११ घिनुण् प्रत्यय

घिनुण् प्रत्यय में ‘हलन्त्यम्’ सूत्र से ण् की, उपदेशेऽजनुनासिक इत्’ सूत्र से उ की तथा लशक्वतद्धिते’ सूत्र से घ् की इत् संज्ञा करके, ‘तस्य लोपः’ सूत्र से उनका लोप करके, ‘इन्’ शेष बचाइये। ण् की इत् संज्ञा होने से यह प्रत्यय णित् है तथा घ् की इत् संज्ञा होने से यह प्रत्यय घित् भी है, इसलिये इसे धातुओं में ठीक उसी विधि से लगाया जायेगा, जिस विधि से धातुओं में घञ् प्रत्यय लगाया गया है। घित् होने के कारण यथाप्राप्त कुत्व होगा। कुत्वविधि को से ९३ से ९४ पृष्ठों पर देखिये। __उकारान्त धातु - प्रद्रु + घिनुण् / अचो ञ्णिति सूत्र से अजन्त अङ्ग को वृद्धि करके - प्रद्रौ + इन् / ‘एचोऽयवायावः’ सूत्र से औ को आव् आदेश करके - प्रद्राव् + इन् - प्रद्राविन् / प्रथमा एकवचन में प्रद्रावी बनाइये।। ऋकारान्त धातु - परिसृ + घिनुण / ‘अचो णिति’ सूत्र से अजन्त अङ्ग को वृद्धि करके - परि + सार् + इन् - परिसारिन् / प्रथमा एकवचन में परिसारी बनाइये। प्रसृ + घिनुण् / ‘अचो णिति’ सूत्र से अजन्त अङ्ग को वृद्धि करके - प्रसार् + इन् - प्रसारिन् / प्रथमा एकवचन में प्रसारी बनाइये। __ मान्त अदुपध धातु - शम् + घिनुण् / शम् + इन् / ‘अत उपधायाः’ से उपधा के अ को वृद्धि प्राप्त हुई, किन्तु ‘नोदात्तोपदेशस्य मान्तस्यानाचमेः’ सूत्र से उस सेट १०८ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - ३ मान्त धातु को वृद्धि का निषेध होकर - शम् + इन् - शमिन् / प्रथमा एकवचन में - शमी। इसी प्रकार - तम् + घिनुण् - तमी / दम् + घिनुण - दमी / श्रम् + घिनुण् - श्रमी / भ्रम् + घिनुण - भ्रमी / क्षम् + घिनुण - क्षमी / क्लम् + घिनुण - क्लमी। त्यज्, भज् धातु - त्यज् + घिनुण / ‘अत उपधायाः’ से उपधा के अ को वृद्धि होकर - त्याज् + इन् / घित् प्रत्यय होने के कारण ‘चजोः कु घिण्ण्यतोः’ सूत्र से ज् को कुत्व करके - त्याग् + इन् - त्यागिन् / प्रथमा एकवचन में त्यागी बनाइये। __ इसी प्रकार - भज् + घिनुण से भागी बनाइये। हन् धातु - अभि + हन् + घिनुण / अभिहन् + इन् / ‘हो हन्तेगिन्नेषु’ सूत्र से ह को कुत्व करके - अभिघन् + इन् / ‘हनस्तोऽचिण्णलोः’ सूत्र से न् को त् करके - अभिघत् + इन् / ‘अत उपधायाः’ सूत्र से उपधा के अ को वृद्धि होकर - अभिघात्

  • इन् - अभिघातिन् / प्रथमा एकवचन में अभिघाती बनाइये। __ शेष अदुपध धातु - प्रमद् + इन् / अत उपधायाः सूत्र से उपधा के अ को वृद्धि होकर - प्रमादिन् - प्रमादी / इसी प्रकार - उन्मादी। इसी प्रकार - वि + लस् + घिनुण - विलासी / विकष् + घिनुण -विकाषी / प्रलप् + घिनुण् - प्रलापी / प्रमथ् + घिनुण - प्रमाथी। प्रवद् + घिनुण् - प्रवादी / प्रवस् + घिनुण् - प्रवासी / अप + लष् + घिनुण् - अपलाषी / आ + यम् + घिनुण - आयामी । आ + यस् + घिनुण - आयासी / संज्वर् + घिनुण - संज्वारी / अतिचर् + घिनुण् - अतिचारी / अपचर् + घिनुण - अपचारी / परिरट् + घिनुण - परिराटी। परिवद् + घिनुण - परिवादी / परिदह् + घिनुण् - परिदाही। इदुपध धातु - विविच् + घिनुण् - ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के इ को गुण करके - विवेच् + इन् / घित् प्रत्यय होने के कारण ‘चजोः कु घिण्ण्यतोः’ सूत्र से च् को कुत्व करके - विवेक् + इन् - विवेकिन् - प्रथमा एकवचन में विवेकी। परिदेव् + घिनुण / परिदेव् + इन् - परिदेविन् - परिदेवी। परिक्षिप् + घिनुण् / ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के इ को गुण करके - परिक्षेप् + इन् - परिक्षेपिन् / प्रथमा एकवचन में परिक्षेपी। __उदुपध धातु - अनु + रुध् + घिनुण् / ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के ऋ को गुण करके - अनुरोध् + इन् - अनुरोधिन् - प्रथमा एकवचन में अनुरोधी। १०९ जित् णित् आर्धधातुक कृत् प्रत्यय __ परिमुह् + घिनुण - परिमोही / दुष् + घिनुण् - दोषी / द्विष् + घिनुण् - द्वेषी / द्रुह् + घिनुण - द्रोही / दुह् + घिनुण - दोही / आमुष् + घिनुण - आमोषी, बनाइये। इसी प्रकार - युज् + घिनुण - योगी। ऋदुपध धातु - सम् पृच् + घिनुण् / संपृच् + इन् / ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से उपधा के ऋ को गुण करके - संपर्च् + इन् - घित् प्रत्यय होने के कारण ‘चजोः कु घिण्ण्यतोः’ सूत्र से च् को कुत्व करके - संपर्क् + इन् - संपर्किन् - प्रथमा एकवचन में संपर्की। इसी प्रकार - संसज + घिनण / ‘पगन्तलघपधस्य च’ सत्र से उपधा के ऋ को गण करके - संसर्ज + इन / घित प्रत्यय होने के कारण ‘चजोः क घिण्ण्यतोः’ सत्र से ज को कत्व करके - संसर्ग + इन - संसर्गिन - प्रथमा एकवचन में संसर्गी। रज् धातु - रज् + घिनुण् - घिनणि च रज्जेरुपसंख्यानम् कर्तव्यम् (वा.) - घिनण प्रत्यय परे होने पर रज्ज् धातु की उपधा के न् का लोप होता है। इस वार्तिक से न् का लोप करके - रज् + इन् / ‘अत उपधायाः’ से उपधा के अ को वृद्धि होकर - राज् + इन् / घित् प्रत्यय होने के कारण ‘चजोः कु घिण्ण्यतोः’ सूत्र से ज् को कुत्व करके - राग् + इन् - रागिन् / प्रथमा एकवचन में रागी बनाइये। शेष धातु - इन्हें कुछ मत कीजिये - आक्रीड् + घिनुण / आक्रीड् + इन् / आक्रीडिन् - आक्रीडी। कत्थ् + घिनुण् / कत्थ् + इन् / कत्थिन् - कत्थी।