीयर् - डे + अनीय - डय् + अनीय = डयनीयम् क्री + अनीयर् - = + अनीय - क्रय् + अनीय = क्रयणीयम् भ्वादि से ज़्यादिगण तक के उकारान्त तथा ऊकारान्त धातु ब्रू धातु - ब्रुवो वचिः (२.४.५३) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ब्रू धातु को वच् आदेश होता है। ब्रू + अनीयर् / वच् + अनीय = वचनीयम् (कहने योग्य)। शेष उकारान्त, ऊकारान्त धातु - उ, ऊ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से ‘ओ’ गुण करके एचोऽयवायावः सूत्र से ऐ के स्थान पर ‘आव्’ आदेश कीजिये - यु + अनीयर् - यो + अनीय - यव् + अनीय = यवनीयम् रु + अनीयर् - रो + अनीय - रत् + अनीय = रवनीयम् भू + अनीयर् - भो + अनीय - भव् + अनीय = भवनीयम् लू + अनीयर् - लो + अनीय - लव् + अनीय = लवनीयम् पू + अनीयर् - पो + अनीय - पव् + अनीय = पवनीयम् भ्वादि से ज़्यादिगण तक के ऋकारान्त तथा ऋकारान्त धातु ऋ, ऋ को को सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से ‘अर्’ गुण कीजिये - कृ + अनीयर् - कर् + अनीय = करणीयम् भृ + अनीयर् - भर् + अनीय = भरणीयम् हृ + अनीयर् - हर् + अनीय = हरणीयम् तृ + अनीयर् - तर् + अनीय = तरणीयम् २कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १२३ दृ + अनीयर् - दर् + अनीय = दरणीयम् । पृ + अनीयर् - पर् + अनीय = परणीयम् भ्वादि से ज़्यादिगण तक के अदुपध धातु व्यच् धातु - व्यच् + अनीयर् - व्यचेः कुटादित्वमनसीति वक्तव्यम् (वार्तिक) - व्यच् धातु से परे आने वाले ‘अस्’ से भिन्न सारे प्रत्यय डिद्वत् होते हैं। अतः ग्रहिज्यावयिव्यधि. सूत्र से सम्प्रसारण करके - विच् + अनीय - विचनीयम् । अस भुवि धातु (अदादिगण) - अस्तेर्भूः (२.४.५२) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अस भुवि धातु (अदादिगण) को भू आदेश होता है। अस् + अनीयर् / भू + अनीय / सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से इगन्त अङ्ग को गुण करके - भो+ अनीय / एचोऽयवायावः सूत्र से ओ को अव् आदेश करके - भव् + अनीय - भवनीय = भवनीयम् (होने योग्य)। अज् धातु - - अजेळघञपोः (२.४.५६)- घञ्, अप को छोड़कर शेष सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अज् धातु को वी आदेश होता है। अज् + अनीयर् - वी + अनीय / सार्वध तुकार्धधातुकयोः सूत्र से इगन्त अङ्ग को गुण करके - वे + अनीय - एचोऽयवायावः सूत्र से ए को अय् आदेश करके - वय् + अनीय - वयनीय = वयनीयम् (बुनने योग्य)। शेष अदुपध धातु - इन्हें कुछ मत कीजिये - वद् + अनीयर् - वद् + अनीय = वदनीयम् चल् + अनीयर् - चल् + अनीय = चलनीयम् नट् + अनीयर् - नट् + अनीय = नटनीयम् पठ् + अनीयर् - पठ् + अनीय = पठनीयम् पच् + अनीयर् - पच् + अनीय = पचनीयम् भ्वादि से ज़्यादिगण तक के इदुपध धातु पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के लघु इ को गुण कीजिये - भिद् + अनीयर् - भेद् + अनीय = भेदनीयम् छिद् + अनीयर् - छेद् + अनीय = छेदनीयम् चित् + अनीयर् - चेत् + अनीय = चेतनीयम् __ + १२४ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ भ्वादि से ज़्यादिगण तक के उदुपध धातु पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के लघु उ को गुण कीजिये - उपधा के लघु ‘उ’ को पुगन्तघूपधस्य च सूत्र से ‘ओ’ गुण कीजिये बुध् + अनीयर् - बोध् + अनीय = बोधनीयम् मुद् + अनीयर् - मोद् + अनीय = मोदनीयम् तुष् + अनीयर् - तोष् + अनीय = तोषणीयम् __ भ्वादि से ज़्यादिगण तक के ऋदुपध धातु पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के लघु ऋ को गुण कीजिये - कृष् + अनीयर् - कर्ष + अनीय = कर्षणीयम् वृष् + अनीयर् - वर्ष + अनीय = वर्षणीयम् तृप् + अनीयर् - तप् + अनीय = तर्पणीयम् भ्वादि से ज़्यादिगण तक के शेष हलन्त धातु चक्ष् धातु - चक्षिङः ख्याञ् (२.४.५४) - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर चक्ष् धातु को ख्या आदेश होता है। चक्ष् + अनीयर् / ख्या + अनीय = ख्यानीयम् (कहने योग्य)। शेष हलन्त धातु - जिन हलन्त धातुओं की उपधा में लघु अ, इ, उ, ऋ, ऋ नहीं हैं, ऐसे हलन्त धातु में बिना किसी परिवर्तन के अनीय को ज्यों का त्यों जोड़ दीजिये। जैसे - ध्वंस् + अनीयर् - ध्वंस् + अनीय = ध्वंसनीयम् या मील् + अनीयर् - मील् + अनीय = मीलनीयम् भूष् + अनीयर् - भूष् + अनीय = भूषणीयम् या लठ् + अनीयर् - लठ् + अनीय = लङ्घनीयम् प्रत्ययान्त धातु णिजन्त धातुओं में अनीयर् प्रत्यय लगाना अष्टाध्यायी सहज बोध के द्वितीय खण्ड में प्रत्येक धातु में णिच् प्रत्यय लगाने की विधि विस्तार से दी गई है। उसे देखकर णिजन्त धातु बना लें। ध्यान दें कि सारे णिजन्त धातुओं के अन्त में णिच् प्रत्यय का णिच् (इ) ही रहता है। . णेरनिटि - अनिडादि आर्धधातुक प्रत्यय (एसा आर्धधातुक प्रत्यय, जिसे इट कित्, डित्, जित्, णित्, से भिन्न आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १२५ का आगम नहीं हुआ है) परे होने पर, णिच् प्रत्यय’ का लोप हो जाता है। यथा - चुर् + णिच् = चोरि । यह णिजन्त धातु है। इससे जब हम ण्वुल, ल्युट, अनीयर् आदि अनिडादि प्रत्यय लगायेंगे, तब इस सूत्र से णिच् का लोप हो जायेगा। यथा - चोरि + अनीयर् / चोर् + अनीय = चोरणीयम्। प्रेरि + अनीयर् / प्रेर् + अनीय = प्रेरणीयम् । गमि + अनीयर् / गम् + अनीय = गमनीयम्, आदि। सन्नन्त धातुओं में अनीयर् प्रत्यय लगाना अतो लोपः (६.४.४८) - ‘ह्रस्व अ’ का लोप होता है, आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। यथा - पिपठिष + अनीयर् / पिपठिष + अनीय / पिपठिष् + अनीय = पिपठिषणीयम जिगमिष + अनीयर् / जिगमिष + अनीय / जिगमिष् + अनीय = जिगमिषणीयम् यङन्त धातुओं में अनीयर् प्रत्यय लगाना ध्यान दें कि दन्द्रम्य, चङ्क्रम्य, लेलिख्य, पापठ्य, वावश्य, आदि धातुओं में जो ‘य’ है, वह हल् के बाद है। लोलूय, पोपूय, नेनीय, बोभूय, आदि धातुओं में जो ‘य’ है, वह अच् के बाद है। अतो लोपः - ‘ह्रस्व अ’ का लोप होता है, आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। नेनीय + अनीयर् / नेनीय + अनीय / नेनीय् + अनीय = नेनीयनीयम् लोलूय + अनीयर् / लोलूय + अनीय / लोलूय् + अनीय = लोलूयनीयम् यस्य हलः (६.४.४९)- हल के बाद आने वाले ‘य’ का लोप होता है, आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। यथा - दन्द्रम्य + अनीय / यहाँ यस्य हलः’ सूत्र से ‘य’ का लोप करके तथा ‘अतो लोपः’ सूत्र से ‘अ’ का लोप करके - दन्द्रम् + अनीय = दन्द्रमणीयम् ही बनेमा। इसी प्रकार य का लोप करके - चक्रम्य + अनीय = चक्रमणीयम् । पापच्य + अनीय = पापचनीयम्। पापठ्य + अनीय = पापठनीयम्, आदि। __ बेभिद्य + अनीयर् / बेभिद् + अनीय / यहाँ पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के लघु इ को गुण प्राप्त होने पर - __ अचः परस्मिन् पूर्वविधौ (१.१.५७) - परनिमित्तक अजादेश स्थानिवत् होता है, स्थानिभूत अच् से पूर्वत्वेन दृष्टविधि की कर्तव्यता में। अतः जब हम ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा को गुण करने चलेंगे, तब १२६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ ‘अनीयर्’ को निमित्त मानकर होने वाला ‘अलोप’ स्थानिवत् हो जायेगा, अतः उपधा को गण नहीं हो पायेगा। अतः - बेभिद + अनीय = बेभिदनीयम्। मोमुद्य + अनीयर् / मोमुद् + अनीय / पूर्ववत् स्थानिवद्भाव करके = मोमुदनीयम्। वरीवृष्य + अनीयर् / वरीवृष् + अनीय / पूर्ववत् स्थानिवद्भाव करके = वरीवृषणीयम् अन्य यङ्लुगन्त धातुओं में अनीयर् प्रत्यय लगाना ‘यङोऽचि च (२.२.७४)’ सूत्र से यङन्त धातुओं के यङ् का लोप, जब प्रत्यय परे होने पर होता है तब अच् प्रत्यय उस लोप का निमित्त बनता है। किन्त जब अन्यत्र होता है. तब अन्य प्रत्यय उस लोप के निमित्त नहीं बनते. यह जानना चाहिये। . ‘यङोऽचि च’ सूत्र से लोप करके जो धातु बनते हैं, वे यङ्लुगन्त धातु कहलाते हैं। यथा - नेनीय - नेनी। बोभूय - बोभू, आदि। _ न धातुलोप आर्धधातुके (१.१.४) - धातुलोपनिमित्तक आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर इक के स्थान पर होने वाले गण वद्धि कार्य नहीं होते। ध्यान रहे कि यङ् के लुक् का निमित्त केवल अच् प्रत्यय बनता है, अतः उसे निमित्त मानकर होने वाले गुण, वृद्धि कार्य, अङ्ग को नहीं होंगे। किन्तु अच् के अलावा अन्य कोई भी प्रत्यय परे होने पर यथाप्राप्त गुण, वृद्धि आदि होंगे ही। अतः जैसे रूप अप्रत्ययान्त में बनाये हैं, वैसे ही यथाप्राप्त कार्य कीजिये। क्यच, क्यङ्, क्यष् प्रत्ययान्त धातुओं में अनीयर् प्रत्यय लगाना क्यस्य विभाषा (६.४.५०) - हल् से उत्तर जो क्यच्, क्यङ्, क्यष् प्रत्यय, उनका विकल्प से लोप होता है, आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। समिध्य + अनीयर् = समिधनीयम्, समिध्यनीयम्। यह समस्त धातुओं में अनीयर् प्रत्यय लगाने की विधि पूर्ण हुई।