लट् लकार
_वर्तमाने लट् (३.२.१२३) - प्रारम्भ की हुई क्रिया जब तक समाप्त नहीं होती, तब तक का काल वर्तमानकाल कहलाता है। ऐसे वर्तमानकाल में विद्यमान धातु से लट् लकार होता है। जैसे - पचति - पकाता है। पठति - पढ़ता है। भवति - होता है। यद्यपि लट् लकार वर्तमानकाल में होता है, तथापि कभी कभी अन्य कालों में भी होने लगता है। अतः हम विस्तार से जानें कि लट् लकार का प्रयोग कब कब किस प्रकार किया जा सकता है। लट् स्मे (३.२.११८) - परोक्ष अनद्यतन भूतकाल में वर्तमान धातु से स्म शब्द उपपद में रहने पर लट् लकार होता है। जैसे - युधिष्ठिरो यजते स्म। (युधिष्ठिर यज्ञ करते थे।) धर्मेण पाण्डवा युध्यन्ते स्म। ( पाण्डव धर्म से युद्ध करते थे।) नलेन पुरा अधीयते स्म - नल पहिले पढ़ते थे। अपरोक्षे च (३.२.११९) - अपरोक्ष अनद्यतन भूतकाल में वर्तमान धातु से भी ‘स्म’ शब्द उपपद में रहने पर, लट् लकार होता है। जैसे - गुरु: माम् अध्यापयति स्म (मुझको गुरुजी पढ़ाया करते थे।) पिता माम् ब्रवीति स्म ( पिताजी मुझसे बोला करते थे।) मया सह पुत्रो गच्छति स्म। (मेरे साथ पुत्र जाया करता था।) __ननौ पृष्टप्रतिवचने (३.२.१२०) - पृष्टप्रतिवचन अर्थात् ‘पूछे जाने पर जो उत्तर दिया जाये’ इस अर्थ में, धातु से ‘ननु’ शब्द उपपद में रहने पर, सामान्य भूतकाल में लट् लकार होता है। जैसे - अकार्षीः कटं देवदत्त ? ननु करोमि भोः (देवदत्त, तूने चटाई बना ली, जी हाँ बनाई है।) यह पृष्टप्रतिवचन हुआ। ननु उपपद में है ही। अतः करोमि में लट् लकार हुआ है। नन्वोर्विभाषा (३.२.१२१) - पृष्टप्रतिवचन अर्थ में धातु से ‘न’ अथवा [[५९४]] ‘नु’ शब्द उपपद में रहते, सामान्य भूतकाल में विकल्प से लट् तथा लुङ् लकार होते हैं। जैसे - ‘न’ उपपद में होने पर - अकार्षी: कट देवदत्त ? न करोमि भोः / नाकार्षम् (देवदत्त तूने चटाई बना क्या ? नहीं बनाई।) ‘नु’ उपपद में होने पर - अकार्षी: कटं देवदत्त ? अहं नु करोमि । अहं न्वकार्षम् (दवदत्त तूने चटाई बनाई क्या ? हाँ, मैंने बनाई।) पुरि लुङ् चास्मे (३.२.१२२) - स्म शब्द रहित पुरा शब्द उपपद में हो, तो अनद्यतन भूतकाल में धातु से लट्, लुङ्, लङ्, लिट् लकार विकल्प से होते हैं। जैसे - यह पहले रथ से गया था - लट् - रथेनायं पुरा याति। लुङ् - रथेनायं पुराऽयासीत् । लङ् - रथेनायं पुराऽयात् । लिट् - रथेनायं पुरा ययौ । __ इसी प्रकार - यहाँ छात्र रहते थे - लट् - वसन्तीह पूरा छात्राः । लुङ् - अवात्सुः पुरा छात्रा: । लङ् - अवसन् पुरा छात्रा: । लिट् – ऊषुः पुरा छात्रा: । स्म शब्द उपपद में होने पर केवल लट् लकार होगा - नलेन पुरा अधीयते स्म। नल पहिले पढ़ा करते थे। __ यावत्पुरानिपातयोर्लट् (३.३.४) - यावत् और पुरा निपात उपपद में हों, तो भविष्यत् काल में लट् लकार होता है। जैसे - यावद् भुङ्क्ते, पुरा भुङ्क्ते । विभाषा कदाको : (३.३.५) - कदा और कर्हि शब्द उपपद में हों तो भविष्यत् काल में धातु से विकल्प से लट्, लट् तथा लुट् लकार होते हैं। __ जैसे - कब खायेगा - लट् - कदा भुङ्क्ते। लट् - कदा भोक्ष्यते। लुट - कदा भोक्ता। कब खायेगा - लट् - कर्हि भुङ्क्ते । लट् - कर्हि भोक्ष्यते। लुट - कर्हि भोक्ता। किं वृत्ते लिप्सायाम् (३.३.६) - किम् शब्द के किसी भी विभक्ति के रूप उपपद में होने पर, अथवा किम् शब्द से बने हुए कतर, कतम आदि शब्द उपपद में होने पर, लिप्सा अर्थ गम्यमान होने पर, भविष्यत् काल में धातु से विकल्प से लट, लट् तथा लुट् लकार होते हैं। जैसे - आप किसको खिलायेंगे - लट् - कं, कतरं, कतमं वा भवान् भोजयति। लट् - कं, कतर, कतमं वा भवान् भोजयिष्यति। लुट - कं, कतरं, कतमं वा भवान् भोजयिता। - लिप्स्यमानसिद्धौ च (३.३.७) - लिप्स्यमान अर्थात् चाहे जाते हुए अभीष्ट पदार्थ से सिद्धि गम्यमान हो तो भविष्यत् काल में धातु से विकल्प से लट्, लट् तथा लुट् लकार होते हैं। जैसे - जो भात देगा वह स्वर्ग जायेगा। लट् - यो भक्तं ददाति स स्वर्गं गच्छति। लट् - यो भक्तं दास्यति स स्वर्ग लकारों के अर्थ ५९५ गमिष्यति। लुट् - यो भक्तं दाता स स्वर्गं गन्ता। लोडर्थ लक्षणे च (३.३.८) - करो, करो, ऐसा प्रेरित करना लोट् लकार का अर्थ है। इस अर्थ में वर्तमान धातु से भविष्यत् काल में विकल्प से लट्, लट् तथा लुट् लकार होते हैं। जैसे - यदि उपाध्याय जी आ जायेंगे, तो तुम छन्द तथा व्याकरण पढ़ना। लट् - उपाध्यायश्चेद् आगच्छति, अथ त्वं छन्दोऽधीष्व, व्याकरणमधीष्व । लट् - उपाध्यायश्चेद् आगमिष्यति , अथ त्वं छन्दोऽधीष्व, व्याकरणमधीष्व। लुट- उपाध्यायश्चेद् आगन्ता, अथ त्वं छन्दोऽधीष्व, व्याकरणमधीष्व। यहाँ लोडर्थ ‘अधीष्व’ है। वह आगमन क्रिया से लक्षित हो रहा है। अतः गम् धातु से लट्, लूट, लुट् लकार हुए हैं। वर्तमानसामीप्ये वर्तमानवद्वा (३.३.१३१) - यद्यपि लट् लकार वर्तमानकाल में होता है, तथापि वर्तमानकाल के बिल्कुल समीप जो भूतकाल हो, अथवा वर्तमानकाल के बिल्कुल समीप जो भविष्यत् काल हो, उनमें भी लट् लकार का प्रयोग, विकल्प से किया जा सकता है। जैसे - __ वर्तमान के समीपवर्ती भूतकाल में लट् लकार का प्रयोग - देवदत्त, कदा आगतोऽसि ? अयम् आगच्छामि। (दवदत्त, कब आये हो ? बस आ ही तो रहा हूँ।) / विकल्प से लुङ् लकार का प्रयोग भी किया जा सकता है। देवदत्त, कदा आगतोऽसि ? अयम् आगमम्।। __ वर्तमान के समीपवर्ती भविष्यत्काल में लट् लकार का प्रयोग - देवदत्त, कदा गमिष्यसि ? अयम् गच्छामि। (दवदत्त, कब जाओगे ? बस जा ही तो रहा हूँ।) विकल्प से लट्, लुट् लकारों का प्रयोग भी किया जा सकता है। देवदत्त, कदा गमिष्यसि ? अयम् गमिष्यामि / अयम् गन्तास्मि। विशेष - जिज्ञासु पाठक अष्टाध्यायी देखें। इसमें वर्तमाने लट् (३.२. १२३) से उणादयो बहुलम् (३.३.१) सूत्र तक केवल लट् ही नहीं, अपितु शत, शानच् आदि अनेक प्रत्यय कहे गये हैं। यह भी कहा गया है कि ये सारे प्रत्यय वर्तमान काल में ही होते हैं। किन्तु यदि वर्तमानकाल के समीप का भूतकाल हो, अथवा वर्तमानकाल के समीप का भविष्यत्काल हो, तो उसमें इन सूत्रों में कहे हुए वर्तमानकाल के शत, शानच् आदि सारे प्रत्यय भी विकल्प से हो सकते हैं, यह जानना चाहिये। [[५९६]] जैसे - देवदत्त, कदा आगतोऽसि ? आगच्छन्तम् एव मां विद्धि / एष आगतवान् । देवदत्त, कदा गमिष्यसि ? गच्छन्तम् एव मां विद्धि / एष गमिष्यामि। गर्दायां लडपिजात्वोः (३.३.१४२) - यदि निन्दा अर्थ गम्यमान हो, तो ‘अपि’ तथा ‘जातु’ उपपद में रहने पर धातु से लट् प्रत्यय होता है। __ जैसे - क्या आप मांस खाते हैं, आपने मांस खाया था, या आप मांस खायेंगे, यह बड़ा ही निन्दित कर्म है। इन तीनों लकारों के लिये लट् लकार का ही प्रयोग होगा। अपि तत्रभवान् मांसं खादति, गर्हितम् एतत् । इसी प्रकार जातु के योग में भी जानें - जातु तत्रभवान् मांसं खादति, गर्हितम् एतत्।
लिट् लकार
परोक्षे लिट् (३.२.११५) - परोक्ष का अर्थ होता है अक्षण: पर:। जो काल हमारी इन्द्रियों से न देखा गया हो ऐसे भूतकाल में वर्तमान धातु से, लिट लकार होता है। जैसे - चकार कट देवदत्त: (दवदत्त ने चटाई बनाई।) प्रश्ने चासन्नकाले (३.२.११७) - आसन्नकाल का अर्थ होता है समीप का काल । ऐसे समीप के अनद्यतन परोक्ष भूतकाल के विषय में, यदि प्रश्न किया जाये, तो धातु से लङ् तथा लिट् लकार विकल्प से होते हैं। __जैसे - देवदत्त अभी गया क्या ? किम् देवदत्तोऽगच्छत् ? किम् देवदत्तो जगाम ? छन्दसि लिट् (३.२.१०५) - वेदविषय में सामान्य भूतकाल में धातुमात्र से लिट् प्रत्यय होता है। जैसे - अहं सूर्यमुभयतो ददर्श। छन्दसि लुङ्ललिट: (३.४.६) - वेदविषय में धात्वर्थ सम्बन्ध होने पर विकल्प से लुङ्, लङ्, तथा लिट् प्रत्यय होते हैं। जैसे - दवो देवेभिरागमत् । यहाँ वर्तमानकाल में लुङ् लकार हुआ है। शकलागुष्ठोऽकरत् । यहाँ वर्तमानकाल में लुङ् लकार हुआ है। अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमान: । यहाँ वर्तमानकाल में लङ् लकार हुआ है। अहन्नहिमन्वपस्ततर्द । यहाँ वर्तमानकाल में लिट् लकार हुआ है। त्वष्टाऽस्मै वज्रं स्वततक्ष। यहाँ वर्तमानकाल में लिट् लकार हुआ है। पश्य देवस्य काव्यं न ममार न जीर्यति । यहाँ वर्तमानकाल में लिट् लकार हुआ है। स दाधार पृथिवीम् । यहाँ वर्तमानकाल में लिट् लकार हुआ है। लकारों के अर्थ ५९७
लुट् लकार
अनद्यतने लुट् (३.३.१५) - अनद्यतन भविष्यत् काल में धातु से लुट लकार होता है। (जिस काल में अद्यतन काल शामिल न हो, उसे अनद्यतन काल कहते हैं। बीती हुई रात्रि के अन्तिम प्रहर से लेकर आने वाली रात्रि के प्रथम प्रहर तक का काल अद्यतन काल कहलाता है। यह काल जिसमें सम्मिलित न हो उसे अनद्यतन काल कहते हैं। न विद्यते अद्यतनं यस्मिन् ।) जैसे - श्वः कर्ता (कल करेगा।) यह अनद्यतन भविष्यत्काल है।
लृट् लकार
लुट् शेषे च (३.३.१३) - परन्तु यदि इस काल में अद्यतन काल मिल जाये तो ऐसे व्यामिश्र काल में लुट का प्रयोग नहीं होगा, उसमें लूट का प्रयोग किया जायेगा। जैसे - अद्य श्वो वा भविष्यति। आज या कल होगा। अतः जानिये कि सामान्य भविष्यत्काल में लृट् लकार का प्रयोग किया जाता है। अभिज्ञावचने लृट् (३.२.११२) - अभिज्ञावचन अर्थात् स्मृति को कहने वाला कोई शब्द उपपद में हो, तो धातु से अनद्यतन भूतकाल में लृट् लकार होता है। जैसे - अभिजानासि देवदत्त, कश्मीरेषु वत्स्यामः । याद है देवदत्त, कि पहिले कश्मीर में रहे थे। न यदि (३.२.११३) - यत् शब्द सहित अभिज्ञावचन उपपद में हो, तो धातु से अनद्यतन भूतकाल में लृट् लकार नहीं होता, अतः जो लङ् लकार प्राप्त था, वही हो जाता है। जैसे - अभिजानासि देवदत्त, यत् कश्मीरेषु अवसाम। विभाषा साकाक्षे (३.२.११४) - अभिज्ञावचन उपपद में हो, तो यत् शब्द का प्रयोग हो या न हो, धातु से अनद्यतन भूतकाल में लृट् लकार विकल्प से होता है, यदि प्रयोक्ता साकाङ्क्ष हो तो। जैसे - अभिजानासि देवदत्त, यत् कश्मीरेषु वत्स्यामः, तत्र ओदनं भोक्ष्यामहे। अभिजानासि देवदत्त; यत् मगधेषु वत्स्यामः, तत्र सक्तून् पास्यामः । क्षिप्रवचने लुट् (३.३.१३३) - शीघ्रवाची शब्द उपपद में होने पर धातु से अनद्यतन भूतकाल में लट् लकार होता है। जैसे - उपाध्यायश्चेद् क्षिप्रं त्वरितं आशु शीघ्रं वा आगमिष्यति, क्षिप्रं त्वरितं आशु शीघ्रं वा व्याकरणम् अध्येष्यामहे । किंवृत्ते लिङ्लुटौ (३.३.१४४) - किंवृत्त का अर्थ होता है किम् से बने हुए शब्द। अतः किम् शब्द के किसी भी विभक्ति के रूप अथवा किम् शब्द से [[५९८]] बने हुए कतर, कतम शब्द उपपद में होने पर, गर्दा अर्थ गम्यमान होने पर धातु से लिङ् तथा लृट् लकार होते हैं। जैसे - को नाम यो विद्यां निन्देत्, को नाम यो विद्यां निन्दिष्यति। कतरो विद्यां निन्देत्, कतरो विद्यां निन्दिष्यति । लृट् के उदाहरण लृट् लकार में देखें। अनवक्लप्त्यमर्षयोरकिंवत्तेऽपि (३.३.१४५) - अनवक्लप्ति अर्थात् असम्भावना, अमर्ष अर्थात् सहन न करना, ये अर्थ गम्यमान हों, तो किंवृत्त शब्द उपपद में हों, या किंवृत्त शब्द उपपद में न हों, तो भी धातु से काल सामान्य में, सब लकारों के अपवाद लिङ् तथा लृट् लकार होते हैं। जैसे - अनवक्लप्ति अर्थ में - नावकल्पयामि, न सम्भावयामि, न श्रद्दधे, तत्रभवान् नाम मांसं भुञ्जीत। मैं सोच भी नहीं सकता, कि आप मांस खाते हैं। अमर्ष अर्थ में - न मर्षयामि तत्रभवान् विद्यां निन्देत् । मैं सहन नहीं कर सकता कि आप विद्या की निन्दा करते हैं। किंकिलास्त्यर्थेषु लृट् (३.३.१४६) - अनवक्तृप्ति अर्थात् असम्भावना, अमर्ष अर्थात् सहन न करना, ये अर्थ गम्यमान हों, तो किंकिल तथा अस्ति अर्थ वाले पदों के उपपद रहते धातु से लृट् लकार होता है। जैसे - अस्ति, भवति, विद्यते, ये सब अस्त्यर्थक पद हैं । किंकिल यह क्रोध का द्योतन करने वाला शब्द है। किंकिल के उपपद में रहने पर - न संभावयामि, किंकिल भवान् धान्यं न दास्यति। मैं सोच भी नहीं सकता कि आप धान्य नहीं देंगे। न मर्षयामि, किंकिल भवान् धान्यं न दास्यति । मैं सहन नहीं कर सकता कि आप धान्य नहीं देंगे। अस्ति, विद्यते, भवति आदि के उपपद में रहने पर - न संभावयामि, अस्ति भवान् मां त्यक्ष्यति। मैं सोच भी नहीं सकता कि आप मुझे छोड़ देंगे। न संभावयामि, विद्यते भवान् मां त्यक्ष्यति। मैं सोच भी नहीं सकता कि आप मुझे छोड़ देंगे / न संभावयामि, भवति भवान् मां त्यक्ष्यति। मैं सोच भी नहीं सकता कि आप मुझे छोड़ देंगे। इसी प्रकार ‘मर्षयामि’ का प्रयोग करें। शेषे लुडयदौ (३.३.१५१) - ‘यदि’ शब्द का प्रयोग न हो और यच्च’ ‘यत्र’ से भिन्न शब्द उपपद में हो तो चित्रीकरण अर्थात् आश्चर्य अर्थ गम्यमान होने पर, धातु से लृट् लकार होता है। जैसे - अन्धो नाम मार्गे क्षिप्रं यास्यति, बधिरो नाम व्याकरणं पठिष्यति, आश्चर्यमेतत् । लकारों के अर्थ ५९९
लेट् लकार
लिङर्थे लेट् (३.४.७) - वेदविषय में लिङ् के अर्थ में धातु से विकल्प से लेट् लकार होता है। जैसे - जोषिषत्, तारिषत्, मन्दिषत्।। व उपसंवादाशङ्कयोश्च (३.४.८) - उपसंवाद तथा आशङ्का गम्यमान हों, तो भी धातु से वेदविषय में लेट् प्रत्यय होता है। जैसे - उपसंवाद - निहारं च हरासि मे निहारं निहराणि ते स्वाहा। तू मुझे क्रेतव्य वस्तु दे, तो मैं भी तुझे ढूँ। आशङ्का - नेज्जिह्मायन्तो नरकं पताम । कुटिल आचरण करते हुए कहीं हम नरक में न जा गिरें।
लोट् लकार
लोट् च (३.३.१६२) - विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अधीष्ट, संप्रश्न तथा प्रार्थना, ये विधिलिङ् लकार के अर्थ हैं। इन्हीं अर्थों में लोट् लकार का भी प्रयोग किया जा सकता है। विधि - विधि का अर्थ है - अपने से छोटे किसी व्यक्ति को काम से लगाना। जैसे - स्वामी सेवक से कहता है - वस्त्रं क्षालये: - कपड़े धो दो। निमन्त्रण - श्राद्ध आदि में दौहित्र (नाती) आदि को भोजन के लिए बुलाना। इह श्राद्धे भवान् भुञ्जीत । आमन्त्रण - जहाँ कार्य को करना या न करना, करने वाले की इच्छा पर छोड़ दिया जाये, उस कामाचारानुज्ञा को आमन्त्रण कहते है। यथा - इह भवान् भुञ्जीत - आप यहाँ भोजन करें। करें या न करें, यह आपकी इच्छा। अधीष्ट - सत्कार पूर्वक व्यापार को अधीष्ट कहते हैं। जैसे - मेरे बच्चे को आप पढ़ा दीजियेगा। भवान् माणवकम् अध्यापयेद् । संप्रश्न - इस प्रकार का काम करें या न करें, ऐसे विचार को संप्रश्न कहते हैं। क्यों भाई, क्या मैं व्याकरण पहूँ ? किं नु खलु भोः व्याकरणमधीयीय? प्रार्थन - प्रार्थन, याच्या (माँगना) को कहते हैं। भवान् मे अन्नं दद्यात् । (वस्तुत: जब भी किसी को, किसी काम में लगाया जाये, तो उसे प्रवर्तना कहते हैं। ये विधि आदि सब प्रवर्तना के ही भेद हैं।) इच्छार्थेषु लिङ्लोटौ (३.३.१५७) - इच्छार्थक धातुओं के उपपद रहने पर, धातुओं से लिङ्, लोट, लकार होते हैं। जैसे - मै चाहता हूँ कि आप भोजन ६०० अष्टाध्यायी सहजबोध…… कर लें - इच्छामि भुञ्जीत भवान् / इच्छामि भुक्तां भवान् । आशिषि लिङ्लोटौ (३.३.१७३) - आशी: का अर्थ होता है - अप्राप्त को पाने की इच्छा, न कि आशीर्वाद देना। इस अर्थ में लिङ् तथा लोट् लकारों का प्रयोग होता है। यथा - लोट् - चिरं जीवतु भवान् । लिङ् - आयुष्यं भूयात् । चिरं जीव्याद् भवान् / शत्रु: म्रियात् । क्रियासमभिहारे लोट् लोटो हिस्वौ वा च तध्वमोः (३.४.२) - यदि कोई क्रिया बार बार हो या बहुत अधिक हो, तो उस धातु से लोट् लकार हो जाता है और उस लोट् के स्थान पर सब कालों, तथा सब पुरुषों में, हि तथा स्व प्रत्यय ही होते हैं। ध्यान रहे कि यदि धातु परस्मैपदी है तो ‘हि’ प्रत्यय होता है और यदि धातु आत्मनेपदी है तो ‘स्व’ प्रत्यय होता है। जैसे - वर्तमान विषय में - लुनीहि लुनीहि इत्येवायं लुनाति। वह बार बार काटता है। लुनीहि लुनीहि इतीमौ लुनीतः। वे दोनों बार बार काटते हैं। लुनीहि लुनीहि इत्येवाहं लुनामि। मैं बार बार काटता हूँ। लुनीहि लुनीहि इति त्वं लुनासि। तुम बार बार काटते हो। इसी प्रकार सब पुरुष, सब वचनों में जानिये। भूत विषय में - लुनीहि लुनीहि इति भवान् अलावीत्। आपने बार बार काटा। लुनीहि लुनीहि इति भवन्तौ अलाविष्टाम्। आप दोनों ने बार बार काटा। लुनीहि लुनीहि इति अहं अलाविषम् । मैंने बार बार काटा। लुनीहि लुनीहि इति त्वं अलाविष्ठाः । मैंने बार बार काटा। इसी प्रकार सब पुरुष, सब वचनों में जानिये। भविष्यद् विषय में - लुनीहि लुनीहि इति भवान् लविष्यति। वह आप बार बार काटेंगे। लुनीहि लुनीहि इति भवन्तौ लविष्यत: । आप दोनों बार बार काटेंगे। लुनीहि लुनीहि इति वयं लविष्यामः । हम सब बार बार काटेंगे, आदि। इसी प्रकार सब पुरुष, सब वचनों में जानिये। यदि बहुवचन है, तो ‘हि’ के स्थान पर ‘त’ प्रत्यय भी विकल्प से लकारों के अर्थ हो सकता है तथा पक्ष में ‘हिं ही रहता है। लुनीत लुनीत इति इमे लुनन्ति । वे सब बार बार काटते हैं। लुनीत लुनीत इति यूयं लुनीथ। तुम सब बार बार काटते हो। लुनीत लुनीत इति यूयं अलाविष्ट । तुम सबने बार बार काटा। लुनीत लुनीत इति वयं अलाविषम्। हम सबने बार बार काटा। लुनीत लुनीत इति भवन्त: अलाविषुः । आप सबने बार बार काटा। आत्मनेपद में ‘स्व’ प्रत्यय लगाइये - वर्तमान विषय में - अधीष्व अधीष्व इत्येवायं अधीते। वह बार बार पढ़ता है। अधीष्व अधीष्व इतीमौ अधीयाते। वे दोनों बार बार पढ़ते हैं। अधीष्व अधीष्व इत्येवाहं अधीये। मैं बार बार पढ़ता हूँ। अधीष्व अधीष्व इति त्वं अधीषे। तुम बार बार पढ़ते हो। इसी प्रकार सब पुरुष, सब वचनों, सब कालों में जानिये। यदि बहुवचन है, तो ध्वम् प्रत्यय भी विकल्प से हो सकता हैं तथा पक्ष में स्व ही रहता है। अधीध्वम् अधीध्वम् इति इमे अधीयते। वे सब बार बार पढ़ते हैं। अधीध्वम् अधीध्वम् इति यूयं अधीध्वे। तुम सब बार बार पढ़ते हो। अधीध्वम् अधीध्वम् इति वयं अधीमहे। हम सब बार बार पढ़ते हैं। अधीध्वम् अधीध्वम् इति भवन्त: अधीयते। आप सब बार बार पढ़ते हैं। समुच्चयेऽन्यतरस्याम् (३.४.३) - जहाँ अनेक क्रियाओं को कहा जाये. वहाँ क्रियाओं का समुच्चय होता है। ऐसी समुच्चीयमान क्रियाओं को कहने वाले धातु से लोट् लकार के प्रत्यय लगते है और उस लोट् के स्थान में हि तथा स्व आदेश नित्य होते हैं तथा त, ध्वम् के स्थान में विकल्प से हि, स्व आदेश होते हैं तथा पक्ष में त, ध्वम् ही रहते हैं। जैसे - भ्राष्ट्रमट, मठमट, खदूरमट, स्थाल्यपिधानमट, इत्येवायमटति । ध्यान रहे कि यहाँ ‘हि’ प्रत्यय का ‘अतो हे:’ सूत्र से लोप हो गया है। छन्दोऽधीष्व, व्याकरणमधीष्व, निरुक्तमधीष्व, इत्येवायमधीते। क्रियाओं का समुच्चय होने पर अन्य लकार भी हो सकते हैं। यथाविध्यनुप्रयोग: पूर्वस्मिन् (३.४.४) - पूर्व में लोट विधायक६०२ ᳕ ‘क्रियासमभिहारे लोट् लोटो हिस्वौ वा च तध्वमोः’ सूत्र में यथाविधि अर्थात् जिस धातु से लोट् लकार किया गया हो, उसके बाद उसी धातु का अनुप्रयोग होता है। जैसे - स भवान् लुनीहि लुनीहि इति लुनाति, यहाँ लुनाति का ही अनुप्रयोग होता है, उसके पर्यायवाची ‘छिनत्ति’ का नहीं। समुच्चये सामान्यवचनस्य (३.४.५) - समुच्चयेऽन्यतरस्याम् से जहाँ लोट किया गया है, वहाँ उस धातु का अनुप्रयोग होता है, जिसमें उन सभी धातुओं के अर्थ समाहृत हो जायें। जैसे - ओदनं भुक्ष्व, सक्तून् पिब, घाना: खाद इत्यभ्यवहरति। ध्यान दें कि ‘अभ्यवहरति’ क्रिया में खाना, पीना आदि सभी अर्थ समाहृत हो जाते हैं। इसी प्रकार सत्यं वद, अग्निहोत्रं जुहुधि, सत्पुरुषान् सेवस्व इति धर्मं करोति । ‘धर्मं करोति’ क्रिया में जुहुधि, सेवस्व आदि सभी अर्थ समाहृत हो जाते हैं।
लङ् लकार
अनद्यतने लङ् (३.२.१११) - अनद्यतन भूतकाल में वर्तमान धातु से लङ् लकार होता है। जैसे - अकरोत् , अहरत्। (अनद्यतन का लक्षण ५९७ पृष्ठ पर देखें।) हशश्वतोर्लङ् च (३.२.११६) - ह, शश्वत् ये शब्द उपपद में हों, तो धातु से अनद्यतन भूतकाल में लङ् लकार होता है। जैसे - इति ह अकरोत् , इति ह चकार। शश्वदकरोत् , शश्वत् चकार। प्रश्ने चासन्नकाले (३.२.११७) - आसन्नकाल का अर्थ होता है समीप का काल । ऐसे समीप के अनद्यतन परोक्ष भूतकाल के विषय में, यदि प्रश्न किया जाये, तो धातु से लङ् तथा लिट् लकार विकल्प से होते हैं। जैसे - देवदत्त अभी गया क्या ? किम् देवदत्तोऽगच्छत् ? किम् देवदत्तो जगाम ? पुरि लुङ् चास्मे (३.२.१२२) - स्म शब्द रहित पुरा शब्द उपपद में हो, तो अनद्यतन भूतकाल में धातु से लट्, लुङ्, लङ्, लिट् लकार विकल्प से होते हैं। जैसे - यह पहले रथ से गया था - लट् - रथेनायं पुरा याति । लुङ् - रथेनायं पुराऽयासीत् । लङ् - रथेनायं पुराऽयात् । लिट् - रथेनायं पुरा ययौ । इसी प्रकार - यहाँ छात्र रहते थे - लट् - वसन्तीह पुरा छात्रा: । लुङ् - अवात्सुः पुरा छात्रा: । लङ् - अवसन् पुरा छात्रा: । लिट् - ऊषुः पुरा छात्रा: । स्मोत्तरे लङ् च (३.३.१७६) - स्म शब्द उत्तर है जिससे, ऐसे माङ् लकारों के अर्थ ६०३ शब्द के उपपद रहते धातु से लुङ, लङ् प्रत्यय होते हैं। जैसे - मा कार्षीत्, मा हार्षीत् । मा स्म करोत्, मा स्म हरत्। __ छन्दसि लुङ्ललिट: (३.४.६) - वेदविषय में धात्वर्थ सम्बन्ध होने पर विकल्प से लुङ, लङ्, तथा लिट् प्रत्यय होते हैं। जैसे - अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमानः । यहाँ वर्तमानकाल में लङ् लकार हुआ है। अहन्नहिमन्वपस्ततर्द । यहाँ वर्तमानकाल में लिट् लकार हुआ है। दवो देवेभिरागमत् । यहाँ वर्तमानकाल में लुङ् लकार हुआ है।
लिङ् लकार
विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसम्प्रश्नप्रार्थनेषु लिङ् (३.३.१६१) - विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अधीष्ट, संप्रश्न तथा प्रार्थना, इतने अर्थों में लिङ् लकार का प्रयोग होता है। ये अर्थ इस प्रकार हैं - विधि - विधि का अर्थ है - अपने से छोटे किसी व्यक्ति को काम से लगाना। जैसे - स्वामी सेवक से कहता है - वस्त्रं क्षालये: - कपड़े धो दो। निमन्त्रण - श्राद्ध आदि में दौहित्र (नाती) आदि को भोजन के लिए बुलाना। इह श्राद्धे भवान् भुञ्जीत। आमन्त्रण - जहाँ कार्य को करना या न करना, करने वाले की इच्छा पर छोड़ दिया जाये, उस कामाचारानुज्ञा को आमन्त्रण कहते है। यथा - इह भवान् भुञ्जीत - आप यहाँ भोजन करें। करें या न करें, यह आपकी इच्छा। अधीष्ट - सत्कार पूर्वक व्यापार को अधीष्ट कहते हैं। जैसे - मेरे बच्चे को आप पढ़ा दीजियेगा। भवान् माणवकम् अध्यापयेद् । संप्रश्न - इस प्रकार का काम करें या न करें, ऐसे विचार को संप्रश्न कहते हैं। क्यों भाई, क्या मैं व्याकरण पढूँ ? किं नु खलु भोः व्याकरणमधीयीय? प्रार्थन - प्रार्थन, याच्या (माँगना) को कहते हैं। भवान् मे अन्नं दद्यात् । वस्तुत: जब भी किसी को, किसी काम में लगाया जाये तो उसे प्रवर्तना कहते हैं। ये विधि आदि सब प्रवर्तना के ही भेद हैं। उस प्रवर्तना अर्थ में लिङ् लकार होता है, यह समझना चाहिये। (प्रवर्तनायां लिङ् ।)
- लिङ् चौर्ध्वमौहूर्त्तिके (३.३.१६४) - प्रैष, अतिसर्ग तथा प्राप्तकाल अर्थ अर्थ गम्यमान हो, तो मुहूर्त भर से ऊपर के काल को कहने में धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - मुहूर्तस्य पश्चाद् भवान् ग्रामं गच्छेद् (मुहूर्त भर के पश्चाद् आप गाँव को जावें।) [[६०४]] लिचोर्ध्वमौहूर्तिके (३.३.९) - मुहूर्त = दो घड़ी से ऊपर के भविष्यत् काल को कहना हो, तो लोट् लकार के अर्थ में वर्तमान धातु से विकल्प से लट्, लूट, लुट तथा लिङ् लकार होते हैं। जैसे - मुहूर्तस्य पश्चाद् उपाध्यायश्चेद् आगच्छेत्, आगच्छति, आगमिष्यति, आगन्ता वा, अथ त्वं छन्दोऽधीष्व, व्याकरणमधीष्व। आशंसावचने लिङ् (३.३.१३४) - आशंसावाची शब्द उपपद में हो, तो धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - उपाध्यायश्चेदाऽऽगच्छेत्, आशंसे अवकल्पये वा युक्तोऽधीयीय, (उपाध्याय जी यदि आ जायेंगे तो आशा है कि लगकर पढ़ेंगे।) विभाषा कथमि लिङ् च (३.३.१४३) - गर्दा गम्यमान हो, तो कथम् शब्द उपपद रहते विकल्प करके लिङ् लकार होता है तथा चकार से लट् लकार भी होता है। जैसे - कथं भवान् ब्राह्मणं क्रोशेत्, (कैसे आप ब्राह्मण को डाँटेंगे।) किंवृत्ते लिङ्लुटौ (३.३.१४४) - किंवृत्त का अर्थ होता है किम् से बने हुए शब्द । अतः किम् शब्द के किसी भी विभक्ति के रूप अथवा किम् शब्द से बने हुए कतर, कतम शब्द उपपद में होने पर, गर्दा अर्थ गम्यमान होने पर धातु से लिङ् तथा लुट् लकार होते हैं। जैसे - को नाम यो विद्यां निन्देत्, को नाम यो विद्यां निन्दिष्यति। कतरो विद्यां निन्देत्, कतरो विद्यां निन्दिष्यति। अनवक्लृप्त्यमर्षयोरकिंवृत्तेऽपि (३.३.१४५) - अनवक्लप्ति अर्थात् असम्भावना, अमर्ष अर्थात् सहन न करना, ये अर्थ गम्यमान हों, तो किंवृत्त शब्द उपपद में हों, या किंवृत्त शब्द उपपद में न हों, तो भी धातु से काल सामान्य में, सब लकारों के अपवाद लिङ् तथा लुट् लकार होते हैं। जैसे - अनवक्लृप्ति अर्थ में - नावकल्पयामि, न सम्भावयामि, न श्रद्दधे, तत्रभवान् मांसं भुञ्जीत। मैं सोच भी नहीं सकता, कि आप मांस खाते हैं। अमर्ष अर्थ में - न मर्षयामि तत्रभवान् विद्यां निन्देत् । मैं सहन नहीं कर सकता कि आप विद्या की निन्दा करते हैं। जातुयदोर्लिङ् (३.३.१४७) - अन्वक्लृप्ति, अमर्ष अभिधेय हों, तो जातु तथा यद् उपपद रहते धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - न संभावयामि जातु भवान् धर्मं त्यजेत् / यद् भवान् धर्मं त्यजेत्, (मैं सोच नहीं सकता कि आप कभी धर्म छोड़ देंगे।) लकारों के अर्थ यच्चयत्रयोः (३.३.१४८) - अन्वक्तृप्ति, अमर्ष गम्यमान हों, तो यच्च तथा यत्र, ये अव्यय उपपद रहते धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - न संभावयामि यच्च भवद्विधोऽनृतं वदेत्, (मैं सोच भी नहीं सकता कि आप जैसे पुरुष भी झूठ बोल देंगे।) __ गर्हायाञ्च (३.३.१४९) - गर्दा गम्यमान हो तो यच्च तथा यत्र, ये अव्यय उपपद रहते धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - यच्च भवान् मांसं खादेत्, यत्र भवान् मांसं खादेत्, अहो गर्हितमेतत् (जो आप मांस खाते हैं, यह बड़ी निन्दित बात है।) चित्रीकरणे च (३.३.१५०) - गर्दा गम्यमान हो तो यच्च तथा यत्र ये अव्यय उपपद रहते धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - यच्च भवान् वेदविद्यां निन्देत्, यत्र भवान् वेदविद्यां निन्देत्, आश्चर्यमेतत् बुद्धिमान् सज्जनोऽपि सन् । (बुद्धिमान् और सज्जन होते हुए भी जो आप वेदविद्या की निन्दा करते हैं, यह आश्चर्य है।) __ उताप्योः समर्थयोर्लिङ् (३.३.१५२) - उत, अपि, इन अव्ययों का अर्थ जब हाँ’ हो, तब धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - उत कुर्यात् (हाँ करे।) अपि कुर्यात् (हाँ करे।) उत पठेत् (हाँ पढ़े।) अपि पठेत् (हाँ पढ़े।) कामप्रवेदनेऽकच्चिति (३.३.१५३) - अपने अभिप्राय का प्रकाशन गम्यमान हो तो तथा कच्चित् शब्द उपपद में न हो तो धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - कामो मे भुञ्जीत भवान् (मेरी इच्छा है कि आप भोजन करें।) अभिलाषो मे भुञ्जीत भवान् (मेरी इच्छा है कि आप भोजन करें।) __ सम्भावनेऽलमिति चेत् सिद्धाप्रयोगे (३.३.१५४) - पर्याप्त विशिष्ट सम्भावना अर्थ में वर्तमान धातु से लिङ् लकार होता है यदि अलम् शब्द का प्रयोग न हो तो। जैसे - अपि पर्वतं शिरसा भिन्द्यात् (यह तो सिर से पर्वत को तोड़ सकता है।) अपि वृक्षं हस्तेन त्रोटयेत् (यह तो हाथ से वृक्ष को तोड़ सकता विभाषा धातौ सम्भावनवचनेऽयदि (३.३.१५५) - सम्भावन अर्थ को कहने वाला धातु उपपद में हो और यत् शब्द उपपद में न हो, तो सम्भावना अर्थ में वर्तमान धातु से लिङ् लकार विकल्प से होता है, यदि अलम् शब्द का प्रयोग न हो तो। जैसे - सम्भावयामि भुञ्जीत भवान् (मैं सम्भावना करता हूँ [[६०६]] कि आप खायेंगे।) अवकल्पयामि भुञ्जीत भवान् (मैं सम्भावना करता हूँ कि आप खायेंगे।) सम्भावना भविष्यत् काल की ही होती है, अतः विकल्प से लट् लकार भी हो सकता है। सम्भावयामि भोक्ष्यते भवान् (मैं सम्भावना करता हूँ कि आप खायेंगे।) अवकल्पयामि भोक्ष्यते भवान् (मैं सम्भावना करता हूँ कि आप खायेंगे।) __ हेतुहेतुमतोर्लिङ् (३.३.१५६) - हेतु और हेतुमत् अर्थ में वर्तमान धातु से लिङ् प्रत्यय विकल्प से होता है। जैसे - दक्षिणेन चेद् यायात् न शकटं पर्याभवेद् (यदि दक्षिण के रास्ते से जाये, तो छकड़ा न पलटे।) __ इच्छार्थेषु लिङ्लोटौ (३.३.१५७) - इच्छार्थक धातुओं के उपपद रहने पर, धातुओं से लिङ्, लोट, लकार होते हैं। जैसे - मै चाहता हूँ कि आप भोजन कर लें - इच्छामि भुञ्जीत भवान् / इच्छामि भुक्तां भवान् । लिङ् च (३.३.१५९) - समानकर्तृक इच्छार्थक धातुओं के उपपद रहने पर, धातु से लिङ् लकार होता है। जैसे - भुजीय इति इच्छति (खाऊँ, ऐसा चाहता है।) इच्छार्थेभ्यो विभाषा वर्तमाने (३.३.१६०) - इच्छार्थक धातुओं से विकल्प से लिङ् लकार होता है। जैसे - इच्छेत् ( चाहता है।) __ शकि लिङ् च (३.३.१७२) - शक्यार्थक गम्यमान हो, तो धातु से लिङ् लकार होता है तथा चकार से कृत्यसंज्ञक प्रत्यय भी होते हैं। जैसे - भवान् शत्रु जयेत्। (आप शत्रुओं को जीत सकते हैं।) आशिषि लिङ्लोटौ (३.३.१७३) - इसका अर्थ लोट् लकार में देखें।
लुङ् लकार
लुङ् (३.२.११०) - सामान्य भूतकाल में वर्तमान धातु से लुङ् लकार होता है। अकार्षीत्, अहार्षीत् । पुरि लुङ् चास्मे (३.२.१२२) - स्म शब्द रहित पुरा शब्द उपपद में हो, तो अनद्यतन भूतकाल में धातु से लट्, लुङ्, लङ्, लिट् लकार विकल्प से होते हैं। जैसे - यह पहले रथ से गया था - लट् - रथेनायं पुरा याति। लुङ् - रथेनायं पुराऽयासीत् । लङ् - रथेनायं पुराऽयात् । लिट् - रथेनायं पुरा ययौ । माङि लुङि (३.३.१७५) - माङ् शब्द उपपद हो तो धातु से लुङ्, लिङ्, तथा लोट् प्रत्यय होते हैं। जैसे - मा कार्षीत्, मा हार्षीत् । लकारों के अर्थ ६०७ स्मोत्तरे लङ् च (३.३.१७६) - स्म शब्द उत्तर है जिससे, ऐसा माङ् शब्द उपपद में रहने पर, धातु से लुङ्, लङ् प्रत्यय होते हैं। जैसे - मा कार्षीत्, मा हार्षीत् । मा स्म करोत् , मा स्म हरत्।। आशंसायाम् भूतवच्च (३.३.१३२) - अप्राप्त पदार्थ को प्राप्त करने की इच्छा को आशंसा कहते हैं। आशंसा भविष्यत् काल की ही होती है। तथापि आशंसा गम्यमान होने पर धातु से भूतकाल के समान, तथा वर्तमानकाल के समान प्रत्यय भी विकल्प से होते हैं। जैसे - उपाध्यायश्चेद् आगमत्, आगतः, आगच्छति वा, वयं व्याकरणमध्यगीष्महि, अधीतवन्तोऽधीमहे वा। पक्षे - उपाध्यायश्चेद् आगमिष्यति, वयं व्याकरणमध्येष्यामहे। __ छन्दसि लुङ्ललिट: (३.४.६) - वेदविषय में धात्वर्थ सम्बन्ध होने पर विकल्प से लुङ्, लङ्, तथा लिट् प्रत्यय होते हैं। जैसे - दवो देवेभिरागमत् । यहाँ वर्तमानकाल में लुङ् लकार हुआ है। अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमानः । यहाँ वर्तमानकाल में लङ् लकार हुआ है। अहन्नहिमन्वपस्ततर्द। यहाँ वर्तमानकाल में लिट् लकार हुआ है।
लृङ् लकार
लिनिमित्ते लुङ् क्रियातिपत्तौ (३.३.१३९) - भविष्यत् काल में लिङ् का निमित्त होने पर क्रिया की अतिपत्ति अर्थात् उल्लङ्घन अथवा क्रिया का सिद्ध न होना गम्यमान हो तो धातु से लङ् प्रत्यय होता है। जैसे - दक्षिणेन चेदागमिष्यत्, न शकटं पर्याभविष्यत्। (यदि दक्षिण से जाओगे तो गाड़ी नहीं पलटेगी।) यदि मत्समीपमासिष्यत्, भवान् घृतेन अभोक्ष्यत् । (यदि मेरे पास रहोगे तो घी से खाओगे।) __ सुवृष्टिश्चेदभविष्यत् सुमिक्षमभविष्यत् । (यदि अच्छी वृष्टि होगी तो अच्छा अन्न होगा।) यहाँ दक्षिण से आना, मेरे पास बैठना, अच्छी वृष्टि होना, ये हेतु हैं। छकड़े का न उलटना, घी से खाना, अच्छा अन्न होना, ये हेतुमत् हैं। वह दक्षिण से नहीं आयेगा, अतः छकड़ा टूट जायेगा, यह क्रिया की अतिपत्ति है। अतः लुङ् लकार हुआ है। भूते च (३.३.१४०) - भूतकाल में लिङ् का निमित्त होने पर क्रिया ६०८ अष्टाध्यायी सहजबोध । की अतिपत्ति = उल्लङ्घन अथवा क्रिया का सिद्धि न होना गम्यमान हो, तो धातु से लङ् लकार होता है। जैसे - दृष्टो मया भवत्पुत्रोऽन्नार्थी चक्रम्यमाणः, अपरश्च द्विजो ब्राह्मणार्थी, यदि स तेन दृष्टोऽभविष्यत्, तदा अभोक्ष्यत, न तु भुक्तवान्, अन्येन पथा स गतः। वोताप्योः (३.३.१४१) - अष्टाध्यायी में इस सूत्र से लेकर उताप्योः समर्थयोर्लिङ् (३.३.१५२) से पहले पहले जितने भी सूत्र हैं उनमें लिङ् का निमित्त होने पर क्रिया की अतिपत्ति = उल्लङ्धन अर्थ में, धातु से विकल्प से भूतकाल में लङ् लकार होता है। इस प्रकार जानिये कि इस सूत्र के द्वारा ३.३.१४२ से ३.३.१५२ तक के सूत्रों में विकल्प से भूतकाल में लुङ् लकार का विधान किया जा रहा है। जैसे - विभाषा कथमि लिङ् च सूत्र (३.३.१४३) से लिङ् का विधान है। अतः यहाँ भूतकाल अर्थ में भी लुङ् लकार हो सकता है। जैसे - कथं नाम तत्र भवान् ब्राह्मणं क्रोशेत् के स्थान पर कथं नाम तत्र भवान् ब्राह्मणम् अक्रोक्ष्यत्, यह भी बन सकता है। ये सारे सूत्र इस प्रकार हैं - वोताप्योः ३.३.१४२ विभाषा कथमि लिङ् च ३.३.१४३ किंवृत्ते लिङलुटौ ३.३.१४४ अनवक्तृप्यमर्षयोरकिंवृत्तेऽपि ३.३.१४५ किंकिलास्त्यर्थेषु लृट् ३.३.१४६ जातुयदोर्लिङ् ३.३.१४७ यच्चयत्रयोः ३.३.१४८ गर्हायाञ्च ३.३.१४९ चित्रीकरणे च ३.३.१५० शेषे लुडयदौ ३.३.१५१ उताप्योः समथयोर्लिङ् ३.३.१५२ इन सूत्रों से कहे गये प्रयोगों में विकल्प से भूतकाल में लङ् लकार कीजिये। इन सारे सूत्रों के अर्थ इसी पाठ में पीछे विभिन्न लकारों में दिये जा चुके हैं। उन्हें वहीं देखिये।