०५ लेट्

पञ्चम पाठ समस्त धातुओं के आर्धधातुक लेट् लकार के रूप बनाने की विधि

लेट् लकार - लेट् लकार दो प्रकार का होता है। सार्वधातुक लेट तथा आर्धधातुक लेट् । दोनों लेट के अर्थ समान ही हैं। पृष्ठ ४१९ से ४२१ पर लेट के अर्थ तथा लेट् लकार के प्रत्यय बनाने की विधि दी है। उसे वहीं देखिये।

सिब्बहुलं लेटि - सार्वधातुक लेट् लकार के प्रत्ययों में ही, सिप् (स्), लगा देने से आर्धधातुक लेट् लकार के प्रत्यय बन जाते हैं। चूँकि सिप् (स्), प्रत्यय आर्धधातुक है, वही इन सबके आदि में बैठता है, अतः सिप् (स्) से बने हुए ये सारे प्रत्यय आर्धधातुक प्रत्यय कहलाते हैं। ये इस प्रकार हैं - सिप् + अट् = ‘स’ लगाकर बने हुए आर्धधातुक लेट् लकार के अनिट् प्रत्यय परस्मैपद

आत्मनेपद सति सतः सन्ति सते सैते सन्ते सत् - सन् सतै - सन्तै सद् म. पु. ससि सथः सथ ससे सैथे सध्वे स: ससै - सध्वै समि सवः समः से सवहे समहे सम् सव सम सै सवहै समहै ये प्रत्यय अनिट् धातुओं से लगाये जाते हैं। इन्हें याद कर लीजिये, इन्हीं से आगे के प्रत्यय बनते जायेंगे। जैसे - इन्हीं प्रत्ययों के ‘अट्’ को ‘आट’ बना दीजिये अर्थात् ‘स’ को ‘सा’ बना दीजिये, तो ये प्रत्यय इस प्रकार बने - b) ) ) समस्त धातुओं के आर्धधातुक लेट् लकार बनाने की विधि

सिप् + आट् = ‘सा’ लगाकर बने हुए आर्धधातुक

लेट् लकार के अनिट् प्रत्यय

  • साति सातः सान्ति
  • साते सैते सान् सातै -
  • सान्ते सान्तै सात् साद्

म. पु.

  • सासि साथः साथ
  • सासे सैथे साध्वे
  • साः सासै साध्वै

उ. पु.

  • सामि सावः सामः
  • से सावहे सामहे
  • साम् साव साम
  • य सै सावहै सामहै

ये प्रत्यय भी अनिट् धातुओं से लगाये जाते हैं।

सेट् धातुओं से लगाने के लिये अब इन्हीं प्रत्ययों में इट् (इ) जोड़ दीजिये __ तो यही प्रत्यय इस प्रकार बन जायेंगे - मा. इट् + सिप् + अट् = ‘इष’ लगाकर बने हुए आर्धधातुक लेट् लकार के सेट् प्रत्यय

परस्मैपद आत्मनेपद एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. इषति इषत: । इषन्ति इषते इषैते इषन्ते इषत् - इषन् इषत - इषन्तै इषद् म. पु. इषसि इषथः इषथ इषसे इथे इषध्वे इष: - - इषसै - इषध्वै उ. पु. इषमि इषवः इषमः इषे इषवहे इषमहे इषम् इषव इषम इषै इषवहै इषमहै इट् + सिप् + आट् = ‘इषा’ लगाकर बने हुए आर्धधातुक लेट् लकार के सेट् प्रत्यय प्र. पु. इषाति इषात: इषान्ति इषाते इषैते इषान्ते इषात्. इषान् इषातै इषान्तै इषाद् म. पु. इषासि इषाथः इषाथ इषासे इषैथे इषाध्वे

२शारा ᳕ इषाः - - इषासै - इषाध्वै उ. पु. इषामि इषावः इषामः इषे इषावहे इषामहे इषाम् इषाव इषाम इषै इषावहै इषामहै आर्धधातुक लेट् लकार के प्रत्यय तैयार हो गये हैं। अब धातु + प्रत्यय को जोड़कर आर्धधातुक लेट् लकार के रूप बनाना है। परन्तु यहाँ यह सावधानी रखना चाहिये कि जैसे हम, लोक में व्यवहार को देखकर, अनन्त शब्दराशि बनाने के लिये स्वतन्त्र हैं, वैसी स्वतन्त्रता वेद में नहीं है, क्योंकि वेद में हम एक भी शब्द घटा या बढ़ा सकने के लिये स्वतन्त्र नहीं है। वेद में हमें जितने शब्द मिलते हैं, उतने ही शब्दों के रूप व्याकरणशास्त्र से निष्पन्न करने का हमें अधिकार है। उससे अधिक वैदिक शब्द बनाने का हमें अधिकार नहीं है। तथापि हमें यहाँ लेट् लकार के रूप बनाना सीखना है, अतः हम प्रक्रिया समझने के लिये कुछ प्रयोग आपको बनाकर बतलायेंगे। उन्हें देखकर आप सभी धातुओं के लेट् लकार के रूप बनाने का अभ्यास कीजिये परन्तु इसका अर्थ यह नहीं हुआ, कि आप उन सभी के रूप बना डालें और उनका प्रयोग करने लगे। अतः लोक में हम शास्त्र को देखकर शब्द बनायें और वेद में जो शब्द जैसा दिखे, उस शब्द को देखकर ही शास्त्र का उपयोग करें। आर्धधातुक लेट् लकार के धातुरूप बनाने की दो विधियाँ हैं। उन्हें क्रमशः बतला रहे हैं। १. लृट् लकार के समान लेट् लकार के रूप बनाने की विधि __ सिप् (स्) से बने हुए, आर्धधातुक लेट् लकार के प्रत्यय बिल्कुल लुट् लकार के ‘स्य’ प्रत्यय के समान ही हैं। अतः इनके परे होने पर वही अतिदेश विधि होगी, वही धात्वादेश होंगे, वही अङ्गकार्य होंगे तथा ऋकारान्त धातु और हन् धातु को छोड़कर, वही इडागम विधि भी होगी। अतः जिस धातु का जैसा रूप लृट् लकार में बना है, उस धातु का ठीक वैसा ही रूप लेट् लकार में बनेगा, यह जानिये। अतः लट् लकार के धातुरूपों का अनुसरण करके ही, हम लेट् लकार के धातुरूप बनाना बतला रहे हैं, परन्तु ध्यान दीजिये कि जो उदाहरण हम समझाने के लिये दे रहे हैं, वे वेद में न मिलने से सर्वथा काल्पनिक हैं। समस्त धातुओं के आर्धधातुक लेट् लकार बनाने की विधि ८३ लृट् लकार के धातुरूपों का अनुसरण करके, सारे धातुओं के आर्धधातुक लेट् लकार के रूप इस प्रकार बनाइये। जैसे - लृट् लकार का रूप लीजिये, पास्यति / अब इसमें से लट् लकार का ‘स्य’ प्रत्यय हटा दीजिये और उसके स्थान पर आर्धधातुक लेट् लकार का ‘स’ प्रत्यय बैठा दीजिये। अर्थात् ‘य’ के स्थान पर ‘अ’ बैठा दीजिये, तो बनेगा - पासति। जानिये कि यही पा धातु के लेट् लकार का रूप है। लट् लकार का रूप लीजिये, पठिष्यति / अब इसमें ‘य’ के स्थान पर ‘अ’ बैठा दीजिये, तो बना पठिषति। यही लेट् लकार का रूप है। लट् लकार का रूप लीजिये, स्वक्ष्यति / अब इसमें ‘य’ के स्थान पर ‘अ’ बैठा दीजिये, तो बना स्वङ्क्षति। यही लेट् लकार का रूप है। लट् लकार का रूप लीजिये, गुष्यति / अब इसमें ‘य’ के स्थान पर ‘अ’ बैठा दीजिये, तो बना गुषति। यही लेट् लकार का रूप है। अब लृट् लकार का पाठ खोलिये। उसमें जिस जिस धातु का जो भी रूप लृट् लकार में बनाकर दिया है, उसे पढ़ते जाइये, और उसमें से ‘य’ के स्थान पर ‘अ’ को बैठाते जाइये। इसी विधि से सारे धातुओं के, आर्धधातुक लेट लकार के धातुरूप बना डालिये। स्य और सिप् की इडागम विधि में केवल एक अन्तर है __ स्य और सिप् की इडागम विधि में केवल यह अन्तर हैं, कि जहाँ स्य’ प्रत्यय परे होने पर ‘ऋद्धनोः स्ये’ सूत्र से, ह्रस्व ऋकारान्त धातु तथा हन् धातु सेट हो जाते हैं, वहाँ ‘सिप्’ प्रत्यय परे होने पर, ये ह्रस्व ऋकारान्त धातु तथा हन् धातु सेट नहीं होते, अनिट् ही रहते हैं। अतः - __ ऋकारान्त ‘कृ’ धातु से परे आने वाले ‘स्य’ प्रत्यय को लृट् लकार में इडागम होकर करिष्यति बनता है। किन्तु आर्धधातुक लेट् लकार में इडागम न होकर कक्षति ही बनेगा। हन्’ धातु से परे आने वाले ‘स्य’ प्रत्यय को लट् लकार में इडागम होकर हनिष्यति बनता है। किन्तु आर्धधातुक लेट् लकार में इडागम न होकर हंसति ही बनेगा। ऋकारान्त तथा हन् धातु को छोड़कर, शेष धातुओं के रूप बिल्कुल लृट् लकार के समान ही बनेंगे। अतः लृट् लकार की प्रक्रिया का सम्यक् अभ्यास ᳕ करके, उसी के अनुकरण से आर्धधातुक लेट् लकार के रूप बनाइये। एक परस्मैपदी तथा एक आत्मनेपदी धातु के पूरे रूप बनाकर देखिये इट् + सिप् + अट् लगाकर बने हुए लेट् लकार के सेट् प्रत्यय परस्मैपदी भू धातु आत्मनेपदी एध् धातु एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. भविषति भविषत: भविषन्ति एधिषते एधिषैते एधिषन्ते भविषत् - भविषन् एधिषतै - एधिषन्तै भविषद् - म. पु. भविषसि भविषथः भविषथ एधिषसे एधिषैथे एधिषध्वे भविषः - - एधिषसै - एधिषध्वै उ. पु. भविषमि भविषवः भविषमः एधिषे एधिषवहे एधिषमहे भविषम् भविषव भविषम एधिषै एधिषवहै एधिषमहै इट् + सिप् + आट लगाकर बने हुए लेट् लकार के सेट् प्रत्यय प्र. पु. भविषाति भविषात: भविषान्ति एधिषाते एधिषैते एधिषान्ते भविषात् - भविषान् एधिषातै - एधिषान्तै भविषाद् - पु. भविषासि भविषाथः भविषाथ एधिषासे एधिषैथे एधिषाध्वे भविषा: - - एधिषासै - एधिषाध्वै उ. पु. भविषामि भविषावः भविषामः एधिषे एधिषावहे एधिषामहे भविषाम् भविषाव भविषाम एधिषै एधिषावहै एधिषामहै यह आर्धधातुक लेट् लकार के रूप बनाने की प्रथम विधि पूर्ण हुई। अब आर्धधातुक लेट् लकार के रूप बनाने की दूसरी विधि बतलाते हैं। २. सिप् प्रत्यय को णिद्वत् मानकर लेट् लकार के रूप बनाने की विधि सिब्बहुलं णिद् वक्तव्यः (वार्तिक) - समस्त धातुओं से परे आने वाला सिप् प्रत्यय, विकल्प से णिद्वत् होता है। अर्थात् णित् न होते हुए भी, णित् जैसा मान लिया जाता है। हम जानते हैं कि अङ्गकार्य करने के लिये, प्रत्यय की सही पहिचान करना, सबसे आवश्यक है। जहाँ यह सिप् प्रत्यय णित् जैसा मान लिया जाये, समस्त धातुओं के आर्धधातुक लेट् लकार बनाने की विधि वहाँ जानिये कि यह ‘सिप् प्रत्यय’ ‘णित् आर्धधातुक प्रत्यय’ है। ‘णित् आर्धधातुक प्रत्यय’ परे होने पर सारे धातुरूप इसी प्रकार बनते हैं, जैसे कि अभी बतलाये गये। केवल दो प्रकार के धातुओं के रूपों में अन्तर पड़ेगा, जो इस प्रकार हैं । (१) अजन्त धातु + णिद्वत् सिप् प्रत्यय अचो णिति - अजन्त अङ्ग को वृद्धि होती है, जित् णित् प्रत्यय परे होने पर। यथा - भू + इषति - भौ + इषति = भाविषति भू + इषाति - भौ + इषाति = भाविषाति तृ + इषति - तार् + इषति = तारिषति तार् + इषाति - तार् + इषाति = तारिषाति, आदि। (२) अदुपध हलन्त धातु + णिद्वत् सिप् प्रत्यय अत उपधाया: - अदुपध हलन्त धातुओं की उपधा के ‘अ’ को वृद्धि होती है, जित् णित् प्रत्यय परे होने पर। जैसे - पठ् + इषति - पाठ् + इषति = पाठिषति पठ् + इषाति - पाठ् + इषाति = पाठिषाति आदि। __शेष धातुओं के रूप उसी प्रकार बनाइये, जैसे कि अभी बतलाये गये हैं। जैसे - लिख + इषति = लेखिषति / मुद् + इषति = मोदिषति / फक्क् + इषति = फक्किषति / एध् + इषाते = एधिषाते आदि। . उदाहरण के लिये एक धातु के रूप बनाकर देखें - __ इट् + सिप् + अट् लगाकर बने हुए लेट् लकार के णिद्वत् सेट् प्रत्यय परस्मैपद आत्मनेपद एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. तारिषति तारिषत: तारिषन्ति पाविषते पाविषैते पाविषन्ते तारिषत् - तारिषन् पाविषतै - पाविषन्तै तारिषद् तारिषसि तारिषथः तारिषथ पाविषसे पाविषैथे पाविषध्वे तारिषः - - पाविषसै - पाविषध्वै म. पु. ᳕ उ. पु. तारिषमि तारिषवः तारिषमः . पाविषे पाविषवहे पाविषमहे तारिषम् तारिषव तारिषम पाविषै पाविषवहै पाविषमहै इट् + सिप् + आट लगाकर बने हुए लेट लकार के सेट् प्रत्यय परस्मैपद आत्मनेपद एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. तारिषाति तारिषात: तारिषान्ति पाविषाते पाविषैते पाविषान्ते तारिषात् - तारिषान् पाविषातै - पाविषान्तै तारिषाद् - म. पु. तारिषासि तारिषाथः तारिषाथ पाविषासे पाविषैथे पाविषाध्वे तारिषा: - - पाविषासै - पाविषाध्यै उ. पु. तारिषामि तारिषावः तारिषामः पाविषे पाविषावहे पाविषामहे तारिषाम् तारिषाव तारिषाम पाविषै पाविषावहै पाविषामहै अनिट् ‘सिप्’ प्रत्यय परे होने पर भी, वे सभी अङ्गकार्य कीजिये, जो कार्य अनिट् स्य’ प्रत्यय परे होने पर, कहे गये हैं। उसके बाद सकारादि प्रत्ययों को जोड़ने की जो विधि, लृट् लकार में बतलाई गई है, उसी विधि से इन अनिट् सिप् प्रत्ययों को जोड़िये । वेद के जोषिषत्, तारिषत्, मन्दिषत्, आदि जो भी प्रयोग मिलें, उन्हें इसी प्रक्रिया से सिद्ध कीजिये। हमने लेट् लकार बनाने की पाणिनीय विधि बतलाई, परन्तु ध्यान रहे कि वेद में लेट् लकार में बने हुए जो शब्द आपको दिखें, उन्हें ही आप इस प्रक्रिया से बनायें, लोक के समान सारे रूप न बना डालें क्योंकि वेद में एक भी शब्द घटाने या बढ़ाने के लिये हम स्वतन्त्र नहीं हैं। हमने जो रूप दिये हैं, वे केवल प्रक्रिया समझाने के लिये दिये हैं। यह समस्त धातुओं के लेट् लकार के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई।