०४ लङ्

समस्त धातुओं के लङ् लकार के धातुरूप बनाने की विधि

लिङ्निमित्ते लृङ् क्रियातिपत्तौ - यदि अच्छी वर्षा होगी, तो अच्छा अन्न होगा। सुवृष्टिश्चेदभविष्यत् सुमिक्षमभविष्यत् । मेरे पास रहोगे तो घी से खाओगे । भवान् घृतेन अभोक्ष्यत् यदि मत्समीपमासिष्यत् । इस अर्थ को क्रियातिपत्ति कहते हैं। इस क्रियातिपत्ति अर्थ में धातुओं से लङ् लकार के प्रत्यय लगते हैं। हम लङ् लकार के प्रत्यय जानते ही हैं। लङ् लकार के इन प्रत्ययों के आदि में ही स्य जोड़ देने से, लङ् लकार के प्रत्यय, बन जाते हैं। लङ् लकार के प्रत्यय इस प्रकार हैं - परस्मैपदी प्रत्यय र आत्मनेपदी प्रत्यय एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. त् ताम् अन् त इताम् अन्त म. पु. स्(:) • तम् त था: इथाम् ध्वम् उ. पु. अम् व म इ वहि महि इन लङ् लकार के प्रत्ययों के आदि में स्य जोड़ दीजिये तो लङ् लकार के प्रत्यय इस प्रकार बन जायेंगे - अनिट् धातुओं से लगने वाले लङ् लकार के अनिट् प्रत्यय परस्मैपदी सेट् प्रत्यय आत्मनेपदी सेट् प्रत्यय एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. स्यत् स्यताम् स्यन् स्यत स्येताम् स्यन्त म. पु. स्यः स्यतम् स्यत स्यथा: स्येथाम् स्यध्वम् उ. प. स्यम् स्याव स्याम स्ये स्यावहि स्यामहि लङ् लकार के इन सारे प्रत्ययों के आदि में ‘इट’ नहीं बैठा है। आदि में इट् के न बैठे रहने के कारण ये प्रत्यय अनिट् प्रत्यय कहलाते हैं। जब धातु अनिट् हो, तभी उसमें ये प्रत्यय लगाइये।समस्त धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि ७७ prF अब इन्हीं अनिट् प्रत्ययों में इट् (इ) जोड़ दीजिये तो लङ् लकार के सेट् प्रत्यय इस प्रकार बन जायेंगे - सेट् धातुओं से लगने वाले लङ् लकार के सेट् प्रत्यय परस्मैपदी सेट् प्रत्यय , आत्मनेपदी सेट् प्रत्यय एकवचन द्विवचन बहुवचन एकवचन द्विवचन बहुवचन प्र. पु. इष्यत् इष्यताम् इष्यन् इष्यत इष्येताम् इष्यन्त पु. इष्यः इष्यतम् इष्यत इष्यथाः इष्येथाम् इष्यध्वम् उ. पु. इष्यम् इष्याव इष्याम इष्ये इष्यावहि इष्यामहि लङ् लकार के इन सारे प्रत्ययों के आदि में इट् बैठा है। आदि में इट के बैठे रहने के कारण ये प्रत्यय सेट् प्रत्यय कहलाते हैं। जब धातु सेट हो, तब उसमें ये सेट’ प्रत्यय लगाइये। लङ् लकार के ये सारे के सारे ३६ प्रत्यय ‘स्य’ प्रत्यय से बने हुए हैं। अतः हम इन सारे प्रत्ययों को स्य प्रत्यय ही कहेंगे। इन प्रत्ययों को धातुओं में लगाने से लङ लकार के धातरूप बन जाते हैं। धातुओं में इन सारे प्रत्ययों को लगाने की प्रक्रिया ठीक वही है जो कि हमने अभी धातुओं से लट् लकार के प्रत्ययों को लगाने में पढ़ी है। वही इडागम की व्यवस्था है, वे ही अङ्गकार्य की विधियाँ हैं। अतः इसकी प्रक्रिया हम अलग से नहीं बतलायेंगे। केवल दो अन्तर हैं, जो बतला रहे हैं - १. लट् लकार के प्रत्यय परे होने पर अङ्ग को अट, आट के आगम नहीं होते हैं किन्तु लङ् लकार के प्रत्यय परे होने पर अङ्ग को अट, आट के आगम होते हैं। - अङ्ग को अट, आट के आगम इस प्रकार होते हैं - लुङ्लङ्लुङ्वडुदात्त: - लुङ, लङ्, लुङ् लकार के प्रत्यय परे होने पर हलादि अगों को अट का आगम होता है। जैसे - पठ् + इष्यत् / अ + पठ् + इष्यत् = अपठिष्यत्। __आडजादीनाम् - लुङ्, लङ्, लुङ् लकार के प्रत्यय परे होने पर अजादि अगों को आट का आगम होता है। जैसे - ईक्ष् + इष्यत / आ + ईक्ष् + इष्यत = ऐक्षिष्यत। [[७८]] ल ल आदश्च - आट से अच् परे होने पर पूर्व पर के स्थान पर एक वृद्धि आदेश होता है। वृद्धि एकादेश इस प्रकार होता है - _ + अ, आ . = आ आ + इ, ई = ऐ आ + उ, ऊ = औ

  • ऋ, ऋ = आर् __+ ए, ऐ = ऐ २. विभाषा लुङ्लङोः - लट् लकार के प्रत्यय परे होने पर, इङ् धातु को गाङ् आदेश नहीं होता है, किन्तु लुङ, लङ् लकार के प्रत्यय परे होने पर, इङ् धातु को विकल्प से गाङ् आदेश होता है। अधि + इ + स्यत / गाइ आदेश होकर - अध्यगा + स्यत / ‘गाङ्कुटादिम्योऽञ्णिन्डित्’ सूत्र से जित् णित् से भिन्न प्रत्यय के डित्वत् होने के कारण ‘घुमास्थागापाजहातिसां हलि’ सूत्र से ‘आ’ को ‘ई’ आदेश करके - अध्यगी + स्यत / आदेशप्रत्यययोः सूत्र से प्रत्यय के ‘स्’ को ‘ष’ करके - अध्यगीष्यत। गाङ् आदेश होने पर इङ् धातु के रूप इस प्रकार बने - प्र. पु. अध्यगीष्यत अध्यगीष्येताम् अध्यगीष्यन्त अध्यगीष्यथा: अध्यगीष्येथाम् अध्यगीष्यध्वम् अध्यगीष्ये अध्यगीष्यावहि अध्यगीष्यामहि इङ् धातु को गाङ् आदेश न होने पर रूप इस प्रकार बने - अध्यैष्यत अध्यैष्येताम् अध्यैष्यन्त म. पु. अध्यैष्यथा: अध्यैष्येथाम् अध्यैष्यध्वम् अध्यैष्ये अध्यैष्यावहि अध्यैष्यामहि शेष व्यवस्था बिल्कुल लट् लकार के समान ही है। अब कुछ सेट् परस्मैपदी धातुओं के लङ् लकार के रूप बनायें - इकारादि इस्र धातु - प्र. पु. ऐङ्खिष्यत् ऐङ्खिष्यताम् ऐङ्खिष्यन् म. पु. ऐङ्खिष्य: ऐङ्खिष्यतम् ऐङ्खिष्यत. उ. पु. ऐङ्खिष्यम् ऐङ्खिष्याव ऐखिष्याम من مر مر من مر مر समस्त धातुओं के लुङ् लकार के रूप बनाने की विधि من مي مي उकारादि उज्झ् धातु - औज्झिष्यत् औज्झिष्यताम् औज्झिष्यन् औज्झिष्यः औज्झिष्यतम् औज्झिष्यत उ. पु. औज्झिष्यम् औज्झिष्याव औज्झिष्याम ऋकारादि ऋच्छ धातु - प्र. पु. आछिष्यत् आछिष्यताम् आछिष्यन् म. पु. आछिष्य: आच्छिष्यतम् आच्छिष्यत उ. पु. आच्छिष्यम् आच्छिष्याव आच्छिष्याम अब कुछ सेट् आत्मनेपदी धातुओं के लङ् लकार के रूप बनायें - ईकारादि ईक्ष् धातु - प्र. पु. ऐक्षिष्यत ऐक्षिष्येताम् ऐक्षिष्यन्त म. पु. ऐक्षिष्यथा: ऐक्षिष्येथाम् ऐक्षिष्यध्वम् उ. पु. ऐक्षिष्ये ऐक्षिष्यावहि ऐक्षिष्यामहि ऊकारादि ऊह् धातु - प्र. पु. औहिष्यत औहिष्येताम् औहिष्यन्त औहिष्यथा: औहिष्येथाम् औहिष्यध्वम् उ. पु. औहिष्ये औहिष्यावहि औहिष्यामहि एकारादि एध् धातु - प्र. पु. ऐधिष्यत ऐधिष्येताम् ऐधिष्यन्त म. पु. ऐधिष्यथाः ऐधिष्येथाम् ऐधिष्यध्वम् उ. पु. ऐधिष्ये ऐधिष्यावहि ऐधिष्यामहि इसी प्रकार लट् लकार के धातुरूपों का अनुसरण करके सारे धातुओं के लङ् लकार के धातुरूप बना डालिये। जैसे - लट् लकार का रूप लीजिये पास्यति / अब इसमें से लूट लकार का ति प्रत्यय हटा दीजिये और उसके स्थान पर लङ् लकार का त् प्रत्यय जोड़ दीजिये, तो बना पास्यत् । अब इसमें अट का आगम कीजिये तो बना - अपास्यत् । यही लङ् लकार का रूप है। इसी विधि से सारे धातुओं के लुङ् लकार के धातुरूप बना डालिये। यह सारे धातुओं के लङ् लकार के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई।