१३ अण् प्रत्यय

अण् प्रत्यय में हलन्त्यम्’ सूत्र से ण् की इत् संज्ञा करके, ‘तस्य लोपः’ सूत्र से जित् णित् आर्धधातुक कृत् प्रत्यय १११ उसका लोप करके, ‘अ’ शेष बचाइये। ण् की इत् संज्ञा होने से यह प्रत्यय णित् है, इसलिये इसे धातुओं में ठीक उसी विधि से लगाया जायेगा, जिस विधि से धातुओं में ण्वुल प्रत्यय लगाया गया है। धातओं से अण प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - आकारान्त धात - स्वर्ग + ङस + हा + अण/ उपपदमतिङ’ से समास करके तथा ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से सुप् विभक्ति का लुक् करके - स्वर्ग + हा + अण् / ‘आतो युक् चिण्कृतोः’ सूत्र से युक् का आगम करके - स्वर्ग + हा + युक् + अण् / स्वर्ग + हा + य् + अ = स्वर्गहायः। इसी प्रकार - तन्तु + ङस् + वा +, अण् से तन्तुवायः / धान्य + ङस् + मा + अण् से धान्यमायः आदि बनाइये। __ कम्बल + ङस् + दा + अण् / उपपदमतिङ्’ से समास करके तथा ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से सुप् विभक्ति का लुक् करके - कम्बल + दा + अण् / ‘आतो युक् चिण्कृतोः’ सूत्र से युक् का आगम करके - कम्बल + दा + युक् + अण् - कम्बल + दा + य् + अ = कम्बलदायः । __इकारान्त धातु - वेद + ङस् + अधि + इ + अण् / ‘उपपदमतिङ्’ से समास करके तथा ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से सुप् विभक्ति का लुक् करके - वेद + अधि + इ + अ / अचो णिति से वृद्धि करके - वेद + अधि + ऐ + अ / ‘एचोऽयवायावः’ से आय आदेश करके - वेद + अधि + आय् + अ = वेदाध्यायः। उकारान्त धातु - काण्ड + डस् + लू + अण् / ‘सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से सुप् विभक्ति का लुक् करके तथा ‘अचो णिति’ सूत्र से वृद्धि करके - काण्ड + लौ + अ / एचोऽयवायावः सूत्र से औ को आव् आदेश करके - काण्ड + लाव् + अ = काण्डलावः। ऋकारान्त धातु - कुम्भ + ङस् + कृ + अण् / उपपदमति’ से समास करके, सुपो धातुप्रातिपदिकयोः’ सूत्र से सुप् विभक्ति का लुक् करके तथा ‘अचो णिति’ से वृद्धि करके - कुम्भ + कार् + अ - कुम्भकारः । दाघाटः / चार्वाघाटः - दारावाहनोऽणन्तस्य च टः संज्ञायाम् (वा.) - दारु शब्द के उपपद में होने पर आङ्पूर्वक हन् धातु से अण् प्रत्यय होता है तथा अन्त को ट आदेश भी होता है। दारु आहन्ति दार्वाघाटः । दारु + आ + हन् + अण्/हो हन्तेर्णिन्नेषु’ सूत्र से ह को कुत्व करके-दारु + आ + घन् + अ/‘हनस्तोऽचिण्णलोः’ सूत्र से न् को त् आदेश करके और ‘अत उपधायाः’ से उपधा के ‘अ’ को वृद्धि करके - दारु + आ ११२ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३

  • घात् + अ - ‘दारावाहनो-’ इस वार्तिक से अन्त को ट आदेश करके - दाघाटः। चारौ वा (वा.) - चारु शब्द के उपपद में होने पर आङ्पूर्वक हन् धातु से अण् प्रत्यय होता है तथा अन्त को विकल्प से ट आदेश होता है। चारु आहन्ति चार्वाघाटः, चार्वाघातः। वर्णसंघातः, वर्णसंघाटः / पदसंघातः, पदसंघाटः - कर्मणि समि च (वा.) - कर्म उपपद में होने पर सम्पूर्वक हन् धातु से अण् प्रत्यय होता है तथा विकल्प से टकारान्तादेश भी होता है। वर्णान् संहन्ति वर्णसंघाटः, वर्णसंघातः । पदानि संहन्ति पदसंघाटः, पदसंघातः । निपातन से बनने वाले शब्द - न्यवादीनां च (७.३.५३) - न्यक्वादिगण पठित शब्दों में कुत्व निपातन होता है। मांसपाकः / श्वपाकः / कपोतपाकः / उलूकपाकः । यद्यपि ये शब्द कर्म उपपद में रहते हुए पच् धातु से अण् प्रत्यय करके बने हैं, किन्तु ‘चजोः कु घिण्ण्यतोः’ सूत्र से केवल घित् और ण्यत् प्रत्यय परे होने पर होने वाला कुत्व यहाँ अण् प्रत्यय में न्यङ्क्वादीनां च’ सूत्र से निपातन से हुआ है। अन्य कार्य ण्वुल के समान ही होंगे।