आर्धधातुक प्रत्यय तथा उनकी इडागम व्यवस्था
सार्वधातुक तथा आर्धधातुक प्रत्यय, इस ग्रन्थ के प्रथम पाठ में पृष्ठ १७ से २४ में, विस्तार से बतलाये जा चुके हैं। इनका विस्तृत लक्षण वहीं देखें। यहाँ हम संक्षेप में पुनः इनका भेद स्पष्ट कर रहे हैं। तिङ् शित् सार्वधातुकम् - सार्वधातुक प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं तिङ् सार्वधातुक प्रत्यय - लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ् तथा सार्वधातुक लेट, इन पाँच लकारों के प्रत्ययों का नाम, ‘तिङ् सार्वधातुक प्रत्यय’ है। __ कृत् सार्वधातुक प्रत्यय - शतृ, शानच्, शानन्, चानश्, खश्, श, एश्, शध्यै, शध्यैन्, इन ९ शित् प्रत्ययों का नाम ‘कृत् सार्वधातुक प्रत्यय’ है। __विकरण सार्वधातुक प्रत्यय - शप्, श्यन्, श्नु, श, श्नम्, श्ना, शायच्, शानच्, इन ८ शित् प्रत्ययों का नाम ‘विकरण सार्वधातुक प्रत्यय’ है। सार्वधातुक प्रत्यय कुल इतने ही हैं। आर्धधातुकं शेष: - इनके अलावा धातु से लगने वाले जो भी प्रत्यय बचे, उन सभी प्र.ययों का नाम आर्धधातुक प्रत्यय होता है। __ अत्यावश्यक - अभी तक हमने दसों गणों के धातुओं के लट, लोट, लङ्, विधिलिङ् तथा सार्वधातुक लेट, इन पाँच सार्वधातुक लकारों के धातुरूप बनाना सीखा है। इनके रूप बनाते समय हमने क्या किया है ? इन धातुओं के रूप बनाते समय हमने, इन धातुओं के सामने इन तिङ् सार्वधातुक प्रत्ययों को बैठाकर विचार किया है, कि ये धातु किस गण के हैं तथा उस गण का विकरण क्या है ? जिस भी गण का वह धातु है, उसी गण का विकरण, धातु + प्रत्यय के बीच में अवश्य बैठाया है। परन्तु धातुओं से आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ऐसा नहीं होता। धातुओं से आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर, न तो धातुओं के गण का विचार किया जाता [[२२]] है, न ही धातु + आर्धधातुक प्रत्यय के बीच में विकरण बैठाया जाता है। यह सिद्धान्त बहुत अच्छी तरह जानकर ही हमें आगे आर्धधातुक खण्ड में प्रवेश करना चाहिये। अतः यह जानिये कि धातुपाठ में जो दस गण बने हैं, वे सार्वधातुक प्रत्ययों के लिये हैं, आर्धधातुक प्रत्ययों के लिये कोई गण नहीं है। आर्धधातुक प्रत्ययों के लिये तो सभी गण एक समान ही होते हैं। ये आर्धधातुक प्रत्यय चार प्रकार के होते हैं - तिङ् आर्धधातुक प्रत्यय लिट्, लुट, लुट, आर्धधातुक लेट, लुङ्, आशीर्लिङ्, तथा लुङ्, इन सात लकारों के प्रत्ययों का नाम ‘तिङ् आर्धधातुक प्रत्यय’ है। तिङ् आर्धधातुक प्रत्यय इस ग्रन्थ के प्रथम पाठ में पृष्ठ २० से २३ में, विस्तार से बतलाये जा चुके हैं। आगे भी प्रत्येक लकार के ‘तिङ् आर्धधातुक प्रत्यय’ हम वहीं बतलाते चलेंगे। ’ कृत् आर्धधातुक प्रत्यय । इन्हें केवल देखिये, समझिये और पहिचानिये। याद मत कीजिये। ण्वुल वुञ् ण्यत् घञ् णिनि ण ण्युट अण् खुकञ् ण्वि ज्युट ण्विन् घिनुण उकञ् उण् णच् इनुण इञ् ण्वुच् णमुल् खमुञ् / तव्य तव्यत् अनीयर् यत् तृच ल्यु अच् वुन् थकन् वुन् ट इन् खच् ड खिष्णुच् विट विच् मनिन् वनिप् इनि ख्युन् तृन् इष्णुच् युच् षाकन् आलुच् रु । घुरच् उ ऊक् र आरु लुकन् वरच् डु ष्ट्रन् इत्र तुमुन् अप् अथुच् नन् अ अनि ल्युट घ खल् से सेन् असे असेन् अध्यै अध्यैन् तवै तवेन् तोसुन् त्वन् अतृन् / क्यप् क टक् क्विन् कञ् क्विप् कप क्वनिप् क्त क्तवतु ङ्वनिप् कानच् क्वसु पस्नु क्नु क्मरच् कुरच् क्वरप् किन् कि नजिङ् कुक् वित्र नङ् क्तिन् अङ् क्तिच् क्से कसेन् कध्यै कध्यैन् तवेङ् कमुल् कसुन् केन् केन्य क्त्वा। धातुओं से लगने वाले ये ११५ प्रत्यय कृत् आर्धधातुक प्रत्यय’ हैं। विकरण आर्धधातुक प्रत्यय क्स चङ् अङ् सिप् स्य तास् चिल सिंच चिण् उ यक् = ११ । इन ११ प्रत्ययों का नाम ‘विकरण आर्धधातुक प्रत्यय’ है, किन्तु इनमें क्स से लेकर चिण तक जो विकरण हैं, उन्हें मिला मिलाकर हमने तिङ् आर्धधातुक प्रत्यय बना लिये हैं। अतः यहाँ हम यही मानेंगे कि विकरण आर्धधातुक प्रत्यय केवल दो हैं, ‘उ’ तथा ‘यक्’। तिङ्, कृत्, विकरण से भिन्न, शेष आर्धधातुक प्रत्यय आम् णिच् ईयङ् यङ् सन् = ५ आर्धधातुक प्रत्यय इतने ही हैं। इन्हें विस्तार से प्रथम खण्ड में पढ़ें। __इन आर्धधातुक प्रत्ययों को होने वाला इडागम हमने जानते हैं कि - धातु से ‘तिङ्’ या कृत्’ सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर, धातु के गण का विचार अवश्य किया जाता है, तथा धातु + प्रत्यय के बीच में उस गण का विकरण भी अवश्य बैठाया जाता है, जिस गण का वह धातु होता है। जैसे - भू + ति = भू + शप् + ति / दिव् + ति = दिव् + श्यन् + ति / क्री + ति = क्री + श्ना + ति। किन्तु धातु से आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर, धातुओं के गण का विचार नहीं किया जाता और धातु + प्रत्यय के बीच में तत् तत् गणों का विकरण भी कभी नहीं बैठाया जाता। ध्यान दें कि जब धातु से कोई भी आर्धधातुक प्रत्यय लगता है, तब उस आर्धधातुक प्रत्यय के पूर्व में आकर, कभी कभी एक ‘इ’ बैठ जाता है। इस ‘इ’ को ही ‘इट’ कहते हैं। जैसे - भू + स्यति / इडागम होकर - भू + इट् + स्यति - भू + इष्यति = भविष्यति / पठ् + क्त - इडागम होकर - पठ् + इट् + त = पठित / इसी प्रकार - पठ् + क्त्वा - इडागम होकर - पठ् + इट। + त्वा = पठित्वा आदि में, आर्धधातुक प्रत्यय को इडागम होता है। जिन प्रत्ययों को यह इडागम होता है, वे प्रत्यय इट् के सहित होने के कारण सेट् प्रत्यय कहलाते हैं। अतः ये स्यति, तुमुन्, क्त्वा, क्त आदि सेट अष्टाध्यायी सहजबोध । प्रत्यय हैं। अब ‘पठनीय’ को देखिये । पठ् + अनीय के बीच में इट नहीं बैठा है। पाठ्य को देखिये। पठ् + य के बीच में भी इट नहीं बैठा है। जिन प्रत्ययों को यह इडागम नहीं होता है, वे प्रत्यय इट् से रहित होने के कारण अनिट् प्रत्यय कहलाते हैं। अतः ये य, अनीय, आदि अनिट् प्रत्यय हैं। आर्धधातुक प्रत्ययों के पूर्व में इट को बैठाने को ही ‘इडागम करना’ कहते हैं। अतः धातुओं से कोई भी आर्धधातुक प्रत्यय लगते ही, हमें यह स्पष्ट जानकारी होना चाहिये कि किस आर्धधातुक प्रत्यय को हम ‘इडागम’ करें और किस आर्धधातुक प्रत्यय को हम ‘इडागम’ न करें। अब धातु की दृष्टि से इडागम का विचार कीजिये - ‘कृत’ को देखिये। यहाँ शङ्का होती है कि - कृ + क्त = कृत में, क्त प्रत्यय तो वही सेट् प्रत्यय है, जो पठित में लगा है, तो भी उसे इट् का आगम क्यों नहीं हुआ है ? इसलिये नहीं हुआ, कि ‘कृ’ धातु अनिट् है। _ ‘दास्यति’ को देखिये। यहाँ भी शङ्का होती है कि - दा + स्यति = दास्यति में, स्यति प्रत्यय तो वही सेट् प्रत्यय है, जो ‘पठिष्यति’ में लगा है, तो भी उसे इट् का आगम क्यों नहीं हुआ है ? इसलिये कि ‘दा’ धातु अनिट् है। जिन धातुओं से लगने वाले सेट् प्रत्ययों को भी, यह इडागम नहीं होता है, वे धातु अनिट् धातु कहलाते हैं। जिन धातुओं से लगने वाले सेट् प्रत्ययों को इडागम होता है, वे धातु सेट् धातु कहलाते हैं। इस प्रकार हमने जाना कि - १. पठ् + क्त = पठित में, इडागम इसलिये होता है कि पठ् धातु भी सेट है, क्त प्रत्यय भी सेट है। २. कृ + क्त = कृत में, इडागम इसलिये नहीं होता है कि क्त प्रत्यय तो सेट है, किन्तु कृ धातु अनिट् है।। ३. पठ् + अनीय = पठनीय में, इडागम इसलिये नहीं होता है कि पठ् धातु तो सेट है, किन्तु अनीय प्रत्यय अनिट् है। ४. गम् + अनीय = गमनीय में, इडागम इसलिये नहीं होता है कि आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था गम् धातु भी अनिट् है, अनीय प्रत्यय भी अनिट् है। __ अतः हमने अब जाना, कि कुछ धातु सेट होते हैं, कुछ प्रत्यय सेट होते हैं। जब सेट् धातु से सेट् आर्धधातुक प्रत्यय लगता है, तभी उस आर्धधातुक प्रत्यय को इडागम होता है। जो कि ‘आर्धधातुकस्येड् वलादे:’ सूत्र से होता है। अतः आर्धधातुक प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं - सेट तथा अनिट् । धातु भी दो प्रकार के होते हैं - सेट तथा अनिट् । दोनों को अलग अलग पहिचान लेना चाहिये। सेट् अनिट् प्रत्यय __ आर्धधातुकस्येड् वलादे: - आर्धधातुक प्रत्यय बतलाये गये हैं। इन्हें देखिये। इनमें से जो वलादि आर्धधातुक प्रत्यय हैं, उन्हें ही इडागम होता है। नेड् वशि कृति - इन वलादि आर्धधातुक प्रत्ययों में से भी, जो वशादि कृत् आर्धधातुक प्रत्यय हैं, उन्हें इडागम नहीं होता है। तितुत्रतथसिसुसरकसेषु च - वलादि होने के बाद भी ति, तु, त्र, त, थ, सि, सु, सर, क, स, इन दस आर्धधातुक प्रत्ययों को इडागम नहीं होता है। ये तीन सूत्र ही वस्तुत: प्रत्ययों को इडागम होने या न होने का विधान करते हैं। वस्तुत: लाघव (संक्षेप) अष्टाध्यायी का प्राण है। अतः भगवान् पाणिनि ने, अष्टाध्यायी में, लाघव के लिये, सारे प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था, ‘नेड्वशि कृति’ सूत्र ७.२.८ से लेकर ‘ईडजनोर्चे च’ ७.२.७८ तक के सूत्रों में, इडागम प्रकरण बनाकर, एक साथ बतला दी है। इनके एक साथ होने से सामान्य जन को इडागम के विषय में उलझन हो जाती है। अतः हमने इस अध्याय में उन्हें पृथक् पृथक् कर दिया है, ताकि आप सेट, अनिट् धातुओं तथा सेट, अनिट् प्रत्ययों को अलग अलग पहिचान सकें। इन सारे सूत्रों के तात्पर्य को एक साथ मिलाने से सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों की स्थिति इस प्रकार बनती है - १. लिट् लकार के प्रत्यय प्र. पु. णल् (अ) अतुः उ: ए आते हरे म. पु. थल् (थ) अथुः अ से आथे ध्वे उ. प्र. णल् (अ) व म A8 वहे [[२६]] ये लिट् लकार के प्रत्यय हैं। इन प्रत्ययों को देखिये। लिट् लकार के ये सारे १८ प्रत्यय, तिङ् आर्धधातुक प्रत्यय हैं, किन्तु लिट् लकार के इन प्रत्ययों में से केवल थल (थ) व, म, से, ध्वे, वहे, महे ये ७ प्रत्यय ही वलादित्वात सेट् प्रत्यय हैं। शेष ११ प्रत्यय अनिट् हैं। किन्तु इन ७ सेट् प्रत्ययों को भी, तभी इडागम होता है, जब ये प्रत्यय सेट् धातुओं से लगे हों। लिट् लकार के इन सेट् प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था हम लिट् लकार में ही बतलायेंगे। २. क्वसु प्रत्यय यह सेट् प्रत्यय है। इसकी इडागम व्यवस्था हम कृदन्त में बतलायेंगे। ३. शेष प्रत्यय अब ऊपर कहे हुए लिट् लकार के सात प्रत्यय तथा क्वसु प्रत्यय, इन आठ प्रत्ययों के अलावा जो भी आर्धधातुक प्रत्यय बचे, उनकी इडागम व्यवस्था इस प्रकार समझें - सेट तकारादि आर्धधातुक प्रत्यय - ति, तु, त्र, त, इन चार तकारादि प्रत्ययों को छोड़कर, ‘त’ से प्रारम्भ होने वाले सारे आर्धधातुक प्रत्यय सेट होते हैं, जो इस प्रकार हैं - क्त, क्तवतु, क्त्वा, तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, तास्, तवै, तवेन्, तोसुन्, त्वन्, तवेङ् = १४ __सेट् सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय - सि, सु, सर, स इन चार सकारादि प्रत्ययों को छोड़कर, ‘स’ से प्रारम्भ होने वाले सारे आर्धधातुक प्रत्यय सेट होते हैं, जो इस प्रकार हैं - सिच्, सीयुट्, सन्, स्य, क्से, से, सेन्, सिप् = ८ ये १४ + ८ सेट प्रत्यय, यदि सेट धातुओं से लगेंगे, तो ही इन्हें इडागम होगा। जैसे - पठ् + क्त - पठ् + इट् + त = पठितः। पठ् + तुमुन् - पठ् + इट् + तुम् = पठितुम् । पठ् + स्यति - पठ् + इट् + स्यति = पठिष्यति। ये १४ + ८ सेट् प्रत्यय, यदि अनिट् धातुओं से लगेंगे, तो इन्हें कभी भी इडागम नहीं होगा। जैसे - कृ + क्त = कृत / कृ + तुमुन् = कर्तुम् आदि ।
- इसका अर्थ यह हुआ कि ऊपर कहे गये थल् (थ) व, म, से, ध्वे, वहे, महे तथा क्वसु ये आठ प्रत्यय, १४ तकारादि आर्धधातुक प्रत्यय और ८ सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय, ये ३० आर्धधातुक प्रत्यय ही ‘सेट’ होते हैं। इन ३० आर्धधातुक प्रत्ययों के अलावा, सारे आर्धधातुक प्रत्यय अनिटआर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था २७ होते हैं। चाहे वे वलादि हों, चाहे वलादि न हों। ये अनिट् प्रत्यय चाहे सेट् धातुओं से लगे, चाहे अनिट् धातुओं से लगें, इन्हें इडागम नहीं होता। जैसे - भस् + म भस्म ईश् + वर
- ईश्वरः दीप् + दीप्र: ना याच्या क्तिन् (ति) दीप्ति: क्तिन् (ति) तन्ति : सच् + तु सक्तु: ष्ट्रन् तन्त्र: कुक्षि:
FFEEERE + + + इक्षुः + क्सरन् (सर्) = अक्षरम् वस् + स वत्स: (उणादि प्रत्ययों के बारे में यह जानना चाहिये कि वहाँ यदि प्रत्यय सेट हैं, तो धातु अनिट् हैं, जैसे - एतश:, भित्तिका आदि में। यदि दोनों सेट हैं तो बाहुलक से इडागम का निषेध है, जैसे - वर्तिका, कृत्तिका, पत्तनम् आदि में। अतः यह इडागम व्यवस्था, उणादि प्रत्ययों के लिये भी बिल्कुल ठीक है, यह जानना चाहिये।) सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को भी तभी इडागम होता है, जब वह धातु भी सेट हो, जिससे कि ये लगे हैं। अतः आवश्यक है कि अब हम यह भी जानें कि कौन से धातु सेट हैं तथा कौन से अनिट् हैं ? इस उद्देश्य से अब हम सेट् अनिट् धातु अलग अलग बतला रहे हैं। सेट् अनिट् धातु एकाच उपदेशेऽनुदात्तात् - उपदेशावस्था में जो धातु एकाच भी हों तथा अनुदात्त भी हों, वे अनिट् होते हैं। ऐसे अनुदात्त धातुओं से परे आने वाले सेट् प्रत्यय को भी इडागम नहीं होता है। __ इसका अर्थ यह हुआ कि अनेकाच् धातु सेट होते हैं और इन अनेकाच् धातुओं से परे आने वाले सेट् प्रत्यय को इडागम अवश्य होता है। [[२८]] JoindTHEIRIRATISEMORRIORimachar biurVImdelp एकाच अनेकाच् पहिचानने की विधि - ध्यान रखिये कि धातुओं के अनुबन्धों की इत् संज्ञा करने के बाद जो धातु बचता है, उसमें यदि एक अच् हो, तो ही उसे एकाच् धातु समझना चाहिये। जैसे - डुपचष् पाके यह धातु है। देखने में तो इसमें तीन अच् हैं किन्तु इसमें डु,चकारोत्तर ‘अ’ तथा ‘ए’ की इत् संज्ञा होकर ‘पच्’ ही शेष बचता है। अब यह ‘पच्’ एकाच् धातु है। इस प्रकार धातुपाठ को देखने पर हम पाते हैं कि जाग, ऊर्ण, दरिद्रा, चकासृ, दीधी तथा वेवी इन ६ धातुओं को छोड़कर भ्वादिगण से क्रयादिगण के मध्य आने वाले सारे धातु एकाच् ही हैं, जैसे पठ्, लिख्, बुध आदि। पर ये सब के सब अनुदात्त नहीं हैं। इसलिये सारे एकाच धातु अनिट भी नहीं हैं। __अब चुरादिगण के बारे में विचार करें। चुरादिगण के प्रत्येक धातु में किसी भी प्रत्यय के लगने के पूर्व, स्वार्थिक णिच् प्रत्यय लगता ही है। इस णिच प्रत्यय के लगने के कारण, चुरादिगण के सारे धातु अनेकाच् हो जाते हैं। जैसे - चुर् + णिच् = चोरि, गण् + णिच् = गणि आदि। अनेकाच् हो जाने से ये धातु सेट हो जाते हैं, यह जानना चाहिये। _ इसी प्रकार भ्वादिगण से क्र्यादिगण के मध्य आने वाले जो धातु अनुदात्त तथा एकाच होने से अनिट् हैं, उनमें भी यदि सन्, यङ् आदि कोई भी प्रत्यय लग जाता है, तो ये धातु भी प्रत्यय के लग जाने से अनेकाच् हो जाते हैं। जैसे - गम् + सन् = जिगमिष । देखिये, कि यह गम् धातु तो अनुदात्त तथा एकाच् होने के कारण अनिट् है, परन्तु सन् प्रत्यय लग जाने पर, अब यह अनेकाच् हो गया है तथा अनेकाच् होने के कारण अब यह सेट हो गया है। हमने जाना कि सारे अनेकाच् धातु तो सेट ही होते हैं और एकाच अनिट धात भी सन, यङ आदि प्रत्ययों के लग जाने पर, अनेकाच हो जाने से, सेट हो जाते हैं। इस प्रकार के सेट् धातुओं को छोड़कर, जो एकाच् धातु बचते हैं, उन्हीं में हमें सेट् अनिट् का विचार करना चाहिये क्योंकि एकाच् धातु, केवल एकाच होने से अनिट नहीं हो जाते हैं अपितु एकाच होने के साथ साथ जब वे अनुदात्त भी होते हैं तभी वे अनिट् कहलाते हैं। जैसे - ‘पच्’ यह एकाच् अनुदात्त धातु है, अतः अनिट् है। किन्तु पठ् धातु एकाच तो है, पर अनुदात्त न होकर उदात्त है, इसलिये यह सेट है। आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था एकाच तो हम देखकर पहिचान लेंगे, किन्तु अनुदात्त धातुओं को हम कैसे पहिचानें ? इन अनुदात्त धातुओं को रटने के सिवा और कोई विधि नहीं है। अतः हम एकाच् धातुओं के अन्तिम वर्ण को वर्णमाला के क्रम से रखकर, धातुओं का सेट, अनिट् विभाजन दे रहे हैं। इन्हें याद करके ही आप जान सकेंगे कि एकाच धातुओं में से कौन से धातु सेट हैं और कौन से अनिट् ।. की अब हम ‘ता’ इस लुट् लकार के एक प्रत्यय को लगाकर, उदाहरण देते हुए धातुओं का सेट् अनिट् विभाग बतलायेंगे। १. एकाच आकारान्त धातु - सारे एकाच आकारान्त धातु अनिट ही होते हैं। जैसे - पा + ता = पाता। दा + ता = दाता। घ्रा + ता = घ्राता। अनेकाच् होने से दरिद्रा धातु सेट है। २. एकाच ह्रस्व इकारान्त धातु - शिव, श्रि को छोड़कर, शेष सारे एकाच् हस्व इकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। जैसे - जि + ता = जेता। चि + ता = चेता। परन्तु श्रि तथा शिव धातु सेट होते हैं, तो इडागम होकर इनके रूप बनेंगे - श्रि + इ + ता = श्रयिता / शिव + इ + ता = श्वयिता। ३. एकाच दीर्घ ईकारान्त धातु - शीङ्, डीङ् को छोड़कर, शेष सारे एकाच दीर्घ ईकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। जैसे - नी + ता = नेता। क्री + ता = क्रेता। परन्तु शीङ्, तथा डीङ् धातु सेट होते हैं, तो इनके रूप बनेंगे - शी + इ + ता = शयिता / डी + इ + ता = डयिता। ४. एकाच ह्रस्व उकारान्त धातु - स्नु, नु, क्षु, यु, रु, क्ष्णु इन ६ धातुओं को छोड़कर, शेष सारे एकाच हस्व उकारान्त धातु अनिट् ही होते हैं। जैसे - हु + ता = होता। द्रु + ता = द्रोता। परन्तु ये ६ धातु सेट होते हैं। इन्हें इडागम होकर रूप बनेंगे - स्नु + इ + ता - स्नविता / नु + इ + ता - नविता / क्षु + इ + ता - क्षविता / यु + इ + ता - यविता / रु + इ + ता - रविता / क्ष्ण + इ + ता - क्षणविता। ५. एकाच् दीर्घ ऊकारान्त धातु - इनमें सू, धू, वेट होते हैं, शेष सारे एकाच ऊकारान्त धातु सेट् ही होते हैं। जैसे - भू + इ + ता = भविता। ६. एकाच ह्रस्व ऋकारान्त धातु - इनमें वृङ्, वृञ् धातु सेट होते हैं - वृ + इ + ता - वरिता आदि। अनेकाच् होने से ‘जागृ’ धातु सेट है। स्वृ धातु वेट होता है - स्व + इ + ता - स्वरिता / स्व + ता - स्वर्ता आदि। इ ३० अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - २ __शेष सारे एकाच् ह्रस्व ऋकारान्त धातु अनिट् होते हैं। जैसे - कृ + ता = कर्ता। हृ + ता = हर्ता। ७. एकाच् दीर्घ ऋकारान्त धातु - ये सभी सेट होते हैं। जैसे - ४ + इ + ता = तरिता। ८. एजन्त धातु - जिनके अन्त में ए, ओ, ऐ, औ, हों, उन्हें एजन्त धातु कहते हैं। ये धातु आदेच उपदेशेऽशिति सूत्र से आकारान्त बन जाते हैं। आकारान्त धातुओं के समान ये सब भी अनिट् ही होते हैं। जैसे - गै + ता = गाता / धे + ता = धाता = शाता आदि। __ यह एकाच अजन्त धातुओं में से सेट तथा अनिट् धातुओं को अलग अलग पहिचानने की विधि पूर्ण हुई। अब एकाच् हलन्त धातुओं में से सेट तथा अनिट् धातुओं को कैसे अलग - अलग पहिचाना जाये, यह विधि बतला रहे हैं। एकाच् हलन्त धातुओं में से, सेट तथा अनिट् धातुओं . को पहिचानने की विधि अनिट् हलन्त धातु अब नीचे अन्तिम वर्ण के वर्णमालाक्रम से १०२ हलन्त एकाच धातु दिये जा रहे हैं। ये सब एकाच् तथा अनुदात्त होने के कारण अनिट् हैं। इनके बाद वेट धातु दिये जा रहे हैं। इनके अलावा जो भी एकाच् हलन्त धातु आप पाएँगे, वे सब सेट ही होंगे, यह जानना चाहिए। __१. एकाच् ककारान्त धातुओं में - स्वादिगण का शक्ल शक्तौ, यह १ धातु ही अनिट् होता है। शक् + ता = शक्ता। शेष सारे ककारान्त धातु सेट होते हैं। अतः दिवादिगण का शक् धातु सेट है। __२. एकाच् चकारान्त धातुओं में - पच्, मुच्, रिच्, वच्, विच्, सिच्, ये ६ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - पच् + ता = पक्ता / मुच् + ता = मोक्ता / रिच् + ता = रेक्ता / वच् + ता = वक्ता / विच् + ता = वेक्ता / सिच् + ता = सेक्ता। शेष सारे चकारान्त धातु सेट होते हैं। ३. एकाच् छकारान्त धातुओं में - प्रच्छ्, यह १ धातु अनिट् होता है। जैसे - प्रच्छ् + ता = प्रष्टा / शेष सारे छकारान्त धातु सेट होते हैं। __४. एकाच जकारान्त धातुओं में - त्यज्, निजिर्, भज्, भञ्ज्, भुज्, भ्रस्ज्, मस्ज्, यज्, युज्, रुज्, रज्, विजिर् (रुधादि), स्वज्, सफे, सृज् - ये आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था १५ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - त्यज् + ता = त्यक्ता / निज् + ता = नेक्ता / भज् + ता = भक्ता / भज् + ता = भङ्क्ता / भुज् + ता = भोक्ता / भ्रस्ज् + ता = भ्रष्टा / मस्ज् + ता = मङ्क्ता / यज् + ता = यष्टा / युज् + ता = योक्ता / रुज् + ता = रोक्ता / रञ्ज् + ता = रङ्क्ता / विज् + ता = वेक्ता / स्व + ता = स्वङ्क्ता / सङ्ग् + ता = सङ्क्ता / सृज् + ता = स्रष्टा। शेष सभी जकारान्त धातु सेट होते हैं। ५. एकाच दकारान्त धातुओं में - अद्, क्षुद्, खिद्, छिद्, तुद्, नुद्, पद् (दिवादिगण), भिद्, विद् (दिवादिगण), विद् (रुधादिगण), शद्, सद्, स्विद् स्कन्द, और हद् ये १५ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - अद् + ता = अत्ता / क्षुद् + ता = क्षोत्ता / खिद् + ता = खेत्ता / छिद् + ता = छेत्ता / तुद् + ता = तोत्ता / नुद् + ता = नोत्ता / पद् + ता = पत्ता / भिद् + ता = भेत्ता / विद् + ता = वेत्ता / विद् + ता = वेत्ता / शद् + ता = शत्ता / सद् + ता = सत्ता / स्विद् + ता = स्वेत्ता / स्कन्द् + ता = स्कन्त्ता / हद् + ता = हत्ता। शेष सभी दकारान्त धातु सेट होते हैं। __विशेष - विद् धातु चार हैं। इनमें से दिवादि तथा रुधादिगण के विद् धातु अनिट् होते हैं और अदादिगण तथा तुदादिगण के विद् धातु सेट होते हैं। ६. एकाच धकारान्त धातुओं में - क्रुध्, क्षुध्, बुध् (दिवादिगण), बन्ध्, युध्, रुध्, राध्, व्यध्, साध्, शुध्, सिध् ( दिवादिगण) ये ११ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - क्रुध् + ता = क्रोद्धा / क्षुध् + ता = क्षोद्धा / बुघ् + ता = बोद्धा / बन्ध् + ता = बन्द्धा / युध् + ता = योद्धा / रुध् + ता = रोद्धा / राध् + ता = राद्धा / व्यध् + ता = व्यद्धा / साध् + ता = साद्धा / शुध् + ता = शोद्धा / सिध् + ता = सेद्धा। शेष सभी धकारान्त धातु सेट होते हैं। विशेष विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि बुध धात दो हैं। इनमें से भ्वादिगण का बुध् धातु सेट है। इससे इडागम होकर बोधिता बनता है। दिवादिगण का बुध् धातु अनिट् है। इससे इडागम न होकर बोद्धा बनता है। ७. एकाच् नकारान्त धातुओं में - मन् ( दिवादिगण) तथा हन्, ये २ धातु अनिट् होते हैं। मन् + ता = मन्ता / हन् + ता = हन्ता। शेष सारे नकारान्त धातु सेट होते हैं। ८. एकाच् पकारान्त धातुओं में - आप्. छुम्. क्षिप्, तप तिम्, तृप् [[३२]] (दिवादिगण), दृप् (दिवादिगण), लिप्, लुप्, वप्, शप्, स्वप्, सृप, ये १३ धातु अनिट् होते हैं, जैसे - आप + ता = आप्ता / छप + ता = छोप्ता / क्षिप + ता = क्षेप्ता / तप् + ता = तप्ता / तिप् + ता = तेप्ता / तृप् + ता = तप्त / दृप् + ता = दर्ता / लिप् + ता = लेप्ता / लुप् + ता = लोप्ता / वप् + ता = वप्ता / शप् + ता = शप्ता / स्वप् + ता = स्वप्ता / सृप् + ता = सर्ता। शेष सारे पंकारान्त धातु सेट होते हैं। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि तृप् धातु तीन हैं। इनमें से स्वादिगण तथा तुदादिगण के तृप् धातु सेट होते हैं। इनसे इडागम होकर तर्पिता बनता है। दिवादिगण का तृप् धातु वेट होता है। इससे इडागम होने पर तर्पिता बनता है तथा इडागम न होने पर होकर त्रप्ता / तर्ता रूप बनते हैं। ९. एकाच् भकारान्त धातुओं में - यम्, रम्, लभ्, ये ३ धातु अनिट् होते हैं। यभ् + ता = यब्धा / रभ + ता = रब्धा / लभ + ता = लब्धा। शेष सारे भकारान्त धातु सेट होते हैं। १०. एकाच मकारान्त धातुओं में - गम्, नम्, यम्, रम्, ये ४ धातु अनिट् होते हैं। गम् + ता = गन्ता / नम् + ता = नन्ता / यम् + ता = यन्ता / रम् + ता = रन्ता। शेष सारे मकारान्त धातु सेट होते हैं। ११. एकाच् शकारान्त धातुओं में - क्रुश्, दंश्, दिश्, दृश्, मृश्, रिश्, रुश्, लिश्, विश्, स्पृश्, ये १० धातु अनिट् होते हैं। जैसे - क्रुश् + ता = क्रोष्टा / दंश् + ता = दंष्टा / दिश् + ता = देष्टा / दृश् + ता = द्रष्टा / मृश् + ता = म्रष्टा / रिश् + ता = रेष्टा / रुश् + ता = रोष्टा / लिश् + ता = लेष्टा / विश् + ता = वेष्टा / स्पृश् + ता = स्प्रष्टा। शेष सारे शकारान्त धातु सेट होते हैं। १२. एकाच षकारान्त धातुओं में - कृष्, त्विष्, तुष्, द्विष्, दुष्, पुष् (दिवादि गण), पिष्, विष्, शिष्, शुष्, श्लिष् (दिवादिगण), ये ११ धातु अनिट् होते हैं। जैसे - कृष् + ता = कर्टा / त्विष् + ता = त्वेष्टा / तुष् + ता = तोष्टा / द्विष् + ता = द्वेष्टा / दुष् + ता = दोष्टा / पुष् + ता = पोष्टा / पिष् + ता = पेष्टा / विष् + ता = वेष्टा / शिष् + ता = शेष्टा / शुष् + ता = शोष्टा / श्लिष् + ता = श्लेष्टा। शेष सभी षकारान्त धातु सेट होते आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था म १३. एकाच सकारान्त धातुओं में - वस्, घस्, ये २ धातु अनिट होते हैं। जैसे - वस् + ता = वन्ता / घस् + ता = घस्ता। शेष सारे सकारान्त धातु सेट होते हैं। १४. एकाच् हकारान्त धातुओं में - दह्, दिह, दुह्, नह्, मिह्, रुह्, लिह, वह, ये ८ धातु अनिट् होते हैं। दह् + ता = दग्धा / दिह् + ता = देग्धा / दुह् + ता = दोग्धा / नह् + ता = नद्धा / मिह् + ता = मेढा / रुह् + ता = रोढा / लिह् + ता = लेढा / वह् + ता = वोढा। शेष सारे हकारान्त धातु सेट होते हैं। सेट, अनिट् के अलावा कुछ धातु वेट भी होते हैं, जिनसे परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों को भी विकल्प से इट का आगम होता है। ये इस प्रकार हैं - वेट हलन्त धातु __स्वरतिसूतिसूयतिधूनूदितो वा - स्वृ धातु, अदादिगण का सू धातु, दिवादिगण का सू धातु, स्वादि तथा क्र्यादिगण का धूञ् धातु तथा सारे ऊदित् धातुओं से परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। ऊदित् धातु - ‘ऊदित्’ का अर्थ होता है, ऐसे धातु जिनमें ‘ऊ’ की इत् संज्ञा हुई हो। धातुपाठ में पढ़े गये सारे ‘ऊदित् धातु’ इस प्रकार हैं - अभू तल त्वक् गृहू मृजू अशू वृहू तृन्हू क्षमू क्लिदू अजूं क्लिशू बिधूत्रपूष् क्षमूष् गाहू गुहू स्यन्दू कृपू गुपू ओव्रश्चू तृहू स्तृहू तञ्चू । विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि स्वादि, क्र्यादि तथा चुरादिगण में धूञ् कम्पने धातु हैं। तुदादिगण में धू विधूनने धातु है। इनमें से स्वादिगण तथा क्र्यादिगण के धूञ् कम्पने धातु ही वेट होते हैं। इनसे परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है - धोता / धविता। तुदादिगण का धू विधूनने धातु तथा चुरादिगण का धूञ् कम्पने धातु सेट होता है। इनसे परे आने वाले सेट आर्धधातुक प्रत्ययों को नित्य इडागम होता है - धविता। रधादिभ्यश्च - रध्, नश्, तृप्, दृप्, द्रुह्, मुह, स्निह, स्नुह, ये ८ थातु वेट होते हैं। इन आठ धातुओं से परे आने वाले सेट् प्रत्ययों को विकल्प से ᳕ द्रोहिता इडागम होता है। रध् + ता रद्धा रधिता नश् + ता नंष्टा नशिता तृप् + ता तर्ता तर्पिता दृप् + ता दर्ता दर्पिता द्रुह् + ता द्रोग्धा / द्रोढा मुह् + ता मोग्धा / मोढा मोहिता स्नुह् + ता स्नोग्धा / स्नोढा स्नोहिता स्निह् + - ता स्नेग्धा / स्नेढा स्नेहिता निर: कुष: - निर् उपसर्गपूर्वक कुष् धातु से परे आने वाले सेट् प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। निर् + कुष् - निष्कोष्टा निष्कोषिता इस प्रकार ३६ धातु वेट हैं। इन ३६ वेट् धातुओं से परे आने वाले सेट् आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। विशेष - यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि जहाँ एक आकृति के अनेक धातु हैं, वहाँ हमने स्पष्ट निर्देश करके कोष्ठक में उस गण का नाम लिख दिया है, जिस गण का धातु अनिट् होता है। इससे यह जानना चाहिये कि जिसका नाम नहीं लिखा है वह सेट ही है। सेट् हलन्त धातु __ इन अनिट् और वेट धातुओं के अलावा जितने भी हलन्त धातु बचे, वे सब के सब सेट ही हैं, यह जानना चाहिये। हम पढ़ चुके हैं कि लिट् लकार के थल, व, म, से, ध्वे, वहे, महे प्रत्यय, क्वसु प्रत्यय, क्त, क्तवतु, क्त्वा, तास्, तुमुन्, तव्य, तव्यत्, तृच्, तृन्, तवै, तवेन् तोसुन्, त्वन्, तवेङ् ये १४ तकारादि प्रत्यय तथा सीयुट, स्य, सिच्, सन्, क्से, से सेन सिप् ये ८ सकारादि प्रत्यय, इस प्रकार कुल ३० प्रत्यय सेट हैं। ये ३० प्रत्यय जब किसी सेट धातु से लगेंगे तब इन प्रत्ययों को नित्य इडागम होगा। ये ३० प्रत्यय जब किसी वेट धातु से लगेंगे तब इन्हें विकल्प से इडागम होगा। ये ३० प्रत्यय जब किसी अनिट् धातु से लगेंगे तब इन्हें इडागम नहीं होगा। स्य प्रत्यय की इडागम व्यवस्था ३५ यह सेट, अनिट् तथा वेट् धातुओं को पहिचानने की तथा सेट् अनिट् प्रत्ययों को पहिचानने की औत्सर्गिक अर्थात् मूलभूत सामान्य व्यवस्था है। इसे कण्ठस्थ कर लीजिये। इसके अपवाद हर व्यवस्था के कुछ न कुछ अपवाद होते हैं, अपवादों को सामने रख कर ही कोई भी कार्य करना चाहिये। अतः अब प्रत्येक प्रत्यय के लिये इडागम व्यवस्था के अपवाद बतला रहे हैं। जिस भी प्रत्यय को लगाकर आपको रूप बनाना हो, पहले उसके अपवादों को खोलकर सामने रख लीजिये, अन्यथा केवल मूल औत्सर्गिक (सामान्य) व्यवस्था को देखकर चलने से गलतियाँ हो जायेंगी। अब एक एक प्रत्यय को लेकर उसके अपवाद बतला रहे हैं। ऊपर बतलाई गई व्यवस्था को मूल औत्सर्गिक (सामान्य) व्यवस्था समझिये और उसे रट लीजिये। उसके बाद जिस भी प्रत्यय को लगाना हो उसके लिये मूल व्यवस्था तथा उसकी अपवाद व्यवस्था को एक साथ सामने रख कर काम कीजिये। स्य प्रत्यय के लिये विशेष इडागम व्यवस्था देखिये कि लुट तथा लुङ् लकार के सारे प्रत्यय ‘स्य’ प्रत्यय से प्रारम्भ हो रहे हैं। १. ऋद्धनोः स्ये - ऋकारान्त धातु तथा हन् धातु यद्यपि मूलत: अनिट हैं, किन्तु इनसे परे आने वाले स्य प्रत्यय को इट का आगम होता है। कृ + स्यति - कृ + इट् + स्यति = करिष्यति अकृ + स्यत् - अकृ + इट् + स्यत् = अकरिष्यत् हन् + स्यति - हन् + इट् + स्यति = हनिष्यति अहन् + स्यत् - अहन् + इट् + स्यति = अहनिष्यत् २. सेऽसिचि कृतचूतच्छृदतृदनृत: - कृत्, नृत्, छूद्, तृद्, नृत् इन ५ धातुओं से परे आने वाले सेट् सकारादि आर्धधातुक प्रत्ययों को विकल्प से इडागम होता है। स्य प्रत्यय चूँकि सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय है, अतः इन पाँच धातुओं से परे होने पर इसे विकल्प से इडागम होगा, तो इनके रूप इस प्रकार बनेंगे कृत् - कर्तिष्यति कर्त्यति / अकर्तिष्यत् अकय॑त् नृत् - चर्तिष्यति चय॑ति / अचर्तिष्यत् अचय॑त् छूद् - छर्दिष्यति छय॑ति / अच्छर्दिष्यत् अच्छय॑त् अष्टाध्यायी सहजबोध । __ - तर्दिष्यति तय॑ति । अतर्दिष्यत् अतय॑त् __ - नर्तिष्यति नय॑ति / अनतिष्यत् अनय॑त् ३. गमेरिट परस्मैपदेषु - गम् धातु यद्यपि अनिट् है तथापि उससे परे आने वाले परस्मैपदी सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय को इडागम होता है। यथा - गम् - गमिष्यति अगमिष्यत् किन्तु आत्मनेपदी सकारादि प्रत्यय परे होने पर उसे इडागम नहीं होता है। यथा संगसीष्ट/ संगस्यते / संजिगंसते। ४. न वृद्भ्यश्चतुर्थ्य: - वृत्, वृध्, शृध्, स्यन्द ये धातु यद्यपि आत्मनेपदी हैं किन्तु वृद्भ्य: स्यसनोः’ सूत्र से स्य, सन् प्रत्यय परे होने पर ये धातु विकल्प से परस्मैपदी भी हो जाते हैं। जब ये धातु परस्मैपदी हो जाते हैं, तब इनसे परे आने वाले सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय को इडागम नहीं होता है। यथा - वृत् - वय॑ति / अवय॑त् वृध् - वय॑ति / अवय॑त् शृध् - शर्त्यति / अशय॑त् स्यन्द् - स्यन्त्स्यति / अस्यन्त्स्यत् किन्तु आत्मनेपद में नित्य इडागम होकर बनेगा - वर्तिष्यते / वर्धिष्यते आदि । ५. तासि च क्लुप: - क्लुप् धातु से परे आने वाले परस्मैपदसंज्ञक सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय को तथा तास् प्रत्यय को इडागम नहीं होता है किन्तु आत्मनेपद संज्ञक सकारादि आर्धधातुक प्रत्यय को तथा तास् प्रत्यय को इडागम होता है। परस्मैपद आत्मनेपद क्लृप् धातु - कल्प्स्यति । कल्पिष्यते अकल्प्स्यत् । अकल्पिष्यत जब भी स्य प्रत्यय लगाकर कोई भी धातुरूप आप बनायें, तब औत्सर्गिक इडागम व्यवस्था के साथ इन अपवादों को देखकर ही कार्य प्रारम्भ करें।