2.10 शूद्रवर्गः

मूलम्

शूद्राश्चावरवर्णाश्च वृषलाश्च जघन्यजाः ॥2.10.1.1॥

शब्दाः

शूद्रः. (4) - शूद्र (पुं), अवरवर्ण (पुं), वृषल (पुं), जघन्यज (पुं) ॥2.10.1.1॥

मूलम्

आचण्डालात्तु सङ्कीर्णा अम्बष्ठकरणादयः ॥2.10.1.2॥

शब्दाः

सङ्करवर्णः. (1) - अम्बष्ठकरण (पुं) ॥2.10.1.2॥

मूलम्

शूद्राविशोस्तु करणोऽम्बष्ठो वैश्याद्विजन्मनोः ॥2.10.2.1॥

शब्दाः

वैश्याच्छूद्रायां जातः. (1) - करण (पुं)
वैश्यात्ब्राह्मणीभ्यामुत्पन्नः. (1) - अम्बष्ठ (पुं) ॥2.10.2.1॥

मूलम्

शूद्राक्षत्रिययोरुग्रो मागधः क्षत्रियाविशोः ॥2.10.2.2॥

शब्दाः

शूद्राक्षत्रियाभ्यामुत्पन्नः. (1) - उग्र (पुं)
क्षत्रियाद्वैश्याभ्यामुत्पन्नः. (1) - मागध (पुं) ॥2.10.2.2॥

मूलम्

माहिष्योऽर्याक्षत्रिययोः क्षत्तार्याशूद्रयोः सुतः ॥2.10.3.1॥

शब्दाः

वैश्याक्षत्रियाभ्यामुत्पन्नः. (1) - माहिष (पुं)
आर्यशूद्राभ्यामुत्पन्नः. (1) - क्षन्त्रृ (पुं) ॥2.10.3.1॥

मूलम्

ब्राह्मण्यां क्षत्रियात्सूतस्तस्यां वैदेहको विशः ॥2.10.3.2॥

शब्दाः

क्षत्रियाद्ब्राह्मण्यामुत्पन्नः. (1) - सूत (पुं)
वैश्यात् ब्राह्मण्यामुत्पन्नः. (1) - वैदेहक (पुं) ॥2.10.3.2॥

मूलम्

रथकारस्तु माहिष्यात्करण्यां यस्य संभवः ॥2.10.4.1॥

शब्दाः

करण्यां माहिष्यादुत्पन्नः. (1) - रथकार (पुं) ॥2.10.4.1॥

मूलम्

स्याच्चण्डालस्तु जनितो ब्राह्मण्यां वृषलेन यः ॥2.10.4.2॥

शब्दाः

ब्राह्मण्यां वृषलेन जनितः. (1) - चण्डाल (पुं) ॥2.10.4.2॥

मूलम्

कारुः शिल्पी संहतैस्तैर्द्वयोः श्रेणिः सजातिभिः ॥2.10.5.1॥

शब्दाः

चित्रकारादिः. (2) - कारु (पुं), शिल्पिन् (पुं)
सजातीयशिल्पिसङ्घः. (1) - श्रेणि (स्त्री-पुं) ॥2.10.5.1॥

मूलम्

कुलकः स्यात्कुलश्रेष्ठी मालाकारस्तु मालिकः ॥2.10.5.2॥

शब्दाः

कारुसङ्घे मुख्यः. (2) - कुलक (पुं), कुलश्रेष्ठिन् (पुं)
मालाकारः. (2) - मालाकार (पुं), मालिक (पुं) ॥2.10.5.2॥

मूलम्

कुम्भकारः कुलालः स्यात्पलगण्डस्तु लेपकः ॥2.10.6.1॥

शब्दाः

कुम्भकारः. (2) - कुम्भकार (पुं), कुलाल (पुं)
गृहादौ लेपकारः. (2) - पलगण्ड (पुं), लेपक (पुं) ॥2.10.6.1॥

मूलम्

तन्तुवायः कुविन्दः स्यात्तुन्नवायस्तु सौचिकः ॥2.10.6.2॥

शब्दाः

पटनिर्माता. (2) - तन्तुवाय (पुं), कुविन्द (पुं)
कञ्चुक्यादेर्निर्माता. (2) - तुन्नवाय (पुं), सौचिक (पुं) ॥2.10.6.2॥

मूलम्

रङ्गाजीवश्चित्रकरः शस्त्रमार्जोऽसि धावकः ॥2.10.7.1॥

शब्दाः

चित्रकारः. (2) - रङ्गाजीव (पुं), चित्रकर (पुं)
शस्त्रघर्षणोपजीविः. (2) - शस्त्रमार्ज (पुं), असिधावक (पुं) ॥2.10.7.1॥

मूलम्

पादकृच्चर्मकारः स्याद्व्योकारो लोहकारकः ॥2.10.7.2॥

शब्दाः

चर्मकारः. (2) - पादकृत् (पुं), चर्मकार (पुं)
लोहकारकः. (2) - व्योकार (पुं), लोहकारक (पुं) ॥2.10.7.2॥

मूलम्

नाडिन्धमः स्वर्णकारः कलादो रुक्मकारकः ॥2.10.8.1॥

शब्दाः

स्वर्णकारः. (4) - नाडिन्धम (पुं), स्वर्णकार (पुं), कलाद (पुं), रुक्मकारक (पुं) ॥2.10.8.1॥

मूलम्

स्याच्छाङ्खिकः काम्बविकः शौल्बिकस्ताम्रकुट्टकः ॥2.10.8.2॥

शब्दाः

शङ्खवादकः. (2) - शाङ्खिक (पुं), काम्बविक (पुं)
ताम्रकारः. (2) - शौल्बिक (पुं), ताम्रकुट्टक (पुं) ॥2.10.8.2॥

मूलम्

तक्षा तु वर्धकिस्त्वष्टा रथकारस्तु काष्ठतट् ॥2.10.9.1॥

शब्दाः

तक्षः. (5) - तक्षन् (पुं), वर्धकि (पुं), त्वष्टृ (पुं), रथकार (पुं), काष्ठतक्ष (पुं) ॥2.10.9.1॥

मूलम्

ग्रामाधीनो ग्रामतक्षः कौटतक्षोऽनधीनकः ॥2.10.9.2॥

शब्दाः

ग्रामतक्षः. (2) - ग्रामाधीन (पुं), ग्रामतक्ष (पुं)
कौटतक्षः. (1) - कौटतक्ष (पुं) ॥2.10.9.2॥

मूलम्

क्षुरी मुण्डी दिवाकीर्तिनापितान्तावसायिनः ॥2.10.10.1॥

शब्दाः

क्षुरिः. (5) - क्षुरिन् (पुं), मुण्डिन् (पुं), दिवाकीर्ति (पुं), नापित (पुं), अन्तावसायिन् (पुं) ॥2.10.10.1॥

मूलम्

निर्णेजकः स्याद्रजकः शौण्डिको मण्डहारकः ॥2.10.10.2॥

शब्दाः

रजकः. (2) - निर्णेजक (पुं), रजक (पुं)
शौण्डिकः. (2) - शौण्डिक (पुं), मण्डहारक (पुं) ॥2.10.10.2॥

मूलम्

जाबालः स्यादजाजीवो देवाजीवस्तु देवलः ॥2.10.11.1॥

शब्दाः

अजाजीवनः. (2) - जाबाल (पुं), अजाजीव (पुं)
देवपूजोपजीविनः. (2) - देवाजीव (पुं), देवल (पुं) ॥2.10.11.1॥

मूलम्

स्यान्माया शाम्बरी मायाकारस्तु प्रतिहारकः ॥2.10.11.2॥

शब्दाः

इन्द्रजालादिमाया. (2) - माया (स्त्री), शाम्बरी (स्त्री)
इन्द्रजालिकः. (2) - मायाकार (पुं), प्रतिहारक (पुं) ॥2.10.11.2॥

मूलम्

शैलालिनस्तु शैलूषा जायाजीवाः कृशाश्विनः ॥2.10.12.1॥

शब्दाः

नटः. (4) - शैलालिन् (पुं), शैलूष (पुं), जायाजीव (पुं), कृशाश्विन् (पुं) ॥2.10.12.1॥

मूलम्

भरता इत्यपि नटाश्चारणास्तु कुशीलवाः ॥2.10.12.2॥

शब्दाः

नटः. (2) - भरत (पुं), नट (पुं)
काथिकः. (2) - चारण (पुं), कुशीलव (पुं) ॥2.10.12.2॥

मूलम्

मार्दङ्गिका मौरजिकाः पाणिवादास्तु पाणिघाः ॥2.10.13.1॥

शब्दाः

मृदङ्गवादकः. (2) - मार्दङ्गिक (पुं), मौरजिक (पुं)
करतालिकावादकः. (2) - पाणिवाद (पुं), पाणिघ (पुं) ॥2.10.13.1॥

मूलम्

वेणुध्माः स्युर्वैणविका वीणावादास्तु वैणिकाः ॥2.10.13.2॥

शब्दाः

वेणुवादकः. (2) - वेणुध्म (पुं), वैणविक (पुं)
वीणावादकः. (2) - वीणावाद (पुं), वैणिक (पुं) ॥2.10.13.2॥

मूलम्

जीवान्तकः शाकुनिको द्वौ वागुरिकजालिकौ ॥2.10.14.1॥

शब्दाः

पक्षीणां हन्ता. (2) - जीवान्तक (पुं), शाकुनिक (पुं)
जालेन मृगान्बध्नः. (2) - वागुरिक (पुं), जालिक (पुं) ॥2.10.14.1॥

मूलम्

वैतंसिकः कौटिकश्च मांसिकश्च समं त्रयम् ॥2.10.14.2॥

शब्दाः

मांसविक्रयजीविः. (3) - वैतंसिक (पुं), कौटिक (पुं), मांसिक (पुं) ॥2.10.14.2॥

मूलम्

भृतको भृतिभुक्कर्मकरो वैतनिकोऽपि सः ॥2.10.15.1॥

शब्दाः

वेतनोपजीविः. (4) - भृतक (पुं), भृतिभुज् (पुं), कर्मकर (पुं), वैतनिक (पुं) ॥2.10.15.1॥

मूलम्

वार्तावहो वैवधिको भारवाहस्तु भारिकः ॥2.10.15.2॥

शब्दाः

वार्तावाहकः. (2) - वार्तावह (पुं), वैवधिक (पुं)
भारवाहकः. (2) - भारवाह (पुं), भारिक (पुं) ॥2.10.15.2॥

मूलम्

विवर्णः पामरो नीचः प्राकृतश्च पृथग्जनः ॥2.10.16.1॥

शब्दाः

नीचः. (5) - विवर्ण (पुं), पामर (पुं), नीच (पुं), प्राकृत (पुं), पृथग्जन (पुं) ॥2.10.16.1॥

मूलम्

निहीनोऽपसदो जाल्मः क्षुल्लकश्चेतरश्च सः ॥2.10.16.2॥

शब्दाः

नीचः. (5) - निहीन (पुं), अपसद (पुं), जाल्म (पुं), क्षुल्लक (पुं), चेतर (पुं) ॥2.10.16.2॥

मूलम्

भृत्ये दासेरदासेयदासगोप्यकचेटकाः ॥2.10.17.1॥

शब्दाः

दासः. (6) - भृत्य (पुं), दासेर (पुं), दासेय (पुं), दास (पुं), गोप्यक (पुं), चेटक (पुं) ॥2.10.17.1॥

मूलम्

नियोज्यकिङ्करप्रैष्यभुजिष्यपरिचारकाः ॥2.10.17.2॥

शब्दाः

दासः. (5) - नियोज्य (पुं), किङ्कर (पुं), प्रैष्य (पुं), भुजिष्य (पुं), परिचारक (पुं) ॥2.10.17.2॥

मूलम्

पराचितपरिस्कन्दपरजातपरैधिताः ॥2.10.18.1॥

शब्दाः

परेण संवर्धितः. (4) - पराचित (पुं), परिस्कन्द (पुं), परजात (पुं), परैधित (पुं) ॥2.10.18.1॥

मूलम्

मान्दस्तुन्दपरिमृज आलस्यः शीतकोऽलसोऽनुष्णः ॥2.10.18.2॥

शब्दाः

अलसः. (6) - मन्द (पुं), तुन्दपरिमृज (पुं), आलस्य (पुं), शीतक (पुं), अलस (पुं), अनुष्ण (पुं) ॥2.10.18.2॥

मूलम्

दक्षे तु चतुरपेशलपटवः सूत्थान उष्णश्च ॥2.10.19.1॥

शब्दाः

चतुरः. (6) - दक्ष (पुं), चतुर (पुं), पेशल (पुं), पटु (पुं), सूत्थान (पुं), उष्ण (पुं) ॥2.10.19.1॥

मूलम्

चण्डालप्लवमातङ्गदिवाकीर्तिजनङ्गमाः ॥2.10.19.2॥

शब्दाः

चण्डालः. (5) - चण्डाल (पुं), प्लव (पुं), मातङ्ग (पुं), दिवाकीर्ति (पुं), जनङ्गम (पुं) ॥2.10.19.2॥

मूलम्

निषादश्वपचावन्तेवासिचाण्डालपुक्कसाः ॥2.10.20.1॥

शब्दाः

चण्डालः. (5) - निषाद (पुं), श्वपच (पुं), अन्तेवासिन् (पुं), चाण्डाल (पुं), पुक्कस (पुं) ॥2.10.20.1॥

मूलम्

भेदाः किरातशबरपुलिन्दा म्लेच्छजातयः ॥2.10.20.2॥

शब्दाः

किरातः. (1) - किरात (पुं)
शबरः. (1) - शबर (पुं)
पुलिन्दः. (1) - पुलिन्द (पुं) ॥2.10.20.2॥

मूलम्

व्याधो मृगवधाजीवो मृगयुर्लुब्धकोऽपि सः ॥2.10.21.1॥

शब्दाः

मृगवधाजीवः. (4) - व्याध (पुं), मृगवधाजीव (पुं), मृगयु (पुं), लुब्धक (पुं) ॥2.10.21.1॥

मूलम्

कौलेयकः सारमेयः कुक्कुरो मृगदंशकः ॥2.10.21.2॥

शब्दाः

शुनकः. (4) - कौलेयक (पुं), सारमेय (पुं), कुक्कुर (पुं), मृगदंशक (पुं) ॥2.10.21.2॥

मूलम्

शुनको भषकः श्वा स्यादलर्कस्तु स योगितः ॥2.10.22.1॥

शब्दाः

शुनकः. (3) - शुनक (पुं), भषक (पुं), श्वान (पुं)
मत्तशुनः. (2) - अलर्क (पुं), योगित (पुं) ॥2.10.22.1॥

मूलम्

श्वा विश्वकद्रुर्मृगयाकुशलः सरमा शुनी ॥2.10.22.2॥

शब्दाः

मृगयाकुशलशुनः. (1) - विश्वकद्रु (पुं)
शुनी. (2) - सरमा (स्त्री), शुनी (स्त्री) ॥2.10.22.2॥

मूलम्

विट्चरः सूकरो ग्राम्यो वर्करस्तरुणः पशुः ॥2.10.23.1॥

शब्दाः

ग्राम्यसूकरः. (1) - विट्चर (पुं)
तरुणपशुः. (1) - वर्कर (पुं) ॥2.10.23.1॥

मूलम्

आच्छोदनं मृगव्यं स्यादाखेटोमृगया स्त्रियाम् ॥2.10.23.2॥

शब्दाः

मृगया. (4) - आच्छोदन (नपुं), मृगव्य (नपुं), आखेट (पुं), मृगया (स्त्री) ॥2.10.23.2॥

मूलम्

दक्षिणारुर्लुब्धयोगाद्दक्षिणेर्मा कुरङ्गकः ॥2.10.24.1॥

शब्दाः

दक्षिणव्रणकुरङ्गः. (1) - दक्षिणेर्मन् (पुं) ॥2.10.24.1॥

मूलम्

चौरैकागारिकस्तेनदस्युतस्करमोषकाः ॥2.10.24.2॥

शब्दाः

चोरः. (6) - चौर (पुं), एकागारिक (पुं), स्तेन (पुं), दस्यु (पुं), तस्कर (पुं), मोषक (पुं) ॥2.10.24.2॥

मूलम्

प्रतिरोधिपरास्कन्दिपाटच्चरमलिम्लुचाः ॥2.10.25.1॥

शब्दाः

चोरः. (4) - प्रतिरोधिन् (पुं), परास्कन्दिन् (पुं), पाटच्चर (पुं), मलिम्लुच (पुं) ॥2.10.25.1॥

मूलम्

चौरिका स्तैन्यचोर्ये च स्तेयं लोप्त्रं तु तद्धने ॥2.10.25.2॥

शब्दाः

चोरकर्मः. (4) - चौरिका (स्त्री), स्तैन्य (नपुं), चौर्य (नपुं), स्तेय (नपुं)
चौर्यधनम्. (1) - लोप्त्र (नपुं) ॥2.10.25.2॥

मूलम्

वीतंसस्तूपकरणं बन्धने मृगपक्षिणाम् ॥2.10.26.1॥

शब्दाः

मृगादिबन्धनसाधनम्. (1) - वीतंस (पुं) ॥2.10.26.1॥

मूलम्

उन्माथः कूटयन्त्रं स्याद्वागुरा मृगबन्धनी ॥2.10.26.2॥

शब्दाः

मृगादिबन्धनयन्त्रम्. (2) - उन्माथ (पुं), कूटयन्त्र (नपुं)
जालविशेषः. (2) - वागुरा (स्त्री), मृगबन्धनी (स्त्री) ॥2.10.26.2॥

मूलम्

शुल्बं वराटकं स्त्री तु रज्जुस्त्रिषु वटी गुणः ॥2.10.27.1॥

शब्दाः

रज्जुः. (5) - शुल्ब (नपुं), वराटक (पुं), रज्जु (स्त्री), वटी (वि), गुण (पुं) ॥2.10.27.1॥

मूलम्

उद्घाटनं घटीयन्त्रं सलिलोद्वाहनं प्रहेः ॥2.10.27.2॥

शब्दाः

सलिलोद्वाहनयन्त्रम्. (2) - उद्घाटन (नपुं), घटीयन्त्र (नपुं) ॥2.10.27.2॥

मूलम्

पुंसि वेमा वायदण्डः सूत्राणि नरि तन्तवः ॥2.10.28.1॥

शब्दाः

वस्त्रव्यूतिदण्डः. (2) - वेमन् (पुं-नपुं), वायदण्ड (पुं)
तन्तवः. (2) - सूत्र (नपुं), तन्तु (पुं) ॥2.10.28.1॥

मूलम्

वाणिर्व्यूतिः स्त्रियौ तुल्ये पुस्तं लेप्यादिकर्मणि ॥2.10.28.2॥

शब्दाः

तन्तुवानः. (2) - वाणि (स्त्री), व्यूति (स्त्री)
वस्त्रादिलेप्यम्. (1) - पुस्त (नपुं) ॥2.10.28.2॥

मूलम्

पाञ्चालिका पुत्रिका स्याद्वस्त्रदन्तादिभिः कृता ॥2.10.29.1॥

शब्दाः

वस्त्रदन्तादिभिः कृतपुत्रिका. (2) - पाञ्चालिका (स्त्री), पुत्रिका (स्त्री) ॥2.10.29.1॥

मूलम्

जतुत्रपुविकारे तु जातुषं त्रापुषं त्रिषु ॥2.10.29.2॥

शब्दाः

जतुविकारः. (1) - जातुष (वि)
त्रपुविकारः. (1) - त्रापुष (वि) ॥2.10.29.2॥

मूलम्

पिटकः पेटकः पेटा मञ्जूषाथ विहङ्गिका ॥2.10.29.3॥

शब्दाः

पेटकः. (4) - पिटक (पुं), पेटक (पुं), पेटा (स्त्री), मञ्जूषा (स्त्री)
शक्याधारलगुडः. (1) - विहङ्गिका (स्त्री) ॥2.10.29.3॥

मूलम्

भारयष्टिस्तदालम्बि शिक्यं काचोऽथ पादुका ॥2.10.30.1॥

शब्दाः

शक्याधारलगुडः. (1) - भारयष्टि (स्त्री)
भारयष्ट्यामालम्बमानः. (2) - शिक्य (नपुं), काच (पुं)
पादुका. (1) - पादुका (स्त्री) ॥2.10.30.1॥

मूलम्

पादूरुपानत्स्त्री सैवानुपदीना पदायता ॥2.10.30.2॥

शब्दाः

पादुका. (2) - पादू (स्त्री), उपानह् (स्त्री)
विस्तृतपादुका. (1) - अनुपदीना (स्त्री) ॥2.10.30.2॥

मूलम्

नध्री वध्री वरत्रा स्यादश्वादेस्ताडनी कशा ॥2.10.31.1॥

शब्दाः

चर्ममयरज्जुः. (3) - नध्री (स्त्री), वर्ध्री (स्त्री), वरत्रा (स्त्री)
अश्वादेस्ताडनी. (1) - कशा (स्त्री) ॥2.10.31.1॥

मूलम्

चाण्डालिका तु कण्डोलवीणा चण्डालवल्लकी ॥2.10.31.2॥

शब्दाः

चाण्डालिका. (3) - चाण्डालिका (स्त्री), कण्डोलवीणा (स्त्री), चण्डालवल्लकी (स्त्री) ॥2.10.31.2॥

मूलम्

नाराची स्यादेषणिका शाणस्तु निकषः कषः ॥2.10.32.1॥

शब्दाः

सुवर्णतुला. (2) - नाराची (स्त्री), एषणिका (स्त्री)
स्वर्णघर्षणशिला. (3) - शाण (पुं), निकष (पुं), कष (पुं) ॥2.10.32.1॥

मूलम्

व्रश्चनःपत्रपरशुरीषिका तूलिका समे ॥2.10.32.2॥

शब्दाः

सुवर्णादिच्छेदनद्रव्यम्. (2) - व्रश्चन (पुं), पत्रपरशु (पुं)
शलाकाभेदः. (2) - एषिका (स्त्री), तूलिका (स्त्री) ॥2.10.32.2॥

मूलम्

तैजसावर्तनी मूषा भस्त्रा चर्मप्रसेविका ॥2.10.33.1॥

शब्दाः

मूषा. (2) - तैजसावर्तनी (स्त्री), मूषा (स्त्री)
अग्निज्वलनवस्तु. (2) - भस्त्रा (स्त्री), चर्मप्रसेविका (स्त्री) ॥2.10.33.1॥

मूलम्

आस्फोटनी वेधनिका कृपाणी कर्तरी समे ॥2.10.33.2॥

शब्दाः

मुक्तादिवेधिनी. (2) - आस्फोटनी (स्त्री), वेधनिका (स्त्री)
कर्तरी. (2) - कृपाणी (स्त्री), कर्तरी (स्त्री) ॥2.10.33.2॥

मूलम्

वृक्षादनी वृक्षभेदी टङ्कः पाषाणदारणः ॥2.10.34.1॥

शब्दाः

वृक्षभेदनायुधम्. (2) - वृक्षादनी (स्त्री), वृक्षभेदिन् (पुं)
पाषाणदारणघनभेदः. (2) - टङ्क (पुं), पाषाणदारण (पुं) ॥2.10.34.1॥

मूलम्

क्रकचोऽस्त्री करपत्रमारा चर्मप्रभेदिका ॥2.10.34.2॥

शब्दाः

शास्त्रादिविदारणशस्त्रम्. (2) - क्रकच (पुं-नपुं), करपत्र (नपुं)
चर्मखण्डनशस्त्रम्. (2) - आरा (स्त्री), चर्मप्रभेधिका (स्त्री) ॥2.10.34.2॥

मूलम्

सूर्मी स्थूणायःप्रतिमा शिल्पं कर्म कलादिकम् ॥2.10.35.1॥

शब्दाः

लोहप्रतिमा. (3) - सूर्मी (स्त्री), स्थूणा (स्त्री), अयःप्रतिमा (स्त्री)
कलाकौशल्यादिकर्मः. (1) - शिल्प (नपुं) ॥2.10.35.1॥

मूलम्

प्रतिमानं प्रतिबिम्बं प्रतिमा प्रतियातना प्रतिच्छाया ॥2.10.35.2॥

शब्दाः

प्रतिमा. (5) - प्रतिमान (नपुं), प्रतिबिम्ब (नपुं), प्रतिमा (स्त्री), प्रतियातना (स्त्री), प्रतिच्छाया (स्त्री) ॥2.10.35.2॥

मूलम्

प्रतिकृतिरर्चा पुंसि प्रतिनिधिरुपमोपमानं स्यात् ॥2.10.36.1॥

शब्दाः

प्रतिमा. (3) - प्रतिकृति (स्त्री), अर्चा (स्त्री), प्रतिनिधि (पुं)
उपमा. (2) - उपमा (स्त्री), उपमान (नपुं) ॥2.10.36.1॥

मूलम्

वाच्यलिङ्गाः समस्तुल्यः सदृक्षः सदृशः सदृक् ॥2.10.36.2॥

शब्दाः

सदृशः. (6) - वाच्यलिङ्ग (वि), सम (वि), तुल्य (वि), सदृक्ष (वि), सदृश (वि), सदृश् (वि) ॥2.10.36.2॥

मूलम्

साधारणः समानश्च स्युरुत्तरपदे त्वमी ॥2.10.37.1॥

शब्दाः

सदृशः. (2) - साधारण (वि), समान (वि) ॥2.10.37.1॥

निभसङ्काशनीकाशप्रतीकाशोपमादयः ॥2.10.37.2॥
मूलम्

कर्मण्या तु विधाभृत्याभृतयो भर्म वेतनम् ॥2.10.38.1॥

शब्दाः

वेतनम्. (6) - कर्मण्या (स्त्री), विधा (स्त्री), भृत्या (स्त्री), भृति (स्त्री), भर्मन् (नपुं), वेतन (नपुं) ॥2.10.38.1॥

मूलम्

भरण्यं भरणं मूल्यं निर्वेशः पण इत्यपि ॥2.10.38.2॥

शब्दाः

वेतनम्. (5) - भरण्य (नपुं), भरण (नपुं), मूल्य (नपुं), निर्वेश (पुं), पण (पुं) ॥2.10.38.2॥

मूलम्

सुरा हलिप्रिया हाला परिस्रुद्वरुणात्मजा ॥2.10.39.1॥

शब्दाः

सुरा. (5) - सुरा (स्त्री), हलिप्रिया (स्त्री), हाला (स्त्री), परिस्रुत् (स्त्री), वरुणात्मजा (स्त्री) ॥2.10.39.1॥

मूलम्

गन्धोत्तमाप्रसन्नेराकादम्बर्यः परिस्रुता ॥2.10.39.2॥

शब्दाः

सुरा. (5) - गन्धोत्तमा (स्त्री), प्रसन्ना (स्त्री), इरा (स्त्री), कादम्बरी (स्त्री), परिस्रुत् (स्त्री) ॥2.10.39.2॥

मूलम्

मदिरा कश्यमद्ये चाप्यवदंशस्तु भक्षणम् ॥2.10.40.1॥

शब्दाः

सुरा. (3) - मदिरा (स्त्री), कश्य (नपुं), मद्य (नपुं)
पानरुचिजनकभक्षणम्. (1) - अवदंश (पुं) ॥2.10.40.1॥

मूलम्

शुण्डापानं मदस्थानं मधुवारा मधुक्रमाः ॥2.10.40.2॥

शब्दाः

मद्यगृहम्. (3) - शुण्डा (स्त्री), पान (नपुं), मदस्थान (नपुं)
मधुपानावसरः. (2) - मधुवार (पुं), मधुक्रम (पुं) ॥2.10.40.2॥

मूलम्

मध्वासवो माधवको मधु माध्वीकमद्वयोः ॥2.10.41.1॥

शब्दाः

मधुकपुष्पकृतमद्यम्. (4) - मध्वासव (पुं), माधवक (पुं), मधु (नपुं), मार्द्वीक (नपुं) ॥2.10.41.1॥

मूलम्

मैरेयमासवः सीधुर्मेन्दको जगलः समौ ॥2.10.41.2॥

शब्दाः

इक्षुशाकादिजन्यमद्यम्. (3) - मैरेय (नपुं), आसव (पुं), सीधु (पुं)
सुराकल्कः. (2) - मेदक (पुं), जगल (पुं) ॥2.10.41.2॥

मूलम्

सन्धानं स्यादभिषवः किण्वं पुंसि तु नग्नहूः ॥2.10.42.1॥

शब्दाः

मद्यसन्धानम्. (2) - सन्धान (नपुं), अभिषव (पुं)
नानाद्रव्यकृतमद्यम्. (2) - किण्व (नपुं), नग्नहू (पुं) ॥2.10.42.1॥

मूलम्

कारोत्तरः सुरामण्ड आपानं पानगोष्ठिका ॥2.10.42.2॥

शब्दाः

सुरामण्डः. (2) - कारोत्तर (पुं), सुरामण्ड (पुं)
पानसभा. (2) - आपान (नपुं), पानगोष्ठिका (स्त्री) ॥2.10.42.2॥

मूलम्

चषकोऽस्त्री पानपात्रं सरकोऽप्यनुतर्षणम् ॥2.10.43.1॥

शब्दाः

मद्यपात्रम्. (2) - चषक (पुं-नपुं), पानपात्र (नपुं)
मद्यपानम्. (2) - सरक (पुं), अनुतर्षण (नपुं) ॥2.10.43.1॥

मूलम्

धूर्तोऽक्षदेवी कितवोऽक्षधूर्तो द्यूतकृत्समाः ॥2.10.43.2॥

शब्दाः

द्यूतकृत्. (5) - धूर्त (पुं), अक्षदेविन् (पुं), कितव (पुं), अक्षधूर्त (पुं), द्यूतकृत् (पुं) ॥2.10.43.2॥

मूलम्

स्युर्लग्नकाः प्रतिभुवः सभिका द्यूतकारकाः ॥2.10.44.1॥

शब्दाः

ऋणादौ प्रतिनिधिभूतः. (2) - लग्नक (पुं), प्रतिभू (पुं)
द्यूतकारकः. (2) - सभिक (पुं), द्यूतकारक (पुं) ॥2.10.44.1॥

मूलम्

द्यूतोऽस्त्रियामक्षवती कैतवं पण इत्यपि ॥2.10.44.2॥

शब्दाः

द्यूतक्रीडनम्. (4) - द्यूत (पुं-नपुं), अक्षवती (स्त्री), कैतव (नपुं), पण (पुं) ॥2.10.44.2॥

मूलम्

पणोऽक्षेषु ग्लहोऽक्षास्तु देवनाः पाशकाश्च ते ॥2.10.45.1॥

शब्दाः

द्यूते लाप्यमानः. (2) - पण (पुं), ग्लह (पुं)
अक्षः. (3) - अक्ष (पुं), देवन (पुं), पाशक (पुं) ॥2.10.45.1॥

मूलम्

परिणायस्तु शारीणां समन्तान्नयने स्त्रियाम् ॥2.10.45.2॥

शब्दाः

शारीणामितस्ततः नयनम्. (1) - परिणाय (पुं) ॥2.10.45.2॥

मूलम्

अष्टापदं शारिफलं प्राणिवृत्तं समाह्वयः ॥2.10.46.1॥

शब्दाः

शारीणामाधारपट्टः. (2) - अष्टापद (पुं-नपुं), शारिफल (पुं-नपुं)
समाहूयकृतद्यूतम्. (2) - प्राणिवृत्त (नपुं), समाह्वय (पुं) ॥2.10.46.1॥

उक्ता भूरिप्रयोगत्वादेकस्मिन्येऽत्र यौगिकाः ॥2.10.46.2॥ ताद्धर्म्यादन्यतो वृत्तावूह्या लिङ्गान्तरेऽपि ते ॥2.10.46.3॥ इत्यमरसिंहकृतौ नामलिङ्गानुशासने ॥2.10.47.1॥ द्वितीयकाण्डो भूम्यादिः साङ्ग एव समर्थितः ॥2.10.47.2॥