समस्त धातुओं के लुट् लकार के धातुरूप बनाने की विधि
अनद्यतने लुट् - न विद्यते अद्यतनं यस्मिन् । जिस काल में अद्यतन काल शामिल न हो, उसे अनद्यतन काल कहते हैं। बीती हुई रात्रि के अन्तिम प्रहर से लेकर आने वाली रात्रि के प्रथम प्रहर तक का काल अद्यतन काल कहलाता है। यह काल जिसमें सम्मिलित न हो उसे अनद्यतन काल कहते हैं। ऐसे अनद्यतन भविष्यत् काल में लुट् लकार के प्रत्यय लगाये जाते हैं। जैसे - देवदत्त: श्वः कर्ता । श्वः भोक्ता। देवदत्त कल करेगा, कल खायेगा आदि । ध्यान दीजिये कि धातु दो प्रकार के होते हैं। सेट तथा अनिट् । ये आगे बतलाये जा रहे हैं। चूँकि धातु दो प्रकार के होते हैं, अतः प्रत्यय भी दो प्रकार के होते हैं। सेट तथा अनिट् । लुट् लकार के ये प्रत्यय बतलाये जा रहे हैं। जब धातु अनिट् हो तब उसके लुट् लकार के रूप बनाने के लिये अनिट् प्रत्यय ही लगाइये -
अनिट् धातुओं से लगने वाले लुट् लकार के अनिट् प्रत्यय
परस्मैपदी अनिट् प्रत्यय आत्मनेपदी अनिट् प्रत्यय एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. ता तारौ तार: ता तारौ तार: म. पु. तासि तास्थः तास्थ तासे तासाथे ताध्वे उ. पु. तास्मि तास्वः तास्मः ताहे तास्वहे तास्महे इनके आदि में इट के न लैठे रहने के कारण, लुट् लकार के ये प्रत्यय अनिट् प्रत्यय हैं। जब धातु अनिट् हो, तभी उसमें ये प्रत्यय लगाइये। __ जब धातु सेट हो तब इन्हीं अनिट् प्रत्ययों के आदि में इट् (इ) जोड़ दीजिये। अर्थात् ‘ता’ आदि को ‘इता’ आदि बना दीजिये। जैसे - समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १२१
सेट् धातुओं से लगने वाले लुट् लकार के सेट् प्रत्यय परस्मैपदी सेट् प्रत्यय
आत्मनेपदी सेट् प्रत्यय एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. इता इतारौ इतार: इता इतारौ इतार: म. पु. इतासि इतास्थः इतास्थ इतासे इतासाथे इताध्वे उ. पु. इतास्मि इतास्वः इतास्मः इताहे इतास्वहे इतास्महे लुट् लकार के इन सारे प्रत्ययों के आदि में इट् = इ, बैठा है। आदि में इट के बैठे रहने के कारण ये प्रत्यय सेट् प्रत्यय कहलाते हैं। जब धातु सेट हो तभी उसमें ये प्रत्यय लगाइये। लुट् लकार के ये सारे के सारे ३६ प्रत्यय ‘तास्’ प्रत्यय से बने हुए हैं। अतः हम इन सारे प्रत्ययों को तास् प्रत्यय ही कहेंगे। इन प्रत्ययों को धातुओं में लगाने से लुट् लकार के धातुरूप बन जाते हैं। धातुओं में ‘तास्’ प्रत्यय लगाकर धातुरूप बनाने का भी जो कार्य होता है उसके अनेक खण्ड होते हैं। ये खण्ड इस प्रकार हैं - इडागम विधि, धात्वादेश, अतिदेश, अङ्गकार्य, तथा सन्धि । इन्हें हम एक एक करके जानेंगे -
इडागम विधि
किस धातु से सेट् प्रत्यय लगें और किस धातु से अनिट् प्रत्यय लगें, यह जानने के लिये, सेट् अनिट् धातु पहिचानने की विधि जानना आवश्यक है। इस विधि को हम विस्तार से इडागम प्रकरण में बतला चुके हैं, वहीं देखें। सुविधा के लिये यहाँ पुनः संक्षेप में बतला रहे हैं। विशेष - ध्यान रहे कि अनेकाच् धातु सेट् ही होते हैं। उपदेशावस्था में एकाच अर्थात् एक स्वर वाले एकाच धातु ही अनिट हो सकते हैं, किन्तु सब के सब एकाच् धातु नहीं। इनमें भी, जो एकाच् धातु अनुदात्त हों, वे ही अनिट् हो सकते हैं। एकाच तो हम देखकर पहिचान लेंगे, किन्तु अनुदात्त कैसे पहिचानेंगे, इसके लिये इन अनिट् धातुओं को पहिचानने की विधि बतला रहे हैं। इन अनिट् धातुओं से ही आप अनिट् प्रत्यय लगाइये। अब हम एकाच् धातुओं के अन्तिम वर्ण को क्रम से रखकर, धातुओं का सेट, अनिट् विभाजन दे रहे हैं, इन्हें याद करके जानिये कि कौन से धातु सेट [[१२२]] हैं और कौन से अनिट् । सेट तथा अनिट् अजन्त धातुओं को पहिचानने की विधि १. एकाच आकारान्त धातु - सारे एकाच आकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। (अनेकाच् होने से दरिद्रा धातु सेट होता है।) २. एकाच ह्रस्व इकारान्त धातु - इनमें शिव, श्रि धातु सेट होते हैं तथा इनके अलावा, शेष सारे एकाच ह्रस्व इकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। ३. एकाच दीर्घ ईकारान्त धात - इनमें डीङ शीङ धात सेट होते हैं तथा इनके अलावा, शेष सारे एकाच् दीर्घ ईकारान्त धातु अनिट् होते हैं। ४. एकाच ह्रस्व उकारान्त धातु - इनमें स्नु, नु, क्षु, यु, रु, क्ष्णु ये छह धातु सेट होते हैं तथा इन ६ को छोड़कर, शेष सारे एकाच उकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। ५. एकाच् दीर्घ ऊकारान्त धातु - इनमें सू, धू, वेट होते हैं, शेष सारे एकाच ऊकारान्त धातु सेट ही होते हैं। ६. एकाच ह्रस्व ऋकारान्त धातु - इनमें वृङ, वृञ् सेट होते हैं। स्वृ धातु वेट होता है। शेष सारे एकाच् हस्व ऋकारान्त धातु अनिट् होते हैं। अनेकाच् होने से ‘जागृ’ धातु सेट है। ७. एकाच दीर्घ ऋकारान्त धातु - ये सभी सेट होते हैं। ८. एजन्त धातु - जिनके अन्त में ए, ओ, ऐ, औ, हों, उन्हें एजन्त धातु कहते हैं। ये धातु आर्धधातुक प्रत्यय परे रहने पर ‘आदेच उपदेशेऽशिति’ सूत्र से आकारान्त बन जाते हैं। जैसे - गै = गा, धे = धा, ग्लै = ग्ला, ध्यै = ध्या आदि। ये सभी अनिट् ही होते हैं। यह एकाच अजन्त धातुओं में से सेट तथा अनिट् धातुओं को अलग अलग पहिचानने की विधि पूर्ण हुई। अब एकाच हलन्त धातुओं में से, सेट तथा अनिट् धातुओं को कैसे अलग अलग पहिचाना जाये, यह विधि बतला रहे हैं। सेट तथा अनिट् हलन्त धातुओं को पहिचानने की विधि नीचे १०२ हलन्त एकाच् धातु दिये जा रहे हैं। ये सब उपदेशावस्था में एकाच् तथा अनुदात्त होने के कारण अनिट् हैं। इनके अतिरिक्त जो भी एकाच् हलन्त धातु आप पाएँगे, वे सब सेट ही होंगे, यह जानना चाहिए। १. एकाच ककारान्त धातुओं में - स्वादिगण का शक्ल शक्तौ, यह १ धातु ही अनिट् होता है। शक् + ता = शक्ता। शेष सारे ककारान्त धातु सेट होते हैं। अतः दिवादिगण का शक् धातु सेट है। समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १२३ २. एकाच चकारान्त धातुओं में - पच्, मुच्, रिच्, वच्, विच्, सिच्, ये ६ धातु अनिट् होते हैं। शेष सारे चकारान्त धातु सेट होते हैं। ३. एकाच् छकारान्त धातुओं में - प्रच्छ, यह १ धातु अनिट् होता है। शेष सारे छकारान्त धातू सेट होते हैं। ४. एकाच जकारान्त धातुओं में - त्यज्, निजिर्, भज्, भज्, भुज्, भ्रस्ज्, मस्ज्, यज्, युज्, रुज्, रज्, विजिर् (रुधादि), स्वज्, सज्, सृज् - ये १५ धातु अनिट् होते हैं। शेष सभी जकारान्त धातु सेट होते हैं। ५. एकाच दकारान्त धातुओं में - अद्, क्षुद्, खिद्, छिद्, तुद्, नुद्, पद् (दिवादिगण), भिद्, विद् (दिवादिगण), विद् (रुधादिगण), शद्, सद्, स्विद्, स्कन्द्, और हद् ये १५ धातु अनिट् होते हैं। शेष सभी दकारान्त धातु सेट होते हैं। __विशेष - दिवादिगण तथा रुधादिगण के विद् धातु अनिट् होते हैं और अदादिगण तथा तुदादिगण के विद् धातु सेट होते हैं। ६. एकाच् धकारान्त धातुओं में - क्रुध्, क्षुध्, बुध् (दिवादिगण), बन्ध्, युध्, रुध्, राध्, व्यध्, साध्, शुध्, सिध् ( दिवादिगण) ये ११ धातु अनिट् होते हैं। शेष सभी धकारान्त धातु सेट होते हैं। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि बुध् धातु दो हैं। इनमें से भ्वादिगण का बुध् धातु सेट होता है। दिवादिगण का बुध् धातु अनिट् होता है। ७. एकाच् नकारान्त धातुओं में - मन् ( दिवादिगण) तथा हन्, ये २ धातु अनिट् होते हैं। शेष सारे नकारान्त धातु सेट होते हैं। ८. एकाच पकारान्त धातुओं में - आप, छुप्, क्षिप्, तप, तिप्, तृप् (दिवादिगण), दृप् (दिवादिगण), लिप्, लुप्, वप्, शप्, स्वप्, सृप, ये १३ धातु अनिट् होते हैं। शेष सारे पकारान्त धातु सेट होते हैं। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि तृप् धातु तीन हैं। इनमें से स्वादिगण तथा तुदादिगण के तृप् धातु सेट होते हैं। दिवादिगण का तृप् धातु वेट होता है। ९. एकाच भकारान्त धातुओं में - यम्, रभ, लभ्, ये ३ धातु अनिट होते हैं। शेष सारे भकारान्त धातु सेट होते हैं। [[१२४]] ह १०. एकाच मकारान्त धातुओं में - गम्, नम्, यम्, रम्, ये ४ धातु अनिट् होते हैं। शेष सारे मकारान्त धातु सेट होते हैं। ११. एकाच शकारान्त धातुओं में - क्रुश्, दंश्, दिश्, दृश्, मृश्, रिश्, रुश्, लिश्, विश्, स्पृश्, ये १० धातु अनिट् होते हैं। शेष सारे शकारान्त धातु सेट होते हैं। १२. एकाच षकारान्त धातुओं में - कृष्, त्विष्, तुष्, द्विष्, दुष्, पुष् (दिवादि गण), पिष्, विष्, शिष्, शुष्, श्लिष् (दिवादिगण), ये ११ धातु अनिट् होते हैं। शेष सभी षकारान्त धातु सेट होते हैं। १३. एकाच सकारान्त धातुओं में - वस्, घस्, ये २ धातु अनिट् होते हैं। शेष सारे सकारान्त धातु सेट होते हैं। १४. एकाच हकारान्त धातुओं में - दह्, दिह, दुह्, नह, मिह, रुह, लिह, वह, ये ८ धातु अनिट् होते हैं। शेष सारे हकारान्त धातु सेट होते हैं। __ सेट, अनिट् के अलावा कुछ धातु वेट भी होते हैं, जिनसे परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों को भी विकल्प से इट का आगम होता है। ये वेट धातु इस प्रकार हैं - वेट् धातु स्वरतिसूतिसूयतिधूदितो वा - स्वृ धातु, अदादिगण का सू धातु, दिवादिगण का सू धातु, स्वादि तथा क्र्यादिगण का धूञ् धातु तथा सारे ऊदित् धातुओं से परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। __ ऊदित् धातु - ‘ऊदित्’ का अर्थ होता है, ऐसे धातु जिनमें ऊ’ की इत् संज्ञा हुई हो। धातुपाठ में पढ़े गये सारे ‘ऊदित् धातु’ इस प्रकार हैं - अक्षू तल त्वक्षू गृहू मृजू अशू वृहू तृन्हू क्षमू क्लिदू अजू क्लिशू षिधू त्रपूष् क्षमूष् गाहू गुहू स्यन्दू कृपू गुपू ओव्रश्चू तृहू स्तृहू तञ्चू विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि स्वादि, क्र्यादि तथा चुरादिगण में धूञ् कम्पने धातु हैं । तुदादिगण में धू विधूनने धातु है। इनमें से स्वादिगण तथा क्र्यादिगण के धूञ् कम्पने धातु ही वेट होते हैं। इनसे परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। तुदादिगण का धू विधूनने धातु समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १२५ तथा चुरादिगण का धूञ् कम्पने धातु सेट होता है। इनसे परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को नित्य इडागम होता है। रधादिभ्यश्च - रध्, नश्, तृप्, दृप्, द्रुह्, मुह, स्निह्, स्नुह, ये ८ धातु वेट होते हैं। इन आठ धातुओं से परे आने वाले सेट् प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। निर: कुष: - निर् उपसर्गपूर्वक कुष् धातु से परे आने वाले सेट् प्रत्ययों को विकल्प से इडागम हाता है। इस प्रकार ३६ धातु वेट हैं। इन ३६ वेट् धातुओं से परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि जहाँ एक आकृति के अनेक धातु हैं, वहाँ हमने स्पष्ट निर्देश करके कोष्ठक में उस गण का नाम लिख दिया है जिस गण का धातु अनिट् होता है। इससे यह जानना चाहिये कि जिसका नाम नहीं लिखा है वह सेट ही है। इन अनिट् और वेट धातुओं के अलावा जितने भी हलन्त धातु हैं वे सब के सब सेट् ही हैं, यह जानना चाहिये। यह सेट, अनिट् तथा वेट धातुओं को पहिचानने की औत्सर्गिक अर्थात् मूलभूत सामान्य व्यवस्था है। इसे कण्ठस्थ कर लीजिये। उसके अलावा तास् प्रत्यय के इडागम के लिये ये विशेष विधियाँ बतलाई जा रही हैं, इन्हें भी ध्यान रखें -
तास् प्रत्यय के लिये विशेष इडागम व्यवस्था
क्लुप् (कल्प् - कल्पते) यह धातु यद्यपि आत्मनेपदी है किन्तु ‘लुटि च क्लप:’ सूत्र से यह स्य, सन् और तास् प्रत्यय परे होने पर विकल्प से परस्मैपदी हो जाता है। तासि च क्लुप: - क्लृप् धातु से परे आने वाले परस्मैपदसंज्ञक तास्’ प्रत्यय को तथा परस्मैपदसंज्ञक सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय को इडागम नहीं होता। __ केवल आत्मनेपदी तास्’ प्रत्यय को तथा आत्मनेपदी सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय को इडागम होता है। परस्मैपद में इडागम न होकर - कल्प्ता / आत्मनेपद में इडागम होकर - कल्पिता। तीषसहलुभरुषरिष: - दिवादिगण के इष् धातु तथा सह्, लुभ्, रुष्, रिष् [[१२६]] इन ५ धातुओं से परे आने वाले तकारादि आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। इष् - एष्टा / एषिता रुष - रोष्टा / रोषिता सह - सहिता / सोढा रिष् - रेष्टा / रेषिता लुभ् - लोभिता / लोब्धा जब भी लुट् लकार के तास् प्रत्यय से बने हुए प्रत्यय लगाकर कोई भी धातुरूप आप बनायें तब औत्सर्गिक इडागम व्यवस्था के साथ इन अपवादों को देखकर ही कार्य प्रारम्भ करें।
धात्वादेश
यदि प्रत्यय आर्धधातुक है, तो नीचे कहे जाने वाले धातुओं के स्थान पर इस प्रकार आदेश (परिवर्तन) कीजिये - अस्तेर्भूः - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अस् धातु को भू आदेश होता है। ब्रुवो वचि: - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ब्रू धातु को वच् आदेश होता है। चक्षिङ् ख्याञ् - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर चक्ष् धातु को ख्या आदेश होता है। अजेळघञपोः - घञ्, अप् को छोड़कर शेष सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अज् धातु को वी आदेश होता है। आदेच उपदेशेऽशिति - शित् प्रत्यय परे न रहने पर, सारे एजन्त अर्थात् ए, ऐ, ओ, औ से अन्त होने वाले धातुओं को ‘आ’ अन्तादेश होता है। जैसे - ग्लै - ग्ला, म्लै - म्ला, ध्यै - ध्या, शो - शा, सो - सा, वे - वा छो - छा आदि। इन्हें याद रखें।
अतिदेश
धातु से प्रत्यय लगने पर धातु का नाम अङ्ग हो जाता है। प्रत्यय लगने पर, धातु पर प्रत्यय का जो प्रभाव पड़ता है, उस प्रभाव का नाम ही अङ्गकार्य होता है। अङ्गकार्य कैसा हो, यह प्रत्यय पर ही निर्भर है। जैसा प्रत्यय होगा वैसा ही अङ्गकार्य होगा।
- अङ्गकार्य करने के लिये प्रत्यय की सही पहिचान सबसे आवश्यकसमस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १२७ है। यदि प्रत्यय कित्, गित् या ङित् होगा, तो अङ्गकार्य अलग प्रकार का होगा। यदि प्रत्यय कित्, गित्, ङित्, नहीं होगा, तो अङ्गकार्य अलग प्रकार का होगा। देखिये कि तास् प्रत्यय न तो कित् है, न गित्, न ङित् । तथापि कुछ सूत्रों के प्रभाव से यह तास् प्रत्यय, कहीं ङित् जैसा मान लिया जाता है। जहाँ यह ङित् जैसा मान लिया जाता है, वहाँ वे कार्य किये जाते हैं, जो कार्य ङित् प्रत्यय परे होने पर किये जाते हैं। जहाँ यह ङित् जैसा नहीं माना जाता, वहाँ यह जैसा है, वैसा ही रहता है। __यह मानने का कार्य जिन सूत्रों के कारण होता है, उन सूत्रों को हम अतिदेश सूत्र कहते हैं। ये सूत्र इस प्रकार हैं -
अतिदेश सूत्र
गाङ्कुटादिम्योऽञ्णिन्डित् - ‘इङ्’ धातु के स्थान पर होने वाले ‘गाङ्’ धातु से, तथा तुदादिगण के अन्तर्गत जो कुट से लेकर कुङ् तक ३६ धातुओं का कुटादिगण है, उस कुटादिगण में आने वाले धातुओं से परे आने वाले, जित् णित् से भिन्न, सारे प्रत्यय, ङित्वत् मान लिये जाते हैं। __ कुटादि धातु इस प्रकार हैं कुट कड् डिप् पुट कुच् गुज् गुड् . छुर् स्फुट् मुट् त्रुट तुट चुट छुट् जुट् लुट् कुड् पुड् घुट तुड् थुड् स्थुड् स्फुर् स्फुल् स्फुड् चुड् छड् क्रुड् गुर् कृड् मृड् नू । धू गु ध्रु कु = ३६ ‘तास्’ प्रत्यय भी जित् णित् से भिन्न प्रत्यय है, अतः यह जब गाङ् या कुटादि धातुओं के बाद आता है, तब इसे डित् प्रत्यय जैसा मान लिया जाता है। विज इट - तुदादि गण के विज् धातु से परे आने वाले सारे सेट् प्रत्यय डित्वत् माने जाते हैं। व्यचे: कुटादित्वमनसीति वक्तव्यम् (वार्तिक) - व्यच् धातु से परे आने वाले ‘अस्’ से भिन्न सारे प्रत्यय डिद्वत् होते हैं। विभाषोर्णोः - ऊर्गु धातु से परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्यय विकल्प से डित्वत् माने जाते हैं। इन अतिदेशों को सदा ध्यान में रखकर ही कोई भी अङ्गकार्य करें। ये अङ्गकार्य आगे बतलाये जा रहे हैं। [[१२८]]
सामान्य अङ्गकार्य
धातु में ‘तास् प्रत्यय’ जोड़ते समय हमारी दृष्टि में तीन बातें एकदम स्पष्ट होना चाहिये। १. जिस धातु में हम प्रत्यय जोड़ रहे हैं, वह धातु सेट है या अनिट या वेट? कहीं ऐसा तो नहीं है कि तास् प्रत्यय को देखकर कोई अनिट् धातु सेट हो गया हो, या कोई सेट् धातु वेट हो गया हो। यह स्पष्ट ज्ञान होने पर ही • इट् के आगम का निर्णय कीजिये। २. तास् प्रत्यय को देखकर कहीं किसी धातु को धात्वादेश होकर धातु की आकृति तो नहीं बदल रही है ? ये धात्वादेश हम आगे बतलाते चलेंगे। ३. कहीं किसी अतिदेश सूत्र के प्रभाव से यह तास् प्रत्यय कित् जैसा अथवा कहीं डित् जैसा तो नहीं मान लिया गया है ? इन तीन निर्णयों पर ही हमारे सारे अङ्गकार्य आधारित होंगे। अब अङ्गकार्य बतला रहे हैं -
- सार्वधातुकार्धधातुकयोः - धातु के अन्त में आने वाले इक् को गुण होता है, कित्, ङित्, गित्, जित्, णित्, से भिन्न, सार्वधातुक अथवा आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। गुण होने का अर्थ होता है - इ, ई के स्थान पर ए, उ, ऊ के स्थान पर ओ, ऋ, ऋ के स्थान पर अर् तथा ल के स्थान पर अल् हो जाना। जैसे - नी - ने - नेता, हु - हो - होता, स्वृ - स्वर् - स्वर्ता आदि। ध्यान रहे कि यदि गुण करने के बाद, अजादि प्रत्यय परे हो, तब एचोऽयवायावः सूत्र से ए को अय् तथा ओ को अव्, ऐसी अयादि सन्धि अवश्य की जाये। जैसे - शी + इता - शे + इता - शय् + इता = शयिता यु + इता - यो + इता - यव् + इता = यविता पुगन्तलघूपधस्य च - धातु की उपधा में स्थित लघु इक् के स्थान पर गुण होता है, कित्, ङित्, गित् से भिन्न सार्वधातुक तथा आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। जैसे - लिख - लेख - लेखिता / मिद् - मेद् - मेदिता / वृष् - वर्ष - वर्षिता, क्लुप् - कल्पिता आदि। क्ङिति च - यदि सार्वधातुक अथवा आर्धधातुक प्रत्यय कित्, डित्, गित् हो, तब, धातुओं के अन्त में आने वाले इक् को न तो ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से गुण होता है, और न ही उपधा में स्थित लघु इक् को ‘पुगन्तलघूपधस्य समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १२९ च’ सूत्र से गुण होता है।
- हम जानते हैं कि कुटादिगण के धातुओं से परे आने वाला तथा विज् धातु से परे आने वाला तास् प्रत्यय, ङिद्वत् होता है। अतः इन ३६ कुटादि धातु + १ विज् धातु = ३७ धातुओं के बाद, ‘तास्’ प्रत्यय आने पर इन ३७ धातुओं को कभी गुण मत कीजिये। जैसे - डिप् - डिपिता / पुट - पुटिता / स्फुर् - स्फुरिता / कृड् - कृडिता / गु - गुता / कु - कुता / उद्विज् - उद्विजिता, आदि। __ ऊर्गु धातु से परे आने वाला तास् प्रत्यय, विकल्प से डिद्वत् होता है। अतः इसके बाद ‘तास् ’ प्रत्यय आने पर ऊर्गु धातु को विकल्प से गुण कीजिये। जैसे - ऊर्गु + इता - गुण होकर - ऊर्णो + इता = ऊर्णविता / गुण न होकर - ऊर्ण + इता ही रहेगा। अब प्रश्न उठेगा कि जब ऊर्गु को गुण नहीं होगा, तब इसे इता में जोड़ा कैसे जायेगा, क्योंकि यहाँ तो ‘उ’ इस अच के बाद तो ‘इ’ यह अच् ही आ रहा इसकी व्यवस्था यह है कि जब भी इगन्त अङ्ग को गुण का निषेध होता है, तब अङ्ग के अन्तिम इ को इयङ् (इय्) अन्तिम उ को उवङ् (उ) आदेश होते हैं। इसके लिये सूत्र है - _ अचिश्नुधातुभ्रुवां य्वोरियडुवङौ - अजादि कित् डित् प्रत्यय परे होने पर अङ्ग के अन्तिम इ को इयङ् (इय्) अन्तिम उ को उवङ् (उच्) होता है। जैसे - नू + इता - नुव् + इता - नुविता, धू + इता - धुव् + इता - धुविता, ऊर्गु + इता - ऊर्गुव् + इता - ऊर्णविता। __व्यचे: कुटादित्वमनसीति वक्तव्यम् - व्यच् धातु से परे आने वाले ‘अस्’ से भिन्न सारे प्रत्यय डिद्वत् होते हैं। फल यह होता है कि व्यच् धातु से परे आने वाले तास् प्रत्यय के डिद्वत् होने के कारण, व्यच् धातु को सम्प्रसारण हो जाता है। सम्प्रसारण करने वाला सूत्र है - ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च - ग्रह, ज्या, वय, व्यध्, वश्, व्यच्, व्रश्च्, प्रच्छ, भ्रस्ज् इन धातुओं को सम्प्रसारण होता है कित् या ङित् प्रत्यय परे होने पर। __ अतः ङित् प्रत्यय परे होने पर व्यच् के य’ को सम्प्रसारण करके ‘इ’ होता [[१३०]] है - व्यच् + इता - विच् + इता = विचिता। इन अङ्गकार्यों को यहीं बुद्धिस्थ करके ही लुट् लकार के रूप बनायें। पहिले हम भ्वादिगण से क्र्यादिगण तक के धातुओं के लुट् लकार के रूप बनायेंगे। णिच् प्रत्ययान्त चुरादिगण के धातुओं के रूप बाद में बनायेंगे। ध्यान रहे कि अनिट् धातुओं से ‘अनिट् प्रत्यय’ अर्थात् ता, तारौ, तार:, आदि ही लगाये जायें तथा सेट् धातुओं से सेट् प्रत्यय’ अर्थात् इता, इतारौ, इतारः, आदि ही लगाये जायें। अब हम भ्वादिगण से क्र्यादिगण तक के धातुओं का वर्गीकरण करें और इस क्रम से धातुओं के रूप बनायें - १. भ्वादिगण से क्र्यादिगण तक के सारे अजन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि। २. भ्वादिगण से क्रयादिगण तक के सारे सेट हलन्त धातुओं के लुट लकार के रूप बनाने की विधि। ३. भ्वादिगण से ज़्यादिगण तक के सारे अनिट् हलन्त धातुओं के लुट लकार के रूप बनाने की विधि। ४. चुरादिगण के धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि । ५. सन्नन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि । ६. यङन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि। __
१. सारे अजन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
अजन्त धातुओं के इस प्रकार वर्ग बनायें - आकारान्त तथा एजन्त धातु, इकारान्त धातु, ईकारान्त धातु, उकारान्त धातु, ऊकारान्त धातु, ऋकारान्त धातु, ऋकारान्त धातु।
आकारान्त तथा एजन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
दरिद्रा धातु - अनेकाच् होने से यह सेट है। अतः दरिद्रा + इता / ‘दरिद्रातरार्धधातुके विवक्षिते आलोपो वाच्यः’ इस वार्तिक से आ का लोप करके – दरिद् + इता = दरिद्रिता। शेष आकारान्त धातु - इसके अलावा सारे एकाच आकारान्त धातु अनिट् हैं। अतः इनसे ‘अनिट् प्रत्यय’ ही लगाइये - पा + ता = पाता। समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३१ एजन्त धातु - __आदेच उपदेशेऽशिति- अशित् प्रत्यय परे होने पर सारे एजन्त धातुओं को ‘आ’ अन्तादेश होता है। जैसे - ग्लै - ग्ला, म्लै - म्ला, ध्यै - ध्या, शो - शा, सो - सा, वे - वा छो - छा आदि। सारे एजन्त धातु भी अनिट् ही होते हैं। अब इनके रूप आकारान्त धातुओं के समान ही बनाइये। धे + ता - धा + ता = धाता ध्यै + ता - ध्या + . ता = ध्याता शो + ता - शा + ता = शाता गै + ता - गा + ता = गाता, आदि। उदाहरणार्थ वेञ् - वा धातु के पूरे रूप परस्मैपद आत्मनेपद एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. वाता वातारौ वातार: वाता वातारौ वातार: म. पु. वातासि वातास्थः वातास्थ वातासे वातासाथे वाताध्वे उ. पु. वातास्मि वातास्वः वातास्मः वाताहे वातास्वहे वातास्महे विशेष - आगे हम केवल प्रथमपुरुष एकवचन का रूप बनाकर देंगे। लुट् लकार के अन्य प्रत्यय लगाकर, शेष रूप उसी के समान बना लीजिये।
सेट् इकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
हम जानते हैं कि एकाच् इकारान्त धातुओं में श्रि, शिव, ये दो धातु ही सेट होते हैं। अतः इनमें सेट् प्रत्यय ही लगाइये। श्रि + इता / सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके - श्रे + इता / एचोऽयवायावः सूत्र से इस ‘ए’ को अयादेश करके - श्रय् + इता = श्रयिता। इसी प्रकार श्वि + इता से श्वयिता बनाइये। सेट ईकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि हम जानते हैं कि एकाच ईकारान्त धातुओं में शीङ्, डीङ्, ये दो धातु ही सेट होते हैं। अतः इनमें सेट् प्रत्यय ही लगाइये। शी + इता - शे + इता / सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके - शे + इता / एचोऽयवायावः सूत्र से इस ‘ए’ को अयादेश करके - शय् + इता = शयिता। इसी प्रकार डी + इता से डयिता बनाइये। [[१३२]] जि
- शे + इता / एचोऽयवायावः सूत्र से इस ‘ए’ को अयादेश करके - शय् + इता = शयिता। इसी प्रकार डी + इता से डयिता बनाइये। इसके अपवाद - दीधी, वेवी धातु - अनेकाच् होने से ये सेट हैं। दीधीवेवीटाम् - दीधी और वेवी धातुओं के इक् के स्थान पर कोई भी गुण या वृद्धि कार्य नहीं होते। __ यीवर्णयोर्दीधीवेव्योः - यकारादि और इकारादि प्रत्यय परे होने पर दीधी, वेवी धातुओं के ‘ई’ का लोप होता है। दीधी + इता - दीध् + इता = दीधिता वेवी + इता - वेव् + इता = वेविता
अनिट् इकारान्त, ईकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
श्रि, शिव, शीङ्, डीङ्, को छोड़कर सारे एकाच इकारान्त, ईकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं, अतः अतः इनमें अनिट् प्रत्यय ही लगाइये। धातु के अन्तिम इ, ई को सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके ए बनाइये -
- ता - जे + ता = जेता नी + ता - ने + ता = नेता अधि + इ + ता - अध्ये + ता = अध्येता इसी प्रकार सारे इकारान्त, ईकारान्त अनिट् धातुओं के रूप, चि - चेता आदि बनाइये। इसके अपवाद - ‘ली धातु’ - विभाषा लीयते: - जब भी ‘ली’ धातु को गुण होकर ‘ए’ होता है, तब उस ‘ए’ को विकल्प से ‘आ’ आदेश होता है। ली - ले - ला - लाता। ‘आ’ आदेश न होने पर - पूर्ववत् ‘लेता’ ही बनेगा।
सेट् उकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
__उकारान्त धातुओं में यु, रु, नु, स्नु, क्षु, क्ष्णु, ये ६ धातु ही सेट होते हैं, अतः इनमें सेट् प्रत्यय ही लगाइये। यु + इता / सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके - यो + इता। एचोऽयवायावः सूत्र से इस ओ को अवादेश करके - यव् + इता = यविता। इन छह सेट् धातुओं के रूप इसी प्रकार बनाइये - गुण करके अवादेश करके नु + इता - नो + इता - नव् + इता = नविता रु + इता - रो + इता - रव् + इता = रविता E EE समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३३ स्नु + इता - स्नो + इता - स्नव् + इता = स्नविता क्षु + इता - क्षो + इता - क्षव् + इता = क्षविता क्ष्णु + इता - क्ष्णो + इता - क्ष्णव् + इता = क्ष्णविता इसका अपवाद - ऊर्ण धातु - ध्यान रहे कि ऊर्ण धातु से परे आने वाला तास् प्रत्यय ‘विभाषोर्णोः’ सूत्र से विकल्प से डिद्वत् होता है। डिति च - यदि सार्वधातुक अथवा आर्धधातुक प्रत्यय कित्, ङित्, या गित् हो, तब न तो अगों के अन्त में आने वाले इक को गुण होता है और न ही उपधा में स्थित लघु इक् को गुण होता है। जैसे - गु + ता = गुता / धू + ता = ध्रुता / कु + ता = कुता / ऊर्ण + इता = ऊर्ण + इता। अतः - डिद्वत् होने पर - ऊर्गु धातु को ‘क्ङिति च’ सूत्र से गुणनिषेध करके अचिश्नुधातुभ्रुवां वोरियडुवङौ सूत्र से उवङ् ही कीजिये - ऊर्गु + इता - ऊर्गुत् + इता = ऊर्गुविता डिद्वत् न होने पर - ऊर्गु धातु को सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके यविता के समान ही ऊर्णविता बनाइये।
अनिट् उकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
इनके अलावा शेष उकारान्त धातु अनिट् होते हैं, अतः इनमें अनिट् प्रत्यय ही लगाइये। धातु के अन्तिम उ ऊ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से गुण करके ओ बनाइये - हु + ता - हो + ता = होता। इसके अपवाद - कुटादि धातु गु धातु / धु धातु / कुङ् धातु - ये कुटादि धातु हैं तथा अनिट् हैं। अतः इनसे अनिट् प्रत्यय लगाइये। इनसे परे आने वाला ‘ता’ प्रत्यय ‘गाकुटादिभ्योऽञ्णिन्डित्’ सूत्र से डित्वत् होगा। अतः ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध होकर इनके रूप इस प्रकार बनेंगे - गु + ता = गुता / ध्रु + ता = ध्रुता / कु + ता = कुता आदि।
सेट् ऊकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
ऊकारान्त धातुओं में, सारे धू धातु, अदादिगण का सू धातु, दिवादिगण का सू धातु, ये वेट हैं। शेष सारे ऊकारान्त धातु सेट ही हैं। अनिट् ऊकारान्त धातु कोई भी नहीं है। ध्यान रहे कि सेट् धातुओं से सेट् प्रत्यय’ ही लगाये जायें। वेट धातुओं से कोई से भी प्रत्यय लगाये जा सकते हैं। [[१३४]] للر كرا पू + इता / सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण करके - पो + इता / एचोऽयवायावः सूत्र से इस ‘ओ’ को अवादेश करके - पव् + इता - पविता। इसके अपवाद - कुटादि ऊकारान्त धातु - चूँकि कुटादि धातुओं से परे आने वाला तास् प्रत्यय गाङ्कुटादिभ्योऽञ्णिन्डित् सूत्र से ङिद्वत् होता है, अतः तास् प्रत्यय परे होने पर नू, धू, इन कुटादि धातुओं को सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण न करके अचिश्नुधातुभ्रुवां वोरियडुवडौ सूत्र से उवङ् ही कीजिये - .. नू + इता - नुव् + इता = नुविता धू + इता - धुव् + इता = धुविता ब्रू धातु - ब्रुवो वचि: - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ‘ब्रू’ धातु को ‘वच्’ आदेश होता है - वच् + ता = वक्ता। इसके रूप बनाने की विधि अनिट् हलन्त धातुओं में देखिये। वेट् ऊकारान्त धू धातु, अदादिगण का सू धातु, तथा दिवादिगण का सू धातु सेट् प्रत्यय लगने पर अनिट् प्रत्यय लगने पर सू + ता = सोता सू + इता = सविता धू + ता = धोता धू + इता = धविता
ऋकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि ।
घ्यान रहे कि ऋकारान्त धातुओं में वृङ्, वृङ् धातु सेट होते हैं, स्वृ धातु वेट होता है। शेष ह्रस्व ऋकारान्त धातु अनिट् होते हैं। सेट् वृङ्, वृञ् धातु इनमें सेट् प्रत्यय लगाइये। तास् प्रत्यय परे होने पर, धातुओं के अन्तिम ऋ को सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण करके अर् बनाइये - वृ + इता - वर् + इता - वृतो वा - वृङ् धातु, वृञ् धातु, तथा सारे ऋकारान्त धातुओं से परे आने वाले, इट् को विकल्प से दीर्घ होता है। अतः वृङ् धातु, वृञ् धातु, तथा सारे दीर्घ ऋकारान्त धातुओं से परे आने वाले ‘इट’ को विकल्प से दीर्घ कर दीजिये। वृ + इता - वर् + इता = वरिता / वरीता वृ + इता - वर् + इता = वरिता / वरीता समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १३५ वेट् ऋकारान्त स्वृ धातु यह वेट है। अतः इसमें सेट अनिट, दोनों ही प्रत्यय लग सकते हैं। सेट् प्रत्यय लगने पर - स्वृ + इता / सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण करके - स्वर् +इता = स्वरिता। __ अनिट् प्रत्यय लगने पर - स्वृ + ता / सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण करके - स्वर् + ता = स्वर्ता। अनिट् ऋकारान्त धातु सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण करके - कृ + ता - कर् + ता = कर्ता धृ + ता - धर् + ता = धर्ता भृ + ता - भर् + ता = भर्ता
दीर्घ ऋकारान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
घ्यान रहे कि दीर्घ ऋकारान्त सारे धातु तो सेट ही होते हैं। अतः दीर्घ ऋकारान्त धातुओं में, सेट् प्रत्यय ही लगाइये । इन प्रत्ययों के परे होने पर, इन धातुओं के अन्तिम ऋ को सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण करके अर् बनाइये तथा ऊपर कहे गये वृतो वा’ सूत्र से सारे दीर्घ ऋकारान्त धातुओं से परे आने वाले ‘इट’ को विकल्प से दीर्घ कर दीजिये। जैसे - तृ + इता - तर् + इता = तरिता / तरीता शृ + इता - शर् + इता = शरिता / शरीता जृ + इता - जर् + इता = जरिता / जरीता गृ + इता - गर् + इता = गरिता / गरीता आदि। . यह अजन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई। हलन्त धातुओं के रूप बनाने के लिये पहिले हम उपधा को जानें - . अलोऽन्त्यात्पूर्व उपधा - किसी भी शब्द के अन्तिम वर्ण के ठीक पहिले वाला वर्ण उपधा कहलाता है। जैसे चित् में अन्तिम वर्ण त् है, उसके ठीक पूर्व वाला ‘इ’ उपधा है। मुद् में अन्तिम वर्ण ‘द्’ है, उसके ठीक पूर्व वाला ‘उ’ उपधा है। वृष् में अन्तिम वर्ण ष् है, उसके ठीक पूर्व वाला ऋ उपधा है। इस प्रकार किसी भी हलन्त धातु को देखते ही यह जान लेना चाहिये कि उसमें उपधा क्या है ? ܢܐ ܦܐ ܠܦܘ ܒܗ [[१३६]] ऐसे धातु जिनकी उपधा में लघु ‘अ’ हो वे धातु अदुपध धातु कहलाते हैं। जैसे - हन्, अज् आदि। जिनकी उपधा में लघु ‘इ’ हो वे धातु इदुपध धातु कहलाते हैं। जैसे - भिद्, छिद्, चित्, लिख आदि। जिनकी उपधा में लघु ‘उ’ हो वे धातु उदुपध धातु कहलाते हैं। जैसे - मुद्, क्षुद्, बुध, आदि। जिनकी उपधा में लघु ‘ऋ’ हो वे धातु ऋदुपध धातु कहलाते हैं। जैसे - वृष, कृष्, मृश्, आदि। अब हम हलन्त धातुओं के रूप बनायें -
२. सेट् हलन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
सेट् इदुपध, उदुपध, ऋदुपध धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
पुगन्तलघूपधस्य च - धातु की उपधा में स्थित लघु इक् के स्थान पर गुण होता है, कित्, डित्, गित् से भिन्न सार्वधातुक तथा आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। ता’ प्रत्यय परे होने पर, इस सूत्र से, धातुओं की उपधा के लघु इ को ‘ए’, लघु उ को ‘ओ, लघु ऋ को ‘अर्’ तथा लु को ‘अल्’ बनाइये। जैसे - सेट् इदुपध धातु पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करके - लिख् + इता - लेख् + इता = लेखिता मिद् + इता - मेद् + इता = मेदिता चित् + इता - चेत् + इता = चेतिता आदि। इसके अपवाद - कुटादि इदुपध डिप् धातु ध्यान रहे कि कुटादि धातुओं से परे आने वाला ता प्रत्यय गाङ्कुटादि भ्योऽञ्णिन्डित् सूत्र से डिद्वत् होता है। अतः तास् प्रत्यय परे होने पर कुटादि धातुओं की उपधा को ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध होगा - डिप् + इता - डिप् + इता = डिपिता। विज् धातु - ध्यान रहे कि विज् धातु से परे आने वाला ता प्रत्यय विज इट् सूत्र से डिद्वत् होता है। अतः ता प्रत्यय परे होने पर विज् धातु की उपधा को ‘क्डिति समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि च’ सूत्र से गुणनिषेध होगा - उद्विज् + इता - उद्विज् + इता = उद्विजिता सेट् उदुपध धातु पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करके - मुद् + इता - मोद् + इता = मोदिता प्लुष् + इता - प्लोष् + इता = प्लोषिता इसके अपवाद - कुटादि धातु - ध्यान रहे कि कुटादि धातुओं से परे आने वाला तास् प्रत्यय गाङ्कुटादिभ्योऽञ्णिन्डित् सूत्र से ङिद्वत् होता है। अतः इसके परे होने पर कुटादि धातुओं की उपधा को ‘क्डिति च’ सूत्र से गुणनिषेध होगा - कुट + इता - कुट् + इता = कुटिता। इसी प्रकार उपधा को गुण किये बिना पुट, कुच्, गुज्, गुड्, छुर्, स्फुट, मुट; त्रुट, तुट, चुट, छुट, जुट, लु, कुड्, पुड्, घुट, तुड्, थुड्, स्थुड्, स्फुर्, स्फुल्, स्फुड्, चुड्, वुड्, क्रुड्, गुर् इन कुटादि धातुओं के रूप बनाइये। गुह् धातु - __. ऊदुपधाया गोह: - गुह धातु की उपधा के ‘उ’ को दीर्घ होता है, अजादि प्रत्यय परे होने पर। इस सूत्र से अजादि प्रत्यय परे होने पर गुह धातु की उपधा के उ को गुण न करके दीर्घ कीजिये - गुह् + इता - गृह् + इता = गृहिता सेट् ऋदुपध धातु पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करके - वृष् + इता - वर्ष + इता = वर्षिता हृष् + इता - हर्ष + इता = हर्षिता इसके अपवाद - कुटादि धातु - ध्यान रहे कि कुटादि धातुओं से परे आने वाला ता प्रत्यय गाङ्कुटादिभ्योऽञ्णिन्डित् सूत्र से डिद्वत् होता है। अतः ता प्रत्यय परे होने पर कुटादि धातुओं की उपधा को ‘क्ङिति च’ सूत्र से गुणनिषेध होगा - कृड् + इता - कृड् + इता = कृडिता मृड् + इता - मृड् + इता = मृडिता ᳕ इदुपध, उदुपध, ऋदुपध को छोड़कर, शेष सेट् हलन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि पहिले कुछ विशिष्ट सेंट हलन्त धातुओं का विचार करें - ग्रह् धातु - ग्रहोऽलिटि दीर्घ: - ग्रह धातु, से परे आने वाले इट् को नित्य दीर्घ होता है - ग्रह + इता = ग्रहीता आदि। __ व्यच् धातु - हम जानते हैं कि ‘व्यचे: कुटादित्वमनसीति वक्तव्यम्’ इस वार्तिक से व्यच् धातु से परे आने वाले ‘अस्’ से भिन्न सारे प्रत्यय डिद्वत् होते हैं। __ फल यह होता है कि व्यच् धातु से परे आने वाला ता प्रत्यय जब ङिद्वत् होता है, तब व्यच् धातु को ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च सूत्र से सम्प्रसारण हो जाता है। व्यच् के ‘य’ को सम्प्रसारण करके ‘इ’ होता है - व्यच् + इता - विच् + इता = विचिता। - अस् धातु - अस्तेर्भूः - सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर अस् धातु को भू आदेश होता है। अस् + इता - भू + इता - भो + इता = भविता। अज् धातु - अजेळघञपो:- घञ्, अप् को छोड़कर शेष सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ‘अज्’ धातु को ‘वी’ आदेश होता है। अज् + ता - वी + ता - वे + ता = वेता। चक्ष् धातु - चक्षिङ् ख्याञ्- सारे आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ‘चक्ष्’ धातु को ‘ख्या’ आदेश होता है। अतः ता से बने हुए लुट लकार के प्रत्यय परे होने पर चक्ष् धातु के स्थान पर ख्या आदेश कीजिये और इसके रूप भी आकारान्त के समान ख्या + ता - ख्याता आदि बनाइये। शेष. सेट हलन्त धातु __ इन्हें कुछ मत कीजिये। यथा - वद् + इता - वद् + इता = वदिता मील् + इता - मील् + इता = मीलिता मूष् + इता - मूष् + इता = मूषिता पठ् + इता - वद् + इता पठिता आदि। अब हम अनिट् तथा वेट हलन्त धातुओं के रूप बनायें । समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
४. हलन्त वेट तथा हलन्त अनिट् धातुओं के, लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
अब हमारे सामने हलन्त अनिट् धातु बचे हैं, जिनकी संख्या १०२ गिनाई गई है, उनके रूप बनाना है। इनके सामने अनिट् तास् से बने हुए तकारादि प्रत्यय ही बैठेंगे। __ इनके अलावा ८ रधादि धातु, निर् + कुष् धातु तथा २३ ऊदित् धातु जो कि वेट हैं, बचे हैं, उनके रूप भी बनाना है। इनके सामने सेट तथा अनिट् में से कोई भी प्रत्यय बैठ सकते हैं। पर ‘तास्’ प्रत्यय परे होने पर होने वाले, प्रमुख अङ्गकार्य बतलाये जा चुके हैं। ध्यान रहे कि सारे अङ्गकार्यों के हो चुकने के बाद ही, सन्धिकार्य किये जायें। अब हम अङ्गकार्य तथा सन्धिकार्य करके इन हलन्त अनिट् तथा वेट् धातुओं के रूप दे रहे हैं। __ अत्यावश्यक - अनिट् प्रत्यय परे होने पर, यह ध्यान रखें कि जिन धातुओं के बीच में वर्ग के पञ्चमाक्षर हों, उन्हें आप पहिले अनुस्वार बना लें, उसके बाद ही आगे कहे जाने वाले कार्य शुरू करें। जैसे - भज् + ता - भंज् + ता / अज् + ता - अंज् + ता / सङ्ग् + ता - संज् + ता आदि। हलन्त अनिट् धातुओं के रूप पहिले उन हलन्त अनिट् धातुओं के रूप दे रहे हैं, जिनके अन्त में वर्ग के प्रथम, द्वितीय अथवा तृतीय व्यञ्जन हैं - धातु + प्रत्यय अगादि कार्य सन्धि कार्य करने पर करने पर - बना हुआ धातुरूप __ कवर्गान्त धातु तकारादि प्रत्यय परे होने पर, धातु के अन्त में आने वाले क् ख् ग् को ‘खरि च’ सूत्र से उसी कवर्ग का प्रथमाक्षर क् बनाइये। शक् + ता - शक् + ता - शक् + ता = शक्ता __चवर्गान्त धातु अनिट् चकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर, धातु के अन्त में आने वाले ‘च’ को पहिले ‘चो: कुः’ सूत्र से कुत्व करके ‘क्’ बनाइये। उसके बाद उस क्’ को ‘खरि च’ १४० अष्टाध्यायी सहजबोध । सूत्र से पुनः उसी कवर्ग का प्रथमाक्षर क् ही बना दीजिये। पच् + ता - पच् + ता - पक् + ता = पक्ता मुच् + ता - मोच् + ता - मोक् + ता = मोक्ता रिच् + ता - रेच् + ता - रेक् + ता = रेक्ता वच् + ता - वच् + ता - वक् + ता = वक्ता विच् + ता - वेच् + ता - वेक् + ता = वेक्ता सिच् + ता - सेच् + ता - सेक् + ता = सेक्ता इसके अपवाद - वेट् व्रश्च् धातु - यह धातु वेट् है । इडागम न होने पर व्रश्च् के रूप इस प्रकार बनाइये व्रश्च् + ता - ‘स्को: संयोगाद्योरन्ते च’ सूत्र से संयोग के आदि में स्थित ‘स्’ का लोप करके - वच् + ता / अब अन्त में आने वाले ‘च’ को व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ए’ बनाकर - व्रष् + ता / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टः’ सूत्र से ‘ट’ बनाकर - व्रष् + टा = व्रष्टा। इडागम होने पर व्रश्च के रूप इस प्रकार बनाइये - व्रश्च् + इता = व्रश्चिता । अनिट् छकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर छकारान्त धातु के अन्त में आने वाले ‘छ’ को वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ए’ बनाइये। उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टना ष्टः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। प्रच्छ् + ता - प्रष् + ता - प्रष् + टा = प्रष्टा अनिट् जकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर, धातु के अन्त में आने वाले ‘ज’ को पहिले चो: कुः’ सूत्र से कुत्व करके ‘ग्’ बनाइये। उसके बाद उस ‘ग्’ को ‘खरि च’ सूत्र से उसी कवर्ग का प्रथमाक्षर ‘क्’ बनाइये। त्यज् + ता - त्यग् + ता - त्यक् + ता = त्यक्ता निज् + ता - नेग् + ता - नेक् + ता = नेक्ता भज् + ता - भग् + ता - भक् + ता = भक्ता भञ्ज् + ता - भंग् + ता - + ता = भक्ता भुज् + ता - __ + ता - भोक् + ता = भोक्ता समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १४१ रुज् + ता - रोग् + ता - रोक् + ता = रोक्ता रज् + ता - रंग + ता - रक् + ता = रफ़्ता विज् + ता - वेग् + ता - वेक् + ता = वेक्ता स्वञ् + ता - स्वंग् + ता - स्वंक् + ता = स्वङ्क्ता सज् + ता - संग् + ता - संक् + ता = सङ्क्ता युज् + ता - योग् + ता - योक् + ता = योक्ता विशेष जकारान्त मस्ज् धातु - मस्जिनशोझलि - मस्ज् तथा नश् धातु को झलादि प्रत्यय अर्थात् अनिट तास् प्रत्यय, परे होने पर नुम् का आगम होता है। मस्ज् + ता - मस्ज् + ता / ‘स्को: संयोगाद्योरन्ते च’ सूत्र से संयोग के आदि में स्थित ‘स्’ का लोप करके - मंज + ता / ज को चो: क: से कत्व करके - मंग + ता / ग को खरि च से चर्व करके - मंक् + ता / अनुस्वार को ‘अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:’ से परसवर्ण करके = मंङ्क्ता । विशेष जकारान्त सृज् धातु - सृजिदृशोझल्यमकिति - सृज् तथा दृश्, इन दो अनिट् ऋदुपध धातुओं को झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर अम् का आगम होता है। अम् का आगम करके इनकी उपधा के ऋ को र बनाइये। सृज् + ता - स्रज् + ता / उसके बाद धातु के अन्त में आने वाले ‘ज्’ को व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ए’ बनाइये - स्रष् + ता / उसके बाद ‘त’ को ‘ष्टना ष्ट:’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये - स्रष् + टा = स्रष्टा। विशेष जकारान्त भ्रस्ज् धातु - भ्रस्जो रोपधयो: रमन्यतरस्याम् - आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर भ्रस्ज् धातु के ‘र्’ तथा उपधा के ‘स्’ के स्थान पर, विकल्प से ‘रम्=र्’ का आगम होता है। भ् र् अ स् ज् = भ् अ र् ज् = भर्छ । भ्रस्ज् + ता – भर्ख + ता / ज्’ को वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ष’ बनाइये - भर्ष + ता / उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये - भष् + टा = भी। _ विकल्प से भ्रस्ज् के स्थान पर भ्रस्ज् ही रहने पर - भ्रस्ज् + ता - ‘स्को: संयोगाद्योरन्ते च’ सूत्र से संयोग के आदि में स्थित स्’ का लोप करके - भ्रज् [[१४२]]
- ता / धातु के अन्त में आने वाले ‘ज्’ को वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ए’ बनाकर - भ्रष् + ता / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाकर - भ्रष्टा। वेट् अङ्ग् धातु - इडागम न होने पर - धातु के अन्त में आने वाले ज्’ को चो: कुः’ सूत्र से कुत्व ‘ग्’ करके, ‘खरि च’ सूत्र से उसे कवर्ग का प्रथमाक्षर क् बनाइये। अज् + ता - अंग् + ता - अंक् + ता = अङ्क्ता इडागम होने पर - अ+ इता = अजिता वेट मृज् धातु - इडागम न होने पर - मृजेर्वृद्धि: - मृज् धातुरूप जो अग, उसके इक् के स्थान पर वृद्धि होती है। मृज् + ता - मा + ता। _ ‘वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ज्’ को ‘ष’ बनाकर - मार्च् + ता - माश् + ता / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - मार्ष + टा = मार्टा। इडागम होने पर - मृज् + इता - मार्च् + इता = मार्जिता। तवर्गान्त धातु अनिट् दकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर, धातु के अन्त में आने वाले, त् थ् द् ध् को ‘खरि च’ सूत्र से उसी वर्ग का प्रथमाक्षर त् बनाइये। अद् + ता - अद् + ता - अत् + ता = अत्ता क्षुद् + ता - क्षोद् + ता - क्षोत् + ता = क्षोत्ता खिद् + ता - खेद् + ता - खेत् + ता = खेत्ता छिद् + ता - छेद् + ता - = छेत्ता तोत्ता __ = नोत्ता पद् पत्ता भिद् + ता - - भेद + ता - = भेत्ता विद् + ता - सद् + ता
सत्ता + + EEEEEEEEEE EF EEEEEEEEEE नद + + + +
EFFFFE EEEEEEE
वेत्ता + + समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १४३ शद् + ता - शद् + ता. - शत + ता = शत्ता स्विद् + ता - स्वेद् + ता - स्वेत् + ता = स्वेत्ता स्कन्द् + ता - स्कन्द् + ता - स्कन्त् + ता = स्कन्त्ता हद् + ता - हद् + ता - हत् + ता = हत्ता वेट क्लिद्, स्यन्द् धातु - इडागम न होने पर - क्लेत्ता / इडागम होने पर - क्लेदिता बनाइये । स्यन्द् धातु से इडागम न होने पर - स्यन्ता / इडागम होने पर - स्यन्दिता बनाइये। अनिट् नकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर धातु के अन्त में आने वाले न्, म्, को ‘नश्चापदान्तस्य झलि’ सूत्र से अनुस्वार बनाइये। उसके बाद ‘अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:’ सूत्र से परसवर्ण करके उस अनुस्वार को न् बनाइये - मन् + ता - मं + ता - मन् + ता = मन्ता हन् + ता - हं + ता - हन् + ता = हन्ता __पवर्गान्त धातु अनिट पकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर, प् फ् ब् को ‘खरि च’ सूत्र से उसी वर्ग का प्रथमाक्षर प् बनाइये। आप् + ता - आप् + ता - आप् + ता = आप्ता छुप् + ता - छोप् + ता - छोप् + ता = छोप्ता क्षुप् + ता - क्षोप् + ता - क्षोप् + ता = क्षोप्ता तप् + ता - तप् + ता - तप् + ता = तप्ता .. तिप् + ता - तेप् + ता - तेप – तेप्ता
- ता
- ता = लेप्ता लुप् + ता - लोप् + ता - लोप __= लोप्ता वप् + ता - वप् + ता - वप् + ता = वप्ता शप् + ता - शप् + ता - शप् + ता = शप्ता स्वप् + ता - स्वप् + ता - स्वप् + ता = स्वप्ता इसके अपवाद - सृप् धातु - अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् - अनिट् ऋदुपध धातुओं को झलादि
- लेप्
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- EEEEEEEEEE
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- [[१४४]] अकित् प्रत्यय परे होने पर विकल्प से अम् का आगम होता है। अनिट् तास् प्रत्यय झलादि अकित् है। सृप, स्पृश्, मृश्, कृष् धातु अनिट ऋदुपध हैं। तृप्, दृप् धातु वेट ऋदुपध हैं। अनिट् तास् प्रत्यय परे होने पर, अम् का आगम करके इनकी उपधा के ‘ऋ’ को ‘र’ बनाइये। अम् का आगम होने पर - सृप् + ता - स्रप् + ता = स्रप्ता। अम् का आगम न होने पर इसकी उपधा के ऋ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके अर् बनाइये। सृप् + ता - सप् + ता = सप्र्ता।
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- वेट त्रप् धातु - इससे इडागम न होने पर - त्रप्ता / इडागम होने पर - त्रपिता बनाइये। दिवादिगण के वेट् तृप, दृप् धातु - अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् - अनिट् ऋदुपध धातुओं को, झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर, विकल्प से अम् का आगम होता है। ध्यान रहे कि सेट् ‘ता’ प्रत्यय परे होने पर अम् का आगम कदापि न किया जाय। इस प्रकार इनके तीन रूप बनेंगे - . तृप् + ता - अम् का आगम करके तथा अनिट् प्रत्यय लगाकर - त्रप् + ता = त्रप्ता। - तृप् + ता - अम् का आगम न करके, पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के ऋ को गुण करके तथा अनिट् प्रत्यय लगाकर - तप् + ता = तप्र्ता। तृप् + इता - अम् का आगम न करके पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से उपधा के ऋ को गुण करके तथा सेट् प्रत्यय लगाकर - तप् + इता = तर्पिता। ठीक इसी प्रकार दप धात से द्रप्ता / दर्ता / दर्पिता बनाइये। गुपू धातु - इसे ‘आयादय आर्धधातुके वा’ सूत्र से स्वार्थ में ‘आय’ प्रत्यय विकल्प से होता है - गुप् + आय - गोपाय । ‘आय’ लग जाने पर, यह धातु अनेकाच् हो जाने से सेट हो जाता है। ‘आय’ प्रत्यय लगाकर, सेट् प्रत्यय लगने पर - गुप् + आय - गोपाय + इता / अतो लोप: से ‘अ’ का लोप होकर - गोपाय् + इता = गोपायिता। _ ‘आय’ प्रत्यय न लगाकर, सेट् प्रत्यय लगने पर - गुप् - गोप् + इता = गोपिता / ‘आय’ प्रत्यय न लगाकर, अनिट् प्रत्यय लगने पर - गुप् - गोप् + ता = गोप्ता। समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १४५ वेट कृपू धातु - कृपो रो ल: - कृप् के ‘ऋ’ के स्थान पर ‘लु’ आदेश होता है - कृप् - क्लृप्। लुटि च क्लृप: - ‘तास्’ से बने हुए लुट् लकार के प्रत्यय परे होने पर, ‘स्य’ से बने हुए लृट् लकार के प्रत्यय परे होने पर तथा सन् प्रत्यय परे होने पर, क्लप धातु से विकल्प से परस्मैपद के प्रत्यय लगते हैं। तासि च क्लृप: - क्लृप् धातु से परे आने वाले परस्मैपदसंज्ञक ‘तास्’ को तथा परस्मैपदसंज्ञक सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय को इडागम नहीं होता है। केवल आत्मनेपद में इडागम होता है। परस्मैपद में - कृपू - क्लुप् + ता - पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करके - कल्प् + ता = कल्प्ता । आत्मनेपद में - कृपू - क्लृप् + इता - पुगन्तलघूपधस्य च सूत्र से गुण करके - कल्प् + इता = कल्पिता। अनिट् मकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर धातु के अन्त में आने वाले न्, म्, को ‘नश्चापदान्तस्य झलि’ सूत्र से अनुस्वार बनाइये। उसके बाद अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:’ सूत्र से परसवर्ण करके उस अनुस्वार को न् बनाइये - नम् + ता - नं + ता - नन् + ता = नन्ता यम् + ता - यमं + ता - यन् + ता = यन्ता रम् + ता - रं + ता - रन् + ता = रन्ता गम् + ता - गं + ता - गन् + ता = गन्ता वेट क्षम् धातु - इडागम न होने पर - क्षन्ता / इडागम होने पर क्षमिता। ऊष्मान्त धातु अनिट् शकारान्त धातु - तकारादि प्रत्यय परे होने पर ‘श्’ को व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ए’ बनाइये। उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। क्रुश् + ता - क्रोष् + ता - क्रोष् + टा = क्रोष्टा दंश् + ता - दंष् + ता - दंष् + टा = दंष्टा दिश् + ता - देष् + ता - देष + टा = देष्टा
- [[१४६]] रिश् + ता - रेष् + ता - रेष् + टा = रेष्टा रुश् + ता - रोष् + ता - रोष् + टा = रोष्टा लिश् + ता - लेष् + ता - लेष् + टा = लेष्टा विश् + ता - वेष् + ता - वेष् + टा = वेष्टा विशेष शकारान्त - दृश् धातु - सृजिदृशोझल्यमकिति - सृज् तथा दृश्, इन दो अनिट् ऋदुपध धातुओं को झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर अम् का आगम होता है। अम् का आगम करके इनकी उपधा के ऋ को र बनाइये। दृश् + ता - द्रश् + ता / उसके बाद धातु के अन्त में आने वाले श्’ को वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ए’ बनाइये - द्रष् + ता / उसके बाद प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके ‘ट’ बनाइये - द्रष् + टा = द्रष्टा। विशेष शकारान्त - स्पृश्, मृश् धातु - अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् - ऋदुपध धातुओं को झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर विकल्प से अम् का आगम होता है। अनिट् तास् प्रत्यय झलादि अकित् है। सृप, स्पृश्, मृश्, कृष् धातु अनिट् ऋदुपध हैं। तृप्, दृप् धातु वेट् ऋदुपध हैं। अनिट् तास् प्रत्यय परे होने पर, अम् का आगम करके इनकी उपधा के ‘ऋ’ को ‘र’ बनाइये। सृप्, तृप्, दृप् धातु पकारान्त वर्ग में बतला चुके हैं। स्पृश्, मृश् धातु, यहाँ बतला रहे हैं। अम् का आगम होने पर - मृश् + ता - अम् का आगम करके - म्रश् + ता / ‘श्’ को वश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ए’ बनाकर - म्रष् + ता / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - म्रष् + टा = म्रष्टा। _ अम् का आगम न होने पर - इन धातुओं की उपधा के ‘लघु ऋ’ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके अर् बनाइये। मृश् + ता - मश् + ता / ‘श्’ को व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां ष:’ सूत्र से ‘ष’ बनाकर - मर्ष + ता / प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - मष् + टा = मर्टा। . इसी प्रकार स्पृश् धातु से स्प्रष्टा / स्पर्टा बनाइये। समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १४७ वेट् अशू, क्लिशू धातु - इडागम न होने पर - अष्टा / इडागम होने पर - अशिता। क्लिशू धातु से इडागम न होने पर - क्लेष्टा / इडागम होने पर - क्लेशिता।. वेट नश् धातु - मस्जिनशोर्झलि - मस्ज् तथा नश् धातु से परे आने वाले झलादि प्रत्ययों को नुम् का आगम होता है - नश् + ता - नंश् + ता - नंष् + टा = नंष्टा ध्यान रहे कि यदि हम नश् धातु से सेट् ‘इता’ प्रत्यय लगायेंगे, तब यह नुमागम नहीं होगा। नश् + इता = नशिता। अनिट् षकारान्त धातु - षकारान्त धातु से तकारादि प्रत्यय परे होने पर प्रत्यय के ‘त’ को ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ‘ट’ बनाइये। त्विष् + ता - त्वेष् + ता - त्वेष् + टा = त्वेष्टा तुष् + ता - तोष् + ता - तोष् + टा = तोष्टा द्वेष . + ता द्वेष + टा = द्वेष्टा
- टा = दोष्टा पोष् + टा = पोष्टा पिष् + ता - पेष + ता - पेष + टा = पेष्टा विष् + ता - वेष् + ता - वेष् + टा = वेष्टा शिष् + ता - शेष् + ता - शेष् + टा = शेष्टा । शुष् + ता - शोष् + ता __ - शोष् + टा = शोष्टा श्लिष् + ता - श्लेष् + ता - श्लेष् + टा = श्लेष्टा विशेष षकारान्त धातु - कृष् धातु - अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् सूत्र से झलादि अकित् प्रत्यय परे होने पर विकल्प से अम् का आगम होने पर - कृष् - क्रष् - क्रष्टा। अम् का आगम न होने पर उपधा के ‘लघु ऋ’ को ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके - कृष् - कर्ष - कष्र्टा। __ वेट् इष्, रुष्, रिष् धातु - ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से गुण करके - इष् से एष्टा - एषिता / रुष् से रोष्टा - रोषिता / रिष् से रेष्टा - रेषिता बनाइये।
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- [[१४८]] वेट निर् उपसर्गपूर्वक कुष् धातु - इडागम न होने पर - निष्कोष्टा / इडागम होने पर - निष्कोषिता वेट असू, तस्, त्वथू, धातु - इडागम न होने पर - अक्ष् + ता - ‘स्को: संयोगाद्योरन्ते च’ सूत्र से संयोग के आदि में स्थित ‘क्’ का लोप करके - अष् + ता / ‘ष्टुना ष्टुः’ सूत्र से ष्टुत्व करके - अष् + ता = अष्टा। इडागम होने पर अक्ष् + ता = अक्षिता। इसी प्रकार तक्ष् से तष्टा - तक्षिता / त्वक्ष् से त्वष्टा - त्वक्षिता। अनिट् सकारान्त धातु - - स् के बाद तकारादि प्रत्यय आने पर कुछ मत कीजिये। वस् + ता = वस्ता / घस् + ता = घस्ता __हकारान्त धातु - झलादि प्रत्यय अर्थात् तकारादि, थकारादि, सकारादि प्रत्यय परे होने पर हकारान्त धातुओं के पाँच वर्ग बनाइये - १. नह धातु - नह् धातु के ह् को नहो ध: सूत्र से ध् बनाइये। नह + ता - नध् + ता / अब देखिये कि धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर ‘ध्’ आ गया है, अतः आप ऐसे धातुओं के बाद में आने वाले - १. प्रत्यय के त, थ को झषस्तथो|ऽध: सूत्र से ध बना दीजिये - नध् + ता = नध् + धा - २. और धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर ध् को झलां जश् झशि सूत्र से जश्त्व करके उसी वर्ग का तृतीयाक्षर द् बनाइये । नध् + धा - नद् + धा = नद्धा। २. दकारादि हकारान्त धातु, जैसे - दुह्, दिह आदि - इनके ‘ह’ को ‘दादेर्धातोर्घः’ सूत्र से घ् बनाइये - दुह् - दोह् + ता - दोघ् + ता / प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ‘ध’ करके - दोघ + धा / अब धातु के अन्त में बैठे हुए वर्ग के चतुर्थाक्षर ‘घ्’ को झलां जश् झशि सूत्र से जश्त्व करके, उसी वर्ग का तृतीयाक्षर ‘ग्’ बनाइये - दोघ् + धा = दोग्धा । इसी प्रकार - दिह - देह + ता = देग्धा बनाइये। ३. द्रुह् ,मुह ,स्नुह, स्निह् धातु - ये चारों धातु वेट हैं। इडागम न होने पर - . इन चार धातुओं के ‘ह्’ को ‘वा द्रुहमुहष्णुहष्णिहाम्’ सूत्र से विकल्प से समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १४९ द तथा ‘घ्’ होते हैं, झल् परे होने पर। ‘ह’ को ‘घ’ बनाने पर - द्रुह् + ता - द्रोघ् + ता / प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ‘ध’ करके - द्रोच् + धा / झलां जश् झशि सूत्र से ‘घ्’ को जश्त्व करके, उसी वर्ग का तृतीयाक्षर ‘ग्’ बनाकर - द्रोग् + धा = द्रोग्धा । इसी प्रकार मुह् + ता - मोग्धा / स्नुह् + ता = स्नोग्धा / स्निह् + ता = स्नेग्धा बनाइये। ‘ह’ को ‘ढ्’ बनाने पर - द्रोह् + ता - द्रोढ् + ता/ प्रत्यय के त को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ‘ध’ करके - द्रोढ् + धा / ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ध् को ष्टुत्व करके द्रोढ्
- ढा - ढो ढे लोप: से पूर्व ढकार का लोप करके द्रो + ढा = द्रोढा। __ इसी प्रकार - मुह से मोढा / स्नुह से स्नोढा / स्निह् से स्नेढा, बनाइये। इडागम होने पर - द्रुह् + इता - द्रोह् + इता = द्रोहिता मुह् + इता - मोह् + इता = मोहिता स्निह् + इता - स्नेह + इता = स्नेहिता स्नुह् + इता - स्नोह् + इता = स्नोहिता ४. वह्, सह् धातु - सह वह, इन दो धातुओं के ‘ह’ को हो ढः’ सूत्र से ‘द्’ बनाने के बाद पूर्व ‘ढ’ का ढो ढे लोप:’ सूत्र से लोप कर दीजिये। उसके बाद इनके ‘अ’ के स्थान पर ‘सहिवहोरोदवर्णस्य’ सूत्र से ‘ओ’ आदेश कीजिये। __ वह् + ता - ह को ढ् बनाने पर - वढ् + ता - प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ‘ध्’ करके - वढ् + धा - ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ‘ध्’ को ष्टुत्व करके - वढ् + ढा - ‘ढो ढे लोप:’ से पूर्व ढकार का लोप करके - व + ढा - अब ‘सहिवहोरोदवर्णस्य’ सूत्र से लुप्त ढकार के पूर्ववर्ती ‘अ’ को ‘ओ’ बनाकर वोढा’ बनाइये। ध्यान दें कि ‘वह’ धातु अनिट् है। अतः इससे केवल वोढा ही बनेगा। ‘सह’ धातु वेट है, अतः इससे इडागम न होने पर इसी प्रकार सोढा बनेगा और इडागम होने पर - सह् + इता = सहिता भी बनेगा। ५. शेष हकारान्त धातु - इन धातुओं के अलावा जितने भी हकारान्त [[१५०]] ता HTET
धातु बचे, उनके ‘ह’ को हो ढः’ सूत्र से ‘द’ बनाइये - रुह् - रोह् + ता - रोढ् + ता / प्रत्यय के त को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ‘ध’ करके - रोल् + धा / ष्टुना ष्टुः से प्रत्यय के ध् को ष्टुत्व करके रोल् + ढा / ढो ढे लोप: से पूर्व ढकार का लोप करके रो + ढा = रोढा। रुह् + ता - रोढ् + धा - रोठ् + ढा = रोढा लिह् + ता - लेद + धा - लेढ् + ढा = लेढा मिह् + ता - मेढ् + धा - मेढ् + ढा = मेढा इसी प्रकार - तृह् + ता - तर्द्व __ + धा - स्तृह् + ता - स्तर्द्व _ + धा
- ढा = स्ती बृह् + ता - बर्द्ध _ = बर्दा तुंह् + ता - तूंढ् + धा - तूंढ् + ढा = तृण्ढा गृह + ता - गोद + धा - गोद + ढा = गोढा गृह् + ता - गर्द + धा - गई + ढा = गर्दा गाह् + ता. - गाढ् + धा - गाढ् + ढा = गाढा ये धातु वेट हैं, इनसे सेट् प्रत्यय भी लग सकते हैं। तृह् + इता - तह + इता = तर्हिता स्तुह + इता - स्तर्ह + इता = स्तर्हिता बृह् + इता - बह + इता = बर्हिता तूंह + इता - तुंह् + इता = तूंहिता गृह् + इता - गर्ह + इता = गर्हिता गाह् + इता - गाह् + इता = गाहिता गुह् धातु - अनिट् प्रत्यय परे होने पर हमने गुह् + ता = गोढा बनाया है। किन्तु सेट् प्रत्यय परे होने पर - . . ऊदुपधाया गोह: - गुह् धातु की उपधा के ‘उ’ को दीर्घ होता है, अजादि प्रत्यय परे होने पर। इस सूत्र से अजादि इता’ प्रत्यय परे होने पर गुह धातु की उपधा के उ को गुण न करके दीर्घ कीजिये - गुह् + इता - गूह + इता = गृहिता
समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि १५१ क्षोद्धा रोद्धा
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ఏ + अब उन अनिट् धातुओं के रूप दे रहे हैं, जिनके अन्त में __ वर्ग के चतुर्थ व्यञ्जन हैं - धातु के अन्त में वर्ग का चतुर्थाक्षर होने पर - १. प्रत्यय के त, थ को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ध बना दीजिये - २. और धातु के अन्त में बैठे हए वर्ग के चतर्थाक्षर को झलां जश झशि सूत्र से जश्त्व करके उसी वर्ग का तृतीयाक्षर बनाइये। जैसे - अनिट् धकारान्त धातु - - क्रुध् + ता - क्रोध् + धा - क्रोद् + धा = क्रोद्धा क्षुध् + ता - क्षोध् + धा - क्षोद् + धा = युध् + ता योध् + धा योद् + धा · = रोध् + धा रोद् + धा = राध् + ता - राध् + धा - राद् + धा = राद्धा व्यद्धा साद्धा शुध् + ता - शोध् + धा - शोद् + धा = शोद्धा सिध् + ता - सेध् + धा - सेद् + धा = सेद्धा बुध् + ता - बोध् + धा - बोद् + धा = बोद्धा बन्ध + ता __ - बन्ध् + धा - बन्द् + धा = बन्द्धा वेट धकारान्त षिध् धातु - इडागम न होकर - सेद्धा / इडागम होकर - सेधिता। अनिट् भकारान्त धातु - यभ् + ता - यभ् + धा - यब् + धा = यब्धा रभ् + ता - रभ् + धा - रब् + धा = रब्धा लभ् + ता - लभ् + धा - लब् + धा = लब्धा वेट भकारान्त लुभ धातु - इडागम न होकर - लोब्धा / इडागम होकर - लोभिता। यह भ्वाादि से ज़्यादिगण तक के सेट् धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई। अब चुरादिगण के तथा अन्य प्रत्ययान्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि बतला रहे हैं .. ఏ१५२ ᳕
५. चुरादिगण के धातु तथा णिजन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि -
चुरादिगण के प्रत्येक धातु से कोई भी प्रत्यय लगाने के पहिले स्वार्थिक णिच् प्रत्यय लगा देना चाहिये। णिच् प्रत्यय लग जाने के बाद ही चुरादिगण के धातुओं में कोई भी प्रत्यय लगाना चाहिये। जैसे - चुर् + णिच् = चोरि । इसी प्रकार जब प्रेरणा अर्थ अर्थात् प्रयोजक व्यापार वाच्य हो तब किसी भी धातु से पहिले णिच् प्रत्यय लगा देना चाहिये। जैसे - पठ् + णिच् = पाठि। यहाँ भी णिच् प्रत्यय लग जाने के बाद ही धातु से अन्य कोई प्रत्यय लगाना चाहिये। इसका अर्थ यह हुआ कि यहाँ हमें दो कार्य करना पड़ते हैं - १. धातु + णिच् को जोड़कर णिजन्त धातु बनाना। २. णिजन्त धातु में लुट् लकार के प्रत्यय लगाना। देखिये कि धातु + णिच् को जोड़ने के बाद ये जो णिजन्त धातु बनते हैं, ये सदा अनेकाच् इकारान्त धातु होते हैं। अनेकाच् होने के कारण ये सेट ही होते हैं। अतः इनके लुट् लकार के रूप उसी विधि से बनाइये, जिस विधि से सेट इकारान्त धातुओं के रूप बनाना पीछे बतलाया गया है। अर्थात् लुट् लकार के प्रत्यय लगने पर, इन धातुओं के अन्तिम इ को सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से गुण करके ए बनाइये - चोरि + इता / चोरे + इता / उसके बाद एचोऽयवायावः सूत्र से इस ए को अयादेश करके अय् बनाइये - चोरय् + इता = चोरयिता। धातु से णिच् प्रत्यय लगाने की विस्तृत विधि, हमने णिजन्त पाठ में दी है, तथा संक्षिप्त विधि लट् लकार में दी है, अतः उसे दोबारा नहीं बतलायेंगे। उसे वहीं देखिये। इसके पूरे रूप इस प्रकार बने - परस्मैपद __ आत्मनेपद एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. चोरयिता चोरयितारौ चोरयितारः चोरयिता चोरयितारौ चोरयितार: म. पु. चोरयितासि चोरयितास्थः चोरयितास्थ चोरयितासे चोरयितासाथे चोरयिताध्ये उ. प. चोरयितास्मि चोरयितास्वः चोरयितास्मः चोरयिताहे चोरयितास्वहे चोरयितास्महे __
सन्नन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
धातु से सन् प्रत्यय लगाने की विस्तृत विधि, हमने सन्नन्त पाठ में दी है, उसे वहीं देखिये। सारे सन्नन्त धातुओं के अन्त में सदा ‘अ’ ही होता है अर्थात् समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि . १५३ वे सदा अदन्त ही होते हैं। __ अतो लोप: - धातुओं के अन्त में आने वाले ‘अ’ का लोप होता है कोई भी आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। लुट् लकार के तास् प्रत्यय से बने हुए प्रत्यय परे होने पर अतो लोप: सूत्र से सन्नन्त धातुओं के ‘अ’ का लोप कीजिये। यथा __ जिगमिष + इता / ‘अ’ का लोप करके - जिगमिष् + इता = जिगमिषिता। सारे सन्नन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप इसी प्रकार बनाइये।
यङन्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि
- धातु से यङ् प्रत्यय लगाने की विस्तृत विधि, हमने यङन्त पाठ में दी है, उसे वहीं देखिये। सारे यङन्त धातुओं के अन्त में सदा ‘अ’ ही होता है अर्थात् वे सदा अदन्त ही होते हैं। यङ् के पूर्व में अच् होने पर लुट् लकार के । प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - अतो लोप: - धातुओं के अन्त में आने वाले ‘अ’ का लोप होता है कोई भी आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। अतः लुट् लकार के प्रत्यय परे होने पर ‘अतो लोप:’ सूत्र से यङन्त धातुओं के अन्तिम ‘अ’ का लोप कीजिये। यथा - नेनीय + इता / अतो लोप: से अन्तिम अ का लोप करके - नेनीय् + इता = ने नीयिता / लोलूय + इता - लोलूयिता / बोभूय + इता - बोभूयिता, आदि बनाइये। __ यङ् के पूर्व में हल होने पर लुट् लकार के प्रत्यय इस प्रकार लगाइये - यस्य हल: - हल के बाद आने वाले ‘य’ का लोप होता है, आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर। देखिये कि यङ् के पूर्व में यदि हल हो तब ‘यस्य हल:’ सूत्र से य’ का लोप करके इस प्रकार रूप बनाइये - बाभ्रश्य + इता / यस्य हल: से अन्तिम य का लोप करके - बाभ्रश् + इता = बाभ्रशिता। नेनिज्य + इता / यस्य हल: से अन्तिम य का लोप करके - नेनिज् + इता = नेनिजिता । इसी प्रकार वेविध्य = वेविधिता / मोमुद्य = मोमुदिता। . इस प्रकार समस्त धातुओं के लुट् लकार के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई।