3.02 सङ्कीर्णवर्गः

प्रकृतिप्रत्ययार्थाद्यैः सङ्कीर्णे लिङ्गमुन्नयेत् ॥3.2.1.1॥

मूलम्

कर्म क्रिया तत्सातत्ये गम्ये स्युरपरस्पराः ॥3.2.1.2॥

शब्दाः

क्रिया. (2) - कर्मन् (नपुं), क्रिया (स्त्री)
क्रियासातत्यः. (1) - अपरस्पर (वि) ॥3.2.1.2॥

मूलम्

साकल्यासङ्गवचने पारायणतुरायणे ॥3.2.2.1॥

शब्दाः

साकल्यवचनम्. (1) - पारायण (वि)
आसङ्गवचनम्. (1) - तुरायण (वि) ॥3.2.2.1॥

मूलम्

यदृच्छा स्वैरिता हेतुशून्या त्वास्था विलक्षणम् ॥3.2.2.2॥

शब्दाः

स्वातन्त्र्यम्. (2) - यदृच्छा (स्त्री), स्वैरिता (स्त्री)
हेतुशून्यास्था. (1) - विलक्षण (नपुं) ॥3.2.2.2॥

मूलम्

शमथस्तु शमः शान्तिर्दान्तिस्तु दमथो दमः ॥3.2.3.1॥

शब्दाः

कामक्रोधाद्यभावः. (3) - शमथ (पुं), शम (पुं), शान्ति (स्त्री)
तपःक्लेशसहनम्. (3) - दान्ति (स्त्री), दमथ (पुं), दम (पुं) ॥3.2.3.1॥

मूलम्

अवदानं कर्म वृत्तं काम्यदानं प्रवारणम् ॥3.2.3.2॥

शब्दाः

प्रशस्तकर्मः. (2) - अवदान (नपुं), कर्मवृत्त (नपुं)
फलेच्छायुक्तदानम्. (2) - काम्यदान (नपुं), प्रवारण (नपुं) ॥3.2.3.2॥

मूलम्

वशक्रिया संवननं मूलकर्म तु कार्मणम् ॥3.2.4.1॥

शब्दाः

वशीकरणम्. (2) - वशक्रिया (स्त्री), संवनन (नपुं)
ओषधीनां मूलैरुच्चाटनकर्मः. (2) - मूलकर्मन् (नपुं), कार्मण (नपुं) ॥3.2.4.1॥

मूलम्

विधूननं विधुवनं तर्पणं प्रीणनावनम् ॥3.2.4.2॥

शब्दाः

कम्पनम्. (2) - विधूनन (नपुं), विधुवन (नपुं)
प्रीणनम्. (3) - तर्पण (नपुं), प्रीणन (नपुं), अवन (नपुं) ॥3.2.4.2॥

मूलम्

पर्याप्तिः स्यात्परित्राणं हस्तधारणमित्यपि ॥3.2.5.1॥

शब्दाः

वधोद्यतनिवारणम्. (3) - पर्याप्ति (स्त्री), परित्राण (नपुं), हस्तधारण (नपुं) ॥3.2.5.1॥

मूलम्

सेवनं सीवनं स्यूतिर्विदरः स्फुटनं भिदा ॥3.2.5.2॥

शब्दाः

सूचीक्रिया. (3) - सेवन (नपुं), सीवन (नपुं), स्यूति (स्त्री)
द्विधाभावः. (3) - विदर (पुं), स्फुटन (नपुं), भिद् (स्त्री) ॥3.2.5.2॥

मूलम्

आक्रोशनमभीषङ्गः संवेदो वेदना न ना ॥3.2.6.1॥

शब्दाः

शापवचनम्. (2) - आक्रोशन (नपुं), अभीषङ्ग (पुं)
अनुभवः. (2) - संवेद (पुं), वेदना (स्त्री-नपुं) ॥3.2.6.1॥

मूलम्

सम्मूर्च्छनमभिव्याप्तिर्याञ्चा भिक्षार्थनार्दना ॥3.2.6.2॥

शब्दाः

सर्वतोव्याप्तिः. (2) - सम्मूर्च्छन (नपुं), अभिव्याप्ति (स्त्री)
याचनम्. (4) - याञ्चा (स्त्री), भिक्षा (स्त्री), अर्थना (स्त्री), अर्दना (स्त्री) ॥3.2.6.2॥

मूलम्

वर्धनं छेदनेऽथ द्वे आनन्दनसभाजने ॥3.2.7.1॥

शब्दाः

कर्तनम्. (2) - वर्धन (नपुं), छेदन (नपुं)
आलिङ्गनकुशलप्रश्नादिनानन्दनम्. (2) - आनन्दन (नपुं), सभाजन (नपुं) ॥3.2.7.1॥

मूलम्

आप्रच्छन्नमथाम्नायः सम्प्रदायः क्षये क्षिया ॥3.2.7.2॥

शब्दाः

आलिङ्गनकुशलप्रश्नादिनानन्दनम्. (1) - आप्रच्छन्न (नपुं)
गुरुपरम्परागतसदुपदेशः. (2) - आम्नाय (पुं), सम्प्रदाय (पुं)
अपचयः. (2) - क्षय (पुं), क्षिया (स्त्री) ॥3.2.7.2॥

मूलम्

ग्रहे ग्राहो वशः कान्तौ रक्ष्णस्त्राणे रणः क्वणे ॥3.2.8.1॥

शब्दाः

ग्राहणम्. (2) - ग्रह (पुं), ग्राह (पुं)
इच्छा. (2) - वश (पुं), कान्त (वि)
रक्षणम्. (2) - रक्ष्ण (पुं), त्राण (नपुं)
शब्दकरणम्. (2) - रण (पुं), क्वण (पुं) ॥3.2.8.1॥

मूलम्

व्यधो वेधे पचा पाके हवो हूतौ वरो वृत्तौ ॥3.2.8.2॥

शब्दाः

वेधनम्. (2) - व्यध (पुं), वेध (पुं)
पचनम्. (2) - पचा (स्त्री), पाक (पुं)
आह्वानम्. (2) - हव (पुं), हूति (स्त्री)
वेष्टनसम्भक्तिः. (2) - वर (पुं), वृत्ति (स्त्री) ॥3.2.8.2॥

मूलम्

ओषः प्लोषे नयो नाये ज्यानिर्जीर्णौ भ्रमो भ्रमौ ॥3.2.9.1॥

शब्दाः

दाहः. (2) - ओष (पुं), प्लोष (पुं)
नीतिः. (2) - नय (पुं), नाय (पुं)
जीर्णत्वम्. (2) - ज्यानि (स्त्री), जीर्ण (पुं)
भ्रमणम्. (2) - भ्रम (पुं), भ्रमि (स्त्री) ॥3.2.9.1॥

मूलम्

स्फातिर्वृद्धौ प्रथाख्यातौ स्पृष्टिः पृक्तौ स्नवः स्रवे ॥3.2.9.2॥

शब्दाः

वृद्धिः. (2) - स्फाति (स्त्री), वृद्धि (स्त्री)
कीर्तिः. (2) - प्रथा (स्त्री), ख्याति (स्त्री)
स्पर्शनम्. (2) - स्पृष्टि (स्त्री), पृक्ति (स्त्री)
प्रस्रवणम्. (2) - स्नव (पुं), स्रव (पुं) ॥3.2.9.2॥

मूलम्

विधा समृद्धौ स्फुरणे स्फुरणा प्रमितौ प्रमा ॥3.2.10.1॥

शब्दाः

धनसम्पत्तिः. (2) - विधा (स्त्री), समृद्धि (स्त्री)
स्फुरणम्. (2) - स्फुरण (नपुं), स्फुरणा (स्त्री)
प्रमाज्ञानम्. (2) - प्रमिति (स्त्री), प्रमा (स्त्री) ॥3.2.10.1॥

मूलम्

प्रसूतिः प्रसवे श्च्योते प्राधारः क्लमथः क्लमे ॥3.2.10.2॥

शब्दाः

प्रसवनम्. (2) - प्रसूति (स्त्री), प्रसव (पुं)
क्षरणम्. (2) - श्च्योत (पुं), प्राधार (पुं)
ग्लानिः. (2) - क्लमथ (पुं), क्लम (पुं) ॥3.2.10.2॥

मूलम्

उत्कर्षोऽतिशये सन्धिः श्लेषे विषय आश्रये ॥3.2.11.1॥

शब्दाः

उत्कर्षः. (2) - उत्कर्ष (पुं), अतिशय (पुं)
सन्धानम्. (2) - सन्धि (पुं), श्लेष (पुं)
आश्रयः. (2) - विषय (पुं), आश्रय (पुं) ॥3.2.11.1॥

मूलम्

क्षिपायां क्षेपणं गीर्णिर्गिरौ गुरणमुद्यमे ॥3.2.11.2॥

शब्दाः

प्रेरणम्. (2) - क्षिपा (स्त्री), क्षेपण (नपुं)
गिलनम्. (2) - गीर्णि (स्त्री), गिरि (स्त्री)
भाराद्युद्यमनम्. (2) - गुरण (नपुं), उद्यम (पुं) ॥3.2.11.2॥

मूलम्

उन्नाय उन्नये श्रायः श्रयणे जयने जयः ॥3.2.12.1॥

शब्दाः

उन्नयनम्. (2) - उन्नाय (पुं), उन्नय (पुं)
सेवा. (2) - श्राय (पुं), श्रयण (नपुं)
विजयः. (2) - जयन (नपुं), जय (पुं) ॥3.2.12.1॥

मूलम्

निगादो निगदे मादो मद उद्वेग उद्भ्रमे ॥3.2.12.2॥

शब्दाः

गदनम्. (2) - निगाद (पुं), निगद (पुं)
आनन्दः. (2) - माद (पुं), मद (पुं)
उद्वेजनम्. (2) - उद्वेग (पुं), उद्भ्रम (पुं) ॥3.2.12.2॥

मूलम्

विमर्दनं परिमलोऽभ्युपपत्तिरनुग्रहः ॥3.2.13.1॥

शब्दाः

कुङ्कुमादिमर्दनम्. (2) - विमर्दन (नपुं), परिमल (पुं)
अङ्गीकारः. (2) - अभ्युपपत्ति (स्त्री), अनुग्रह (पुं) ॥3.2.13.1॥

मूलम्

निग्रहस्तद्विरुद्धः स्यादभियोगस्त्वभिग्रहः ॥3.2.13.2॥

शब्दाः

निरोधः. (2) - निग्रह (पुं), निरोध (पुं)
कलहाह्वानम्. (2) - अभियोग (पुं), अभिग्रह (पुं) ॥3.2.13.2॥

मूलम्

मुष्टिबन्धस्तु संग्राहो डिम्बे डमरविप्लवौ ॥3.2.14.1॥

शब्दाः

मुष्टिबन्धनम्. (2) - मुष्टिबन्ध (पुं), सङ्ग्राह (पुं)
धाडकलुण्ठनादिः. (3) - डिम्ब (पुं), डमर (पुं), विप्लव (पुं) ॥3.2.14.1॥

मूलम्

बन्धनं प्रसितिश्चारः स्पर्शः स्प्रष्टोपतप्तरि ॥3.2.14.2॥

शब्दाः

बन्धनम्. (3) - बन्धन (नपुं), प्रसिति (स्त्री), चार (पुं)
सन्तप्तः. (3) - स्पर्श (पुं), स्प्रष्टृ (पुं), उपतप्तृ (पुं) ॥3.2.14.2॥

मूलम्

निकारो विप्रकारः स्यादाकारस्त्विङ्ग इङ्गितम् ॥3.2.15.1॥

शब्दाः

अपकारः. (2) - निकार (पुं), विप्रकार (पुं)
अभिप्रायानुरूपचेष्टा. (3) - आकार (पुं), इङ्ग (वि), इङ्गित (नपुं) ॥3.2.15.1॥

मूलम्

परिणामो विकारे द्वे समे विकृतिविक्रिये ॥3.2.15.2॥

शब्दाः

प्रकृतेरन्यथाभावः. (4) - परिणाम (पुं), विकार (पुं), विकृति (स्त्री), विक्रिया (स्त्री) ॥3.2.15.2॥

मूलम्

अपहारस्त्वपचयः समाहारः समुच्चयः ॥3.2.16.1॥

शब्दाः

अपहरणम्. (2) - अपहार (पुं), अपचय (पुं)
राशीकरणम्. (2) - समाहार (पुं), समुच्चय (पुं) ॥3.2.16.1॥

मूलम्

प्रत्याहार उपादानं विहारस्तु परिक्रमः ॥3.2.16.2॥

शब्दाः

इन्द्रियाकर्षणम्. (2) - प्रत्याहार (पुं), उपादान (नपुं)
क्रीडार्थसञ्चरणम्. (2) - विहार (पुं), परिक्रम (पुं) ॥3.2.16.2॥

मूलम्

अभिहारोऽभिग्रहणं निहारोऽभ्यवकर्षणम् ॥3.2.17.1॥

शब्दाः

आभिमुख्येन ग्रहणम्. (2) - अभिहार (पुं), अभिग्रहण (नपुं)
शस्त्रादेर्युक्त्या निःसरणम्. (2) - निहार (पुं), अभ्यवकर्षण (नपुं) ॥3.2.17.1॥

मूलम्

अनुहारोऽनुकारः स्यादर्थस्यापगमे व्ययः ॥3.2.17.2॥

शब्दाः

सदृशकरणम्. (2) - अनुहार (पुं), अनुकार (पुं)
द्रव्यापगमः. (1) - व्यय (पुं) ॥3.2.17.2॥

मूलम्

प्रवाहस्तु प्रवृत्तिः स्यात्प्रवहो गमनं बहिः ॥3.2.18.1॥

शब्दाः

अविच्छेदेन जलादिप्रवृत्तिः. (2) - प्रवाह (पुं), प्रवृत्ति (स्त्री)
बहिर्गमनम्. (1) - प्रवह (पुं) ॥3.2.18.1॥

मूलम्

वियामो वियमो यामो यमः संयामसंयमौ ॥3.2.18.2॥

शब्दाः

संयमः. (6) - वियाम (पुं), वियम (पुं), याम (पुं), यम (पुं), संयाम (पुं), संयम (पुं) ॥3.2.18.2॥

मूलम्

हिंसाकर्माभिचारः स्याज्जागर्या जागरा द्वयोः ॥3.2.19.1॥

शब्दाः

मारणादिक्रिया. (2) - हिंसाकर्मन् (नपुं), आभिचार (पुं)
जागरणम्. (2) - जागर्या (स्त्री), जागरा (स्त्री-पुं) ॥3.2.19.1॥

मूलम्

विघ्नोऽन्तरायः प्रत्यूहः स्यादुपघ्नोऽन्तिकाश्रये ॥3.2.19.2॥

शब्दाः

विघ्नः. (3) - विघ्न (पुं), अन्तराय (पुं), प्रत्यूह (पुं)
सन्निहिताश्रयः. (2) - उपघ्न (पुं), अन्तिकाश्रय (पुं) ॥3.2.19.2॥

मूलम्

निर्वेश उपभोगः स्यात्परिसर्पः परिक्रिया ॥3.2.20.1॥

शब्दाः

उपभोगः. (2) - निर्वेश (पुं), उपभोग (पुं)
परिजनादिना वेष्टनम्. (2) - परिसर्प (पुं), परिक्रिया (स्त्री) ॥3.2.20.1॥

मूलम्

विधुरं तु प्रविश्लेषेऽभिप्रायश्छन्द आशयः ॥3.2.20.2॥

शब्दाः

विश्लेषः. (2) - विधुर (नपुं), प्रविश्लेष (पुं)
अभिप्रायः. (3) - अभिप्राय (पुं), छन्द (पुं), आशय (पुं) ॥3.2.20.2॥

मूलम्

संक्षेपणं समसनं पर्यवस्था विरोधनम् ॥3.2.21.1॥

शब्दाः

सङ्क्षेपणम्. (2) - सङ्क्षेपण (नपुं), समसन (नपुं)
विरोधनम्. (2) - पर्यवस्था (स्त्री), विरोधन (नपुं) ॥3.2.21.1॥

मूलम्

परिसर्या परीसारः स्यादास्यात्वासना स्थितिः ॥3.2.21.2॥

शब्दाः

सर्वतो गमनम्. (2) - परिसर्या (स्त्री), परीसार (पुं)
आसनम्. (3) - आस्या (स्त्री), आसना (स्त्री), स्थिति (स्त्री) ॥3.2.21.2॥

मूलम्

विस्तारो विग्रहो व्यासः स च शब्दस्य विस्तरः ॥3.2.22.1॥

शब्दाः

विस्तारः. (3) - विस्तार (पुं), विग्रह (पुं), व्यास (पुं)
शब्दविस्तरः. (1) - विस्तर (पुं) ॥3.2.22.1॥

मूलम्

संवाहनं मर्दनं स्याद्विनाशः स्याददर्शनम् ॥3.2.22.2॥

शब्दाः

पादमर्दनादिः. (2) - संवाहन (नपुं), मर्दन (नपुं)
तिरोधानम्. (2) - विनाश (पुं), अदर्शन (नपुं) ॥3.2.22.2॥

मूलम्

संस्तवः स्यात्परिचयः प्रसरस्तु विसर्पणम् ॥3.2.23.1॥

शब्दाः

परिचयः. (2) - संस्तव (पुं), परिचय (पुं)
व्रणादिविसरणम्. (2) - प्रसर (पुं), विसर्पण (नपुं) ॥3.2.23.1॥

मूलम्

नीवाकस्तु प्रयामः स्यात्सन्निधिः सन्निकर्षणम् ॥3.2.23.2॥

शब्दाः

धान्यादिसञ्चयः. (2) - नीवाक (पुं), प्रयाम (पुं)
सन्निधानम्. (2) - सन्निधि (पुं), सन्निकर्षण (नपुं) ॥3.2.23.2॥

मूलम्

लवोऽभिलावो लवने निष्पावः पवने पवः ॥3.2.24.1॥

शब्दाः

छेदनम्. (3) - लव (पुं), अभिलाव (पुं), लवन (नपुं)
धान्यादीनाम् बहुलीकरणम्. (3) - निष्पाव (पुं), पवन (नपुं), पव (पुं) ॥3.2.24.1॥

मूलम्

प्रस्तावः स्यादवसरस्त्रसरः सूत्रवेष्टनम् ॥3.2.24.2॥

शब्दाः

अवसरः. (2) - प्रस्ताव (पुं), अवसर (पुं)
सूत्रवेष्टनक्रिया. (2) - त्रसर (पुं), सूत्रवेष्टन (नपुं) ॥3.2.24.2॥

मूलम्

प्रजनः स्यादुपसरः प्रश्रयप्रणयौ समौ ॥3.2.25.1॥

शब्दाः

प्रथमगर्भग्रहणम्. (2) - प्रजन (पुं), उपसर (पुं)
प्रीत्या प्रार्थनम्. (2) - प्रश्रय (पुं), प्रणय (पुं) ॥3.2.25.1॥

मूलम्

धीशक्तिर्निष्क्रमोऽस्त्री तु संक्रमो दुर्गसञ्चरः ॥3.2.25.2॥

शब्दाः

बुद्धिसामर्थ्यम्. (2) - धीशक्ति (स्त्री), निष्क्रम (पुं)
दुर्गप्रवेशनक्रिया. (2) - सङ्क्रम (पुं-नपुं), दुर्गसञ्चर (पुं) ॥3.2.25.2॥

मूलम्

प्रत्युत्क्रमः प्रयोगार्थः प्रक्रमः स्यादुपक्रमः ॥3.2.26.1॥

शब्दाः

कर्मारम्भे प्रथमप्रयोगः. (2) - प्रत्युत्क्रम (पुं), प्रयोगार्थ (पुं)
आरम्भः. (2) - प्रक्रम (पुं), उपक्रम (पुं) ॥3.2.26.1॥

मूलम्

स्यादभ्यादानमुद्धात आरम्भः सम्भ्रमस्त्वरा ॥3.2.26.2॥

शब्दाः

आरम्भः. (3) - अभ्यादान (नपुं), उद्धात (पुं), आरम्भ (पुं)
त्वरा. (2) - सम्भ्रम (पुं), त्वरा (स्त्री-पुं) ॥3.2.26.2॥

मूलम्

प्रतिबन्धः प्रविष्टम्भोऽवनायस्तु निपातनम् ॥3.2.27.1॥

शब्दाः

रोधः. (2) - प्रतिबन्ध (पुं), प्रविष्टम्भ (पुं)
अधोनयनम्. (2) - अवनाय (पुं), निपातन (नपुं) ॥3.2.27.1॥

मूलम्

उपलम्भस्त्वनुभवः समालम्भो विलेपनम् ॥3.2.27.2॥

शब्दाः

अनुभवः. (2) - उपलम्भ (पुं), अनुभव (पुं)
कुङ्कुमादिलेपनम्. (2) - समालम्भ (पुं), विलेपन (नपुं) ॥3.2.27.2॥

मूलम्

विप्रलम्भो विप्रयोगो विलम्भस्त्वतिसर्जनम् ॥3.2.28.1॥

शब्दाः

रागिणोर्वियोजनम्. (2) - विप्रलम्भ (पुं), विप्रयोग (पुं)
अतिदानम्. (2) - विलम्भ (पुं), अतिसर्जन (नपुं) ॥3.2.28.1॥

मूलम्

विश्रावस्तु प्रतिख्यातिरवेक्षा प्रतिजागरः ॥3.2.28.2॥

शब्दाः

अतिख्यातिः. (2) - विश्राव (पुं), प्रतिख्याति (स्त्री)
अवेक्षणम्. (2) - अवेक्षा (स्त्री), प्रतिजागर (पुं) ॥3.2.28.2॥

मूलम्

निपाठनिपठौ पाठे तेमस्तेमौ समुन्दने ॥3.2.29.1॥

शब्दाः

पठनम्. (3) - निपाठ (पुं), निपठ (पुं), पाठ (पुं)
आर्द्रीभावः. (3) - तेम (पुं), स्तेम (पुं), समुन्दन (नपुं) ॥3.2.29.1॥

मूलम्

आदीनवास्रवौ क्लेशे मेलके सङ्गसङ्गमौ ॥3.2.29.2॥

शब्दाः

क्लेशः. (3) - आदीनव (पुं), आस्रव (पुं), क्लेश (पुं)
सङ्गमम्. (3) - मेलक (पुं), सङ्ग (पुं), सङ्गम (पुं) ॥3.2.29.2॥

मूलम्

संवीक्षणं विचयनं मार्गणं मृगणा मृगः ॥3.2.30.1॥

शब्दाः

अन्वेषणम्. (5) - संवीक्षन (नपुं), विचयन (नपुं), मार्गण (नपुं), मृगणा (स्त्री), मृग (पुं) ॥3.2.30.1॥

मूलम्

परिरम्भः परिष्वङ्गः संश्लेष उपगूहनम् ॥3.2.30.2॥

शब्दाः

आलिङ्गनम्. (4) - परिरम्भ (पुं), परिष्वङ्ग (पुं), संश्लेष (पुं), उपगूहन (नपुं) ॥3.2.30.2॥

मूलम्

निर्वर्णनं तु निध्यानं दर्शनालोकनेक्षणम् ॥3.2.31.1॥

शब्दाः

वीक्षणम्. (5) - निर्वर्णन (नपुं), निध्यान (नपुं), दर्शन (नपुं), आलोकन (नपुं), ईक्षण (नपुं) ॥3.2.31.1॥

मूलम्

प्रत्याख्यानं निरसनं प्रत्यादेशो निराकृतिः ॥3.2.31.2॥

शब्दाः

निराकरणम्. (4) - प्रत्याख्यान (नपुं), निरसन (नपुं), प्रत्यादेश (पुं), निराकृति (पुं) ॥3.2.31.2॥

मूलम्

उपशायो विशायश्च पर्यायशयनार्थकौ ॥3.2.32.1॥

शब्दाः

पर्यायेण प्रहरकादावुपशायः. (2) - उपशाय (पुं), विशाय (पुं) ॥3.2.32.1॥

मूलम्

अर्तनं च ऋतीया च हृणीया च घृणार्थकाः ॥3.2.32.2॥

शब्दाः

जुगुप्सनम्. (4) - अर्तन (नपुं), ऋतीया (स्त्री), हृणीया (स्त्री), घृणा (स्त्री) ॥3.2.32.2॥

मूलम्

स्याद्व्यत्यासो विपर्यासो व्यत्ययश्च विपर्यये ॥3.2.33.1॥

शब्दाः

व्यतिक्रमः. (4) - व्यत्यास (पुं), विपर्यास (पुं), व्यत्यय (पुं), विपर्यय (पुं) ॥3.2.33.1॥

मूलम्

पर्ययोऽतिक्रमस्तस्मिन्नतिपात उपात्ययः ॥3.2.33.2॥

शब्दाः

अतिक्रमः. (4) - पर्यय (पुं), अतिक्रम (पुं), अतिपात (पुं), उपात्यय (पुं) ॥3.2.33.2॥

मूलम्

प्रेषणं यत्समाहूय तत्र स्यात्प्रतिशासनम् ॥3.2.34.1॥

शब्दाः

भृत्यादिप्रेषणम्. (1) - प्रतिशासन (नपुं) ॥3.2.34.1॥

मूलम्

स संस्तावः क्रतुषु या स्तुतिभूमिर्द्विजन्मनाम् ॥3.2.34.2॥

शब्दाः

यज्ञे स्तावकद्विजावस्थानभूमिः. (1) - संस्ताव (पुं) ॥3.2.34.2॥

मूलम्

निधाय तक्ष्यते यत्र काष्ठे काष्ठं स उद्धनः ॥3.2.35.1॥

शब्दाः

काष्ठं यत्र काष्ठे निधाय तक्ष्यते सः. (1) - उद्घन (पुं) ॥3.2.35.1॥

मूलम्

स्तम्बघ्नस्तु स्तम्बघनः स्तम्बो येन निहन्यते ॥3.2.35.2॥

शब्दाः

तृणादिगुच्छोन्मूलनसाधनम्. (2) - स्तम्बघ्न (पुं), स्तम्बघन (पुं) ॥3.2.35.2॥

मूलम्

आविधो विध्यते येन तत्र विष्वक्समे निघः ॥3.2.36.1॥

शब्दाः

भ्रमरसूच्यादिः. (1) - आविध (पुं)
तुल्यारोहपरिणाहवृक्षादिः. (1) - निघ (पुं) ॥3.2.36.1॥

मूलम्

उत्कारश्च निकारश्च द्वौ धान्योत्क्षेपणार्थकौ ॥3.2.36.2॥

शब्दाः

धान्यानामूर्ध्वक्षेपणम्. (2) - उत्कार (पुं), निकार (पुं) ॥3.2.36.2॥

मूलम्

निगारोद्गारविक्षावोद्ग्राहास्तु गरणादिषु ॥3.2.37.1॥

शब्दाः

निगरणम्. (1) - निगार (पुं)
उद्गरणम्. (1) - उद्गार (पुं)
विक्षवणम्. (1) - विक्षाव (पुं)
उद्ग्रहणम्. (1) - उद्ग्राह (पुं) ॥3.2.37.1॥

मूलम्

आरत्यवरतिविरतय उपरामेऽथ स्त्रियां तु निष्ठेवः ॥3.2.37.2॥

शब्दाः

उपरमणम्. (4) - आरति (स्त्री), अवरति (स्त्री), विरति (स्त्री), उपराम (पुं)
मुखेन श्लेष्मनिरसनम्. (1) - निष्ठेव (स्त्री-पुं) ॥3.2.37.2॥

मूलम्

निष्ठयूतिर्निष्ठेवननिष्ठीवनमित्यभिन्नानि ॥3.2.38.1॥

शब्दाः

मुखेन श्लेष्मनिरसनम्. (3) - निष्ठ्यूति (स्त्री), निष्ठेवन (नपुं), निष्ठीवन (नपुं) ॥3.2.38.1॥

मूलम्

जवने जूतिः सातिस्त्ववसाने स्यादथ ज्वरे जूर्तिः ॥3.2.38.2॥

शब्दाः

वेगः. (2) - जवन (नपुं), जूति (स्त्री)
समापनम्. (2) - साति (स्त्री), अवसान (नपुं)
ज्वरणम्. (2) - ज्वर (पुं), जूर्ति (स्त्री) ॥3.2.38.2॥

मूलम्

उदजस्तु पशुप्रेरणमकरणिरित्यादयः शापे ॥3.2.39.1॥

शब्दाः

पशुप्रेरणम्. (2) - उदज (पुं), पशुप्रेरण (नपुं)
आक्रोशनम्. (1) - अकरणि (स्त्री) ॥3.2.39.1॥

मूलम्

गोत्रान्तेभ्यस्तस्य वृन्दमित्यौपगवकादिकम् ॥3.2.39.2॥

शब्दाः

औपगवानां समूहः. (1) - औपगवक (नपुं) ॥3.2.39.2॥

मूलम्

आपूपिकं शाष्कुलिकमेवमाद्यमचेतसाम् ॥3.2.40.1॥

शब्दाः

अपूपानां समूहः. (1) - आपूपिक (नपुं)
शष्कुलीनां समूहः. (1) - शाष्कुलिक (नपुं) ॥3.2.40.1॥

मूलम्

माणवानां तु माणव्यं सहायानां सहायता ॥3.2.40.2॥

शब्दाः

माणवानां समूहः. (1) - माणव्य (नपुं)
सहायानां समूहः. (1) - सहायता (स्त्री) ॥3.2.40.2॥

मूलम्

हल्या हलानां ब्राह्मण्यवाडव्ये तु द्विजन्मनाम् ॥3.2.41.1॥

शब्दाः

हलानां समूहः. (1) - हल्या (स्त्री)
ब्राह्मणानां समूहः. (1) - ब्राह्मण्य (नपुं)
वाडवानां समूहः. (1) - वाडव्य (नपुं) ॥3.2.41.1॥

मूलम्

द्वे पर्शुकानां पृष्ठानां पार्श्वं पृष्ठ्यमनुक्रमात् ॥3.2.41.2॥

शब्दाः

पर्शुकानां समूहः. (1) - पार्श्व (नपुं)
पृष्ठानां समूहः. (1) - पृष्ठ्य (नपुं) ॥3.2.41.2॥

मूलम्

खलानां खलिनी खल्याप्यथ मानुष्यकं नृणाम् ॥3.2.42.1॥

शब्दाः

खलानां समूहः. (2) - खलिनी (स्त्री), खल्या (स्त्री)
माणवानां समूहः. (1) - मानुष्यक (नपुं) ॥3.2.42.1॥

मूलम्

ग्रामता जनता धूम्या पाश्या गल्या पृथक्पृथक् ॥3.2.42.2॥

शब्दाः

ग्रामाणां समूहः. (1) - ग्रामता (स्त्री)
जनानां समूहः. (1) - जनता (स्त्री)
धूमानां समूहः. (1) - धूम्या (स्त्री)
पाशानां समूहः. (1) - पाश्या (स्त्री)
गलानां समूहः. (1) - गल्या (स्त्री) ॥3.2.42.2॥

मूलम्

अपि साहस्रकारीषवार्मणाथर्वणादिकम् ॥3.2.43.1॥

शब्दाः

सहस्राणां समूहः. (1) - साहस्र (नपुं)
कारीषाणां समूहः. (1) - कारीष (नपुं)
चर्मणां समूहः. (1) - चार्मण (नपुं)
अथर्वणां समूहः. (1) - आथर्वण (नपुं) ॥3.2.43.1॥