2.09 वैश्यवर्गः

मूलम्

ऊरव्या ऊरुजा अर्या वैश्या भूमिस्पृशो विशः ॥2.9.1.1॥

शब्दाः

वैश्यः. (6) - ऊरव्य (पुं), ऊरुज (पुं), अर्य (पुं), वैश्य (पुं), भूमिस्पृश् (पुं), विश् (पुं) ॥2.9.1.1॥

मूलम्

आजीवो जीविका वार्ता वृत्तिर्वर्तनजीवने ॥2.9.1.2॥

शब्दाः

जीवनोपायः. (6) - आजीव (पुं), जीविका (स्त्री), वार्ता (स्त्री), वृत्ति (स्त्री), वर्तन (नपुं), जीवन (नपुं) ॥2.9.1.2॥

मूलम्

स्त्रियां कृषिः पाशुपाल्यं वाणिज्यं चेति वृत्तयः ॥2.9.2.1॥

शब्दाः

जीवनोपायमार्गः. (3) - कृषि (स्त्री), पाशुपाल्य (नपुं), वाणिज्य (नपुं) ॥2.9.2.1॥

मूलम्

सेवा श्ववृत्तिरनृतं कृषिरुञ्छशिलं त्वृतम् ॥2.9.2.2॥

शब्दाः

परचित्तानुवर्त्तनम्. (2) - सेवा (स्त्री), श्ववृत्ति (स्त्री)
कर्षणम्. (2) - अनृत (नपुं), कृषि (स्त्री)
खलादिपतितधान्यसङ्ग्रहः. (2) - उञ्छशिल (नपुं), ऋत (नपुं) ॥2.9.2.2॥

मूलम्

द्वे याचितायाचितयोर्यथासंख्यं मृतामृते ॥2.9.3.1॥

शब्दाः

तण्डुलादियाचितः. (1) - मृत (नपुं)
अयाचितः. (1) - अमृत (नपुं) ॥2.9.3.1॥

मूलम्

सत्यानृतं वणिग्भावः स्यादृणं पर्युदञ्चनम् ॥2.9.3.2॥

शब्दाः

वाणिज्यम्. (2) - सत्यानृत (नपुं), वणिग्भाव (पुं)
ऋणम्. (2) - ऋण (नपुं), पर्युदञ्चन (नपुं) ॥2.9.3.2॥

मूलम्

उद्धारोऽर्थप्रयोगस्तु कुसीदं वृद्धिजीविका ॥2.9.4.1॥

शब्दाः

ऋणम्. (1) - उद्धार (पुं)
ऋणसम्बन्धिकालान्तरद्रव्येण लोकजीविका. (3) - अर्थप्रयोग (पुं), कुसीद (नपुं), वृद्धिजीविका (स्त्री) ॥2.9.4.1॥

मूलम्

याच्ञयाप्तं याचितकं निमयादापमित्यकम् ॥2.9.4.2॥

शब्दाः

याच्ञया प्राप्तम्. (1) - याचितक (नपुं)
परिवर्तनेनाप्तम्. (1) - आपमित्यक (नपुं) ॥2.9.4.2॥

मूलम्

उत्तमर्णाधमर्णौ द्वौ प्रयोक्तृग्राहकौ क्रमात् ॥2.9.5.1॥

शब्दाः

ऋणव्यवहारे धनस्वामिः. (1) - उत्तमर्ण (पुं)
ऋणव्यवहारे धनग्राहकः. (1) - अधमर्ण (पुं) ॥2.9.5.1॥

मूलम्

कुसीदिको वार्धुषिको वृद्ध्याजीवश्च वार्धुषिः ॥2.9.5.2॥

शब्दाः

ऋणं दत्वा तद्वृत्याजीविपुरुषः. (4) - कुसीदिक (पुं), वार्धूषिक (पुं), वृद्ध्याजीव (पुं), वार्धुषि (पुं) ॥2.9.5.2॥

मूलम्

क्षेत्राजीवः कर्षकश्च कृषिकश्च कृषीवलः ॥2.9.6.1॥

शब्दाः

कृषीवलः. (4) - क्षेत्राजीव (पुं), कर्षक (पुं), कृषक (पुं), कृषीवल (पुं) ॥2.9.6.1॥

मूलम्

क्षेत्रं व्रैहेयशालेयं व्रीहिशाल्युद्भवो हि यत् ॥2.9.6.2॥

शब्दाः

धान्यसामान्योत्पत्तियोग्यक्षेत्रम्. (1) - व्रैहेय (वि)
कलमाद्युत्पत्तियोग्यक्षेत्रम्. (1) - शालेय (वि) ॥2.9.6.2॥

मूलम्

यव्यं यवक्यं षष्टिक्यं यवादिभवनं हि यत् ॥2.9.7.1॥

शब्दाः

यवक्षेत्रम्. (1) - यव्य (वि)
यवकक्षेत्रम्. (1) - यवक्य (वि)
षष्टिकक्षेत्रम्. (1) - षष्टिक्य (वि) ॥2.9.7.1॥

मूलम्

तिल्यं तैलीनवन्माषोमाणुभङ्गा द्विरूपता ॥2.9.7.2॥

शब्दाः

तिलक्षेत्रम्. (2) - तिल्य (वि), तैलीन (वि)
माषक्षेत्रम्. (2) - माष्य (नपुं), माषीण (वि)
उमाक्षेत्रम्. (2) - उम्य (नपुं), औमीन (नपुं)
अणुधान्यक्षेत्रम्. (2) - अणव्य (नपुं), अणवीन (वि)
भङ्गाधान्यक्षेत्रम्. (2) - भङ्ग्य (नपुं), भाङ्गीन (वि) ॥2.9.7.2॥

मूलम्

मौद्गीनकौद्रवीणादि शेषधान्योद्भवक्षमम् ॥2.9.8.1॥

शब्दाः

मुद्गाधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) - मौद्गीन (वि)
कुद्रवधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) - कौद्रवीण (नपुं)
चणकधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) - चाणकीण (वि)
गोधुमधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) - गौधुमीण (नपुं)
कालयधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) - कालायीण (नपुं)
कोधुमधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) - कौदुमीण (नपुं)
प्रियङ्गधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) - प्रैयङ्गवीण (नपुं) ॥2.9.8.1॥

मूलम्

शाकक्षेत्रादिके शाकशाकटं शाकशाकिनम् ॥2.9.8.2॥

शब्दाः

शाकक्षेत्रादिकः. (2) - शाकशाकट (वि), शाकशाकिन (वि) ॥2.9.8.2॥

मूलम्

बीजाकृतं तूप्तकृष्टे सीत्यं कृष्टं च हल्यवत् ॥2.9.8.3॥

शब्दाः

बीजवापोत्तरं कृष्टक्षेत्रम्. (2) - बीजाकृत (नपुं), उप्तकृष्ट (वि)
कृष्टक्षेत्रम्. (3) - सीत्य (वि), कृष्ट (वि), हल्यवत् (नपुं) ॥2.9.8.3॥

मूलम्

त्रिगुणाकृतं तृतीयाकृतं त्रिहल्यं त्रिसीत्यमपि तस्मिन् ॥2.9.9.1॥

शब्दाः

वारत्रयकृष्टक्षेत्रम्. (4) - त्रिगुणाकृत (वि), तृतीयाकृत (वि), त्रिहल्य (वि), त्रिसीत्य (वि) ॥2.9.9.1॥

मूलम्

द्विगुणाकृते तु सर्वं पूर्वं शम्बाकृतमपीह ॥2.9.9.2॥

शब्दाः

द्विवारकृष्टक्षेत्रम्. (5) - द्विगुणाकृत (वि), द्वितीयाकृत (वि), द्विहल्य (वि), द्विसीत्य (वि), शम्बाकृत (वि) ॥2.9.9.2॥

मूलम्

द्रोणाढकादिवापादौ द्रौणिकाढकिकादयः ॥2.9.10.1॥

शब्दाः

द्रोणपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) - द्रौणिका (नपुं)
आढकपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) - आढकिक (वि)
कुडवपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) - कौडविक (वि)
प्रस्थपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) - प्रास्थिक (वि) ॥2.9.10.1॥

मूलम्

खारीवापस्तु खारीक उत्तमर्णादयस्त्रिषु ॥2.9.10.2॥

शब्दाः

खारीपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) - खारीक (पुं) ॥2.9.10.2॥

मूलम्

पुन्नपुंसकयोर्वप्रः केदारः क्षेत्रमस्य तु ॥2.9.11.1॥

शब्दाः

क्षेत्रम्. (3) - वप्र (पुं-नपुं), केदार (पुं), क्षेत्र (नपुं) ॥2.9.11.1॥

मूलम्

कैदारकं स्यात्कैदार्यं क्षेत्रं कैदारिकं गणे ॥2.9.11.2॥

शब्दाः

क्षेत्रगणम्. (4) - कैदारक (नपुं), कैदार्य (नपुं), क्षैत्र (नपुं), कैदारिक (नपुं) ॥2.9.11.2॥

मूलम्

लोष्टानि लेष्टवः पुंसि कोटिशो लोष्टभेदनः ॥2.9.12.1॥

शब्दाः

मृद्खण्डः. (2) - लोष्ट (पुं-नपुं), लेष्टु (पुं)
लोष्टभेदनकाष्ठम्. (2) - कोटिश (पुं), लोष्टभेदन (पुं) ॥2.9.12.1॥

मूलम्

प्राजनं तोदनं तोत्रं खनित्रमवदारणे ॥2.9.12.2॥

शब्दाः

वृषभादिप्रेरणदण्डः. (3) - प्राजन (नपुं), तोदन (नपुं), तोत्र (नपुं)
खननाद्यर्थायुधम्. (2) - खनित्र (नपुं), अवदारण (नपुं) ॥2.9.12.2॥

मूलम्

दात्रं लवित्रमाबन्धो योत्रं योक्त्रमथो फलम् ॥2.9.13.1॥

शब्दाः

तृणच्छेदनायुधम्. (2) - दात्र (नपुं), लवित्र (नपुं)
वृषादेर्युगबन्धनरज्जुः. (3) - आबन्ध (पुं), योत्र (नपुं), योक्त्र (नपुं)
लाङ्गलस्याधस्थलोहकाष्ठम्. (1) - फल (नपुं) ॥2.9.13.1॥

मूलम्

निरीशं कुटकं फालः कृषको लाङ्गलं हलम् ॥2.9.13.2॥

शब्दाः

लाङ्गलस्याधस्थलोहकाष्ठम्. (4) - निरीश (नपुं), कुटक (नपुं), फाल (पुं), कृषिक (पुं)
हलम्. (2) - लाङ्गल (नपुं), हल (नपुं) ॥2.9.13.2॥

मूलम्

गोदारणं च शीरोऽथ शम्या स्त्री युगकीलकः ॥2.9.14.1॥

शब्दाः

हलम्. (2) - गोदारण (नपुं), सीर (पुं)
युगस्य कीलकः. (2) - शम्या (स्त्री), युगकीलक (पुं) ॥2.9.14.1॥

मूलम्

ईषा लाङ्गलदण्डः स्यात्सीता लाङ्गलपद्धतिः ॥2.9.14.2॥

शब्दाः

हलयुगयोर्मध्यकाष्ठम्. (2) - ईशा (स्त्री), लाङ्गलदण्ड (पुं)
लाङ्गलकृतरेखा. (2) - सीता (स्त्री), लाङ्गलपद्धति (स्त्री) ॥2.9.14.2॥

मूलम्

पुंसि मेधिः खले दारु न्यस्तं यत्पशुबन्धने ॥2.9.15.1॥

शब्दाः

पशुबन्धनस्तम्भः. (2) - मेधि (पुं), खलेदारु (नपुं) ॥2.9.15.1॥

मूलम्

आशुर्व्रीहिः पाटलः स्याच्छितशूकयवौ समौ ॥2.9.15.2॥

शब्दाः

व्रीहिः. (3) - आशु (वि), व्रीहि (पुं), पाटल (पुं)
यवः. (2) - शितशूक (पुं), यव (पुं) ॥2.9.15.2॥

मूलम्

तोक्मस्तु तत्र हरिते कलायस्तु सतीनकः ॥2.9.16.1॥

शब्दाः

अपक्वयवः. (1) - तोक्म (पुं)
रेणुकः. (2) - कलाय (पुं), सतीनक (पुं) ॥2.9.16.1॥

मूलम्

हरेणुरेणुकौ चास्मिन्कोरदूषस्तु कोद्रवः ॥2.9.16.2॥

शब्दाः

रेणुकः. (2) - हरेणु (पुं), खण्डिक (पुं)
कोद्रवः. (2) - कोरदूष (पुं), कोद्रव (पुं) ॥2.9.16.2॥

मूलम्

मङ्गल्यको मसूरोऽथ मकुष्टक मयुष्टकौ ॥2.9.17.1॥

शब्दाः

मसूरः. (2) - मङ्गल्यक (पुं), मसूर (पुं)
वनमुद्गः. (2) - मकुष्ठक (पुं), मयुष्ठक (पुं) ॥2.9.17.1॥

मूलम्

वनमुद्गे सर्षपे तु द्वौ तन्तुभकदम्बकौ ॥2.9.17.2॥

शब्दाः

वनमुद्गः. (1) - वनमुद्ग (पुं)
सर्षपः. (3) - सर्षप (पुं), तन्तुभ (पुं), कदम्बक (पुं) ॥2.9.17.2॥

मूलम्

सिद्धार्थस्त्वेष धवलो गोधूमः सुमनः समौ ॥2.9.18.1॥

शब्दाः

श्वेतसर्षपः. (1) - सिद्धार्थ (पुं)
गोधुमः. (2) - गोधूम (पुं), सुमन (पुं) ॥2.9.18.1॥

मूलम्

स्याद्यावकस्तु कुल्माषश्चणको हरिमन्थकः ॥2.9.18.2॥

शब्दाः

अर्धस्विन्नयवादिः. (2) - यावक (पुं), कुल्माष (पुं)
चणकः. (2) - चणक (पुं), हरिमन्थक (पुं) ॥2.9.18.2॥

मूलम्

द्वौ तिले तिलपेजश्च तिलपिञ्जश्च निष्फले ॥2.9.19.1॥

शब्दाः

तैलहीनतिलः. (2) - तिलपेज (पुं), तिलपिञ्ज (पुं) ॥2.9.19.1॥

मूलम्

क्षवः क्षुताभिजननो राजिका कृष्णिकासुरी ॥2.9.19.2॥

शब्दाः

कृष्णसर्षपः. (5) - क्षव (पुं), क्षुधाभिजनन (पुं), राजिका (स्त्री), कृष्णिका (स्त्री), आसुरी (स्त्री) ॥2.9.19.2॥

मूलम्

स्त्रियौ कङ्गुप्रियङ्गू द्वे अतसी स्यादुमा क्षुमा ॥2.9.20.1॥

शब्दाः

कङ्गुः. (2) - कङ्गु (स्त्री), प्रियङ्गु (स्त्री)
अतसी. (3) - अतसी (स्त्री), उमा (स्त्री), क्षुमा (स्त्री) ॥2.9.20.1॥

मूलम्

मातुलानी तु भङ्गायां व्रीहि भेदस्त्वणुः पुमान् ॥2.9.20.2॥

शब्दाः

चणभेदः. (2) - मातुलानी (स्त्री), भङ्गा (स्त्री)
व्रीहिभेदः. (1) - अणु (पुं) ॥2.9.20.2॥

मूलम्

किंशारुः सस्यशूकं स्यात्कणिशं सस्यमञ्जरी ॥2.9.21.1॥

शब्दाः

सस्यशूकम्. (2) - किंशारु (पुं), सस्यशूक (नपुं)
धान्यमञ्जरी. (2) - कणिश (नपुं), सस्यमञ्जरी (स्त्री) ॥2.9.21.1॥

मूलम्

धान्यं व्रीहिः स्तम्बकरिः स्तम्बो गुच्छस्तृणादिनः ॥2.9.21.2॥

शब्दाः

धान्यम्. (3) - धान्य (नपुं), व्रीहि (पुं), स्तम्बकरि (पुं)
यवादीनां मूलम्. (2) - स्तम्ब (पुं), गुच्छ (पुं) ॥2.9.21.2॥

मूलम्

नाडी नालञ्च काण्डोऽस्य पलालोऽस्त्री सनिष्फलः ॥2.9.22.1॥

शब्दाः

तृणादिकाण्डः. (2) - नाडी (स्त्री), नाल (नपुं)
धान्यरहितकाण्डः. (1) - पलाल (पुं-नपुं) ॥2.9.22.1॥

मूलम्

कडङ्गरो बुसं क्लीबे धान्यत्वचि तुषः पुमान् ॥2.9.22.2॥

शब्दाः

पलालादिक्षोदः. (2) - कडङ्गर (पुं), बुस (नपुं)
तुषः. (2) - धान्यत्वच् (स्त्री), तुष (पुं) ॥2.9.22.2॥

मूलम्

शूकोऽस्त्री श्लक्ष्णतीक्ष्णाग्रे शमी शिम्बा त्रिषूत्तरे ॥2.9.23.1॥

शब्दाः

तीक्ष्णाग्रधान्यम्. (1) - शूक (पुं-नपुं)
शिम्बा. (2) - शमी (स्त्री), शिम्बा (स्त्री) ॥2.9.23.1॥

मूलम्

ऋद्धमावसितं धान्यं पूतं तु बहुलीकृतम् ॥2.9.23.2॥

शब्दाः

अपनीततृणसशीकृत धान्यम्. (2) - ऋद्ध (वि), आवसित (वि)
अपनीतबुसधान्यम्. (2) - पूत (वि), बहुलीकृत (वि) ॥2.9.23.2॥

मूलम्

माषादयः शमीधान्ये शूकधान्ये यवादयः ॥2.9.24.1॥

शब्दाः

शमीप्रभवमाषादिधान्यम्. (1) - शमीधान्य (नपुं)
यवादिशूकधान्यम्. (1) - शूकधान्य (नपुं) ॥2.9.24.1॥

मूलम्

शालयः कलमाद्याश्च षष्टिकाद्याश्च पुंस्यमी ॥2.9.24.2॥

शब्दाः

कलमषष्टिकाद्याः. (1) - शालि (पुं) ॥2.9.24.2॥

मूलम्

तृणधान्यानि नीवाराः स्त्री गवेधुर्गवेधुका ॥2.9.25.1॥

शब्दाः

श्यामाकादितृणधान्यानि. (2) - तृणधान्य (नपुं), नीवार (पुं)
मुन्यन्नविशेषः. (2) - गवेधु (स्त्री), गवेधुका (स्त्री) ॥2.9.25.1॥

मूलम्

अयोग्रं मुसलोऽस्त्री स्यादुदूखलमुलूखलम् ॥2.9.25.2॥

शब्दाः

मुसलः. (2) - अयोग्र (पुं-नपुं), मुसल (पुं-नपुं)
उलूखलम्. (2) - उदूखल (नपुं), उलूखल (नपुं) ॥2.9.25.2॥

मूलम्

प्रस्फोटनं शूर्पमस्त्री चालनी तितउः पुमान् ॥2.9.26.1॥

शब्दाः

शूर्पम्. (2) - प्रस्फोटन (नपुं), शूर्प (पुं-नपुं)
चालनी. (2) - चालनी (स्त्री), तितउ (पुं) ॥2.9.26.1॥

मूलम्

स्यूतप्रसेवौ कण्डोलपिटौ कटकिलिञ्जकौ ॥2.9.26.2॥

शब्दाः

धान्यादिभरणार्थं वस्त्रादिनानिर्मितस्यूतः. (2) - स्यूत (पुं), प्रसेव (पुं)
वंशादिनिर्मितभाण्डः. (2) - कण्डोल (पुं), पिट (पुं)
वंशादिविकारः. (2) - कट (पुं), किलिञ्जक (पुं) ॥2.9.26.2॥

मूलम्

समानौ रसवत्यां तु पाकस्थानमहानसे ॥2.9.27.1॥

शब्दाः

पाकस्थानम्. (3) - रसवती (स्त्री), पाकस्थान (नपुं), महानस (नपुं) ॥2.9.27.1॥

मूलम्

पौरोगवस्तदध्यक्षः सूपकारास्तु बल्लवाः ॥2.9.27.2॥

शब्दाः

महानसाधिकारी. (1) - पौरोगव (पुं)
पाककर्ता. (2) - सूपकार (पुं), बल्लव (पुं) ॥2.9.27.2॥

मूलम्

आरालिका आन्धसिकाः सूदा औदनिका गुणाः ॥2.9.28.1॥

शब्दाः

पाककर्ता. (5) - आरालिक (वि), आन्धसिक (वि), सूदा (वि), औदनिक (वि), गुण (वि) ॥2.9.28.1॥

मूलम्

आपूपिकः कान्दविको भक्ष्यकार इमे त्रिषु ॥2.9.28.2॥

शब्दाः

भक्ष्यकारः. (3) - आपूपिक (वि), कान्दविक (वि), भक्ष्यकार (वि) ॥2.9.28.2॥

मूलम्

अश्मन्तमुद्धानमधिश्रयणी चुल्लिरन्तिका ॥2.9.29.1॥

शब्दाः

चुल्लिः. (5) - अश्मन्त (नपुं), उद्धान (नपुं), अधिश्रयणी (स्त्री), चुल्ली (स्त्री), अन्तिका (स्त्री) ॥2.9.29.1॥

मूलम्

अङ्गारधानिकाङ्गारशकट्यपि हसन्त्यपि ॥2.9.29.2॥

शब्दाः

अङ्गारशकटी. (3) - अङ्गारधानिका (स्त्री), अङ्गारशकटी (स्त्री), हसन्ती (स्त्री) ॥2.9.29.2॥

मूलम्

हसन्यप्यथ न स्त्री स्यादङ्गारोऽलातमुल्मुकम् ॥2.9.30.1॥

शब्दाः

अङ्गारशकटी. (1) - हसनी (स्त्री)
प्रज्वलकाष्ठम्. (1) - अङ्गार (पुं-नपुं)
अर्धदग्धकाष्ठम्. (2) - अलात (नपुं), उल्मुक (नपुं) ॥2.9.30.1॥

मूलम्

क्लीबेऽम्बरीषं भ्राष्ट्रो ना कन्दुर्वा स्वेदनी स्त्रियाम् ॥2.9.30.2॥

शब्दाः

भर्जनपात्रम्. (2) - अम्बरीष (नपुं), भ्राष्ट्र (पुं)
मद्यनिर्माणोपयोगिपात्रम्. (2) - कन्दु (स्त्री-पुं), स्वेदनी (स्त्री) ॥2.9.30.2॥

मूलम्

अलिञ्जरः स्यान्मणिकः कर्कर्यालुर्गलन्तिका ॥2.9.31.1॥

शब्दाः

महाकुम्भः. (2) - अलिञ्जर (पुं), मणिक (पुं)
गलन्तिका. (3) - कर्करी (स्त्री), आलु (स्त्री), गलन्तिका (स्त्री) ॥2.9.31.1॥

मूलम्

पिठरः स्थाल्युखा कुण्डं कलशस्तु त्रिषु द्वयोः ॥2.9.31.2॥

शब्दाः

स्थाली. (4) - पिठर (पुं), स्थाली (स्त्री), उखा (स्त्री), कुण्ड (नपुं)
घटः. (1) - कलश (वि) ॥2.9.31.2॥

मूलम्

घटः कुटनिपावस्त्री शरावो वर्धमानकः ॥2.9.32.1॥

शब्दाः

घटः. (3) - घट (पुं), कुट (पुं), निप (पुं-नपुं)
पात्रभेदः. (2) - शराव (पुं-नपुं), वर्धमानक (पुं) ॥2.9.32.1॥

मूलम्

ऋजीषं पिष्टपचनं कंसोऽस्त्री पानभाजनम् ॥2.9.32.2॥

शब्दाः

पिष्टपाकोपयोगी पात्रम्. (2) - ऋजीष (नपुं), पिष्टपचन (नपुं)
पानपात्रम्. (2) - कंस (पुं-नपुं), पानभाजन (नपुं) ॥2.9.32.2॥

मूलम्

कुतूः कृत्तेः स्नेहपात्रं सैवाल्पा कुतुपः पुमान् ॥2.9.33.1॥

शब्दाः

चर्मनिर्मिततैलघृतादिपात्रम्. (2) - कुतू (स्त्री), कृत्ति (स्त्री)
अल्पतैलघृतादिपात्रम्. (1) - कुतुप (पुं) ॥2.9.33.1॥

मूलम्

सर्वमावपनं भाण्डं पात्रामत्रं च भाजनम् ॥2.9.33.2॥

शब्दाः

पात्रम्. (5) - आवपन (नपुं), भाण्ड (नपुं), पात्र (नपुं), अमत्र (नपुं), भाजन (नपुं) ॥2.9.33.2॥

मूलम्

दर्विः कम्बिः खजाका च स्यात्तर्दूर्दारुहस्तकः ॥2.9.34.1॥

शब्दाः

दर्विः. (3) - दर्वि (स्त्री), कम्बि (स्त्री), खजाका (स्त्री)
दर्विभेदः. (2) - तर्दू (पुं), दारुहस्तक (पुं) ॥2.9.34.1॥

मूलम्

अस्त्री शाकं हरितकं शिग्रुरस्य तु नाडिका ॥2.9.34.2॥

शब्दाः

वास्तुकादिशाकः. (3) - शाक (पुं-नपुं), हरितक (नपुं), शिग्रु (पुं) ॥2.9.34.2॥

मूलम्

कलम्बश्च कडम्बश्च वेसवार उपस्करः ॥2.9.35.1॥

शब्दाः

शाकनालः. (2) - कलम्ब (पुं), कडम्ब (पुं)
हरिद्रासर्षपमरीचादिचूर्णम्. (2) - वेषवार (पुं), उपस्कर (पुं) ॥2.9.35.1॥

मूलम्

तिन्तिडीकं च चुक्रं च वृक्षाम्लमथ वेल्लजम् ॥2.9.35.2॥

शब्दाः

तिन्तिडीकस्याम्लभेदः. (3) - तिन्तिडीक (नपुं), चुक्र (नपुं), वृक्षाम्ल (नपुं)
मरीचम्. (1) - वेल्लज (नपुं) ॥2.9.35.2॥

मूलम्

मरीचं कोलकं कृष्णमूषणं धर्मपत्तनम् ॥2.9.36.1॥

शब्दाः

मरीचम्. (5) - मरीच (नपुं), कोलक (नपुं), कृष्ण (नपुं), औषण (नपुं), धर्मपत्तन (नपुं) ॥2.9.36.1॥

मूलम्

जीरको जरणोऽजाजि कणा कृष्णे तु जीरके ॥2.9.36.2॥

शब्दाः

जीरकः. (4) - जीरक (पुं), जरण (पुं), अजाजी (स्त्री), कणा (स्त्री) ॥2.9.36.2॥

मूलम्

सुषवी कारवी पृथ्वी पृथुः कालोपकुञ्जिका ॥2.9.37.1॥

शब्दाः

कृष्णवर्णजीरकः. (6) - सुषवी (स्त्री), कारवी (स्त्री), पृथ्वी (स्त्री), पृथु (पुं), काला (स्त्री), उपकुंञ्चिका (स्त्री) ॥2.9.37.1॥

मूलम्

आर्द्रकं शृङ्गबेरं स्यादथच्छत्रा वितुन्नकम् ॥2.9.37.2॥

शब्दाः

आर्द्रकम्. (2) - आर्द्रक (नपुं), शृङ्गबेर (नपुं)
धान्यकम्. (2) - छत्रा (स्त्री), वितुन्नक (नपुं) ॥2.9.37.2॥

मूलम्

कुस्तुम्बुरु च धान्याकमथ शुण्ठी महौषधम् ॥2.9.38.1॥

शब्दाः

धान्यकम्. (2) - कुस्तुम्बरु (नपुं), धान्याक (नपुं)
शुण्ठी. (2) - शुण्ठी (स्त्री), महौषध (नपुं) ॥2.9.38.1॥

मूलम्

स्त्रीनपुंसकयोर्विश्वं नागरं विश्वभेषजम् ॥2.9.38.2॥

शब्दाः

शुण्ठी. (3) - विश्व (स्त्री-नपुं), नागर (नपुं), विश्वभेषज (नपुं) ॥2.9.38.2॥

मूलम्

आरनालकसौवीरकुल्माषाभिषुतानि च ॥2.9.39.1॥

शब्दाः

काञ्जिकम्. (4) - आरनालक (नपुं), सौवीर (नपुं), कुल्माष (नपुं), अभिषुत (नपुं) ॥2.9.39.1॥

मूलम्

अवन्तिसोमधान्याम्लकुञ्जलानि च काञ्जिके ॥2.9.39.2॥

शब्दाः

काञ्जिकम्. (4) - अवन्तिसोम (नपुं), धान्याम्ल (नपुं), कुञ्जल (नपुं), काञ्जिक (नपुं) ॥2.9.39.2॥

मूलम्

सहस्रवेधि जतुकं बाल्हीकं हिङ्गु रामठम् ॥2.9.40.1॥

शब्दाः

हिङ्गुवृक्षनिर्यासः. (5) - सहस्रवेधि (नपुं), जतुक (नपुं), बल्हीक (नपुं), हिङ्गु (नपुं), रामठ (नपुं) ॥2.9.40.1॥

मूलम्

तत्पत्री कारवी पृथ्वी बाष्पिका कबरी पृथुः ॥2.9.40.2॥

शब्दाः

हिङ्गुपत्रम्. (5) - कारवी (स्त्री), पृथ्वी (स्त्री), बाष्पिका (स्त्री), कबरी (स्त्री), पृथु (पुं) ॥2.9.40.2॥

मूलम्

निशाख्या काञ्चनी पीता हरिद्रा वरवर्णिनी ॥2.9.41.1॥

शब्दाः

हरिद्रा. (5) - निशाह्वा (स्त्री), काञ्चनी (स्त्री), पीता (स्त्री), हरिद्रा (स्त्री), वरवर्णिनी (स्त्री) ॥2.9.41.1॥

मूलम्

सामुद्रं यत्तु लवणमक्षीवं वशिरं च तत् ॥2.9.41.2॥

शब्दाः

लवणम्. (4) - सामुद्र (नपुं), लवण (पुं), अक्षीव (नपुं), वशिर (नपुं) ॥2.9.41.2॥

मूलम्

सैन्धवोऽस्त्री शीतशिवं माणिमन्थं च सिन्धुजे ॥2.9.42.1॥

शब्दाः

सिन्धुजलवणम्. (4) - सैन्धव (पुं-नपुं), शीतशिव (नपुं), माणिमन्थ (नपुं), सिन्धुज (नपुं) ॥2.9.42.1॥

मूलम्

रौमकं वसुकं पाक्यं विडं च कृतके द्वयम् ॥2.9.42.2॥

शब्दाः

शाम्भरलवणम्. (2) - रौमक (नपुं), वसुक (नपुं)
कृतकलवणम्. (2) - पाक्य (नपुं), बिड (नपुं) ॥2.9.42.2॥

मूलम्

सौवर्चलेऽक्षरुचके तिलकं तत्र मेचके ॥2.9.43.1॥

शब्दाः

मधुरलवणम्. (3) - सौवर्चल (नपुं), अक्ष (पुं-नपुं), रुचक (पुं)
कृष्णवर्णलवणम्. (1) - तिलक (नपुं) ॥2.9.43.1॥

मूलम्

मत्स्यण्डी फाणितं खण्डविकारः शर्करा सिता ॥2.9.43.2॥

शब्दाः

फाणितम्. (3) - मत्स्यन्डी (स्त्री), फाणित (नपुं), खण्डविकार (पुं)
शर्करा. (2) - शर्करा (स्त्री), सिता (स्त्री) ॥2.9.43.2॥

मूलम्

कूर्चिका क्षीरविकृतिः स्याद्रसाला तु मार्जिता ॥2.9.44.1॥

शब्दाः

क्षीरविकृतिः. (1) - कूर्चिका (स्त्री)
दधिमधुशर्करामरिचार्द्रादिभिः कृतलेह्यः. (2) - रसाला (स्त्री), मार्जिता (स्त्री) ॥2.9.44.1॥

मूलम्

स्यात्तेमनं तु निष्ठानं त्रिलिङ्गा वासितावधेः ॥2.9.44.2॥

शब्दाः

दध्यादिव्यञ्जनम्. (2) - तेमन (नपुं), निष्ठान (नपुं) ॥2.9.44.2॥

मूलम्

शूलाकृतं भटित्रं स्याच्छूल्यमुख्यं तु पैठरम् ॥2.9.45.1॥

शब्दाः

लोहशलाकया पक्वमांसः. (3) - शूलाकृत (वि), भटित्र (वि), शूल्य (वि)
स्थालीसंस्कृतान्नादिः. (2) - उख्य (वि), पैठर (वि) ॥2.9.45.1॥

मूलम्

प्रणीतमुपसंपन्नं प्रयस्तं स्यात्सुसंस्कृतम् ॥2.9.45.2॥

शब्दाः

पाकेन संस्कृतव्यञ्जनादिः. (2) - प्रणीत (वि), उपसम्पन्न (वि)
द्रव्यान्तरसंस्कृतपक्वम्. (2) - प्रयस्त (वि), सुसंस्कृत (वि) ॥2.9.45.2॥

मूलम्

स्यात्पिच्छिलं तु विजिलं संमृष्टं शोधितं समे ॥2.9.46.1॥

शब्दाः

मण्डयुक्तदध्यादिः. (2) - पिच्छिल (वि), विजिल (वि)
केशकीटाद्यपनीयशोधितोन्नः. (2) - सम्मृष्ट (वि), शोधित (वि) ॥2.9.46.1॥

मूलम्

चिक्कणं मसृणं स्निग्धं तुल्ये भावितवासिते ॥2.9.46.2॥

शब्दाः

स्निग्धम्. (3) - चिक्कण (वि), मसृण (वि), स्निग्ध (वि)
ग्राहितहिङ्ग्वादिगन्धव्यञ्जनादिः. (2) - भावित (वि), वासित (वि) ॥2.9.46.2॥

मूलम्

आपक्वं पौलिरभ्यूषो लाजाः पुंभूम्नि चाक्षताः ॥2.9.47.1॥

शब्दाः

पौलिः. (3) - आपक्व (नपुं), पौलि (पुं), अभ्यूष (पुं)
भृष्टव्रीह्यादिः. (1) - लाज (पुं-बहु)
अखण्डतण्डुलाः. (1) - अक्षत (पुं-बहु) ॥2.9.47.1॥

मूलम्

पृथुकः स्याच्चिपिटको धाना भ्रष्टयवे स्त्रियः ॥2.9.47.2॥

शब्दाः

पृथुकः. (2) - पृथुक (पुं), चिपिटक (पुं)
भर्जितयवः. (2) - धाना (स्त्री), भृष्टयव (पुं) ॥2.9.47.2॥

मूलम्

पूपोऽपूपः पिष्टकः स्यात्करम्भो दधिसक्तवः ॥2.9.48.1॥

शब्दाः

अपूपः. (3) - पूप (पुं), अपूप (पुं), पिष्टक (पुं)
दधिमिश्रसक्तुः. (2) - करम्भ (पुं), दधिसक्तु (पुं) ॥2.9.48.1॥

मूलम्

भिस्सा स्त्री भक्तमन्धोऽन्नमोदनोऽस्त्री सदीदिविः ॥2.9.48.2॥

शब्दाः

सिद्धान्नम्. (6) - भिस्सा (स्त्री), भक्त (नपुं), अन्ध (पुं), अन्न (नपुं), ओदन (पुं-नपुं), दीदिवि (पुं) ॥2.9.48.2॥

मूलम्

भिस्सटा दग्धिका सर्वरसाग्रे मण्डमस्त्रियाम् ॥2.9.49.1॥

शब्दाः

दग्धोदनः. (2) - भिस्सटा (स्त्री), दग्धिका (स्त्री)
सर्वेषाम् रसानामग्रम्. (1) - मण्ड (पुं-नपुं) ॥2.9.49.1॥

मूलम्

मासराचामनिस्रावा मण्डे भक्तसमुद्भवे ॥2.9.49.2॥

शब्दाः

भक्तोद्भवमण्डः. (3) - मासर (पुं), आचाम (पुं), निस्राव (पुं) ॥2.9.49.2॥

मूलम्

यवागूरुष्णिका श्राणा विलेपी तरला च सा ॥2.9.50.1॥

शब्दाः

यवागू. (5) - यवागू (स्त्री), उष्णिका (स्त्री), श्राणा (स्त्री), विलेपी (स्त्री), तरला (स्त्री) ॥2.9.50.1॥

मूलम्

म्रक्षणाभ्यञ्जने तैलं कृसरस्तु तिलौदनः ॥2.9.50.2॥

शब्दाः

तैलम्. (3) - म्रक्षण (नपुं), अभ्यञ्जन (नपुं), तैल (नपुं)
तिलौदनः. (2) - कृसर (नपुं), तिलौदन (पुं) ॥2.9.50.2॥

मूलम्

गव्यं त्रिषु गवां सर्वं गोविड्गोमयस्त्रियाम् ॥2.9.50.3॥

शब्दाः

गोरसम्. (1) - गव्य (वि)
गोमयम्. (2) - गोविष् (पुं-नपुं), गोमय (पुं-नपुं) ॥2.9.50.3॥

मूलम्

तत्तु शुष्कं करीषोऽस्त्री दुग्धं क्षीरं पयस्समम् ॥2.9.51.1॥

शब्दाः

शुष्कगोमयम्. (1) - करीष (पुं-नपुं)
दुग्धम्. (3) - दुग्ध (नपुं), क्षीर (नपुं), पयस् (नपुं) ॥2.9.51.1॥

मूलम्

पयस्यमाज्यदध्यादि द्रप्स्यं दधि घनेतरत् ॥2.9.51.2॥

शब्दाः

घृतदध्यादिः. (1) - पयस्य (नपुं)
शिथिलदधिः. (1) - द्रप्स (नपुं) ॥2.9.51.2॥

मूलम्

घृतमाज्यं हविः सर्पिर्नवनीतं नवोद्घृतम् ॥2.9.52.1॥

शब्दाः

घृतम्. (4) - घृत (नपुं), आज्य (नपुं), हविस् (नपुं), सर्पिस् (नपुं)
अकृताग्निसंयोगनवोद्धृतम्. (1) - नवनीत (नपुं) ॥2.9.52.1॥

मूलम्

तत्तु हैयङ्गवीनं यद्ध्योगोदोहोद्भवं घृतम् ॥2.9.52.2॥

शब्दाः

एकरात्रपर्युषिताद्दध्नोत्पन्नघृतम्. (1) - हैयङ्गवीन (नपुं) ॥2.9.52.2॥

मूलम्

दण्डाहतं कालशेयमरिष्टमपि गोरसः ॥2.9.53.1॥

शब्दाः

दण्डमथितगोरसमात्रम्. (4) - दण्डाहत (नपुं), कालशेय (नपुं), अरिष्ट (नपुं), गोरस (पुं) ॥2.9.53.1॥

मूलम्

तक्रं ह्युदश्विन्मथितं पादाम्ब्वर्धाम्बु निर्जलम् ॥2.9.53.2॥

शब्दाः

पादांशजलघोलः. (1) - तक्र (नपुं)
अर्धांशजलघोलः. (1) - उदश्वित् (नपुं) ॥2.9.53.2॥

मूलम्

मण्डम्दधिभवं मस्तु पीयूषोऽभिनवं पयः ॥2.9.54.1॥

शब्दाः

वस्त्रनिःसृतदधिजलम्. (1) - मस्तु (नपुं)
नवप्रसूतगोः क्षीरम्. (1) - पीयूष (नपुं) ॥2.9.54.1॥

मूलम्

अशनाया बुभुक्षा क्षुद्ग्रासस्तु कवलः पुमान् ॥2.9.54.2॥

शब्दाः

बुभुक्षा. (3) - अशनाया (स्त्री), बुभुक्षा (स्त्री), क्षुत् (स्त्री)
ग्रासः. (2) - ग्रास (पुं), कवल (पुं) ॥2.9.54.2॥

मूलम्

सपीतिः स्त्री तुल्यपानं सग्धिः स्त्री सहभोजनम् ॥2.9.55.1॥

शब्दाः

सहपानम्. (2) - सपीति (स्त्री), तुल्यपान (नपुं)
सहभोजनम्. (2) - सग्धि (स्त्री), सहभोजन (नपुं) ॥2.9.55.1॥

मूलम्

उदन्या तु पिपासा तृट्तर्षो जग्धिस्तु भोजनम् ॥2.9.55.2॥

शब्दाः

पिपासा. (4) - उदन्या (स्त्री), पिपासा (स्त्री), तृष् (स्त्री), तर्ष (पुं)
भोजनम्. (2) - जग्धि (स्त्री), भोजन (नपुं) ॥2.9.55.2॥

मूलम्

जेमनं लेह आहारो निघासो न्याद इत्यपि ॥2.9.56.1॥

शब्दाः

भोजनम्. (5) - जेमन (नपुं), लेह (पुं), आहार (पुं), निघस (पुं), न्याद (पुं) ॥2.9.56.1॥

मूलम्

सौहित्यं तर्पणं तृप्तिः फेला भुक्तसमुज्झितम् ॥2.9.56.2॥

शब्दाः

तृप्तिः. (3) - सौहित्य (नपुं), तर्पण (नपुं), तृप्ति (स्त्री)
भुक्तोच्चिष्टम्. (2) - फेला (स्त्री), भुक्तसमुज्झित (नपुं) ॥2.9.56.2॥

मूलम्

कामं प्रकामं पर्याप्तं निकामेष्टं यथेप्सितम् ॥2.9.57.1॥

शब्दाः

यथेप्सितम्. (6) - काम (नपुं), प्रकामम् (अव्य), पर्याप्त (नपुं), निकामम् (अव्य), इष्ट (नपुं), यथेप्सितम् (अव्य) ॥2.9.57.1॥

मूलम्

गोपे गोपालगोसंख्यगोधुगाभीरवल्लवाः ॥2.9.57.2॥

शब्दाः

गोपालः. (6) - गोप (पुं), गोपाल (पुं), गोसङ्ख्य (पुं), गोधुक् (पुं), आभीर (पुं), वल्लव (पुं) ॥2.9.57.2॥

मूलम्

गोमहिष्यादिकं पादबन्धनं द्वौ गवीश्वरे ॥2.9.58.1॥

शब्दाः

गोमहिष्यादिः. (1) - पादबन्धन (नपुं)
गवां स्वामिः. (1) - गवीश्वर (पुं) ॥2.9.58.1॥

मूलम्

गोमान्गोमी गोकुलं तु गोधनं स्याद्गवां व्रजे ॥2.9.58.2॥

शब्दाः

गवां स्वामिः. (2) - गोमत् (पुं), गोमिन् (पुं)
गोसङ्घातः. (2) - गोकुल (नपुं), गोधन (नपुं) ॥2.9.58.2॥

मूलम्

त्रिष्वाशितङ्गवीनं तद्गावो यत्राशिताः पुरा ॥2.9.59.1॥

शब्दाः

पूर्वं गवां चरणस्थानम्. (1) - आशितङ्गवीन (वि) ॥2.9.59.1॥

मूलम्

उक्षा भद्रो बलीवर्द ऋषभो वृषभो वृषः ॥2.9.59.2॥

शब्दाः

वृषभः. (6) - उक्षन् (पुं), भद्र (पुं), बलीवर्द (पुं), ऋषभ (पुं), वृषभ (पुं), वृष (पुं) ॥2.9.59.2॥

मूलम्

अनड्वान्सौरभेयो गौरुक्ष्णां संहतिरौक्षकम् ॥2.9.60.1॥

शब्दाः

वृषभः. (3) - अनडुह् (पुं), सौरभेय (पुं), गो (पुं)
वृषभसङ्घः. (1) - औक्षक (नपुं) ॥2.9.60.1॥

मूलम्

गव्या गोत्रा गवां वत्सधेन्वोर्वात्सकधैनुके ॥2.9.60.2॥

शब्दाः

गोसमूहः. (2) - गव्या (स्त्री), गोत्रा (स्त्री)
वत्ससमूहः. (1) - वात्सक (नपुं)
धेनुसमूहः. (1) - धैनुक (नपुं) ॥2.9.60.2॥

मूलम्

वृषो महान्महोक्षः स्याद्वृद्धोक्षस्तु जरद्गवः ॥2.9.61.1॥

शब्दाः

महावृषभः. (1) - महोक्ष (पुं)
वृद्धवृषभः. (2) - वृद्धोक्ष (पुं), जरद्गव (पुं) ॥2.9.61.1॥

मूलम्

उत्पन्न उक्षा जातोक्षः सद्यो जातस्तु तर्णकः ॥2.9.61.2॥

शब्दाः

आरब्धयौवनवृषभः. (1) - जातोक्ष (पुं)
सद्योजातवृषभवत्सः. (1) - तर्णक (पुं) ॥2.9.61.2॥

मूलम्

शकृत्करिस्तु वत्सस्याद्दम्यवत्सतरौ समौ ॥2.9.62.1॥

शब्दाः

वृषभवत्सः. (2) - शकृत्करि (पुं), वत्स (पुं)
स्पष्टतारुण्यवृषभः. (2) - दम्य (पुं), वत्सतर (पुं) ॥2.9.62.1॥

मूलम्

आर्षभ्यः षण्डतायोग्यः षण्डो गोपतिरिट्चरः ॥2.9.62.2॥

शब्दाः

तारुण्यप्राप्तवृषभः. (2) - आर्षभ्य (पुं), षण्डतायोग्य (पुं)
साण्डवृषभः. (3) - षण्ड (पुं), गोपति (पुं), इट्चर (पुं) ॥2.9.62.2॥

मूलम्

स्कन्धदेशे त्वस्य वहः सास्ना तु गलकम्बलः ॥2.9.63.1॥

शब्दाः

वृषभस्कन्धदेशः. (1) - वह (पुं)
गलकम्बलः. (2) - सास्ना (स्त्री), गलकम्बल (पुं) ॥2.9.63.1॥

मूलम्

स्यान्नस्तितस्तु नस्योतः प्रष्ठवाड्युगपार्श्वगः ॥2.9.63.2॥

शब्दाः

नासारज्जुयुक्तवृषभः. (2) - नस्तित (पुं), नस्योत (पुं)
दमनार्थं कण्ठारोपितकाष्ठवाहः. (2) - प्रष्ठवाह् (पुं), युगपार्श्वग (पुं) ॥2.9.63.2॥

मूलम्

युगादीनां तु वोढारो युग्यप्रासङ्ग्यशाकटाः ॥2.9.64.1॥

शब्दाः

युगवाह्यवृषभः. (1) - युग्य (नपुं)
युगेयुगवाह्यवृषभः. (1) - प्रासङ्ग्य (पुं)
शकटवाह्यवृषभः. (1) - शाकट (पुं) ॥2.9.64.1॥

मूलम्

खनति तेन तद्वोढास्येदं हालिकसैरिकौ ॥2.9.64.2॥

शब्दाः

हलेन खनतीत्यादयः. (2) - हालिक (पुं), सैरिक (पुं) ॥2.9.64.2॥

मूलम्

धुर्वहे धुर्य धौरेय धुरीणाः सधुरन्धराः ॥2.9.65.1॥

शब्दाः

धुरन्धरवृषभः. (5) - धुर्वह (पुं), धुर्य (पुं), धौरेय (पुं), धुरीण (पुं), सधुरन्धर (पुं) ॥2.9.65.1॥

मूलम्

उभावेकधुरीणैकधुरावेकधुरावहे ॥2.9.65.2॥

शब्दाः

एकामेव धुरन्धरः. (3) - एकधुरीण (पुं), एकधुर (पुं), एकधुरावह (पुं) ॥2.9.65.2॥

मूलम्

स तु सर्वधुरीणः स्याद्यो वै सर्वधुरावहः ॥2.9.66.1॥

शब्दाः

धुरीणश्रेष्ठः. (2) - सर्वधुरीण (पुं), सर्वधुरावह (पुं) ॥2.9.66.1॥

मूलम्

माहेयी सौरभेयी गौरुस्रा माता च शृङ्गिणी ॥2.9.66.2॥

शब्दाः

गौः. (6) - माहेयी (स्त्री), सौरभेयी (स्त्री), गो (पुं), उस्रा (स्त्री), मातृ (स्त्री), शृङ्गिणी (स्त्री) ॥2.9.66.2॥

मूलम्

अर्जुन्यघ्न्या रोहिणी स्यादुत्तमा गोषु नैचिकी ॥2.9.67.1॥

शब्दाः

गौः. (3) - अर्जुनी (स्त्री), अघ्न्या (स्त्री), रोहिणी (स्त्री)
श्रेष्ठा गौः. (1) - नैचिकी (स्त्री) ॥2.9.67.1॥

मूलम्

वर्णादिभेदात्संज्ञाः स्युः शबलीधवलादयः ॥2.9.67.2॥

शब्दाः

गोभेदः. (2) - शबली (स्त्री), धवला (स्त्री) ॥2.9.67.2॥

मूलम्

द्विहायनी द्विवर्षा गौरेकाब्दा त्वेकहायनी ॥2.9.68.1॥

शब्दाः

द्विवर्षा गौः. (1) - द्विहायनी (स्त्री)
एकवर्षा गौः. (1) - एकहायनी (स्त्री) ॥2.9.68.1॥

मूलम्

चतुरब्दा चतुर्हायण्येवं त्र्यब्दा त्रिहायणी ॥2.9.68.2॥

शब्दाः

चतुर्वर्षा गौः. (1) - चतुर्हायणी (स्त्री)
त्रिवर्षा गौः. (1) - त्रिहायणी (स्त्री) ॥2.9.68.2॥

मूलम्

वशा वन्ध्यावतोका तु स्रवद्गर्भाथ सन्धिनी ॥2.9.69.1॥

शब्दाः

वन्ध्या गौः. (2) - वशा (स्त्री), वन्ध्या (स्त्री)
अकस्मात् पतितगर्भा गौः. (2) - अवतोका (स्त्री), स्रवद्गर्भा (स्त्री)
कृतमैथुना गौः. (1) - सन्धिनी (स्त्री) ॥2.9.69.1॥

मूलम्

आक्रान्ता वृषभेणाथ वेहद्गर्भोपघातिनी ॥2.9.69.2॥

शब्दाः

वृषयोगेन गर्भपातिनी. (2) - वेहत् (स्त्री), गर्भोपघातिनी (स्त्री) ॥2.9.69.2॥

मूलम्

काल्योपसर्या प्रजने प्रष्ठौही बालगर्भिणी ॥2.9.70.1॥

शब्दाः

गर्भग्रहणयोग्या गौः. (1) - उपसर्या (स्त्री)
प्रथमं गर्भं धृतवती गौः. (2) - प्रष्ठौही (स्त्री), बालगर्भिणी (स्त्री) ॥2.9.70.1॥

मूलम्

स्यादचण्डी तु सुकरा बहुसूतिः परेष्टुका ॥2.9.70.2॥

शब्दाः

अकोपजा गौः. (2) - अचण्डी (स्त्री), सुकरा (स्त्री)
बहुप्रसूता गौः. (2) - बहुसूति (स्त्री), परेष्टुका (स्त्री) ॥2.9.70.2॥

मूलम्

चिरप्रसूता बष्कयणी धेनुः स्यान्नवसूतिका ॥2.9.71.1॥

शब्दाः

दीर्घकालेन प्रसूता गौः. (2) - चिरप्रसूता (स्त्री), बष्कयणी (स्त्री)
नूतनप्रसूता गौः. (2) - धेनु (स्त्री), नवसूतिका (स्त्री) ॥2.9.71.1॥

मूलम्

सुव्रता सुखसंदोह्या पीनोध्नी पीवरस्तनी ॥2.9.71.2॥

शब्दाः

सुशीला गौः. (2) - सुव्रता (स्त्री), सुखसन्दोह्या (स्त्री)
स्थूलस्तनी गौः. (2) - पीनोध्नी (स्त्री), पीवरस्तनी (स्त्री) ॥2.9.71.2॥

मूलम्

द्रोणक्षीरा द्रोणदुग्धा धेनुष्या बन्धके स्थिता ॥2.9.72.1॥

शब्दाः

द्रोणप्रिमितदुग्धमात्रा गौः. (2) - द्रोणक्षीरा (स्त्री), द्रोणदुग्धा (स्त्री)
बन्धनस्थिता गौः. (1) - धेनुष्या (स्त्री) ॥2.9.72.1॥

मूलम्

समांसमीना सा यैव प्रतिवर्षं प्रसूयते ॥2.9.72.2॥

शब्दाः

प्रतिवर्षं प्रसवित्री गौः. (1) - समांसमीना (स्त्री) ॥2.9.72.2॥

मूलम्

ऊधस्तु क्लीबमापीनं समौ शिवककीलकौ ॥2.9.73.1॥

शब्दाः

क्षीरशयः. (2) - ऊधस् (नपुं), आपीन (नपुं)
पशुबन्धनकाष्ठम्. (2) - शिवक (पुं), कीलक (पुं) ॥2.9.73.1॥

मूलम्

न पुंसि दाम सन्दानं पशुरज्जुस्तु दामनी ॥2.9.73.2॥

शब्दाः

दोहनकाले पादबन्धनरज्जुः. (2) - दामन् (स्त्री-नपुं), सन्दान (नपुं)
पशुबन्धनरज्जुः. (2) - पशुरज्जु (स्त्री), दामनी (स्त्री) ॥2.9.73.2॥

मूलम्

वैशाखमन्थमन्थान मन्थानो मन्थदण्डके ॥2.9.74.1॥

शब्दाः

मन्थनदण्डः. (5) - वैशाख (पुं), मन्थ (पुं), मन्थान (पुं), मन्था (पुं), मन्थदण्डक (पुं) ॥2.9.74.1॥

मूलम्

कुठरो दण्डविष्कम्भो मन्थनी गर्गरी समे ॥2.9.74.2॥

शब्दाः

मन्थदण्डदारककाष्ठम्. (2) - कुठर (पुं), दण्डविष्कम्भ (पुं)
मन्थनपात्रम्. (2) - मन्थनी (स्त्री), गर्गरी (स्त्री) ॥2.9.74.2॥

मूलम्

उष्ट्रे क्रमेलकमयमहाङ्गाः करभः शिशुः ॥2.9.75.1॥

शब्दाः

उष्ट्रः. (4) - उष्ट्र (पुं), क्रमेलक (पुं), मय (पुं), महाङ्ग (पुं)
उष्ट्रशिशुः. (1) - करभ (पुं) ॥2.9.75.1॥

मूलम्

करभाः स्युः शृङ्खलका दारवैः पादबन्धनैः ॥2.9.75.2॥

शब्दाः

दारुविकारशृङ्खलाबद्धोष्ट्रशिशुः. (1) - शृङ्खलक (पुं) ॥2.9.75.2॥

मूलम्

अजा छागी शुभच्छागबस्तच्छगलका अजे ॥2.9.76.1॥

शब्दाः

अजा. (2) - अजा (स्त्री), छागी (स्त्री)
अजः. (5) - स्तभ (पुं), छाग (पुं), वस्त (पुं), छगलक (पुं), अज (पुं) ॥2.9.76.1॥

मूलम्

मेढ्रोरभ्रोरणोर्णायु मेष वृष्णय एडके ॥2.9.76.2॥

शब्दाः

मेषः. (7) - मेढ्र (पुं), उरभ्र (पुं), उरण (पुं), ऊर्णायु (पुं), मेष (पुं), वृष्णि (पुं), एडक (पुं) ॥2.9.76.2॥

मूलम्

उष्ट्रोरभ्राजवृन्दे स्यादौष्ट्रकौरभ्रकाजकम् ॥2.9.77.1॥

शब्दाः

उष्ट्रसमूहः. (1) - औष्ट्रक (नपुं)
मेषसमूहः. (1) - औरभ्रक (नपुं)
अजसमूहः. (1) - आजक (नपुं) ॥2.9.77.1॥

मूलम्

चक्रीवन्तस्तु वालेया रासभा गर्दभाः खराः ॥2.9.77.2॥

शब्दाः

गर्दभः. (5) - चक्रीवत् (पुं), वालेय (पुं), रासभ (पुं), गर्दभ (पुं), खर (पुं) ॥2.9.77.2॥

मूलम्

वैदेहकः सार्थवाहो नैगमो वाणिजो वणिक् ॥2.9.78.1॥

शब्दाः

वणिक्. (5) - वैदेहक (पुं), सार्थवाह (पुं), नैगम (पुं), वाणिज (पुं), वणिज् (पुं) ॥2.9.78.1॥

मूलम्

पण्याजीवो ह्यापणिकः क्रयविक्रयिकश्च सः ॥2.9.78.2॥

शब्दाः

वणिक्. (3) - पण्याजीव (पुं), आपणिक (पुं), क्रयविक्रयक (पुं) ॥2.9.78.2॥

मूलम्

विक्रेता स्याद्विक्रयिकः क्रायकक्रयिकौ समौ ॥2.9.79.1॥

शब्दाः

वस्त्रपात्रादिदत्वा तन्मूल्यं गृहीतः. (2) - विक्रेतृ (पुं), विक्रयिक (पुं)
मूल्येन वस्त्रादि गृहीतः. (2) - क्रायक (पुं), क्रयिक (पुं) ॥2.9.79.1॥

मूलम्

वाणिज्यं तु वणिज्या स्यान्मूल्यं वस्नोऽप्यवक्रयः ॥2.9.79.2॥

शब्दाः

वणिक्कर्मः. (2) - वाणिज्य (नपुं), वणिज्या (स्त्री)
विक्रेयवस्तूनां मूल्यम्. (3) - मूल्य (नपुं), वस्न (पुं), अवक्रय (पुं) ॥2.9.79.2॥

मूलम्

नीवी परिपणो मूलधनं लाभोऽधिकं फलम् ॥2.9.80.1॥

शब्दाः

मूलधनम्. (3) - नीवी (स्त्री), परिपण (पुं), मूलधन (नपुं)
अधिकफलम्. (3) - लाभ (पुं), अधिक (वि), फल (नपुं) ॥2.9.80.1॥

मूलम्

परिदानं परीवर्तो नैमेयनियमावपि ॥2.9.80.2॥

शब्दाः

परिवर्तनम्. (4) - परिदान (नपुं), परीवर्त (पुं), नैमेय (पुं), नियम (पुं) ॥2.9.80.2॥

मूलम्

पुमानुपनिधिर्न्यासः प्रतिदानं तदर्पणम् ॥2.9.81.1॥

शब्दाः

निक्षेपः. (2) - उपनिधि (पुं), न्यास (पुं)
स्वामिने निक्षेपार्पणम्. (1) - प्रतिदान (नपुं) ॥2.9.81.1॥

मूलम्

क्रये प्रसारितं क्रय्यं क्रेयं क्रेतव्यमात्रके ॥2.9.81.2॥

शब्दाः

क्रये प्रसारितं द्रव्यम्. (1) - क्रय्य (वि)
क्रेतव्यमात्रके द्रव्यम्. (1) - क्रेय (वि) ॥2.9.81.2॥

मूलम्

विक्रेयं पणितव्यं च पण्यं क्रय्यादयस्त्रिषु ॥2.9.82.1॥

शब्दाः

विक्रयक्रियाकर्मः. (3) - विक्रेय (वि), पणितव्य (वि), पण्य (वि) ॥2.9.82.1॥

मूलम्

क्लीबे सत्यापनं सत्यङ्कारः सत्याकृतिः स्त्रियाम् ॥2.9.82.2॥

शब्दाः

सत्यङ्कारः. (3) - सत्यापन (नपुं), सत्यङ्कार (पुं), सत्याकृति (स्त्री) ॥2.9.82.2॥

मूलम्

विपणो विक्रयः संख्याः संख्येये ह्यादश त्रिषु ॥2.9.83.1॥

शब्दाः

विक्रयः. (2) - विपण (पुं), विक्रय (पुं) ॥2.9.83.1॥

विंशत्याद्याः सदैकत्वे सर्वाः संख्येयसंख्ययोः ॥2.9.83.2॥ संख्यार्थे द्विबहुत्वे स्तस्तासु चानवतेः स्त्रियः ॥2.9.84.1॥ पङ्क्तेः शतसहस्रादि क्रमाद्दशगुणोत्तरम् ॥2.9.84.2॥
मूलम्

यौतवं द्रुवयं पाय्यमिति मानार्थकं त्रयम् ॥2.9.85.1॥

शब्दाः

मानार्थः. (3) - यौतव (नपुं), द्रुवय (नपुं), पाय्य (नपुं) ॥2.9.85.1॥

मूलम्

मानं तुलाङ्गुलिप्रस्थैर्गुञ्जाः पञ्जाद्यमाषकः ॥2.9.85.2॥

शब्दाः

माननाम. (1) - आद्यमाषक (पुं) ॥2.9.85.2॥

मूलम्

ते षोडशाक्षः कर्षोऽस्त्री पलं कर्षचतुष्टयम् ॥2.9.86.1॥

शब्दाः

षोडशमाषः. (2) - अक्ष (पुं), कर्ष (पुं-नपुं)
कर्षचतुष्टयम्. (1) - पल (नपुं) ॥2.9.86.1॥

मूलम्

सुवर्णबिस्तौ हेम्नोऽक्षे कुरुबिस्तस्तु तत्पले ॥2.9.86.2॥

शब्दाः

हेम्नो़क्षमानः. (2) - सुवर्ण (पुं-नपुं), विस्त (पुं-नपुं)
सुवर्णस्याक्षपलः. (1) - कुरुविस्त (पुं) ॥2.9.86.2॥

मूलम्

तुला स्त्रियां पलशतं भारः स्याद्विंशतिस्तुलाः ॥2.9.87.1॥

शब्दाः

पलशतम्. (1) - तुला (स्त्री)
विंशतितुला. (1) - भार (पुं) ॥2.9.87.1॥

मूलम्

आचितो दश भाराः स्युः शाकटो भार आचितः ॥2.9.87.2॥

शब्दाः

आचितभारः. (1) - शाकटभार (वि)
दशभाराः. (1) - आचित (पुं-नपुं) ॥2.9.87.2॥

मूलम्

कार्षापणः कार्षिकः स्यात् कार्षिके ताम्रिके पणः ॥2.9.88.1॥

शब्दाः

रजतरूप्यकम्. (2) - कार्षापण (पुं), कार्षिक (पुं)
ताम्रकृतकार्षापणः. (1) - पण (पुं) ॥2.9.88.1॥

मूलम्

अस्त्रियामाढकद्रोणौ खारी वाहो निकुञ्चकः ॥2.9.88.2॥

शब्दाः

परिमाणः. (5) - आढक (पुं-नपुं), द्रोण (पुं), खारी (स्त्री), वाह (पुं), निकुञ्चक (पुं) ॥2.9.88.2॥

मूलम्

कुडवः प्रस्थ इत्याद्याः परिमाणार्थकाः पृथक् ॥2.9.89.1॥

शब्दाः

परिमाणः. (2) - कुडव (पुं), प्रस्थ (पुं) ॥2.9.89.1॥

मूलम्

पादस्तुरीयो भागः स्यादंशभागौ तु वण्टके ॥2.9.89.2॥

शब्दाः

तुरीयोभागः. (1) - पाद (पुं)
विभागः. (3) - अंश (पुं), भाग (पुं), वण्टक (पुं) ॥2.9.89.2॥

मूलम्

द्रव्यं वित्तं स्वापतेयं रिक्थमृक्थं धनं वसु ॥2.9.90.1॥

शब्दाः

द्रव्यम्. (7) - द्रव्य (नपुं), वित्त (नपुं), स्वापतेय (नपुं), रिक्थ (नपुं), ऋक्थ (नपुं), धन (नपुं), वसु (नपुं) ॥2.9.90.1॥

मूलम्

हिरण्यं द्रविणं द्युम्नमर्थरैविभवा अपि ॥2.9.90.2॥

शब्दाः

द्रव्यम्. (6) - हिरण्य (नपुं), द्रविण (नपुं), द्युम्न (नपुं), अर्थ (पुं), रै (पुं), विभव (पुं) ॥2.9.90.2॥

मूलम्

स्यात्कोशश्च हिरण्यं च हेमरूप्ये कृताकृते ॥2.9.91.1॥

शब्दाः

घटिताघटितहेमरूप्यकम्. (2) - कोश (पुं), हिरण्य (नपुं) ॥2.9.91.1॥

मूलम्

ताभ्यां यदन्यत्तत्कुप्यं रूप्यं तद्द्वयमाहतम् ॥2.9.91.2॥

शब्दाः

ताम्रादिधातोर्रूप्यकम्. (1) - कुप्य (नपुं)
आहतरूप्यकहेमादिः. (1) - रूप्य (नपुं) ॥2.9.91.2॥

मूलम्

गारुत्मतं मरकतमश्मगर्भो हरिन्मणिः ॥2.9.92.1॥

शब्दाः

मरतकमणिः. (4) - गारुत्मत (नपुं), मरकत (नपुं), अश्मगर्भ (पुं), हरिन्मणि (पुं) ॥2.9.92.1॥

मूलम्

शोणरत्नं लोहितकः पद्मरागोऽथ मौक्तिकम् ॥2.9.92.2॥

शब्दाः

पद्मरागमणिः. (3) - शोणरत्न (नपुं), लोहितक (पुं), पद्मराग (पुं)
मौक्तिकम्. (1) - मौक्तिक (नपुं) ॥2.9.92.2॥

+++(मौक्तिकम्. (1) - मुक्ता (स्त्री)
प्रवालमणिः. (2) - विद्रुम (पुं), प्रवाल (पुं-नपुं) ॥2.9.93.1॥)+++
मुक्ताथ विद्रुमः पुंसि प्रवालं पुन्नपुंसकम् ॥2.9.93.1॥

मूलम्

रत्नं मणिर्द्वयोरश्मजातौ मुक्तादिकेऽपि च ॥2.9.93.2॥

शब्दाः

रत्नम्. (2) - रत्न (नपुं), मणि (स्त्री-पुं) ॥2.9.93.2॥

मूलम्

स्वर्णं सुवर्णं कनकं हिरण्यं हेमकाटकम् ॥2.9.94.1॥

शब्दाः

सुवर्णम्. (6) - स्वर्ण (नपुं), सुवर्ण (नपुं), कनक (नपुं), हिरण्य (नपुं), हेमन् (नपुं), हाटक (नपुं) ॥2.9.94.1॥

मूलम्

तपनीयं शातकुम्भं गाङ्गेयं भर्म कर्बुरम् ॥2.9.94.2॥

शब्दाः

सुवर्णम्. (5) - तपनीय (नपुं), शातकुम्भ (नपुं), गाङ्गेय (नपुं), भर्मन् (नपुं), कर्बुर (नपुं) ॥2.9.94.2॥

मूलम्

चामीकरं जातरूपं महारजतकाञ्चने ॥2.9.95.1॥

शब्दाः

सुवर्णम्. (4) - चामीकर (नपुं), जातरूप (नपुं), महारजत (नपुं), काञ्चन (नपुं) ॥2.9.95.1॥

मूलम्

रुक्मं कार्तस्वरं जाम्बूनदमष्टापदोऽस्त्रियाम् ॥2.9.95.2॥

शब्दाः

सुवर्णम्. (4) - रुक्म (नपुं), कार्तस्वर (नपुं), जाम्बूनद (नपुं), अष्टापद (पुं-नपुं) ॥2.9.95.2॥

मूलम्

अलङ्कारसुवर्णं यच्छृङ्गीकनकमित्यदः ॥2.9.96.1॥

शब्दाः

अलङ्कारस्वर्णम्. (1) - श्रृङ्गीकनक (नपुं) ॥2.9.96.1॥

मूलम्

दुर्वर्णं रजतं रूप्यं खर्जूरं श्वेतमित्यपि ॥2.9.96.2॥

शब्दाः

रजतम्. (5) - दुर्वर्ण (नपुं), रजत (नपुं), रूप्य (नपुं), खर्जूर (नपुं), श्वेत (नपुं) ॥2.9.96.2॥

+++(पित्तलम्. (2) - रीति (स्त्री), आरकूट (पुं-नपुं)
ताम्रम्. (1) - ताम्रक (नपुं) ॥2.9.97.1॥)+++
रीतिः स्त्रियामारकूटो न स्त्रियामथ ताम्रकम् ॥2.9.97.1॥

मूलम्

शुल्बं म्लेच्छमुखं द्व्यष्टवरिष्टोदुम्बराणि च ॥2.9.97.2॥

शब्दाः

ताम्रम्. (5) - शुल्ब (नपुं), म्लेच्छमुख (नपुं), द्व्यष्ट (नपुं), वरिष्ठ (नपुं), उदुम्बर (नपुं) ॥2.9.97.2॥

मूलम्

लोहोऽस्त्री शस्त्रकं तीक्ष्णं पिण्डं कालायसायसी ॥2.9.98.1॥

शब्दाः

लोहः. (6) - लोह (पुं-नपुं), शस्त्रक (नपुं), तीक्ष्ण (नपुं), पिण्ड (नपुं), कालायस (नपुं), अयस् (नपुं) ॥2.9.98.1॥

+++(लोहः. (1) - अश्मसार (पुं-नपुं)
लोहमलम्. (2) - मण्डूर (नपुं), सिंहाण (नपुं) ॥2.9.98.2॥)+++
अश्मसारोऽथ मण्डूरं सिंहाणमपि तन्मले ॥2.9.98.2॥

+++(सर्वधातवः. (2) - तैजस (नपुं), लोह (नपुं)
अयोविकारः. (1) - कुशी (स्त्री) ॥2.9.99.1॥)+++
सर्वं च तैजसं लौहं विकारस्त्वयसः कुशी ॥2.9.99.1॥

+++(काचः. (2) - क्षार (पुं), काच (पुं)
पारदः. (4) - चपल (पुं), रस (पुं), सूत (पुं), पारद (पुं) ॥2.9.99.2॥)+++
क्षारः काचोऽथ चपलो रसः सूतश्च पारदे ॥2.9.99.2॥

+++(महिषशृङ्गम्. (1) - गवल (नपुं)
अभ्रकम्. (3) - अभ्रक (नपुं), गिरिज (नपुं), अमल (नपुं) ॥2.9.100.1॥)+++
गवलं माहिषं शृङ्गमभ्रकं गिरिजामले ॥2.9.100.1॥

मूलम्

स्रोतोञ्जनं तु सौवीरं कापोताञ्जनयामुने ॥2.9.100.2॥

शब्दाः

सौवीराञ्जनम्. (4) - स्रोतोञ्जन (नपुं), सौवीर (नपुं), कापोताञ्जन (नपुं), यामुन (नपुं) ॥2.9.100.2॥

मूलम्

तुत्थाञ्जनं शिखिग्रीवं वितुन्नकमयूरके ॥2.9.101.1॥

शब्दाः

तुत्थाञ्जनम्. (4) - तुत्थाञ्जन (नपुं), शिखिग्रीव (नपुं), वितुन्नक (नपुं), मयूरक (नपुं) ॥2.9.101.1॥

+++(आवर्तननिष्पन्नरसाञ्जनम्. (3) - कर्परी (स्त्री), दार्विका (स्त्री), तुत्थ (नपुं)
रसाञ्जनम्. (1) - रसाञ्जन (नपुं) ॥2.9.101.2॥)+++
कर्परी दार्विकाक्वाथोद्भवं तुत्थं रसाञ्जनम् ॥2.9.101.2॥

+++(रसाञ्जनम्. (2) - रसगर्भ (नपुं), तार्क्ष्यशैल (नपुं)
गन्धकः. (2) - गन्धाश्मन् (पुं), गन्धक (पुं) ॥2.9.102.1॥)+++
रसगर्भं तार्क्ष्यशैलं गन्धाश्मनि तु गन्धिकः ॥2.9.102.1॥

+++(गन्धकः. (1) - सौगन्धिक (पुं)
तुत्थविशेषः. (3) - चक्षुष्या (स्त्री), कुलाली (स्त्री), कुलत्थिका (स्त्री) ॥2.9.102.2॥)+++
सौगन्धिकश्च चक्षुष्याकुलाल्यौ तु कुलत्थिका ॥2.9.102.2॥

मूलम्

रीतिपुष्पं पुष्पकेतु पुष्पकं कुसुमाञ्जनम् ॥2.9.103.1॥

शब्दाः

सन्तप्तपित्तलादुत्पन्नद्रव्यम्. (4) - रीतिपुष्प (नपुं), पुष्पकेतु (नपुं), पौष्पक (नपुं), कुसुमाञ्जन (नपुं) ॥2.9.103.1॥

मूलम्

पिञ्जरं पीतनं तालमालं च हरितालके ॥2.9.103.2॥

शब्दाः

हरितालम्. (5) - पिञ्जर (नपुं), पीतन (नपुं), ताल (नपुं), आल (नपुं), हरितालक (नपुं) ॥2.9.103.2॥

मूलम्

गैरेयमर्थ्यं गिरिजमश्मजं च शिलाजतु ॥2.9.104.1॥

शब्दाः

शिलाजतुः. (5) - गैरेय (नपुं), अर्थ्य (नपुं), गिरिज (नपुं), अश्मज (नपुं), शिलाजतु (नपुं) ॥2.9.104.1॥

मूलम्

वोलगन्धरसप्राणपिण्डगोपरसाः समाः ॥2.9.104.2॥

शब्दाः

गन्धरसः. (6) - बोल (पुं), गन्धरस (पुं), प्राण (पुं), पिण्ड (पुं), गोप (पुं), रस (पुं) ॥2.9.104.2॥

+++(समुद्रफेनः. (3) - हिण्डीर (पुं), अब्धिकफ (पुं), फेन (पुं)
सिन्दूरम्. (2) - सिन्दूर (नपुं), नागसम्भव (नपुं) ॥2.9.105.1॥)+++
डिण्डीरोऽब्धिकफः फेनः सिन्दूरं नागसंभवम् ॥2.9.105.1॥

+++(सीसकम्. (4) - नाग (पुं), सीसक (नपुं), योगेष्ट (नपुं), वप्र (नपुं)
वङ्गम्. (2) - त्रपु (नपुं), पिच्चट (नपुं) ॥2.9.105.2॥)+++
नागसीसकयोगेष्टवप्राणि त्रपु पिञ्चटम् ॥2.9.105.2॥

+++(वङ्गम्. (2) - रङ्ग (नपुं), वङ्ग (नपुं)
कार्पासः. (2) - पिचु (पुं), तूल (पुं)
कुसुम्भम्. (1) - कमलोत्तर (नपुं) ॥2.9.106.1॥)+++
रङ्गवङ्गे अथ पिचुस्तूलोऽथ कमलोत्तरम् ॥2.9.106.1॥

मूलम्

स्यात्कुसुम्भं वह्निशिखं महारजनमित्यपि ॥2.9.106.2॥

शब्दाः

कुसुम्भम्. (3) - कुसुम्भ (नपुं), वह्निशिख (नपुं), महारजन (नपुं) ॥2.9.106.2॥

+++(कम्बलः. (2) - मेषकम्बल (पुं), ऊर्णायु (पुं)
शशलोमः. (2) - शशोर्ण (नपुं), शशलोमन् (नपुं) ॥2.9.107.1॥)+++
मेषकम्बल ऊर्णायुः शशोर्णं शशलोमनि ॥2.9.107.1॥

+++(पुष्पमधुः. (3) - मधु (पुं), क्षौद्र (नपुं), माक्षिक (नपुं)
मधूच्छिष्टम्. (2) - मधूच्छिष्ट (नपुं), सिक्थक (नपुं) ॥2.9.107.2॥)+++
मधु क्षौद्रं माक्षिकादि मधूच्छिष्टं तु सिक्थकम् ॥2.9.107.2॥

मूलम्

मनःशिला मनोगुप्ता मनोह्वा नागजिह्विका ॥2.9.108.1॥

शब्दाः

मनःशिला. (4) - मनःशिला (स्त्री), मनोगुप्ता (स्त्री), मनोह्वा (स्त्री), नागजिह्विका (स्त्री) ॥2.9.108.1॥

+++(मनःशिला. (3) - नैपाली (स्त्री), कुनटी (स्त्री), गोला (स्त्री)
यवक्षारः. (2) - यवक्षार (पुं), यवाग्रज (पुं) ॥2.9.108.2॥)+++
नैपाली कुनटी गोला यवक्षारो यवाग्रजः ॥2.9.108.2॥

+++(यवक्षारः. (1) - पाक्य (पुं)
स्वर्जिकाक्षारः. (3) - स्वर्जिकाक्षार (पुं), कापोत (नपुं), सुखवर्चक (पुं) ॥2.9.109.1॥)+++
पाक्योऽथ सर्जिकाक्षारः कापोतः सुखवर्चकः ॥2.9.109.1॥

+++(स्वर्जिकाक्षारः. (2) - सौवर्चल (नपुं), रुचक (नपुं)
वेणुजन्यौषधिविशेषः. (2) - त्वक्क्षीरी (स्त्री), वंशरोचना (स्त्री) ॥2.9.109.2॥)+++
सौवर्चलं स्याद्रुचकं त्वक्क्षीरी वंशरोचना ॥2.9.109.2॥

+++(शोभाञ्जनबीजम्. (2) - शिग्रुज (नपुं), श्वेतमरिच (नपुं)
इक्षुमूलम्. (1) - मोरट (नपुं) ॥2.9.110.1॥)+++
शिग्रुजं श्वेतमरिचं मोरटं मूलमैक्षवम् ॥2.9.110.1॥

मूलम्

ग्रन्थिकं पिप्पलीमूलं चटकाशिर इत्यपि ॥2.9.110.2॥

शब्दाः

पिप्पलीमूलम्. (3) - ग्रन्थिक (नपुं), पिप्पलीमूल (नपुं), चटकाशिरस् (नपुं) ॥2.9.110.2॥

+++(भूतकेशः. (2) - गोलोमी (स्त्री), भूतकेश (पुं)
रक्तचन्दनः. (2) - पत्राङ्ग (नपुं), रक्तचन्दन (नपुं) ॥2.9.111.1॥)+++
गोलोमी भूतकेशो ना पत्राङ्गं रक्तचन्दनम् ॥2.9.111.1॥

+++(शुण्ठीपिप्पलिमरीचिकानां समाहारः. (3) - त्रिकटु (नपुं), त्र्यूषण (नपुं), व्योष (नपुं)
हरीतक्यामलकविभीतक्यां समाहारः. (2) - त्रिफला (स्त्री), फलत्रिक (नपुं) ॥2.9.111.2॥)+++
त्रिकटु त्र्यूषणं व्योषं त्रिफला तु फलत्रिकम् ॥2.9.111.2॥