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अष्टाध्यायी सहजबोध द्वितीय भाग : आर्धधातुकप्रकरण
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डॉ. पुष्पा दीक्षित
(पाणिनीय अष्टाध्यायी की सर्वथा नवीन वैज्ञानिक व्याख्या)
द्वितीय भाग
आर्धधातुकप्रकरणम् (समस्त धातुओं में सारे कृत् प्रत्यय लगाने की अपूर्व विधि)
रचयित्री डॉ० (श्रीमती).पुष्पा दीक्षित
IRATIBHA
प्रतिभा प्रकाशन दिल्ली
भारत
तृतीय संस्करण 2011
ISBN : 978-81-7702-121-4 (द्वितीय भाग)
_978-81-7702-006-4 (सेट)
© रचयित्री
मूल्य : 1500 (Set 1-4 vols.
प्रकाशक : डॉ० राधेश्याम शुक्ल
एम.ए., एम. फ़िल., पी-एच.डी. प्रतिभा प्रकाशन (प्राच्यविद्या-प्रकाशक एवं पुस्तक-विक्रेता) 7259/23, अजेन्द्र मार्केट, प्रेमनगर शक्तिनगर, दिल्ली-110007 दूरभाष : (O) 011-47084852, (M) 9350884227 e-mail : pratibhabooks@ymail.com
टाईप सेटिंग : एस०के० ग्राफिक्स
दिल्ली-84
मुद्रक : एस०के० ऑफसेट, दिल्ली
ASTĀDHĀYİ SAHAJABODHA A Modern & Scientific Approach
To Pāṇini’s Aștādhyāyī
Volume II Ārdhadhātukaprakaranam
By
Dr. (Smt.) Pushpa Dixit
LRATIBHA
PRATIBHA PRAKASHAN
DELHI-110007
Third Edition : 2011
© Author
ISBN : 978-81-7702-006-4 ( Vol. II.)
978-81-7702-007-2 (Set)
Rs.
1500 (Set 1-4 vols.) Published by : Dr. Radhey Shyam Shi:kla .A., Ph.D. PRATIBHA PRAKASHAN (Oriental Publishers & Booksellers) 7259/23. Ajendra Market, Prem Nagar, Shakti Nagar Delhi-110007 Ph. : (0) 47084852, 09350884227 e-mail : pratibhabooks@ymail.com Laser Type Setting : S.K. Graphics, Delhi-84 Printed at: S.K. Offset, Delhi समर्पणम् आचार्य डॉ. रामयत्न शुक्ल, भूतपूर्व व्याकरणविभागाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, उ. प्र. अखिलभुवनमण्डलमण्डनायमानेभ्यः, सकल शास्त्रावगाहिधिषणेभ्यः, काश्या महामहिमशालिन्या: शास्त्रपरम्पराया रक्षणार्थं छात्राणामध्यापने निरन्तर मासक्तेभ्यो, ग्रन्थग्रन्थिभेदं कुर्वत्यातिवैलक्षण्यशालिन्या ध्यापनशैल्यान्तेवासिहृदयेषु हठात् प्रविशद्भ्यः, पद वाक्यप्रमाणपारावारीणेभ्यो, दर्शनमात्रेणैव पुण्योदयं पापक्षयं च विदधद्भ्य: प्रखरप्रसिद्धिमुपगतेभ्यो वैयाकरणप्रवरेभ्यो गुरुवर्येभ्य: श्रीमद्रामयत्नशुक्लपादेभ्यो ग्रन्थमिमं सादरं समर्पये। तप:पूतचेतसां तेषामेवायं, न मम। 889 विषयानुक्रमणिका आर्धधातुक खण्ड प्रथम पाठ - आर्धधातुक प्रत्ययों के लिये सरल धातुपाठ - १ - २० द्वितीय पाठ - आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था - २१ - ३४ तृतीय पाठ - समस्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि - ३७ - ७५ __लृट् लकार के प्रत्यय ३६ / धात्वादेश ३८ / अतिदेश ३९ / सामान्य अङ्गकार्य ४० / षत्वविधि ४२ / आकारान्त तथा एजन्त धातुओं के लट् लकार के रूप बनाने की विधि ४४ / सेट इकारान्त तथा ईकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि ४४ / अनिट् इकारान्त तथा ईकारान्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ४५ / सेट् उकारान्त धातुओं के लुट लकार के रूप बनाने की विधि ४५ / अनिट् उकारान्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ४६ / सेट् ऊकारान्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ४७ / सेट तथा अनिट् ऋकारान्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ४७ / दीर्घ ऋकारान्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ४८ / सेट हलन्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ४९ / अनिट् हलन्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ५१ / चुरादिगण के धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ६५ / सन्नन्त तथा यडन्त धातुओं के लृट् लकार के रूप बनाने की विधि ७४ । चतुर्थ पाठ - समस्त धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि - ७६ - ७९ __पञ्चम पाठ - समस्त धातुओं के आर्धधातुक लेट् लकार के रूप बनाने की विधि - ८० - ८६ __षष्ठ पाठ - समस्त धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के रूप बनाने की विधि - ८७ - ११९ । इसमें ८७ - ९७ पृष्ठों में समस्त धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के परस्मैपदी रूप बनाने की विधि है तथा - ९७ - ११९ पृष्ठों में समस्त धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के आत्मनेपदी रूप बनाने की विधि है । यह इस प्रकार है। __ समस्त धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के परस्मैपदी रूप बनाने की विधि - आशीर्लिङ् लकार के प्रत्यय तथा धात्वादेश ८७ / __(vi) सम्प्रसारणी धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के परस्मैपदी रूप बनाने की विधि ८८ / अनिदित् धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के परस्मैपदी रूप बनाने की विधि ९१ / सम्प्रसारणी तथा नलोपी धातुओं से बचे हुए ‘अजन्त’ धातुओं के आशीर्लिङ लकार के परस्मैपदी रूप बनाने की विधि ९२ / सम्प्रसारणी तथा नलोपी धातुओं से बचे हुए ‘हलन्त’ धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के परस्मैपदी रूप बनाने की विधि ९६ / चुरादिगण के तथा णिजन्त धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के परस्मैपदी रूप बनाने की विधि ९६ । समस्त धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के आत्मनेपदी रूप बनाने की विधि - आशीर्लिङ् लकार के आत्मनेपदी प्रत्यय ९८ / इडागम व्यवस्था ९८ / अतिदेश तथा सामान्य अङ्गकार्य १०२ / षत्व विधि १०३ / ढत्व विधि १०४ / अजन्त आत्मनेपदी धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के आत्मनेपदी रूप बनाने की विधि १०५ / सेट हलन्त आत्मनेपदी धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के रूप बनाने की विधि १०५ / अनिट् तथा वेट हलन्त आत्मनेपदी धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के आत्मनेपदी रूप बनाने की विधि १०५ / सन्नन्त तथा यङन्त धातुओं के आशीर्लिङ् लकार के आत्मनेपदी रूप बनाने की विधि ११८ । सप्तम पाठ - समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि - ३७ - ७५ लुट् लकार के प्रत्यय १२० / इडागम विधि १२१ / धात्वादेश १२६ / अतिदेश १२६ / सामान्य अङ्गकार्य १२८ / आकारान्त तथा एजन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३० / सेट इकारान्त तथा ईकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३१ / अनिट् इकारान्त तथा ईकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३२ / सेट उकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३२ / अनिट् उकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३३ / सेट् ऊकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३३ / सेट तथा अनिट् ऋकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३४ / दीर्घ ऋकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३५ / . सेट हलन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३६ / अनिट् तथा वेट् हलन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३९ (vii) / चुरादिगण के धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १५२ / सन्नन्त तथा यङन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १५२ । __ अष्टम पाठ - समस्त धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि - १५४ - २७८ । लुङ् लकार के प्रत्यय बारह प्रकार के होते हैं। इन्हें अलग अलग करके इस प्रकार जानना चाहिये - _लुङ् लकार के १२ प्रकार के प्रत्यय १५४ / धात्वादेश १५३ / अट्, आट का आगम १५७। किन धातुओं के लुङ् लकार के ‘परस्मैपदी रूप’ बनाने के लिये सिच् का लुक् करके बने हुए प्रत्यय लगायें ? विधि - पृष्ठ - १५९ गा, स्था, घुसंज्ञक पाँच दा, धा, पा, घ्रा, धेट् (धा) शा, छा, सा तथा भू, इन १४ धातुओं के लुङ् लकार के ‘परस्मैपदी रूप’ बनाने के लिये सिच् का लुक् करके बने हुए प्रत्यय लगाइये। __ ध्यान रहे कि इन धातुओं के आत्मनेपदी रूप बनाने के लिये ‘सिच्’ से बने हुए प्रत्यय ही लगाये जायें। किन धातुओं के लुङ् लकार के ‘परस्मैपदी रूप’ बनाने के लिये सक् + इट् + सिच् से बने हुए प्रत्यय लगायें ? विधि - पृष्ठ - १६२ गा, स्था, घुसंज्ञक पाँच दा, धा, पा, घ्रा, धेट (धा) शा, छा तथा सा इन १३ आकारान्त धातुओं को छोड़कर शेष आकारान्त धातुओं तथा यम्, रम्, नम् धातुओं के लुङ् लकार के परस्मैपदी रूप’ बनाने के लिये सक् + इट + सिच् से बने हुए प्रत्यय लगाइये। ध्यान रहे कि इन धातुओं के आत्मनेपदी रूप बनाने के लिये ‘सिच्’ से बने हुए प्रत्यय ही लगाये जायें। किन धातुओं के लुङ् लकार के ‘परस्मैपदी रूप’ बनाने के लिये अङ् से बने हुए प्रत्यय लगायें ? विधि - पृष्ठ - १६४ असु क्षेपणे धातु - असु धातु जब सोपसर्ग होगा तब उसमें अङ् से बने हुए आत्मनेपदी प्रत्यय लगेंगे और जब असु धातु अनुपसर्ग होगा तब उसमें (viii) अङ् से बने हुए परस्मैपदी प्रत्यय लगेंगे। वच् धातु - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि एक वच परिभाषणे, परस्मैपदी धातु है, इससे लुङ् लकार में अङ् से बने हुए केवल परस्मैपदी प्रत्यय लगेंगे। एक ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि धातु है, जो कि उभयपदी है। इस धातु को आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ब्रुवो वचि: सूत्र से वच् आदेश होता है। चूंकि यह धातु उभयपदी है अतः इससे लुङ् लकार में अङ् से बने हुए उभयपदी प्रत्यय लग सकते हैं। ख्या धातु - ख्या प्रकथने यह धातु अदादिगण का है, इससे लुड् लकार में अङ् से बने हुए ये प्रत्यय लगते हैं तथा जो अदादिगण का चक्षिङ् धातु है उसे जब आZधातुक प्रत्यय परे होने पर चक्षिङ: ख्याञ् सूत्र से ख्या आदेश होता है, तब उससे भी लुङ् लकार में ये अङ् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं।। लिप उपदेहे, षिच क्षरणे, तथा हृञ् स्पर्धायाम् - इन तीन धातुओं से भी लुङ् लकार में अङ् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। लिप्, षिच् तथा हे ये तीनों धातु उभयपदी हैं। इनके लिये व्यवस्था यह है कि ये जब परस्मैपद में हों तब इनसे अङ् से बने प्रत्यय लगते है। किन्तु यदि इन धातुओं का आत्मनेपद में प्रयोग करना हो तब इनसे अङ् से बने हुए आत्मनेपदी प्रत्यय भी लग सकते हैं तथा सिच् से बने हुए आत्मनेपदी प्रत्यय जो अन्त में दिये जा रहे हैं, वे भी लग सकते हैं। __ पुषादिगण के धातु - दिवादिगण का धातुपाठ देखिये। इसमें एक पुषादि अन्तर्गण है जो पुष पुष्टौ (११०७) से लेकर ष्णिह प्रीतौ (११६८) तक है। इन पुषादि धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये परस्मैपद में इन अङ् से बने हुए प्रत्ययों को लगाया जाता है। ये पुषादि धातु इस प्रकार हैं - शक असु जसु तसु दसु रसु यसु मसी श्लिष ष्विदा षिधु बिस रिष डिप क्लदू मिदा क्ष्विदा पुष शुष तुष . दुष क्रुध क्षुध शुध व्युष प्लुष बुस मुस लुट उच रुष कुप गुप युप रुप लुप लुभ क्षुभ णभ तुभ भृशु वृश कृश तृषा हृष गृधु शमु तमु दमु श्रमु भ्रम क्षमु क्लमु मदी तृप् दृप दुह मुह ष्णुह ष्णिह ऋधु रध __णश (ix) कुंस भ्रंशु = ६५ कि पुषादि अन्तर्गण के तृप, दृप् धातुओं के लिये विशेष - __ पुषादि अन्तर्गण के धातुओं में से जो तृप्, दृप् धातु हैं, इनसे अङ् और सिच से बने हुए प्रत्यय विकल्प से लग सकते हैं। पुषादि अन्तर्गण में श्लिष् धातु है। जब इसका अर्थ आलिङ्गन करना नहीं होता है, अपितु चिपकना आदि होता है, तब इससे अङ् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। जब इसका अर्थ आलिङ्गन करना होता है, तब इससे क्स से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। द्युतादिगण के धातु - भ्वादिगण का धातुपाठ देखिये। इसमें एक द्युतादि अन्तर्गण है। जो द्युत दीप्तौ (८५६) से लेकर कृपू सामर्थ्य (८६९) तक है। इन धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये परस्मैपद में इन अङ् से बने हुए प्रत्ययों को लगाया जाता है। आत्मनेपद में सिच् से बने हुए प्रत्ययों को ही लगाया जाता है। ये धुतादि धातु इस प्रकार हैं - द्युत रुच घुट रुट लुट लुठ शुभ क्षुभ तुभ णभ भ्रंशु वृतु वृधु श्रृधु स्यन्दू कृपू श्विता मिदा ष्विदा स्रंसु ध्वंसु भ्रंसु ध्वंसु ख्रभु। लुदित् धातु - आप्ट शक्ट पत्ल षद्ल गम्ल कृप्ट शद्ल मुल लुप्ल विद्ल शिष्ल पिष्ल घस्ट विष्ल = १४ इन पुषादि, द्युतादि तथा लदित् धातुओं में से जो धातु परस्मैपदी है उनसे ही यह अङ से बने हए प्रत्यय लगेंगे। जो धातु आत्मनेपदी हैं, उनसे सिच् से बने हुए प्रत्यय ही लगेंगे। सृ धातु, शास् धातु तथा ऋ धातु - के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये भी इन अङ् से बने हुए प्रत्ययों को लगाते हैं। ‘ऋ’ धातु के लिये विशेष - ऋ धातु जब सम् उपसर्ग से युक्त होता है तब वह आत्मनेपदी हो जाता है। जब यह परस्मैपदी होता है, तब इसमें अङ् से बने हुए परस्मैपद के प्रत्यय लगते हैं किन्तु जब यह आत्मनेपदी होता है, तब इसमें अङ् से बने हुए आत्मनेपदी प्रत्यय लगते हैं। इरित् धातु - पूरे धातुपाठ में जिन धातुओं में इर् की इत् संज्ञा हुई है वे धातु इरित् धातु हैं। इन इरित् धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये ये अङ् से बने हुए प्रत्यय विकल्प से लगाये जाते हैं। अर्थात् हम चाहें तो अङ् से बने हुए प्रत्यय लगायें, चाहें तो अन्त में कहे हुए सिच् से बने हुए प्रत्यय लगायें। धातुपाठ के कुल इरित् धातु इस प्रकार च्युतिर् श्चुतिर् श्च्युतिर् स्फुटिर् घुषिर् तुहिर् दुहिर् उहिर् स्कन्दिर् दृशिर् बुधिर् णिजिर् विजिर् शुचिर् रुधिर् भिदिर् छिदिर् क्षुदिर् उच्छृदिर् उतृदिर् रिचिर् विचिर् युजिर् दृश् धातु के लिये विशेष - न दृश: - इरित् धातुओं में से जो दृश् धातु है, इससे अङ् और सिच् से बने हुए प्रत्यय विकल्प से लग सकते हैं। जृष् वयोहानौ, मुचु, म्युचु गत्यर्थों, ग्रुचु ग्लुचु स्तेयकरणे, ग्लुञ्चु गतौ, टुओश्वि गतिवृद्धयोः धातु - इन धातुओं से तथा स्तन्भु धातु जो धातुपाठ में न होकर इस सूत्र में होने के कारण सौत्र धातु है, उससे, लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये ये अड् से बने हुए प्रत्यय विकल्प से लगाये जाते हैं। अर्थात् हम चाहें तो अङ् से बने हुए प्रत्यय लगायें, चाहें तो अन्त में कहे हुए सिच् से बने हुए प्रत्यय लगायें। कृ, मृ, दु, रुह् धातु - इन धातुओं से वेद में लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये अङ् प्रत्यय का प्रयोग होता है। अतः ध्यान रहे कि लोक में अर्थात् संस्कृत भाषा में यदि इन धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाना हो तो अङ् का प्रयोग न करके यथाविहित प्रत्ययों का प्रयोग करें। लोक में कृ, मृ, दृ, धातुओं से सिच् से बने हुए तथा रुह् धातु से क्स से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। __ किन धातुओं के लुङ् लकार के ‘परस्मैपदी रूप’ बनाने के लिये चङ् से बने हुए प्रत्यय लगायें ? विधि - पृष्ठ - १७३ श्रि, द्रु धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये उनमें चङ् से बने हुए प्रत्यय लगाये जाते हैं। जिस भी धातु से ‘णिच्’ या णि’ प्रत्यय लगे हों, ऐसे ण्यन्त धातुओं (xi) के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये भी उनमें चङ् से बने हुए प्रत्यय लगाये जाते हैं। किन धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये क्स से बने हुए प्रत्यय लगायें ? विधि - पृष्ठ - २०६ क्रुश्, दिश्, रिश्, रुश्, लिश्, विश्, त्विष्, द्विष, मिह रुह, लिह, दिह, दुह् इन १३ धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये क्स से बने हुए प्रत्यय लगते है। श्लिष् धातु का अर्थ जब आलिङ्गन करना होता है, तब तो उससे क्स से बने हुए प्रत्यय लगते हैं, तथा जब इसका अर्थ चिपकना होता है, तब उससे अङ् से बने हुए प्रत्यय ही लगते हैं, यह ध्यान रखना चाहिये। स्पृश्, मृश्, कृष् इन धातुओं से क्स से बने हुए और सिच् से बने हुए दोनों ही प्रत्यय विकल्प से लगते हैं। किन धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये सिच् से बने हुए प्रत्यय लगायें ? विधि - २०९ - २७८ । इन सारे प्रत्ययों से जो धातु बच जायें, उन धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये सिच् से बने हुए प्रत्यय लगायें। ये धातु इस प्रकार हैं १. आकारान्त तथा एजन्त धातु - जब आकारान्त तथा एजन्त धातु आत्मनेपदी होते हैं, तब उनसे सिच् से बने हुए अनिट् प्रत्यय लगाये जाते हैं। केवल एक आकारान्त धातु हे (ह्वा) धातु ऐसा है, जिससे आत्मनेपद में सिच् से बने हुए प्रत्यय तथा अङ् से बने हुए प्रत्यय विकल्प से लगते हैं। अह्वत / अह्वास्त। २. इकारान्त, ईकारान्त धातु - इनमें शिव धातु से अङ्, चङ् और सिच् ये तीन प्रत्यय लग सकते हैं । श्रि धातु से केवल चङ् लगता है। शेष इकारान्त धातुओं से सिच् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। ३. उकारान्त, ऊकारान्त धातु - इनमें भू धातु से सिज्लुक कहा गया है। द्रु, त्रु से चङ् कहा गया है। इन तीन को छोड़कर सारे उकारान्त, ऊकारान्त धातुओं से सिच् प्रत्यय ही लगेगा। (xii) ४. ऋकारान्त, ऋकारान्त धातु - सृ धातु से तथा ऋ धातु से अङ् प्रत्यय कहा गया है। जृ से विकल्प से अङ् और सिच् कहे गये हैं। कृ, मृ, दृ से केवल वेद में अङ् कहा है, अतः सृ, ऋ के अलावा सारे ऋकारान्त, ऋकारान्त धातुओं से लोक में, ये सिच् से बने हुए प्रत्यय ही लगेंगे। ५. हलन्त धातु - पहिले उन हलन्त धातुओं को अलग कर दें, जिनसे अन्य अन्य प्रत्यय लग चुके हैं। ये धातु इस प्रकार हैं। क. क्रुश्, दिश्, रिश्, रुश्, लिश्, विश्, त्विष्, द्विष्, श्लिष्, दिह, दुह्, मिह रुह, लिह, इन चौदह शलन्त इगुपध धातओं से क्स से बने हुए प्रत्यय ही लगते हैं। ख. लिप्, सिच्, इन दो हलन्त धातुओं से परस्मैपद में अङ् से बने हुए प्रत्यय कहे गये हैं। अतः आत्मनेपद में सिच् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। ग. यम्, रम्, नम्, इन तीन हलन्त धातुओं से परस्मैपद में सक् + सिच् से बने हुए प्रत्यय कहे गये हैं। अतः आत्मनेपद में सिच् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। घ. स्पृश्, मृश्, कृष् इन शलन्त इगुपध धातुओं से क्स और सिच् दोनों ही प्रत्यय विकल्प से लग सकते हैं। __ङ. दिवादिगण के अन्तर्गत पुष् से गृध् तक, जो ६५ धातुओं का पुषादि अन्तर्गण है, उन पुषादि धातुओं से अङ् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। __ तृप्, दृप् ये दोनों धातु भी पुषादि अन्तर्गण में आते हैं, तथापि इनसे अङ् और सिच् से बने हुए प्रत्यय विकल्प से लग सकते हैं। अतः यह जानिये कि ६३ पुषादि धातुओं से अङ्, तथा २ पुषादि धातुओं से अङ् और सिच् दोनों ही प्रत्यय लग सकते हैं। __च. भ्वादि गण के भीतर द्युत दीप्तौ से कृपू सामर्थ्य तक जो २२ धातुओं का द्युतादि अन्तर्गण है, उनसे परस्मैपद में केवल अङ् प्रत्यय लगता है। आत्मनेपद में सिच् प्रत्यय लगता है। छ. अस्, वच्, शास् इन तीन धातुओं से केवल अङ् प्रत्यय लगता है। __ज. १४ तृदित् धातु हैं, उन लृदित् धातुओं से भी केवल अङ् प्रत्यय लगता है। झ. २३ इरित धातु हैं। इनसे भी केवल अङ् प्रत्यय लगता है। (xiii) ञ. मुचु, म्युचु गत्यर्थों, ग्रुचु, ग्लुचु स्तेयकरणे, ग्लञ्चु गतौ, तथा स्तन्भु धातु से, लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये अङ् से बने हुए प्रत्यय विकल्प से लगाये जाते हैं। अतः इनसे एक पक्ष में अङ् से बने हुए प्रत्यय तथा द्वितीय पक्ष में सिच् से बने हुए प्रत्यय लगते हैं। __ट. रुह् धातु से वेद में लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये अङ् प्रत्यय का प्रयोग होता है तथा लोक में रुह् धातु के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये सिच् प्रत्यय का प्रयोग होता है। ये कुल १५१ धातु हैं। इन १५१ हलन्त धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने के लिये ऊपर कहा हुआ विचार कीजिये। शेष हलन्त धातुओं से लुङ् लकार में सिच् से बने हुए प्रत्यय ही लगाइये। यह भी ध्यान रखिये कि जो सेट् प्रत्यय हैं, वे सेट् धातुओं से लगाये जायें तथा जो अनिट् प्रत्यय हैं, वे अनिट् धातुओं से ही लगाये जायें। परस्मैपदी प्रत्यय, परस्मैपदी धातुओं से लगाये जायें तथा आत्मनेपदी प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं से लगाये जायें। धातुओं में सिच् से बने हुए प्रत्यय लगाने की विधि सिच से बने हुए प्रत्यय २०८ / इडागम विधि २१० / वे धातु जिनसे सिच से बने हुए प्रत्यय लगाना है २१५ / अतिदेश २१८ / अजन्त सेट् आत्मनेपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २२१/ हलन्त सेट् आत्मनेपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २२३/ अजन्त अनिट् आत्मनेपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २२८/ हलन्त अनिट् आत्मनेपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २३४ / कुटादि परस्मैपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २४९ / कुटादि धातुओं से बचे हुए, अजन्त अनिट् परस्मैपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २५० / कुटादि धातुओं से बचे हुए, अजन्त सेट् परस्मैपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २५२ / कुटादि धातुओं से बचे हुए, हलन्त अनिट् परस्मैपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २५५ / कुटादि धातुओं से बचे हुए, हलन्त सेट् परस्मैपदी धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि २७४। नवम पाठ - समस्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि (xiv)
  • २७९ - ३८८ लिट् लकार के प्रत्यय २७९ / धात्वादेश २८० / उन इजादि गुरुमान् धातुओं के लिट् लकार के रूप, जिन्हें लिट् लकार में द्वित्व नहीं होता २८२ । इजादि गुरुमान् धातुओं से बचे हुए धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि __पृष्ठ २८७ से ३८८ तक। हलादि धातुओं को द्वित्व तथा अभ्यासकार्य करने की विधि २८७ / अजादि धातुओं को द्वित्व तथा अभ्यासकार्य करने की विधि २९४ / सम्प्रसारणी धातुओं को द्वित्व तथा अभ्यासकार्य करने की विधि २९६ / लिट् लकार के प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था ३०२ / षत्व तथा ढत्व विधि ३११ / प्रत्ययो के स्वरूप का निर्धारण करके अङ्गकार्य करना ३१२ / आकारान्त तथा एजन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि | ३१५ / इकारान्त तथा ईकारान्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३२२ / उकारान्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३२९ / ऊकारान्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३३३ / ऋकारान्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३३४ / दीर्घ ऋकारान्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३३९/ __ हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने के लिये सन्धि का स्मरण ३४३ / सम्प्रसारणी हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३४९ / सम्प्रसारणी हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३४९ / नलोपी हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३५४ / एत्वाभ्यासलोपी हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३५७ / सम्प्रसारणी तथा एत्वाभ्यासलोपी हलन्त धातुओं से बचे हुए अदुपध धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३६९ / सम्प्रसारणी तथा एत्वाभ्यासलोपी हलन्त धातुओं से बचे हुए इदुपध धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३७३ / सम्प्रसारणी तथा एत्वाभ्यासलोपी हलन्त धातुओं से बचे हुए उदुपध धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३७५ / सम्प्रसारणी तथा एत्वाभ्यासलोपी (xv) हलन्त धातुओं से बचे हुए ऋदुपध धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३७७ / शेष हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप बनाने की विधि ३७९ / ३३ वेट तथा ८ अनिट् हलन्त धातुओं के लिट् लकार के रूप ३८१ । दशम पाठ - समस्त धातुओं के णिजन्त रूप बनाने की विधि - ३८९ - ४०३ एकादश पाठ - समस्त धातुओं के भावकर्म बनाने की विधि - ४०४ – ४३३ भ्वादिगण से क्रयादिगण के धातुओं के भावकर्म में सार्वधातुक लकार बनाने की विधि ४०५ - ४१६ / चुरादिगण के धातुओं के भावकर्म में सार्वधातुक लकार बनाने की विधि ४१७ / प्रत्ययान्त धातुओं के भावकर्म में सार्वधातुक लकार बनाने की विधि ४१८ / धातुओं के भावकर्म में आर्धधातुक लकार बनाने की विधि ४१९ - ४३३। । __ द्वादश पाठ - समस्त धातुओं के कर्मकर्तृ रूप बनाने की विधि - ४३४ - ४३७ त्रयोदश पाठ - समस्त धातुओं के यङन्त रूप बनाने की विधि - ४३४ - ४३७ यङ् प्रत्यय किन किन धातुओं से लगायें ४३७ / यङ् प्रत्यय परे होने पर होने वाले सामान्य अङ्गकार्य करना, सम्प्रसारण आदि करके धातु को द्वित्व करना ४३९ / यङ् प्रत्यय परे होने पर होने वाले सामान्य अभ्यासकार्य करना, ४४९ / यङ् प्रत्यय परे होने पर होने वाले विशेष अभ्यासकार्य करना ४५४ / अजादि धातुओं के यङन्त रूप बनाना ४६३ । चतुर्दश पाठ - समस्त धातुओं के यङ्लुगन्त रूप बनाने की विधि - ४६५ - ४९२ पञ्चदश पाठ - समस्त धातुओं के सन्नन्त रूप बनाने की विधि - ४९३ - ५५३ सन् प्रत्यय का अर्थ ४९३ / धात्वादेश ४९४ / इडागम विधि ४९४ / अतिदेश ५०२ / अङ्गकार्य ५०४ / षत्वविधि ५०४ / अजादि धातुओं के सन्नन्त रूप बनाने की विधि ५०६ / अजादि णिजन्त धातुओं के सन्नन्त रूप बनाने की विधि ५१५ । (xvi) हलादि धातुओं के सन्नन्त रूप बनाने की विधि - अङ्गादिकार्य ५१६ / हलादि धातुओं को द्वित्व करने की विधि ५१९ / अभ्यासकार्य ५२१ / हलादि आकारान्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५२७ / हलादि इकारान्त, ईकारान्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५२९ / हलादि उकारान्त, ऊकारान्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५३० / हलादि ऋकारान्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५३२ / हलादि ऋकारान्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५३३ / हलादि सेट हलन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५३४ / हलादि अनिट् तथा वेट हलन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५३८ / हलादि णिजन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ५५१।। __षोडश पाठ - नामधातु बनाने की विधि - ५५३ - ५९२ नामधातु किसे कहते हैं ५५३ / क्यच् प्रत्यय लगाकर नामधातु बनाने की विधि ५५६ / काम्यच् प्रत्यय लगाकर नामधातु बनाने की विधि ५६२ / क्यङ् प्रत्यय लगाकर नामधातु बनाने की विधि ५६३ / क्यष् प्रत्यय लगाकर नामधातु बनाने की विधि ५७० / क्विप् प्रत्यय लगाकर नामधातु बनाने की विधि ५७१ / णिच् प्रत्यय लगाकर नामधातु बनाने की विधि ५७४/ णिङ् प्रत्यय लगाकर नामधातु बनाने की विधि ५९२ / सप्तदश पाठ - लकारों के अर्थ - ५९३ -६०८ __लट् लकार के अर्थ ५९३ / लिट् लकार के अर्थ ५९६ / लुट् लकार के अर्थ ५९७ / लृट् लकार के अर्थ ५९७ / लेट् लकार के अर्थ ५९९ / लोट् लकार के अर्थ ५९९ / लङ् लकार के अर्थ ६०२ / लिङ् लकार के अर्थ ६०३ / लुङ् लकार के अर्थ ६०६ / लुङ् लकार के अर्थ ६०७ । _ अष्टादश पाठ - च्चि, साति, त्रा, डाच्, प्रत्यय लगाकर रूप बनाने की विधि - ६०९ - ६१६ । एकोनविंशति पाठ - अष्टाध्यायी कैसे पढ़ें - ६१७ - ६१९ विंशति पाठ - अष्टाध्यायी सूत्रपाठ ( तिङन्तोपयोगी ) - ६२२ - ६३३ सूत्रवार्तिकाद्यनुक्रमणिका - ६३४ - ६४४ आर्धधातुक खण्ड